Sunday, March 17, 2019

536.सत्य अटल

सत्य अटल

क्या कहूँ?
कैसे कहूँ?
निःशब्द हो गए
हैं ये लब मेरे।
कहूँ भी तो
किससे कहूँ
कबतलक मैं चुप रहूँ।
ये सांसों का पहरा
ये दिल की धड़कन
जाने थम जाए कब
नहीं कुछ भी नहीं
कुछ नहीं है जीवन
बस मृत्यु ही है सत्य अटल।
लोगों का आना-जाना
पलना-बढ़ना-चढ़ना
देखना और दिखाना।
है नजरों का धोखा केवल
बस मृत्यु ही है सत्य अटल।
ये दुनियां, ये दौलत
ये चाहत, ये शोहरत
कुछ भी न साथ जाए
रहता है तो बस नाम तेरा
दिलों में बसता है काम तेरा
बाकी सबकुछ धोखा है केवल
बस मृत्यु ही है सत्य अटल।

©पंकज प्रियम