Wednesday, February 27, 2019

533.करारा जवाब

करारा जवाब 

आतंकी को क्या खूब, दिया जवाब करारा है .
कल घुसकर मारा था ,अब घुसपैठ पे मारा है,.

सुन लो पाकिस्तान, अब तेरी औकात बताएँगे.
धरती पे बम मारा, अम्बर से भी मार गिराएंगे.
नहीं मिलेगी जमी तुझे, न आसमां तेरा होगा,
तिरंगा तेरी छाती पर, देखना आज फहराएँगे.
मत भूलो तेरे हर जर्रे पर पहला हक हमारा है.
कल घुस कर मारा था .....

नापाक इरादों पर तेरे , पानी फेर हम जाएँगे.
पानी -पानी कर देंगे और बूंद -बूंद तरसाएंगे.
न दफन को कब्र मिलेगी ,न ही कफन मिलेगा,
जल जाओगे जिन्दा , जो शोले हम बरसाएंगे.
धुल चटाई है हमने

,जब भी तुमने ललकारा है.
कल घुस कर मारा था ....
आतंकी को क्या खूब दिया जवाब करारा है .
कल घुसकर मारा था ,अब घुसपैठ पे मारा है
@पंकज प्रियम 

532.तिरंगा पाक में फहराना है

तिरंगा पाक में फहराना है

कहा था प्रतिकार करेंगे, हर सीमा को पार करेंगे।
पुलवामा का लेंगे बदला, घर में घुसकर वार करेंगे।।

किया पीठ पर तुमने हमला,हम सीने पे वार करेंगे।
दो टुकड़ों से बाज न आये, अब टुकड़े चार करेंगे।।

जब भी तुमने छेड़ा है, कब हमनें तुमको छोड़ा है।
हरदम हमने धूल चटाई, सर पे चढ़ सर फोड़ा है।।

कह कर हमने वार किया,घर में घुसकर मार दिया।
चालीस जवानों के बदले,सैकड़ों का संहार किया।।

शौर्य पराक्रम का देखो, फिर डंका हमने बजाया है।
रावण के गढ़ में चढ़ , फिर लंका हमने जलाया है।।

मिराज की जो मार दिखाई, यह तो केवल झाँकी है।
राफेल करेगा जो तांडव, वह पूरी पिक्चर बाकी है।।

सलाम है वीर जवानों को,अलबेलों को मस्तानों को।
जान हथेली पर रखकर, सीमा पे लड़ते दीवानों को।।

धधक रही है ज्वाला दिल में,लहू रगों में खौल रहा है।
मिटा दो पाक को नक्शे से,बच्चा-बच्चा बोल रहा है।।

सुन ले तू अब पाकिस्तान,बदल गया अब हिंदुस्तान।
पीठ पे जो तुम वार करोगे, चढ़ छाती ले लेंगे जान।।

बन्द करो तुम आतंकवाद, वरना कर देंगे हम बर्बाद।
अगर कश्मीर को छेड़ोगे, कब्जा लेंगे इस्लामाबाद।।

बहुत बनाया कफ़न तिरंगा, अब इसको लहराना है।
दुश्मन की छाती पे चढ़कर, पूरे पाक में फ़हराना है।।

©पंकज प्रियम

Saturday, February 23, 2019

531.नापाक क्रिकेट

पाक के साथ क्रिकेट
जिसके हाथ रंगे लहू से , उससे हाथ मिलाना क्या.?
जिसकी नियत में धोखे,उसको साथ खिलाना क्या?
भरना नहीं आतंक का पेट,पाक के साथ न खेल क्रिकेट  ,
जिसको हरदम धूल चटाई ,उसको मात दिलाना क्या?
जिसने हमको जख्म दिया ,उससे मेल बढ़ाना क्या ?
रक्त बहाया है जिसने ,संग उसके खेल रचाना क्या?
चालीस जवानों के आगे,दो अंक की चिंता क्या करना
जिससे लड़ना रणभूमि में,रन का पेंच लड़ाना क्या ?
@पंकज प्रियम

Friday, February 22, 2019

530.गिरिडीह

गिरिडीह
पार्श्वनाथ की धरा, जर्रा-जर्रा उर्वरा।
भूगर्भ कोयला भरा, हरी-भरी वसुंधरा।
सकरी उसरी नदी, बराकर तो शान है,
अभ्रकों की खान से, विश्व पहचान है।
रूबी रत्न सम्पदा, खनिज का भंडार है।
महुआ बाँस हैं भरे, पलास का श्रृंगार है।
जगदीश चन्द्र बोस से मेरा स्वाभिमान है,
साहित्य रत्न हैं भरे, संस्कृति महान है।।
लंगेश्वरी तपोभूमि, एकता का भाव है।
शांति-प्रेम भावना, सादगी स्वभाव है।
लौह कर्मभूमि है, पत्थरों की खान है,
समृद्ध मेरी संस्कृति, खोरठा ज़ुबान है।।
ये गिरी से है जुड़ा, जलेबी घाटी से मुड़ा।
रक्षा स्वाभिमान को, सदैव ही रहे खड़ा।
छत बिना मन्दिर एक, झारखण्डी धाम है,
झारखण्ड का जिला, गिरिडीह नाम है।।
©पंकज प्रियम

Wednesday, February 20, 2019

529.क्यूँ हाथ मिलाएं?

क्यूँ हाथ मिलाएंगे
जिनके हाथ रंगे लहू से, क्यूँ उससे हाथ मिलाएंगे
जिसकी नियत में गद्दारी, क्यूँ हमसे आँख मिलाएंगे।
जब भी हमने हाथ मिलाया, पीठ में ख़ंजर है पाया
जिसकी फ़ितरत है गंदी, क्यूँ उसको साथ बिठाएंगे।
©पंकज प्रियम

528.वतन के नाम

1222 1222 1222 1222

वतन के नाम ये जीवन, मुझे भी आज करने दो
वतन पे जां लुटाकर के, दिलों में राज करने दो।

वतन के नाम ही जीना, वतन के नाम ही मरना,
वतन के साथ जीवन का,नया आगाज करने दो।

किया है पीठ पर हमला, पड़ोसी देश ने अक्सर
उसी पागल पड़ोसी का , मुझे ईलाज करने दो।

बहे हैं खून के आँसू, मिले जो ज़ख्म भारत को,
दबा है दर्द जो दिल में, उसे आवाज़ करने दो।

सहेंगे और हम कितने, जवानों की शहादत को
प्रियम के भाव जो उमड़े,उसे अल्फ़ाज़ करने दो।

©पंकज प्रियम

Monday, February 18, 2019

527.कब तलक

कब तलक ये कब तलक ? कब तलक हाँ कब तलक 

कब तलक ये दृश्य दिखेगा,रक्त बहेगा कब तलक?
वीर जवानों की कुर्बानी,ये देश सहेगा कब तलक?
दुधमुँहे देते मुखाग्नि, पिता के कांधे पुत्र  का शव,
माँ की आँखे पथरायी, सुहाग  मिटेगा कब तलक?

हर ताबूत की शौर्य कथा है ,कहती एक कहानी है
एक गांव की मीठी है यादें,रिश्तों की एक निशानी है
माँ के आँचल का टुकड़ा, बहन की राखी का धागा
पत्नी की आंखों से आँसू,  बहता रहेगा कब तलक?

जान तिरंगे में लिपटी, ताबूत में सिमटी सांस यहाँ
खामोश पड़ी है वीर जवानी, ले हमसे आस यहाँ।
बलिदान हमारा व्यर्थ न हो, कुछ ऐसा संकल्प करो
शांति-वार्ता और संयम की बात करेगा कब तलक?

हर सीमा को तुम पार करो, हाथों को तलवार करो
घर में घुसकर दुश्मन की छाती पे चढ़कर वार करो।
लहू रगों में खौल रहा है, बच्चा-बच्चा बोल रहा है
नहीं रुको अब कूच करो, यूँ सब्र करेगा कब तलक?
©पंकज प्रियम

Saturday, February 16, 2019

526.भारत की पुकार

उपचार करो
आर करो या पार करो
दुश्मन का संहार करो
बंद करो ये रोना धोना ,
रणभेरी की हुंकार करो।

लहूलुहान है गर्दन मेरी,
कुछ मेरा उपचार करो
काट दुश्मनों का शीश 
भारत को उपहार करो।

बहा लिया है रक्त बहुत,
निंदा नहीं ललकार करो
कूद पड़ो रणभूमि में अब
हाथों को ही तलवार करो।

सहा बहुत घात भीतरी 
अब तुम प्रतिकार करो
दुश्मनों से पहले अब तू
ग़द्दारों पर ही वार करो।

जर्रा जर्रा उसका थर्राए
जोर से इतना प्रहार करो
नेस्तनाबूद कर दो उसका
पाक के टुकड़े चार करो।

बहुत कर लिया बातचीत
रण में अब ललकार करो
घुस आया वो कश्मीर तो
लाहौर करांची पार करो।
©पंकज प्रियम

525. रणभूमि में रण

रणभूमि में रण होगा

ना निंदा ना कोई अब प्रण होगा
सीधे रणभूमि में अब रण होगा।
जर्रा-जर्रा थर्राएगा रे पाक तेरा
तुझसे युद्ध इतना भीषण होगा।

जवानों का जितना रक्त बहा है
हर कतरे का हिसाब देना होगा
तेरे नापाक इरादों का आतंकी
अब मुंहतोड़ जवाब देना होगा।

बहुत कर लिया अब बातचीत
निर्णय तो अंतिम करना होगा
दुश्मन के घर में सीधे घुसकर
नेस्तनाबूद अब करना होगा।

बोल रहा है भारत का जनगण
खौल रहा है रक्त का कणकण
फैसला तो अब इस क्षण होगा
बात नहीं कोई अब रण होगा।

©पंकज प्रियम
16/02/2019

Friday, February 15, 2019

524.प्रहार करो

संहार करो
कैसे देखूँ माँ के आँसू, वो दृश्य सिंदूर मिटाने का
रोते-बिलखते बच्चों को,शव ढोते बूढ़े कन्धों को।
फट जाती है छाती अपनी,  देख तिरंगे में ताबूत
तब भी शर्म नहीं आती,घर में छुपे जयचन्दों को।
बहुत सह लिया घात भीतरी,अब प्रतिकार करो
दुश्मनों के घर में घुसकर,चढ़के उनपर वार करो।
आ गया है वक्त अब, पौरुष अपना दिखाने का
टूट पड़ो आतंकी पे अब,खुद इक तलवार करो।
तुझपे टिकी है नजरें सारी, है उम्मीद जमाने की
कूद पड़ो रणभूमि में,दुश्मन का अब संहार करो।
तुम्हें पुकारती मां भारती,वक्त है कर्ज चुकाने का
मातृभूमि की रक्षा में,खुद को युद्ध में तैयार करो।
उबल रहा जो रक्त रगों में, दुश्मन धूल चटाने को
रक्तरंजित कर दो सीमा, पाक के टुकड़े चार करो।
सज है सब भारतवासी, अपना शीश कटाने को
नहीं चाहिए निंदा कड़ी, अब युद्ध सीमापार करो।
बहुत बहाया हमने आँसू, ये वक्त उन्हें रुलाने का
नहीं चाहिए कोई संधि, दुश्मन में हाहाकार करो।
नहीं वक्त बातों का, अब नहीं वक्त समझाने का
टूकड़े-टूकड़े कर दो उसके, इतने तुम प्रहार करो
सज धज के खड़ा तिरंगा, वक्त उसे लहराने का
गाड़ दुश्मनों की छाती में, झंडे का सत्कार करो।
हर जवान खड़ा देश का, सज है रक्त बहाने को
जय हिन्द के नारों से, बस तुम अब हुँकार करो।
©पंकज प्रियम
#पुलवामा

Wednesday, February 13, 2019

523. वक्त

वक्त

मुट्ठी से रजकण फिसल जाता है 
वक्त भी हर क्षण निकल जाता है.

नहीं करता इंतजार यह किसी का 
सूरज सा उगकर भी ढल जाता है.

चलता जो वक्त के साथ हर पल 
राह में गिरकर भी संभल जाता है.

किसी के हालात पे तू हंसना नही 
वक्त किसी का भी बदल जाता है.

नश्वर देह पर कैसा गुमान प्रियम
जो अपनों के हाथ जल जाता है.

-------पंकज प्रियम

Sunday, February 10, 2019

522.सियासी चिता

सियासी चिता

नारी! तुम क्या वोटतन्त्र की
ज्वाला धधकती सी चिता हो।
हरबार खुद पवित्रता दर्शाती
तूम अग्निपरीक्षा देती सीता हो।
तेरी कसम खा सब झूठ बोले
कोर्ट में गवाही वाली गीता हो।
मन्दिर में सिसकती आसिफा
कभी मस्जिद में रौंदी गीता हो।
कभी निर्भया बस में लूट जाती
कभी मदरसे में मरती गीता हो।
खुद के ही अस्तित्व को लड़ती
कभी सहेली कभी तुम मीता हो।
सबके पापों की मैल तुम धोती
पावन पवित्र गंगा सी सरिता हो।
धर्म मज़हब में ही अस्मत बंटती
सियासी आग में जलती चिता हो।

©पंकज प्रियम
27.4.2018

521.होली

देखो देखो आया रंगों का त्यौहार है।
चहुँ ओर बिखरी फूलों की बहार है।
राग द्वेष सब भूल जाएं
बस मस्ती में डूब जाएं।
आओ मिलकर डालें रंग
सद्भावना का पी लें भंग।
रंगों से सराबोर हो हर अंग
आओ मचाएं ऐसी हुड़दंग।
प्रेमभरी गलबहियों की दरकार है।
रसभरी रंगभरी खुशियों की फुहार है।
खुशियों की हमजोली है
सतरंगों की ये डोली है
रखो न कोई राज भारी
कह दो दिल की बात सारी।
क्योंकि ....जोगीरा...
बुरा न मानो होली है।
बुरा न मानो होली है।

✍पंकज भूषण पाठक"प्रियम्"
रंगभरी होली की हार्दिक शुभकामनाएं

520.बीज मुहब्बत

बीज मुहब्बत

किसी उदास चेहरे को खिला
रोज तुम रोज डे मना लेना।
किसी बिछड़े को तुम मिला
बेशक़ प्रपोज़ डे मना लेना।

कभी भूखे को दो कौर खिला
फिर चॉकलेट डे तू मना लेना।
अनाथ बच्चे को खुशी दिला
टेडी बियर डे तुम मना लेना।

बूढ़े बाप को कभी गले लगा
बेशक़ हग डे तुम मना लेना।
खुद से वफ़ा का कर  वादा
फिर प्रॉमिस डे तू कह लेना।।

जिसने तुझको है जन्म दिया
उस माँ का तू वंदन कर लेना
जिसने तुझको है धन्य किया
उस माटी का चन्दन कर लेना।

मना लेना फिर प्रणय दिवस
वेलेंटाइन जम के मना लेना।
रख के मर्यादा संस्कारों का
बीज मुहब्बत बिखरा देना।

है प्यार हमारा युग युग का
डे कल्चर का मोहताज़ नहीं।
रंग सजा लो चाहे जितना
बन सकता ये सरताज नहीं।

©पंकज प्रियम

Saturday, February 9, 2019

519.वर दे

वर दे

वर दे! माँ भारती तू वर दे
अहम-द्वेष तिमिर मन हर
शील स्नेह सम्मान भर दे।
वर दे! माँ शारदे तू वर दे।
बाल अबोध सुलभ मन
अविवेक अज्ञान सब हर ले
जड़ मूढ़ अबूझ सरल मन
बुद्धि विवेक विज्ञान कर् दे।
अनगढ़ अनजान अनल मन
सत्य असत्य का ज्ञान भर दे।
नव संचार विचार नव नव मन
नव प्रकाश नव विहान कर दे।
वर दे! माँ भारती तू वर दे।

   © पंकज भूषण पाठक"प्रियम्

Friday, February 8, 2019

518. इश्क़ झमाझम

इश्क़ झमाझम

मौसम का ये प्यार देखो।
अम्बर का इज़हार देखो।
इश्क़ झमाझम बरसा है
वसुधा का इक़रार देखो।

घटाटोप घनघोर घटाएं
सनसनाती सर्द हवाएं
टिप-टिप बूंदे बरस रही
दरस को आंखे तरस रही
दिल हुआ बेक़रार देखो।
मौसम का ये प्यार देखो।

दिल से दिल की बात हुई
बिन मौसम बरसात हुई।
तुम भी अब आ जाओ
मुझको गले लगा जाओ
प्रियम का इंतजार देखो।
मौसम का ये प्यार देखो।

©पंकज प्रियम
Happy Propose Day
#झमाझम बसन्त

Wednesday, February 6, 2019

517.ठिकाना है बहुत

ये रूप तेरा जो मस्ताना है बहुत
करता दिल को दीवाना है बहुत।

आया जो मौसम अब बसन्त का
प्यार का कुम्भ नहाना है बहुत।

मदहोश करती है तेरी ये शोखियाँ
और ये मौसम भी सुहाना है बहुत।

जरा और करीब आओ पास बैठो
तेरा दूर जाने का बहाना है बहुत।

और न दिखा तू जलवा हुस्न का
यहाँ प्रियम का ठिकाना है बहुत।

©पंकज प्रियम

Monday, February 4, 2019

516.याद करके तुझे

गीत
मापनी-212    212  212  212
मुखड़ा-
नाम लेकर तेरा.... गुनगुनाने लगे
याद करके तुझे.... मुस्कुराने लगे।
प्यार में इस कदर हम दिवाने हुए।
ख़्वाब में भी तुझे हम जगाने लगे।
अंतरा-1
संगमरमर बदन वो झलकता हुआ
रूप यौवन भरा वो छलकता हुआ।
आँख से जाम तुम जो पिलाने लगे
ताल से ताल..हम तो मिलाने लगे।
नाम लेकर....
2
ज़ुल्फ़ सावन घटा घोर छाने लगी।
हुस्न को देख..बरसात आने लगी।
आग पानी में तुम, जो लगाने लगे,
इश्क़ की आग दिल में जलाने लगे।
नाम लेकर .....
3
धड़कनों में सदा तुम धड़कते रहे।
सांस बनकर रगों में फड़कते रहे।
जिस्म से रूह में तुम उतर जो गए,
जान लेकर ...मेरी जां बचाने लगे।
नाम लेकर ...
4
होठ अंगार .जलते-दहकते सनम।
होश मदहोश करते बहकते कदम।
बिजलियाँ इस कदर जो गिराने लगे
चोट खाकर....तुम्हीं में समाने लगे।
नाम लेकर...
5
लफ्ज़ बनके कलम से बिखरते रहे
गीत ग़ज़लों में ढलते निखरते रहे।
चाँद बनके गगन झिलमिलाने लगे
फूल भी बाग में खिलखिलाने लगे।
नाम लेकर....
©पंकज प्रियम

Sunday, February 3, 2019

514.मुहब्बत की आजमाइश

मुहब्बत की आजमाइश
वो इस कदर मुझे आजमाने लगे
वक्त-बेवक्त हर वक्त बुलाने लगे।
मुहब्बत न हुई मानो रेस हो गयी
वक्त से भी तेज मुझे भगाने लगे।
दीदारे चाँद की ख्वाहिश क्या की
रातों में अक्सर मुझे जगाने लगे।
माना कि इश्क़ आग का है दरिया
मगर वो गैरों से मुझे जलाने लगे।
अश्कों से भी क्या इश्क़ हो गया
जो बेवजह खुद को रुलाने लगे।
दर्द से भी मुहब्बत जो कर लिया
ज़ख्मो को लफ्ज़ों में बहाने लगे।
इतनी जो इबादत कर दी प्रियम
वो खुद को ही खुदा बताने लगे।
©पंकज प्रियम

Saturday, February 2, 2019

515.जीवन

क्यों डरें जो तिमिर घना
यह रात गुजर तो जाएगी।
होगा फिर एक भोर नया
किरण प्रकाश बिखराएगी।

जलने दो धूप में पैरों को
ठंडी छाँव तब तो भाएगी।
राह मिलेगी सरिता निर्मल
वह निश्चित पाँव पखारेगी।

कर ले अपना वेग पवन सा
खुद मंजिल मिल जाएगी।
शरद शीत या ग्रीष्म ऋतु
खुशबू जीवन महकाएगी।

©पंकज प्रियम

Friday, February 1, 2019

514.मुहब्बत की आजमाइश



 आजमाइश

इस कदर वो मुझे आजमाने लगे
याद बनकर दिलों में समाने लगे।

प्यार ना ये हुआ रेस ये हो गया
वक्त से तेज मुझको भगाने लगे।

चाँद दीदार की ख्वाहिशें जो रखी
रात में रोज मुझको जगाने लगे।

इश्क़ माना कि दरिया बड़ी आग है
गैर से प्यार कर वो जलाने लगे।

अश्क़ से भी मुझे इश्क़ जो हो गया
बेवजह रोज खुद को रुलाने लगे।

दर्द से भी मुहब्बत दिलों ने किया।
ज़ख्म को लफ़्ज़ में यूँ बहाने लगे।

प्यार में जो इबादत प्रियम ने किया
वो खुदी को खुदा अब बताने लगे।

©पंकज प्रियम
©पंकज प्रियम