Tuesday, January 12, 2021

903. मेरी मुहब्बत याद तुझे तो आती होगी-

याद तुझे तो आती होगी-2

ओ परदेसी दौलत उसकी, बेशक़ तुझको भाती होगी,
लेकिन मेरी पाक मुहब्बत, याद तुझे तो आती होगी।
ओ परदेशी मेरी मुहब्बत, याद तुझे तो आती होगी

बेताबी में......मुझसे लिपटना, 
और लजा के खुद में सिमटना। 
हरदिन-हरपल.....साँझ-सवेरे,
मेरी बाहों............के वो घेरे।
मेरी धड़कन....... मेरी साँसे, रह-रह के तड़पाती होगी।
ओ परदेसी मेरी मुहब्बत, याद तुझे तो.... आती होगी।

मेरी हाथों में..... वो मुखड़ा,
लगता जैसे चाँद का टुकड़ा।
मेरे कांधे..... सर रख सोना,
ख़्वाबों में वो..... तेरा खोना।
प्यार मुहब्बत की वो बातें, आज भी तो भरमाती होगी,
वो परदेसी मेरी मुहब्बत......याद तुझे तो आती होगी।

लड़ना-झगड़ना, हँसना-रुलाना,
रूठना तेरा..........मेरा मनाना।
नाम मेरा ले ....चाँद को तकना,
तकिये के नीचे ख़त को रखना
मुझको देखे बिन एक दिन भी, चैन कहाँ तू पाती होगी।
वो परदेसी...मेरी मुहब्बत,    याद तुझे तो आती होगी।

धूप-गुलाबी, ....शाम सुहानी
इश्क़-मुहब्बत प्यार रूमानी।
चाँदनी रातें...दरिया किनारा,
मेरी बाहों.... का था सहारा।
याद वो कर के संग की रातें, नींद तेरी उड़ जाती होगी।
वो परदेसी...मेरी मुहब्बत,    याद तुझे तो आती होगी।
©पंकज प्रियम
12.1.2021
12:34AM

Saturday, January 9, 2021

902. ओ परदेशी

ओ परदेशी रौनक उसकी, खूब तुझे तो भाती होगी,
लेकिन अपने देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी।
भारत अपना देश है प्यारा,
लगता सबसे है ये न्यारा
याद तुझे तो आती होगी,
रोज तुझे तड़पाती होगी।
इस मिट्टी की खुशबू तुझको, रह रह के महकाती होगी।
ओ परदेशी देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी

वो घर -आँगन, गांव की गलियां,
खेत में झूमती धान की बलियां।
नीम तले वो छाँव सुहानी,
कहती कहानी बूढ़ी नानी,
दादा-दादी की वो गोदी, अब भी तो सहलाती होगी,
ओ परदेशी देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी।
माटी की गुड़िया घास का गहना,
लड़ना-झगड़ना, सुनना-कहना।
वो बचपन की बात निराली,
होली दशहरा ईद दिवाली
बापू कंधा, माँ की ममता, आँख तेरी भर आती होगी
ओ परदेशी देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी।
वो बचपन के दोस्त कमीने,
एक से बढ़कर एक नमूने।
भूल-भुलैया खेल खिलौने
लगते अब वो सारे नगीने।
याद वो करके प्यार सलोना, खुद से तू शर्माती होगी,
ओ परदेशी देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी।
गंगा-यमुना धारा अविरल,
सागर-सिंधु झरना निर्मल।
वेद-पुराण की बातें सुनना,
राजा-रानी ख़्वाब में बनना।
प्रेम से सिंचित भारत भूमि, हरदम पास बुलाती होगी,
ओ परदेशी देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी।
©पंकज प्रियम