Sunday, December 17, 2023

981.समय

समय के साथ स्वयं को तो, बदलना भी जरुरी है।
बदल जाये समय, पहले, सम्भलना भी जरूरी है।
विधाता ने लिखा है जो, बदल उसको नहीं सकते-
मगर किस्मत बदलने को, निकलना भी जरूरी है।।
कवि पंकज प्रियम 

Saturday, December 16, 2023

980.धर्म, आस्था और परंपरा

धर्म, परम्परा और विधान

कोई भी देवी देवता बलि नहीं मांगते। सब जीव जंतु उनकी ही तो संतान है। ऐसे में क्या कोई माँ-बाप अपने ही बच्चों की बलि मांगेगा? 
हमारे वेदों-ग्रंथों में भी बलि निषेध है-

मा नो गोषु मा नो अश्वेसु रीरिष:।- ऋग्वेद 1/114/8
अर्थात- हमारी गायों और घोड़ों को मत मार

इममूर्णायुं वरुणस्य नाभिं त्वचं पशूनां द्विपदां चतुष्पदाम्।
त्वष्टु: प्रजानां प्रथमं जानिन्नमग्ने मा हिश्सी परमे व्योम।। – यजु. 13/50

अर्थात-  उन जैसे बालों वाले बकरी, ऊंट आदि चौपायों और पक्षियों आदि दो पगों वालों को मत मार
' वेदों में ऐसे सैकड़ों मंत्र और ऋचाएं हैं जिससे यह सिद्ध किया जा सकता है कि हिन्दू धर्म में बलि प्रथा निषेध है और यह प्रथा हिन्दू धर्म का हिस्सा नहीं है। अगर मांसाहारी हैं तो वेशक खायें लेकिन धर्म की आड़ लेकर नहीं। वैसे भी विज्ञान की नज़र से भी देखें तो मानव शरीर माँस खाने-पचाने के योग्य बना ही नहीं है। न तो मांस के लायक दांत है और न पचाने लायक आँत। 
सभी वेद-पुराण को उठाकर पढ़ लें, सभी देवी-देवताओं ने उन दानवों का वध किया जो जगत के लिए आतंक बने हुए थे। किसी निर्दोष या सदमार्गी राक्षस को नहीं मारा उल्टे उन्हें अपनी शरणागति प्रदान की। सर्वाधिक बलि लोग माँ काली या दुर्गा देवी के समक्ष देते हैं लेकिन ध्यान दें कि उन्होंने महिसासुर और अन्य दैत्यों का वध जगत कल्याण हेतु किया उसका भक्षण नहीं किया। किसी निर्दोष निरीह पशु को बलि नहीं ली। दरअसल कुछ लोगों ने यह अपनी अहम और जिह्वा के स्वादपुर्ति के लिए बलि देना शुरू किया। महिसासुर जैसे ताकतवर व्यक्ति से तो लड़ नहीं सकते तो बेचारे निर्दोष, बेजुबान पशुओं की बलि देकर उसका मांस भक्षण करने लगे। उससे उनका अहम भी शांत होता है और जिह्वा की स्वादपुर्ति भी हो जाती है। शास्त्रों में बलि का अभिप्राय अपने भीतर के दुर्गुणों जैसे क्रोध, काम, लोभ, अंहकार, मोह, ईर्ष्या इत्यादि की बलि देने की बात कही गयी है। इस्लाम मे भी कुर्बानी का अभिप्राय अपनी सबसे प्यारी वस्तु की क़ुरबानी देना है ताकि लोभ-मोह खत्म हो सके। इस्लाम में तो एक ही ख़ुदा का विश्वास है जिसकी सब संतान है तो क्या अल्लाह अपने ही सन्तान की क़ुरबानी माँगेगा? 
किसी भी पर्व-त्यौहार पूजा-पाठ में बाजार घूमकर देख लीजिए। लोग स्वयं के लिए तो सबसे बढ़िया और मंहगा सामान खरीदते हैं लेकिन पूजा दुकान में घी-धूप दीप या फिर पंडित जी के लिए दान की सामग्री "पूजा का है, दान करना है" बोलकर सबसे घटिया सस्ता सामान लेकर आते हैं। यहाँ तक अक्षत, घी, धूप, यज्ञोपवीत जैसी मामूली पूजा सामग्री भी खुद के लिए बढ़िया और ईश्वर को समर्पित करने के लिय घटिया सस्ता खरीदने की आदत है। ईश्वर को समर्पित करने की सामग्री हविष्य नैवेद्य कहलाती है यानी जिसे आप स्वयं खा सकते हैं वही सामग्री ईश्वर को चढ़ाना चाहिए। जिसे आप स्वयं धारण कर सकें वही वस्त्र का दान करना चाहिए लेकिन नहीं लोग कपड़े की दुकान पर जाकर कहेंगे कि -"पंडीत जी को दान करना है सस्ता वाला दिखाइए" जिस घी को आप नहीं खा सकते उससे पूजा करना निष्फल ही है। जिस वस्त्र को आप पहन नहीं सकते उसका दान निरर्थक है। शादी-व्याह, पर्व-त्यौहार के आडंबर में आप लाखों रुपये पानी की तरह बहा देंगे लेकिन जब बात पूजा सामग्री और दान की आती है तो लोगों की दरिद्रता बाहर निकल आती है। अरे! ईश्वर को नही चाहिए निरीह पशुओं की बलि, सस्ती घटिया पूजा सामग्री, वह स्वयं जगतपिता है उसे किस बात की कमी है? उन्हें तो 56 भोग भी नहीं चाहिए। मनुष्य अपनी जिह्वा स्वाद पूर्ति के लिए 56 भोग की व्यवस्था करता है उसमें कोई कमी नहीं करता लेकिन जो ईश्वर को चढ़ना है, जो पुजारी को दान करना है वह सबसे निकृष्ट सामग्री लाएगा। बलि की ही बात हो रही है तो बाजार में जाकर प्रत्यक्ष उदाहरण देख सकते हैं। लोग बढ़िया, स्वस्थ, मोटे पशुओं को खरीदना चाहते हैं ताकि अधिक से अधिक मांस निकले। उसमे ईश्वर या अल्लाह को बलि देने की भावना नहीं रहती। जैसे बलि या भोग में बेहतर गुणवत्ता देखते हैं उसी तरह चढ़ावा और दान की गुणवत्तापूर्ण सामग्री की खरीद करो लेकिन नहीं वहां तो जेब टटोलने लगेंगे। होटल में अपने अहम पूर्ति हेतु बेटर को टिप या बारात के डांस में पांच-पांच सौ के नोट  हवा में उड़ाएंगे लेकिन जब मन्दिर में दान करने की बात आएगी तो जेब मे चवन्नी ढूंढेंगे। अरे! नहीं चाहिए ईश्वर को तुम्हारी चवन्नी-अठन्नी की औकात! ईश्वर तो श्रद्धा के भूखे होते, भगवान विष्णु सिर्फ एक तुलसी दल से प्रसन्न हो जाते है, बाबा भोलेनाथ तो बेलपत्र और धतूरे में ही खुश हो जाते हैं। ईश्वर ने दानपुण्य की व्यवस्था इसलिए बनाई है कि उनकी सेवा में दिनरात जुड़े परिवारों का भरणपोषण हो सके। जिस तीर्थ स्थल पर ईश्वर का वास है वहाँ की अर्थव्यवस्था और लोगों की रोजी रोटी चलती रहे। मन्दिरो से सिर्फ पंडित का पेट नहीं भरता वल्कि उस क्षेत्र में रहनेवाले हर व्यक्ति की रोजी-रोटी का जुगाड़ होता है। देश के अधिकांश शहर में रोजगार का मुख्य साधन मंदिर और पूजा है। यकीन न हो तो तीर्थ स्थल घूमकर देख लें। काशी, मथुरा, वृन्दावन, बरसाना, गोकुल, अयोध्या, पूरी, भुवनेश्वर, हरिद्वार, ऋषिकेश, देवघर, विंध्याचल, वैष्णो देवी, उज्जैन, रामेश्वरम, चारधाम, सभी शक्तिपीठ, सभी ज्योतिर्लिंग, जहाँ जाइये वहां की रोजी रोटी का मुख्य आधार मन्दिर ही है। जिसमें हर जाति, हर धर्म और हर वर्ग के लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इतने रोजगार कोई भी सरकार नहीं दे सकती, जितना सिर्फ हमारे देवी-देवताओं ने दे रखा है। हमारी सनातन संस्कृति को विदेशी भी अपनाने लगे हैं। इसी तरह हमारे हर पर्व त्यौहार में हिंदुओं से अधिक अन्य धर्म के लोगों को रोजगार मिलता है। हमारी सनातन संस्कृति सदैव जग कल्याण की बात करती है। 
दरअसल लोग परम्परा के नाम पर अपनी सारी अहमपूर्ति कर लेते हैं जबकि परंपरा मनुष्यों के द्वारा समय-समय अपनी सुविधानुसार बनाई गई है। विधि और परंपरा में फर्क समझने की आवश्यकता है। विधि विधान ईश्वर द्वारा निर्धारितजबकि परंपरा मनुष्य निर्मित है। ईश्वर जीवन देता है न की बलि लेता है। याद कीजिये कृष्ण का गोबरधन प्रसङ्ग। इंद्र को पशुओं की बलि देने की परंपरा दी जिसका कृष्ण ने विरोध करते हुए कहा कि परंपरा को समयानुसार बदलना जरूरी होता है। जो जीवन की बलि ले वह पूजनीय नहीं जो जीवन प्रदान करे उसकी पूजा होनी चाहिए। उन्होंने इंद्र से बेहतर गोबर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा कि यह पर्वत हम सबको भोजन, पानी प्रदान करता है। कृष्ण का सबने बहुत विरोध किया लेकिन जब इंद्र का अहम चूर हुआ तो गोबरधन  पर्वत की पूजा शुरू हो गईं। सनातन धर्म मे तो कण-कण में ईश्वर के वास् की आस्था है
जीव जंतु तो छोड़िए नदी, पहाड़, पेड़-पौधे तक की पूजा का विधान है। सनातन में सबके संरक्षण की बात की जाती है। ईश्वर कभी भी कोई गलत कार्य करने को नहीं कहते। ईश्वर के मनुष्य अवतार ने भी धैर्य, संयम और धर्म का पालन ही किया राम हो या कृष्ण, किसी ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जो लोगों को धर्म के पथ से विचलित करे। उन्होंने हमेशा धर्म का ही पालन किया। जो गलत परम्परा थी उसे बदलने का प्रवास किया। आजकल लोग भगवान भोलेनाथ को गांजा और भांग पीते दिखाते हैं। उनके नाम पर नशापान करते हैं लेकिन उन्हें कौन समझाए कि भोलेनाथ ने कभी नशापान नहीं किया। समुद्रमंथन में जब कालकूट विष निकला तो प्रलय की स्थिति आ गयी तब महादेव ने जग कल्याण हेतु विषपान किया था। अगर आप भी सच्चे शिवभक्त हो तो गांजा-भांग की जगह थोड़ी ज़हर पीकर देख लो लेकिन सदाशिव की क्षवि बदनाम मत करो। विषपान के बाद जब मां दुर्गा ने विष को कंठ तक रोक लिया तो शंकर नीलकंठ हो गए। विष की ऊष्मा को दूर करने के लिए शिव को भी 20 वर्षों तक ऋषिकेश में कठिन साधना करनी पड़ी थी। विष के प्रभाव को कम करने के लिए धतूरे का सेवन किया क्योंकि धतूरा ठंडक प्रदान करती है।भांग भी औषधि रूप में विष तत्वों का नाश करता है। इसलिए शिव को भांग और धतूरा चढ़ाया जाता है। शिव जग कल्याण हेतु विषपान किया था कोई शौक से नशापान नहीं। कई जगह लोग शराब का भोग लगाते है जबकि देवी माँ ने कभी मद्यपान नहीं किया। यह कुछ लोगों के द्वारा अपनी लालसा पूर्ण करने का बहाना मात्र है। परंपरा कोई शास्त्रोक्त विधान नहीं वल्कि मनुष्य निर्मित है। एक उदाहरण के तौर पर देखें तो किसी के घर शादी हो रही थी मंडप के आसपास एक कुत्ता बहुत परेशान कर रहा था तो घरवाले मंडप के एक खूंटे में उसे बांध दिया। उसे दख नई पीढ़ी ने समझा कि शायद कुत्ते बांधने की परंपरा है, अब उस परिवार में हर शादी के मंडप में कुत्ते को बांधना परम्परा बन गयी। लोग अपनी पुरखों की परंपरा बदलने से डरते हैं कि पता नहीं कुछ अपशकुन न हो जाय। जबकि ऐसा कुछ नहीं है। ईश्वर कभी भी किसी का बुरा सोचते नहीं। वे तो सदा जगत का कल्याण करते हैं। लोग कृष्ण के आधे-अधूरे उपरी आवरण को देखकर स्वयं को कृष्ण कन्हैया कह सारी गलतियां करने लगता है। कृष्ण को छलिया, चोर, नटखट, रास रचैया कहकर लोग कृष्ण बनने का पर्याय करते हैं। कृष्ण के रासलीला को लोगों ने गलत अर्थ में परिभाषित कर दिया है। राधा और कृष्ण के प्रेम का उदाहरण देकर लोग न जाने क्या क्या कर लेते हैं। हक़ीक़त यही है कि ऐसे लीगों ने कृष्ण को पढ़ा और समझा ही नहीं। कृष्ण ने जो भी किया वह जग कल्याण और सबको जीवन का पाठ पढ़ाने हेतु किया। उनका जीवन इतना सरल नहीं। इसपर कभी अलग से चर्चा करूँगा। लब्बोलुआब यही की परम्परा के नाम पर अनैतिकता को बढ़ावा न दें। समय के अनुसार जैसे हर  चीज बदलती है उसी प्रकार कुरीतियों, गलत परंपरा और कुप्रथाओं को बंद करने की जरूरत है। जब कोई परम्परा या वचन जग कल्याण में बाधक बन तो उसका त्याग कर देना चाहिए। वरना महाभारत एक बड़ा उदाहरण है कि भीष्म की प्रतिज्ञा और सिंहासन के प्रति वचनबद्धता ही उनके धर्म पालन बाधक बनी। उनके सामने द्रौपदी का चीर हरण होता रहा कुछ नहीं कर पाए। युधिष्ठिर का अति धर्मपालन ही दुख का कारण बना। परम्परा के नामपर द्यूत खेलने बैठा और अपनी पत्नी तक को दांव में हार गया। अपनी अति धर्मपरायणता के कारण सबको वनवास झेलना पड़ा। कृष्ण चाहते तो पलभर में सबकुक बदल सकते थे लेकिन उन्होंने पांडवों को उसके कर्म की सजा भोगने के लिए तबतक अकेला छोड़े रखा जबतक की उन्हें अपनी गलती का अहसास नहीं हुआ। कर्ण बहुत वीर और दानी था लेकिन उसने अपने स्वार्थपूर्ण मित्रता के पालन के लिए दुर्योधन जैसे अधर्मी का साथ दिया। जिसका दण्ड उसे मिला। इसी तरह गुरु द्रोण का भी वचनबद्धता के।कारण कौरवों के साथ नाश हुआ। महाभारत ने श्रीकृष्ण ने यही संदेश दिया कि अहंकार, गलत परंपरा और रुढ़िवादी सोच नाश का कारण बनती है। समय के साथ सबको बदलना पड़ता है अन्यथा आपका अंत होना निश्चित है।
पंकज प्रियम

Friday, December 15, 2023

779.साहित्योदय यात्रा

बचपन की साहित्यिक कुलबुलाहट जिम्मेवारियों के बोझ तले दबती रही, बाहर कई आयोजनों में जाता तो वहाँ के प्रोफेशनल और व्यवसायिक माहौल को देखकर मन करता कि एक ऐसा मंच बनाऊं जहाँ प्रोफेशनल नहीं स्वच्छ पारिवारिक माहौल हो। सिर्फ बड़े स्थापित लेखकों को ही नहीं वल्कि गाँव-देहात सुदूरवर्ती गुमनाम और नवोदित कलमकारों को भी सम्मान मिले। 2017 में खयाली पुलाव की तरह दिमाग में पकते साहित्योदय का 2018 में फेसबुक समूह बनाकर शुरू किया। कार्य की व्यस्तता के कारण इसमें समय नहीं दे पा रहा था। देवघर में बाबा बैद्यनाथ साहित्य महोत्सव की परिकल्पना तैयार तो कर ली थी लेकिन न तो लोग थे और न साधन। उसवक्त हमारे साथ सिर्फ सुरेन्द्र कुमार उपाध्याय का मनोबल था कि  "कीजिये न भैया जहाँ जितना सहयोग लगेगा हम साथ हैं". पहली बार साझा संग्रह काव्य सागर और शब्द मुसाफ़िर निकालने का मन बनाया। मन में विश्वास तो अदम्य था और मेहनत से कभी डरा ही नहीं। क्या दिन और क्या रात?लगातार 30 से 40 घण्टे तक खड़े रहकर रिपोर्टिंग का अनुभव तो था ही लेकिन आयोजन की व्यवस्था और किसी से मदद के मामले में बहुत पीछे था। राज्यस्तरीय सक्रिय पत्रकारिता के बावजूद कभी किसी से मदद नहीं ली थी। मीडिया में स्क्रिप्टिंग- रिपोर्टिंग के मामले में तो अव्वल था लेकिन मार्केटिंग और विज्ञापन के मामले में फिसड्डी था। ऐसे डर भी था कि पता नहीं लोग जुड़ेंगें या नहीं? पुस्तक प्रकाशन और आयोजन की व्यवस्था कैसे होगी? कहाँ से पैसे आएंगे, कौन मदद करेगा आदि-आदि, उसवक्त पहले लेखक के रुप में हज़ारीबाग के विद्यार्थी बीरेंद्र कुमार ने रजिस्ट्रेशन कराया। उसके बाद थोड़ा बहुत विश्वास जगा। फिर जो जानपहचान के रचनाकार थे उन्हें जोड़ना शुरू किया। लोग धीरे-धीरे जुड़ते गए फिर परिवार बढ़ता गया। बैद्यनाथ महोत्सव को लेकर तैयारी शरू हुई और उसी के निमित गिरिडीह के एक छोटे से कमरे में होली मिलन समारोह के रुप में पहला आयोजन किया जिसमें संजय करुणेश जी, उदय शंकर उपाध्याय, संजय सिन्हा, नवीन मिश्र और कुछ स्थानीय यानी कुल जमा 7-8 लोगों की बीच साहित्योदय का पहली काव्यगोष्ठी हुई। फिर देवघर महोत्सव की तैयारी में लग गए। सबकुछ तय हो चुका था तभी बीच कोरोना महामारी शुरू हो गयी। हमारी सारी व्यवस्था चौपट हो गयी। तब हमने ऑनलाइन माध्यम से सबको जोड़ना शुरू कर दिया। व्हाट्सएप पर तो सब थे ही तो पहले भी व्हाट्सएप पर ऑडियो काव्यगोष्ठी करवा रहा था लेकिन कोरोना काल मे फेसबुक लाइव के जरिये सभी का काव्यपाठ प्रारम्भ कर दिया। कोरोना की वजह से लोग घरों में कैद थे, सारे मंचीय आयोजन बन्द थे तो बड़े-बड़े स्थापित कवि भी घर बैठे थे उन्हें भी फेसबुक के जरिये अपनी रचनाधर्मिता निभाने का अवसर मिल गया। इस दौरान मंच का कोई भी ऐसा स्थापित कवि नहीं था जो साहित्योदय के फेसबुक लाइव में न जुड़ा हो। इसी बीच स्टीमयर्ड शुरु हुआ तो कवि सम्मेलन भी प्रारम्भ कर दिया। इसबीच सबको कैमरे में लाइव प्रस्तुति का प्रशिक्षण भी देता रहा। इसी कोरोना काल के अनुभवों पर एक पुस्तक कोरोना काल भी तैयार हो गयी। हमने 100 पृष्ठों की रंगीन पत्रिका साहित्योदय का प्रकाशन प्रारम्भ किया। जिसका भब्य विमोचन 11 अक्टूबर 2020 को रांची प्रेस क्लब में किया। यह पहला अवसर था जब अपने साहित्योदय परिवार विशेषकर रांची टीम के सदस्यों से पहली मुलाकात हुई। इससे पहले हम सब ऑनलाइन ही मिले थे। 2020 मेरे कार्यक्रमों को देखते हुए झारखण्ड फ़िल्म फेस्टिवल 2020 को ऑनलाइन कार्यक्रम कराने की जिम्मेवारी मुझे मिली जिसमें दुनियाभर के 200 से अधिक बॉलीवुड-हॉलीवुड कलाकारों ने शिरकत की। इसके बाद अलग-अलग शहर, राज्य और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टीमें बनने लगी। सैकड़ो ऑनलाइन आयोजन किया कर हजारों लोगों का काव्यपाठ कराया। सैकड़ो ऑनलाइन प्रतियोगिता और सम्मान समारोह किया। 2021 में जब हालात सुधरने लगे तो फिर आयोजन की तिथि निर्धारित की लेकिन लोग अब भी डरे हुए थे। फिर भी 4 अप्रैल 2021 को देवघर में देशभर से सौ से अधिक साहित्यकार जुटे और बिना किसी प्रायोजक या सहयोग के साहित्योदय का पहला बड़ा भव्य आयोजन हुआ। हालांकि इस कार्यक्रम के तुरंत बाद करुणेश जी, रमन जी समेत कई लोग कोरोनाग्रस्त हो गए। मैं बहुत डर गया था और बाबा बैद्यनाथ से सबकी कुशलता की प्रार्थना करने लगा। देवघर आयोजन में ही अयोध्या जन रामायण की घोषणा कर दी थी। उसके लिए अक्टूबर में अखण्ड काव्यार्चन की तैयारी शुरू किया था करीब एक माह अस्पताल के चक्कर में फंसा रहा। किशोरी और नवजात बच्ची दोनों अस्पताल में थे उसवक्त पूरे साहित्योदय परिवार ने साथ दिया। सभी दुआ-प्रार्थना कर रहे थे। दीवाली के दिन हम घर लौटे तो फिर जन रामायण अखण्ड काव्यार्चन की तैयारी में जुट गए। 5-6 दिसम्बर 2021 को दुनियाभर के 300 से अधिक रचनाकारों से 28 घण्टे अनवरत ऑनलाइन काव्यपाठ करवाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया जिसमें डॉ बुद्धिनाथ मिश्र, पद्मश्री सुरेन्द्र शर्मा, अरुण जैमिनी जैमिनी, अजय अंजाम, बेबाक़ जौनपुरी, अमित शर्मा, गौरी मिश्रा, देवी, सरला शर्मा समेत सैकड़ों दिग्गज साहित्यकारो की गरिमामय उपस्थिति रही। फिर दर्जनों ऑनलाइन और मंचीय।आयोजन किया। 19-20 नवंबर 2021 को अयोध्या के जानकी महल में भव्य जन रामायण महोत्सव का आयोजन किया जिसमें देशभर के 250 से अधिक लोग शामिल हुए। जिसमें डॉ बुद्धिनाथ मिश्र जी की अध्यक्षता में उदयप्रताप सिंह, पद्मश्री मालिनी अवस्थी, विजया भारती, यतीन्द्र मिश्र, डॉ अखिलेश मिश्र, अजय अंजाम, बेबाक़ जौनपुरी, सरल शर्मा, डॉ शोभा त्रिपाठी, वीणा शर्मा सागर सहित दर्जनों दिग्गज रचनाकार शामिल हुए। यह हमारा परम् सौभाग्य ही था कि रामजन्म भूमि न्यास के महंत कमल नयन दास और हनुमान गढ़ी के महंत राजु दास, अयोध्या में ही कृष्णायण की घोषणा हुई और फिर हम जुट गए वृंदावन की तैयारियों में। लगातार दिनरात अनथक मेहनत और सबके सहयोग से कृष्णायण तैयार हुआ। आयोजन को लेकर भी काफी मैराथन दौड़ लगानी पड़ी जिसमें एक महीने बीमार भी हो गया। राधेरानी की कृपा से वात्सल्य ग्राम स्थित मीरा माधव रिसॉर्ट में भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ। स्वयं साध्वी ऋतम्भरा जी उद्घाटन और समापन में उपस्थित रहीं। उनका आशीर्वाद मिला। इस आयोजन में करीब 300 लोगों की उपस्थिति रही। सबने खूब आनन्द उठाया। 
 बाबा बैद्यनाथ की पावन भूमि देवघर से प्रारंभ वृहद स्तर पर अंतरराष्ट्रीय महोत्सव की यात्रा रामजन्मभूमि अयोध्या से होते कृष्ण की लीलाभूमि वृंदावन तक अपनी भव्यता के साथ बढ़ती जा रही है। यह हमारा परम् सौभाग्य रहा है कि हमारे हर छोटे-बड़े आयोजन में अभिभावक स्वरूप आदरणीय Buddhinath Mishra जी की उपस्थिति उत्साहवर्धन करती रही। 
 सुखद बात यह है कि जिस तरह के साहित्यिक परिवार की हमने कल्पना की थी ठीक वैसा ही साहित्योदय है। यहाँ प्रोफेशनल या व्यवसायिक माहौल नहीं वल्कि एक पारिवारिक वातावरण है। जहाँ हर किसी के सुख-दुःख में समान भागीदारी रहती है। बड़े-बड़े प्रतिष्ठित संस्थाओं के कार्यक्रम में मैं स्वयं गया हूँ लेकिन वहाँ की व्यवस्था और व्यवहार पूरी तरह से प्रोफेशनल पाया। अयोध्या आयोजन हो या फिर वृन्दावन, लोगों को आधीरात में भी स्वयं खड़े होकर स्वागत किया और रात 2 बजे आये अतिथियों के लिए भी भोजन की व्यवस्था की।  यह सबकुक ईश्वर की कृपा और साहित्योदय परिवार के सहयोग से ही सम्भव हो पा रहा है। इतना सबकुछ मैं कभी नहीं कर पाता अगर किशोरी का साथ नहीं मिलता। ऑफिस से आने के बाद मैं कई दिनों तक रात-रात भर साहित्योदय के कार्य लगा रहता हूँ। घर-परिवार के बहुमूल्य समय की क़ुरबानी से ही यह यात्रा इस मुकाम तक पहुँच सकी है। अन्यथा बीच रास्ते में ही यह सफ़र खत्म हो जाता। साहित्योदय के सुगम संचालन और समीक्षा में की इस यात्रा को सुगम बनाने में कई हमराह बनते गए जिसमें सुरेंद्र उपाध्याय, संजय करुणेश, सुदेष्णा सामंत, अनामिका अनु, रजनी चंदा, सीमा सिन्हा, ज्योत्स्ना झा, गीता चौबे, राकेश तिवारी, राजश्री राज, पुष्पा सहाय, खुशबू बरनवाल, प्रिया शुक्ला, नंदिता माजी शर्मा सहित कई प्रमुख नाम हैं। एक परिवार को चलाने केलिए सबका साथ जरूरी होता है। हमारी सफलता से जलने वालो ने कई बार हमें तोड़ने की कोशिश की लेकिन हमने हमेशा प्रेम और विश्वास के साथ परिवार को जोड़कर रखने में सारा ध्यान लगाया। सफर में कई लोग साथ छोड़ गए तो कई नए हमराह बने लेकिन एकबात स्पष्ट है कि जिनके मन अंशमात्र भी अहम का भाव उठा और संस्था से ऊपर खुद को बड़ा समझने लगे उसे बाबा बैद्यनाथ ने एक बीमारी की तरह साहित्योदय से स्वयं दूर कर दिया।अगले वर्ष शिवसाधना की तपोभूमि ऋषिकेश में शिवायन होगा। यह साहित्योदय यात्रा कभी रुके नहीं, थके नहीं इसके लिए आप सबका निरंतर साथ जरूरी है। क्योंकि साहित्योदय मंच नहीं एक परिवार है।

Wednesday, December 13, 2023

778. गरीब मर गया

गरीब मर गया
^^^^^^^^^^^

ज़िदंगी की दुआ मांगती भीड़ से 
मज़ार में चादर बेशुमार भर गया। 
और दुआएं बाँटता बाहर बैठा 
देखो फकीर ठंड से मर गया।

मन्दिर-मस्जिद, चर्च-गुरुद्वारा
इसमे ही बंट गया है जग सारा.
दूध पकवान से जग भर गया
और फकीर भूख से मर गया।


सत्ता सरकार और सियासतें,
बस करती विकास की बातें।
मरने पर बांटती है वो खैरात
मगर कोई निवालों में डर गया,
फिर देखो एक गरीब मर गया। 

ठंड और भूख से हुई मौत 
कभी सरकार मानती नहीं।
बिन आधार के अब तो वह
किसी को भी जानती नही।
आधार नही तो अनाज नही
कम्बल और आवास नही।
भात-भात कहते 'संतोषी' का स्वर गया. 
फिर देखो एक गरीब मर गया। 

कम्बल ओढ़ घी सब पीते रहे,
बिन कम्बल लोग ठिठुरते रहे।
टूटी सांस 'चंदो' की और फिर
देखो एक गरीब ठंड से मर गया।

आसमां में जहाज उड़ाने को
उजाड़ा गरीब के आशियाने को
प्लास्टिक की झोपड़ी में 
मुआवजे की आस में ही
जीवन 'पोचा' का गुजर गया
ठिठुरते ठंड से वो मर गया।

मौत के बाद देखो सरकारी
मुआवजे का खेल तमाशा
ठंडी हो चुकी लाशों पर कम्बल 
और बेजान परिजनों के हाथ
चंद हजार सरकारी बाबू धर गया
ठंड और भूख से जो मर गया।

©पंकज प्रियम"

Saturday, December 9, 2023

972.सत्य सनातन लोकतंत्र

सत्य सनातन : वास्तविक लोकतंत्र
वास्तविक लोकतंत्र तो हमारे सनातन धर्म में है। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति यहाँ तक कि देवी देवताओं को भी कर्तव्य और अधिकार  से जोड़ा गया है। हर कार्य के लिए अलग-अलग देवी देवताओं को अधिकृत किया गया है। वे सभी अपने कर्म का निर्वहन पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ करते हैं। कोई 1 ही ईश्वर हर कार्य नहीं कर सकता। यह लोकतंत्र नहीं राजतंत्र है जहाँ 1 राजा मालिक होता है और बाकी सब प्रजा। केवल हमी 1 हैं बाकी कोई नहीं भावना ईश्वरीय नहीं हो सकती। जगतपिता ब्रह्मा हों,  जगत के पालनहार श्री हरि हों या फिर भोलेनाथ, कोई किसी के कार्य मे हस्तक्षेप नहीं करते बल्कि एक दूसरे को पूरा सम्मान देते हैं। जैसे त्रिदेवों को सृजन, संचालन और संहार में संतुलन बनाये रखना होता है उसी प्रकार ज्ञान के संचार माँ सरस्वती, बुद्धि विवेक के लिए विघ्नहर्ता गणेश, सुख समृद्धि की देवी लक्ष्मी, प्रेम की देवी राधा, शक्ति का संचार करने हेतु माँ दुर्गा, वर्षा के लिए इंद्र, जल के देवता वरुण, वायुदेव पवन, आग के लिए अग्नि, कोषाध्यक्ष कुबेर, कर्मफल दाता शनिदेव, समस्त जगत को ऊर्जा देने वाले सूर्यदेव, शीतलता प्रदान करने वाले चन्द्र, गुरु बृहस्पति, शिल्पदेव विश्वकर्मा, वैद्य धन्वंतरि, भोजन के लिए माँ अन्नपूर्णा और सबके बहीखाते का हिसाब रखने वाले चित्रगुप्त। यानी जितनी भी मूलभूत आवश्यकता है उसके लिए अलग अलग देव-देवी नियुक्ति हैं। कर्त्तव्य पालन में सर्वशक्तिमान भगवान को भी तकलीफ़ होती है। वे भी हँसते हैं, रोते हैं, कष्ट उठाते हैं, धरती पर सन्तुलन बनाने के लिए विष्णु को मत्स्य, कूर्म, वाराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि अवतार लेना पड़ा। राम और कृष्ण ने कम तकलीफें उठायी लेकिन उन्होंने अपना धर्म व संयम नहीं खोया। उनका जीवन किसी भी प्रबंधन या आज के पाठ्यक्रम से अधिक शिक्षाप्रद है। रामायण और गीता के उपदेशों को पढ़कर ही बड़े बड़े मोटिवेशनल स्पीकर बने हुए हैं। मोटिवेशनल   पर विश्व के सर्वाधिक चर्चित पुस्तकों में गीता के उपदेशों की ही  नकल है। विष्णु के अवतारों को देखें तो यह मानव विकास का क्रम और मानव जीवन के महत्वपूर्ण अध्याय को दर्शाता है।  यही तो प्रैक्टिकल भी है। हर कार्य के लिए किसी एक आदमी को आप नहों रख सकते और न ही एक व्यक्ति हर कार्य की अपेक्षा भी कर सकते हैं। इसी तरह सनातन धर्म मे हरेक कार्य हेतु अलग-अलग व्यक्ति को नियुक्त किया गया है ताकि सबको काम और उचित सम्मान मिल सके। मानव जीवन के हर संस्कार और पर्व त्यौहारों में हर वर्ग के व्यक्ति के भरणपोषण की व्यवस्था की गई है। जो लोग कहते हैं कि मंदिर बनाने से क्या होगा? उन्हें भारत अयोध्या, मथुरा, वृन्दावन, देवघर, उज्जैन, गया, द्वारिका, ऋषिकेश, हरिद्वार सहित उन सभी तीर्थों में जाकर देखना चाहिए जहाँ की पूरी अर्थव्यवस्था मंदिरों पर टिकी है। जिसमें हर धर्म और जाति के लोगों की रोजी रोटी चल रही है। 
क्रमशः--/
पंकज प्रियम

Friday, December 8, 2023

976.कृष्ण का जीवन

कैसे तुझे बताऊँ राधा, क्या कहता है मेरा मन?
सबने खोजा तुझसे बाहर ,  देख न पाया तेरा मन।
कृष्ण का होना कठिन है कितना, कैसे तुझे बताऊँ?
सबने  तन के बाहर ,  देख न पाया अंतर्मन।
1
सबने देखा नाचते-गाते, दिखी न मन की व्याकुलता।
गोपियों के संग रास रचाते, मनमोहन की आकुलता।
यमुना तट पर बंसी बजैया, राधा के संग कृष्ण कन्हैया।
माखन चोरी करते देखा, ग्वाल बाल संग ता ता थाईया।
वस्त्र चुराते सबने देखा...देख न पाया मन दर्पण।
सबने खोजा तन के बाहर ,  देख न पाया अंतर्मन।न। 
2
छोड़ गया राधा को कान्हा, सबने लांछन मुझपर डाला।
प्रेम का पाठ पढ़ाने हेतु, विरह की मैंने पी ली हाला।।
दूर कदम मैं जितना तुझसे, पाँव में उतने पड़ते छाले। 
विरह की वेदना कैसी होती, क्या समझेंगें दुनियावाले।
पाने को सब प्रेम कहे पर, प्रेम स्वयं का है अर्पण।
सबने खोजा तन के बाहर ,  देख न पाया अंतर्मन।
3.
मैया छूटी, बाबा छूटे, .......-..छूटा सब घरबार हमारा।
गोकुल, मथुरा और वृन्दावन, छूट गया परिवार हमारा।
द्वारिका डूबी सागर में और हो गया कुल संहार हमारा।
कृष्ण का जीवन सरल कहाँ जब पीड़ा में संसार हमारा।
सबने बाँसुरी धुन को सुना, सुन न पाया मन क्रंदन।
सबने खोजा तन के बाहर ,  देख न पाया अंतर्मन।
4. 
युग परिवर्तन करने हेतु, धरती पर अवतार लिया।
शत वर्षो तक दूरी हमने, राधा से स्वीकार किया।
धर्म स्थापित करने हेतु, महाभारत का युद्ध किया।
राज दिलाया पाण्डव को, खुद गांधारी श्राप लिया। 
सबने मेरी लीला देखी, देख न पाया आख़िरी क्षण।
सबने खोजा तन के बाहर, देख न पाया अंतर्मन। 
कैसे तुझे बताऊँ राधा, क्या कहता है मेरा मन।


पंकज प्रियम


Monday, November 27, 2023

977.सच्चा प्यार

तन-मन के इस मोह में, भूल गया संसार। 
क्या होती है प्रीत रे..क्या होता है है प्यार?

पाने को ही सब कहे, पाया सच्चा प्यार। 
प्रेम तो पाना है नहीं,.खोना नदिया धार।।

प्रेम की धुरी कृष्ण तो ,    राधा है विस्तार।
कान्हा सृष्टि है अगर,.... राधा है आधार।।

प्रेम दरस जो चाहिए, ..जाओ यमुना पार ।
यमुना तट घट-घट कहे, राधा माधव प्यार।।

प्रेम समझना हो अगर, भज लो राधेश्याम।
वृंदावन कण-कण जपे,     राधे-राधे नाम।।

कवि पंकज प्रियम 

Sunday, November 5, 2023

975.छठ गीत

कार्तिक मास छठी के बरतिया, महिमा अगम अपार।
कर जोड़ विनती करूँ छठी मैया, मैया कर बेड़ा पार। 

अंतरा1
जोड़े-जोड़े नारियल-नेमुआ, ठेकुआ-फल-पकवान। 
धूप-दीप दौरा-सुप साजे, लेकर आये फूल पान।।
बांस के बहंगिया सजाये, अइली मैया तोरे द्वार।
कर जोड़ विनती करूँ छठी मैया, मैया कर बेड़ा पार।

अंतरा 2
उगहो आदित्य देव जल्दी, जल्दी दरस दिखाय।
घर-बार पूत परिवार, होइह सबपर सहाय। -2
भास्कर भुवन सुरूज देव, तोहरे कृपा से संसार।
कर जोड़ विनती करूँ छठी मैया, मैया कर बेड़ा पार। 
सुरूज कर बेड़ा पार। 

कार्तिक मास छठी के बरतिया, महिमा अगम अपार।
कर जोड़ विनती करूँ छठी मैया, मैया कर बेड़ा पार। 












l

Sunday, October 29, 2023

971.प्रेम नगरी

ताजमहल को मानते, सभी प्रेम आधार।
लेकिन सब नहीं जानते, क्या है सच्चा प्यार।।

मूरख मानुष मानते, जिसको प्रेम प्रतीक।
लहू सना एक मक़बरा, कैसे इश्क़ अतीक?
शाहजहाँ का प्रेम तो, झूठ खड़ा बाज़ार। 
एक नहीं मुमताज़ थी, बेगम कई हज़ार। 
उसके पहले बाद फिर, 

Wednesday, October 18, 2023

970. मैया

सुन ले मैया मेरी पुकार 

तू है जग की तारणहार 

अपनी शरण में ले -ले माँ 

कर दे मेरा बेडा पार, 

ओ माँ ... तू है जग की तारणहार.


शुम्भ-निशुम्भ को मारे तू 

चंड-मुंड संहारे तू 

तू है मैया जगदम्बा 

तेरी महिमा अपरम्पार 

ओ माँ... तू है जग की तारणहार.


सारे जग की दुलारी है 

बम भोले की प्यारी है 

तुझसे ही है सारा जहाँ 

करती है तू सब को प्यार 

ओ माँ तू है जग की तारणहार 


तू तो दुर्गा काली है 

तेरी कृपा निराली है 

भक्तों को सब देती माँ

दुष्टों को करे संहार 

ओ माँ तू है जग की तारणहार . 


पंकज प्रियं 

969. शेरावाली

आये तेरी शरण, कर थोडा रहम 

सुनले शेरावाली, तू है जोतावाली. 

कर दे तू सबको निहाल. ओ मेहरावाली 


तेरे जग में यहाँ, बच्चे-बूढ़े सभी 

भूखे-नंगे हैं माँ. सूखी फटती जमीं 

है दुनिया बड़ी बेहाल, ओ शेरावाली 


महिषासुर को मारा, सारे जग को तारा 

तुझमे शक्ति अगम, तू है दुनिया धरम 

राम का भी किया बेडा पार. ओ जोतावाली 


आया जो भी शरण, किया सबका करम 

रोता -रोता आया. हँसता -गाता गया .

करती है सब तू कमाल. ओ शेरावाली . 

पंकज प्रियम 

Thursday, October 12, 2023

968. साहित्योदय गीत

साहित्योदय ...साहित्योदय, साहित्योदय--साहित्योदय 

साहित्य, कला और संस्कृति का संसार है

साहित्योदय मंच हमारा लगता एक परिवार है. 

साहित्योदय ...साहित्योदय, साहित्योदय--साहित्योदय 


साहित्य सृजन और मंचन का आधार है 

माटी को मिल जाता सही आकार है .

नई कलम हो या फिर कोई स्थापित हस्ताक्षर 

खिल उठती कलियाँ आकर, बोल पड़े सब पत्थर. 

गंगा की पावन सी धारा, यमुना कल-कल धार है.

साहित्योदय मंच हमारा लगता एक परिवार है. 


भारत माता की चरणों में, करता जो नित वन्दन

विश्वपटल के भाल दमकता, बनके सुगन्धित चन्दन

देशप्रेम की धारा अविरल, बहती जिसके अंदर,

प्रेम का सागर उमड़े हरपल, है जो लफ्ज़ समंदर 

संकल्प हिमालय सा लेकर, करता जग हुँकार है. 

 साहित्योदय मंच हमारा लगता एक परिवार है. 


उम्मीदों का दीप जलाकर, जग को रोशन कर देता.

नफ़रत के अल्फाज़ मिटाकर, शब्द प्रियम भर देता. 

भारती -भारत को सादर कर, पंकज दल का अर्पण.

संग्राम विचारों का होता पर करते दिल का समर्पण .

अंतर्नाद सुनो सब दिल से, करता तुमसे प्यार है. 

साहित्योदय मंच हमारा लगता एक परिवार है. 


काव्य का सागर ज्वार उठाकर, अश्क रुदाली पीता.

शब्द मुसाफिर बनकर जिसने काल कोरोना जीता. 

जन रामायण ग्रन्थ रचाकर, रामकृपा जो पाता. 

लफ्ज़ मुसाफिर बनकर ये तो माटी को महकाता .

काव्य की धारा कल-कल बहती, अनुशीलन आधार है 

साहित्योदय मंच हमारा लगता एक परिवार है. 

साहित्योदय ...साहित्योदय, साहित्योदय--साहित्योदय 



पंकज प्रियम


Thursday, October 5, 2023

९६७. बदल गया जीवन रे

 बदल गया जीवन रे...बदल गया जीवन रे।

स्वच्छ भारत मिशन से..बदल गया जीवन रे।

सुन रे भैया, सुन गे बहिन, आज सबै मिली कहिन।

स्वच्छ हुआ तन-मन रे, बदल गया जीवन रे।

1


गंगा किनारे हर गाँव, नदी-नाला-गली हर ठाँव।

साहिबगंज सुंदर लगे रे, जैसे महावर रंगा पाँव।

स्वच्छ हुआ घर बाहर, स्वच्छ हुआ आँगन रे।

स्वच्छ भारत मिशन से, बदल गया जीवन रे।

2

उधवा का कार्तिक-भानू गांव, जाने का साधन एक नाव।

आया नमामि गङ्गे तो, मिल गया सुख चैन छांव।

घर-घर में जला गैस चूल्हा, जब से मिला गोबर्धन रे,

स्वच्छ भारत मिशन से, बदल गया जीवन रे।

बदल गया जीवन रे, बदल गया जीवन रे।।

3

घर-घर शौचालय बना तो बढ़ गया मान-सम्मान।

नाडेप और सोख्ता गड्ढा से, कचरे का हुआ निपटान।

भष्मक में पैड जलाकर, माहवारी प्रबंधन रे।

स्वच्छ भारत मिशन से, बदल गया जीवन रे।

बदल गया जीवन रे, बदल गया जीवन रे।


पंकज प्रियम

Sunday, September 3, 2023

966.वेद और विज्ञान 7

वेद और विज्ञान
चन्द्रयान के चाँद पर पहुँचने के बाद अतिबुद्धिजीवी वर्ग यह लिखने लगा है कि विज्ञान के बल पर हम चाँद पर पहुँचे, वेद-पुराणों का कोई महत्व नहीं। धर्म को पाखण्ड बताने वाले ऐसे लोगों ने न तो वेद को पढा है और न धर्म को जाना है। चन्द्रयान हो या सूर्ययान, हरेक नाम वेदों में वर्णित है। सूर्य हो चन्द्रमा नवग्रहों की तो हम सदियों से पूजा करते आ रहे हैं। पूरा ज्योतिष विज्ञान और पंचांग इन्ही ग्रह-नक्षत्रों पर आधारित है। हकीकत तो ये है कि विज्ञान ही वेदों पर आधारित है। आज जिन विषयों को विज्ञान खोज रहा है उसके विषय में बहुत पहले ही वेदों में लिखा जा चुका है। किसी भो वेद या पुराण को ध्यान से पढ़कर देखिये, आज का सम्पूर्ण विज्ञान भी उसके सामने अधूरा सा लगता है। कुछ लोग हमारी बात पर यकीन नहीं करेंगे कहेंगे कि आपने विज्ञान को पढ़ा है क्या? तो उन चपड़गंजुओं को ज्ञात हो कि मेरा बचपन ही वेद, पुराण, साहित्य और विज्ञान के बीच में ही बीता है। घर में 18 पुराण, चारो वेद, रामायण, महाभारत समेत सैकड़ों किताबें है। बचपन मे भले ही उनका मर्म नहीं समझा लेकिन कहानियों के रूप में ही उन्हें पढ़ने का सौभाग्य मिल गया। घर में कर्मकांड, ज्योतिष, साहित्य और संस्कृत के बड़े विद्वान होने के बावजूद मैंने विज्ञान चुना और प्राणिविज्ञान में प्रतिष्ठा हासिल करते हुए रसायन और भौतिकी भी खूब पढ़ी। इसी अध्ययन में मैंने पाया कि यह सब बातें तो पुराणों में लिखी है। जूलॉजी में जो एवोल्यूशन और रिप्रोडक्टिव सिस्टम पढ़ा वह सबकुछ तो गरुड़ पुराण में स्पष्ट वर्णित है। जिस दंड प्रणाली पर न्याय व्यवस्था लागू है वह भी गरुड़ पुराण में पहले से लिखा हुआ है। हमारे सनातन धर्म में जितने भी पर्व/त्यौहार, पूजा पाठ के नियम हैं हर किसी के पीछे आज का विज्ञान समाहित है। आज विज्ञान इस बात को मानता है को यज्ञ हवन के धुएं में इतनी ताकत होती है कि वातावरण से तमाम जीवाणुओं को नष्ट कर स्वच्छ कर सकता है। प्रसाद ग्रहण करने से पूर्व आरती लेने की परंपरा है उसके पीछे भी वैज्ञानिक तथ्य है कि जब हम आरती लेते हैं तो कपूर की लौ सेनिटाइजर का काम करती है। हाथ के तमाम कीटाणु-विषाणु नष्ट हो जाते हैं। इसी तरह चरणामृत तांबे के बर्तन में रखी जाती है और सबको पता है की तांबे के लोटे में रखा पानी पीने से कई बीमारियों का नाश होता है। पुराने जमाने ल ताँबे का लोटा आज कॉपर बॉटल में जगह ले चुका है। प्रसाद और पंचामृत में तुलसीदल डाला जाता है। तुलसी के बारे किसी को बताने की जरूरत नहीं । जहाँ तुलसी का पौधा होता है वहाँ का वातारवण स्वच्छ होता है। तुलसी औषधीय गुणों के साथ ही इंडिकेटर का भी काम करती है। अगर प्रसाद में कोई जहरीला पदार्थ होगा तो तुलसी का पत्ता सूख जाएगा। अन्यथा गर्म खीर में भी तुलसी का पत्ता हरा ही रहता है कभी नहीं सूखता। हमारे धर्मग्रँथों में सात्विक आहार और सप्ताह में एक दिन उपवास का नियम है। विज्ञान भी मानता है कि सात्विक आहार और उपवास हमारे शरीर के लिए जरूरी है। आप नवरात्र में शक्ति की उपासना के लिए 9 दिनों तक सात्विक आहार लेते हैं। उन 9 दिनों में आपके अंदर एक अद्भुत शक्ति का संचार होता है। विज्ञान ने इस बात को माना है कि संख की ध्वनि से आसपास का वातावरण स्वच्छ होता है। शंखनाद से हमारे शरीर मे असीम शक्ति संचार होता है। इसी तरह मंदिरों में बड़े-बड़े घण्टे लगे होते हैं जिसे बजाने के बाद सर से पैर तक एक ऊर्जा हमारे भीतर प्रवेश करती है जो मन को शांत करने के सहायक होती है। सिर्फ सूर्य नमस्कार से सम्पूर्ण योग हो जाता है। कोरोना के दौरान लोगों ने सीखा की बाहर से आने के बाद हाथ-पैर धोकर सेनिटाइज होकर घर में आना चाहिए जिसे हमारे पूर्वज बहुत पहले से करते आ रहे थे। घर के बाहर ही हाथ-पैर धोने की व्यवस्था होती थी। किसी की।मृत्यु के बाद 13 दिनों का अंतिम संस्कार होता है जिसे कोरोना में लोगों ने इसोलेशन के रूप में जाना। जब किसी का अंतिम संस्कार कर लौटते हैं तो तमाम तरह के विषाणु/कीटाणु का प्रवेश हो जाता है ख़ासकर आग देने वाले जातक पर। इसीलिए उसे 13 दिनों तक अलग इसोलेशन में रखा जाता है। जब महिलाएं रजस्वला होती है तो उसके अंदर का शरीर हार्मोनल स्राव के कारण कमजोर हो जाता है। इसमें संक्रमण का खतरा होता है। साथ ही उस समय औरतों को अधिक आराम की जरूरत पड़ती है इसलिए पीरियड्स के दौरान उन्हें इसोलेशन में रखने का नियम बनाया गया था। इसी तरह अन्य बीमारी या महामारी में मरीजों को सबसे अलग रखा जाता था ताकि संक्रमण कम से कम हो। लेकिन हम उसे पिछड़ा, टैबू, पाखण्ड कचकर मजाक उड़ाते रहे। जब कोरोना आया तो सबने वही सब किया। दीवाली में घर की साफ-सफाई करने के नियम के पीछे भी कारण है कि बरसात में हमारे घर और आसपास कीट-पतंग और कीटाणुओं का बसेरा हो जाता है जिसे साफ-सफाई दीवारों की पुताई से खत्म किया जाता है। दीवाली की रात तेल के दिये जलाने से कीटाणुओं का नाश होता है। हमारे सनातन धर्म में हर पेड़-पौधे, नदी-तालाब, जीव-जंतु, धरा-गगन, सूर्यादि नवग्रहों के पूजन के पीछे उनके संरक्षण का पुनीत भाव बसा हुआ है। छठ, तीज, जितिया, दीवाली, दशहरा हर पर्व एक विशेष महत्व सन्देश को लेकर आता है। पीपल, नीम, बरगद, आंवला जैसे महत्वपूर्ण वृक्षों को धर्म के साथ जोड़कर संरक्षण किया गया। छठ में नदी, तालाब, गली, सड़क सबको स्वच्छ रखने की परम्परा शुरू हुई। आज विज्ञान जो भी खोज कर पा रहा है उसकी जड़ में वेद और पुराण ही है।
कवि पंकज प्रियम

Friday, September 1, 2023

965.स्वच्छता गीत

आओ मिलकर साफ करें सब, अपना घर-आंगन।
घर-घर से ही स्वच्छ बनेगा, भारत देश पावन।

अंतरा 1
जहाँ-तहाँ न कूड़ा फेंको, न गंदा जल फैलाओ।
गीला-सूखा अलग करो और कचरे को निपटाओ।
प्लास्टिक से अब नाता तोड़ो, थैले से दिल जोड़ो।
भष्मक में ही पैड जलाओ, सोच पुरातन छोड़ो।।
माहवारी है ऋतु सृजन का, जैसे भादो सावन।
घर-घर से ही स्वच्छ बनेगा, भारत देश पावन।

अंतरा 2
बच्चे-बूढ़े नर-नारी सब, स्वच्छ आदत अपनायें।
शौचालय उपयोग करें सब, नहीं खुले में जायें।
सैप्टिक टँकी नहीं बनायें, ट्विन पीट अपनायें।
घर-बाहर को स्वच्छ करें और सोना खाद बनायें।
गोबरधन का लाभ उठाकर, पाएं खाद जलावन।
घर-घर से ही स्वच्छ बनेगा, भारत देश पावन।

आओ मिलकर साफ करें सब, अपना घर-आंगन।
घर-घर से ही स्वच्छ बनेगा, भारत देश पावन।
©पंकज प्रियम
01.09.2023

Sunday, August 20, 2023

964.राधे राधे कृष्णायण

राधे-राधे कृष्णायण, ....राधे-राधे कृष्णायण।
राधे-राधे कृष्णायण, ....राधे-राधे कृष्णायण।।
गोकुल बोले,  मथुरा बोले,... ..बोले वृंदावन।
राधे-राधे कृष्णायण, ....राधे-राधे कृष्णायण।।

नंद दुलारे कान्हा प्यारे...यशोदा आँख के तारे।
ग्वाल बाल संग गैया चराये, माखन में मन हारे।
यमुना तट पर बंशी बजाये, नाचे गोपियां सारी।
कृष्ण-कन्हैया रास रचाये,.... झूमे राधा प्यारी।
झूम-झूम के नाचे शंकर, नाचे ब्रज कण-कण
राधे-राधे कृष्णायण,.... राधे-राधे कृष्णायण।।

जन्म से कितने कष्ट सहे पर, किस्मत पे न रोये।
कर्म के पथ पर चलते हरदम, राह कभी न सोये।
प्रेम का पाठ पढ़ाया सबको, गीता ज्ञान सिखाया।
धर्म स्थापित करने को.... महाभारत युद्ध रचाया।
कुरुक्षेत्र का कण-कण बोले, बोले मन क्षण-क्षण।
राधे-राधे कृष्णायण, ........राधे राधे कृष्णायण।।

पूतना का संहार किया और कंस को जिसने मारा।
पांचाली की लाज बचायी, हर अबला को तारा।।
मीरा के हैं गिरधर नागर, ... सखा सुदामा श्याम।
बांकेबिहारी मुरलीमनोहर, ...जप लो राधेश्याम।।
कृष्ण के धुन पर सृष्टि डोले, डोले यह तन-मन।
राधे राधे कृष्णायण..... राधे राधे कृष्णायण।।
पंकज प्रियम

Sunday, August 13, 2023

963. भारत की पुकार

भारत की पुकार

जहाँ-जहाँ पे होगी खुदाई, वहीं पे मन्दिर निकलेगा।
मुगलों ने कुकर्म किया जो, राज वो सारा खोलेगा।।

गौरी, गजनी और बाबर ने जमकर भारत लूटा था,
आतंकी औरंगजेब के छल से अपना मन्दिर टूटा था।
जाग उठे हैं महाकाल अब, डम-डम डमरू बोलेगा।
मुगलों ने कुकर्म किया जो, राज वो सारा खोलेगा।।

बाबरी टूटा सजी अयोध्या, बन गया मन्दिर राम का,
काशी-मथुरा दिल्ली बाकी, बाकी घर घनश्याम का।
काले पन्ने फट जाएंगे, इतिहास यहाँ फिर बदलेगा।
मुगलों ने कुकर्म किया जो, राज वो सारे खोलेगा।।

युगों-युगों से करता प्रतीक्षा, नंदी बैठा अविचल है।
बाबा भोलेनाथ का दर्शन, मन में इच्छा प्रतिपल है।
ज्ञान का वापी निर्मल होगा, खुशी से नंदी डोलेगा,
मुगलों ने कुकर्म किया जो, राज वो सारा खोलेगा।।

स्वर्णिम भारत की गर्दन पे, चली मुगलिया तलवारें,
तुष्टीकरण की राजनीति में, सिसक रही थी दीवारें।
रक्त बहाया था पुरखो ने, खून नया अब खौलेगा, 
मुगलों ने कुकर्म किया जो, राज वो सारा खोलेगा।।

जाग-जाग हे भारतवंशी, जाग उठे अब विश्वनाथ,
छोड़ के मुरली कान्हा तुम भी, उठा सुदर्शन अपने हाथ।
यमुना दूषित करने वाले, कालिया का फन कुचलेगा।।
मुगलों ने कुकर्म किया जो, राज वो सारा खोलेगा।।

गंगा जमुनी करनेवालों, अब वक्त तुम्हारा आया है,
करो सत्य स्वीकार यही कि मन्दिर किसने ढाया है।
भाईचारा भाव दिखा कब, दाग वो सारे धोएगा?
मुगलों ने कुकर्म किया जो, राज वो सारा खोलेगा।।

जहाँ-जहाँ पे होगी खुदाई, वहीं पे मन्दिर निकलेगा।
मुगलों ने कुकर्म किया जो, राज वो सारा खोलेगा।।

कवि पंकज प्रियम

Friday, August 11, 2023

962.भारत को रोते देखा है

कुछ देखा है

फैशन के नवबिस्तर में अब हया-शर्म को सोते देखा है।
नए युग की अपसंस्कृतियों से भारत को रोते देखा है।

परपुरुष स्पर्श पर लंका जलते
चीरहरण पर महाभारत होते देखा है।
दुर्योधन की जंघा टूटते और 
दुःशासन लहू से सर धोते देखा है। 

हर नारी का सम्मान है साड़ी
औरत का अभिमान है साड़ी
नए युग का नया जमाना,
गैरों से अब क्या शर्माना?
जब से हुई आधुनिक नारी,
परपुरुष ही पहनाते साड़ी। 

काजल, मेंहदी, सोलह सिंगार,
गैर मर्दो से ही करवाती नार।
अतिआधुनिकता के चक्कर में
खुद से खुद अस्मत खोते देखा है।
जिमट्रेनर, टैटू और पार्लर में
गैरों के आगे खुद नँगा होते देखा है। 

आज भी पूजा अनुष्ठानों में
यज्ञ हवन संस्कारों में
किसी औरत को टीका
कभी पण्डित नहीं लगाते हैं।
लेकिन देखो नया जमाना
खुद घर की इज्जत को 
अब गैरों के हाथ थमाते हैं।

देखो-देखो-देखो
घर-घर लुटती अस्मत देखो
रील पे अधनंगी औरत देखो
दंगाई और भीड़ के हाथों
होती नंगी किस्मत देखो।

विकास को अपने कांधे संस्कृति का शव ढोते देखा है।
फैशन के नवबिस्तर में अब हया-शर्म को सोते देखा है।
नए युग की अपसंस्कृतियों से भारत को रोते देखा है।
कवि पंकज प्रियम
11.08.2023

Wednesday, August 9, 2023

961.मेरा प्यारा वतन

मेरा प्यारा वतन

सारे जग से सुंदर अपना, .........भारत देश रतन।
मेरा प्यारा वतन, ...................मेरा प्यारा वतन।

उत्तर खड़ा हिमायल प्रहरी, ...दक्षिण गहरा सागर।
पूरब में अरुणाचल आभा, पश्चिम गुजराती गौहर।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक, खुशबू बिखेरे चमन।
मेरा प्यारा वतन......................मेरा प्यारा वतन।

धानी चुनर ओढ़ी धरती, ......आँचल यमुना- गंगा।
हिन्द महासागर पांव पखारे, ....शोभे भाल तिरंगा।
सीमा पर शूरवीर खड़े हैं......... सर पे बांध कफ़न।
मेरा प्यारा वतन,.....................मेरा प्यारा वतन।

राम कृष्ण की पावन भूमि, .......महावीर तथागत। 
सत्य अहिंसा पाठ पढ़ाता, .......विश्वगुरु है भारत।
वीरों की इस धरती को............करता विश्व नमन।
मेरा प्यारा वतन......................मेरा प्यारा वतन।

भाँति-भाँति लोग यहाँ के........भिन्न-भिन्न है भाषा।
अनेकता में एकता बल है.......भारत की परिभाषा।
बाल न बांका कर पाया कोई..कर के लाख जतन।।
मेरा प्यारा वतन......................मेरा प्यारा वतन।

वसुधैव कुटुंब की नीति,...........रखते सबसे प्रीति।
दुश्मन को भी प्रेम सिखाना...अपनी अलग है रीति।
रंग सुनहरी धरती न्यारी,......... नीला सारा गगन।
मेरा प्यारा वतन......................मेरा प्यारा वतन।

सारे जग से सुंदर अपना, .........भारत देश रतन।
मेरा प्यारा वतन, ...................मेरा प्यारा वतन।

पंकज प्रियम

Tuesday, July 11, 2023

960. हर हर महादेव

हर हर महादेव
हर हर महादेव-हर हर महादेव
हर हर महादेव-हर हर महादेव

सावन मास महीना पावन, चलो चलें शिवधाम,
बाबा भोलेनाथ बनाये,....... बिगड़े सारे काम।
हर हर महादेव- हर हर महादेव

अंतरा-1
बैद्यनाथ के प्रांगण में...........पार्वती के आँगन,
चल कांवरिया जल चढ़ाएं, मिलकर माह सावन।
भारत भूमि झारखण्ड, .........नगरी बाबाधाम।
बाबा भोलेनाथ बनाये--/
हर हर महादेव-2

अंतरा 2
गंगाजल कांवर में उठाकर, चलो चलें दिनरात,
हर-हर गङ्गे साथ चले तो, डरने की क्या बात?
हर लेंगे हरि पीड़ा सारी, भजन करे खुद राम।
बाबा भोलेनाथ बनाये-/

अंतरा 3
बोलबम का नारा बोल, ..... कानों में रस घोल,
पाप किया जो जीवन भर,..सारी गठरी खोल।
मिट जाएंगे पाप सभी,....... लेकर गंगा नाम।
बाबा भोलेनाथ...../
हर हर महादेव-2

अंतरा 4
कामना ज्योतिर्लिंग ये, सती हृदय का वास,
पूर्ण मनोरथ होते जो,   आये  लेकर आस।
खाली झोली भर जाये, जो भजन करे निष्काम।
बाबा भोलेनाथ बनाये../

अंतरा 5
बैद्यनाथ का पूजन कर, चलना बासुकीनाथ,
भक्तों संग दरबार लगाये, मिलेंगे भोलेनाथ।
बिन दर्शन के बासुकी बाबा, मिले कहाँ विश्राम?
बाबा भोलेनाथ बनाए, बिगड़े सारे काम।

अंतरा 6
बम-बम भोले की चरणों मे, बसा सकल संसार।
लेकर भाव प्रियम जो आता, करते बेड़ा पार। 
अपनी पीड़ा लेकर जो भी, आये बाबाधाम।
बाबा भोलेनाथ बनाये, बिगड़े सारे काम।

हर हर महादेव-2
हर हर महादेव-2



©पंकज प्रियम

Monday, June 26, 2023

957.सुन लो धरा तुम

ये आसमां क्या कह रहा है, सुन लो धरा तुम।
बरसात की बूंदों को जरा, चुन लो धरा तुम। 
जो बून्द गिरे उसको फ़क़त बून्द न बूझो-
ये बीज मुहब्बत के गिरे, बुन लो धरा तुम।।
कवि पंकज प्रियम

Monday, June 19, 2023

956. आदिपुरुष

लेखक का काम बिगड़ी भाषा को सुधारना है न कि बिगड़ी बोली पर नया साहित्य सृजन करना

आदिपुरुष को लेकर देशभर में बवाल मचा हुआ है। फ़िल्म में कलाकारों के चयन से लेकर उनके गेटअप और संवाद पर सबको घोर आपत्ति है। सृजनात्मक स्वतंत्रता के नामपर यहाँ तक तो छूट ली जा सकती है लेकिन जो ध्रुव तथ्य हैं उन्हें ही बदल देना कहाँ तक सही है? जैसे की भगवान श्री राम की आँखों के समक्ष सीता हरण, जबकि जग विख्यात है कि राम हिरण रूपी मारीच का वध करने गए थे और लक्ष्मण को सीता ने उनकी सहायता हेतु भेजा था। अगर रावण राम के समक्ष सीताहरण करने का सामर्थ्य रखता तो फिर मारीच का स्वर्ण मृग बनना और रावण को खुद साधु वेश धरने की क्या जरूरत थी। जो रावण लक्ष्मण रेखा पार कर न सका वह राम की आँखों के समक्ष सीता हरण कर सकता था? और फिर राम क्या रोते-रोते सीता का हरण होते देखते? इसी तरह संजीवनी बूटी के विषय में भी कुछ अलग ही तथ्य दिए गए हैं। इन सवालों पर Manoj Muntashir  जी कहते हैं कि ये अलग तरह की रामायण है। उन्होंने अपने बयान में कहा है कि उन्होंने संवाद आजकल की भाषा में लिखा है। अगर आज की यूथ गलत भाषा बोलेगी तो उसे सुधारना क्या हम कलमकारों की जिम्मवारी नहीं बनती? यूथ का भाषा बिगड़ी है तो बॉलीवुड संवादों के कारण ही। अगर हम अपने बच्चों को बढ़िया सीरियल या फिल्में दिखाते हैं तो उनकी भाषा भी परिष्कृत हो जाती है। #कृष्णायण को लेकर पिछले 6 माह से मैं कृष्ण पर बनी फिल्में और सीरियल देख रहा हूँ तो मेरी बेटियों का भी मन उसमे लग गया। पिछले  6 माह में मेरे बच्चों ने इतनी शुद्ध हिंदी सीख ली है जितना कि 6 साल के स्कूल की पढ़ाई में नहीं। राधा कृष्ण सिरियल के अंत में दिखाए गए उपदेशों को अमल में लाना शुरू कर दिया है। व्यापक परिवर्तन देखा है मैंने अपने बच्चों में जो पहले वीडियो गेम देखकर चिड़चिड़े हो रहे थे। फ़िल्म और धारावाहिक में संवाद काफी महत्वपूर्ण होते हैं जो बर्षो तक याद रहते हैं। बच्चों को रामायण, महाभारत, श्रीकृष्ण बगैरह दिखाना चाहिए। इससे न केवल उसकी भाषा शुद्ध होती है बल्कि संस्कार भी बढ़ते हैं। आदिपुरुष में भले अन्य संवाद अच्छे हैं लेकिन जिस हनुमान से सभी हृदय से जुड़े हैं उनके मुख से बम्बइया टपोरी वाली बोली तो कतई पचने वाली नहीं है। बच्चे अगर हनुमान के मुख से भी इस तरह की बोली सुनेंगे तो वे और बिगड़ेंगे। रही बात गेटअप, लोकेशन और फिल्मांकन की तो कोई भी किरदार जँच नहीं रहा है। न राम, न सीता, न रावण न हनुमान। राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे और सीता जगत जननी स्वरूपा हैं। इस फ़िल्म में न तो राम की वेशभूषा सही है और न ही माँ सीता की। रावण तो बिल्कुन किसी मुगलिया आक्रांता की क्षवि में हैं जबकि रामायण के मुताबिक लंकेश काफी आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था। ज्ञान, रूप और शक्ति का स्वामी था। बजरंगबली को भी अजीब दाढ़ी में मुगलिया रूप दे दिया है। बाकी किरदारों का भी गेटअप बहियात लग रहा है।
कवि पंकज प्रियम

Sunday, June 18, 2023

955.राम नाम

प्रभु राम मर्यादा पुरुषोत्तम, सीता स्वयं पुनिता है।
रामकथा प्रासंगिक हर युग, हर संवाद ही गीता है।
आदिपुरुष में रामायण का चीर हरण करने वालों-
भारतभूमि का तो कण-कण, राम नाम में जीता है।।
पंकज प्रियम

Wednesday, May 3, 2023

954.सौदागर

सौदागर
करे सौदा हमेशा जो,  उसे तुम जान सौदागर,
नफे की बात ही करता, नहीं नुकसान सौदागर।
करे सौदा अभी कैसे, यहाँ हर शख्स अपनों से-
अभी हर शख्स की देखो, बनी पहचान सौदागर।।
©पंकज प्रियम

953.बस काम का है टेंशन

बस काम का है टेंशन

हर रोज ज़ूम मीटिंग और दर्जनों में लेटर,
इतना रोज प्रेशर! कि बढ़ रहा ब्लड प्रेशर!

न सैलरी न साधन, बस काम का  है टेंशन,
बिन फंड के ही टारगेट, पाने का है अटेंशन।।

ऑफिस का सारा टेंशन, घर ले के आना पड़ता,
रोज घर में किचकिच, रूखा ही खाना पड़ता।

न नौकरी है निश्चित, न वक्त है सुनिश्चित।
मिलती न वाहवाही, पर दण्ड मिलना निश्चित। 

हर रोज खुद को साबित, करने को दें परीक्षा,
उसमें भी पास करने, न होती उनकी इच्छा।

लगता है जैसे बंधुआ, सब हो गए हैं इनके।
है नाचना ही सबको, इशारों पे बस तो इनके। 

बस खैनी ताल ठोके, बाबू जो हैं सरकारी,
सबको बस वो समझे, कद्दू का है तरकारी।

बस थांसते ही जाता, जबतक कि गल न जाएं।
पेरना है तबतक, दम जबतक निकल न जाये।

बस लक्ष्य पूरी करने, सारी उमर  लुटा दी,
कुछ आस बेहतरी में, जवानी भी है मिटा दी।

पर भाग्य है अधर में, न देगा कोई पेंशन।
बस काम का है टेंशन, बस काम का है टेंशन।।

© पंकज प्रियम

सभी ईमानदार पत्रकारों, प्राइवेट और अनुबंध नौकरी करने वालों को समर्पित

Monday, May 1, 2023

952.मजदूर

माना कि वो वक्त के हाथों मजबूर है।
लेकिन हकीकत में यहाँ सब मजदूर हैं। 

मजदूर
लड़कपन भूख में खोता, जवानी पेटभर ढोता।
बहाकर रक्त खेतों में, पसीने की फसल बोता।
किया जो वक्त ने उसको, यहाँ मजबूर है इतना-
उदर की आग में जलकर, सदा मजदूर है सोता।। 

सदा परिवार की ख़ातिर, परिश्रम जो कड़ी करते।
जलाकर देह अग्नि में, सभी का पेट वो भरते।
खुली आँखों सजाते हैं यहाँ वो ख़्वाब तो लेकिन-
सताती है उदर की आग तब मजदूर वो बनते।

©पंकज प्रियम

श्रमेव जयते
कवि पंकज प्रियम