समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
Thursday, November 26, 2020
896. संविधान सुविधानुसार
Tuesday, November 24, 2020
894. कोरोना रंगीला
कोरोना कमाल
घनाक्षरी
आलू को बुखार चढ़ा,
टमाटर लाल हुआ।
हरी मिर्च हरजाई,
धनिया धमाल है।
गिर गया नेता पर,
चढ़ गयी महंगाई।
आग लगी सब्जी में,
कोरोना कमाल है।
घट गई रोजगारी,
बढ़ गयी महंगाई,
रसोई में आग लगी,
जनता बेहाल है।
आपदा में अवसर,
ढूंढ़ रहे हॉस्पिटल,
मरीजों को लूट-लूट,
हुए मालामाल हैं।
कोरोना सयाना बड़ा,
छेड़ता गरीब को ही,
नेता मंत्री अफसर,
छुवे क्या मजाल है?
रेल बस चढ़ जाता,
विद्यालय बढ़ जाता,
पर रैली चुनावों में
करे न सवाल है।
मन्दिर में घुसकर,
पूजा पाठ सब रोके।
परब त्यौहार में तो,
करता बवाल है।
कोरोना रंगीला बड़ा,
सब मुँह मास्क चढ़ा
दारू की दुकान बैठ,
पिये रम लाल है।
©पंकज प्रियम
Sunday, November 22, 2020
893.गैया
Thursday, November 12, 2020
892. दीपमाला -पढ़िए दिवाली पर एक साथ कई रचनाएँ
1.*ज्योति पर्व:*
मिलकर ज्योति पर्व मनायें।
नफरत का विद्वेष हटाकर।
तबमन को जो कर दे रौशन,
दिल में प्रेम की जोत जगायें।
आओ प्रेम का दीप जलायें।
तिमिर घनेरा भी मिट जाये,
अज्ञान पे ज्ञान विजय पाये।
असत्य पे सत्य की जय को
उस जीत को फिर दोहरायें
आओ प्रेम का दीप जलाएं।
बेबस लाचार ललचाई नजर ।
उम्मीद जगे हमसे जब ऐसी
कुछ पल ही सही दर्द बटाएं।
आओ प्रेम का दीप जलाएं।
प्रदूषण-दोहन से धरा आज ।
असह्य वेदना से रही कराह,
दर्द की हम ये दवा बन जाएं।
आओ प्रेम का दीप जलाएं।
सूखी नजरो में आस जगा के।
जाति-धर्म सब-भेद मिटाकर,
शांति अमन का फूल खिलायें,
आओ प्रेम का दीप जलाएं।
स्वच्छ धरा और स्वच्छ गगन।
स्वस्थ रहे यह तनमन अपना,
स्वच्छता को हम यूँ अपनायें।
आओ प्रेम का दीप जलाएं।
खुशहाल रहे सबका जीवन।
घर गरीब के चूल्हा जले जो,
घर में माटी का दीप जलायें।
आओ प्रेम का दीप जलायें।
©पंकज प्रियम
तन का भेद जब सिमट जाएगा।
प्रस्फुटित होगा जब ज्ञान प्रकाश,
अमावस में भी चमकेगा आकाश।
घर घर में जब खुशहाली होगी,
समझना तब शुभ दिवाली होगी।
दिल से दिल का जब तरंग मिलेगा।
नव सर्जन का जब होगा उल्लास,
शब्द अलंकारों का होगा अनुप्रास।
जब मस्ती अल्हड़ निराली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।
हर साथ को जब नाम मिलेगा।
कर्ज में डूबकर ना मरे किसान,
फ़र्ज़ में पत्थर से न डरे जवान।
जीवन में ना जब बदहाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।
इससे बड़ी कहाँ और है बीमारी।
इन मुद्दों का जब भी शमन होगा,
सियासी मुद्दों का तब दमन होगा।
गली-गली सड़क और नाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।
संस्कृति-संस्कारों की विजय होगी।
जब हर घर ही प्रेमाश्रम बन जाए,
फिर कौन भला वृद्धाश्रम जाए।
मुहब्बत से भरी जब थाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।
दहेज की बेदी जब नहीं चढ़ेगी।
जब औरतों पर ना हो अत्याचार,
मासूमों का जब ना हो दुराचार।
जब माँ-बहन की ना गाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।
लंका में पवनसुत पूँछ की जितनी।
सब पूरा होना समझो रामराज है,
राम को ही कहाँ मिला सुराज है!
अयोध्या में जब वो दीवाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।
कुछ ही दिनों में आनेवाली है दिवाली
पटाखों से फैलेगी चहुँओर धुवाँ काली।
धूम धडाको से मचेगा शोर ।
फैलेगा वायु प्रदूषण हरओर।
क्या नही करना है पर्यावरण का ध्यान
तो फिर आज ही मन में लो यह ठान।
पटाखे को करो बाय बाय।
चायनीज लाइट को कहो गुडनाईट ।
मिटटी के तुम दीप जलाओ
एक गरीब के घर चूल्हा जलाओ।
घर के बने पुवे पकवान खाओ
मिलावटी खोवे से खुद को बचाओ।
हवाओं से जरा कह दो, अदब से वो गुजर जाये,
जहाँ पे जल रहा दीपक, जरा मद्धम उधर जाये।
तमस गहरा निशा काली, जहाँ अज्ञानता खाली-
वहाँ दीपक नहीं जलता, बताओ तो किधर जाये।।
©पंकज प्रियम
11.12.2019
तिमिर निशा के हर आँगन
ज्योत जलाती दीपशिखा।
संग हवा वह पलती रहती,
खुद में खुद जलती रहती।
चीर तमस घनघोर निशा,
ज्योत जगाती दीपशिखा।
दीये की बाती उसकी थाती
जलकर भी वो न घबराती।
मन का तिमिर खूब मिटा,
मार्ग दिखाती दीपशिखा।
हरपल जलती ज्ञान सिखाती,
जीवन का गूढ़ सन्देश बताती।
जलना तो केवल दीपक जैसा,
ज्ञान सिखाती दीपशिखा।
मद्धम पलती मध्दम जलती,
हरदम मद्धम रौशन करती।
बहुत तेज की लौ फड़का,
साँस बुझाती दीपशिखा।
गर जीवन ये जीना तुझको,
कर दो समर्पण तुम मुझको,
खुद को कैसे नियंत्रित करना
पाठ पढ़ाती दीपशिखा।
©पंकज प्रियम