Saturday, August 31, 2019

640.बदनाम न करो

बदनाम न करो

निगाहों से तुम यूँ क़त्लेआम न करो,
हुस्न की नुमाईश यूँ सरेआम न करो।

बहुत ऊँची है नफ़रत की दीवार मगर,
मेरी मुहब्बत को यूँ बदनाम न करो।

अभी तो पहला ही कदम है इस डगर,
जाना है दूर तलक यूँ आराम न करो।

ख़ता हुई तो सजा मौत की दे दो मगर,
किसी का जीना तो यूँ हराम न करो।

नहीं साथ देना तो साफ़ कह दो मगर
रुसवाई का प्रियम यूँ इंतजाम न करो।

©पंकज प्रियम

639. लाहौर


करो मत बात कश्मीर की, अभी तो और भी लेंगे,
पिओके तो हमारा है,  उसे सिरमौर ही लेंगे।
अगर औकात भूला तो, समझ लो हश्र क्या होगा-
कराँची संग पेशावर,  झपट लाहौर भी लेंगे।।
©पंकज प्रियम
30 अगस्त 2019               

Friday, August 30, 2019

638. मुलाकात

ग़ज़ल

2122 1122 1122 22
दिन नहीं होता अब रात नहीं होती है,
दिल नहीं लगता जब बात नहीं होती है।

चैन उड़ जाता जब दूर चली जाती वो,
पास में ख़ास मुलाकात नहीं होती है।

साँस थम जाती जब पास में आती वो,
आँख भर आती बरसात नहीं होती है।

काश की कोई मेरे दिल को संभाले तो
चाहतों सी कुछ सौगात नहीं होती है।

इश्क़ के और प्रियम ढेरों अफ़साने हैं,
खेल मुहब्बत में शह मात नहीं होती है।
©पंकज प्रियम

637. इल्ज़ाम

❆ ग़ज़ल
❆ काफ़िया (तुकान्त) - आम
❆ रदीफ़ (पदान्त) - बेरदीफ़

12 2   2 22    2 21

भले हो जाएं हम बदनाम,
लगा दो मुझपे इक इल्ज़ाम।

तुम्हारे दिल में रहता कौन,
बता दो सबको मेरा नाम।

तुम्हारे लब तो रहते मौन,
नज़र ही करते सारे काम।

तुम्हारे ख़्वाबों में हमराज़,
डूबा जो रहता सुबहो शाम।

प्रियम ही तेरे दिल का राज़,
दिखा दो मुहब्बत का पैगाम।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Wednesday, August 28, 2019

636. मानसी

बधाई मानसी

रचा इतिहास फिर देखो, यहाँ इक और बेटी ने,
कदम लाचार हैं तो क्या, रखा सिरमौर बेटी ने।
जोशी मानसी बेटी, कहाँ हिम्मत कभी हारी-
अगर चाहो सभी मुमकिन, दिखाया दौर बेटी ने।।
©पंकज प्रियम
28 अगस्त 2019

635.,मुरलीवाले

आये हैं हम तेरे द्वार, ओ मुरलीवाले
कर दो न बेड़ा पार, ओ मुरलीवाले।

नज़र हमारी हुई है बूढ़ी
ताकत बची बस है थोड़ी
करूँ मगर जयजयकार, ओ बंसी वाले

कदम हमारे तो लड़खड़ाते
फिर भी न हम तो हैं घबराते,
सब तेरी महिमा अपार, ओ मथुरा वाले।

जग से हुए हैं हम तो बेगाने
न कोई घर है न तो ठिकाने
अब करो तुम उद्धार, ओ वृंदा वाले।

हम हाथ जोड़े दरपर खड़े हैं
तेरे दरस को तनमन अड़े हैं,
करो बैतरणी के पार, ओ यमुना वाले।

आये हैं हम तेरे द्वार, ओ मुरलीवाले,
कर दो न बेड़ा पार, ओ बंसी वाले।
©पंकज प्रियम

634. मुहब्बत

मुहब्बत
नहीं कोई ख़ता मेरी, नहीं कोई शरारत है,
ख़ता तुझसे हुई है पर, किया मुझसे बग़ावत है।
अगर मुझपे यकीं ना हो, जरा दिल से तुम्हीं पूछो-
तुझे मुझसे मुहब्बत है, मुझे तुझसे मुहब्बत है।

बहुत सम्मान करते हैं, तुम्हीं पे नाज करते है,
दफ़न जो राज़ है मेरा, खुलासा आज करते हैं।
ख़ता तूने किया लेकिन, नहीं मुझको शिकायत है-
भुला सारे गिले-शिकवे, नया आगाज़ करते हैं।
©पंकज प्रियम

Monday, August 26, 2019

633.कम्बख़्त इश्क़

आसमां से गिरकर लटकना खजूर हो गया,
कमबख्त इश्क़ में दिल अपना चूर हो गया।
मेरे लिखे प्रेम-पत्रों को उसने जो रद्दी में बेच
अफ़साना इसकदर अपना मशहूर हो गया।।
©पंकज प्रियम

Sunday, August 25, 2019

632.सिंधु

लिखा इतिहास फिर देखो, किया जो खास सिंधू ने,
हरा जापान नोजोमी,........ रचा इतिहास सिंधू ने।
कभी तुम बोझ ना समझो,.. इसे ना कोख में मारो-
सुखद वरदान है बेटी........दिया अहसास सिंधू ने।।
©पंकज प्रियम
 

Saturday, August 24, 2019

631. राधेश्याम

श्याम कहो घनश्याम कहो तुम, कृष्ण मनोहर रास बिहारी।
नंद यहाँ अवतार लियो अरु,    गोकुल जा कर गोप मुरारी।
नाम अनेक पुराण कथा सब,  कृष्ण नचावत सृष्टि ये सारी।
कृष्ण हजार हृदय में विराजत, कृष्ण समाहित राधा प्यारी।।
©पंकज प्रियम

Friday, August 23, 2019

630.राधा-कृष्ण

कृष्ण-राधा/हाइकु

बजाये बंशी
वो यमुना किनारे
तड़पे राधा

गोपियां सँग
जब नाचे कन्हैया
तो जले राधा

प्रेम मगन
जब बाजे मुरली
तो नाचे राधा

राधा में श्याम
घनश्याम में राधा
अकेले आधा

अद्भुत प्रेम
एक दूजे का देखा
ज्यूँ कृष्ण राधा

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Thursday, August 22, 2019

629.कृष्ण


बजाकर बाँस की बंशी, सदा राधा नचाये वो,
सखा बनके सभा में द्रौपदी अस्मत बचाये जो।
यशोदा के दुलारे वो, जगत के कृष्ण हैं स्वामी-
सुनाकर ज्ञान गीता का, महाभारत रचाये वो।।

कभी मीरा के मोहन वो, कभी राधा के माधव वो,
कभी कान्हा यशोदा के, कभी अर्जुन के केशव वो।
जगत स्वामी मदनमोहन, मनोहर कृष्ण गोपाला
कभी साथी सुदामा के, कभी गोविन्द गौरव वो।
©पंकज प्रियम

Friday, August 16, 2019

628. हुँकार

हुँकार
जब बात वतन पर आती है,तो कुछ बोलना पड़ता है,
जब ग़द्दारों की सुनता बोली, तो मुँह खोलना पड़ता है।

देश को गर कोई गाली दे तो फिर चुप कैसे रह जाऊं?
पाषाण नहीं हृदय है मेरा, आख़िर ये कैसे सह जाऊं?

नहीं धृतराष्ट्र सी आँखे अंधी, ना भीष्म सा हूँ मजबूर,
महफ़िल में लूट जाए भारत, नहीं मुझे यह है मंजूर।

आस्तीन के छुपे सर्पों को हमने जो अबतक पाला है,
उन्हीं सर्पों ने अंदर-अंदर भर दिया जीवन में हाला है।

दुश्मन की औकात कहाँ जो हम पर कोई घात करे,
कदम-कदम गद्दार छुपे जो हरदम भीतरघात करे।

नहीं खौफ़ भारत को, किसी दुश्मन के हथियारों से,
देश को है बस खतरा केवल, घर में छुपे ग़द्दारों से।

है प्रियम की हुँकार यही, अब कुछ ऐसा काम करो,
शत्रु से पहले तुम जयचंदो का ही काम तमाम करो।

©पंकज प्रियम
16अगस्त19

Wednesday, August 14, 2019

627. तिरंगा

तिरंगा
1222 1222 1222 1222
तिरंगा हाथ में ले काफ़िला जब जब गुजरता है।
फड़क उठती भुजा मेरी रगों में ज्वार भरता है।

कदम को चूमती धरती, तिरंगा झूमता अम्बर,
तिरंगा आसमां फहरे, जमी से प्यार करता है।

तिरंगा आन भारत की, तिरंगा जान भारत की,
तिरंगा में हाथ में लेकर, खुशी से यार मरता है।

सदा ऊँचा रहे झण्डा, यही अरमान है सबका,
तिरंगा देख कर दुश्मन,  सभी गद्दार डरता है।

तिरंगा हाथ में होता, बड़ी हिम्मत प्रियम देता,
मिले जो दर्द सरहद पे, यही तत्काल हरता है।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Monday, August 12, 2019

626.राम के वंशज

अगर राम नहीं तो फिर रामनवमी, दशहरा और दीवाली की छुट्टियां क्यूँ लेते हो साहेब?

राम का वंशज

सुनो सुनो, ऐ जज साहेब, करो न तुम ये बवाल यहाँ,
प्रभु राम के वंशज पर , उठा न तुम तो सवाल यहाँ।
राम की कण-कण ये धरती, राम नाम मिलती मुक्ति-
राम से ही अस्तित्व सभी का, रखना तुम ख़्याल यहाँ।

कोर्ट का चक्कर जब लगवाते, होता कब बवाल यहाँ,
तारीखों के घनचक्कर में, तुम रखते कब ख्याल यहाँ।
आतंकी की ख़ातिर कोर्ट को, आधी रात खुलवाते हो-
आस्था की जब बात है आती, करते क्यूँ सवाल यहाँ।

कण-कण राम का है वंशज, जन-मन में स्थान यहाँ,
राम कृपा से पावन धरती, राम वर्ण आसमान यहाँ।
सरयू की धारा भी कहती,   राम लला की वो कीर्ति-
अयोध्या के जनमानस पे, राम का ही गुणगान यहाँ।।

गंगा की अविरल धारा वो, लेती राम का नाम यहाँ,
भागीरथ की धरती पर, सबको राम से काम यहाँ।
राम नाम को जपकर ही, डाकू भी बाल्मीकि बना-
भरत नाम से भारत अपना, रघुकुल के राम यहाँ।।

सागर में दिखता है सेतु, किया था लंका पार यहाँ
प्रभुराम के रजकण से, हुआ अहल्या उद्धार यहाँ।
राम नाम तुलसी माला, गाँधी-कबीरा मुक्ति मिली-
राम नाम सत्य है कहकर, अंतिम का संस्कार यहाँ।।

रामजन्म की पावन भूमि, करती है फ़रियाद यहाँ,
यहीं राम ने खेला बचपन, आती है फिर याद यहाँ।
दुष्ट बाबर ने हमला कर, बनाया उसपे था मस्जिद-
बाबर की छाती पे चढ़ के, करो धाम आबाद यहाँ।।
©पंकज प्रियम
12 अगस्त 2019

Friday, August 9, 2019

625. हिंदुस्तान

सुनो-सुनो, ऐ दुनिया वालों, हमको न ललकार यहाँ,
हम भारत के वासी हैं, हिम्मत ही तलवार यहाँ।
कण-कण वीर जवानी है, जन-गण लिखी कहानी है-
रक्त तिलक हम करते और हाथों को हथियार यहाँ।

वीर शिवा के वंशज हैं, कुँवर की वो तलवार यहाँ,
झाँसी वाली रानी की, गूँजती वो ललकार यहाँ।
हल्दीघाटी की माटी में, राणा का इतिहास लिखा-
वीरों की इस धरती में, चेतक भी हथियार यहाँ।।

माँ भवानी दुर्गा काली, चामुण्डा विकराल यहाँ,
सुदर्शन धारी विष्णु हरि, शंकर महाकाल यहाँ।
कान्हा ने महाभारत रच दी, अर्जुन वीर धनुर्धारी-
पवन पुत्र ने लंका जारी, राम बने खुद काल यहाँ।

सुभाष-भगत-सुखदेव-गुरु, चन्द्रशेखर आज़ाद यहाँ,
अशफाक उल्ला और बिस्मिल, अंग्रेज़ो को याद यहाँ,
बापू का वो सत्याग्रह, सरदार पटेल सा लौहपुरूष-
आज़ादी के दीवाने सब, वीरों से धरा आबाद यहाँ।।

गीता का उपदेश जहाँ, बाइबिल पाक कुरान यहाँ,
मन्दिरों में बजती घण्टी, मस्ज़िद में अज़ान यहाँ।
हिन्दू- मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई, आपस में भाई-भाई
गंगा-यमुना की धारा,   बुद्ध-महावीर ज्ञान यहाँ।।

चन्द्रगुप्त का शौर्य यहाँ, चाणक्य बड़े विद्वान यहाँ,
पोरस जैसा बलशाली, सम्राट अशोक महान यहाँ।
सिकन्दर जीत न पाया, अकबर का अभिमान घटा-
शूरवीरों की यह धरती, सबको मिला सम्मान यहाँ।।

उत्तर से दक्षिण तक और पूरब- पश्चिम एक समान,
भारत से सुंदर और नहीं देख लो तुम सारा जहान।
सोने की यह चिड़ियां है, विश्व में सबसे बढियां है-
भारत माता की जय बोलो, वन्देमातरम हिंदुस्तान।।
©पंकज प्रियम
09 अगस्त 2019

   

Thursday, August 1, 2019

619.झारखंड

कणकण में प्रीत है
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हर कदम जहाँ का नृत्य है
हर शब्द जहाँ की गीत है।
हम उस प्रांत के हैं वासी,
जहाँ का कण-कण प्रीत है।

प्राकृतिक छटाओं से भरपूर
खनिज-सम्पदाओं से प्रचुर।
फिजाओं में बजता संगीत है।
जहाँ का कण...।

पहाड़-जंगल और नदी- नाला
यहां का हर कण है निराला।
औरों की खुशी में ही तो जीत है।
जहाँ का कण...।

धरती आबा बिरसा भूमि
सिद्धो-कान्हो जन्म भूमि।
जल-जंगल-जमीन की रीत है।
जहाँ का कण..।

चहुँ ओर हरियाली चादर
माटी-मटकी सोना गागर।
बुतरू लटकाए,औरत की पीठ है।
जहाँ का कण...।

कदम-कदम, मीठी बोली
आदिवासी ,जनमन भोली।
कभी सरस् सरल, कभी ढीठ है।
जहाँ का कण-कण..।

पार्श्वनाथ गगन चुम्बी
देवलोक देवघर भूमि।
प्रकृति देव् समर्पण तो नीत है
झारखंड का कणकण प्रीत है।

©✍पंकज प्रियम

618. संहार करेगी

संहार करेगी

कुचल डालो सर उसका,  जिसने भी दुष्कर्म किया,
मसल डालो धड़ उसका,जिसने भी यह कर्म किया।

नहीं क्षमा ना दो संरक्षण, ना मज़हब का दो आरक्षण,
हर दुष्कर्मी को दो फाँसी, जो करते जिस्मों का भक्षण।

काट डालो उन पँजों को,जिसने अस्मत को तार किया,
मानव तन में छुपे भेड़िये, जिसने जीवन दुश्वार किया।

बालिग़ हो या नाबालिक, सबको दण्डित करना होगा,
जिसने भी ये पाप किया, उसको खण्डित करना होगा।

खोलो आँखों से अब पट्टी, कबतक मौन रहोगी देवी,
न्याय करो अब नजरों से, कबतक गौण रहोगी देवी।

इंसाफ की ऊंची कुर्सी भी, क्यूँ न देती अब न्याय यहाँ,
छूट जाता अपराधी हरदम, क्यूँ होता है अन्याय यहाँ।

बेटी पढ़ाओ बेटी बढ़ाओ का महज नारा न होने देना।
चमक चाँदनी रातो में भी, तुम ध्रुव तारा न खोने देना।

हर बेटी का अभिमान बचे, हर बेटी का सम्मान बचे,
जननी भाग्य विधाता सी , हर बेटी का अरमान बचे।

नहीं मिलेगा न्याय अगर तो हर बेटी तलवार बनेगी,
बन चामुण्डा बन काली, दुष्कर्मी का संहार करेगी।।

©पंकज प्रियम