Tuesday, July 30, 2019

617.शिकायत

शिकायत
हाँ शिकायत है मुझे उनसे
अंतर होता है जिनकी
कथनी और करनी में।
देश में छुपे उन गद्दारों से
जो खाते हैं भारत की
रहते हैं भारत में पर
बात करते पाकिस्तान की।
करते मदद आतंकी को।
हाँ शिकायत है मुझे उनसे
देश के उन बुद्धिमानों से
छद्मवेश सेक्युलर वालों से
जिनका विरोध होता सेलेक्टिव
हाँ शिकायत है मुझे उनसे
तुष्टीकरण करने वालों से
वोटबैंक सियासत करने वालों से
हाँ शिकायत है मुझे उनसे
मानव वेश में छुपे आदमखोरों से
नोंचते, खरोचते जो मासूमों को,
सौदा करते जिस्मों का
बिक जाते जो चंद सिक्कों में
शिकायत है मुझे उनसे
उन दरिंदे माँ और बापों से
जो बेटे की चाहत में कत्ल करते
कोख में अजन्मी औलादों को।
शिकायत है उन औलादों से
जो छोड़ देते हैं तन्हा
अपने बूढ़े माँ-बाप को।
शिकायत है इस सिस्टम से
सड़ी लचर व्यवस्था से
शिकायत है उस न्यायालय से
गरीबों को देती है सिर्फ तारीख़
और खोल देती दरवाजा
आतंकवादी के लिए आधी रातों को।
और शिकायत करूँ मैं कितनी
तारों से भी संख्या ज्यादा,
गहरी सागर के जितनी।
छोड़ो शिकवा और शिकायत
करो बस दिल से मुहब्बत
मिट जाएगी सारी नफ़रत।

©पंकज प्रियम

Sunday, July 28, 2019

616.हसीन लाज़वाब

ग़ज़ल
बहर-1212 1212
खिला हुआ गुलाब तुम,
हसीन लाज़वाब तुम।

खुमारियां बहुत अगर,
शराब बेहिसाब तुम।

नज़र मिली हुआ असर,
बहक रही शबाब तुम।

कटार मारती नज़र,
हसीन एक ख़्वाब तुम।

सवाल क्या करे प्रियम,
सवाल तुम जवाब तुम।

©पंकज प्रियम

Saturday, July 27, 2019

615.धरती-बादल

छुपी आगोश में धरती, मुहब्बत देख बादल का,
बड़ा ही खूबसूरत सा, नजारा देख इस पल का।
समायी है धरा कैसी, जलद की बांह में जाकर-
मनोरम है बड़ा देखो, मिलन वसुधा व बादल का।।
©पंकज प्रियम

Friday, July 26, 2019

614. यमुना का दर्द

यमुना पुकारे

कान्हा तुझको यमुना पुकारे
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

देखो लो कैसा हाल हुआ है,
हाल मेरा बेहाल हुआ है।
शहर का सारा कचरा गिरे
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

नहीं बहती है अविरल धारा,
चढ़ा आवरण कचरा सारा।
साँसे चलती अब धीरे-धीरे,
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

पहले तो मैं बस थी काली
जब से मिली मुझसे नाली,
महकने लगी हूँ मैं तीरे-तीरे,
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

खूब करते थे तुम जलक्रीड़ा
अब तो जल में है बस कीड़ा।
सड़ने लगी हूँ मैं अब धीरे-धीरे,
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

नहीं आती है अब गैया तोरी
छोड़ गयी है अब मैया मोरी।
आँसू बहती है तो नीरे-नीरे,
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

खत्म हुई क्या तेरी माया,
जीर्ण-शीर्ण सी मेरी काया।
मरने लगी हूँ मैं अब धीरे-धीरे
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

आकर बेड़ा पार करो तुम
फिर मेरा उद्धार करो तुम।
मानव से मन अब मेरा हारे,
सब कुछ अब है हाथ तुम्हारे।

कान्हा तुझको यमुना पुकारे
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

©पंकज प्रियम
26जुलाई2019


Thursday, July 25, 2019

613.मक्कार आज़म

आज़म
बड़ा बेशर्म बड़ा घटिया, बड़ा गद्दार है आज़म,
हमेशा ही जहर उगले, बड़ा मक्कार है आज़म।
करे वो बात नफरत की, करे अपमान औरत की-
यही इक काम है इसका, बड़ा बेकार है आज़म।।
©पंकज प्रियम

Wednesday, July 24, 2019

612.ऋषिकेश

गंगा तीरे भोले राजे, मूर्ति नयनाभिराम।
ऋषिकेश की ये पावन भूमि, देवों का है धाम।
कल-कल बहती पावन गंगा, लेकर शिव का नाम।
दृश्य मनोरम मन को भाता, नैनों को आराम।
©पंकज प्रियम

611.विरह वेदना

विरह वेदना
सावन का यह सूखा मौसम, कैसे करूँ शृंगार।
धरती तड़पे नदिया सूखी, बदरा है  उस पार।
बैचेनी में धरती सारी,......अम्बर रहा निहार।
मोर पपीहा गुमसुम बैठे,.. जैसे बिरहन नार।

सावन तो आया है लेकिन, साजन भी उस पार।
कैसे काटूँ रतिया सारी,.......जियरा में अंगार।
धार-धार बरखा के जैसे,......नैना बहे हजार।
बिजुरी चमके रह-रह ऐसे, मारे जिया कटार।
©पंकज प्रियम

Tuesday, July 23, 2019

610. दर्दे दिल

दर्द मुहब्बत
ग़ज़ल
कुछ राज मुहब्बत में छुपाने के लिए हैं,
कुछ राज अकेले में बताने के लिए हैं।

सब कुछ ये जुबाँ कहती कहाँ इश्क़ में
कुछ बात निगाहों से जताने के लिए है।

आवाज़ जमाने की कब सुनी है दिल ने,
अल्फ़ाज़ धड़कनों से सुनाने के लिए है।

ख़ामोश जुबाँ रख, क़त्ल नजरों से करते
क़ातिल वो निग़ाहों में बसाने के लिए है।

दर्द मुहब्बत का सह पाया कौन "प्रियम"
कुछ दर्द निग़ाहों से बहाने के लिए है।
©पंकज प्रियम

609.,सूखा सावन

सूखा सावन

सावन भी है सूखा साजन, जैसे गुजरा आषाढ़।
खेतों में है पपड़ी सूखी, जैसे पसरा सूखाड़।

कहीं-कहीं में सूखी नदिया, कहीं पे आया बाढ़।
सूखे में कोई रोता देखो, कोई डूबा रोये दहाड़।

आसमान से शोले बरसे, धरती आग उगलती है,
बरखा के इस मौसम में भी, धरती भाँप उगलती है।

सावन में हरियाली कैसे, वसुधा बूँद तरसती है,
सूखे खेतों को देख-देख, आँखे कृषक बरसती है।

हरी चूड़ियाँ कैसे खनके, रूठा बैठा साजन है,
मोर-पपीहा कैसे नाचे, सूखा-सूखा सावन है।

ऐ बादल तू कहाँ छुपा, किस देश में जाके बैठा है,
हाहाकार मचा है जग में, तू क्यूँ कर ऐसे ऐंठा है।

ऐ बरखा तू क्यूँ रूठी है, आके जल बरसाओ ना,
सावन की हरियाली दे दो, ऐसे दिल तरसाओ ना।

खेतों में अब पानी भर दो, बूँद-बूँद लहराओ ना,
सावन में जो साजन झूमे, ऐसी घटा गहराओ ना।

दूँगी तुझको लाख दुवाएँ, मेरे आँगन बरसो ना,
मिलेगा तुझको तेरा साजन,ऐसे तू भी तरसो ना।

©पंकज प्रियम
23 जुलाई 2019

Sunday, July 21, 2019

608.,स्वर्ण परी हिमा

स्वर्ण परी
अरे देखो जरा साक्षी, किया जो काम हिमा ने,
बढ़ाया मान भारत का, पिता का नाम हिमा ने।
महज उन्नीस वर्षो में, लिया है पाँच गोल्ड मैडल-
गरीबी है नहीं अड़चन, दिया पैगाम हिमा ने।

मुहब्बत हो अगर दिल में, नहीं अंजाम है मुश्किल,
अगर हो हौसला मन में, नहीं कुछ काम है मुश्किल।
करो जो प्रेम तुम खुद से, सफलता चूम ही लेती-
गँवाना नाम है आसान, कमाना नाम है मुश्किल।।


असम की ढिंग में जन्मी, कहाँ कोई नाम था उसका,
गरीबी में कटा जीवन, बड़ा गुमनाम था उसका।
मगर फिर हौसला भरकर, भरी उड़ान जो उसने-
भरी झोली अभी कुंदन, किया जो काम था उसका।।

पिता गर्वित हुए उसके, बढ़ाया मान माता का,
नहीं बहके कदम उसके, रखा स्वाभिमान माता का।
किया जो प्यार हिमा ने, हुई हर्षित जहाँ सारी-
उठाया नाम बेटी का, बढ़ा अभिमान माता का।।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

607. आस्तीन का सांप आजम


    आज़म
छुपे आस्तीन में जैसा,  विषैला सर्प है आज़म
जहाँ रहता उसे डंसता, दिखाता दर्प है आज़म।
चले जाए जहाँ जाना,   इसे रोका यहाँ किसने-
बड़ा बनता मुसलमा ये, पढ़ा ना हर्फ़ है आजम।
©पंकज प्रियम

Saturday, July 20, 2019

606. कुदरत का प्रतिकार

कोई छेड़े जो कुदरत को, यही प्रतिकार है मिलता,
कहीं पे बाढ़ कहीं सूखा,   कहीं अँगार है मिलता।
मिटाकर सारे वन -उपवन, खड़ा कंक्रीट का जँगल-
धरा को कष्ट जब होता, यही उपहार है मिलता।।
©पंकज प्रियम


605.मज़हब


विधाता छन्द 1222*4
पढो कुरआन या गीता, प्रभु का सार बस दिखता,
नहीं नफऱत सिखाती ये, सभी में प्यार बस दिखता।
कहाँ मज़हब सिखाता है, किसी से बैर करने को-
अमन जिसको नहीं भाता, उसे तकरार बस दिखता।।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड


604.सावन तरसे

अरे आषाढ़ में तरसे,.....अभी सावन कहाँ बरसे
बरसती क्यूँ नहीं बरखा, सभी का मन यहाँ तरसे।
कहीं पे बाढ़ कहीं सूखा, करे क्यूँ खेल तू बरखा-
जरा बरसो अभी ऐसे,.. सभी तनमन यहाँ हरसे।।
©पंकज प्रियम


Monday, July 15, 2019

603. हिंदुस्तान

हिंदुस्तान

मन में गंगा कफ़न तिरंगा, एक यही अरमान है,
मेरी धड़कन हरक्षण धड़के, दिल में हिंदुस्तान है।

आँखों में पलते ख़्वाब बड़े, हौसला सागर के जैसा,
रखते आग हैं सूरज का और चंदा की मुस्कान है।

मन है विश्वास भरा और तन में जोश जवानी का,
वतन की ख़ातिर मरना जीना, वतन हमारी जान है।

हम सृजन के बीज धरा में, उगकर छूते अम्बर को,
मेहनत की हम रोटी खाते, दीन धरम ईमान है।

जाति-धर्म और मज़हब से, ना रिश्ता है नफ़रत से
दिल में रखता भारत प्रियम, सच्चा एक इंसान है।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Saturday, July 13, 2019

602.प्यार कहलाता

करे नीलाम जो इज्ज़त, नहीं व्यवहार वो अच्छा,
तमाशा जो बने चाहत,  नहीं है प्यार वो अच्छा।
बहे माँ-बाप के आँसू, अगर औलाद के कारण-
नहीं औलाद वो अच्छी, नहीं संस्कार वो अच्छा।।

नुमाईश हो अगर दिल की, नहीं वो प्यार कहलाता
करे माँ- बाप को रुसवा, नहीं अधिकार कहलाता।
मुहब्बत नाम है संयम, मुहब्बत त्याग है जीवन-
दिलों को जोड़ देता जो, वही तो प्यार कहलाता।।

करो तुम प्यार जिससे भी, तुम्हें अधिकार है साक्षी,
उछालो ना मुहब्बत तुम,  नहीं यह प्यार है साक्षी।
तुम्हें जन्मा तुम्हें पाला, पिता को खूब दी इज्ज़त-
सरे बाज़ार किया नंगा, अरे धिक्कार है साक्षी।।

सुनो ऐ अंजना कश्यप, करो तुम काम ना ऐसा,
किसी की आँख के आँसू, करो नीलाम ना ऐसा।
नहीं अख़बार ये कहता, नहीं टीवी कभी कहती-
ख़बर की रेस में रिश्ता, करो बदनाम ना ऐसा।

©पंकज प्रियम

Tuesday, July 9, 2019

601.गुजरने से पहले

वक्त गुजरने से पहले

थाम लेना स्वयं को
वक्त गुजरने से पहले
नहीं वक्त रुकता
कभी ना है थमता
ठहरता नहीं है ये
किसी के लिए।
कर्म अच्छे तू करना
साँस थमने से पहले।
सदा साँस चलती नहीं
कभी जिन्दगी के लिए।
ये दौलत ये शोहरत
ये जवानी ये सूरत
नहीं खत्म होगी कभी
ये जरूरत किसी के लिए।
निभाना तू रिश्ते नाते तू सारे
दिलों के डोर से जलने से पहले
सभी संग होंगे अंतिम सफ़र में
मगर तुझको जाना अकेले डगर में
साथ होंगे तुम्हारे, किये कर्म सारे
अच्छे करम से लगोगे किनारे
नहीं संग जाएगा कुछ भी तुम्हारे
रहेगा वही नाम, कमाया जो प्यारे।
करो कुछ तुम ऐसा गुजरने से पहले
सफ़र आखिरी में बहे नीर तेरे लिए।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखण्ड

https://youtu.be/fbxGiJgwZ3I

Monday, July 8, 2019

600.बरसात 2


अम्बर बरसता है।

समन्दर में भरा जल है....मगर हरपल तरसता है,
बुझे है प्यास तब उसकी, अगर बादल बरसता है।
कड़ी जब धूप है पड़ती, गरम होता समंदर भी-
उसी का सोख के आँसू, उसी पे जल बरसता है।।

धरा का देख के आँचल, सभी का दिल तरसता है,
तरसती है धरा जब जब,  तभी बादल बरसता है।
फ़टी छाती दिखाती है,  तड़पती धूप में धरती-
द्रवित अम्बर जरा होता, उसी का जल बरसता है।

©पंकज प्रियम

599.मुहब्बत की तिज़ारत

दौलत और मुहब्ब्त

किसी का दिल नहीं तौलो, कभी धन और दौलत में,
नहीं औकात सिक्कों में.....खरीदे दिल तिजारत में।
नहीं बाज़ार में मिलता, ...नहीं दिल खेत में उगता--
समर्पण बीज जो बोता,.....वही पाता मुहब्बत में।।

तराजू में नहीं तौलो,....किसी मासूम से दिल को,
बड़े निश्छल बड़े कोमल, बड़े माशूक़ से दिल को।
जरा सी चोट क्या लगती, बिखरता काँच के जैसा-
नहीं तोड़ो मुहब्बत में, कभी नाज़ुक से दिल को।।

कभी परखो अगर दिल को, ये दौलत हार जाती है
मुहब्बत जीत जाती है...ये नफ़रत हार जाती है।
दिलों के खेल में अक्सर,  सभी दिल हार जाते हैं-
अगर जो जीतना हो दिल, मुहब्बत हार जाती है।।

नहीं दौलत नहीं शोहरत, न नफ़रत काम आएगी,
सभी जब साथ छोड़ेंगे, ..ये हसरत काम आएगी।
भरा जो प्रेम भावों से...वही दिल जीत पाता है-
बसा लो प्यार तुम दिल में, मुहब्बत काम आएगी।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड





Sunday, July 7, 2019

598. कर नाटक

                    मुक्तक/ कर नाटक

     हुआ नाटक शुरू फिर से, सियासी खेल कर्नाटक,
     लगी फिर रेस कुर्सी की, टूटा जो दिल का फ़ाटक।
     मिलन बेमेल जब होता, कभी रिश्ता कहाँ टिकता-
     सियासी स्वार्थ का नाता, सदा होता बड़ा घातक।।
            ©पंकज प्रियम
           

7 जुलाई 2019

Friday, July 5, 2019

597.मुसाफ़िर

               

                   मुसाफ़िर..अल्फ़ाज़ों का..
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो,
भरा है प्रेम का दरिया,  उसे खामोश बहने दो।
मचल जो दिल गया मेरा, बड़ा तूफ़ान लाएगा-
मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो।।

सिपाही हूँ कलम का मैं, मुझे यह जंग लड़ने दो,
ग़ज़ल कविता कहानी में, मुझे हर ढंग गढ़ने दो।
कलम को छेड़कर के भी, कभी तोड़ी न मर्यादा-
प्रियम हूँ मैं मुहब्बत का, मुझे यह रंग चढ़ने दो।।

        ©पंकज प्रियम


Thursday, July 4, 2019

596.,ख़्वाब

                   ख़्वाब
सुहानी रात है आयी, चलो ख़्वाबों में खो जाएं,
पुरानी याद का बिस्तर, लगा यादों में सो जाएं।
हमारे ख़्वाब तुम आना, तुम्हारे ख़्वाब मैं आऊं-
खयालों की जहाँ में हम, इक दूजे के हो जाएं।।
              ©पंकज प्रियम
               4 जुलाई 2019
                  शुभरात्रि

594.कविता

मुक्तक-कविता

जले जब धूप में पर्वत, तभी सरिता निकलती है,
सजा ले प्रेम का दर्पण, तभी वनिता निकलती है।
किसी में प्यार गहराता,किसी को जख़्म हो जाता-
दिलों में दर्द जो उमड़े, तभी कविता निकलती है।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखण्ड

593.छाँव

मुक्तक
अहमियत पेड़ की देखो,....समूचा गाँव है बैठा,
कड़ी है धूप जो बाहर,...सभी को छाँव दे बैठा।
अगर सब पेड़ काटोगे,....कहाँ से छाँव पाओगे-
कदम की चाह में तुमने, कुल्हाड़ी में पाँव दे बैठा।।

©पंकज प्रियम

595.रथ यात्रा


                                 रथयात्रा
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया, घर से निकले नाथ।
रथ चढ़े मौसीबाड़ी, भाई- बहन के साथ।।

लकड़ी का है रथ बना, डोरी भी है साथ।
सुंदर रथ सब खींचते, चढ़े जगत के नाथ।।

निकली बड़ी रथयात्रा, खींच हजारों हाथ
सबके सर पर हाथ दे, जय जय जगन्नाथ।।

संग में बहिन शुभद्रा, ले भ्राता बलराम।
पहुँच के मंदिर गुंडिचा, प्रभु करते विश्राम।।

मुहूर्त बड़ी शुभ यात्रा, बनते बिगड़े काम।
कर ले जो रथ-यात्रा, पहुंचे प्रभु के धाम।।

©पंकज प्रियम
4.7.2019

Tuesday, July 2, 2019

592.बरसात


शीर्षक-बरसात
मुक्तक माला
विधाता छंद
1222 1222, 1222 1222
1
धरा की देख बैचेनी,.....पवन सौगात ले लाया
तपी थी धूप में धरती,.. गगन बरसात ले आया।
घटा घनघोर है छाई,....लगे पागल हुआ बादल-
सजाकर बूँद बारिश की, चमन बारात ले आया।।
2
तड़पती धूप में धरती,.....परेशां घूमता बादल,
हुई बैचेन वसुधा जब....हमेशा झूमता बादल।
पवन को छेड़ के हरदम, घटा घनघोर कर देता-
गगन से बूँद बरसा कर, धरा को चूमता बादल।।
धरा से हो मिलन उसका, सदा हालात ले आया।
धरा की....।
3
फ़ुहारों ने जमीं चूमी,.... हुई पुलकित धरा सारी,
बहारों को ख़िलाकर के, ..हुई पुष्पित धरा सारी।
खिले हैं बाग वन-उपवन, लगे ज्यूँ गात  में उबटन-
नयन मदिरा लगे दरिया, लगे कल्पित धरा सारी।।

4
उमड़ती देख नदिया ये, पहाड़ों से उतर कर के,
जमीं को नापती सारी, चली कैसे सँवर कर के।
उठा है ज्वार सागर में, उसे खुद में समाने को-
उसे आगोश में लेकर, करेगा प्यार जी भर के।
5
बदन को चूम कर देखो, पवन ने आग लगवाई
विरह की वेदना जागी, पिया की याद है आयी।
पिया परदेश में बैठे, प्रिया का दिल कहाँ समझे-
चले आओ सजन तुम भी,अरे बरसात है आयी।।
6
घटा सावन घनेरी है, .......अँधेरी रात कजरारी
चमक बिजुरी कटारी ने, जिया में घात है मारी।
विरह की आग में जलती, तपन की रात ना ढलती-
कटे कैसे अकेले में,........भरी बरसात ये सारी।।
7
बढ़ा जो खेत में पानी, खिली सूरत किसानों की,
तभी तो झूम के नाची, बुझी हसरत किसानों की।
लिया था कर्ज़ खेतों पे, बड़ा ये बोझ था दिल पे-
हुई बरसात तो देखो, जगी चाहत किसानों की।।
8
फ़टी वसुधा पड़ी सूखी...नयन जज़्बात ले आया,
गिराकर बूँद धरती पर,...जलद सौगात ले आया।
मिलन अम्बर धरा का ये,नया क्या गुल खिलाएगी-
सृजन का बीज बोने का, गगन बरसात ले आया।।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Monday, July 1, 2019

591. अलविदा

अलविदा

अगर दिल तोड़ दूँ तेरा, तभी तुम अलविदा कहना,
मगर दिल तोड़ के मेरा, नहीं तुम अलविदा कहना।

तुम्हारे प्यार की ख़ातिर, भले सौ बार हो मरना,
नहीं बन पाऊँ जो तेरा, नहीं तुम अलविदा कहना।

किया खुद से भी वादा , किया तुझसे भी है वादा,
हमारा सात हो फेरा, नहीं तुम अलविदा कहना।

कदम हर साथ चलने का, किया अपना इरादा है
भले मुश्किल का हो घेरा, नहीं तुम अलविदा कहना।

प्रियम की साँस चलती है, तुम्हारे साँस लेने से,
भले हम छोड़ दें डेरा, नहीं तुम अलविदा कहना।

©पंकज प्रियम