धरती बंजर
काला अम्बर
घनघोर घटाएं
उमड़ रही।
ठूंठ हुआ तन
बुझा नहीं मन
जड़ों से मिट्टी
उखड़ रही।
जर्जर काया
मौत का साया
जिंदगी मानो
उजड़ रही।
पत्तों के आस में
साँसों के विश्वास में
हररोज़ जिन्दगी
यूँ बढ़ रही।
©पंकज प्रियम
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
धरती बंजर
काला अम्बर
घनघोर घटाएं
उमड़ रही।
ठूंठ हुआ तन
बुझा नहीं मन
जड़ों से मिट्टी
उखड़ रही।
जर्जर काया
मौत का साया
जिंदगी मानो
उजड़ रही।
पत्तों के आस में
साँसों के विश्वास में
हररोज़ जिन्दगी
यूँ बढ़ रही।
©पंकज प्रियम
बदल दो
साल जो बदला है तो थाली को बदल दो,
कानों में लटकती हुई बाली को बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा कमाल तो कर लो
साले को बदल दो औ साली को बदल दो।।1
काम बदलना है तो सीवी को बदल दो,
गाड़ी को बदल दो औ टीवी को बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा धमाल तो कर लो,
हो गयी पुरानी तो......बीवी को बदल दो।।2
खाना जो पकाना है तो चूल्हे को बदल दो,
दर्द अगर होता है तो कूल्हे को बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा निहाल तो कर लो
हो गया पुराना तो.....दूल्हे को बदल दो।।3
हाल जो बेहाल है तो फिर हाल बदल दो,
धीमी पड़ी रफ्तार तो फिर चाल बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा बवाल तो कर दो,
मिल गया ठिकाना तो ससुराल बदल दो।।4
पैकेट वही रक्खो मगर सामान बदल दो,
पड़ोसन जो तड़पाये तो मकान बदल दो।
राहुल का मरियम से तो निकाह करा दो,
दहेज में फिर पूरा पाकिस्तान बदल दो।।5
शाह को मिलता है जो सत्कार बदल दो।
काम कराने का वो...संस्कार बदल दो
सरकार का जो काम है वो काम तो करे,
सो गयी सरकार तो... सरकार बदल दो।6
दुश्मनी की सारी वो.. तकरार बदल दो,
अपनों के लहू से सने तलवार बदल दो।
पत्थर जो चलाये उसे उसपार तो भेजो,
जो डूब रही नौका तो पतवार बदल दो।।7
अब पाक परस्ती के समाचार बदल दो,
नापाक इरादों का वो व्यवहार बदल दो।
कश्मीर जो मांगे तो तुम लाहौर को घेरो,
भारत का पुराना वही आकार बदल दो।।8
©पंकज प्रियम
यादें
कोई जब याद आता है तो यादें याद आती है,
यादों के दरमियां जाकर वो बातें याद आती है।
मेरे जो पास होकर भी, नहीं वो पास मेरे होते,
जो आंखों में कभी गुजरी,वो रातें याद आती है।।
©पंकज प्रियम
नभ में इतराइ जब तरुण-अरुण लालिमा
रक्त किरणों से सजा जब धरा- आसमां।
पुलकित प्रभात जल-तरंगों से आ मिला,
हर्षित हुआ पंक तो जल से कमल खिला।
©पंकज प्रियम
साल की दहलीज़
इस साल की दहलीज़ पे आकर के खड़े हैं
क्या खोया-क्या पाया इसी चक्कर में पड़े है
नए साल में रखना तू कदम देखभाल कर
यहां गड्ढे भी बहुत है यहाँ ठोकर भी बड़े हैं।
नए साल में आएगा फिर चुनाव का मौसम
मिल जाएंगे नेता खड़े हाथ जोड़े हर कदम
देना तू अपना वोट... जरा ठोक-ठाक कर
ना आएंगे नेता कभी... फिर देने को दर्शन।
कुछ काम करो, नाम करो, देश का अपना
जैसे भी करो, पूरा करो तुम देश का सपना
इस देश की मर्यादा को रखना सम्भाल कर
बड़े शान से लहराना ध्वज देश का अपना।
©पंकज प्रियम
साल जो बदला है तो थाली को बदल दो,
कानों में लटकती हुई बाली को बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा कमाल तो कर लो
साले को बदल दो औ साली को बदल दो।
साल जो बदला है तो सीवी को बदल दो,
गाड़ी को बदल दो औ टीवी को बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा धमाल तो कर लो,
हो गयी पुरानी तो......बीवी को बदल दो।।
साल जो बदला है तो चूल्हे को बदल दो,
दर्द अगर होता है तो कूल्हे को बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा निहाल तो कर लो
हो गया पुराना तो.....दूल्हे को बदल दो।।
साल जो बदला है तो फिर हाल बदल दो,
धीमी पड़ी रफ्तार तो फिर चाल बदल दो।
नए साल में कुछ ऐसा बवाल तो कर दो,
मिल गया ठिकाना तो ससुराल बदल दो।।
साल जो बदला है तो.. सामान बदल दो,
पड़ोसन जो तड़पाये तो मकान बदल दो।
राहुल का मरियम से तो निकाह करा दो,
दहेज में फिर पूरा पाकिस्तान बदल दो।।
©पंकज प्रियम
साल जो बदला है तो शहकार बदल दो,
नेता को मिलता है जो सत्कार बदल दो।
सरकार का जो काम है वो काम तो करे,
सो गयी सरकार तो... सरकार बदल दो।1
दुश्मनी की सारी वो.. तकरार बदल दो,
अपनों के लहू से सने तलवार बदल दो।
पत्थर जो चलाये उसे उसपार तो भेजो,
जो डूब रही नौका तो पतवार बदल दो।।2
अब पाक परस्ती के समाचार बदल दो,
नापाक इरादों का वो व्यवहार बदल दो।
कश्मीर जो मांगे तो तुम लाहौर को घेरो,
भारत का पुराना वही आकार बदल दो।।3
थरथराते हाथ ये मेरे,बज रहे दांत ये प्यारे,
रजाई में छुपा रखा,कंपकपाते गात ये प्यारे।
बड़ी ज़ालिम है#सर्दी ये,सताती तन्हा रातों को,
उड़ाती नींद है मेरी, तेरी मुलाकात ये प्यारे।।
©पंकज प्रियम
क्यूँ डर लगता है साहब!
क्यूँ डरते हो शाह तुम,
क्यूँ भरते हो आह तुम।
ये देश नहीं गद्दारों का,
क्यूँ करते परवाह तुम।।
कभी डरता वो खान है
कहता खतरे में जान है
जिसने तुम्हें पहचान दी
वही मुल्क हिंदुस्तान है।
बंगलों में तुम रहते हो
रुपयों में तुम बहते हो
जब घेरा पहरेदारों का
क्यूँ फिर तुम डरते हो।
कहाँ खौफ़ इंसानों में
कहाँ खौफ़ किसानों में
सीमा पर तैनात सदा
कहाँ खौफ़ जवानों में ।
जब भी विपदा आयी है
खुद ही राह दिखायी है
खौफ़ नहीं तलवारों का
खुद का लहू बहायी है।
कण-कण माटी चंदन है
जन-जन करती वंदन है
सानी नहीं संस्कारों का
भारत ही अभिनन्दन है।
खौफ़ नहीं हथियारों से
न दुश्मन की तलवारों से
मुल्क है वीर जवानों का
ख़तरा है बस गद्दारों से।
देश में जितने संहार हुए
पीछे से ही सारे वार हुए
साथ मिला जयचंदो का
दुश्मन जो सीमापार हुए।
हमलों से हम बर्बाद रहे
फिर भी हम आबाद रहे
दुश्मन को धूल चटाकर
हम करते जिन्दाबाद रहे।
बंटवारें का तो दंश मिला
कहाँ हमारा वो अंश मिला
सियासी द्यूत खेले शकुनि
कुर्सी पर बैठा कंस मिला।
जो भी आया शरण मिला
सबको अपना धरम मिला
ना ही द्वेष ना ही भेद कोई
सबको अपना करम मिला।
किस देश में इतनी आज़ादी
किस देश में इतनी आबादी
भारत सबको आश्रय देकर
खुद ही सहता सब बर्बादी।
जिस मुल्क ने पहचान दिया
मान दिया अभिमान दिया
आज उसी को गाली देकर
क्या खूब ही सम्मान दिया।
कुछ शर्म करो डरने वालों
स्वार्थ में हरपल मरने वालों
किस हद तक गिर जाओगे
बदनाम देश को करने वालों।
देखो जाकर पाकिस्तान में
चले जाओ किसी जहान में
समझ में तब आ जाएगा
कितना सुकून हिंदुस्तान में।
©पंकज प्रियम
बरखा और बिजली
अरि ओ बरखा! तू आती है
तो क्यूँ बिजली चली जाती है ?
तुम दोनों क्यूँ इतना सताती है
तू आती है वो चली जाती है
तू बरखा और वो है बिजली
कभी सौतन तो कभी सहेली।
उधर तेरा फॉल डाउन हुआ
इधर इसका ब्रेकडाउन हुआ।
तेरा ये टिप-टिप के बरसाना
उसका ट्रिप-ट्रिप से तरसाना।
तेरा कैसा ये आपसी नाता है
हरबार ही मुझको सताता है।
उफ़्फ़!दिसम्बर की ये बारिश
और बिजली की ये साज़िश।
क्यूँ इतना मुझको सताती है
क्या ऐसे ही प्यार जताती है!
©पंकज प्रियम
इश्क़ की आग मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।
दिल की ये आग भला कैसे बुझा पाऊंगा
आजा-आजा मेरे शोलों को बुझाने वाले।
मैं तेरे प्यार में जो नग़मे लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।
मैं तेरी याद में रातों को जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।
मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।
इस मुहब्बत को निगाहों में बसाये रखना
मेरी तस्वीर को ख़्वाबों में सजाने वाले।
ऐ प्रियम कौन मिटाएगा दुनिया से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।
©पंकज प्रियम
बरखा और बिजली
अरि ओ बरखा! तू आती है
तो क्यूँ बिजली चली जाती है ?
तुम दोनों क्यूँ इतना सताती है
तू आती है वो चली जाती है
तू बरखा और वो है बिजली
कभी सौतन तो कभी सहेली।
उधर तेरा फॉल डाउन हुआ
इधर इसका ब्रेकडाउन हुआ।
तेरा ये टिप-टिप के बरसाना
उसका ट्रिप-ट्रिप से तरसाना।
तेरा कैसा ये आपसी नाता है
हरबार ही मुझको सताता है।
उफ़्फ़!दिसम्बर की ये बारिश
और बिजली की ये साज़िश।
क्यूँ इतना मुझको सताती है
क्या ऐसे ही प्यार जताती है!
©पंकज प्रियम
इश्क़ की आग मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।
दिल की ये आग को कैसे मैं बुझा पाऊंगा
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।
मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।
मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।
मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।
इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।
ऐ प्रियम कौन मिटाएगा दुनिया से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।
©पंकज प्रियम
इश्क़ की आग मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।
इस आग को अब कैसे बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।
मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।
मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।
मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।
इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।
ऐ प्रियम कौन मिटाएगा दुनिया से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।
©पंकज प्रियम
इश्क़ की आग मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।
इस आग को अब कैसे बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।
मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।
मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।
मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।
इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।
ओ"प्रियम" कौन मिटाएगा दिल से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।
©पंकज प्रियम
इश्क़ की आग मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।
इस आग को अब कैसे बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।
मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।
मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।
मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।
इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।
ओ"प्रियम" कौन मिटाएगा दिल से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।
©पंकज प्रियम
इश्क़ की आग मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।
इस आग को अब कैसे मैं बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।
मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।
मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।
मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।
इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।
ओ"प्रियम" कौन मिटाएगा दिल से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।
©पंकज प्रियम
इश्क़ की आग मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।
इस आग को अब कैसे मैं बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।
मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।
मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।
मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।
इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।
ओ"प्रियम" कौन मिटाएगा दिल से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।
©पंकज प्रियम
सर्दी
अरि ओ सर्दी!
तू कितना और गिरेगी
कुछ तो लिहाज़ कर।
कटकटा रहे हैं दाँत मेरे
थरथरा रहे है हांथ मेरे।
नाक से बह रही गंगा-सी धारा
रजाई भी नहीं दे रही है सहारा।
खुद ही खुद से मैं सिमट रहा हूँ
दिनभर बिस्तर से लिपट रहा हूँ।
हाथ-पैर जो हैं सुन्न पड़े
इसलिए हैं अछून्न खड़े।
दो मुट्ठी बांधे जेब भरे
लब कहते हैं हरे-हरे।
तापमान पे कुछ कर कंट्रोल
कितना गिरेगा कुछ तो बोल।
ठंड से क्या तू खुद मरेगी
अरि और कितना गिरेगी?
©पंकज प्रियम
Read my thoughts on YourQuote app at https://www.yourquote.in/pankaj-bhushan-pathak-opz8/quotes/arii-o-srdii-tuu-kitnaa-aur-giregii-kuch-lihaaz-kr-kttkttaa-knziq
ऐ ठंड!
ऐ ठंड ! अब और न सता
तेरा क्या मकसद है?बता!
मेरी छोड़ो, सह लूँगा मैं
लेकिन उनकी तो सोचो
सड़क किनारे जो हैं सोये
आखिर उनकी क्या खता?
ऐ ठंड अब और न सता।
भर दिन कचरों को चुनते
रात राह नजरों को बुनते
अख़बार ओढ़कर जो सोते
आख़िर उसकी क्या ख़ता?
ऐ ठंड! अब और न सता।
रेल की पटरियों के किनारे
खेत में फसलों को निहारे
गरीब किसानों की सोचो
आख़िर उनकी क्या ख़ता?
ऐ ठंड! अब और न सता।
गांव का वो अलाव कहाँ
खलिहान का पुआल कहाँ
एसी के बंद कमरों में भी
घुटन का तुझको है पता?
ऐ ठंड!अब और न सता।
दिसम्बर की ये सर्द रात
बर्फीली हवा की सौग़ात
सरहद पे जो है वीर खड़ा
आख़िर उनकी क्या ख़ता?
ऐ ठंड !अब और न सता।
©पंकज प्रियम
बोया बीज नफरत का तो गाली ही खाओगे,
अगर पत्थर चलाओगे तो गोली ही खाओगे।
सुनो पत्थरबाजों तुम,क्यों गुमराह होते हो,
करोगे काम जो ऐसा तो गोली ही खाओगे।।
©पंकज प्रियम
#पुलवामा_काण्ड
लिहाफ़
दिन में देखकर भले ही मुंह मोड़ लेना,
मेरे हर तोहफ़े को बेशक तुम तोड़ देना।
लेकिन ठंड अधिक सताए तो मेरी जान,
मेरी गर्म यादों का लिहाफ़ तू ओढ़ लेना।।
©पंकज प्रियम
दिल की बातें दिल से करता, कैसा दिल नादान है
अपनी सुनता अपनी करता, कैसा दिल नादान है
जीतकर दिल जो हार जाये,इश्क़ समंदर लहराए
खुद ही खुद को है तड़पाता, ऐसा दिल नादान है।
©पंकज प्रियम
चुनरी
उड़-उड़ जाए तेरी चुनरिया,
मेरा दिल धड़काए
रह-रह के तड़पाये गोरिया
जब चुनरी तू सरकाए
रंग-बिरंगी चुनर तेरी
तितली भी शरमाये
आसमां में छाए बदरी
इंद्रधनुषी सी भरमाए।
धक-धक के धड़काये गोरिया
जब चुनरी तू सरकाए।
रह-रह..
धानी तेरी चुनर गोरी
मन में लगन लगाए
लाली तेरी चुनर गोरी
तन में अगन जगाए।
मह-मह के महकाए गोरिया
जब चुनरी तू सरकाये
रह-रह के बहकाए गोरिया
जब चुनरी तू सरकाए
©पंकज प्रियम
मुक्तक/किया होता
कभी खुद पे भी भरोसा किया होता
कभी मुझ पे भी भरोसा किया होता
मुहब्बत हो जाती, यकीनन तुझको
कभी उस पे ना भरोसा किया होता।
कभी मुझसे प्यार तो किया होता
कभी मुझसे इक़रार तो किया होता
रख देता चाँद, तेरे कदमों के तले,
कभी मुझसे इज़हार तो किया होता।
©पंकज प्रियम
मत सोच की जमाना क्या कहेगा
जो लिखा है वही तो होकर रहेगा
कर ले जमाना चाहे कुछ भी तेरा,
तू इंसा है तुझे इश्क़ होकर रहेगा।
©पंकज प्रियम
शुक्रिया तेरा बहुत,
ओ भले इंसान
सबकी चाहत होती
पिंजर में हो कैद उड़ान।
कैसे तुमने समझा मुझको
कैसे तुमने दिया सम्मान
तुम हो इंसां या हो नादान
सबने चाहा मुझे कैद करना
मेरी बेवशी पर मौज करना
कुतर-कुतर के मेरे पर
दे दिया लोहे का पिंजर
खिलखिलाते सब सुनकर
पिंजरे से टकराते मेरे स्वर
शुक्रिया तेरा करूँ अभिनन्दन
सुना तुमने मेरा करुण क्रन्दन।
दिया तुमने मुझको आसमान
तू इंसां है या है फिर नादान।
लालिमा फिर निकली नभपर
हौसला मिला फिर मुझे अम्बर
पंख फैला फिर उड़ी अपने पर
मिली मुझको फिर अपनी उड़ान
शुक्रिया तेरा करूँ ओ भले इंसान
तू इंसा है या फिर है नादान।
©पंकज प्रियम
दिल पोपट मेरा बोले रे
धक-धक जियरा डोले रे
जब-जब तुझको देखूं मैं
जब -जब तुझको सोचूं मैं
कुहू -कुहू दिल मेरा बोले रे
धक-धक..
जब मैं तुझसे बात करूँ
तुझसे जो मुलाकात करूँ
कनवा शहद सा घोले रे
धक-धक....
जब जब तुझको याद करूँ
दिल को अपने आबाद करूँ
धड़क -धड़क दिल मेरा होले रे
धक- धक.....
सपनों में जब तुम आते हो
आंखों से निंदिया उड़ाते हो
बोलो क्या दिल तेरा बोले रे
धक -धक जियरा डोले रे
मन मैना मेरा बोले रे
धक- धक जियरा डोले रे।
©पंकज प्रियम
सुबह की धूप जैसी है, जवानी रूप जैसी है,
तेरी सादगी महकती, सुगन्धित धूप जैसी है।
नहीं कोई शिकायत है, नहीं कोई बगावत है-
तेरी चाहत बड़ी सच्ची, रसीली सूप जैसी है।।
© पंकज प्रियम
हंसी लड़कपन के हसीन
वो_मीठे_मीठे_पल
याद है बचपन के
वो गुजरे हुए सारे कल।
न चेहरे पे चिंता कोई
न माथे पे शिकन
हंसी-खुशी गुजरे थे
बचपन के सारे पल।
माँ की गोदी में होती,
तब सारी जन्नत जहां
नानी की लोरी में होती
तब सारी मन्नत जहाँ।
नाम शोहरत की अब
है बड़ी दुनियाँ जहाँ
सुकून बचपन का अब
है यहाँ मिलता कहाँ?
©पंकज प्रियम
जरलाहा जाड़/खोरठा गीत
चले लागल हावा कइसन,भींगे रे चुनरिया
जरलाहा जाड़ कइसन,लागे रे गुजरिया।
थरथर देह कांपे,कटकटाय दंतवाँ
कनकनी हवा बहे,कंपकँपाय हंथवा।
कम्बल कम पड़े,कम पड़े चदरिया।
जरलाहा जाड़ कइसन, लागे रे गुजरिया।
पनिया करंट मारे, कैसे हम नहैबे
खनवा भी ठंडा लागे, कैसे हम खैबे।
पूजा पाठ कैसे हम, करबे रे पूजरिया
जरलाहा जाड़ कइसन, लागे रे गुजरिया।
©पंकज प्रियम
मुखड़ा
हर घड़ी हर पहर,सुबहो-शाम रहता है
मेरे होठों पर बस तेरा ही नाम रहता है.
अंतरा 1
जब से देखा है तुझे,हो गया है क्या मुझे
तेरी सूरत के सिवा,कुछ नहीं दिखता मुझे
मेरी आँखों में बस तेरा ही अक्स रहता है।
हर घड़ी...
2.
तू चँचल सी हवा, तू शीतल सी हवा
छू गयी मेरा बदन, न जाने क्या हुआ
मेरे जिस्मों में बस तेरा ही गुलाब रहता है।
हर घड़ी...
3.
पल में पलकों से मेरी,पल में तू खो गई
पल में अपनों सी मेरी,पल में तू हो गई
मेरी पलकों में बस तेरा ही ख़्वाब रहता है।
हर घड़ी....
4.
ऐ हवा ! ऐ फ़िजां! ऐ गगन! ऐ घटा !
है मेरा मेहबूब कहाँ, उसका तू दे पता।
मेरी गजलों में बस तेरा ही पैगाम रहता है।
हर घड़ी हर पहर, सुबहो-शाम रहता है
मेरे होठों पर बस तेरा ही नाम रहता है।
©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"