Thursday, November 26, 2020

896. संविधान सुविधानुसार


*संविधान दिवस*  

                                   आज़ादी से पूर्व सभी रियासतों के अपने अपने कानून थे  जिन्हें देश के एक कानून के तहत लाने की आवश्यकता थी. इसके साथ ही एक इसे संविधान  की जरुरत थी जो यहाँ के लोगों के मूल अधिकार और उनके कर्तव्यों को निर्धारित कर सके. इसके लिए भारत की संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन में संविधान तैयार कर 26 नवम्बर 1949 को समर्पित किया था इसीलिए इस दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसके बाद 26 जनवरी 1950 को इसे अंगीकृत किया गया . इस दिन संविधान निर्माण समिति के वरिष्ठ सदस्य डॉ हरिसिंह गौर का जन्मदिवस भी मनाया जाता है. भारतीय संविधान का  सारा श्रेय डॉ भीमराव आंबेडकर को दिया जाता है लेकिन हकीकत यह है संविधान लिखनेवाली सभा में 299 सदस्य थे जिसके अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद थे. डॉ आंबेडकर ने इसे संकलित किया था और संविधान को मूर्त रूप देने का काम किया. भारतीय संविधान में वर्तमान समय में भी केवल 470 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियां हैं और ये 25 भागों में विभाजित है। परन्तु इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद जो 22 भागों में विभाजित थे इसमें केवल 8 अनुसूचियां थीं। संविधान को समय समय पर लोगों ने अपनी सुविधा और जरुरत के हिसाब से संशोधन  करते रहे. इसपर लगातार बहस और विवाद भी होता रहा. सभी ने इसे अपने अपने चश्मे से देखने एक काम किया है . सियासी दल अपनी सुविधा के हिसाब से संविधान की व्याख्या करते रहे तो कट्टरपंथी संगठन और उसके समर्थित दल संविधान को मानने से भी इनकार करते रहे. हालिया बयानों को देखें तो लोग संविधान से बढ़कर अपनी शरियत और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को मानते हैं. इसी तरह कश्मीर के चरमपंथी नेता भारतीय संविधान और तिरंगे को मानने से इंकार करते रहे हैं . इनपर लगाम लगाना जरूरी है. समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में है। इसमें नीति-निर्देश दिया गया है कि समान नागरिक कानून लागू करना हमारा लक्ष्य होगा। सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में केन्द्र सरकार के विचार जानने की पहल कर चुका है लेकिन इसको कोई मानने को तैयार नही . संविधान के हर नियम को जबतक सही तरीके से सब नहीं मानेगे तबतक संविधान दिवस महज खानापूर्ति जैसा है./  
  © पंकज प्रियम

Tuesday, November 24, 2020

894. कोरोना रंगीला

 कोरोना कमाल

घनाक्षरी


आलू को बुखार चढ़ा,

      टमाटर लाल हुआ।

            हरी मिर्च हरजाई,

                धनिया धमाल है।


गिर गया नेता पर,

    चढ़ गयी महंगाई।

        आग लगी सब्जी में,

             कोरोना कमाल है। 


घट गई रोजगारी,

    बढ़ गयी महंगाई,

      रसोई में आग लगी,

              जनता बेहाल है। 


आपदा में अवसर,

     ढूंढ़ रहे हॉस्पिटल,

         मरीजों को लूट-लूट,

                 हुए मालामाल हैं। 


कोरोना सयाना बड़ा,

      छेड़ता गरीब को ही,

           नेता मंत्री अफसर,

              छुवे क्या मजाल है?


रेल बस चढ़ जाता,

    विद्यालय बढ़ जाता,

         पर रैली चुनावों में 

               करे न सवाल है।


मन्दिर में घुसकर,

  पूजा पाठ सब रोके।

      परब त्यौहार में तो,

             करता बवाल है। 


कोरोना रंगीला बड़ा,

   सब मुँह मास्क चढ़ा

       दारू की दुकान बैठ,

                पिये रम लाल है।


©पंकज प्रियम


Sunday, November 22, 2020

893.गैया

गैया
अमृत धारा देती गैया, लगती जैसे सबकी मैया।
दूध तो अमृत तुल्य ही होवे, गोमूत्र गोबर औषधि भैया।
कृष्ण दुलारी गोपी प्यारी, गोकुल नाचे ता ता थैया।
कष्ट सहे खुद देती जीवन, परोपकारी होती गैया।।

गो रक्षा का संकल्प करो अरु, सेवा करो माता गैया।
गोहत्या जो करता यहाँ पर, समझो दानव पापी भैया।
माफ़ नहीं तू करना खुदा, मारे यहाँ जो तेरी ख़ुदाई-
गोधन पे जो चलाये कटारी, कहलाये वो दुष्ट कसाई।।

जीवन देती जैसे माता, पूजन करो मिल के भ्राता।
मैया पिलाती दूध बरस अरु गैया दूध जीवन दाता।।
पढ़ो कुरान बाइबिल गीता, सबने लिखा गौ को है माता।
कामधेनु कहलाती गैया, पूजन करे जिसकी विधाता।।

दूध दही घृत मक्खन अरु, बनती मिठाई जिससे सारी।
शुद्ध करे जो पर्यावरण, होती उपयोगी गैया प्यारी।।
जीवन भर देती पौषण, पार बैतरणी कराए हमारी।
देव् सभी का वास जिसमें, जीव आधार गैया दुलारी।।


©पंकज प्रियम
गोपाष्टमी की हार्दिक बधाई

Thursday, November 12, 2020

892. दीपमाला -पढ़िए दिवाली पर एक साथ कई रचनाएँ

 1.*ज्योति पर्व:*


मन से ईर्ष्या द्वेष मिटाके 
नफरत की आग बुझाके 
हर दिल में प्यार जगाएं
सत्य प्रेम का दीप जलाएं
आओ ज्योति पर्व मनाएं।

अंधकार पर प्रकाश की
अज्ञान पर ज्ञान की
असत्य पर सत्य की
जीत को फिर दुहराएं
आओ ज्योति पर्व मनाएं।

भूखा -प्यासा हो अगर 
बेबस  लाचार ललचाई नजर 
 उम्मीद जगे तुमसे इस कदर 
कुछ पल सही सबका दर्द बटाएं 
आओ ज्योति पर्व मनाएं।

अन्याय से ये समाज 
प्रदूषण-दोहन से धरा आज 
असह्य वेदना से रही कराह 
इस दर्द की हम दवा बन जाएं
आओ ज्योति पर्व मनाएं।

भय आतंक -वितृष्णा मिटाके 
 बुझी नजरो में आस जगा के
जात धर्म का भेद मिटाके 
शांति अमन का फूल खिलाएं 
आओ ज्योति पर्व मनाएं।

चहुँ ओर प्रेम की जोत जलाएं
सब मिल ख़ुशी के गीत गाएं
इंसानियत की जीत का जश्न मनाएं
आओ ज्योति पर्व मनाएं।
©पंकज प्रियम

2.प्रेम का दीप जलाये

आओ प्रेम का दीप जलायें,
मिलकर ज्योति पर्व मनायें।

मन से ईर्ष्या-द्वेष मिटाकर,
नफरत का विद्वेष हटाकर।
तबमन को जो कर दे रौशन,
दिल में प्रेम की जोत जगायें।
आओ प्रेम का दीप जलायें।
   
तिमिर घनेरा भी मिट जाये,
अज्ञान पे ज्ञान विजय पाये।
असत्य पे सत्य की जय को
उस जीत को फिर दोहरायें
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

भूखा-प्यासा हो कोई अगर,
बेबस लाचार ललचाई नजर ।
उम्मीद जगे हमसे जब ऐसी
कुछ पल ही सही दर्द बटाएं।
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

अन्याय से यह सारा समाज ,
प्रदूषण-दोहन से धरा आज ।
असह्य वेदना से रही कराह,
दर्द की हम ये दवा बन जाएं।
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

भय आतंक-वितृष्णा मिटाके,
सूखी नजरो में आस जगा के।
जाति-धर्म सब-भेद मिटाकर,
शांति अमन का फूल खिलायें,
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

स्वच्छ गली-घर और आँगन,
स्वच्छ धरा और स्वच्छ गगन।
स्वस्थ रहे यह तनमन अपना,
स्वच्छता को हम यूँ अपनायें।
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

चहुँ दिशा हो जगमग रौशन,
खुशहाल रहे सबका जीवन।
घर गरीब के चूल्हा जले जो,
घर में माटी का दीप जलायें।
आओ प्रेम का दीप जलायें।
©पंकज प्रियम

3. समझना तब दिवाली होगी 

घर-घर में जब खुशहाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

मन का तिमिर जब मिट जाएगा,
तन का भेद जब सिमट जाएगा।
प्रस्फुटित होगा जब ज्ञान प्रकाश,
अमावस में भी चमकेगा आकाश।
घर घर में जब खुशहाली होगी,
समझना तब शुभ दिवाली होगी।

जब नौजवानों का उमंग खिलेगा,
दिल से दिल का जब तरंग मिलेगा।
नव सर्जन का जब होगा उल्लास,
शब्द अलंकारों का होगा अनुप्रास।
जब मस्ती अल्हड़ निराली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

हर हाथ को जब काम मिलेगा,
हर साथ को जब नाम मिलेगा।
कर्ज में डूबकर ना मरे किसान,
फ़र्ज़ में पत्थर से न डरे जवान।
जीवन में ना जब बदहाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

भूखमरी, गरीबी और बेरोजगारी,
इससे बड़ी कहाँ और है बीमारी।
इन मुद्दों का जब भी शमन होगा,
सियासी मुद्दों का तब दमन होगा।
गली-गली सड़क और नाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

जब सत्य-अहिंसा की जय होगी,
संस्कृति-संस्कारों की विजय होगी।
जब हर घर ही प्रेमाश्रम बन जाए,
फिर कौन भला वृद्धाश्रम जाए।
मुहब्बत से भरी जब थाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

जब कोख में बिटिया नहीं मरेगी,
दहेज की बेदी जब नहीं चढ़ेगी।
जब औरतों पर ना हो अत्याचार,
मासूमों का जब ना हो दुराचार।
जब माँ-बहन की ना गाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

मुद्दों की फेहरिस्त है लम्बी इतनी,
लंका में पवनसुत पूँछ की जितनी।
सब पूरा होना समझो रामराज है,
राम को ही कहाँ मिला सुराज है!
अयोध्या में जब वो दीवाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।
©पंकज प्रियम

4. स्वच्छता अभियान में हो रही साफ सफाई।
थोड़ी पर्यावरण की भी चिंता कर लो भाई।
कुछ ही दिनों में आनेवाली है दिवाली
पटाखों से फैलेगी चहुँओर धुवाँ काली।
धूम धडाको से मचेगा शोर ।
फैलेगा वायु प्रदूषण हरओर।
क्या नही करना है पर्यावरण का ध्यान
तो फिर आज ही मन में लो यह ठान।
पटाखे को करो बाय बाय।
चायनीज लाइट को कहो गुडनाईट ।
मिटटी के तुम दीप जलाओ
एक गरीब के घर चूल्हा जलाओ।
घर के बने पुवे पकवान खाओ
मिलावटी खोवे से खुद को बचाओ।

5. दीपक
हवाओं से जरा कह दो, अदब से वो गुजर जाये,
जहाँ पे जल रहा दीपक, जरा मद्धम उधर जाये।
तमस गहरा निशा काली, जहाँ अज्ञानता खाली-
वहाँ दीपक नहीं जलता, बताओ तो किधर जाये।।
©पंकज प्रियम
11.12.2019

6. दीप 
तनमन की हो *स्वच्छता*, घर बाहर हो साफ।
कचरा करता जो यहाँ, मत कर उसको माफ़।।

दीवाली तो है सदा,साफ़-सफाई *पर्व*।
जीत निशा पे रौशनी, करते सब हैं गर्व।।

*माटी* से ही देह है, इससे ही संसार।
मोल समझ ले जो यहाँ, होगा बेड़ा पार।।

चीनी जगमग रौशनी, रोये रोज़ *कुम्हार*।
आओ मिलकर हम सभी, दें उसको उपहार।।

*दीप* जला इसबार सब, दें उनको मुस्कान।
एक घर चूल्हा जला, भर दें उसमें जान।।
©पंकज प्रियम
10.११.2020

7. दीपशिखा

तिमिर निशा के हर आँगन
ज्योत जलाती दीपशिखा।

संग हवा वह पलती रहती,
खुद में खुद जलती रहती।
चीर तमस घनघोर निशा,
ज्योत जगाती दीपशिखा।

दीये की बाती उसकी थाती
जलकर भी वो न घबराती।
मन का तिमिर खूब मिटा,
मार्ग दिखाती दीपशिखा।

हरपल जलती ज्ञान सिखाती,
जीवन का गूढ़ सन्देश बताती।
जलना तो केवल दीपक जैसा,
ज्ञान सिखाती दीपशिखा।

मद्धम पलती मध्दम जलती,
हरदम मद्धम रौशन करती।
बहुत तेज की लौ फड़का, 
साँस बुझाती दीपशिखा।

गर जीवन ये जीना तुझको,
कर दो समर्पण तुम मुझको,
खुद को कैसे नियंत्रित करना
पाठ पढ़ाती दीपशिखा।
©पंकज प्रियम

8.दलिद्दर दलिदर 
दीपावली की सुबह। आज के दिन को घर से दरिद्रता को भगाने और माँ लक्ष्मी को प्रवेश कराने के रूप में मनाया जाता है। याद है बचपन के वो दिन जब सारे बच्चे घर के टूटे -फूटे बांस की बनी टोकरी या सूप को लकड़ी से पीट-पीट कर हर कोने से दरिद्रा को निकालते थे। तब हर घर से एक सुर में आवाज आती थी --दलिदर -दलिदर बहरो रे --लक्ष्मी -लक्ष्मी ढुक (खोरठा में इसका मतलब है सारी दरिद्रा निकल और माँ लक्ष्मी घर में प्रवेश करे )और उसे नदी किनारे जाकर जमा करते थे। हाड़ कंपाने वाली सर्दी की ठिठुरन में भी नदी की बर्फीली पानी में सभी साथ डुबकी लगाते और फिर जमा की हुई टोकरी-सुप को जलाकर आग सेकते थे। बचपन बीत गया अब जिम्मेवारियों के बोझ तले घर से सैकड़ो मील दूर रोजगार का दीप जला रहे हैं। याद नहीं कितने वर्षो से अपने घर -अपने गांव में दीवाली नही मनायी है। वो दिन, वो परम्पराएँ वक्त के साथ धूमिल पड़ रही होगी शायद। परम्परा के नाम पर बस रस्म अदाएगी हो जाती होगी। लेकिन आज भी वो सारी परम्पराएं प्रासंगिक है। कहने को घर से दरिद्रता को खदेड़ा जाता है लेकिन इसके पीछे के निहितार्थ बहुत है। दीपावली के ढेर सारे कचरों को भी अहले सुबह घर से दूर निकाल कर उसे जलाना और फिर नदी में स्नान करने के पीछे भी बड़ा वैज्ञानिक तथ्य छुपा हुआ है। हमें न केवल अपने घर और मन के अंदर की गंदगी यानी बुराई को निकाल कर उसे जला देना है। ठंडे पानी में तन-मन के सारे कलुष को धो डालना है। 
©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"

Wednesday, November 11, 2020

891.जन रामायण

रामलला की पावन धरती, चूमने हम तो जाएंगे।
जन रामायण की गाथा पे, झूम के हम तो गाएंगे।
रामकथा को जनभाषा में, जनजन तक पहुंचाने को-
जनमानस के भावों की, हम जन रामायण लाएंगे।
©पंकज प्रियम
#साहित्योदय
#जनरामायण

890.दीवाली दीप

नमन साहित्योदय

शब्द सीढ़ी
स्वच्छता, पर्व, माटी, कुम्हार, दीप

तनमन की हो *स्वच्छता*, घर बाहर हो साफ।
कचरा करता जो यहाँ, मत कर उसको माफ़।।

दीवाली तो है सदा,साफ़-सफाई *पर्व*।
जीत निशा पे रौशनी, करते सब हैं गर्व।।

*माटी* से ही देह है, इससे ही संसार।
मोल समझ ले जो यहाँ, होगा बेड़ा पार।।

चीनी जगमग रौशनी, रोये रोज़ *कुम्हार*।
आओ मिलकर हम सभी, दें उसको उपहार।।

*दीप* जला इसबार सब, दें उनको मुस्कान।
एक घर चूल्हा जला, भर दें उसमें जान।।
©पंकज प्रियम

889.ईवीएम

ईवीएम बेचारी
***********
जब जब उनकी पार्टी हारी,
बदनाम हुई ईवीएम बेचारी।
जब जीतते तब ठीकठाक
हारते ठीकरा इसके नाम।
मुफ्त में ही होती है बदनाम,
छेड़छाड़ आरोप तो है आम। 
रोती बिलखती ईवीएम प्यारी,
गलती नही है कुछ भी हमारी।
कैसी है यह फितरत तेरी,
नाचन जाने तो गलती मेरी।
जब जीतते तब न देते ईनाम,
जब हारे तो करते बदनाम!
मैं हूँ निष्कलंक मैं हूँ बेदाग़,
मत उगल तुम मुझपे आग।
कल लुटते थे बैलेट सरेआम,
आज करते मुझको बदनाम!

©पंकज प्रियम

Friday, November 6, 2020

888.फ़साने बहुत है


ग़ज़ल
बहर- 122*4
काफ़िया-आने
रदीफ़- बहुत है

मुहब्बत 'में तेरे बहाने बहुत हैं
लिखे मैंने' तुझपे फ़साने बहुत हैं।

दिखाना न मुझको कभी हुस्न जलवा,
सजी रूप की तो दुकानें बहुत है।

नज़र से तुम्हारा नज़र यूँ चुराना,
तुम्हारी नज़र के निशाने बहुत हैं।

निगाहों से' ऐसे न खंजर चलाओ,
भरे ज़ख्म दिल में पुराने बहुत हैं।

मुहब्बत में' यूँ तो तराने बहुत हैं,
प्रियम की ग़ज़ल के दिवाने बहुत हैं।
*©पंकज प्रियम*

Sunday, November 1, 2020

887.कोरोना में खौफ़ कहाँ बा?

कोरोना के काल में, बंद पड़ी रेल बस,
आया जो चुनाव देखो, चल लगी रैलियाँ।

सजधज नेता सभी, हांक रहे मंच पर,
कोरोना के नियमों की, उड़ रही धज्जियाँ।

स्कूल भी बंद पड़े, बंद हैं बाज़ार पर, 
नेताओं ने खोल रखी, वोट की तिजोरियां।

खतम चुनाव जब, बढ़ेगा कोरोना तब, 
यही नेता सब मिल, देंगे फिर गालियाँ।।

2
याद करो दिन वह, कोरोना से मरने पे, 
लाश वो पिता की तुम्हें, छूने न दिया रे,

मर गयी मैया पर, डरे रहे इतना कि,
अंतिम संस्कार बेटा, तूने नहीं किया रे। 

खौफ़ बढ़ा इतना कि, बंद किया पूजा पाठ, 
पर खोल मधुशाला, सभी छक पिया रे।

घट गई रोजी रोटी, बढ़ गयी महंगाई,
सुन के चुनावी बोली, फटे मोर जिया रे।
3
 पक गए कान सुन, फोन रिंगटोन अब,
कोरोना से बचने को, सुन सुन बोलियाँ।

ठेका लिया हमने ही, मास्क और दूरी पर ,
नेताओं को देख लो, कर रहे रैलियाँ।

नहीं कोई नियम हैं, नहीं कोई खौफ़ में है, 
लाखों-लाख भीड़ देखो, कैसी अठखेलियाँ।

नेता तो चालाक पर, जनता को हुआ क्या है?
खुद ही तो खाय रहे, जहर की गोलियाँ।।
पंकज प्रियम