समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
Friday, April 15, 2022
938.अज़ान
Wednesday, April 13, 2022
844. पर्यावरण
प्रकृति और मानव
प्रकृति क्रन्दन आज सुनो, सुनो करुण चीत्कार।
मूढ़मति अरे मानवों, कर गलती स्वीकार।।
मानव कर्मों की सज़ा , सबको मिलती आज।
दूषित है पर्यावरण, मानव ऐसे काज।।
रोक कदम अब आज तुम, बहुत किया संहार।
पलपल प्रकृति देख अभी, करती है हुंकार।।
कदम मिलाकर प्रकृति के, चलो हमेशा संग।
नहीं करो प्रदूषण तुम, भर लो जीवन रंग।।
देख जरा कैसे धरा, पल-पल रही कराह।
जख़्म दिया तूने उसे, ख़त्म हुई सब चाह।।
जीवन तुझको दे धरा, भुगत रही अंजाम।
मत कर उसका चीर हरण, होगा फिर संग्राम।।
दोहन करते जो रहे, जल-जंगल आधार।
ख़त्म समझ संसार फिर, सुन कुदरत ललकार।।
जंगल को उजाड़ अगर, बसे शहर कंक्रीट।
छत तो होता पर मगर, हिले नींव की ईंट।।
©पंकज प्रियम
विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। आइये सब मिलकर इसे बचाएं।
483.इश्क़ की आग
इश्क़ की आग मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।
दिल की ये आग को कैसे मैं बुझा पाऊंगा
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।
मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।
मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।
मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।
इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।
ऐ प्रियम कौन मिटाएगा दुनिया से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।
©पंकज प्रियम