Friday, February 28, 2020

789. मर नहीं जाता

ग़ज़ल
क़ाफ़िया- अर
रदीफ़- नहीं जाता
1222 1222 1222 1222

जरूरत हो भले जितनी, किसी के  दर नहीं जाता,
बुलाये बिन कभी मैं तो, किसी के घर नहीं जाता।

लकीरों में लिखा जो भी, वही होता यहाँ अक्सर,
किसी के चाहने भर से, यहाँ मैं मर नहीं जाता।

सफ़र में साथ गर हो तो, सफ़र आसान हो जाता,
अकेले भी चलूँ तो क्या, कभी मैं डर नहीं जाता।

जवानी चंद रातों की, नहीं मग़रूर तुम होना,
चमक ये चाँदनी पाकर, कभी मैं तर नहीं जाता।

"प्रियम" का साथ पाने को, सभी बैचेन हैं रहते,
तड़पती है कई जानें , अगर छूकर नहीं जाता।

©पंकज प्रियम

Friday, February 7, 2020

786. मौसम मोहब्बत का

*ऋतुराज बसन्त- मौसम मुहब्बत का*
✍पंकज प्रियम
"आया है बसंत तो, बसंती महक जाने दो।
मौसम है मोहब्बत का, थोड़ा तो बहक जाने दो।"
            -पंकज प्रियम
वाकई बसंत की बात ही निराली है इसे यूँ ही ऋतुराज नहीं कहा जाता है। सभी ऋतुओं में बंसत को सर्वश्रेष्ठ माना गया है क्योंकि इसकी आवोहवा ही ऐसी है कि *धरती-अम्बर, वन-पवन समंदर,*
*समाहित सब हीं बसंत के अंदर।*
बसंत को प्यार का मौसम भी कहा जाता है। भगवान कृष्ण ने भी कहा कि ऋतुओं में मैं बसंत हूँ। माघ शुल्क पँचमी यानी सरस्वती पूजा के दिन बसंत ऋतु का आरम्भ होता है। इसी दिन भगवान शिव का तिलकोत्सव भी मनाया जाता है। माघ-फाल्गुन और चैत्र मास बसंत के माने जाते हैं। अंग्रेजी महीनों में फरवरी से लेकर अप्रैल मध्य तक का समय बसंत ऋतु का होता है। सर्दी खत्म हो जाती और मौसम सुहाना होने लगता है। पेड़ों में नए पत्ते और फूल आने लगते हैं। आम के पेड़ मंजरों से बौराने लगते हैं। धरती रंग-बिरंगे और सरसों के पीले फूलों की चादर ओढ़ लेती है। पहाड़ी इलाकों में जमी बर्फ की चादर पिघलने लगती है और लोगों को गुलाबी धूप के दर्शन होने लगते हैं। चारो ओर हरियाली छा जाती है। हवा भी बौरा कर झूम उठती है ।
हवा हूँ हवा मैं बसंती हवा हूँ।
सुनो बात मेरी अनोखी हवा हूँ।
पुराणिक कथाओं के अनुसार बसंत को कामदेव का पुत्र कहा जाता है। कामदेव के घर पुत्र के जन्म लेने से पूरी प्रकृति भी झूम उठती है। कलियाँ खिलने लगती है। पेड़ नव पल्लव से पालना बनाते हैं, हवाएँ भी बसंत राग गुनगुनाते हुए उसे झुलाती है और कोयल अपनी मीठी बोली से गीत सुनाकर उसे बहलाती है। बागों में सखियाँ झूले लगाकर झूमती गाती है। बसंत के आते ही मानो पूरी कायनात मदमस्त हो जाती है।
भारत में बसंत ऋतु में ही बसंत पंचमी, शिवरात्रि और होली का त्यौहार मनाया जाता है। पौराणिक ग्रंथों में बड़े धूमधाम से बसन्तोत्सव मनाने का जिक्र किया गया है। राजा-महाराजा अपनी रानियों के साथ, राजकुमारी अपनी सखियों, प्रेमी-प्रेमिकाओं के साथ बाग/बगीचे में महीनों तक बसन्तोत्सव मनाते रहते थे। कालांतर में इसे पाश्चात्य देशों ने वेलेंटाइन डे के नाम से अंगीकार कर प्रसारित करना शुरू कर दिया। जिसकी आड़ में अश्लीलता और फूहड़ता होने लगी। होली भी बसन्तोत्सव के स्वरुप से बिगड़ती चली गयी।
इन सब चीजों को छोड़कर अगर बसन्त को दिल से महसूस कीजिये तो तन और मन से समृद्ध हो जाते हैं।
©पंकज भूषण पाठक "प्रियम"

Monday, February 3, 2020

785. सुनो गर्जना

सुनो गर्जना
वर्तमान की।
चहुँ ओर उठा
जो शोर सुनो,
सिसकती नारी
तुम और सुनो,
मासूमों के आँसू
घटाटोप घनघोर सुनो।
क्रिया की प्रतिक्रिया की
घात की प्रतिघात की
समर्थन-विरोध का शोर सुनो।
सुनो गर्जना
प्रतिमान की
धधकती ज्वाला
अभियान की
चिल्लाता जोर सुनो।
मंचों के आसन से
धृतराष्ट्री शासन से
कालाबाज़ारी राशन से
उठती गर्जना हर ओर सुनो।
अंधा दिखाए राह यहाँ
कुर्सी की बस चाह यहाँ
दिन दहाड़े खुद लूटकर डाकू
सिपाही को कहता चोर सुनो।
घपले-घोटालों के बनते
कीर्तिमान की
सुनो गर्जना
वर्तमान की।

©पंकज प्रियम
3फरवरी2020

Saturday, February 1, 2020

784. तारीख़ पे तारीख़

तारीख़ पे तारीख

कौन बचा रहा दरिंदो को?
फिर क्यूँ टली दरिंदो की फाँसी?
अपनी बेटी को इंसाफ़ दिलाने को
लड़ रही एक माँ को चुनौती दे गया वकील
अनन्तकाल तक नहीं होने देंगे फाँसी!
आज वकील ने चुनौती दी
कल तो उसकी जान भी ले सकता है!
जैसे गवाहों और परिजनों के साथ होता रहा है.
न्यायालय बेवश कानून के दल्लों के आगे।
रखैल बना रखा है कानून को ऐसे वकीलों ने,
एक माँ के आँसू क्या तुम्हें सोने देंगे?
क्या दो निवाले मुँह में भर पाओगे?
कैसे बीवी-बेटी को गहने दोगे खरीदकर
दरिन्दों को बचाने के एवज में मिले पैसों से?
मिलार्ड! अरे ओ मिलार्ड!!
जरा तुम तो रहम खाओ
माना कि कानून ने आँखों में बांध रखी है पट्टी
तुम्हारी तो है खुली।
देखो एक माँ की आँखों से बहते बेटी के जख़्म को
जैसे एक आतंकी को बचाने के लिए आधी रात
तुम कोर्ट खोलकर फैसला करने लगे थे
आज भी कर दो न एक रात में फैसला
न दो उन दुष्ट दुष्कर्मी और हैवान को माफ़ी
दरिन्दों को बचानेवाले वकील को ही दे दो फाँसी।
नही करोगे तो बढ़ता रहेगा हौसला इनका
नहीं थमेंगे अपराध कभी
कानूनी पेंचों में तुम्हें उलझाते रहेगे
चंद टुकड़ों में बिककर दरिन्दों को बचाते रहेंगे।
तुम्हारी भी तो बेटी होगी?
निर्भया की जगह तुम्हारी बेटी होती तो क्या करते?
है जवाब?
हैदराबाद एनकाउंटर पर सवाल करनेवालों,
है कोई जवाब तुम्हारे पास?
यूँ ही नहीं जश्न मनाया था लोगों ने,
क्यूंकि तंग आ चुके हैं लोग
कोर्ट की इस तारीख़-पे-तारीख़ से।

©पंकज प्रियम
कवि पंकज प्रियम