Sunday, December 30, 2018

497.ठूंठ जिन्दगी

धरती बंजर
काला अम्बर
घनघोर घटाएं
उमड़ रही।

ठूंठ हुआ तन
बुझा नहीं मन
जड़ों से मिट्टी
उखड़ रही।

जर्जर काया
मौत का साया
जिंदगी मानो
उजड़ रही।

पत्तों के आस में
साँसों के विश्वास में
हररोज़ जिन्दगी
यूँ बढ़ रही।

©पंकज प्रियम

496.आकार बदल दो

बदल दो

साल जो बदला है तो थाली को बदल दो,
कानों में लटकती हुई बाली को बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा कमाल तो कर लो
साले को बदल दो औ साली को बदल दो।।1

काम बदलना है तो सीवी को बदल दो,
गाड़ी को बदल दो औ टीवी को बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा धमाल तो कर लो,
हो गयी पुरानी तो......बीवी को बदल दो।।2

खाना जो पकाना है तो चूल्हे को बदल दो,
दर्द अगर होता है तो कूल्हे को बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा निहाल तो कर लो
हो गया पुराना तो.....दूल्हे को बदल दो।।3

हाल जो बेहाल है तो फिर हाल बदल दो,
धीमी पड़ी रफ्तार तो फिर चाल बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा बवाल तो कर दो,
मिल गया ठिकाना तो ससुराल बदल दो।।4

पैकेट वही रक्खो मगर सामान बदल दो,
पड़ोसन जो तड़पाये तो मकान बदल दो।
राहुल का मरियम से तो निकाह करा दो,
दहेज में फिर पूरा पाकिस्तान बदल दो।।5

शाह को मिलता है जो सत्कार बदल दो।
काम कराने का वो...संस्कार बदल दो
सरकार का जो काम है वो काम तो करे,
सो गयी सरकार तो... सरकार बदल दो।6

दुश्मनी की सारी वो.. तकरार बदल दो,
अपनों के लहू से सने तलवार बदल दो।
पत्थर जो चलाये उसे उसपार तो भेजो,
जो डूब रही नौका तो पतवार बदल दो।।7

अब पाक परस्ती के समाचार बदल दो,
नापाक इरादों का वो व्यवहार बदल दो।
कश्मीर जो मांगे तो तुम लाहौर को घेरो,
भारत का पुराना वही आकार बदल दो।।8

©पंकज प्रियम

495.यादें

यादें
कोई जब याद आता है तो यादें याद आती है,
यादों के दरमियां जाकर वो बातें याद आती है।
मेरे जो पास होकर भी, नहीं वो पास मेरे होते,
जो आंखों में कभी गुजरी,वो रातें याद आती है।।
©पंकज प्रियम

494.पंकज कमल

नभ में इतराइ जब तरुण-अरुण लालिमा
रक्त किरणों से सजा जब धरा- आसमां।
पुलकित प्रभात जल-तरंगों से आ मिला,
हर्षित हुआ पंक तो जल से कमल खिला।

©पंकज प्रियम

493.साल की दहलीज़

साल की दहलीज़

इस साल की दहलीज़ पे आकर के खड़े हैं
क्या खोया-क्या पाया इसी चक्कर में पड़े है
नए साल में रखना तू कदम देखभाल कर
यहां गड्ढे भी बहुत है यहाँ ठोकर भी बड़े हैं।

नए साल में आएगा फिर चुनाव का मौसम
मिल जाएंगे नेता खड़े हाथ जोड़े हर कदम
देना तू अपना वोट... जरा ठोक-ठाक कर
ना आएंगे नेता कभी... फिर देने को दर्शन।

कुछ काम करो, नाम करो, देश का अपना
जैसे भी करो, पूरा करो तुम देश का सपना
इस देश की मर्यादा को रखना सम्भाल कर
बड़े शान से लहराना ध्वज देश का अपना।

©पंकज प्रियम

492.ससुराल बदल दो

साल जो बदला है तो थाली को बदल दो,
कानों में लटकती हुई बाली को बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा कमाल तो कर लो
साले को बदल दो औ साली को बदल दो।

साल जो बदला है तो सीवी को बदल दो,
गाड़ी को बदल दो औ टीवी को बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा धमाल तो कर लो,
हो गयी पुरानी तो......बीवी को बदल दो।।

साल जो बदला है तो चूल्हे को बदल दो,
दर्द अगर होता है तो कूल्हे को बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा निहाल तो कर लो
हो गया पुराना तो.....दूल्हे को बदल दो।।

साल जो बदला है तो फिर हाल बदल दो,
धीमी पड़ी रफ्तार तो फिर चाल बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा बवाल तो कर दो,
मिल गया ठिकाना तो ससुराल बदल दो।।

साल जो बदला है तो.. सामान बदल दो,
पड़ोसन जो तड़पाये तो मकान बदल दो।
राहुल का मरियम से तो निकाह करा दो,
दहेज में फिर पूरा पाकिस्तान बदल दो।।

©पंकज प्रियम

491.सरकार बदल दो

साल जो बदला है तो शहकार बदल दो,
नेता को मिलता है जो सत्कार बदल दो।
सरकार का जो काम है वो काम तो करे,
सो गयी सरकार तो... सरकार बदल दो।1

दुश्मनी की सारी वो.. तकरार बदल दो,
अपनों के लहू से सने तलवार बदल दो।
पत्थर जो चलाये उसे उसपार तो भेजो,
जो डूब रही नौका तो पतवार बदल दो।।2

अब पाक परस्ती के समाचार बदल दो,
नापाक इरादों का वो व्यवहार बदल दो।
कश्मीर जो मांगे तो तुम लाहौर को घेरो,
भारत का पुराना वही आकार बदल दो।।3

Monday, December 24, 2018

490.जल गयी नन्ही कली

जल गयी नन्ही कली
जल गयी नन्ही कली
रो रहा है दिल मेरा,आँखे फिर ये नम हुई
वासना की आग से,बेटी फिर से कम हुई।
देखो जिंदा जल गई, फिर से नन्ही कली,
आसिफा.निर्भया,नेहा और अब संजली।।
जल गयी नेहा यहाँ, जल गयी ये संजली।

आसमां ये जल रहा, धरती देखो गल रही,
वासना की आग कैसी हर तरफ जल रही।
रह गया महफ़ूज नही कोई दर कोई गली,
देखो कैसे जल गयी,फूलों सी नंन्ही कली।।
आसिफा....।
कैसी है यह आशिक़ी, कैसी है यह गन्दगी
एक तरफ के खेल में, हारती बस जिन्दगी।
बहशी दरिन्दे फिर रहे, हर डगर हर गली,
देखो कैसे जल गयी, फूलों सी नन्ही कली।
आसिफा..।
क्या खुदा बहरा हुआ,या ये ईश्वर सो गया,
सामने सरकार के कैसे यह मंज़र हो गया।
दिनदहाड़े बीच सड़क,मौत की कैसे चली
देखो कैसे जल गयी,फूलों सी नन्ही कली।।
आसिफा...।
बेटी अब कैसे पढ़े, किस तरह आगे बढ़े,
कोख में तो मर रही,बाहर भी जिंदा चढ़े।
कोई समझे गुड़ तो कोई कहे मिश्री डली,
हाथों ही मसल गयी, कैसे खिलती कली।।
आसिफा....।
समझा दो लड़कों को, अब कदम रोक लें,
जो ना समझे वो अगर, खुद से ही ठोक दें।
वासना की बेदी में, ना चढ़ाएं अब वो बलि,
इधर उनके कदम बढ़े,उधर से गोली चली।।
आसिफा....।
©पंकज प्रियम
#संजली@आगरा
#नेहा@देहरादून

Sunday, December 23, 2018

489.ज़ालिम सर्दी


थरथराते हाथ ये मेरे,बज रहे दांत ये प्यारे,
रजाई में छुपा रखा,कंपकपाते गात ये प्यारे।
बड़ी ज़ालिम है#सर्दी ये,सताती तन्हा रातों को,
उड़ाती नींद है मेरी, तेरी मुलाकात ये प्यारे।।

©पंकज प्रियम

488. आज़माती जिन्दगी

गज़ल-जिंदगी
काफ़िया-अर
रदीफ़-जिंदगी
(212 212 212 212)
आजमाती बड़ी हर सहर जिन्दगी
भागती दौड़ती सी शहर जिन्दगी।
सांस बोले सदा धड़कनों की जुबाँ
सांस पे ही टिकी ये सफ़र जिन्दगी।
हर कदम पे यहां चोट लगती बड़ी
ठोकरों से भरी यह डगर जिन्दगी।
हाल बदहाल करके घुमाती रही
खूबसूरत बड़ी ये भँवर जिन्दगी।
पुतलियों की तरह ये नचाती रही
डोर थामे सदा हर पहर जिन्दगी।
तितलियों की तरह ये लुभाती रही
गुनगुनाती सदा ये भ्रमर जिन्दगी।
धूप भी है खिला आंधियां भी चली
ये दिखाती प्रियम पे असर जिंदगी।
©पंकज प्रियम

Friday, December 21, 2018

487.मुस्कुराना सीखा है

* गज़ल
* काफ़िया - आना
* रदीफ़ - सीखा है
मुफ़लिसी में भी हमने मुस्कुराना सीखा है
अपने हर दर्द को दिल में छुपाना सीखा है।
गमों के साथ मेरी इस कदर गयी है दोस्ती
हर एक गम को सीने से लगाना सीखा है।
उल्फ़त की राह में चल पड़ी है ये जिंदगी
यादों में अपनी रात को जगाना सीखा है।
मुख्तसर-सी जिन्दगी मुहब्बत मेरी बन्दगी
मैंने जख्मों को लफ्ज़ों में बहाना सीखा है।
मौत का खौफ़ कहाँ दिखता तुझमें प्रियम
धड़कन को भी सांसों में नचाना सीखा है।
©पंकज प्रियम

486.हिन्दुस्तान में डर!

क्यूँ डर लगता है साहब!

क्यूँ डरते हो शाह तुम,
क्यूँ भरते हो आह तुम।
ये देश नहीं गद्दारों का,
क्यूँ करते परवाह तुम।।

कभी डरता वो खान है
कहता खतरे में जान है
जिसने तुम्हें पहचान दी
वही मुल्क हिंदुस्तान है।

बंगलों में तुम रहते हो
रुपयों में तुम बहते हो
जब घेरा पहरेदारों का
क्यूँ फिर तुम डरते हो।

कहाँ खौफ़ इंसानों में
कहाँ खौफ़ किसानों में
सीमा पर तैनात सदा
कहाँ खौफ़ जवानों में ।

जब भी विपदा आयी है
खुद ही राह दिखायी है
खौफ़ नहीं तलवारों का
खुद का लहू बहायी है।

कण-कण माटी चंदन है
जन-जन करती वंदन है
सानी नहीं संस्कारों का
भारत ही अभिनन्दन है।

खौफ़ नहीं हथियारों से
न दुश्मन की तलवारों से
मुल्क है वीर जवानों का
ख़तरा है बस गद्दारों से।

देश में जितने संहार हुए
पीछे से ही सारे वार हुए
साथ मिला जयचंदो का
दुश्मन जो सीमापार हुए।

हमलों से हम बर्बाद रहे
फिर भी हम आबाद रहे
दुश्मन को धूल चटाकर
हम करते जिन्दाबाद रहे।

बंटवारें का तो दंश मिला
कहाँ हमारा वो अंश मिला
सियासी द्यूत खेले शकुनि
कुर्सी पर बैठा कंस मिला।

जो भी आया शरण मिला
सबको अपना धरम मिला
ना ही द्वेष ना ही भेद कोई
सबको अपना करम मिला।

किस देश में इतनी आज़ादी
किस देश में इतनी आबादी
भारत सबको आश्रय देकर
खुद ही सहता सब बर्बादी।

जिस मुल्क ने पहचान दिया
मान दिया अभिमान दिया
आज उसी को गाली देकर
क्या खूब ही सम्मान दिया।

कुछ शर्म करो डरने वालों
स्वार्थ में हरपल मरने वालों
किस हद तक गिर जाओगे
बदनाम देश को करने वालों।

देखो जाकर पाकिस्तान में
चले जाओ किसी जहान में
समझ में तब आ जाएगा
कितना सुकून हिंदुस्तान में।

©पंकज प्रियम

Wednesday, December 19, 2018

485.इश्क के फूल

गज़ल
आजा आजा
इश्क़ की आग मेरे दिल में जगाने आजा
आजा आजा मुझे सीने से लगाने आजा।
प्यार के फूल मेरे दिल में खिलाने आजा
आजा आजा मुझे खुद से मिलाने आजा।
जाम पैमाग जो आँखों से छलकता तेरा
अपने होठों से वही जाम पिलाने आजा।
इश्क़ की आग जो सीने में जला रक्खा है
इश्क़ की आग से वो आग बुझाने आजा।
प्यार का ज्वार जो साँसों ने उठा रक्खा है
अपनी मौजों से ही उसको गिराने आजा।
जवां दिल जोश में जो होश गवां बैठा है
अपने आगोश में ले होश जगाने आजा।
तेरी यादों का 'प्रियम' दीप सजा रखा है
अपने हाथों से वही दीप जलाने आजा।
©पंकज प्रियम

Tuesday, December 18, 2018

484.बरखा और बिजली

बरखा और बिजली

अरि ओ बरखा! तू आती है
तो क्यूँ बिजली चली जाती है ?

तुम दोनों क्यूँ इतना सताती है
तू आती है वो चली जाती है

तू बरखा और वो है बिजली
कभी सौतन तो कभी सहेली।

उधर तेरा फॉल डाउन हुआ
इधर इसका ब्रेकडाउन हुआ।

तेरा ये टिप-टिप के बरसाना
उसका ट्रिप-ट्रिप से तरसाना।

तेरा कैसा ये आपसी नाता है
हरबार ही मुझको सताता है।

उफ़्फ़!दिसम्बर की ये बारिश
और बिजली की ये साज़िश।

क्यूँ इतना मुझको सताती है
क्या ऐसे ही प्यार जताती है!
©पंकज प्रियम

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

दिल की ये आग भला कैसे बुझा पाऊंगा
आजा-आजा मेरे शोलों को बुझाने वाले।

मैं तेरे प्यार में जो नग़मे लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में रातों को जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को निगाहों में बसाये रखना
मेरी तस्वीर को ख़्वाबों में सजाने वाले।

ऐ प्रियम कौन मिटाएगा दुनिया से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

बरखा और बिजली

बरखा और बिजली

अरि ओ बरखा! तू आती है
तो क्यूँ बिजली चली जाती है ?

तुम दोनों क्यूँ इतना सताती है
तू आती है वो चली जाती है

तू बरखा और वो है बिजली
कभी सौतन तो कभी सहेली।

उधर तेरा फॉल डाउन हुआ
इधर इसका ब्रेकडाउन हुआ।

तेरा ये टिप-टिप के बरसाना
उसका ट्रिप-ट्रिप से तरसाना।

तेरा कैसा ये आपसी नाता है
हरबार ही मुझको सताता है।

उफ़्फ़!दिसम्बर की ये बारिश
और बिजली की ये साज़िश।

क्यूँ इतना मुझको सताती है
क्या ऐसे ही प्यार जताती है!
©पंकज प्रियम

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

दिल की ये आग को कैसे मैं बुझा पाऊंगा
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।

मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।

ऐ प्रियम कौन मिटाएगा दुनिया से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

इस आग को अब कैसे बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।

मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।

ऐ प्रियम कौन मिटाएगा दुनिया से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

इस आग को अब कैसे बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।

मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।

ओ"प्रियम" कौन मिटाएगा दिल से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

इस आग को अब कैसे बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।

मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।

ओ"प्रियम" कौन मिटाएगा दिल से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

इस आग को अब कैसे मैं बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।

मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।

ओ"प्रियम" कौन मिटाएगा दिल से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

इस आग को अब कैसे मैं बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।

मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।

ओ"प्रियम" कौन मिटाएगा दिल से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

Sunday, December 16, 2018

482.गुलाबी धूप


सुनो मेरे दिल की बात
सर्दी का ये शुभ प्रभात
और ये तेरा मेरा साथ
क्यूँ करे सर्दी की बात
जब हाथों में हो तेरा हाथ।
है याद मुझे वो दिन सुहाना
मखमली धूप बनकर आना
हौले-हौले पीछे से वो तेरा
मुझसे आकर लिपट जाना।
याद आती है वो सारी बात
जब हाथों में हो तेरा हाथ।
सुनहरी किरणों से सजी
गुलाबी धूप हो या फिर
कड़कड़ाती-सी सर्द रात।
क्यूँ करना ओस की बात
जब हाथों में हो तेरा हाथ।
प्यार हमारा जब है गहरा
गर्म साँसों का जब है पहरा
सर्द पवन फिर कब है ठहरा
तो क्यूँ करें पछुआ की बात
जब हाथों में हो तेरा हाथ।
©पंकज प्रियम

481.सर्दी

सर्दी
अरि ओ सर्दी!
तू कितना और गिरेगी
कुछ तो लिहाज़ कर।
कटकटा रहे हैं दाँत मेरे
थरथरा रहे है हांथ मेरे।
नाक से बह रही गंगा-सी धारा
रजाई भी नहीं दे रही है सहारा।
खुद ही खुद से मैं सिमट रहा हूँ
दिनभर बिस्तर से लिपट रहा हूँ।
हाथ-पैर जो हैं सुन्न पड़े
इसलिए हैं अछून्न खड़े।
दो मुट्ठी बांधे जेब भरे
लब कहते हैं हरे-हरे।
तापमान पे कुछ कर कंट्रोल
कितना गिरेगा कुछ तो बोल।
ठंड से क्या तू खुद मरेगी
अरि और कितना गिरेगी?

©पंकज प्रियम
Read my thoughts on YourQuote app at https://www.yourquote.in/pankaj-bhushan-pathak-opz8/quotes/arii-o-srdii-tuu-kitnaa-aur-giregii-kuch-lihaaz-kr-kttkttaa-knziq

480.उनकी क्या ख़ता

ऐ ठंड!

ऐ ठंड ! अब और न सता
तेरा क्या मकसद है?बता!

मेरी छोड़ो, सह लूँगा मैं
लेकिन उनकी तो सोचो
सड़क किनारे जो हैं सोये
आखिर उनकी क्या खता?
ऐ ठंड अब और न सता।

भर दिन कचरों को चुनते
रात राह नजरों को बुनते
अख़बार ओढ़कर जो सोते
आख़िर उसकी क्या ख़ता?
ऐ ठंड! अब और न सता।

रेल की पटरियों के किनारे
खेत में फसलों को निहारे
गरीब किसानों की सोचो
आख़िर उनकी क्या ख़ता?
ऐ ठंड! अब और न सता।

गांव का वो अलाव कहाँ
खलिहान का पुआल कहाँ
एसी के बंद कमरों में भी
घुटन का तुझको है पता?
ऐ ठंड!अब और न सता।

दिसम्बर की ये सर्द रात
बर्फीली हवा की सौग़ात
सरहद पे जो है वीर खड़ा
आख़िर उनकी क्या ख़ता?
ऐ ठंड !अब और न सता।

©पंकज प्रियम

Saturday, December 15, 2018

479.पत्थरबाजों

बोया बीज नफरत का तो गाली ही खाओगे,
अगर पत्थर चलाओगे तो गोली ही खाओगे।
सुनो पत्थरबाजों तुम,क्यों गुमराह होते हो,
करोगे काम जो ऐसा तो गोली ही खाओगे।।
©पंकज प्रियम
#पुलवामा_काण्ड

Friday, December 14, 2018

478.लिहाफ़

ठंड कैसे सताएगी भला तुझको,
मेरी यादों का लिहाफ़ जो ओढ़ा है।
©पंकज प्रियम

477.यादों का लिहाफ़

लिहाफ़

दिन में देखकर भले ही मुंह मोड़ लेना,
मेरे हर तोहफ़े को बेशक तुम तोड़ देना।
लेकिन ठंड अधिक सताए तो मेरी जान,
मेरी गर्म यादों का लिहाफ़ तू ओढ़ लेना।।
©पंकज प्रिय

476.नादान दिल


दिल की बातें दिल से करता, कैसा दिल नादान है
अपनी सुनता अपनी करता, कैसा दिल नादान है
जीतकर दिल जो हार जाये,इश्क़ समंदर लहराए
खुद ही खुद को है तड़पाता, ऐसा दिल नादान है।

©पंकज प्रियम

Thursday, December 13, 2018

475.प्यारा भारत


*******************************************
तड़प रहा था देश हमारा
गुलामी की जंजीरों में।
मिलके दिलाई आज़ादी
लहू बहाकर सब वीरों ने।
हुए शहीद वो वीर सपूत
इतिहास रचा तकदीरों में।
देखा  बदलता युग सारा
गाथा खूब गढ़ा फकीरों ने।
सबसे प्यारा है मेरा भारत
अलग पहचान है तस्वीरों में।
©पंकज प्रियम

474.चुनरिया

चुनरी

उड़-उड़ जाए तेरी चुनरिया,
मेरा दिल धड़काए
रह-रह के तड़पाये गोरिया
जब चुनरी तू सरकाए

रंग-बिरंगी चुनर तेरी
तितली भी शरमाये
आसमां में छाए बदरी
इंद्रधनुषी सी भरमाए।
धक-धक के धड़काये गोरिया
जब चुनरी तू सरकाए।
रह-रह..

धानी तेरी चुनर गोरी
मन में लगन लगाए
लाली तेरी चुनर गोरी
तन में अगन जगाए।
मह-मह के महकाए गोरिया
जब चुनरी तू सरकाये
रह-रह के बहकाए गोरिया
जब चुनरी तू सरकाए
©पंकज प्रियम

473.हार जीत

दुश्मनी साधकर क्या ख़ाक जीत पाओगे!
दोस्ती का हाथ बढ़ा,दिल भी जीत जाओगे।

©पंकज प्रियम

Tuesday, December 11, 2018

472.प्यार किया होता

मुक्तक/किया होता

कभी खुद पे भी भरोसा किया होता
कभी मुझ पे भी भरोसा किया होता
मुहब्बत हो जाती, यकीनन तुझको
कभी उस पे ना भरोसा किया होता।

कभी मुझसे प्यार तो किया होता
कभी मुझसे इक़रार तो किया होता
रख देता चाँद, तेरे कदमों के तले,
कभी मुझसे इज़हार तो किया होता।

©पंकज प्रियम

471.इश्क़

मत सोच की जमाना क्या कहेगा
जो लिखा है वही तो होकर रहेगा
कर ले जमाना चाहे कुछ भी तेरा,
तू इंसा है तुझे इश्क़ होकर रहेगा।

©पंकज प्रियम

Sunday, December 9, 2018

470.इंसा है या नादान

शुक्रिया तेरा बहुत,
ओ भले इंसान
सबकी चाहत होती
पिंजर में हो कैद उड़ान।
कैसे तुमने समझा मुझको
कैसे तुमने दिया सम्मान
तुम हो इंसां या हो नादान

सबने चाहा मुझे कैद करना
मेरी बेवशी पर मौज करना
कुतर-कुतर के मेरे पर
दे दिया लोहे का पिंजर
खिलखिलाते सब सुनकर
पिंजरे से टकराते मेरे स्वर
शुक्रिया तेरा करूँ अभिनन्दन
सुना तुमने मेरा करुण क्रन्दन।
दिया तुमने मुझको आसमान
तू इंसां है या है फिर नादान।

लालिमा फिर निकली नभपर
हौसला मिला फिर मुझे अम्बर
पंख फैला फिर उड़ी अपने पर
मिली मुझको फिर अपनी उड़ान
शुक्रिया तेरा करूँ ओ भले इंसान
तू इंसा है या फिर है नादान।
©पंकज प्रियम

Saturday, December 8, 2018

469.दिल पोपट


दिल पोपट मेरा बोले रे
धक-धक जियरा डोले रे

जब-जब तुझको देखूं मैं
जब -जब तुझको सोचूं मैं
कुहू -कुहू दिल मेरा बोले रे
धक-धक..

जब मैं तुझसे बात करूँ
तुझसे जो मुलाकात करूँ
कनवा शहद सा घोले रे
धक-धक....

जब जब तुझको याद करूँ
दिल को अपने आबाद करूँ
धड़क -धड़क दिल मेरा होले रे
धक- धक.....

सपनों में जब तुम आते हो
आंखों से निंदिया उड़ाते हो
बोलो क्या दिल तेरा बोले रे
धक -धक जियरा डोले रे

मन मैना मेरा बोले रे
धक- धक जियरा डोले रे।

©पंकज प्रियम

468.तेरी चाहत


सुबह की धूप जैसी है, जवानी रूप जैसी है,
तेरी सादगी महकती, सुगन्धित धूप जैसी है।
नहीं कोई शिकायत है, नहीं कोई बगावत है-
तेरी चाहत बड़ी सच्ची, रसीली सूप जैसी है।।

© पंकज प्रियम

467.पहचान है

मुख़्तसर सी जिंदगी,मुहब्बत हमारी जान है
मुफ़लिसी में भी मुस्कुराहट मेरी पहचान है।
सबों की हंसी में ही ढूंढता हूँ मैं अपनी खुशी
आनन्द में ही रहना सदा,  मेरी पहचान है।
कौन अपना कौन पराया कभी ये देखा नहीं
हर किसी से अपनापन ही मेरी पहचान है।
मान-सम्मान की अपनी कोई हसरत नहीं
अंधेरों में जुगनू की रौशनी, मेरी पहचान है।
हर उदास चेहरे में जो खुशियाँ भरे प्रियम
बेजुबानों की जुबां बन जाना मेरी पहचान है।
©पंकज प्रियम

466.बचपन

हंसी लड़कपन के हसीन
वो_मीठे_मीठे_पल
याद है बचपन के
वो गुजरे हुए सारे कल।

न चेहरे पे चिंता कोई
न माथे पे शिकन
हंसी-खुशी गुजरे थे
बचपन के सारे पल।

माँ की गोदी में होती,
तब सारी जन्नत जहां
नानी की लोरी में होती
तब सारी मन्नत जहाँ।

नाम शोहरत की अब
है बड़ी दुनियाँ जहाँ
सुकून बचपन का अब
है यहाँ मिलता कहाँ?

©पंकज प्रियम

Friday, December 7, 2018

465.जरलाहा जाड़

जरलाहा जाड़/खोरठा गीत

चले लागल हावा कइसन,भींगे रे चुनरिया
जरलाहा जाड़ कइसन,लागे रे गुजरिया।

थरथर देह कांपे,कटकटाय दंतवाँ
कनकनी हवा बहे,कंपकँपाय हंथवा।
कम्बल कम पड़े,कम पड़े चदरिया।
जरलाहा जाड़ कइसन, लागे रे गुजरिया।

पनिया करंट मारे, कैसे हम नहैबे
खनवा भी ठंडा लागे, कैसे हम खैबे।
पूजा पाठ कैसे हम, करबे रे पूजरिया
जरलाहा जाड़ कइसन, लागे रे गुजरिया।

©पंकज प्रियम

Saturday, December 1, 2018

464.नाम रहता है

मुखड़ा

हर घड़ी हर पहर,सुबहो-शाम रहता है
मेरे होठों पर बस तेरा ही नाम रहता है.

अंतरा 1
जब से देखा है तुझे,हो गया है क्या मुझे
तेरी सूरत के सिवा,कुछ नहीं दिखता मुझे
मेरी आँखों में बस तेरा ही अक्स रहता है।
हर घड़ी...

2.
तू चँचल सी हवा, तू शीतल सी हवा
छू गयी मेरा बदन, न जाने क्या हुआ
मेरे जिस्मों में बस तेरा ही गुलाब रहता है।
हर घड़ी...

3.
पल में पलकों से मेरी,पल में तू खो गई
पल में अपनों सी मेरी,पल में तू हो गई
मेरी पलकों में बस तेरा ही ख़्वाब रहता है।
हर घड़ी....

4.
ऐ हवा ! ऐ फ़िजां! ऐ गगन!  ऐ घटा !
है मेरा मेहबूब कहाँ, उसका तू दे पता।
मेरी गजलों में बस तेरा ही पैगाम रहता है।

हर घड़ी हर पहर, सुबहो-शाम रहता है
मेरे होठों पर बस तेरा ही नाम रहता है।

©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"