Wednesday, March 20, 2019

538.होली का त्यौहार

होली का त्यौहार है

रंग से रंग लगा ले सजना, रंगों का त्यौहार है
अंग से अंग लगा ले जाना, होली का त्यौहार है।

प्रीत का रंग गुलाबी देखो, चमक रही हरियाली।
गालों पे आ मल दूँ गोरी, रंग गुलाल भर थाली।
होंठो पे छायी लाली, आंखों में छाया खुमार है।
रंग से रंग...।

कोरे कागज़ जैसा तन-मन, खाली है मेरा जीवन
प्रेम का रंग तू भर दे साजन, रंग दे मेरा अंतर्मन।
सागर की लहरों के जैसे, दिल में उठा ये ज्वार है।
रंग से रंग...।

होली रंगों का खेल सजन, मन उमंग मेल सजन
रंग दो मेरी चोली चुनर, रंग दो मेरा सारा बदन।
भर लो अपने अंक सजन, आयी रुत ये बहार है
रंग से रंग...।

©पंकज प्रियम
20 मार्च 2019

Sunday, March 17, 2019

536.सत्य अटल

सत्य अटल

क्या कहूँ?
कैसे कहूँ?
निःशब्द हो गए
हैं ये लब मेरे।
कहूँ भी तो
किससे कहूँ
कबतलक मैं चुप रहूँ।
ये सांसों का पहरा
ये दिल की धड़कन
जाने थम जाए कब
नहीं कुछ भी नहीं
कुछ नहीं है जीवन
बस मृत्यु ही है सत्य अटल।
लोगों का आना-जाना
पलना-बढ़ना-चढ़ना
देखना और दिखाना।
है नजरों का धोखा केवल
बस मृत्यु ही है सत्य अटल।
ये दुनियां, ये दौलत
ये चाहत, ये शोहरत
कुछ भी न साथ जाए
रहता है तो बस नाम तेरा
दिलों में बसता है काम तेरा
बाकी सबकुछ धोखा है केवल
बस मृत्यु ही है सत्य अटल।

©पंकज प्रियम

Thursday, March 7, 2019

535.बसन्ती चुनरिया

बसंत/खोरठा गीत

चले लागल हावा कइसन उड़े रे चुनरिया।
होलिया  के गीत अइसन लागे रे गुजरिया।

अम्बवा मंजेर गेलेय, फुयल गेलेय पलसवा।
होलिया के रंग से रंग, भैयर गेलेय कलशवा।
बड़ी सुंदर हवा चले, आय गेलेय फगुनवा ।
रंग-बिरंग फूल खिलल, झूमय मोरा मनवा।
अइले जे बसन्त ऋतु, बहकल सब उमरिया।
होलिया के गीत...।

बड़ी सुंदर गोर-गोर, फूलल हो सहजनवा।
डारे -डारे फैर गेलेय, बड़ी बेस कटहलवा।
गली- गली बाजे लागल, ढोलवा-मंजीरवा।
धूल संगे उड़े लागल, रंग बिरंग अबीरवा।
चम चम चमके नैना, जईसन की बिजुरिया।
होलिया के गीत....।

गोरे गोरे गोर गौरिया फूलल तोर गलवा
आय लगाय दियो लाल पीयर गुललवा।
भौजी संग नाचै, देखीं बुढ़वा देवरवा
साली संगे डूबे जीजा भरल रंग टबवा।
छोडबो नाय तोरा , चाहे तोय दे गरिया।
होलिया के गीत...।

राधा के रंग मारे, कान्हा पिचकारिया
भींगे तोर चोली गोरी भींगे तोर चुनरिया
तोय हमर गोर गोरिया हम तोर साँवरिया
होलिया के गीत अइसन गाहीं रे गुजरिया।

चले लागल हावा कइसन ,उड़े रे चुनरिया
होलिया के गीत जइसन, लागे रे गुजरिया।
©पंकज प्रियम

534.जिन्दगी


काफिया -अती
रदीफ़ -है.

ग़जल
जिंदगी कुछ धुंधली कुछ शाम-सी ढलती है
स्याह रातों में खुद, गुमनाम सी जलती है ।

खुद से ही फैसले कर सजा भी खुद दे लेते हैं
नाम की ये जहाँ, कभी बदनाम भी करती है ।

यूँ तो कभी मैं पीता नही ,पर लडखडाता हूँ
गम-ए-इश्क भी जब दर्द का जाम भरती है.

भीड़ में भी तनहा, रहने की कसम खा ली
अपना होकर भी वो अनजान सी बनती है.

भीड़ में खो गया है लगता हर अक्स प्रियम
रुसवाई में तन्हाई अब निदान सी लगती है ।

-पंकज भूषण पाठक "प्रियम"