Friday, April 30, 2021

917. अपनी जान

अपनी जान
छोड़ दो चिंता दुनिया जहान,
बचा लो केवल अपनी जान।

गर करना है उपकार कोई,
बस करना तुम उपचार यही।
बच जाएंगे सबके प्राण,
बचा लो केवल अपनी जान।

मास्क पहनकर घर में रहो,
कष्ट ये कुछ दिन और सहो।
सब रिश्ते नाते कर अनजान,
बचा लो केवल अपनी जान।

स्वार्थ नहीं निःस्वार्थ है ये,
जीवन का परमार्थ है ये।
ईश्वर का प्रदत्त तू है वरदान,
बचा लो केवल अपनी जान।

मौत के आगे सब लाचार, 
बेबस दिखती अब सरकार।
मत चल बाहर सीना तान,
बचा लो केवल अपनी जान।

जो खुद की जान बचा ले सब,
हालात न मुश्किल होंगे तब। 
मौत से लड़ना तब आसान,
बचा लो केवल अपनी जान।

माना कि सफ़र ये मुश्किल है
पर सामने दिखता मंजिल है।
हर जंग में संग रहे भगवान,
बचा लो केवल अपनी जान।
©पंकज प्रियम
30.4.2021

916. विश्वास

विश्वास
यह वक्त गुजर जाएगा पर,
रह जाएगा इतिहास तुम्हारा।
आपदा के अवसर वालों,
होगा बस उपहास तुम्हारा।।

दवा-हवा को बेच के बेशक,
कर लोगे जमा धनदौलत।
हाय लगेगी लोगों की तो,
समझ ले होगा नाश तुम्हारा।

जेब कफ़न में होती नहीं है,
बोझ धरा भी ढोती नहीं है।
कहाँ रखोगे काली कमाई,
मारेगा खुद संत्रास तुम्हारा।

वक्त अभी है सेवा कर लो,
कर्मो की तुम मेवा भर लो।
देकर साँसे भर दो जीवन
जग में हो प्रकाश तुम्हारा।

खुद के लिए सब मरते रहते,
मौत से हरपल डरते रहते।
औरों के लिए जब जी लोगे,
बढ़ जाएगा विश्वास तुम्हारा।

पेड़ लगाओ हवा मिलेगी,
मुफ्त में सारी दवा मिलेगी।
काटोगे जो पेड़ समझना,
होगा सत्यानाश तुम्हारा।

©पंकज प्रियम

915.वक़्त

घनघोर अँधेरा छाता है,
फिर नया सबेरा लाता है।
मन में तुम विश्वास रखो, 
हर वक्त बुरा टल जाता है।

कल नया सबेरा आएगा,
तमस ये सारा मिटाएगा।
ईश्वर पे विश्वास करो तुम,
ये वक्त बुरा टल जाएगा।

©पंकज प्रियम

Wednesday, April 28, 2021

914.कुदरत का बदला

कुदरत का बदला
पीपल को काटकर कैक्टस लगा लिया,
नीम बरगद उजाड़ गमला सजा लिया। 
गाय की जगह कुत्तों को घर बिठा दिया।
नदी, कुआं, तालाब भरकर सबने अब
पानी और गंगाजल बोतल में भर लिया।
हवा कम पड़ी तो ऑक्सीजन भी तुमने
अरे ओ मूढ़ मानव सिलिंडर में भर लिया। 
चंद मिनट के ऑक्सीजन के लिए अब
हजारों-लाखों देने को तुम तैयार हो। 
लेकिन बताना एक बात सच्ची-सच्ची,
करोड़ों- अरबों खर्च कर के भी तुम 
कुछ पल की साँसे खरीद सकते हो क्या?
पेड़ों को उजाड़ तुमने उगाए कंक्रीट के जंगल,
तुम्ही बताओ कुदरत कैसे करे तुम्हारा मंगल।
साँसों की डोर तो ऊपरवाले के हाथ में
जिसे तुमने अति आधुनिकता में भूला दिया।
पूजा पाठ ध्यान को बताकर ढकोसला,
पब, क्लब, मांस मदिरा से जोड़ा रिश्ता।
बाहर, अस्पताल या श्मशान से घर आने पर
 हाथ पैर धोने की परम्परा का उड़ाते रहे मज़ाक,
हवन, पूजन और व्यायाम का भी उड़ाया मज़ाक।
हाथ जोड़ नमस्कार को कहके पिछड़ा तुमने
हग और चुम्बन से जोड़ा नाता अपना। 
फल-दूध की जगह पेट में भर रहे
पिज्जा बर्गर पास्ता ब्रेड का कचरा।
विकास की अंधी दौड़ में सबकुछ भूल गये
तभी तो कुदरत भी ले रहा तुझसे बदला।
प्रकृति कर रही है आगाह हरवक्त
अब भी वक्त है सुधर जाओ वरना
प्रलय आएगी तो मुझे मत कहना।
©पंकज प्रियम

Friday, April 23, 2021

913.सही गलत

है कौन सही, है कौन गलत?
ये वक्त नहीं अब उलझाने का।
जब उलझा देश हो विपदा में,
है वक्त उसे मिल सुलझाने का।
कवि पंकज प्रियम

912.बजरंगी अंदर है

*जो हार गया मन तो दिखता, अगम अपार समंदर है,*
*दुर्गम दावानल दिखता है, पग-पग खूब बवंडर है।*
*मुश्किल तो हरपल आएंगे, लेकिन समझो ताकत को-*
*जो ठान लिया सीता खोजन, तो बजरंगी अंदर है।*
©पंकज प्रियम
संकटमोचन बजरंगी हनुमान की जय

911.साथी हाथ बढ़ाने का

साथी हाथ बढ़ाने का

है वक्त नहीं अब घबराने का,
मौत से जीवन छीन लाने का।

जीवन की लड़ाई लड़नी होगी,
दुश्मन पे चढ़ाई करनी होगी।
मौत ने दी है चुनौती तो फिर,
समर में सीधे भीड़ जाने का।
है वक्त नहीं/-

जब जंग छिड़ी है साँसों की,
जब ढेर लगी है लाशों की।
जब हार चुकी सिस्टम सारी-
तब खुद विश्वास जगाने का।
है वक्त नहीं-/

घनघोर अँधेरा मिट जाएगा,
फिर सूर्य सबेरा ले आएगा।
मन को मत निराश करो तुम,
बस आख़िरी जोर लगाने का।
है वक्त नहीं-/

माना कि मंजिल पार समंदर,
जाना है लेकिन उसके अंदर।
सीता को बचाना रावण से तो
फिर सागर में सेतु बनाने का।
है वक्त नहीं-/

इस कोरोना से खौफ़ बड़ा है,
सीना ताने यह तभी खड़ा है।
खुद को इससे बचाना है तो,
बस डर को मार भगाने का।
है वक्त-/

माना कि सफ़र ये मुश्किल है,
पर सामने दिखता मंजिल है।
जो पार समंदर करना है तो
फिर साथी हाथ बढ़ाने का।
©पंकज प्रियम
23.04.2021
कवि पंकज प्रियम
#sahityodaysahyog 
#sahityoday

Wednesday, April 21, 2021

910.ग़ज़ल आजकल

ग़ज़ल

चल रही है हवा मौत की आजकल,
बेवजह तू कभी भी न बाहर निकल।

फिर सुबह धूप होगी अभी रात जो,
है अँधेरा मगर तुम नहीं हो विकल।

रात तो ये गुजर जाएगी कल सुबह,
जो गुजर तू गया लौट पाये न कल।

मास्क पहनो अभी हाथ धोते रहो,
जंग ये जीत लेंगे तरीका बदल।

मौत से ज़िंदगी खींच लाये प्रियम,
बस भरोसा रखो वक्त के संग चल।
©पंकज प्रियम

Sunday, April 18, 2021

909.सत्ता की हवस

भीड़ में तुझको बेशक ही,....जयकार सुनाई देता है।
ढेर पड़ी लाशों से मुझको......चीत्कार सुनाई देता है।
कर लोगे फतह तुम बेशक, सत्ता का ये सिंहासन पर-
हवस में तेरी हरदम......... हाहाकार सुनाई देता है।।
कवि पंकज प्रियम

Sunday, April 11, 2021

908. फिर से कोरोना आया है

फिर से कोरोना आया है,
पहले से ज्यादा छाया है।
बच्चे बूढ़े और जवां-
सबका मन घबराया है।। 

भूल चले थे जिसको हम,
लौट के आये सारे गम।।
कौन बचेगा कहना नहीं-
सबपर मौत का साया है।
फिर से -/

सरकार ने सब जो छोड़ा है,
हमने भी नियम को तोड़ा है।
दो ग़ज़ दूरी भूले और-
चेहरे से मास्क हटाया है।
फिर से-/

जनसैलाब चुनावों में
सन्नाटा बस गाँवों में। 
देख सियासत का चेहरा-
सबका मन भरमाया है।
फिर से-/

इतिहास तो साक्षी बनती रही,
लाशों पे सियासत सजती रही। 
वोट की ख़ातिर भीड़ जुटा
सबने खतरा बढ़ाया है। 
फिर से-/

नेता तो चालाक मगर,
नहीं लागे क्यूँ तुझको डर।
रेलम पेलम भीड़ में जा-
काल को घर पे बुलाया है। 
फिर से --/

बचना है तो समझो अभी, 
मौका मिलेगा फिर न कभी।
सबको बचाओ और बचो-
प्रियम संदेशा लाया है।।
©पंकज प्रियम