दरिया में समंदर कभी लहरा है क्या
दिल पे भी लगा कभी पहरा है क्या।
इश्क़ में भला तू कभी ठहरा है क्या।
इस हद से आगे कोई गुजरा है क्या।
ये इश्क़ का रंग मुझसे गहरा है क्या?
जो चढ़ गया फिर कभी उतरा है क्या?
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
मुक्तक
बहुत हो गया अब तेरा भाषण
देख हिल रहा अब तेरा आसन
जाग चुकी है अब जनता सारी,
कर खाली अब मेरा सिंहासन।।
©पंकज प्रियम
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर शत शत नमन!
नेताजी को समर्पित-
कैसी आज़ादी!
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मांगा था खून कभी
देने को आज़ादी
कहां चले गए तुम
कैसी मिली आज़ादी?
भूखे नङ्गे तड़प रही
देश की बड़ी आबादी
आकर देखो नेताजी
भारत की ये बर्बादी।
मन्दिर-मस्जिद
बीफ के झगड़े
इसी में उलझी
बड़ी आबादी।
नेता तो सरताज है
जनता मरती आज है
खेतों में पड़ता सूखा
किसान रहता भूखा।
ऋण बीमा की आस में
समर्थन मूल्य के ह्रास में
सस्ती गरीब की जान है
फंदे से लटका किसान है।
कहने को आज़ाद मगर
विचारों पे रहती पाबन्दी
अमन चैन तोड़ने को
मिली है सबको आज़ादी।
कोर्ट का लगाते चक्कर
गरीब बनते घनचक्कर
आतंकी बचाने ख़ातिर
खुल जाती रात आधी।
आधार है तो पहचान है
नही तो निकले प्राण है
गोदामों में सड़ता अनाज
भूखे सोती बड़ी आबादी।
आ जाओ सुभाष बाबू
देखो भारत की बर्बादी
अंदर घुटकर जीने की
कैसी मिली है आज़ादी
© पंकज भूषण पाठक "प्रियम"
पढ़ डाली मैंने
वो सारी क़िताब
जिसमें भी लिखा था
सच_होते_हैं_ख़्वाब।
देखने मैं भी निकल पड़ा
रास्ते में एक बालक मिला
कचरों की ढेर पर खड़ा
कचरों को चुन रहा था
अपनी किस्मत को बुन रहा था।
उसने भी देखा था स्कूल का ख़्वाब
लेकिन खरीद नहीं सका इक क़िताब।
आगे बढ़ा तो देखा सड़क किनारे
दो बुजर्ग बैठे भूखे तड़पते हुए
घर से बेघर ठंड में ठिठुरते हुए
उन्होंने भी कभी देखा था
बच्चों में बुढ़ापे की लाठी का ख़्वाब
लेकिन उम्र की आखिर दहलीज़ पर
अपने ही बच्चों से मिल गया जवाब।
आगे बढ़ा ही था कि कदम रुक गए
पैरों के नीचे यूँ ही बिखरे पड़े थे
आलू,टमाटर और प्याज़
वहीं बैठा था किसान देकर सर पे हाथ
जी तोड़ मेहनत के बाद
फ़सल बेचने आया था
कर्ज़ चुकाकर बचे पैसों से
बेटी की शादी का देखा था ख़्वाब।
लेकिन इतने भी न मिले दाम
किराया भी होता वसूल
सब्जियों की तरह विखर गए उसके भी ख़्वाब।
गाँधी जी ने भी देखा था
सोने की चिड़ियाँ का ख़्वाब
लेकिन आज देखो हर तरफ
मन्दिर मस्जिद के नाम हो रहा फ़साद
अब मेरी भी हिम्मत देने लगी जवाब
कितना और किस-किस का लूं हिसाब
कहाँ पूरे होते हैं आम लोगों के ख़्वाब।
हां सच होते हैं न!
पाँच वर्ष में नेताओं के ख़्वाब
महीनों में ही अफसरों के ख़्वाब
टैक्स चुराते पूंजीपतियों के ख़्वाब
बैंकों को लूटकर विदेश भागते
मोदी-माल्या और निरवों के ख़्वाब।
हम तो भोले-भाले हैं ज़नाब
हमारे कहाँ सच होंगे ख़्वाब!
©पंकज प्रियम
कर मुहब्बत,लिख कहानी
नहीं मिलेगी फिर जवानी।
फ़क़त जवानी चार दिन
जी भर जी ले जिन्दगानी।
लिख फ़साना रख निशानी
नहीं होगी फिर रुत सुहानी।
चार दिनों का है ये जीवन
हरदिन कर कुछ तूफ़ानी।
ना बनना तुम अभिमानी
हो जाएगी खत्म जवानी
उधार का है यह तन-मन
रखना आंखों में तू पानी।
बेशक़ होना खूब रूमानी
रिश्ता न केवल जिस्मानी
बन जाएगा ये राख बदन
करना इश्क़ तुम रूहानी।
©पंकज प्रियम
विधा-ग़ज़ल
मेरी तुलना आख़िर क्यूँ औरों से करते हो
हर राज को जाहिर क्यूँ गैरों से करते हो।
मुझसा नहीं कोई अब तेरा हमराही होगा
मुझे हमराज बनाने से आख़िर क्यूँ डरते हो।
क्या होती है तड़प मेरे दिल से तुम पूछो
थम जाती है सांसे,जो तुम औरों पे मरते हो।
मेरे दिल की आवाज़ कभी तू सुन लेना
थम जाती धड़कने तुम जो आहें भरते हो।
दिल को सुकूँ देता है हर अहसास तुम्हारा
प्रियम की गलियों से क्यूँ नहीं गुजरते हो।
©पंकज प्रियम
आँख मारे... ये लड़का..आँख मारे।
©#पंकजप्रियम
छोरा बिगड़ गया है। खूब टकाटक आँखमारी कर रहा है। ये सीमापार की गोलीबारी से भी अधिक भारी पड़ रही है। इन दिनों सिम्बा का गाना-आँख मारे... ये लड़का..आँख मारे खूब चल रहा तो भला एक कुँवारे की आँख क्यों नहीं चले?हो भी क्यों न,इतनी उम्र में कुंवारा जो बैठा है बेचारा। लेकिन संसद की गरिमा का तो ख्याल रखना चाहिए। अरे हाँ! ई लड़का तो 10 जनपथ का युवराज है तो आँख सड़क पर थोड़े न मारेगा, सदन से कम क्या चलेगा! एक बार प्रधानमंत्री के गले पड़ने के बाद आँख मारी उसको लेकर खूब हंगामा मचा और अब राफेल को लेकर चल रहे बहस के दौरान आँख मारी की है। लाख टके का सवाल तो ये है कि संसद में आँख किसको मारता है। कौन है वो खुशनसीब ? जांच का विषय है। वैसे बढ़िया है,कोई तो है जो फुलडोज इंटरटेनमेंट करा रहा है। लालू जी की भरपाई तो किसी को करनी चाहिए कि नहीं।
आँख मारने से याद आया अपने झारखण्ड में भी एक सीनियर आईएएस अधिकारी हैं जो खूब टकाटक आँख मारते हैं। अगर राहुल से टक्कर दे दी जाय मिनटों में पटखनी दे देंगे।
वैसे आँख मारने की घटना कोई नई नहीं है। बाबा रामदेव की भी आँख खूब चलती है। हालांकि ये उनकी शारीरिक समस्या है। पिछले दिनों मलयालम की हीरोइन प्रिया प्रकाश वारियर ने एक आँख मार कर रातों रात सनसनी गर्ल बन गयी और कुँवारे तो कुँवारे बीबी बच्चे वाले और बूढ़े भी दिल हार बैठे। राहुल-वारियर और रामदेव-वारियर की ऑंखमारी वीडियो वायरल होने लगी।
देखा जाय तो आँख मारना कोई अपराध नहीं लेकिन लोग इसे गलत नजरिये से देखते हैं। खासकर लड़का किसी लड़की को आँख मार दे। स्कूल की एक घटना याद आ गयी। तीसरी हाई स्कूल में सातवीं कक्षा में पढ़ रहा था। हमारे स्कूल में बंगाली सर थे,बड़े सीधे-साधे कभी किसी को डाँटते या मारते नहीं देखा। एक दिन क्लास में आते ही एक लड़के को उठाया और पीटना शुरू कर दिया। पूरा क्लास स्तब्ध ! बंगाली सर उस लड़के पर चीख रहे थे चिल्ला रहे थे। उसने क्लास की ही एक लड़की को आँख मारने की हिमाकत कर दी थी। भरी क्लास में कान पकड़कर उठक-बैठक करवाई। उसके बाद उस लड़के ने स्कूल की किसी लड़की की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखा। उस वक्त मुझे बहुत समझ नहीं थी लेकिन उस घटना ने मेरे दिलोदिमाग में आँख मारी को बड़े अपराध में अंकित कर दिया।
©पंकज प्रियम
रूह में समा दीजिये
हुश्न को इश्क़ से मिला दीजिये
मुहब्बत आंखों से पिला दीजिये।
महक उठे खुशबू से चमन सारा
चाहतों के फूल यूँ खिला दीजिये।
छोड़िए दुश्मनी की वजह सारी
दिल को दोस्ती से मज़ा दीजिये।
आपकी गिरफ्त में गुजरे जिंदगी
मुहब्बत की ऐसी सज़ा दीजिये।
मिट जाए प्रियम का वजूद सारा
अपनी रूह में ऐसे समा दीजिये।
©पंकज प्रियम
मुर्गे का खून
हर तरफ उल्लास है
दिन बड़ा ये खास है।
हर तरफ ही धमाल है
आ गया नया साल है।
लेकिन कोई उदास है
आँखे हो गई निराश है।
पूछ रहा अम्मा से वो
माँ आज क्यूँ उदास है?
हर कोई खुशहाल है
आया जो नया साल है।
यही तो कारण है बेटा
जब जब मानव हुआ
यहां पर खुशहाल है
समझ लो कि हमारा
तब हुआ बुराहाल है।
जश्न का हो कोई मौका
या पाकिस्तान पे चौका
या आया नया साल है
मुर्गे का तब खून बहा
बकरा हुआ हलाल है।
खुशियां इनकी सारी
जश्न भी सारा इनका
पार्टी और त्यौहारों से
बढ़ती इनकी शान है।
क्यूँ न आये मेरे आँसू
जाती बेटे की जान है।
मुर्गे का जब खून बहे
बकरे खूब हलाल हुए।
दारू पी-पी करके जब
सबके सब बेहाल हुए।
देखो जब यह हाल है
समझ लो नया साल है।
31 की जब नाईट हो
पीकर के सब टाईट हो।
मुर्ग-मसल्लम की पार्टी
घर-घर की ये परिपाटी।
सब चलता टेढ़ी चाल है
समझ लो नया साल है।
©पंकज प्रियम