Thursday, May 14, 2020

834. कोरोना काल

कोरोना काल

यह कैसा वायरस आया है?
यह कैसा वायरस आया है?

यह कैसा वायरस आया है?
हर दिल में खौफ़ समाया है।
विकट कोरोना काल में अब
बस दिखता मौत का साया है।
यह -

चहुँ ओर मचा चीत्कार अभी,
हर ओर मचा हाहाकार अभी।
बन काल कोरोना आया है,
सब जन-जन ही घबराया है।
यह कैसा-

कल भाग रहे थे शहर की तरफ,
अब भाग रहे सब घर की तरफ।
ये दृश्य विभाजन का दुहराया है।
हाँ इस वक्त ने सबको हराया है।
यह कैसा-

शहर की ख़ातिर छोड़ा गाँव,
संकट में क्यूँ मिला न ठाँव?
जो शहर ने सबको भगाया है,
सब लौट के गाँव ही आया है।
यह कैसा-

छीन गयी रोजी-रोटी जब,
क्या करता बेचारा कोई तब।
जहाँ खून-पसीना बहाया है,
वही वक्त पे काम न आया है।
यह कैसा.

नर-नारी बच्चे-बूढ़े और जवान,
हलक में अटकी सबकी जान।
हालात में खुद को बिठाया है,
सामान सा ट्रक में समाया है।
यह कैसा-

हालात से तब मजदूर बने,
हालात से अब मजबूर बने।
जब शहर ने ठेंगा दिखाया है
घर वापस कदम बढ़ाया है।
यह कैसा--

सब भूखे पैदल चलने को,
नङ्गे पाँव चले हैं जलने को।
कोई खुद को बैल बनाया है,
कोई पत्ता चुन-चुन खाया है।

यह कैसा वायरस आया है,
हर दिल में खौफ़ समाया है।

©पंकज प्रियम