Friday, January 25, 2019

513.इश्क़ का रंग

इश्क़ का रंग
दरिया में समंदर कभी लहरा है क्या
दिल पे भी लगा कभी पहरा है क्या।
वक्त! अब और इम्तेहान न लो मेरा
इश्क़ में भला तू कभी ठहरा है क्या।
इश्क़ में अक्सर लहू अश्कों से बहा
इस हद से आगे कोई गुजरा है क्या।
लहू का हर कतरा यही अब कह रहा,
ये इश्क़ का रंग मुझसे गहरा है क्या?
सुर्ख तो इतना है इश्क़ का रंग प्रियम
जो चढ़ गया फिर कभी उतरा है क्या?
©पंकज प्रियम

512.सिंहासन

मुक्तक
बहुत हो गया अब तेरा भाषण
देख हिल रहा अब तेरा आसन
जाग चुकी है अब जनता सारी,
कर खाली अब मेरा सिंहासन।।
©पंकज प्रियम

Wednesday, January 23, 2019

511.देश हमारा

सबसे न्यारा-सबसे प्यारा, भारत देश हमारा।
आसमां से ऊँचा परचम, देता सन्देश हमारा।
कुर्सी बदली,नेता बदले, सदा बुलन्द सितारा
विश्वविजयी गौरवशाली रहा ये अतीत हमारा।
राजतंत्र ने इतिहास गढ़ा,लगा सदा जयकारा।
आज़ादी के बाद हुआ गणतंत्र राष्ट्र ये हमारा।
गंगा-जमुनी संस्कृति, वसुधैव कुटुम्ब का नारा
शान से लहराता तिरंगा, बढ़े सम्मान हमारा।
हिन्दू-मुस्लिम,सिक्ख-ईसाई का है भाईचारा।
सदा गर्व से खड़ा हिमालय, रक्षक ये हमारा।
©पंकज प्रियम

510.सियासी रंग

आज का नेता

जहाँ बहरी सियासत है, जहाँ कानून है अंधा।
करें किसपे भरोसा तब, जहाँ पे झूठ है धँधा।
विचारों पे लगा पहरा, बड़ा ये ज़ख्म है गहरा,
भला क्या देश का होगा,सियासी रंग है गन्दा।।

मुनाफ़े का बड़ा धंधा, कभी होता नहीं मंदा।
सियासी वस्त्र है ऐसा, कभी होता नहीं गंदा।
सफेदी में छिपा लेता, सभी गुनाह ये अपना,
सदा झोली भरी होती,सभी से मांग के चंदा।।

सियासी खेल है ऐसा,विवादों को रखे जिंदा
विवादों से सियासत है,करे कोई भले निंदा।
मवाली भी बना बैठा,हमारा आज का नेता,
जमीरों का करे सौदा, कभी होता न शर्मिंदा।।

©पंकज प्रियम

509.कैसी आज़ादी

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर शत शत नमन!
नेताजी को समर्पित-

कैसी आज़ादी!
-------------------
मांगा था खून कभी
देने को आज़ादी
कहां चले गए तुम
कैसी मिली आज़ादी?

भूखे नङ्गे तड़प रही
देश की बड़ी आबादी
आकर देखो नेताजी
भारत की ये बर्बादी।

मन्दिर-मस्जिद
बीफ के झगड़े
इसी में उलझी
बड़ी आबादी।

नेता तो सरताज है
जनता मरती आज है
खेतों में पड़ता सूखा
किसान रहता भूखा।

ऋण बीमा की आस में
समर्थन मूल्य के ह्रास में
सस्ती गरीब की जान है
फंदे से लटका किसान है।

कहने को आज़ाद मगर
विचारों पे रहती पाबन्दी
अमन चैन तोड़ने को
मिली है सबको आज़ादी।

कोर्ट का लगाते चक्कर
गरीब बनते घनचक्कर
आतंकी बचाने ख़ातिर
खुल जाती रात आधी।

आधार है तो पहचान है
नही तो निकले प्राण है
गोदामों में सड़ता अनाज
भूखे सोती बड़ी आबादी।

आ जाओ सुभाष बाबू
देखो भारत की बर्बादी
अंदर घुटकर जीने की
कैसी मिली है आज़ादी

© पंकज भूषण पाठक "प्रियम"

Saturday, January 19, 2019

508.बदल जाएगा

मौसम बदल जाएगा
कदम तो यूँ ही फिसल जाएगा
हुश्न का जादू जो चल जाएगा।
देखो न इस कदर तुम अब मुझे
नादां ये दिल मेरा मचल जाएगा।
लहराओ न जुल्फों को इस कदर
तुझे देखके मौसम बदल जाएगा।
हुश्न का जलवा गर तुमने बिखेरा
पत्थर भी मोम सा पिघल जाएगा।
एक हसीन ख़्वाब सी है वो प्रियम
छूकर तो देख दिल बहल जाएगा।
©पंकज प्रियम

Friday, January 18, 2019

507.सफ़र बाकी है

◆ग़ज़ल
◆काफ़िया - अर
◆रदीफ़-बाकी है
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कदम को रोक ना लेना कुछ सफर बाकी है
मंजिल पाने को अभी कुछ डगर बाकी है।
चलना ही जीवन है कदम तू साथ ही रखना
अंधेरी रात के आगे भी एक सहर बाकी है।
गाँव-गली सब छूट गए अपने भी रूठ गए
मंजिलों के लिए अभी और शहर बाकी है।
बढ़ चुके इस कदर,ना रही खुद की कदर
दिल की रुसवाई में होना बेकदर बाकी है।
नफ़रतों की आग से दूर रहता है प्रियम
दिल में मुहब्बत का कुछ असर बाकी है।
©पंकज प्रियम

Wednesday, January 16, 2019

506.सच कहाँ होते हैं ख़्वाब

पढ़ डाली मैंने
वो सारी क़िताब
जिसमें भी लिखा था
सच_होते_हैं_ख़्वाब।
देखने मैं भी निकल पड़ा
रास्ते में एक बालक मिला
कचरों की ढेर पर खड़ा
कचरों को चुन रहा था
अपनी किस्मत को बुन रहा था।
उसने भी देखा था स्कूल का ख़्वाब
लेकिन खरीद नहीं सका इक क़िताब।
आगे बढ़ा तो देखा सड़क किनारे
दो बुजर्ग बैठे भूखे तड़पते हुए
घर से बेघर ठंड में ठिठुरते हुए
उन्होंने भी कभी देखा था
बच्चों में बुढ़ापे की लाठी का ख़्वाब
लेकिन उम्र की आखिर दहलीज़ पर
अपने ही बच्चों से मिल गया जवाब।
आगे बढ़ा ही था कि कदम रुक गए
पैरों के नीचे यूँ ही बिखरे पड़े थे
आलू,टमाटर और प्याज़
वहीं बैठा था किसान देकर सर पे हाथ
जी तोड़ मेहनत के बाद
फ़सल बेचने आया था
कर्ज़ चुकाकर बचे पैसों से
बेटी की शादी का देखा था ख़्वाब।
लेकिन इतने भी न मिले दाम
किराया भी होता वसूल
सब्जियों की तरह विखर गए उसके भी ख़्वाब।
गाँधी जी ने भी देखा था
सोने की चिड़ियाँ का ख़्वाब
लेकिन आज देखो हर तरफ
मन्दिर मस्जिद के नाम हो रहा फ़साद
अब मेरी भी हिम्मत देने लगी जवाब
कितना और किस-किस का लूं हिसाब
कहाँ पूरे होते हैं आम लोगों के ख़्वाब।
हां सच होते हैं न!
पाँच वर्ष में नेताओं के ख़्वाब
महीनों में ही अफसरों के ख़्वाब
टैक्स चुराते पूंजीपतियों के ख़्वाब
बैंकों को लूटकर विदेश भागते
मोदी-माल्या और निरवों के ख़्वाब।
हम तो भोले-भाले हैं ज़नाब
हमारे कहाँ सच होंगे ख़्वाब!

©पंकज प्रियम

Friday, January 11, 2019

505.हे राम!तुम्हें आना होगा


हे राम तुम्हें फिर आना होगा।
खुद अधिकार जताना होगा।
नहीं मिलेगा इंसाफ तुम्हें भी
खुद हथियार उठाना होगा।

याद है वो सागर की ढिठाई
पूजा-प्रार्थना काम न आयी
जब कुपित हो उठाया बाण
खुद सागर ने थी राह दिखाई।
वही रूप तुम्हें दिखाना होगा
हे राम तुम्हें फिर आना होगा।

अब मर्यादा सब छोड़ो तुम
घर से नाता अब जोड़ो तुम
बहुत हो गया केस मुकदमा
शिव-धनुष अब तोड़ो तुम।
क्रोध परशुराम जगाना होगा
हे राम तुम्हें फिर आना होगा।
कोर्ट की तारीख़ों के चक्कर।
जनता पीस जाती है अक्सर।
तुम तो हो मर्यादा पुरुषोत्तम,
बन जाओगे तुम घनचक्कर।
खुद अब इंसाफ़ सुनाना होगा
हे राम तुम्हें अब आना होगा।
जीव जानवर हाथ मिलाए
सब असुरों को मार भगाए
जीत कर भी सोने की लंका
तुम अवध में लौटकर आये।
फिर वही जीत दुहराना होगा
हे राम तुम्हें फिर आना होगा।
जिस घर में तुमने जन्म लिया
दशरथ को तुमने धन्य किया
किलकारी जिसमें गूँजी थी
जिस घर में सबने पुण्य किया
फिर मन्दिर वहीं बनाना होगा।
हे राम तुम्हें फिर आना होगा।
©पंकज प्रियम
10.1.2018

Monday, January 7, 2019

504.इश्क़ रूहानी


कर मुहब्बत,लिख कहानी
नहीं मिलेगी फिर जवानी।
फ़क़त जवानी चार दिन
जी भर जी ले जिन्दगानी।

लिख फ़साना रख निशानी
नहीं होगी फिर रुत सुहानी।
चार दिनों का है ये जीवन
हरदिन कर  कुछ तूफ़ानी।

ना बनना तुम अभिमानी
हो जाएगी खत्म जवानी
उधार का है यह तन-मन
रखना आंखों में तू पानी।

बेशक़ होना खूब रूमानी
रिश्ता न केवल जिस्मानी
बन जाएगा ये राख बदन
करना इश्क़ तुम रूहानी।

©पंकज प्रियम

Sunday, January 6, 2019

503.अहसास तुम्हारा

विधा-ग़ज़ल

मेरी तुलना आख़िर क्यूँ औरों से करते हो
हर राज को जाहिर क्यूँ गैरों से करते हो।

मुझसा नहीं कोई अब तेरा हमराही होगा
मुझे हमराज बनाने से आख़िर क्यूँ डरते हो।

क्या होती है तड़प मेरे दिल से तुम पूछो
थम जाती है सांसे,जो तुम औरों पे मरते हो।

मेरे दिल की  आवाज़ कभी तू सुन लेना
थम जाती धड़कने तुम जो आहें भरते हो।

दिल को सुकूँ देता है हर अहसास तुम्हारा
प्रियम की गलियों से क्यूँ नहीं गुजरते हो।

©पंकज प्रियम

502.आँख मारे... ये लड़का..आँख मारे।

आँख मारे... ये लड़का..आँख मारे।
©#पंकजप्रियम

छोरा बिगड़ गया है। खूब टकाटक आँखमारी कर रहा है। ये सीमापार की गोलीबारी से भी अधिक भारी पड़ रही है। इन दिनों सिम्बा का  गाना-आँख मारे... ये लड़का..आँख मारे खूब चल रहा तो भला एक कुँवारे की आँख क्यों नहीं चले?हो भी क्यों न,इतनी उम्र में कुंवारा जो बैठा है बेचारा। लेकिन संसद की गरिमा का तो ख्याल रखना चाहिए। अरे हाँ! ई लड़का तो 10 जनपथ का युवराज है तो आँख सड़क पर थोड़े न मारेगा, सदन से कम क्या चलेगा! एक बार प्रधानमंत्री के गले पड़ने के बाद आँख मारी उसको लेकर खूब हंगामा मचा और अब राफेल को लेकर चल रहे बहस के दौरान आँख मारी की है। लाख टके का सवाल तो ये है कि संसद में आँख किसको मारता है। कौन है वो खुशनसीब ? जांच का विषय है। वैसे बढ़िया है,कोई तो है जो फुलडोज इंटरटेनमेंट करा रहा है। लालू जी की भरपाई तो किसी को करनी चाहिए कि नहीं।

     आँख मारने से याद आया अपने झारखण्ड में भी एक सीनियर आईएएस अधिकारी हैं जो खूब टकाटक आँख मारते हैं। अगर राहुल से टक्कर दे दी जाय मिनटों में पटखनी दे देंगे।
   वैसे आँख मारने की घटना कोई नई नहीं है। बाबा रामदेव की भी आँख खूब चलती है। हालांकि ये उनकी शारीरिक समस्या है। पिछले दिनों मलयालम की हीरोइन प्रिया प्रकाश वारियर ने एक आँख मार कर रातों रात सनसनी गर्ल बन गयी और कुँवारे तो कुँवारे बीबी बच्चे वाले और बूढ़े भी दिल हार बैठे। राहुल-वारियर और रामदेव-वारियर की ऑंखमारी वीडियो वायरल होने लगी।

    देखा जाय तो आँख मारना कोई अपराध नहीं लेकिन लोग इसे गलत नजरिये से देखते हैं। खासकर लड़का किसी लड़की को आँख मार दे। स्कूल की एक घटना याद आ गयी। तीसरी हाई स्कूल में सातवीं कक्षा में पढ़ रहा था। हमारे स्कूल में बंगाली सर थे,बड़े सीधे-साधे कभी किसी को डाँटते या मारते नहीं देखा। एक दिन क्लास में आते ही एक लड़के को उठाया और पीटना शुरू कर दिया। पूरा क्लास स्तब्ध ! बंगाली सर उस लड़के पर चीख रहे थे चिल्ला रहे थे। उसने क्लास की ही एक लड़की को आँख मारने की हिमाकत कर दी थी। भरी क्लास में कान पकड़कर उठक-बैठक करवाई। उसके बाद उस लड़के ने स्कूल की किसी लड़की की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखा। उस वक्त मुझे बहुत समझ नहीं थी लेकिन उस घटना ने मेरे दिलोदिमाग में आँख मारी को बड़े अपराध में अंकित कर दिया।

©पंकज प्रियम

Friday, January 4, 2019

501.मंजर


वक्त भी अब कैसा मंजर दिखाने लगा है
बाप पर अब बेटा खंजर चलाने लगा है।
रिश्तों की मर्यादा इस कदर तार-तार हुई
के बाप ही बेटी की अस्मत चुराने लगा है।
दौलत का नशा इस कदर आंखों में चढ़ा
के आदमी ही आदमी को गिराने लगा है।
महलों का ख़्वाब उसने ऐसा ही दिखाया
के आदमी खुद बस्तियां जलाने लगा है।
धैर्य अपना इस कदर खो रहा है आदमी
के भीड़ में ही खुद सज़ा सुनाने लगा है।
दिखावे में इस कदर खो गया है आदमी
शवों के साथ भी सेल्फी खिंचाने लगा है।
वक्त इतना बेशरम हो गया है अब प्रियम
फ़टे कपड़ों का ही फैशन लुभाने लगा है।
©पंकज प्रियम

Thursday, January 3, 2019

500.वन्देमातरम

वन्देमातरम
वन्देमातरम राष्ट्रगीत हम गाएँगे
राष्ट्रप्रेम का संगीत हम बजाएंगे।
जिस गीत से जय-जयघोष हुआ
जिस प्रीत से दिल मदहोश हुआ।
वीर जवानों में जिससे जोश चढ़ा
फिरंगियों का जिससे होश उड़ा।
वही जीत..फिर से हम दुहरायेंगे
वन्देमातरम राष्ट्रगीत हम गाएंगे।
जंगे-आज़ादी का जो गीत बना
वतनपरस्ती का जो संगीत बना।
जिस गीत को गाते कुरबान हुए
हँसते-हँसते शहीद जवान हुए।
शहादत को हम कैसे भुलाएँगे?
वंदेमातरम राष्ट्रगीत हम गाएंगे।
माँ भारती का यह अनुगूँजन है
भारत भूमि का ये निज वंदन है।
कण-कण माटी...रक्त चन्दन है।
उस वीर भूमि का अभिनंदन है।
जब भी जन-गण-मन दोहराएँगे
वन्देमातरम राष्ट्रगीत हम गाएँगे।
नही धर्म से कोई इसका है नाता
राष्ट्रगीत तो है आज़ादी का दाता
राष्ट्रगान है भारत भाग्य विधाता
राष्ट्रगीत फिर क्यों नहीं है गाता?
नफरत की फसल हम जलाएंगे
वन्देमातरम राष्ट्रगीत हम गाएंगे।
©पंकज प्रियम

499.मुहब्वत की सज़ा

रूह में समा दीजिये

हुश्न को इश्क़ से मिला दीजिये
मुहब्बत आंखों से पिला दीजिये।

महक उठे खुशबू से चमन सारा
चाहतों के फूल यूँ खिला दीजिये।

छोड़िए दुश्मनी की वजह सारी
दिल को दोस्ती से मज़ा दीजिये।

आपकी गिरफ्त में गुजरे जिंदगी
मुहब्बत की ऐसी सज़ा दीजिये।

मिट जाए प्रियम का वजूद सारा
अपनी रूह में ऐसे समा दीजिये।

©पंकज प्रियम

Wednesday, January 2, 2019

498.मुर्गे का खून

मुर्गे का खून

हर तरफ उल्लास है
दिन बड़ा ये खास है।
हर तरफ ही धमाल है
आ गया नया साल है।

लेकिन कोई उदास है
आँखे हो गई निराश है।
पूछ रहा अम्मा से वो
माँ आज क्यूँ उदास है?
हर कोई खुशहाल है
आया जो नया साल है।

यही तो कारण है बेटा
जब जब मानव हुआ
यहां पर खुशहाल है
समझ लो कि हमारा
तब हुआ बुराहाल है।

जश्न का हो कोई मौका
या पाकिस्तान पे चौका
या आया नया साल है
मुर्गे का तब खून बहा
बकरा हुआ हलाल है।

खुशियां इनकी सारी
जश्न भी सारा इनका
पार्टी और त्यौहारों से
बढ़ती इनकी शान है।
क्यूँ न आये मेरे आँसू
जाती बेटे की जान है।

मुर्गे का जब खून बहे
बकरे खूब हलाल हुए।
दारू पी-पी करके जब
सबके सब बेहाल हुए।
देखो जब यह हाल है
समझ लो नया साल है।

31 की जब नाईट हो
पीकर के सब टाईट हो।
मुर्ग-मसल्लम की पार्टी
घर-घर की ये परिपाटी।
सब चलता टेढ़ी चाल है
समझ लो नया साल है।

©पंकज प्रियम