कुछ नहीं दिल को सजा देगा।
तेरी खुशियों की बैंड बजा देगा।
एक दिन ख़ाक में मिला देगा।
निगाहों से यूँ जाम पिला देगा।
वो तो निगाहों से ही जता देगा।
तेरा दिल ही जब तुझे दग़ा देगा।
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
विरोध
गरीबों पे जुल्म जब होता है
तड़प के मासूम जब रोता है।
उबल पड़ता है खून रगों का
खुलकर विरोध तब होता है
नारी का सम्मान जब खोता है
उसका अभिमान जब रोता है
दिलों का ज़ख्म हरा हो जाता
फूटकर विरोध तब होता है।
राजा तानाशाह जब होता है
राजा लापरवाह जब होता है
प्रजा में असंतोष भर जाता
जमकर विरोध तब होता है।
©पंकज प्रियम
प्रकृति की पुकार
अरे! देखो मनुपुत्रों!
क्या क्या लेकर आई हूँ
जो दिया था,चुन लाई हूँ
वर्षों से पड़ी थी ये सारी
मेरे पास तुम्हारी अमानत
वही सौगात लौटाने आई हूँ।
ये बोतल,ये प्लास्टिक के थैले
अपने फिजूल की चीजों को
तुमने किया था जो मेरे हवाले
कितना घुट रहा था दम मेरा
वही जज़्बात बताने आई हूँ।
मैं हूँ धरा,जननी तुम्हारी
कैसे रखती चीजें ये सारी
मैं हूँ प्रकृति,नहीं मैं बेचारी
नहीं चाहिए दौलत तुम्हारी
दी है तुमने मुफ्त की बीमारी
वही सौगात लौटाने आई हूँ।
मैं प्रकृति,नहीं कुछ खाती
जो कुछ भी किसी से पाती
सौ गुणा से अधिक मैं लौटाती
देख लो कुछ भी नहीं मैंने रखा
किसी भी वस्तु को नहीं मैंने चखा
तुम्हारी हर चीज लौटाने आई हूँ।
है वक्त तू अब तो सम्भल जा
और कितनी सहेगी तेरी वसुधा
तुम्हारे ही कर्मो से आती विपदा
तेरा भी हश्र होगा पूछो न कैसा
धरती पे बिखरे कचरों के जैसा
तू कुछ भी नहीं प्रकृति के आगे
तुम्हें तुम्हारी औकात बताने आई हूँ
©पंकज प्रियम
माँ
एक मीठी मुझको लेने दो
एक मीठी मुझको देने दो
तेरी गोदी में है सारा जहां
जी भर के मुझे सो लेने दो।
बचपन मुझे यूँ जी लेने दो
अपना ममत्व पी लेने दो
तुझे छोड़ के जाना कहाँ
छाँव आँचल की लेने दो।
ये वक्त कहाँ फिर आएगा
ये तख्त कहाँ मिल पाएगा
तेरे कदमों में ही जन्नत माँ
ये अक्स कहाँ खिल पाएगा।
दिल की बात कह लेने दो
सब जज़्बात कह लेने दो
मेरी बस यही हसरत माँ
अपनी सोहबत रह लेने दो।
©पंकज प्रियम
मेरा बस यही एक इरादा है
तुझे खुशी देने का वादा है।
फूलों सी सदा तू मुस्कुराये
तुझे हंसी देने का वादा है।
कभी आँखे न अश्क बहाए
ख़्वाब दिखाने का वादा है।
कहीं कांटा न तुझे चुभ जाए
राह फूल बिछाने का वादा है।
खुशियां तेरी कदम चूम जाए
यूँ जन्नत दिखाने का वादा है।
चाँद भी तेरे आँगन उतर आए
तारे भी तोड़ लाने का वादा है।
©पंकज प्रियम
दिन-बुधवार
तिथि-22/08/2018
विषय :नि:शब्द
विधा-अतुकांत कविता
भात भात कहते
जब कोई मासूम
भूख से तड़प तड़प
कर मर जाता है
तब सील जाते होंठ
लब निःशब्द हो जाता है।
फ़टी एड़ियों से
घिस घिसकर
पेट पीठ सटे
अंतड़ियों को
जब दिखलाता है।
सच कहूँ तब
लफ्ज़ निःशब्द हो जाता है।
द्रौपदियों का देख
रोज चीर हरण
भीष्म द्रोण खामोश
जब रह जाता है।
सच कहूँ तब
शब्द निःशब्द हो जाता है।
खुदा के घर पर
भी होते पापकर्म
हवस के जंजीरों में
सिसकते मासूमों का
देख कर दुष्कर्म
मर्म निःशब्द हो जाता है।
सरेआम स्त्रियों को
बीच राह करके नग्न
जब पुरुष मर्दानगी
अपनी दिखाता है।
खौल उठता है खून
लहू निःशब्द हो जाता है।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड
मौत से क्या डरना है
नाशवान शरीर हमारा
एक दिन इसको मरना है
आत्मा तो अमर हमारा
मौत से फिर क्या डरना है।
फल पे वश नहीं हमारा
बस कर्म हमें तो करना है
माटी का ये शरीर हमारा
माटी में ही तो विखरना है।
रह जाएगा नाम हमारा
कुछ ऐसा काम करना है
याद कर रोये जग सारा
सत्कर्मो से घड़ा भरना है।
गूंजेगा हर शब्द हमारा
सृजन कुछ ऐसा करना है
रहेगा हर वक्त हमारा
जीवन को ऐसा करना है।
©पंकज प्रियम
कुछ कहना है
ऐ कवि!अभी कहां तुझको मरना है
अभी तो बहुत कुछ तुझको करना है।
थोड़ी सी खुशियां बांटनी है तुझको
थोड़े बहुत गमों को भी तो हरना है।
लफ्ज़ों की करनी बाजीगरी तुझको
शब्दों से ही सब जख्मों को भरना है।
कहां रह गया है अपना तेरा जीवन
कविता सरिता सृजन वो झरना है।
जिंदगी का हरक्षण है तेरा समर्पण
मौत से फिर क्या तुझको डरना है।
द्रौपदियों के देख रोज चीर हरण
द्रोण-भीष्म सा चुप नहीं रहना है।
कुरुक्षेत्र का खुद को कृष्ण बनाना
देख अधर्म चुपचाप नहीं सहना है।
कभी आंखों को है ख़्वाब दिखाना
कभी आँसू बनके तुझको बहना है।
चुन चुन कर सबकुछ रखते जाना
जमाने को भी बहुत कुछ कहना है।
©पंकज प्रियम
प्रहार करो
अब तुम आर करो या पार करो
हर सीमा तुम अब तो पार करो।
सुनो ऐ सरहद के वीर जवानों
खुलकर अब तुम तो वार करो।
निकालो अब शमशीर जवानों
दुश्मनों का जमकर संहार करो।
आतंकी का सीना चीर जवानों
हृदय पर उनके तुम प्रहार करो।
नहीं देना उन्हें कश्मीर जवानों
नापाक इरादों का प्रतिकार करो।
खुद खींचो तुम तस्वीर जवानों
अखण्ड भारत का आकार करो।
लिखो भारत की तकदीर जवानों
देश का सपना तुम साकार करो।
तोड़ो बन्धन की जंजीर जवानों
भारत माँ की जय जयकार करो।
उठो!जागो!वतन के वीर जवानों
जय हिंद का अब तो हुँकार करो।
©पंकज प्रियम
हर हर महादेव
जय भोले बम शंकर
सारे जग में तू ही तू
सुबह शाम हर पहर
नाम मैं तेरा ही भजूँ
हर हर महादेव शम्भू।
जो भी आता तेरे दर
उसका काम करे तू
गली गांव, हर डगर
तेरी ही माला मैं जपूं
हर हर महादेव शम्भू।
सर्पों की माला पहन
शशि शीश चढ़ाया तू
गति गंगा कर सहन
धरती को बचाया तू
हर हर महादेव शम्भू।
जो खुली तीसरी नजर
सबको भस्म करे है तू
जो खुश हो जाये अगर
मांग सबकी भरे है तू।
हर हर महादेव शम्भू।
.पंकज प्रियम
मुक्तक
अधरों पे नियंत्रण है,नजरों का निमंत्रण है
तेरे गेसू में ये लटके,गजरों का आमंत्रण है।
ये तेरी चाह कैसी है,ये मेरी राह कैसी है
मुहब्बत के समंदर में,लहरों का समर्पण है।
©पंकज प्रियम
नजरों का निमंत्रण है,अधरों का आमंत्रण है
मुहब्बत के समंदर में,लहरों का समर्पण है।
ये तेरी चाह कैसी है ,इश्क की राह कैसी है
इबादत इश्क़ अर्पण है,कतरों का तर्पण है।
©पंकज प्रियम
मेरा हाथ
जिंदगी का ये कारवाँ
लेकर जाए चाहे जहाँ
दे मुहब्बत की सौगात
थाम लो तुम मेरा हाथ।
ढल रहा है सूरज यहाँ
जाना तुझको है कहाँ
हो जायेगी अब तो रात
थाम लो तुम मेरा हाथ।
गोधूलि की ये लालिमा
चढ़ना हमको आसमां
जाना मुझको तेरे साथ
थाम लो तुम मेरा हाथ।
सफर नहीं ये आसान
बहुत ऊँची है चढ़ान
सुन लो तुम मेरी बात
थाम लो तुम मेरा हाथ।
सुबह की भरो उड़ान
या शाम की हो ढलान
देना तुम तो मेरा साथ
थाम लो तुम मेरा हाथ।
©पंकज प्रियम
बिंदिया
सजी माथे तेरी बिंदिया
उड़ाती है मेरी निंदिया।
चमकते चाँद पे सूरज सी
दहकती है तेरी बिंदिया।
हया की आग है बिंदिया
प्रेम का अनुराग है बिंदिया
रूप का श्रृंगार ये करती
नारी का सुहाग है बिंदिया।
नारी की सम्मान है बिंदिया
नारी अभिमान है बिंदिया
जिससे ये प्यार है करती
उसकी पहचान है बिंदिया।
सुर्ख लाल तेरी बिंदिया
खूब कमाल तेरी बिंदिया
बहुत बैचेन मुझे करती
सजी भाल तेरी बिंदिया।
©पंकज प्रियम
रोज सुनी सड़कों को ताकती
बूढ़ी मां की आँखे पथरायी है
घूंघट की आड़ से वो झांकती
बीवी की आँखे भी भर आई है।
बहना भी कब से है बैठी द्वार
राखी,कुमकुम सजाकर थाल।
बेसब्री से रोज हो रहा इंतजार,
कब आएगा इस घर का लाल।
सरहद से क्या सन्देशा आया
बस एक खबर को सब बेहाल
क्या युद्ध खत्म नहीं हो पाया
कब लौटेगा इस घर का लाल।
दुश्मन तो सारे वो मार गया
पर अपना जीवन हार गया
बहादुरी पर देश हुआ मुरीद
एक लाल फिर हुआ शहीद।
वर्षों बाद दीदार हो पाया है
कैसा सैलाब उमड़ आया है
क्या खूब परचम लहराया है
कफ़न पे तिरंगा फहराया है।
©पंकज प्रियम
-मेंहदी
विधा -धनाक्षरी
हिना का देख कमाल
हरे पत्तों का धमाल
हाथों को करदे लाल
नारी का श्रृंगार है।
लाल रंग है अंजाम
हाथ रंगना है काम
मेंहदी जिसका नाम
सुहाग का प्यार है।
शील पे पिसता जाय
खुद बिखरता हाय
रंग निखरता जाय
इसका संस्कार है।
सखियां भी नाचे साथ
मेंहदी रची जो हाथ
आ जाओ तुम भी नाथ
मेंहदी त्यौहार है।
©पंकज प्रियम
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तितली बन उड़ती रहे,चहकाये घर द्वार।
चिड़ियाँ बनके जो उड़े,महकाए संसार।।
बहन से सम्मान बढ़े,भाई से अभिमान।
पत्थर से मकान बने,बहना फूंके जान।।
रिश्तों का बंधन जुड़ा,राखी का त्यौहार।
धागों में कंचन गढ़ा,मोती सा ये प्यार।।
जीवन का अर्पण सदा,करे खुशी का दान।
मन सच्चा दर्पण बड़ा,बहन बड़ी नादान।।
©पंकज प्रियम
प्रेम
प्रेम का ढाई आखर होता बहुत सुहाना
फिर जाने क्यूँ दुश्मन है इसका जमाना।
छोड़ के जहाँ को भी चाहे इसे अपनाना।
फिर जाने .....
वो बदनशीब हैं,जिन्हें प्यार मिलता नहीं
वे खुशनशीब हैं,जिन्हें प्यार मिलता यहीं
इसके आगे सबको पड़ा है सर झुकाना
फिर जाने क्यूँ ...
शाह ने मुमताज की खातिर ताज बनाया
लैला की चाह में मजनू ने पत्थर खाया
किस्मत से ही होता है दिल आशिकाना
फिर जाने क्यूँ..
प्रेमी होते है खुदा के बन्दे कहते हैं ऐसा
हद से गुजर जाय जो इश्क होता है ऐसा
टूट जाये दिल मुश्किल फिर उसे बचाना
फिर जाने ...
अपनी हसरतों को कब्र में करके दफ़न
चलते हैं मुहब्बत में बांध सर पे कफ़न
सबके बस में नहीं ये दरिया पार जाना
फिर जाने....
मुहब्बत से पीर बना,इसी ने रचा संसार
खुदा भी तरसता पाने को सच्चा प्यार
है दुनिया का सबसे अनमोल नजराना
फिर जाने ...
----------पंकज भूषण पाठक"प्रियम"