Thursday, May 31, 2018

356.निशानी है बहुत

356.निशानी है बहुत
हार की खातिर तेरी ये बेईमानी है बहुत
तेरी हरचाल ही जानी पहचानी है बहुत।
तेरे ख्यालों से पहले सब जान जाता हूँ
तुम्हारे दिल में ही छुपी कहानी है बहुत।
तुम्हारे हर कदम को पहचान जाता हूँ
बनके अनजान करती नादानी है बहुत।
क्या छुपाओगे तुम, हमसे हाल अपना
तेरी जिंदगी में बिखरी परेशानी है बहुत।
कभी फुर्सत मिले तो ज़ानिब आ जाना
तुझे अपनी भी कहानी,सुनानी है बहुत।
तेरे ही दर्द से जख़्म हुआ है यहाँ गहरा
मेरे दिल में जख़्म की निशानी है बहुत।
बहुत गुरुर न तुम,अपने हुश्न पे यूँ करना
इन आँखों ने यहाँ देखी,जवानी है बहुत।
इश्क़ समंदर भी पार उतर आया प्रियम
मेरी कहानी की दुनियां दीवानी है बहुत।
©पंकज प्रियम
31.5.2018

355.अपना बनाकर मानेंगे

355.अपना बना कर मानेंगे
धड़कन दिलों की आज बढ़ा कर मानेंगे
होश उनके हम तो आज उड़ा कर मानेंगे
चले जाओ, जहां आज तुमको है जाना
मुहब्बत का शमां आज जला कर मानेंगे
कैसे भूलोगे लम्हें जो कभी साथ गुजारा
हरपल का हिसाब हम चुका कर मानेंगे।
मेरी नजरों से दूर चाहे जहां छुप जाना
महफ़िल में भी दिल तो चुरा कर मानेंगे।
कर दो मुहब्बत में लाख रूसवा मुझको
इश्क़ समंदर तुझको तो डूबा कर मानेंगे।
निभा ले दुश्मनी प्रियम से तू खूब अपना
कसम से तुझको अपना बना कर मानेंगे।
©पंकज प्रियम
29.5.2018

354.ऐतबार

354.एतबार
जिन्दगी की तरह मुझसे तू प्यार कर
एक पल ही सही मुझपे एतबार कर।
चार दिनों की तो फ़क़त जिंदगानी है
कर ले मुहब्बत,न कभी तकरार कर।
हर लम्हा ये जिंदगी,कहती कहानी है
बढ़ा ले कदम,न कभी तू इंतजार कर।
तेरे ही इश्क़ में लिख दी मैंने जवानी है
मैंने तो कर दिया,तू जरा इकरार कर।
तेरी हर धड़कन,प्रियम की दीवानी है
मान ले दिल की तू ,न यूँ इनकार कर।
©पंकज प्रियम
28.5.2018

Saturday, May 26, 2018

353.जेठ की तपिश

जेठ की तपिश

झुलसी है धरती सारी
झुलसा सारा आसमां
जेठ की तपन में देख
,झुलसा ये सारा जहां।

आग के शोले बरस रहे
बूंद बूँद लोग तरस रहे
धरती कैसी धधक रही
शोलों सा ये दहक रही।

सांय सांय करती हवा
छांव ही बस देती दवा
दूर दूर अब पेड़ नहीं
कैसी गर्म बहती हवा।

तपिश जेठ से आस है
मन का ये एहसास है
तपती धरती से ही तो
बारिश का विश्वास है।
©पंकज प्रियम

352. जलता है

जुनूँ हर दिल में पलता है
सितारे तोड़ लाने का जुनूँ हर दिल में पलता है।
मगर सितारों से भी दूर तलक ये दिल ढलता है।
अपनी मुहब्बत से भी झूठी कसमें जो खाता है
चाँद सितारे तोड़के लाने की बात वही करता है।
सच्ची मुहब्बत के सिवा नहीं है,कुछ तो पास मेरे
इश्क़ की रौशनी में दिल मेरा जुगनू से जलता है।
जो कह दो अगर,मैं भी तो चाँद तोड़ लाऊं मगर,
टूटते चाँद को देखना,मेरे ही दिल को खलता है।
जो कह दो अगर,इक ख़्वाब मैं भी सजा लूं मगर
हो न सके जो पूरे ख़्वाब तो दिल बड़ा सालता है।
मुहब्बत की बाज़ी लगाकर देख ली सबने प्रियम
जो हार गए दिल अपना,बैठकर हाथ मलता है।
©पंकज प्रियम
26.5.2018

Friday, May 25, 2018

351.क्यों है

क्यों है।
सबने पाली यहाँ इतनी हसरतें क्यों है?
हर दिल में बसी इतनी नफ़रतें क्यों है।
चंद खुशियों की तलाश में भटक रहे
अपनों से ही हुए इतने बेगाने क्यों है।
सबको तो नहीं मिलता मुकद्दर यहाँ
हासिल करने की चाह रखते क्यों है।
मौत तो हर किसी का मुक़म्मल यहाँ
न जाने फिर मौत से सब डरते क्यों हैं।
जिंदगी का कोई कहाँ ठिकाना यहाँ
जीने के लिए यहाँ सब मरते क्यों है।
हर किसी का अपना है मुकद्दर यहां
फिर प्रियम,सबसे लोग जलते क्यों हैं।
©पंकज प्रियम
25.5.2018

350.आया ही नहीं

आया ही नहीं।
राज अपना तो बताया ही नहीं।
इश्क़ हमसे तो जताया ही नहीं।
आपने वादा जो किया था हमसे
वो कभी भी तो निभाया ही नहीं।
दिल से हम तो मुहब्बत करते रहे
इश्क़ में गुणा भाग आया ही नहीं।
दिल में आया सो कह दिया हमने
प्यार में कभी कुछ छुपाया ही नहीं।
अंदर ही सब दर्द सह लिया हमने
दुनियां को जख़्म दिखाया ही नहीं।
हर सितम चुपचाप सह लिया हमने
जिंदगी में किसी को रुलाया ही नहीं।
सादगी में ही जिंदगी जी लिया हमने
ख़्वाब को आंखों में बसाया ही नहीं।
खुद से ही खुद को मना लिया हमने
आपने कभी हमको मनाया ही नहीं।
©पंकज प्रियम
25.5.2018

Thursday, May 24, 2018

349.हो गए अपने

हो गए अपने
प्यार के साथ यूँ लगे बहने
गैर भी आज हो गए अपने
इश्क़ में जो छू लिया तुमने
जख़्म मेरे अभी लगे भरने।
इश्क़ ही तो किया था हमने
लोग हमसे यहां लगे जलने।
लौट आयी जो मुहब्बत मेरी
ख़्वाब फिर बहुत लगे पलने।
जो ख़्वाब कभी देखा हमने
ख़्वाब वही फिर लगे सजने।
बन्द आंखों ने जो तब देखा
आज मेरे पूरे हो गए सपने।
इश्क़ में क्या लिखा है तुमने
आज प्रियम से लगे मिलने।
©पंकज प्रियम

348.मोबाइल

मोबाइल।

मोबाइल से फासले तो मिटने लगे
स्मार्ट हुआ तो लोग सिमटने लगे।

एक साथ भी लोग तन्हा रहने लगे
एक कमरे में भी,अलग रहने लगे।

नजरें तो मिलाकर बात करते नहीं
मोबाइल में ही तो सर झुकने लगे।

ठहाकों की अब गूंज होती नहीं
इमोजी में ही तो लोग हंसने लगे।

गप्पें भी अब यहाँ तो होती नहीं
चुपचाप बैठे सब चैट करने लगे।

इस कदर सेल्फिश बनाया इसने
सेल्फ़ी में ही सब खुश रहने लगे।

आदमी को ऐसा कर दिया इसने
मोबाइल हमसे स्मार्ट बनने लगे।
©पंकज प्रियम
24.5.2018

347.याद तो आएगी

347.याद तो आएगी
आवाज़ हमारी तुम्हें याद दिलाएगी
वो बात हमारी तुम्हें रोज सताएगी।
जो साथ हमारे तूने साथ तो गुजारा
वो साथ हमारी तुम्हें याद तो आएगी।
हर रात मैंने तुम्हें जो चाँद सा बनाया
वो रात हमारी तुम्हें बहुत ही रुलाएगी।
ख्वाबों में अपने हरदम तुम्हें ही बसाया
क्या पता था ख्वाब मेरा ही बिखराएगी। 
उनकी खामोशी को लफ्ज़ों से सजाया
सोचा नहीं मेरे लब खामोश कर जाएगी।
उनकी जफ़ाओं पे भी तो एतबार किया
सोचा नहीं प्रियम की,दिल तोड़ जाएगी।
©पंकज प्रियम
24.5.2018

Wednesday, May 23, 2018

346.क्या बात करती है!

345.क्या बात करती है!
तोड़कर सारे रिश्ते,तू क्या बात करती है
भूलकर सारे लम्हें,तू किसे याद करती है
कैसे करेगा यहाँ कोई तुझपे अब भरोसा
फ़रेबी नजरों से अब मुलाकात करती है।
मत मांग दुवाएँ किसी के लिए अब यहाँ
दिल तोड़कर खुदा से फरियाद करती है।
हसीं ख़्वाब जो था तुमने मुझे दिखाया
याद करके आँखे मेरी बरसात करती है।
तब तलक खुद मुहब्बत उसने जगाया
अब मेरे जज्बातों पे सवालात करती है।
अपने लबों पे मेरा ही नाम तब सजाया
अब मुझे ही बदनाम दिनरात करती है।
उनकी जफ़ाओं को समझा नहीं प्रियम
अब तो दुश्मनों से वो प्रतिघात करती है।
©पंकज प्रियम
23.5.2018

Tuesday, May 22, 2018

345.देना पड़ेगा

345.देना पड़ेगा
यहां नहीं मगर,वहां तो कहना पड़ेगा
हर सवाल का तो जवाब देना पड़ेगा।
तेरे दर्द को आंखों से बहाया जो हमने
आँसू के कतरे का हिसाब देना पड़ेगा।
तेरे इश्क़ में लिख दिया जिंदगी हमने
उसी जिंदगी का हिसाब देना पड़ेगा।
तेरी यादों की लिहाफ़ में गुजारी रातें
सारी रातों का हिसाब तो देना पड़ेगा।
मेरे बगैर कैसे जीवन है गुजारा तुमने
हरेक पल का हिसाब तो देना पड़ेगा।
तेरे हर दर्द का ख्याल रखा था जिसने
मर्ज की दवा तो प्रियम को देना पड़ेगा।
©पंकज प्रियम
22.5.2018

344.मोहब्बत की दास्तां

344. मोहब्बत की दास्तां

इश्क़ में अब और नहीं कोई धोखे खाये
किसी की आँख दर्द से न यूँ छलछलाये।

मुहब्बत नाम है सबसे हसीं ख्वाबों का
फिर मुहब्बत में सबने क्यूँ आँसू बहाये।

रवायत बन गयी है दिल तोड़ जाने का
इश्क़ की गलियों में सबके दिल लुटाये।

क्या सुनाएं अपनी मुहब्बत की दास्तां
इश्क़ की गलियों में हमने भी चोट खाये।

मतलबों में तो उन्होंने खूब गले लगाया
निकल गया जो काम, तो कन्नी कटाये।

तब तलक कृष्ण से लगे उनको"प्रियम"
मिला कोई और तो कैसे रावण बनाये।
©पंकज प्रियम
22.5.2018

343.दीवानी है

343.दीवानी है
मेरे दिल में उतरने की तूने तो ठानी है
जो डूबे तो मत कहना,दिल तूफानी है।
इश्क़ का लहराता समंदर है ये दिल मेरा
मदहोश करती यहां मौजों की रवानी है।
है अगर जुनून मुहब्बत में जल जाने का
पार उतर जाओ,ये दहकती जवानी है।
लिख दिया मुहब्बत का अफ़साना हमने
हर लफ्ज़ कहती जिसमें तेरी कहानी है।
भले आज तुम,हमें छोड़कर चले जाना
मिटाओगे कैसे,जो दी हमने निशानी है।
किस्सा तेरे इश्क़ का यूँ मशहूर हो गया
पूरी दुनिया ही हुई प्रियम की दीवानी है।
©पंकज प्रियम
21.5.2018

342.चोट

342.दिल की चोट

निगाहों से भी बड़ी चोट लगती साहेब!
कोई देखकर भी अनदेखा कर जाता है
कत्ल भी कर जाते हैं,वो बड़े आराम से
उनपर कोई इल्ज़ाम भी नहीं आता है।

दिल को भी बहुत चोट लगती है साहेब
जब औरों के लिए अपना रूठ जाता है
एक कतरा खून भी नहीं बहता दिल से
और शीशे की तरह ये दिल टूट जाता है।

अपनों से भी बड़ी चोट लगती है साहेब
जब अपना कोई बदनाम कर जाता है
बेवजह सजा किसी और को मिलती है
और कत्ल करके भी कोई बच जाता है।

लफ्ज़ों से भी बड़ी चोट लगती है साहेब
मतलब में अपना भी झूठ बोल जाता है
न कोई सबूत ,न ही कोई गवाह मिलते
लफ्ज़ों से ही कोई कत्ल कर जाता है।

भरोसे पर बहुत चोट लगती है साहेब
जब कोई अपना विश्वास तोड़ जाता है।
इक आवाज़ तक भी नहीं है निकलती
और भरोसे से भी भरोसा उठ जाता है।

मुहब्बत से भी तो चोट लगती है साहेब
जब अपना ही कोई दिल तोड़ जाता है
बेपनाह मुहब्बत जिससे, हम हैं करते
गैरों के लिए कैसे पल में बदल जाता है।
©पंकज प्रियम
21.5.2018

341.बातें

341.बातें

कल करती थी वो मीठी बातें
अब करती है वो झूठी बातें।

क्या सुलझाएगी वो ये रिश्ते
अब करती है वो उलझी बातें।

तेरे ख्वाबों में ही मैं रहता था
भूल गयी क्या वो सारी बातें।

मेरा ही नाम हमेशा जपते थे
याद नहीं क्या वो प्यारी बातें।

नफ़ा नुकसान में तौली चाहत
अब करती है वो बाजारी बातें।

वादे तो सारे तोड़ दिया है उसने
अब करती है वो सरकारी बातें।

बात बात पे अब चोटिल करती
अब करने लगी है दो धारी बातें।

अब तो तौबा कर लो तुम प्रियम
अब करने लगी वो कटारी बातें।
©पंकज प्रियम
20.5.2018

340.शब्दों का व्यापार

340.शब्दों का कारोबार

शब्दों का मेरा कारोबार है जी!
अपना तो यही व्यापार है जी!
इससे कोई रूठे तो क्या करूँ?
शब्द ही तो मेरा रोजगार है जी।

शब्दों में ही मेरा संसार है जी
इसमें अपना अधिकार है जी
अपने ही लुटे तो मैं क्या करूँ
शब्दों में ही मेरा घरबार है जी।

शब्दों ने किया इंतजार है जी।
इसी ने तो किया एतबार है जी
सांसे ही छूटे तो मैं क्या करूँ?
शब्दों से हुआ मुझे प्यार है जी!

शब्दों से ही पाया संस्कार है जी
सिखाया इसी ने व्यवहार है जी
नफा में हो घाटे,तो क्या करूँ
किया यही तो करोबार है जी!

©पंकज प्रियम
20.5.2018

Sunday, May 20, 2018

339.आतंकी का धर्म

आतंकी का धर्म

आतंकी का कोई धर्म नहीं
फिर क्यूँ मोहलत पाया है।
माह रमजान में भी देखो
कैसे उसने खून बहाया है।

वो अपना त्यौहार मनाएंगे
हम बैठकर आँसू बहाएंगे
जवानों की देंगे कुर्बानी
क्या यही नीति अपनाएंगे।

फिर कैसा युद्ध विराम है
कर दिया जीना हराम है
धोखा उसकी फितरत है
कहाँ माना कि विश्राम है।

क्या सस्ती इतनी जान है
सरहद पे मरता जवान है
खत्म कर दो सारे आतंकी
क्या होली, क्या रमजान है!

©पंकज प्रियम
20.5.2018

Saturday, May 19, 2018

338.फिर भारत रोया है

#शहीद सीताराम को श्रद्धांजलि

फिर भारत रोया है

अरे!पाक तू औकात पे आया है
क्या नापाक हरकतें दिखाया है
रमजान की मिली थी मोहलत
उसमें भी तुमने आपा खोया है।

एक माँ ने अपना लाल खोया है
पत्नी ने अपना सिंदूर धोया है।
तड़प उठी देखकर धरती सारी
एकबार फिर से भारत रोया है।

देखो वीर शहीद घर पे आया है
आंखों से शैलाब उमड़ आया है
अमर हो गयी है उसकी कहानी
कफ़न में भी तिरंगा लहराया है।

अरे पाक!तू आतंक का साया है
मत भूल जब भी भारत रोया है
हरबार ही तो तूने मुंह की खाई
वीर जवानों ने जमकर धोया है।
©पंकज प्रियम
19.5.2018

337.देखना

देखना
एक दिन मुहब्बत मिलेगी देखना
वो लौट के फिर से आएगी देखना।
चले जाओ दूर हमसे जहां है जाना
मेरी याद तुझे रोज सताएगी देखना।
सारे वादे तोड़कर,मुझे छोड़ जाना
तन्हाई फिर तुझे,रुलाएगी देखना।
कसम मेरी तोड़कर,उनकी निभाना
वो भी कसम कैसे निभाएगी देखना।
मत उदास हो तुम आज ऐसे प्रियम
तेरी चाहत भी रंग जमाएगी देखना।
©पंकज प्रियम
19.5.2018

Friday, May 18, 2018

336.खामोशी

मेरी ख़ामोशी

दिल मे क्या गुजरी है ,कोई बताएगा क्या
जो गुजरा है लम्हा,लौट के आएगा क्या।

छोड़कर गए वो तन्हा हमें करके रूसवा
दिल में जो जख़्म बना,भर पाएगा क्या।

उनसे मुहब्बत बेपनाह, हमने था किया
मेरी चाहत को कभी भूल पाएगा क्या।

जो मेरी एक झलक का यूँ तलबगार था
दूर हमसे रहकर चैन से सो पाएगा क्या।

चले जाओ न दूर,जहां भी तुम्हे है जाना
दर्द देकर यूँ दिल को,सुकून पाएगा क्या।

तेरे लफ्ज़ को वो ,बेताब रहता था प्रियम
तेरी ख़ामोशी को कभी सह पाएगा क्या।
©पंकज प्रियम
18.5.2018

335.दिल की बात

335. दिल की बात
आज मैं भी एक गीत सुनाता हूँ
अपने दिल की मैं बात बताता हूँ।
मैं एक इंसान हूँ कोई रोबोट नहीं
सियासत में बिकता मैं वोट नहीं।
कबतक खामोश यूँ ही बैठा रहूँ
आदमी हूँ, कागज का नोट नहीं।
दिल मेरा भी तो यूँ  धड़कता है
मेरी रगों में भी लहू फड़कता है।
अपनों की बेरुखी से दर्द होता है
कोई कीचड़ उछाले तो ये रोता है।
जहां की रुसवाइयों से डरता नहीं
मुफ़्त की बदनामियों से मरता है।
दुश्मनों के करम का कोई गम नहीं
दोस्तों के सितम से जख़्म होता है
निस्वार्थ मुहब्बत ही नियत है मेरी
दिल में रखता ,मैं कोई खोट नहीं।
रिश्ते तोड़ना, मेरी फितरत नहीं
सम्बन्धों पे करता, मैं चोट नहीं।
हर रिश्ते को मैं ताउम्र निभाता हूँ
मुहब्बत के गीत हमेशा गाता हूँ।
©पंकज प्रियम
18.5.2018

Thursday, May 17, 2018

334.फैशन का बलात्कर

फ़ैशन का बलात्कर

कपड़ों का भी बलात्कार होते देखा है
फैशन में उन्हें  शर्मसार होते देखा है।

कैसे वो सम्भालेंगे किसी की इज्ज़त
जिनकी अस्मत तार तार होते देखा है।

जिन फ़टे कपड़ों को फेंक दिया करते
हमने उसे बड़े मॉल में बिकते देखा है।

लोग कपड़े पहनते हैं तन छुपाने को
बदन दिखाते कपड़ों का दौर देखा है।

कोठे तो मुफ़्त में ही बदनाम है सनम
हमनें सड़कों में बिकता जमीर देखा है।

ग़रीब तो मुफ्त में ही बदनाम है प्रियम
हमने फ़टे कपड़ों में ही अमीर देखा है।
©पंकज प्रियम
17.5.2018

Wednesday, May 16, 2018

333.क्या हो गया?

333.क्या हो गया
देखते देखते क्या से क्या हो गया
दोस्त कैसे मेरा वो बेवफ़ा हो गया।
मेरी खुशी के जो कभी तलबगार थे
दरमियाँ हमारे कैसे फासला हो गया।
सजा कैसे मुक़र्रर कर दिया है तुमने
अदालत के बिना ही फैसला हो गया।
तेरे शहर में तो अब दिल लगता नहीं
जबसे बेवफ़ाई का हादसा हो गया।
चाह कर भी तो तुम्हें भूल पाता नहीं
इश्क़ में कैसा ये तेरा नशा हो गया।
कोर्ट भी तुम्हारा ,तारीख भी तुम्हारी
फैसला करते मानो, तू खुदा हो गया।
इंसा से खुदा बनाया था तुमने प्रियम
तुझको ही छोड़कर वो जुदा हो गया।
©पंकज प्रियम
16.5.2018

Tuesday, May 15, 2018

332. हो न पाएगा

332. हो न पाएगा
डुबाना जिसकी फितरत है सहारा हो न पाएगा
कभी मझधार दरिया का किनारा हो न पाएगा।
दुनियां बड़ी बेदर्द है, देते यहाँ पे सब हैं सितम
जो हमारा न हुआ कभी तुम्हारा हो न पाएगा।
चराग़ मुहब्बत का हमने जो जलाया है सनम
दिलों के रास्ते में कभी भी अंधेरा हो न पाएगा।
गुजर गए हैं जो लम्हें,फिर लौट के ना आएगा
अतीत में डूबकर तो कभी गुजारा हो न पाएगा।
दिलों का बादशाह तो हर दिल में बस जाएगा
जो नजरों से गिरा,आंखों का तारा हो न पाएगा।
हर किसी को दिल में ही बिठा लेते हो तुम प्रियम
तंगदिल कभी आसमां का सितारा हो न पाएगा।
©पंकज प्रियम
15.5.2018

331.बातों बातों में

332. हो न पाएगा
डुबाना जिसकी फितरत है सहारा हो न पाएगा
कभी मझधार दरिया का किनारा हो न पाएगा।
दुनियां बड़ी बेदर्द है, देते यहाँ पे सब हैं सितम
जो हमारा न हुआ कभी तुम्हारा हो न पाएगा।
चराग़ मुहब्बत का हमने जो जलाया है सनम
दिलों के रास्ते में कभी भी अंधेरा हो न पाएगा।
गुजर गए हैं जो लम्हें,फिर लौट के ना आएगा
अतीत में डूबकर तो कभी गुजारा हो न पाएगा।
दिलों का बादशाह तो हर दिल में बस जाएगा
जो नजरों से गिरा,आंखों का तारा हो न पाएगा।
हर किसी को दिल में ही बिठा लेते हो तुम प्रियम
तंगदिल कभी आसमां का सितारा हो न पाएगा।
©पंकज प्रियम
15.5.2018

330. सवाली

हर शख्स सवाली है
दुनियाँ से तो जाना खाली है
दुश्मनी क्यों दिलों में पाली है।
हंसी की चाह जब दुनियां को
हर अक्स बना क्यों रुदाली है।
अहम में रोज ही टूट रहे रिश्ते
लगता यहाँ हर रिश्ता खाली है।
हर रोज दिल टूटता ज़ुबानों से
लगती यहां हर जुबान काली है।
घर टूट रहे स्वार्थ की लड़ाई में
घर घर खनकती रोज थाली है।
कितने जवाब दोगे तुम प्रियम
हर शख्स बना यहां सवाली है।
©पंकज प्रियम
14.5.2018

329.वादा निभा ले

निभा ले

भले तू नफरतों का बाज़ार सजा ले
किया है जो वादा कभी तो निभा लें।

फिर तुम्हें हो जायेगी मुहब्बत हमसे
दिल में जमे वो सारे गुबार तो हटा ले।

अपनी झील का कमल बनाया हमने
और तूने मेरे ही नाम पे कीचड़ उछाले।

तोड़ ही दिया जब सारी कसमों को तूने
मुझे मारने की अब तू कसम ही खा ले।

बातों का सिलसिला तो खत्म किया तूने
जरा मेरी यादों से भी तू खुद को हटा लें।
©पंकज प्रियम
13.5.2018

328.किरदार

किरदार

दुनिया एक रंगमंच है जहां पे
वक्त व जरूरत के हिसाब से
लोगों के किरदार बदल जाते हैं।
कभी कृष्ण,कभी राम तो लोग
यहाँ उसे रावण भी बना देते हैं ।
राम बनना तो बड़ी बात,आज
रावण बनना भी आसान नहीं।
सीता बन सदा पवित्र होकर भी
अग्निपरीक्षा देना आसान नहीं।
आज तो हर घर मे सीता है
बन्धन में दिल सिसकता है।
वो रावण की ही मर्यादा थी ,
कैद में भी सिया सुरक्षित थी।
राक्षस होकर भी उसने कभी
मर्यादा अपनी नहीं तोड़ी थी।
देवता होकर भी देवराज इंद्र ने
अहिल्या का शीलभंग किया।
इंद्र से बढ़िया तो रावण ही था
सिया मर्जी का सम्मान किया।
राम के हाथों मोक्ष की चाह थी
तभी लंकेश ने चुनी यह राह थी।
यहां तो हर पल ही नारी रोती है
यहां  हर रोज अस्मत खोती है।
देखो तो हर व्यक्ति ही रावण है
सोच का दायरा बढ़ा तो राम है।
एक गलती की सजा हरसाल
यहाँ पर भुगतना आसान नहीं।
रावण बनकर हरबार भीड़ में
जल जाना भी आसान नहीं।
राम तो बड़ी बात है,आज
रावण भी बनना आसान नहीं।
©पंकज प्रियम

Monday, May 14, 2018

327.दर्द बनके पिघलने लगे

दर्द बनके पिघलने लगे
💔💔💔💔💔
वक्त से भी तेज वो चलने लगे
शाम से पहले ही वो ढलने लगे।

मेरी तरक्की की दुआ करते थे
अब मेरी खुशियों से जलने लगे।

हर कदम जो साथ मेरे चलते थे
अब तो चाँद पे ही वो चलने लगे।

हमने शायद चाहा ही इतना उन्हें
की वो मेरे ही दिल से खेलने लगे।

सिला अच्छा दे गए तुझको प्रियम
दिल में दर्द बनके वो पिघलने लगे

©पंकज प्रियम
14.5.2018

326.न जाने क्यूँ?

न जाने क्यूँ?
न जाने क्यूँ ऐसा होता है?
भरोसा तोड़ते वही
जिसपे भरोसा होता है।
न जाने क्यूँ?
जिंदगी में जाना
सबकुछ ही माना
ख़्वाब तोड़ते वही
जिसे देख ख़्वाब सोता है।
न जाने क्यूँ?
बड़ी बेरहम,
बेमुरव्वत,बेदर्द,
बेकदर बत्तमीज है दुनियाँ
सपने तोड़ते वही
जिनपे विश्वास होता है।
न जाने क्यूँ?
स्वार्थ भरे,अंहकार भरे
काँटो से है ये राह भरे
नेकी की कोई कदर कहाँ?
कैसे बदलते है लोग
देख कर ही दिल रोता है।
न जाने क्यूँ?
न जाने क्यूँ ऐसा होता है।
न जाने क्यूँ?
©पंकज प्रियम
14.5.2018

Friday, May 11, 2018

325.देखे बहुत हैं

बहुत है
माना इश्क़ की गलियों में तुम्हारे चर्चे बहुत हैं
पर मैंने में भी यहाँ पर दिखाए जलवे बहुत हैं।

अपने हुश्न पे ना तुम इस कदर भी इतराओ
इन आँखों ने भी यहां देखी हसीनाएं बहुत हैं।

देखा है हमने भी परख कर मुहब्बत में सबको
इश्क़ के सफ़र में हसीनाओं के नखरे बहुत हैं।

छोड़ दिया है अब हमने हसीं ख्वाबों में जीना
चाहतों के दरमियाँ मेरे ख़्वाब बिखरे बहुत हैं।

भरोसा नहीं रह गया अब तो किसी के दिल पे
दिलों के खेल में जो सबने बदले मोहरे बहुत हैं।

उन हसीन लम्हों का हिसाब कर रखा है प्रियम
जज्बातों से भरी लिखी हमने किताबें बहुत है।
©पंकज प्रियम
11.5.2018

324.देखते देखते-6

देखते देखते-6
वो क्या थे,क्या हो गए देखते देखते
वफ़ा से बेवफ़ा हो गए देखते देखते।
उनकी हर खुशी में ही मेरी हंसी थी
वो लबों से हंसी ले गए देखते देखते।
हरपल जिन्होंने साथ मेरे ही गुजारा
पल में कैसे बदल गए देखते देखते।
उनकी जुबां पे हरवक्त था नाम मेरा
मुझे बदनाम कर गए देखते देखते।
उनकी मुहब्बत में दिनरात मरते रहे
कैसे नफ़रत वो कर गए देखते देखते।
हर कदम ही उनको संभाला था हमने
वो नजरों से भी गिरा गए देखते देखते
भीड़ में भी उनका साथी बने प्रियम
वो तन्हाई में छोड़ गए देखते देखते।
©पंकज प्रियम
11.5.2018

Thursday, May 10, 2018

323.आया हूँ

आया हूँ
दिल को दिल से यूँ मिलाने आया हूँ
तेरे रूह में इश्क़ को जगाने आया हूँ।
मुहब्बत की राह है सबको ले चलना
चाहतों की बस्तियां बसाने आया हूँ।
तू भी तो जरा हाथ बढ़ा दे अपना
हाथ बढ़ाकर साथ निभाने आया हूँ।
जिस्म नहीं तेरी रूह तक है जाना
इश्क़ का फ़लसफ़ा पढ़ाने आया हूँ।
टूटे रिश्तों को फिर से मुझे है जोड़ना
फिर उन्हीं रिश्तों को बनाने आया हूँ।
कुछ तुम्हें और बहुत मुझे है कहना
कुछ सुनने और कुछ सुनाने आया हूँ।
रह गयी थी कभी जो बात तब अधूरी
उन सारे जज्बातों को बताने आया हूँ।
बुझ गए थे जो कभी मुहब्बत के दीये
एकबार फिर उन्हें ही जलाने आया हूँ।
लफ़्ज़ों का समंदर लहराया जो प्रियम
उन लहरों में खुद को समाने आया हूँ।
©पंकज प्रियम
10.5.2018

322.रिश्ता

रिश्ता

रिश्ता वो है जिसमें विश्वास हो
रिश्ता वो है जिसमें एहसास हो
बेड़ियों में नहीं बांधे जाते रिश्ते
रिश्तों में बन्धन का फ़ांस न हो।

प्रेम वो नहीं है जिसे बाँधा जाय
प्रेम वो नहीं है जिसेकहा जाय
पा लेना ही तो नहीं होता है प्रेम
प्रेम वो है जो बलिदान हो जाय।

जीवनसाथी दरिया और किनारा
संग संग चलते दोनों साथ मगर
दरिया भी नहीं छिनती आज़ादी
बाँध के नहीं रखता उसे किनारा।

विश्वास है बढ़ता है प्रेम समर्पण
प्रेम से ही बनता है सुंदर जीवन
प्रेम से ही जुटे हैं सब नाते रिश्ते
प्रेम वही जो करे,जीवन तर्पण।
©पंकज प्रियम
10.5.2018

Tuesday, May 8, 2018

322.फैशन

322. फैशन
आज के फैशन का भी क्या खूब जलवा है
हमने ब्रांडेड कपड़ों में पूरा जिस्म देखा है।
बदन ढंकने को बना या दिखाने को कपड़ा
हमने कपड़ा पहने भी नँगा इंसान देखा है।
दिखाना ही मकसद अगर तो क्यूँ है पहना
गरीबों से भी फ़टे कपड़ों में अमीर देखा है।
फ़टी धोती साड़ी तो गरीबों की है किस्मत
हमने नए कपड़ों में अस्मत लुटाते देखा है।
भिखारी तो लाचारी में ही बदनाम है प्रियम
हमने अमीरों को भी फ़टे कपड़ों में देखा है।
©पंकज प्रियम

321.दूरियां

दूरियाँ

इश्क़ में कहाँ रह जाती है दूरियां
दूर रह कर बनाई है नजदीकियाँ।

हवाएं ही सुनाती है सन्देश उनका
बहुत दूर दूर है जो हमारी बस्तियाँ

चाहत लिपट जाने की उनसे पर
दूर से ही वो गिराते हैं बिजलियाँ।

ये दिल बड़ा नादान है क्या करें
मुहब्बत में न कर बैठे गलतियाँ।

दिल पे कहाँ जोर चलता है प्रियम
इश्क़ को नहीं मंजूर है पाबन्दियाँ।
©पंकज प्रियम
8.5.2018

Monday, May 7, 2018

320.नींद

नींद

ख्वाबों में तुझे खोया हूँ जबसे
नींद से नहीं सोया हूँ मैं तबसे।

बहुत ढूंढा तुझे ख्यालों में जाके
उड़ी है नींद मेरी आँखों मे तबसे।

खुली आँखों से ख्वाब जो बिखरे
नींद से फासला कर लिया तबसे।

नींद का रिश्ता रहा मेरे दिल से
तेरे संग वो भी बेवफ़ा हुई तबसे।

तेरी यादों से जो नाता जोड़ा हमने
नींद ने तोड़ लिया है रिश्ता तबसे।

यादों के सफ़र,जो निकले प्रियम
आखिरी नींद बनी मंजिल तबसे।

©पंकज प्रियम
7.5.2018

319.बेवफ़ा पाया

बेवफा पाया

की हमने वफ़ा,उनसे जफ़ा पाया
करीब गया तो उन्हें बेवफ़ा पाया।

पूछा जो दिल का राज़ उनसे तो
हर बार उन्हें हमने सकपका पाया।

बहुत दिल से लगाया था उन्हें मगर
उनकी आंखों में हमेशा गिला पाया।

करीब जाने की कोशिशें की मगर
दिलों के दरमियां यूँ फासला पाया।

मुहब्बत की राह में तुम चले प्रियम
हरबार मगर उनसे तुमने दगा पाया।
© पंकज प्रियम
7.5.2018

Sunday, May 6, 2018

318.देखना

देखना

याद तुम्हें मेरी फिर आएगी देखना
तेरे दिल को ये तड़पाएगी देखना।

आज नफ़रत चाहे लाख कर लो
मेरे बिना चैन नहीं पाएगी देखना।

साथ गुजारे लम्हों को याद कर लो
तेरे दिल में सुकून लाएगी देखना।

झूठ मानो तो सांसों से ही पूछ लो
मेरी ही धड़कन सुनाएगी देखना।

कैसे भूल पाओगे उन लम्हों को
हर रोज मेरी याद आएगी देखना।
©पंकज प्रियम
6.5.2018

317.समंदर लफ्ज़ों का

समंदर हूँ लफ्ज़ों का

समंदर हूँ अंदर का तूफ़ां लहर लाएंगे
शान्त हूँ अगर मचल गया कहर ढाएंगे।

समंदर हूँ लफ्ज़ों का,खामोश रहने दो
मचल गया तो अल्फ़ाज़ उमड़ जाएंगे।

उठ गई लहरें गर दिल से जज्बातों की
शाहिल में बसे सारे शहर उजड़ जाएंगे।

अपनी ही रवानी में मौजों को बहने दो
मचल गया तो किनारे भी बिखर जाएंगे।

समंदर हूँ मुहब्बत का,इश्क़ लहराने दो
उठा जो ज्वार दिल का,सब डूब जाएंगे।

बहुत राज छुपा है दिल में दफ़न होने दो
छलक गया तो बहुत से दिल टूट जाएंगे।

बहुत गम छुपाया है प्रियम,बस रहने दो
मचल गया दिल तो सब बिखर जाएंगे।
©पंकज प्रियम
6.5.2018

316.हमने देखा है

हमने देखा है

तुमने तो गरीबों को ही रोते देखा है
हमनेअमीरों को भी तड़पते देखा है

चन्द सिक्कों में जश्न मनाते हैं गरीब
हमने जमींदारों को भी रोते देखा है।

झोपड़ों में भी खुशी से रहते हैं गरीब
हमने महलों में खूब झगड़ते देखा है।

गरीबी का क्यों तुम उड़ाते हो मज़ाक
हमने गरीबों से बदतर अमीर देखा है।

फ़टे कपड़ों में भी शर्म छुपाते हैं गरीब
हमने अमीरों को हया लुटाते देखा है।

गरीब तो मुफ़्त में ही बदनाम है प्रियम
अमीरों को भी फ़टे कपड़ों में देखा है।
©पंकज प्रियम
6.5.2018

क्या फैशन है? किसी गरीब औरत का पल्लू भी फट जाय तो तो पैबन्द लगाकर पहनती है। गरीब औरतों की मजबूरी है कि वो नई साड़ी नहीं खरीद सकती  लेकिन ये सेलिब्रेटी गुप्त अंगों को दिखाने के लिए नए फ़टे कपड़े पहन रही है।



Saturday, May 5, 2018

315. ग़ज़ल-दीवाना न होगा


अब जमाने से तो कतराना न होगा
राज भी दिल का अब छुपाना न होगा।

चाहतों के दरमियां अब कुछ न बचा है
मुहब्बतों का और तो ठिकाना न होगा।

लिख दिया है फसाना हमने इश्क़ का
अब यहाँ और कोई अफ़साना न होगा।

तेरी मुहब्बत में जो हद गुजार दी हमने
यहाँ मुझसा और कोई दीवाना न होगा।

आज तुमने जो हमें यूँ छू लिया हमको
इससे बड़ा कोई और नजराना न होगा।

चाँद ही कह देगा सब हाले दिल प्रियम
अब तुम्हें उनसे कुछ जतलाना न होगा।
©पंकज प्रियम
5.5.2018

Friday, May 4, 2018

314.नज़र आता है

नज़र आता है
हर अक्स यहाँ बेज़ार नज़र आता है
हर शख्स यहां लाचार नज़र आता है।
जीने की आस लिए यहां हर आदमी
मौत का करता इंतजार नज़र आता है।
काम की तलाश यहाँ रोज भटकता
हर युवा अब बेरोजगार नज़र आता है।।
भूखे सोता गरीब,कर्ज़ में डूबा कृषक
हर बड़ा आदमी सरकार नज़र आता है।
गाँव शहर की हर गलिओं में मासूमों से
यहाँ रोज होता बलात्कर नज़र आता है।
और क्या लिखोगे अब दास्ताँ 'प्रियम'
सबकुछ बिकता बाज़ार नज़र आता है।
©पंकज प्रियम
4.5.2018

312.राम के नाम

जय श्री राम
जय श्री राम!जय श्री राम!
ले लेकर सबने, तेरा नाम
साधा सबने, अपना काम
जय श्री राम..
राम का नाम, जपते जपते
मन्दिर-मन्दिर,भजते भजते
पंहुचा सब तो कुर्सी धाम।
जय श्री राम...
बन गए हो ,चुनावी मुद्दा तुम
फिर आके देखो, धरती तुम
कुर्सी बिक रहा है, तेरे नाम
जय श्री राम..
कहते राम नाम,ही सत्य है
नेता क्यूँ कहते,यूँ असत्य हैं
लुटे हैं जनता,को शरेआम
जयश्री राम..
कोर्ट का अब तुम ,मैटर हो
बिना पता ,लिखा लेटर हो
लिफाफे में नही,कोई नाम।
जय श्री राम...
फिर नही,फैसला आएगा
क्योंकि चुनाव,आ जाएगा।
लम्बा मुकदमा तेरे ही नाम
जय श्री राम...
©पंकज प्रियम
25.3.18

311.जय हनुमान

जय श्री राम,जय हनुमान
आयी है शुभ घड़ी, सुंदर संयोग मंगलवार.
अंजनी पुत्र पवनसुत की,करें जय जयकार।
बाल्यकाल रवि निगले, हुआ जग अंधकार।
गुम हुए अरुण जो,मची चहुँओर हाहाकार।
देव,दानव,जंतु,मानव,करन लगे चीत्कार।
इंद्र ऐरावत चढ़ चले,किया वज्र का प्रहार।
मूर्छित हो गिर पड़े, विफल हुआ उपचार।
आँजनधाम मची प्रलय,करन लगे
चीत्कार।
धरती पड़ा देख हनु,प्रलय मची चहुँ ओर
क्रोधित हो पवन ने, रोक ली पवन
हर ओर।
देव् दानव सब जुटे,लौटाया हनु के प्राण
जय श्रीराम कह उठे ,राम भक्त हनुमान।
आजीवन जपते रहे ,जय श्रीराम जय श्रीराम।
जो सुमिरन हनुमन करे,बने सब बिगड़े काम।
✍©पंकज प्रियम
31.3.2018

310.तपस्या

तपस्या
क्या हुआ जो जिंदगी में बहुत समस्या है
जीवन तो समझो बस एक तपस्या है।
हर पल हर क्षण जीवन में होता हवन
बर्षो बरस की जिंदगी कठिन तपस्या है।
कभी त्याग-बलिदान,कभी प्रेम समर्पण
हर घड़ी जीवन खुद बड़ी, एक तपस्या है।
यूँ ही नहीं मिल जाती,खुशियां हर क्षण
सुख-दुःख जीवन-मरण की ये तपस्या है।
जीवन के कई रंग, देखे हैं तूने प्रियम
सबको खुश रखना, एक बड़ी तपस्या है।
©पंकज प्रियम
9.4.2018

309.दोस्ती

दोस्ती 


खुली आँखों का ख़्वाब है दोस्ती
ख्वाबों का हंसी गुलाब है दोस्ती।
बन्द पलकों से भी जो सब पढ़ ले
दिलों की खुली किताब है दोस्ती।

बचपन का नया खिलौना है दोस्ती
घर आँगन का..... कोना है दोस्ती
जिंदगी भी जो अपनी सारी कर दे
बन्दगी में स्वयं.... खोना है दोस्ती

कर्ण जीवन सा समर्पण है दोस्ती
कृष्ण सखा सा सारथी है दोस्ती
राधा के धुन में जो मुरली बाजे
सुदामा तो कभी श्याम है दोस्ती।

हरेक सवाल का जवाब है दोस्ती
बेहिसाब सा लाज़वाब है दोस्ती।
दिल की सारी बात ही जो पढ़ ले
वो मुहब्बत ही बेपनाह है दोस्ती।

कण-कण फूल का पराग है दोस्ती
क्षण-क्षण प्रेम का नुराग है दोस्ती
जग रौशन करता ही जो खुद जले
वो प्रकाश करती चिराग है दोस्ती।

©पंकज प्रियम

308.धड़कन


उसने कहा कि रिश्ता तू तोड़ ले
मैंने कहा यादों में आना छोड़ दे।
आज दिल से, कुछ यूं कहा मैंने
उसे याद करना ,अब तू छोड़ दे।
तब कुछ यूं कहा ,दिल ने मुझसे
तेरी सांस है वो ,तू लेना छोड़ दे।
आज ख्वाबों से कहा कुछ यूं मैंने
बहुत दर्द होता है,आस तू छोड़ दे।
तब कुछ यूं कहा,ख्वाबों ने मुझसे
तेरी आँखों में है,आँखे ही फोड़ दे।
वो तेरी धड़कन है,अब तू ही जाने
कहो तो धड़कना ही अब छोड़ दें।
वो तेरा जीवन है,अब तू ही जाने
बेहतर है की तू, जीना ही छोड़ दे।
इतनी भी जिंदगी, नही जी है प्रियम
की अब मुहब्बत करना भी छोड़ दे।
पंकज प्रियम
4.4.2018

307.ग़ज़ल बन जाओ न

देखे तुमने शूल बहुत
देखे हमने,फूल बहुत
तुम मेरा, कमल बन जाओ ना!
सुन ली हमने, शेर बहुत
तुम मेरा ग़ज़ल बन जाओ ना!
मैं हूँ तेरा, इश्क़ मुहब्बत
तू है मेरी,मुश्क- इबादत।
तुम अपनी चाहत, कह जाओ ना!
देखी हमने,बहुत रिवायत
तुम मेरा रवायत बन जाओ ना।
चंदा को तरसे,चकोर बहुत
जँगल नाचे,सुंदर मोर बहुत
तुम मेरे आँगन,निकल जाओ ना
उस कुमुद में,दाग बहुत
तुम मेरा चाँद, बन के आओ ना।
घूमी दुनियां ,सारी बहुत
देखी दुनियादारी, बहुत।
अब मेरे शहर ,तुम आ जाओ ना!
घर बनेगा ,तब स्वर्ग बहुत
अब मेरे घर ,तुम बस जाओ ना!
मैं हूँ तेरे,दिल का राजा
तू है मेरे ,सपनों की रानी
तुम मेरे महल, बस जाओ ना।
लब रहते ,खामोश बहुत
आंखों से पहल, कर जाओ ना
--पंकज प्रियम
22.3.2018

306.आ जाओ ना

आ जाओ ना
चलते चलते साथ छूट गए
तुम हाथों से हाथ मिलाओ ना।
मेरी सांसों की डोर टूट गई
थोड़ा दिल मे धड़क जाओ ना।
चलते राह तुम विछड़ गए
अब सपनो में ही आ जाओ ना।
जीवन से अब पतझड़ गए
तुम वसन्त बन खिल जाओ ना।
रेत पे लिखे नाम मिट गए
तुम इश्क़ समंदर बन जाओ ना
दिल में आग यूँ दहक गए
तुम सीने से लिपट जाओ ना
बाग में फूल यूँ महक गए
तुम गुलाब बन खिल जाओ ना।
इंतजार में जीवन गुजर गए
तुम प्यार बेहिसाब कर जाओ ना।
एहसास लफ़्ज़ों में उमड़ गए
तुम मेरी किताब बन जाओ ना।
ख्वाब तो यूँ ही बिखर गए
तुम आंखों में ही बस जाओ ना।
--    -- पंकज प्रियम
30.3.2018

Thursday, May 3, 2018

305.फ़ोटो पे बवाल

देश में फिर एक बवाल हो गया।
जिन्ना के नाम पे सवाल हो गया।
हिन्दू मुसलमा में धमाल हो गया
तस्वीर को लेकर बवाल हो गया।
भारत को जिसने काटा था
दो टुकडों में उसने बांटा था
हिंसा की आग में झोंककर
अहिंसा के मुंह मारा चांटा था।
विभाजक पे कोई निहाल हो गया
गदर के जैसा फिर हाल हो गया।
शिक्षा का मंदिर तो बेहाल हो गया
एक फोटो पे कैसा बवाल हो गया।
©पंकज प्रियम
#एएमयू में जिन्ना फोटो विवाद

Wednesday, May 2, 2018

जी चाहता है

रगों में फड़कने को जी चाहता है
दिलों में धड़कने को जी चाहता है।

दमकते फूलों पे चढ़े जो मकरन्द
लबों पे मचलने को जी चाहता है।

लहरते जुल्फों ने बड़ी तान छेड़ी
झूमकर बरसने को जी चाहता है।

बदन की दहकती अंगारों को छूके
मुझे भी सुलगने को जी चाहता है।

महकती बदन की खुशबू से हमें भी
यहां खुद बिखरने को जी चाहता है।

लिखे जो अल्फ़ाज,दिलों का प्रियम
लफ़्ज़ों में उतरने को जी चाहता है।
©पंकज प्रियम
02.05.2018

Tuesday, May 1, 2018

मजदूर

मज़दूर
पेट की आग में ,मजबूर हो गया
घर का बादशाह मजदूर हो गया।
मजदूर दिवस की छुट्टी में हैं सब
उसे आज भी काम मंजूर हो गया।
दो जून की रोटी के जुगाड़ में ही
मजबूर अपने घर से दूर हो गया।
दिवस मनाएंगे सब एसी कमरों में
वो तो धूप में ही मसरूर हो गया।
बच्चों के दे रोटी,पानी पी सो गया
भूख में उसका,चेहरा बेनूर हो गया।
इक मजदूर कितना मजबूर प्रियम
थकान मिटाने, नशे में चूर हो गया।
©पंकज प्रियम
1 मई 2018
#मजदूर दिवस की शुभकामनाएं