Wednesday, December 22, 2021

935. प्रेम प्रतीक

प्रेम प्रतीक
ताज़महल को मानते, सभी प्रेम आधार।
लेकिन सब नहीं जानते, क्या है सच्चा प्यार?

मूरख मानुष मानते, जिसको प्रेम प्रतीक।
लहू सना इक मक़बरा, कैसे इश्क़ अतीक?
मुर्दा पत्थर काटकर, भर दी जिसने जान।
कटे सभी वो हाथ ही, जिसने दी पहचान।।
क़ब्रगाह में हो खड़ा, करते हैं इज़हार,
लेकिन सब नहीं जानते, क्या है सच्चा प्यार?

शाहजहाँ का प्रेम तो, झूठ खड़ा बाजार।
एक नही मुमताज़ थी, बेगम कई हजार।।
उसके पहले बाद फिर, रखे कई सम्बंध।
प्रेम नहीं बस वासना, केवल था अनुबंध।।
जर्रा-जर्रा ताज का, करता खुद इक़रार,
लेकिन सब नहीं जानते, क्या है सच्चा प्यार?

सच्ची मूरत प्रेम की, जपे सभी जो नाम।
राम हृदय सीता बसी, सीता में बस राम।।
ताज़महल निर्माण में, कटे हुनर के हाथ।
सेतु में सहयोग कर, मिला राम का साथ।।
राम कृपा से गिलहरी, हुई अमर संसार।।
लेकिन सब नहीं जानते, क्या है सच्चा प्यार।

माँ सीता के प्रेम में, विह्वल करुण निधान।
सेतुबंध रामेश्वरम,    अनुपम प्रेम निशान।।
प्रेम शिला जल तैरते, सागर सेतु अपार।
नहीं मिटा इतिहास से, डाले रिपु हथियार।।
लेकिन सब नहीं जानते, क्या है सच्चा प्यार?

प्रेम समझना हो यदि, जप लो राधेश्याम।
सच्ची मूरत प्रेम की, भज लो आठो याम।
प्रेम दरस की चाह तो, आओ यमुना घाट।
यमुना कल-कल धार से, पढ़ो प्रेम का पाठ।
वृंदावन कण-कण दिखे, प्रेम सकल संसार।
लेकिन सब नहीं जानते क्या है सच्चा प्यार।। 

राधा रानी प्रेम की, मनमोहन घनश्याम। 
प्रेम समर्पण साधना, वृंदावन यह धाम।।
अनुपम सृष्टि कृष्ण की, राधा जी के नाम। 
राधे राधे गूँजता, हरदिन सुबहो शाम।
प्रेम सदा निस्वार्थ ही, बनता जग आधार।
लेकिन सब नहीं जानते क्या है सच्चा प्यार।

कवि पंकज प्रियम

(*अतीक-श्रेष्ठ)

Tuesday, December 21, 2021

934.ज्ञान की बातें

बातें कर बस ज्ञान की

जात-पात की बात करो तुम, बात करें हम ज्ञान की।
ज्ञान तनिक जो पाया होता, तुम करते न अज्ञान की।

हम भी कब कमजोर पड़े हैं? जिसपे अड़े पुरजोर पड़े हैं।
शिखा जो खोली नँद मिटाया, चन्द्र सिंहासन दे के बिठाया।
समझ जो पाते ताकत मेरी, करते न अभिमान की।
ज्ञान तनिक जो पाया होता, तुम करते न अज्ञान की।

जन्म से लेकर मरने तक, कर्म-क्रिया सब करने तक।
हरपल देता साथ तुम्हारा, करता सब उद्धार तुम्हारा।
समझ जो पाते कीमत मेरी, कहते न यूँ नादान सी।
ज्ञान तनिक जो पाया होता, तुम करते न अज्ञान की।

सम्मान के भूखे होते केवल, दान-दक्षिणा सामान नहीं।
आन पे जो आ जाये फिर तो, रोकना है आसान नहीं।
शास्त्र सुशोभित शस्त्र भी उठता, जो बातें आती शान की।
ज्ञान तनिक जो पाया होता, तुम कहते न अज्ञान की।

अपनी बातें भूल भी जाते, राम को तुम कल्पित न बताते,
राम से धरती अम्बर सारा, राम नाम फैला उजियारा।
राम का जो अपमान करेगा, क्या स्तर उसके ज्ञान की?
ज्ञान तनिक जो पाया होता, कहते न अज्ञान की।

कवि पंकज प्रियम

जीतनराम माँझी को तत्काल निष्कासित करते हुए कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। संविधान की शपथ लेने वाला ही अगर संविधान की धज्जियां उड़ाये तो वह किसी कुर्सी के योग्य नहीं है। वैसे भी एक एक्सिडेंटल पूर्व मूर्ख मंत्री से और क्या उम्मीद की जा सकती है? इधर jpsc घोटाले पर पर्दा डालने हेतु विधानसभा में भी एक घटिया बयान दिया गया है।

Monday, December 20, 2021

933. मुहब्बत का ठाँव

नफरती दौर में भी एक मुहब्बत का ठाँव दिखा दूँ,
ऐ मतलबी शहर! चल तुझे अपना गॉंव दिखा दूँ।।
कवि पंकज प्रियम