Wednesday, May 3, 2023

954.सौदागर

सौदागर
करे सौदा हमेशा जो,  उसे तुम जान सौदागर,
नफे की बात ही करता, नहीं नुकसान सौदागर।
करे सौदा अभी कैसे, यहाँ हर शख्स अपनों से-
अभी हर शख्स की देखो, बनी पहचान सौदागर।।
©पंकज प्रियम

953.बस काम का है टेंशन

बस काम का है टेंशन

हर रोज ज़ूम मीटिंग और दर्जनों में लेटर,
इतना रोज प्रेशर! कि बढ़ रहा ब्लड प्रेशर!

न सैलरी न साधन, बस काम का  है टेंशन,
बिन फंड के ही टारगेट, पाने का है अटेंशन।।

ऑफिस का सारा टेंशन, घर ले के आना पड़ता,
रोज घर में किचकिच, रूखा ही खाना पड़ता।

न नौकरी है निश्चित, न वक्त है सुनिश्चित।
मिलती न वाहवाही, पर दण्ड मिलना निश्चित। 

हर रोज खुद को साबित, करने को दें परीक्षा,
उसमें भी पास करने, न होती उनकी इच्छा।

लगता है जैसे बंधुआ, सब हो गए हैं इनके।
है नाचना ही सबको, इशारों पे बस तो इनके। 

बस खैनी ताल ठोके, बाबू जो हैं सरकारी,
सबको बस वो समझे, कद्दू का है तरकारी।

बस थांसते ही जाता, जबतक कि गल न जाएं।
पेरना है तबतक, दम जबतक निकल न जाये।

बस लक्ष्य पूरी करने, सारी उमर  लुटा दी,
कुछ आस बेहतरी में, जवानी भी है मिटा दी।

पर भाग्य है अधर में, न देगा कोई पेंशन।
बस काम का है टेंशन, बस काम का है टेंशन।।

© पंकज प्रियम

सभी ईमानदार पत्रकारों, प्राइवेट और अनुबंध नौकरी करने वालों को समर्पित

Monday, May 1, 2023

952.मजदूर

माना कि वो वक्त के हाथों मजबूर है।
लेकिन हकीकत में यहाँ सब मजदूर हैं। 

मजदूर
लड़कपन भूख में खोता, जवानी पेटभर ढोता।
बहाकर रक्त खेतों में, पसीने की फसल बोता।
किया जो वक्त ने उसको, यहाँ मजबूर है इतना-
उदर की आग में जलकर, सदा मजदूर है सोता।। 

सदा परिवार की ख़ातिर, परिश्रम जो कड़ी करते।
जलाकर देह अग्नि में, सभी का पेट वो भरते।
खुली आँखों सजाते हैं यहाँ वो ख़्वाब तो लेकिन-
सताती है उदर की आग तब मजदूर वो बनते।

©पंकज प्रियम

श्रमेव जयते
कवि पंकज प्रियम