Saturday, January 25, 2020

782. तिरंगा

हिंदुस्तान

मन में गंगा कफ़न तिरंगा, एक यही अरमान है,
मेरे दिल की हर धड़कन में बसता हिंदुस्तान है।

आँखों में पलते ख़्वाब बड़े, हौसला सागर के जैसा,
रखते आग हैं सूरज का और चंदा की मुस्कान है।

मन है विश्वास भरा और तन में जोश जवानी का,
वतन की ख़ातिर मरना जीना, वतन हमारी जान है।

हम सृजन के बीज धरा में, उगकर छूते अम्बर को,
मेहनत की हम रोटी खाते, दीन धरम ईमान है।

जाति-धर्म और मज़हब से, ना रिश्ता है नफ़रत से
दिल में रखता भारत प्रियम, सच्चा एक इंसान है।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Friday, January 24, 2020

781.गणतंत्र

गणतंत्र
लघुकथा

"सुनो जी! 26 जनवरी को छुट्टी है न तुम्हारी? कहाँ घूमने चलेंगे"  कुसुम ने चहकते हुए अपने पति से पूछा।
"अरे नहीं ! उस दिन इतना काम है ऑफिस में सारी तैयारियां करनी है। सुबह ध्वजारोहण करना है फिर झाँकी परेड,पूरे दिन व्यस्तता रहेगी।" रमेश ने बगैर उसी ओर देखे कहा।
"तो फिर सरकार अवकाश की घोषणा क्यों करती है इस दिन?एक दिन की छुट्टी बर्बाद हो जाती है।"पत्नी झल्ला कर बोली।
रमेश ने बड़े प्यार से समझाया "अरे! सरकारी छुट्टी है तो क्या हुआ ।हमारे देश का ये पर्व है, आज के दिन हमारा संविधान लागू हुआ। हम सही मायनों में गणतंत्र हुए इसी का जश्न मनाने का दिन है। सरकार इसलिए छुट्टी देती है कि सभी इस दिन को धूमधाम से मनाएं।"
"वो सब ठीक है लेकिन छुट्टी तो बर्बाद हो जाती है न।आपको ऑफिस तो जाना ही पड़ेगा।" कुसुम की नाराजगी
"अरे बाबा #गणतंत्र_दिवस समारोह खत्म होते ही वापस आ जाऊंगा फिर पूरा दिन छुट्टी ही छुट्टी।शाम को घूमने ले चलूंगा। अब खुश!"
"ठीक है" कुसुम फिर से चहकती हुई चाय बनाने किचन की ओर चली गयी।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह,झारखंड

Friday, January 17, 2020

780.ऐ जाड़

ए जाड़
खोरठा

ए जाड़ ! अब आर नाय सताव
तोहर की हो विचार? तों बताव।

हमारा छोड़, सैह लबे हम
तनी ओकर ख़ातिर सोयच।
रोडा किनारियाम जे हो सुतल,
आख़िर की हो ओकर दोषा?
ए जाड़ अब आर नाय सताव।

भयर दिन कचरा चुनो हो
भयर रायत दीदवा म बुनो हो।
अख़बरवा ओएड़ के सुतो हो
आख़िर की हो ओकर दोषा?
ए जाड़ अब आर नाय सताव।

रेलाक पटरियाक किनारे
खेताम धानक निहारे,
गरीब किसनवाक त सोयच।
आख़िर ओकर की हो दोषा?
ए जाड़ अब आर नाय सताव।

गांवाक उ धंधा कहाँ?
खरिहनाक पोवार कहाँ
एसी के बंद कोठारियाक
घुटन तोरा हो पता?
ए जाड़ अब आर नाय सताव।

पूषा के सर्द रायत
बर्फ़ हवाक सौगायत।
सरहद पर जे वीर खड़ा
आख़िर ओकर की हो दोषा?
ए जाड़ अब आर नाय सताव।

©पंकज प्रियम

Thursday, January 16, 2020

779. चितवन

चितवन
मुक्तक
1222 1222 1222 1222
बड़ी क़ातिल कटारी है, तुम्हारी धार ये चितवन,
उतर जाती अदा से है, हृदय के पार ये चितवन।
भले हम दूर हों बैठे, अधर खामोश हो फिर भी-
दिलों में बात हो जाती, चले जो यार ये चितवन।।
©पंकज प्रियम
16.1।2020

Monday, January 13, 2020

778. क्या लिखूँ

क्या लिखू मैं.......?

एक अरसा हो गया
जब कुछ लिखा था
जिंदगी की आपाधापी में
खो गया कुछ ऐसा
न अपना होश रहा
न खबर रही दुनिया की
ब्रेकिंग न्यूज़ की जहाँ में
यूँ उलझ गया..पूछो मत।
जो सच लिखता हूँ तो
लोग बुरा मान जाते हैं।
और
चासनी में लपेट
ज़हर परोसना
मुझे आता ही नहीं।
मन व्यथित है इतना
हर तरफ दंगाईयो की भीड़
कलम छोड़कर
पत्थर चला रहे हैं लोग
अखाड़ों में तब्दील हैं
शिक्षा के मंदिर
नफऱत की आग
हर तरफ है फैली
जल रहा जिसमें खुद
दावानल।

©पंकज प्रियम

Sunday, January 12, 2020

777. विवेकानंद

उठो जागो चलो तबतक, मिले मंज़िल नहीं जबतक,
कदम पे तुम भरोसा रख, सफ़र बैसाखियाँ कबतक।
कभी जो जंग हो मन में, सदा दिल को सुनो लेकिन-
नहीं कोई जीत पाता है, दिलों में द्वेष हो तबतक।।
©पंकज प्रियम
स्वामी विवेकानंद जी जयंती पर शत शत नमन

Tuesday, January 7, 2020

776. बिल्ली मौसी

बिल्ली की कविता

सुन-सुन कर मेरी कविता
बिल्ली मौसी हुई परेशान।
कहने लगी रुक तू बेटा,
मैं करती हूँ तुझको हैरान।

झटपट कागज़-कलम उठाया,
क्या लिखूँ पर समझ न आया।
कैसे बनाऊं कविता में पहचान-
बिल्ली मौसी हुई परेशान।

व्हाट्सप्प फेसबुक सारा जहाँ,
बस देखों कवियों की भीड़ वहाँ।
चाहते सब हैं बस उड़ें आसमान-
बिल्ली मौसी हुई परेशान।

इसमें भी चलती लॉबिंग खूब,
जो चले अकेला वो जाता डूब।
इन चीजों से मैं तो हूँ अनजान,
बिल्ली मौसी हुई परेशान।

छोड़ो मौसी यह सब छोड़ो,
तुम तो केवल घर-घर दौड़ो।
मिलना-जुलना रखना ध्यान,
बिल्ली मौसी न हो परेशान।

©पंकज प्रियम

Sunday, January 5, 2020

भोर कुहासा

भोर कुहासा
घँटी की रुनझुन
खेतों में बैल

पंकज प्रियम

775.मन बंजारा

मन बंजारा

मन बंजारा तन बंजारा, ये जीवन बंजारा है।
चार दिनों की ज़िन्दगी, बस इतना गुजारा है।

ये मन भी कहाँ इक पल, चैन से सोता है,
ख़्वाब सजाये आँखों में, चैन ये खोता है।
चाहत के जुनूँ में मन, बस फिरता मारा है,
मन बंजारा तन बंजारा, जीवन बंजारा है।

ये तन भी कहाँ हरदम, साथ निभाता है,
बचपन से बुढापा तक,  हाथ बढ़ाता है।
गैरों से गिला कैसी? अपनों ने जारा है,
मन बंजारा तन बंजारा, जीवन बंजारा है।

तिनका-तिनका ये जीवन जोड़ता जाता है.
इक पल के बुलावे में सब छोड़ता जाता है।
साँसों की उधारी में धड़कन का सहारा है,
मन बंजारा तन बंजारा,  जीवन बंजारा है।

घनघोर निशा चाहे काली पर होता सबेरा है,
सुबह सुनहरी हो लाली फिर होता अँधेरा है।
वक्त से जंग लड़कर, खुद ही सब हारा है,
मन बंजारा तन बंजारा,  जीवन बंजारा है।

जीवन तो यहाँ हरक्षण, संघर्ष में जीता है,
अपनों से मिले आँसू, हरपल ये पीता है।
कुछ पल का बसेरा पर लगता क्यूँ प्यारा है?
मन बंजारा तन बंजारा, जीवन बंजारा है।

दौलत शोहरत और सूरत, केवल तो माया है,
सबकुछ छोड़के जाना ही, जो कुछ पाया है।
जो कर्म किया अच्छा, तब मिलता किनारा है,
मन बंजारा तन बंजारा, ये जीवन बंजारा है।
©पंकज प्रियम
5.1.2020

Saturday, January 4, 2020

775.मन बंजारा

मन बंजारा

मन बंजारा तन बंजारा, जीवन बंजारा है।
चार दिनों की ज़िन्दगी, बस इतना गुजारा है।

ये मन भी कहाँ इक पल, चैन से सोता है,
ख़्वाब सजाये आँखों में, चैन ये खोता है।
चाहत के जुनूँ में मन, बस फिरता मारा है,
मन बंजारा तन बंजारा, जीवन बंजारा है।

तन भी कहाँ हरदम, ये साथ निभाता है,
बचपन से बुढापे तक, ये हाथ बढ़ाता है।
गैरों से गिला कैसी, अपनों ने जारा है,
मन बंजारा तन बंजारा, जीवन बंजारा है।

तिनका-तिनका ये जीवन जोड़ता जाता है.
इक पल के बुलावे में सब छोड़ता जाता है।
साँसों की उधारी में धड़कन का सहारा है,
मन बंजारा तन बंजारा,  जीवन बंजारा है।

घनघोर निशा चाहे काली पर होता सबेरा है,
सुबह सुनहरी हो लाली फिर होता अँधेरा है।
वक्त से जंग लड़कर, खुद ही सब हारा है,
मन बंजारा तन बंजारा,  जीवन बंजारा है।
©पंकज प्रियम
04.01.2020
"मन बंजारा", को प्रतिलिपि पर पढ़ें :

Friday, January 3, 2020

मात्रा गिराने का नियम

क्रम ७ -मात्रा गिराने का नियम
मात्रा गिराने का नियम- वस्तुतः "मात्रा गिराने का नियम" कहना गलत है क्योकि मात्रा को गिराना अरूज़ शास्त्र में "नियम" के अंतर्गत नहीं बल्कि छूट के अंतर्गत आता है | अरूज़ पर उर्दू लिपि में लिखी किताबों में यह 'नियम' के अंतर्गत नहीं बल्कि छूट के अंतर्गत ही बताया जाता रहा है, परन्तु अब यह छूट इतनी अधिक ली जाती है कि नियम का स्वरूप धारण करती जा रही है इसलिए अब इसे मात्रा गिराने का नियम कहना भी गलत न होगा इसलिए आगे इसे नियम कह कर भी संबोधित किया जायेगा | मात्रा गिराने के नियमानुसार, उच्चारण अनुसार  तो हम एक मिसरे में अधिकाधिक मात्रा गिरा सकते हैं परन्तु उस्ताद शाइर हमेशा यह सलाह देते हैं कि ग़ज़ल में मात्रा कम से कम गिरानी चाहिए
यदि हम मात्रा गिराने के नियम की परिभाषा लिखें तो कुछ यूँ होगी -

" जब किसी बहर के अर्कान में जिस स्थान पर लघु मात्रिक अक्षर होना चाहिए उस स्थान पर दीर्घ मात्रिक अक्षर आ जाता है तो नियमतः कुछ विशेष अक्षरों को हम दीर्घ मात्रिक होते हुए भी दीर्घ स्वर में न पढ़ कर लघु स्वर की तरह कम जोर दे कर पढते हैं और दीर्घ मात्रिक होते हुए भी लघु मात्रिक मान लेते है इसे मात्रा का गिरना कहते हैं "

अब इस परिभाषा का उदाहारण भी देख लें - २१२२ (फ़ाइलातुन) में, पहले एक दीर्घ है फिर एक लघु फिर दो दीर्घ होता है, इसके अनुसार शब्द देखें - "कौन आया"  कौ२ न१ आ२ या२
और यदि हम लिखते हैं - "कोई आया" तो इसकी मात्रा होती है २२ २२(फैलुन फैलुन) को२ ई२ आ२ या२
परन्तु यदि हम चाहें तो "कोई आया" को  २१२२ (फाइलातुन) अनुसार भी गिनने की छूट है| देखें -
को२ ई१ आ२ या२
यहाँ ई की मात्रा २ को गिरा कर १ कर दिया गया है और पढते समय भी ई को दीर्घ स्वर अनुसार न पढ़ कर ऐसे पढेंगे कि लघु स्वर का बोध हो
अर्थात "कोई आया"(२२ २२) को यदि  २१२२ मात्रिक मानना है तो इसे "कोइ आया" अनुसार उच्चारण अनुसार पढेंगे  

नोट - ग़ज़ल को लिपि बद्ध करते समय हमेशा शुद्ध रूप में लिखते हैं "कोई आया" को २१२२ मात्रिक मानने पर भी केवल उच्चारण को बदेंलेंगे अर्थात पढते समय "कोइ आया" पढेंगे परन्तु मात्रा गिराने के बाद भी "कोई आया" ही लिखेंगे

इसलिए ऐसा कहते हैं कि, 'ग़ज़ल कही जाती है|' कहने से तात्पर्य यह है कि उच्चारण के अनुसार ही हम यह जान सकते हैं कि ग़ज़ल को किस बहर में कहा गया है यदि लिपि अनुसार मात्रा गणना करें तो कोई आया हमेशा २२२२ होता है, परन्तु यदि कोई व्यक्ति "कोई आया" को उच्चरित करता है तो तुरंत पता चल जाता है कि पढ़ने वाले ने किस मात्रा अनुसार पढ़ा है २२२२ अनुसार अथवा २१२२ अनुसार यही हम कोई आया को २१२२ गिनने पर "कोइ आया"  लिखना शुरू कर दें तो धीरे धीरे लिपि का स्वरूप विकृत हो जायेगा और मानकता खत्म हो जायेगी इसलिए ऐसा भी नहीं किया जा सकता है
ग़ज़ल "लिखी" जाती है ऐसा भी कह सकते हैं परन्तु ऐसा वो लोग ही कह सकते हैं जो मात्रा गिराने की छूट कदापि न लें, तभी यह हो पायेगा कि उच्चारण और लिपि में समानता होगी और जो लिखा जायेगा वही जायेगा    
आशा करता हूँ तथ्य स्पष्ट हुआ होगा

आपको एक तथ्य से परिचित होना भी रुचिकर होगा कि प्राचीन भारतीय छन्दस भाषा में लिखे गये वेद पुराण आदि ग्रंथों के श्लोक में मात्रा गिराने का स्पष्ट नियम देखने को मिलता है| आज इसके विपरीत हिन्दी छन्द में मात्रा गिराना लगभग वर्जित है और अरूज में इस छूट को नियम के स्तर तक स्वीकार कर लिया गया है

मात्रा गिराने के नियम को पूरी तरह से जानने के लिए जिन बातों को जानना होगा वह हैं -

अ) किन दीर्घ मात्रिक को गिरा कर लघु मात्रिक कर सकते हैं और किन्हें नहीं ?
ब) शब्द में किन किन स्थान पर मात्रा गिरा सकते हैं और किन स्थान पर नहीं?
स) किन शब्दों की मात्रा को गिरा सकते हैं औत किन शब्दों की मात्रा को नहीं गिरा सकते ?

हम इन तीनों प्रश्नों का उत्तर क्रमानुसार खोजेंगे आगे यह पोस्ट तीन भाग अ) ब) स) द्वारा विभाजित है जिससे लेख में स्पष्ट विभाजन हो सके तथा बातें आपस में न उलझें 

नोट - याद रखें "स्वर" कहने पर "अ - अः" स्वर का बोध होता है, व्यंजन कहने पर "क - ज्ञ" व्यंजन का बोध होता है तथा अक्षर कहने पर "स्वर" अथवा "व्यंजन" अथवा "व्यंजन + स्वर" का बोध होता है, पढते समय यह ध्यान दें कि स्वर, व्यंजन तथा अक्षर में से क्या लिखा गया है
-----------------------------------------------------------------------------------------
अ) किन दीर्घ मात्रिक को गिरा कर लघु कर सकते हैं और किन्हें नहीं ?
इस प्रश्न के साथ एक और प्रश्न उठता है हम उसे भी जोड़ कर दो प्रश्न तैयार करते हैं

१) जिस प्रकार दीर्घ मात्रिक को गिरा कर लघु कर सकते हैं क्या लघु मात्रिक को उठा कर दीर्घ कर सकते हैं ?
२) हम कौन कौन से दीर्घ मात्रिक अक्षर को लघु मात्रिक कर सकते हैं ?

पहले प्रश्न का उत्तर है - सामान्यतः नहीं, हम लघु मात्रिक को उठा कर दीर्घ मात्रिक नहीं कर सकते, यदि किसी उच्चारण के अनुसार लघु मात्रिक, दीर्घ मात्रिक हो रहा है जैसे - पत्र२१ में "प" दीर्घ हो रहा है तो इसे मात्रा उठाना नहीं कह सकते क्योकि यहाँ उच्चारण अनुसार अनिवार्य रूप से मात्रा दीर्घ हो रही है, जबकि मात्रा गिराने में यह छूट है कि जब जरूरत हो गिरा लें और जब जरूरत हो न गिराएँ 
(परन्तु ग़ज़ल की मात्रा गणना में इस बात के कई अपवाद मिलाते हैं कि लघु मात्रिक को दीर्घ मात्रिक माना जाता है इसकी चर्चा हम क्रम - ७ में करेंगे)

दूसरे प्रश्न का उत्तर अपेक्षाकृत थोडा बड़ा है और इसका उत्तर पाने के लिए पहले हमें यह याद करना चाहिए कि अक्षर कितने प्रकार से दीर्घ मात्रिक बनते हैं फिर उसमें से विभाजन करेंगे कि किस प्रकार को गिरा सकते हैं किसे नहीं

इस लेखमाला में क्रम -४ (बहर परिचय तथा मात्रा गणना) में क्रमांक १ से ९ तक लघु तथा दीर्ध मात्रिक अक्षरों को विभाजित किया गया है, यदि उस सारिणी को ले लें तो बात अधिक स्पष्ट हो जायेगी| क्रमांकों के अंत में मात्रा गिराने से सम्बन्धित नोट लाल रंग से लिख दिया है, देखिये  -

क्रमांक १ - सभी व्यंजन (बिना स्वर के) एक मात्रिक होते हैं
जैसे – क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट ... आदि १ मात्रिक हैं
यह स्वयं १ मात्रिक है

क्रमांक २ - अ, इ, उ स्वर व अनुस्वर चन्द्रबिंदी तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन एक मात्रिक होते हैं
जैसे = अ, इ, उ, कि, सि, पु, सु हँ  आदि एक मात्रिक हैं
यह स्वयं १ मात्रिक है

क्रमांक ३ - आ, ई, ऊ ए ऐ ओ औ अं स्वर तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन दो मात्रिक होते हैं
जैसे = आ, सो, पा, जू, सी, ने, पै, सौ, सं आदि २ मात्रिक हैं
इनमें से केवल आ ई ऊ ए ओ स्वर को गिरा कर १ मात्रिक कर सकते है तथा ऐसे दीर्घ मात्रिक अक्षर को गिरा कर १ मात्रिक कर सकते हैं जो "आ, ई, ऊ, ए, ओ" स्वर के योग से दीर्घ हुआ हो अन्य स्वर को लघु नहीं गिन सकते न ही ऐसे अक्षर को लघु गिन सकते हैं जो ऐ, औ, अं के योग से दीर्घ हुए हों
उदाहरण =
मुझको २२ को मुझकु२१ कर सकते हैं
आ, ई, ऊ, ए, ओ, सा, की, हू, पे, दो आदि को दीर्घ से गिरा कर लघु कर सकते हैं परन्तु ऐ, औ, अं, पै, कौ, रं आदि को दीर्घ से लघु नहीं कर सकते हैं
स्पष्ट है कि आ, ई, ऊ, ए, ओ स्वर तथा आ, ई, ऊ, ए, ओ तथा व्यंजन के योग से बने दीर्घ अक्षर को गिरा कर लघु कर सकते हैं

क्रमांक ४.
४. (१) - यदि किसी शब्द में दो 'एक मात्रिक' व्यंजन हैं तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक अर्थात दीर्घ बन जाते हैं जैसे ह१+म१ = हम = २  ऐसे दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ होते हैं जिनको जरूरत के अनुसार ११ अथवा १ नहीं किया जा सकता है
जैसे – सम, दम, चल, घर, पल, कल आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं
ऐसे किसी दीर्घ को लघु नहीं कर सकते हैं|  दो व्यंजन मिल कर दीर्घ मात्रिक होते हैं तो ऐसे दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते हैं
उदहारण = कमल की मात्रा १२ है इसे क१ + मल२ = १२ गिनेंगे तथा इसमें हम मल को गिरा कर १ नहीं कर सकते अर्थात कमाल को ११ अथवा १११ कदापि नहीं गिन सकते  

४. (२) परन्तु जिस शब्द के उच्चारण में दोनो अक्षर अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ दोनों लघु हमेशा अलग अलग अर्थात ११ गिना जायेगा
जैसे –  असमय = अ/स/मय =  अ१ स१ मय२ = ११२    
असमय का उच्चारण करते समय 'अ' उच्चारण के बाद रुकते हैं और 'स' अलग अलग बोलते हैं और 'मय' का उच्चारण एक साथ करते हैं इसलिए 'अ' और 'स' को दीर्घ नहीं किया जा सकता है और मय मिल कर दीर्घ हो जा रहे हैं इसलिए असमय का वज्न अ१ स१ मय२ = ११२  होगा इसे २२ नहीं किया जा सकता है क्योकि यदि इसे २२ किया गया तो उच्चारण अस्मय हो जायेगा और शब्द उच्चारण दोषपूर्ण हो जायेगा|  

यहाँ उच्चारण अनुसार स्वयं लघु है अ१ स१ और मय२ को हम ४.१ अनुसार नहीं गिरा सकते    

क्रमांक ५ (१) – जब क्रमांक २ अनुसार किसी लघु मात्रिक के पहले या बाद में कोई शुद्ध व्यंजन(१ मात्रिक क्रमांक १ के अनुसार) हो तो उच्चारण अनुसार दोनों लघु मिल कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है

उदाहरण – “तुम” शब्द में “'त'” '“उ'” के साथ जुड कर '“तु'” होता है(क्रमांक २ अनुसार), “तु” एक मात्रिक है और “तुम” शब्द में “म” भी एक मात्रिक है (क्रमांक १ के अनुसार)  और बोलते समय “तु+म” को एक साथ बोलते हैं तो ये दोनों जुड कर शाश्वत दीर्घ बन जाते हैं इसे ११ नहीं गिना जा सकता
इसके और उदाहरण देखें = यदि, कपि, कुछ, रुक आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं

ऐसे दो मात्रिक को नहीं गिरा कर लघु नहीं कर सकते

५ (१) परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दोनो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही अर्थात ११ गिना जायेगा
जैसे –  सुमधुर = सु/ म /धुर = स+उ१ म१ धुर२ = ११२   

यहाँ उच्चारण अनुसार स्वयं लघु है स+उ=१ म१ और धुर२ को हम ५.१ अनुसार नहीं गिरा सकते    

क्रमांक ६ (१) - यदि किसी शब्द में अगल बगल के दोनो व्यंजन किन्हीं स्वर के साथ जुड कर लघु ही रहते हैं (क्रमांक २ अनुसार) तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है इसे ११ नहीं गिना जा सकता
जैसे = पुरु = प+उ / र+उ = पुरु = २,  
इसके और उदाहरण देखें = गिरि
ऐसे दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते

६ (२) परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही गिना जायेगा
जैसे –  सुविचार = सु/ वि / चा / र = स+उ१ व+इ१ चा२ र१ = ११२१
यहाँ उच्चारण अनुसार स्वयं लघु है स+उ१ व+इ१    

क्रमांक ७ (१) - ग़ज़ल के मात्रा गणना में अर्ध व्यंजन को १ मात्रा माना गया है तथा यदि शब्द में उच्चारण अनुसार पहले अथवा बाद के व्यंजन के साथ जुड जाता है और जिससे जुड़ता है वो व्यंजन यदि १ मात्रिक है तो वह २ मात्रिक हो जाता है और यदि दो मात्रिक है तो जुडने के बाद भी २ मात्रिक ही रहता है ऐसे २ मात्रिक को ११ नहीं गिना जा सकता है
उदाहरण -
सच्चा = स१+च्१ / च१+आ१  = सच् २ चा २ = २२
(अतः सच्चा को ११२ नहीं गिना जा सकता है)

आनन्द = आ / न+न् / द = आ२ नन्२ द१ = २२१ 
कार्य = का+र् / य = कार् २  य १ = २१  (कार्य में का पहले से दो मात्रिक है तथा आधा र के जुडने पर भी दो मात्रिक ही रहता है)
तुम्हारा = तु/ म्हा/ रा = तु१ म्हा२ रा२ = १२२
तुम्हें = तु / म्हें = तु१ म्हें२ = १२
उन्हें = उ / न्हें = उ१ न्हें२ = १२

क्रमांक ७ (१) अनुसार दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते

७ (२) अपवाद स्वरूप अर्ध व्यंजन के इस नियम में अर्ध स व्यंजन के साथ एक अपवाद यह है कि यदि अर्ध स के पहले या बाद में कोई एक मात्रिक अक्षर होता है तब तो यह उच्चारण के अनुसार बगल के शब्द के साथ जुड जाता है परन्तु यदि अर्ध स के दोनों ओर पहले से दीर्घ मात्रिक अक्षर होते हैं तो कुछ शब्दों में अर्ध स को स्वतंत्र एक मात्रिक भी माना लिया जाता है
जैसे = रस्ता = र+स् / ता २२ होता है मगर रास्ता = रा/स्/ता = २१२ होता है
दोस्त = दो+स् /त= २१ होता है मगर दोस्ती = दो/स्/ती = २१२ होता है
इस प्रकार और शब्द देखें
बस्ती, सस्ती, मस्ती, बस्ता, सस्ता = २२
दोस्तों = २१२
मस्ताना = २२२
मुस्कान = २२१      
संस्कार= २१२१    
क्रमांक ७ (२) अनुसार हस्व व्यंजन स्वयं लघु होता है

क्रमांक ८. (१) - संयुक्ताक्षर जैसे = क्ष, त्र, ज्ञ द्ध द्व आदि दो व्यंजन के योग से बने होने के कारण दीर्घ मात्रिक हैं परन्तु मात्र गणना में खुद लघु हो कर अपने पहले के लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते है अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी स्वयं लघु हो जाते हैं  
उदाहरण = पत्र= २१, वक्र = २१, यक्ष = २१, कक्ष - २१, यज्ञ = २१, शुद्ध =२१ क्रुद्ध =२१
गोत्र = २१, मूत्र = २१,
क्रमांक ८. (१) अनुसार संयुक्ताक्षर स्वयं लघु हो जाते हैं

८. (२) यदि संयुक्ताक्षर से शब्द प्रारंभ हो तो संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं
उदाहरण = त्रिशूल = १२१, क्रमांक = १२१, क्षितिज = १२
क्रमांक ८. (२) अनुसार संयुक्ताक्षर स्वयं लघु हो जाते हैं

८. (३) संयुक्ताक्षर जब दीर्घ स्वर युक्त होते हैं तो अपने पहले के व्यंजन को दीर्घ करते हुए स्वयं भी दीर्घ रहते हैं अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ मात्रिक गिने जाते हैं
उदाहरण =
प्रज्ञा = २२  राजाज्ञा = २२२, पत्रों = २२  
क्रमांक ८. (३) अनुसार संयुक्ताक्षर स्वर के जुडने से दीर्घ होते हैं तथा यह क्रमांक ३ के अनुसार लघु हो सकते हैं

८ (४) उच्चारण अनुसार मात्रा गणना के कारण कुछ शब्द इस नियम के अपवाद भी है -
उदाहरण = अनुक्रमांक = अनु/क्र/मां/क = २१२१ ('नु' अक्षर लघु होते हुए भी 'क्र' के योग से दीर्घ नहीं हुआ और उच्चारण अनुसार अ के साथ जुड कर दीर्घ हो गया और क्र लघु हो गया)     
क्रमांक ८. (४) अनुसार संयुक्ताक्षर स्वयं लघु हो जाते हैं

क्रमांक ९ - विसर्ग युक्त व्यंजन दीर्ध मात्रिक होते हैं ऐसे व्यंजन को १ मात्रिक नहीं गिना जा सकता
उदाहरण = दुःख = २१ होता है इसे दीर्घ (२) नहीं गिन सकते यदि हमें २ मात्रा में इसका प्रयोग करना है तो इसके तद्भव रूप में 'दुख' लिखना चाहिए इस प्रकार यह दीर्घ मात्रिक हो जायेगा
क्रमांक ९ अनुसार विसर्ग युक्त दीर्घ व्यंजन को गिरा कर लघु नहीं कर सकते हैं

अतः यह स्पष्ट हो गया है कि हम किन दीर्घ को लघु कर सकते हैं और किन्हें नहीं कर सकते, परन्तु यह अभ्यास से ही पूर्णतः स्पष्ट हो सकता है जैसे कुछ अपवाद को समझने के लिए अभ्यास आवश्यक है|
उदाहरण स्वरूप एक अपवाद देखें = "क्रमांक ३ अनुसार" मात्रा गिराने के नियम में बताया गया है कि 'ऐ' स्वर तथा 'ऐ' स्वर युक्त व्यंजन को नहीं गिरा सकते है| जैसे - "जै" २ को गिरा कर लघु नहीं कर सकते परन्तु अपवाद स्वरूप "है" "हैं" और "मैं" को दीर्घ मात्रिक से गिरा कर लघु मात्रिक करने की छूट है अभी अनेक नियम और हैं जिनको जानना आवश्यक है पर उसे पहले कुछ अशआर की तक्तीअ की जाये जिसमें मात्रा को गिराया गया हो उदाहरण - १
जिंदगी में आज पहली बार मुझको डर लगा
उसने मुझ पर फूल फेंका था मुझे पत्थर लगा

तू मुझे काँटा समझता है तो मुझसे बच के चल
राह का पत्थर समझता है तो फिर ठोकर लगा

आगे आगे मैं नहीं होता कभी नज्मी मगर
आज भी पथराव में पहला मुझे पत्थर लगा
(अख्तर नज्मी)
नोट - जहाँ मात्रा गिराई गई है मिसरे में वो अक्षर और मात्रा बोल्ड करके दर्शाया गया है आप देखें और मिलान करें कि जहाँ मात्रा गिराई गई है वह शब्द ऊपर बताए नियम अनुसार सही है अथवा नहीं

जिंदगी में / आज पहली / बार मुझको / डर लगा
  २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२२
उसने मुझ पर / फूल फेंका / था मुझे पत् / थर लगा
  २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२२

तू मुझे काँ / टा समझता / है तो मुझसे / बच के चल
   २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२२
राह का पत् / थर समझता / है तो फिर ठो / कर लगा
   २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२२

आगे आगे / मैं नहीं हो / ता कभी नज् / मी मगर
  २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२२
आज भी पथ / राव में पह / ला मुझे पत् / थर लगा
  २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२२

उदाहरण - २

उसे अबके वफाओं से गुज़र जाने की जल्दी थी
मगर इस बार मुझको अपने घर जाने की जल्दी थी

मैं अपनी मुट्ठियों में कैद कर लेता जमीनों को
मगर मेरे क़बीले को बिखर जाने की जल्दी थी

वो शाखों से जुदा होते हुए पत्ते पे हँसते थे 
बड़े जिन्दा नज़र थे जिनको मर जाने की जल्दी थी
(राहत इन्दौरी)

उसे अबके / वफाओं से / गुज़र जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२   /  १२२२   /   १२२२
मगर इस बा/ र मुझको अप/ ने घर जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२    /    १२२२    /   १२२२

मैं अपनी मुट् / ठियों में कै / द कर लेता / जमीनों को
१२२२     /    १२२२    /    १२२२    /   १२२२
मगर मेरे / क़बीले को / बिखर जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२    /    १२२२    /   १२२२

वो शाखों से / जुदा होते / हुए पत्ते / पे हँसते थे
१२२२    /  १२२२   /  १२२२   /   १२२२
बड़े जिन्दा / नज़र थे जिन / को मर जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२    /    १२२२    /   १२२२

उदाहरण - ३

कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं

एक कब्रिस्तान में घर मिल रहा है
जिसमें तहखानों से तहखाने लगे हैं
(दुष्यंत कुमार)

कैसे मंज़र / सामने आ / ने लगे हैं
  २१२२  /   २१२२   /  २१२२
गाते गाते / लोग चिल्ला / ने लगे हैं
  २१२२  /   २१२२   /  २१२२

अब तो इस ता / लाब का पा / नी बदल दो
      २१२२  /   २१२२   /  २१२२
ये कँवल के /  फूल कुम्हला / ने लगे हैं
    २१२२  /    २१२२   /  २१२२

एक कब्रिस् / तान में घर / मिल रहा है
  २१२२  /   २१२२   /  २१२२
जिसमें तहखा / नों से तहखा / ने लगे हैं
  २१२२  /   २१२२   /  २१२२

इस प्रकार यह स्पष्ट हुआ कि हम किन दीर्घ मात्रिक को गिरा सकते हैं
अब मात्रा गिराने को काफी हद तक समझ चुके हैं और यह भी जान चुके हैं कि कौन सा दीर्घ मात्रिक गिरेगा और कौन सा नहीं गिरेगा|
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ब) अब हम इस प्रश्न का उत्तर खोजते हैं कि शब्द में किस स्थान का दीर्घ गिर सकता है और किस स्थान का नहीं गिर सकता - नियम अ के अनुसार हम जिन दीर्घ को गिरा कर लघु मात्रिक गिन सकते हैं शब्द में उनका स्थान भी सुनिश्चित है अर्थात हम शब्द के किसी भी स्थान पर स्थापित दीर्घ अक्षर को अ नियम अनुसार  नहीं गिरा सकते
उदाहरण - पाया २२ को पाय अनुसार उच्चारण कर के २१ गिन सकते हैं परन्तु पया अनुसार १२ नहीं गिन सकते

प्रश्न उठता है कि, जब पा और या दोनों में एक ही नियम (क्रमांक ३ अनुसार) लागू है तो ऐसा क्यों कि 'या' को गिरा सकते हैं 'पा' को नहीं ? इसका उत्तर यह है कि हम शब्द के केवल अंतिम दीर्घ मात्रिक अक्षर को ही गिरा सकते हैं शब्द के आख़िरी अक्षर के अतिरिक्त किसी और अक्षर को नहीं गिरा सकते
कुछ और उदाहरण देखें -
उसूलों - १२२ को गिरा कर केवल १२१ कर सकते हैं इसमें हम "सू" को गिरा कर ११२ नहीं कर सकते क्योकि 'सू'  अक्षर शब्द के अंत में नहीं है 
तो - २ को गिरा कर १ कर सकते हैं क्योकि यह शब्द का आख़िरी अक्षर है
बोलो - २२ को गिरा कर २१ अनुसार गिन सकते हैं
(पोस्ट के अंत में और उदाहरण देखें)

नोट - इस नियम में कुछ अपवाद भी देख लें -
कोई, मेरा, तेरा शब्द में अपवाद स्वरूप पहले अक्षर को भी गिरा सकते हैं)    
कोई - २२ से गिरा कर केवल २१ और १२ और ११ कर सकते हैं पर यह २ नहीं हो सकता है
मेरा - २२ से गिरा कर केवल २१ और १२ और ११ कर सकते हैं पर यह २ नहीं हो सकता है
तेरा - २२ से गिरा कर केवल २१ और १२ और ११ कर सकते हैं पर यह २ नहीं हो सकता है
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अब यह भी स्पष्ट है कि शब्द में किन स्थान पर दीर्घ मात्रिक को गिरा सकते हैं

स) अब यह जानना शेष है कि किन शब्दों की मात्रा को कदापि नहीं गिरा सकते -
१) हम किसी व्यक्ति अथवा स्थान के नाम की मात्रा कदापि नहीं गिरा सकते
उदाहरण - (|)- "मीरा" शब्द में अंत में "रा" है जो क्रमांक ३ अनुसार गिर सकता है और शब्द के अंत में आ रहा है इसलिए नियमानुसार इसे गिरा सकते हैं परन्तु यह एक महिला का नाम है इसलिए संज्ञा है और इस कारण हम मीरा(२२) को "मीर" उच्चारण करते हुए २१ नहीं गिन सकते| "मीरा" शब्द सदैव २२ ही रहेगा इसकी मात्रा  किसी दशा में नहीं गिरा सकते | यदि ऐसा करेंगे तो शेअर दोष पूर्ण हो जायेगा
(||)- "आगरा" शब्द में अंत में "रा" है जो क्रमांक ३ अनुसार गिरा सकते है और शब्द के अंत में "रा" आ रहा है इसलिए नियमानुसार गिरा सकते हैं परन्तु यह एक स्थान का नाम है इसलिए संज्ञा है और इस कारण हम आगरा(२१२) को "आगर" उच्चारण करते हुए २२ नहीं गिन सकते| "आगरा" शब्द सदैव २१२ ही रहेगा | इसकी मात्रा  किसी दशा में नहीं गिरा सकते | यदि ऐसा करेंगे तो शेअर दोष पूर्ण हो जायेगा

२) ऐसा माना जाता है कि हिन्दी के तत्सम शब्द की मात्रा भी नहीं गिरानी चाहिए
उदाहरण - विडम्बना शब्द के अंत में "ना" है जो क्रमांक ३ अनुसार गिरा सकते है और शब्द के अंत में "ना" आ रहा है इसलिए नियमानुसार गिरा सकते हैं परन्तु विडम्बना एक तत्सम शब्द है इसलिए इसकी मात्रा नहीं गिरानी चाहिए  परन्तु अब इस नियम में काफी छूट ले जाने लगे है क्योकि तद्भव शब्दों में भी खूब बदलाव हो रहा है और उसके तद्भव रूप से भी नए शब्द निकालने लगे हैं
उदाहरण - दीपावली एक तत्सम शब्द है जिसका तद्भव रूप दीवाली है मगर समय के साथ इसमें भी बदलाव हुआ है और दीवाली में बदलाव हो कर दिवाली शब्द प्रचलन में आया तो अब दिवाली को तद्भव शब्द माने तो उसका तत्सम शब्द दीवाली होगा इस इस अनुसार दीवाली को २२१ नहीं करना चाहिए मगर ऐसा खूब किया जा रहा है  और लगभग स्वीकार्य है | मगर ध्यान रहे कि मूल शब्द दीपावली (२२१२) को गिरा कर २२११ नहीं करना चाहिए
यह भी याद रखें कि यह नियम केवल हिन्दी के तत्सम शब्दों के लिए है | उर्दू के शब्दों के साथ ऐसा कोई नियम नहीं है क्योकि उर्दू की शब्दावली में तद्भव शब्द नहीं पाए जाते
(अगर किसी उर्दू शब्द का बदला हुआ रूप प्रचलन में आया है तो वह  शब्द उर्दू भाषा से से किसी और भाषा में जाने के कारण बदला है जैसे उर्दू का अलविदाअ २१२१ हिन्दी में अलविदा २१२ हो गया, सहीह(१२१) ब्बदल कर सही(१२)  हो गया शुरुअ (१२१) बदल कर शुरू(१२) हो गया मन्अ(२१) बदल कर मना(१२) हो गया, और ऐसे अनेक शब्द हैं जिनका स्वरूप बदल गया मगर इनको उर्दू का तद्भव शब्द कहना गलत होगा )

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अब जब सारे नियम साझा हो चुके हैं तो कुछ ऐसे शब्द को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करता हूँ जिनकी मात्रा को गिराया जा सकता है

नोट - इसमें जो मात्रा लघु है उसे '१' से दर्शाया गया है
जो २ मात्रिक है परन्तु गिरा कर लघु नहीं किया जा सकता उसे '२' से दर्शाया गया है
जो २ मात्रिक है परन्तु गिरा कर लघु कर सकते हैं उसे '#' से दर्शाया गया है

राम - २१
नजर - १२
कोई - ##
मेरा - ##
तेरा - ##
और - २१ अथवा २
क्यों - २
सत्य - २१
को - #
मैं - #
है - #
हैं - #
सौ - २
बिछड़े - २#
तू - #
जाते - २#
तूने - २#
मुझको - २#

निवेदन है कि ऐसी एक सूचि आप भी बना कर कमेन्ट में लिखें
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मात्रा गिराने के बाद मात्रा गणना से सम्बन्धित कुछ अन्य बातें जिनका ध्यान रखना आवश्यक है -
स्पष्ट कर दिया जाये कि किसी(१२) को गिरा गर  किसि (११) कर सकते हैं परन्तु इसे हम मात्रा गणना क्रमांक ६.१ अनुसार दीर्घ मात्रिक नहीं मन सकते "किसी" मात्रा गिरने के बाद ११ होगा और सदैव दो स्वतंत्र लघु ही रहेगा किसी दशा में दीर्घ नहीं हो सकता |
इसी प्रकार आशिकी (२१२) को गिरा कर आशिकि २११ कर सकते हीं परन्तु यह २२ नहीं हो सकता   
परन्तु इसका भी अपवाद मौजूद है उसे भी देखें - और(२१) में पहले अक्षर को अपवाद स्वरूप गिराते हैं तथा अर अनुसार पढते हुए "दीर्घ" मात्रिक मान लेते हैं| यहाँ याद रखें कि "और" में "र" नहीं गिरता इसलिए "औ" लिख कर इसे लघु मात्रिक नहीं मानना चाहिए| यह अनुचित है |  

याद रखे -

कुछ ऐसे शब्द हैं जिनके दो या दो से अधिक उच्चारण प्रचिलित और मान्य हैं
जैसे राहबर(२१२) के साथ रहबर(२२) भी मान्य है मगर यह मात्रा गिराने के नियम के कारण नहीं है,इस प्रकार के कुछ और शब्द देखें -

१ - तरह (१२) - तर्ह (२१)
२ - राहजन (२१२) - रहजन (२२)
३ - दीपावली (२२१२) - दीवाली (२२२) - दिवाली (१२२)
४ - दीवाना (२२२) - दिवाना (१२२)
५ - नदी (१२) - नद्दी (२२)
६ - रखी (१२) - रक्खी (२२)
७ - उठी (१२) - उट्ठी (२२)
८ - शुरुअ (१२१) - शुरू (१२)
९ - सहीह (१२१) - सही (१२)
१० - शाम्अ (२१) - शमा (१२)
११ - अलविदाअ (२१२१) - अलविदा (२१२)
१२ - ग्लास (२१) - गिलास (१२१)
१३ - जियादः (१२२) - ज्यादा (२२) 
१४ - वगर्ना (१२२) - वर्ना (२२)
१५ - आईना (२२२) - आइना (२१२ )
१६ - एक (२१) - इक (२)   ........ आदि

नोट - इनमें से कुछ शब्द में पहला शब्द 'तत्सम रूप' और दूसरा रूप 'तद्भव रूप' है,

कुछ शब्द में उस्तादों द्वारा छूट लिए जाने के कारण दूसरा रूप प्रचलन में आ गया और सर्वमान्य हो गया

कुछ शब्द उर्दू से हिन्दी में आ कर अपना उच्चारण बदल बैठे

उर्दू से हिन्दे में आने वाले शब्दों के लिए हमें कोशिश करनी चाहिए कि अधिकाधिक उस रूप का प्रयोग करें जो सूचि में पहले लिखा है, बदले रूप का प्रयोग करने से बचाना चाहिए परन्तु प्रयोग निषेध भी नहीं है

हिन्दी में ऐसे अनेकानेक शब्द हैं जो तद्भव रूप में प्रचिलित हैं उन पर भी यह बात लागू होती है
जैसे - "दीपावली" लिखना श्रेष्ठ है दीवाली लिखना "श्रेष्ठ" और "दिवाली" लिखना स्वीकार्य
(यह बात यहाँ स्पष्ट करना इसलिए भी आवश्यक था कि कहीं इसे भी मात्रा गिराना नियम के अंतर्गत मान कर लोग भ्रमित न हों)

लेख का अंत एक दुर्लभ ग़ज़ल को साझा करते हुए करना चाहता हूँ | इस ग़ज़ल में विशेष यह है कि हिन्दी के तत्सम शब्दों का सुन्दर प्रयोग देखने को मिलाता है और ग़ज़ल २० वी शताब्दी के चौथे दशक की है (अर्थात १९३१ से १९४० के बीच के किसी समय की)  शायर के नाम स्वरूप "दीन" का उल्लेख मिलाता है
जहाँ मात्रा गिरी है बोल्ड कर दिया है

(२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२)
खिल रही है आज कैसी भूमि तल पर चांदनी
खोजती फिरती है किसको आज घर घर चांदनी

घन घटा घूंघट हटा मुस्काई है कुछ ऋतु शरद
मारी मारी फिरती है इस हेतु दर दर चांदनी

रात की तो बात क्या दिन में भी बन कर कुंदकास
छाई रहती है बराबर भूमि तल पर चांदनी

सेत सारी* युक्त प्यारी की  छटा के सामने
जंचती है ज्यों फूल के आगे है पीतर चांदनी
(सेत सारी - श्वेत साड़ी, सफ़ेद साड़ी)

स्वच्छता मेरे ह्रदय की देख लेगी जब कभी
सत्य कहता हूँ कि कंप जायेगी थर थर चांदनी