Monday, September 30, 2019

673. काश

काश!

ऐ काश!  कभी ऐसा होता,
मेरे ख़्वाबों के जैसा होता।

धरती पर चाँद उतर जाता,
अम्बर से ख़्वाब सँवर जाता।
जीवन ये सोना खरा होता,
ऐ काश! कभी ऐसा होता।

फूलों से खिला चेहरा होता,
हर दिल में प्यार भरा होता।
न आदमी कोई डरा होता।
ऐ काश! कभी ऐसा होता।

न जात धर्म का पाश कोई,
न ऊंच-नीच अहसास कोई
न मज़हब का पहरा होता,
ऐ काश! कभी ऐसा होता।

बस प्यार मुहब्बत की बातें,
सपनों से सजी होती रातें।
हर दिन भी सुनहरा होता।
ऐ काश! कभी ऐसा होता।

नफऱत न यहाँ कोई करता,
भूखा न यहाँ कोई मरता।
भ्रष्टाचार नहीं गहरा होता।
ऐ काश! कभी ऐसा होता।

फूलों सा महकता हो जीवन,
खुशियों से भरा हो आँगन।
यह वक्त यूँ ही ठहरा होता।
ऐ काश! कभी ऐसा होता।

©पंकज प्रियम

671. भारत माता

भारत माता

सुनो-सुनो, ऐ दुनिया वालों, हमको न ललकार यहाँ,
हम भारत के वासी हैं, हिम्मत ही तलवार यहाँ।
कण-कण वीर जवानी है, जन-गण लिखी कहानी है-
रक्त तिलक हम करते और हाथों को हथियार यहाँ।

भारत सबकी माता है, सब इसकी संतान यहाँ,
इस माटी के कण-कण से, सबका  जुड़ा सम्मान यहाँ।
अमर तिरंगा लहराता, भारत माँ के हाथों में-
भारत माँ की आँचल का, सबको है अभिमान यहाँ।।

वीर शिवा के वंशज हैं, कुँवर की वो तलवार यहाँ,
झाँसी वाली रानी की, गूँजती वो ललकार यहाँ।
हल्दीघाटी की माटी में, राणा का इतिहास लिखा-
वीरों की इस धरती में, चेतक भी हथियार यहाँ।।

माँ भवानी दुर्गा काली, चामुण्डा विकराल यहाँ,
सुदर्शन धारी विष्णु हरि, शंकर महाकाल यहाँ।
कान्हा ने महाभारत रच दी, अर्जुन वीर धनुर्धारी-
पवन पुत्र ने लंका जारी, राम बने खुद काल यहाँ।

सुभाष-भगत-सुखदेव-गुरु, चन्द्रशेखर आज़ाद यहाँ,
अशफाक उल्ला और बिस्मिल, अंग्रेज़ो को याद यहाँ,
बापू का वो सत्याग्रह, सरदार पटेल सा लौहपुरूष-
आज़ादी के दीवाने सब, वीरों से धरा आबाद यहाँ।।

गीता का उपदेश जहाँ, बाइबिल पाक कुरान यहाँ,
मन्दिरों में बजती घण्टी, मस्ज़िद में अज़ान यहाँ।
हिन्दू- मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई, आपस में भाई-भाई
गंगा-यमुना की धारा,   बुद्ध-महावीर ज्ञान यहाँ।।

चन्द्रगुप्त का शौर्य यहाँ, चाणक्य बड़े विद्वान यहाँ,
पोरस जैसा बलशाली, सम्राट अशोक महान यहाँ।
सिकन्दर जीत न पाया, अकबर का अभिमान घटा-
शूरवीरों की यह धरती, सबको मिला सम्मान यहाँ।।

उत्तर से दक्षिण और पूरब-पश्चिम एक समान यहाँ,
भारत से सुंदर और नहीं देख लो दुनियाँ जहान यहाँ।
सोने की यह चिड़ियां है, विश्व में सबसे बढियां है-
भारत माता की जय बोलो, सबका हिंदुस्तान यहाँ।
©पंकज प्रियम

Sunday, September 29, 2019

672. एक अधूरी दास्ताँ

आज अचानक मेरे सोशल पेज पर एक लड़की ने फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी। आदतन मैंने उसे स्वीकार कर लिया। ढेरों फ्रेंड्स है बस मैं भूल गया। अचानक उसने मुझे हेलो का मैसेज किया। चुकी प्रोफ़ाइल में कोई तस्वीर थी नहीं लेकिन उसके मेसेज में पता नहीं क्या कशिश थी कि मेरी उत्सुकता बढ़ गयी ।
"क्या हाल है? कैसे हैं?"
मैंने भी मेसेज भेजा
"बढिया हूँ. क्या आप मुझे जानती हैं? कभी हम मिले हैं?
"हाँ'
"कैसे?"
"आप राँची में रहते थे न वहाँ मेरा ननिहाल था।"
"अच्छा! किसके घर? मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।
"वो सुरेश !वही तो मेरे मामा हैं।"
मैं अभी भी पहचान नहीं पा रहा था
"अच्छा आप किसकी बेटी हो?"
"रमा की"
"अरे मैं रूपा हूँ !"
"ओ हो! तो ऐसा बोलो न ! प्रोफ़ाइल में तो नाम पूर्णिमा है और हम तो तुम्हे रूपा के नाम से ही जानते हैं।"
"याद हैं न हम !"
"अरे! तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ.कहाँ हो आजकल?"
" जमशेदपुर में"
"वहाँ क्या कर रही हो? तुम्हारा ससुराल तो गुमला है न"

"हाँ लेकिन अब हसबैंड के साथ नहीं रहती हूँ" हम दोनों अब अलग हो गए हैं ।
"क्यूँ क्या हुआ? फिर तुम क्या कर रही हो?
"जॉब कर रही हूँ?"
"आखिर हुआ क्या था बताता नहीं"
"छोड़िये यह बहुत लंबी कहानी है, कभी मिलकर सुनाऊँगी"
"खैर! और बताओ क्या हाल है?
"बस जी रही हूँ अपने बच्चों के लिए" कहकर ऑफलाइन हो गयी।
मैं सोचने लगा
"हे भगवान! ये तूने क्या किया। एक हँसते खिलखिलाते कोमल से फूल पर समय का कितना तेज धूप डाल दिया कि वह मुरझाने लगा है।"

मैं पुराने दिनों में खोने लगा कितनी हसीन,खुशमिजाज थी रूपा।

रूपा यानी पूर्णिमा
हाँ बिल्कुल पूनम के चाँद सी हसीन ,खूबसूरत और पहाड़ी नदी सा अल्हड़पन। पहली बार जब उसे देखा था तो बस देखता ही रह गया।
मैं किराए के मकान में रहकर पढ़ाई कर रहा था। मकान भले किराए का था मगर हम उस परिवार के एक सदस्य की तरह थे। कोई भेदभाव नहीं और मैं भी उनके हर कार्य में दिल से लगा रहता था। पूनम अपने ननिहाल आयी थी रहने को, उसमें कशिश ही ऐसी थी कि देख कर कोई भी आकर्षित हो जाय। मैं भी पहली नज़र में दिल हार बैठा आखिर मेरी भी उमर जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी। उसे देख दिल में अजीब सी बेताबियाँ बढ़ जाती।
पूनम की उम्र वही कोई सोलह-सत्रह साल की होगी, जवानी में अभी-अभी कदम रखा ही था, जवानी चेहरे पर फूटने लगी थी. एक रोज नहा कर खुले बाल किये चली आ रही थी, कपड़े भी आधे-अधूरे भींगे हुए थे जिससे उसके उभार साफ झलक रहे थे और उसपर भींगे लट काले नागिन से लहराते प्रतीत हो रहे थे,चोटियों से टकराती और फ़िसलती लटें कमाल का दृश्य प्रदर्शित कर रहे थे।  चाँद से मुखड़े पर पानी की बूंदे मोतियों से लग रहे थे। मैं तो बस देखता रह गया, दिल की धड़कनें लुहार की धौंकनी की तरह चलने लगी। मुझे पता ही नहीं चल रहा था कि मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है। वह बिल्कुल मेरे करीब से गुजरी तो लगा हवा के झोंके में मैं भी बहता चला जा रहा हूँ। दिनभर बैचेन रहा हर बार उसकी खूबसूरती मेरी आँखों में छायी रही। रातभर करवटें बदलता रहा। पढ़ने का बिल्कुल ही मन नहीं कर रहा था। अगली सुबह जल्दी उठ गया और उसका इंतजार करने लगा। हम जिस मकान में रहते थे उसके बगल में ही उनलोगों का घर था लेकिन नहाने-धोने के लिए इसी मकान में आना पड़ता था। मैं बाहर बैठकर इंतजार करने लगा। थोड़ी देर बाद वह आयी ,आंखों से आँखे टकराई और मुस्कुरा दी। हाय! मेरा तो दिल तोते सा उड़ गया।


पारिवारिक सा मौहाल होने के कारण बातचीत शुरू हो गयी। उसका भी खिंचाव मेरी ओर होने लगा था। वह अक्सर मेरे कमरे की ओर आती और मुझसे बातें करती। अब तो उसे देखे बिना एक पल भी चैन नहीं मिलता था। मैं रोज इंतजार करता रहता। गेट पर कोई आहत होती कि मैं बाहर निकल आता। एक झलक पाकर ही सुकून मिल जाता।
उसे बंगला आती थी मैंने उसे कहा "मुझे भी सीखा दो न !
"ठीक है।"
फिर वह मेरी टीचर और मैं उसका स्टूडेंट बन गया। रोज आधे घण्टे मुझे बंगला सिखाने लगी। क-ख से शुरू कर वह मुझे "आमी तोमा के भालो बासी" यानी आई लव यू लिखना सीखा सीखा दी। हम तो हम घण्टो बैठकर गप्पे लड़ाने लगे। मेरे रोजमर्रा जीवन का हिस्सा बन गयी थी।
एक दिन वह मेरे कमरे पूजा का प्रसाद देने आयी और पास में बैठ गईं।बातचीत शुरू हो गयी। पता नहीं क्या -कुछ भी इधर-उधर की लेकिन उसकी बातें, उनकी हंसी और प्यारी सी मुस्कान का मैं दिवाना बन गया था। उससे दूर रहता तो बैचेन हो जाता और पास होता तो बेताबियाँ बढ़ने लगती। हम बिल्कुल पास बैठे थे वह बातें किये जा रही थी और मैं बस उसे देखता जा रहा था। उसकी गहरी नीली आँखें, सुंदर गुलाबी गाल और आग से दहकते होठों की लाली में  मैं डूबने लगा था। उसपर बिना दुपट्टे की झक सफेद रंग की समीज और सलवार ,उफ़्फ़!! ग़जब की खूबसूरत लग रही थी। बातों ही बातों में पता नही मुझे क्या हुआ और मैंने उसे अपने आगोश में भर लिया फिर उसके होठों को चूम लिया। 
वह अचानक से हड़बड़ा गयी और तुरंत उठ गयी, मेरी ओर बिना देखे वह बाहर निकल गयी। मैं भी अवाक रह गया
  "अरे! यह मैंने क्या कर दिया? मुझे डर लगने लगा पता नहीं वह क्या सोच रही होगी। किसी को कुछ बता दिया तो?
मैं सोचकर ही घबराने लगा।"
  उस रोज फिर वह इधर नहीं आयी मैं बैचेन हो गया लेकिन उसके घर जाने की हिम्मत भी नहीं ही रही थी। शायद यह बात उसने अपनी मामी को बता दिया था। अब उसका इधर आना कम हो गया था ।शायद घरवालों ने आने से मना कर दिया था। मैं उसे देखे बिना बैचेन हो रहा था। एक रोज वह आयी तो मैंने पूछा
"आजकल तुम दिखाई नहीं दे रही हो? क्या बात है ,नाराज़ हो मुझसे?"
"नहीं तो !"
,फिर? फिर तुम क्यूँ नहीं आ रही हो?
बड़े भोलेपन से उसने कहा-"आपने मुझे किस क्यूँ किया?"
"वो-वो मुझे पता नहीं क्या हुआ"

"तुम यहाँ क्या कर रही हो?जाओ अपना काम करो।" उसके मामा की कड़क आवाज़ सुन वह घबरा गयी और फिर तुरंत चली गयी। मैं भी अपने कमरे में आ गया।

फिर कई दिनों तक वह इस इधर नहीं आयी। उसकी मुझे आदत सी हो गयी थी उसे देखे बिना बिल्कुल ही मन नहीं लग रहा था।

बहुत दिनों के बाद आज वह आयी भी तो कुछ बात नहीं किया। मैंने कोशिश भी की,पूछा भी मगर उसने कोई जवाब नहीं दिया। मैं बैचेन हो गया उससे बात करने को , कागज़ के एक टुकड़े में बहुत बारीक अक्षरों में उसे पत्र लिखा और उससे दिल का हाल जानना चाहा।  उसने पत्र हाथ मे तो लिया लेकिन पढ़ा कि नहीं कोई जवाब नहीं दिया। 


कुछ दिनों बाद उसकी शादी तय हो गयी ,बड़े धूमधाम से शादी हो गईं मैं भी गया । उसवक्त थोड़ी बातचीत हुई। शायद बात बन्द करने का अफसोस उसे भी था। 

मैंने पूछा " अब तो तुम्हारी शादी हो रही है खुश हो न!"


हाँ ,लेकिन आपके जैसा प्यार करने वाला कहाँ होगा ?

बहुत शांत स्वर था उसका। 

मैं बस खमोश उसे देखता रहा,शादी हो गयी सुबह विदाई भी हो गयी । मैं वापस तो आ गया लेकिन उसकी यादें दिल मे दफ़न हो गयी। 

कुछ दिनों के बाद आगे की पढ़ाई के लिए मैं दूसरे शहर चला गया और यह कहानी वहीं ख़त्म हो गयी। कभी सोचा नहीं था कि दुबारा भी भेंट हो सकती है। आज जब उससे बात हुई तो सारी कहानी फ़िल्म के रील की तरह फिर से जेहन में दौड़ती चली गयी। एक छोटी सी नादानी ने हमें दूर कर दिया था अब शायद उसे सुधारने का वक्त आ गया है। 


©पंकज प्रियम



Saturday, September 28, 2019

670. बिन मौसम बरखा

बिन मौसम बरखा
बरसता ये आश्विन लगे जैसे सावन,
निकल भी न पाउँ,भरा यूँ है आँगन।

ये काला-कलूटा भयंकर सा बादल,
घटाटोप घनघोर गरजे घना-घन।

कड़कती चमकती डराती ये बिजली,
कहर ढा रही है ये बरखा की सौतन।

बहक क्यूँ रही हो अभी तू ऐ बरखा,
तुम्हारी रुखाई में सूखा वो सावन।

फ़सल मर गयी पर न आयी तभी तू,
शहर को डुबाने मचलती हो हरक्षण।

जरा अब रुको भी, करोगी प्रलय क्या,
बरसना समय से करूंगा मैं वंदन।
©पंकज प्रियम
28/09/2019

669. समन्दर

उफ़नती मचलती सी जवानी के जोश में,
अल्हड़ सी दरिया खुद समाये आगोश में।
फिर समंदर का भला इसमें दोष कैसा-
टकरा के मुहब्बत वो रहे कैसे होश में।।
©पंकजप्रियम

Friday, September 27, 2019

668.राज़ दिल का

2122 2122
आज सबकुछ बोलना है,
राज़ दिल का खोलना है।

ख़्वाब देखा जो कभी था,
आज उसको तोड़ना है।

दर्द तो होगा बहुत पर,
घाव दिल का फोड़ना है।

जख़्म गहरे हो गये जब,
प्यार को अब छोड़ना है।

ऐ प्रियम कुछ रह गया है
या अभी मुँह मोड़ना है।
©पंकज प्रियम

667. भारत माँ के लाल सभी

भारत माता की जय

नहीं फादर ऑफ इंडिया मोदी,
नहीं फादर ऑफ नेशन गाँधी।

नहीं उचित लफ्ज़ राष्ट्रपिता,
नहीं उचित शब्द ये राष्ट्रपति।

राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष कहलाते,
राष्ट्रपिता राष्ट्रसपूत बन जाते।

भारत तो बस माता है सबकी,
पावन धरती के हैं लाल सभी।

जहाँ राम-कृष्ण अवतार हुआ,
महाबीर-बुद्ध को ज्ञान मिला।

भरत नाम से भारत का नाम,
धरती पुत्र खुद कहलाये राम।

अखण्ड भारत का स्वप्न सजा,
चाणक्य ने चन्द्र को ताज दिया।

सम्राट अशोक बना महान यहाँ,
कहलाया न भारत का बाप यहाँ।
©पंकज प्रियम

नोट:- ये नितांत मेरी निजी भावना है। किसी के मान-सम्मान को ठेस पहुंचाने की कोई मंशा नहीं है। महात्मा गाँधी को मैं हृदय से सम्मान करता हूँ। लोगों के अपने अलग विचार हो सकतें है।

666.बैंक में पैसा

बैंक
1222 1222 1222 1222
गरीबों की जमा पूँजी, उसी से घर चलाते हो,
बुलाकर के अमीरों को, उन्हें कर्ज़ा दिलाते हो।
हमारे ही जमा रुपये, हमें तुम क्यूँ नहीं देते?
डुबाकर आज तुम पैसा, गरीबों को रुलाते हो।।

गरीबों की कमाई पर,  बड़े सपने सजाते हो,
जमा करते जतन से वो, खुले हाथों लुटाते हो।
बचा दो जून की रोटी, हमेशा बैंक में रखते-
लगाकर आग जीवन में, उन्हें जिंदा जलाते हो।।

शरम आती नहीं तुझको, गरीबों को सताते हो,
उसी के ख़ू पसीने से, अमीरों को नहाते हो।
जमा लाखों करोड़ों पर, महज है लाख गारंटी-
दिखा नुकसान बैंकों का, हमें ठेंगा दिखाते हो।

©पंकज प्रियम
26.09.2019
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Thursday, September 26, 2019

665. नजर से नज़र तक

नज़र से नज़र
122 122 122 122
नज़र से नज़र तब हमारी मिलेगी,
अगर जो इजाज़त तुम्हारी मिलेगी।

यकीनन दिलों पर चलेगी कटारी,
नज़र जब तुम्हारी हमारी मिलेगी।

निगाहों से ऐसे न खंज़र चलाओ,
नज़र से दिलों की सवारी मिलेगी।

समंदर से गहरी नज़र जो तुम्हारी,
कभी थाह लेने की बारी मिलेगी।

प्रियम को हजारों नज़र ढूढ़ती पर,
तुम्हारी नज़र सी न प्यारी मिलेगी।

©पंकज प्रियम

664.यशोधरा का प्रश्न

यशोधरा का प्रश्न

खुद को दुनिया में बतलाना शुद्ध,
आसान बहुत है बन जाना बुध्द।

किसी की शवयात्रा को देखकर,
एक रात आधीरात को छोड़कर।
गहरी नींद में सोयी पत्नी और
दुधमुंहे बच्चे से यूँ मुँह मोड़कर।
गृहस्थ जीवन से होकर विमुख,
आसान बहुत है बन जाना बुद्ध।

एक पल के लिए सोचा नहीं,
किसके भरोसे छोड़ के जा रहे।
सात जन्मों जो किया था वादा,
यूँ इक पल में तोड़ के जा रहे।
अपने ही वादों से हो कर विरुद्ध,
आसान बहुत है बन जाना बुद्ध।

हाँ आज भी पूछती है यशोधरा,
था आखिर क्या अपराध मेरा?
मुँह छुपाए इस तरह तेरा जाना,
दुनियां ने तुझे तो देवता माना।
देखा नहीं जीवन से मेरा युद्ध,
आसान बहुत है बन जाना बुद्ध।

तेरी जगह अगर मैं यूँ अकेले,
तुम्हें, घर और बच्चे को छोड़।
लाँघ लेती दहलीज मुँह अंधेरे,
मैं भी यूँ कर्तव्यों से मुँह मोड़।
खूब लाँछन होते मेरे सन्मुख,
आसान बहुत है बन जाना बुद्ध।

अपहृत लाचार विवश थी सीता,
लंका में कैद पर पवित्र थी गीता।
लेकिन कहाँ उसपे किया भरोसा,
ली गयी उसकी भी अग्निपरीक्षा।
तब दुनियां ने माना उसको शुद्ध,
आसान बहुत है बन जाना बुद्ध।

मैं भी अगर सबकुछ यूँ छोड़कर,
घर परिवार सब से रिश्ता तोड़कर।
सत्य ढूढ़ने आधीरात निकल जाती
कुलटा विधर्मी जाने क्या कहलाती।
निश्चित मार्ग मेरा हो जाता अवरुद्ध,
आसान बहुत है बन जाना बुद्ध।

यशोधरा का जीवन जी कर देखो,
यूँ रोज जरा सा विष पी कर देखो।
कैसे हमने था तब खुद को संभाला,
कैसे अकेले  दुधमुंहे को था पाला।
करती रही खुद से ही खुद मैं युध्द,
आसान बहुत है यूँ बन जाना बुद्ध।

माना तुम्हें हो गया सत्य का ज्ञान,
मान लिया दुनियां ने भी भगवान।
कहाँ उत्तर मेरा कभी तुम दे पाये,
क्या दुनियां को फिर तुम समझाये।
सदा तुम मेरे प्रश्नों से होकर विमुख,
आसान बहुत है यूँ बन जाना बुद्ध

भावनाओं की मेरी तुम करके हिंसा,
क्या सिखाते जग को सत्य-अहिंसा।
जीवन से पलायन कोई पर्याय नहीं,
क्या इसके बिना कोई उपाय नहीं?
सत्य दिखा पर दिखा न मेरा दुःख
आसान बहुत है बन जाना बुद्ध।
©पंकज प्रियम
26/09/2019
https://pankajpriyam.blogspot.com/2019/09/664.html?m=1#links

Tuesday, September 24, 2019

663.मुहब्बत की कहानी

ग़ज़ल
जवां दिल बहकता मचलती रवानी,
मिले दो जवां दिल फ़िसलती जवानी।

नज़र से नज़र और अधर से अधर,
मिला जो अगर तो दहकता है पानी।

जुबाँ बंद लेकिन नज़र बोल जाती
मुहब्बत की होती यही है निशानी।

धड़कने लगे दिल अगर देख कर तो,
समझ लो शुरू हो गयी है कहानी।

लगे चाँद मद्धम, पवन छेड़ सरगम,
लगे साँझ सुरमय लगे रुत सुहानी।

धड़कते दिलों की जरा बात सुन लो,
करो तुम मुहब्बत सदा ही रूहानी।

मचल दिल उठेगा अगर तुम सुनोगे,
ग़ज़ल-ए-मुहब्बत प्रियम की जुबानी।
©पंकज प्रियम

662. हमारी कहानी

122 122 122 122
ये मेरी मुहब्बत तुम्हारी जवानी,
बनेगी अलग ही हमारी कहानी।

कभी प्यार से तुम जरा मुस्कुरा के,
अधर से अधर पे लगा दो निशानी।

नज़र को नज़र से कभी यूँ मिलाके,
समंदर निग़ाहों में उठा दो रवानी।

जरा पास आओ गले से लगाओ,
करो शाम मेरी जरा सी सुहानी।

प्रियम की मुहब्बत सदा है तुम्हारी,
बनाकर दिवाना बनो तुम दिवानी।
©पंकज प्रियम

Monday, September 23, 2019

661. हॉउडी मोदी

भाइयों एवं बहनों!!!!!

हॉउडी मोदी
1
लहराया तिरंगा झण्डा खूब, सात समंदर पार,
अमेरिका के अम्बर में गुंजा, भारत का हुँकार।
अपना परचम लहराया, दुनियां के हर देशों में-
अमेरिका की धरती में भारत माता जयजयकार।
2
कुछ तो बात है बन्दे में, तभी तो दुनियां झुकती है,
कुछ तो ख़ास है बन्दे में, ये सारी दुनियां कहती है।
दुनियां के सब देशों में, भारत का मान बढ़ाया तो-
सात समंदर पार भी दुनियां हॉउडी मोदी जपती है।।
©पंकज प्रियम
22/09/2019
11:47pm

Sunday, September 22, 2019

660.सुजल गाँव

सुजल गाँव

अभी समझ लो इसका मोल,
पानी कितना है अनमोल।
जन-जंगल जीवन-सृजन,
का है यह अमृत सा घोल।
हाँ कह दो सारी दुनिया को,
बजा-बजा के अब तो ढोल।

जल घिरी पर प्यासी धरती,
जल के बिना रहती परती।
अगर नहीं रिचार्ज हुई तो,
पल-पल धरती खुद मरती।
जल ही रचाये जग सारा-
बिन पानी कब दुनिया गोल।

केवल वर्षा जल का ठिकाना,
बचा के उसको सारा रखना।
समय-समय जल जाँच करा-
तू स्वच्छ शुद्ध ही जल पीना।
एक-एक बूँद को तरसोगे जो
अगर न समझे जल का मोल।

कुआँ- चुवां, नदी-तालाब,
कभी न करना इन्हें खराब।
गाँव का पानी रखना गाँव-
रखना एक-एक बूँद हिसाब।
अगर अभी जो तुम न चेते,
केपटाउन सा होगा होल।

हैंडपंप या हो जल की मीनार,
सब पर रखना तुम अधिकार।
इनकी मरम्मत तुमको करना-
गाँव के खुद हो तुम सरकार।
शुद्ध, सुरक्षित जल देने को,
'प्रियम' सुजल का नारा बोल।
©पंकज प्रियम

659. स्वच्छ गाँव

स्वच्छ गाँव
हर कोई, हर रोज, हमेशा
आओ मिलकर हम सब,
प्रयास करें कुछ अब ऐसा।
शौचालय का करें प्रयोग-
हर कोई, हर रोज हमेशा।

तड़प उठता है दिल ये मेरा,
हुआ देश का हाल है कैसा?
खुले खेत में क्यूँ जाते सब,
जानवरों का हो चाल जैसा।
शौचालय का करें उपयोग-
हर कोई, हर रोज, हमेशा।

नहीं खुले में कोई जाएं,
सबको मिलकर समझाएं।
नहीं परिश्रम नहीं कठिन,
नहीं लगता है इसमें पैसा।
शौचालय में ही जाएं-
हर कोई हर रोज हमेशा।

रहना है जो तुम्हें निरोग,
शौचालय का करो प्रयोग।
स्वच्छ तन और स्वच्छ मन -
है मंदिर और धन के जैसा।
शौचालय का करें उपयोग-
हर कोई, हर रोज, हमेशा।

शिशु मल भी होता है गन्दा,
खुला फेंकने का छोड़ो धंधा।
उससे बढ़ता खूब है खतरा
शौच खुले में करने के जैसा।
सुरक्षित निपटारा हो प्रयोग
हर कोई हर रोज हमेशा।

भोजन से पहले शौच के बाद
हाथ है धोना तुम रखना याद।
हरेक बीमारी से बच जाओगे,
हररोज करोगे जब तुम ऐसा।
साबुन का ही सब करें प्रयोग
हर कोई, हर रोज, हमेशा।

चार दिनों का दर्द समझना,
मुश्किल में औरत का रहना।
न रक्त अशुद्ध न वो अपवित्र
मासिक धर्म एक चक्र के जैसा।
सुरक्षित पैड का करें उपयोग,
हर कोई हर रोज हमेशा।

नहीं खुले में कचरा फेंको,
गंदे पानी को यूँ न छोड़ो।
बहुत खतरा इससे भी होता
खुद ही जहर पीने के जैसा।
सोख्ता गड्ढा का करे उपयोग
हर कोई हर रोज हमेशा।

प्लास्टिक रिश्ता छोड़ो तुम,
स्वास्थ्य से नाता जोड़ो तुम।
धरती-जंगल-पानी-जीवन-
प्लास्टिक खतरा कैंसर जैसा।
कपड़े का थैला करें प्रयोग-
हर कोई, हर  रोज हमेशा।
©पंकज प्रियम

658. नज़र

ग़ज़ल/नज़र
122 122 122 12
मुहब्बत मुझे इस कदर हो गई,
कि रातें मेरी मुख़्तसर हो गई।

ख़यालों में उनकी जगा रात भर,
जरा आँख झपकी सहर हो गई।

नज़र जो खुली तो उन्हें ढूंढती,
न जाने नज़र से किधर हो गई।

सभी से छुपाया नज़र को मगर,
जमाने को कैसे ख़बर हो गई।

तुम्हारे ख़यालों हुआ यूँ असर,
कि मेरी ग़ज़ल बा-बहर हो गई।

मुहब्बत हुई जो मुझे आजकल,
नज़र भी नज़र की नज़र हो गई।

नज़र खोजती है जिसे चाहती है,
प्रियम की नज़र बेख़बर हो गई।

©पंकज प्रियम
22 सितम्बर 2019

Friday, September 20, 2019

657.चिट्ठियां

2122 2122 2122 212
खोलकर तुमने क्या कभी देखी हमारी चिट्ठियां,
या लिफ़ाफ़े में रही.....  रोती बिचारी चिट्ठियां।

खोलकर दिल रख दिया था प्यार में तेरे सनम,
बोल तुमने क्या किया वो देख सारी चिट्ठियां।

दिल मचलता है मिरा, जब देखता हूँ ख़त तिरा,
आज भी हमने रखी है,... वो तुम्हारी चिट्ठियां।

क्या हसीं वो दिन भी थे, रोज लिखता था तुझे,
कौन लिखता है कहाँ अब आज प्यारी चिट्ठियां।

अब प्रियम क्यूँ ख़त लिखेगा फोन जो सस्ता हुआ
आज बदला जो जमाना,   खुद से हारी चिट्ठियां।
©पंकज प्रियम

Monday, September 16, 2019

656. छुपाना भी है

ग़ज़ल
उन्हें हाल दिल का बताना भी है,
मगर राज अपना छुपाना भी है।

जरा तुम बताओ कि मैं क्या करूँ,
उन्हें प्यार अपना जताना भी है।

बचा के नज़र आज जाऊं किधर,
नज़र से नज़र जो मिलाना भी है।

कभी जख़्म उनको दिखाया नहीं,
छुपा कर उसे मुस्कुराना भी है।

प्रियम आज सबकुछ बताना नहीं,
वचन जो दिया वो निभाना भी है।
©पंकज प्रियम
16/09/2019

655. इश्क़ उधारी

इश्क़ उधारी
इश्क़ में यूँ तेरा कर्ज़ा उतार चले,
जीत कर भी खुद को हार चले।

तुम याद करो या न करो मुझको,
हम तेरी यादों को ही संवार चले।

आदमी हूँ इश्क़ होना लाज़िमी है,
दिल के खातों में मेरा उधार चले।

हर्फ़ दर हर्फ़ जो तुम उतर आते,
लफ्ज़ों से ही मेरा कारोबार चले।

मेरे दर्द से तुझको है कहाँ वास्ता,
तुम तो प्रियम को जिंदा मार चले।
©पंकज प्रियम

654. बहलाती हो

ग़ज़ल
तुम जब चाहे ख़यालों में आ जाती हो,
खुद मैं बुलाऊँ तो फिर भाव खाती हो!

तेरा ख़्वाब कैसा तेरी जुस्तजू कैसी?
तुम ख़यालों में किसे आज़माती हो?

इश्क़ के समंदर में डूबकर जो निकला
उसे इश्क़ का फ़लसफ़ा सिखाती हो!

है मुहब्बत मुझसे तो इज़हार कर दो,
दूर रहकर इस कदर क्यूँ तड़पाती हो?

नापनी है गहराई तो डूबना ही होगा,
साहिल से यूँ अंदाज़ क्या लगाती हो?

देखी समझी जिसने यह दुनियादारी,
तुम उसको भी दिल से बहलाती हो!

लफ़्ज़ों का जिसने रच दिया समंदर,
प्रियम को अल्फ़ाज़ों में उलझाती हो!
©पंकज प्रियम
16.09.2019
1:09AM

Saturday, September 14, 2019

653 लफ़्ज़ अमानत

ग़ज़ल
हर दिल में भरो चाहत, बस प्यार मुहब्बत हो,
गन्दी न जुबाँ करना, नज़रों में न नफऱत हो।

मत भेद कभी करना, भाषा की न बोली की,
हिंदी सी जुबाँ मीठी, ऊर्दू की नज़ाकत हो।

आवाज़ सुनो दिल की, तुम काम करो मन की,
हर काम करो दिल से, हर काम की इज्ज़त हो।

दुनियां में सभी आये,  कुछ नाम कमाने को,
कुछ काम करो ऐसा, तेरे नाम की कीमत हो।

सुन आज प्रियम कहता, कुछ साथ नहीं जाता,
अल्फ़ाज़ बनो ऐसा, हर लफ़्ज़ अमानत हो।
©पंकज प्रियम

652. हिंदी

हिंदी
भाषा निज सम्मान है, भाषा से पहचान।
भाषा निहित समाज है, भाषा से अरमान।।

मातृभाषा से अपनी, करते सब हैं प्यार।
मातृभाषा बोल बड़ी, है अपना हथियार।।

हिंदी भाषा हिन्द की, अंग्रेजी को छोड़।
दिल बसा ले स्वदेशी, इससे नाता जोड़।।

हिंदी भाव सहज बड़ी, मीठे इसके बोल।
भाषा सब हिंदी खड़ी, कानों में रस घोल।।

©पंकज प्रियम

बिना शक्कर के मीठी खीर लगती हो,
सब भाषाओं में सबसे वीर लगती हो।
अपने ही घर में लाचार हुई जो हिंदी-
तुम पाक अधिकृत कश्मीर लगती हो।।
©पंकज प्रियम

Friday, September 13, 2019

651. ख़्वाहिश

ख्वाहिश
एक तुझसे यही है गुज़ारिश सनम,
यार आँखों से ना कर तू बारिश सनम।
एक तुझसे यही है गुज़ारिश सनम,
चाँद तारों की ना कर तू ख्वाहिश सनम।

चाँद को आसमां से निहारा करो,
चाहतों से मेरी तुम गुजारा करो।
चाँद तारों को ना तुम उतारो जमीं
आसमां की यही है सिफारिश सनम।
एक तुझसे यही
इन सितारोँ को यूँ ही चमकने तो दो
फूल को बाग में ही महकने तो दो।
ना जमाने की बातों पे आना कभी
दूर करने की सबको है साज़िश सनम।
एक तुझसे यही...।
प्यार में ना रखो ऐसी हसरत कभी
हो सके जो न पूरी वो चाहत कभी।
रह गयी जो अधूरी तो दिल टूटता,
कर न ऐसी कोई फ़रमाइश सनम।
एक तुझसे यही...।
मेरी चाहत का तुझको है इक वास्ता,
ना सुनाना किसी को ये दिल दास्तां।
लोग ज़ख्मों पे मलते नमक हैं यहाँ-
इश्क़ में ना करो आजमाइश सनम।

एक तुझसे यही है गुज़ारिश सनम,
चाँद तारों की ना कर तू ख्वाहिश सनम।
© पंकज प्रियम
13/09/2019

650. फैसला कीजिये

ग़ज़ल
212 212 212
दिलबरों सी दवा कीजिए
दर्द देकर दुआ कीजिये।

दूर से दिल मिला है कभी,
पास आकर मिला कीजिये।

दिल लगाकर जरा देखिये
बाग में फिर खिला कीजिये।

हौसला जो बढ़ा हो अगर
प्यार में फिर ख़ता कीजिये।

हो गयी जो प्रियम से ख़ता
आप ही फैसला कीजिये।
©पंकज प्रियम

Thursday, September 12, 2019

649.हुस्न3

हुस्न

छोड़कर तुझको हम किधर जाएंगे,
ख़्वाब तेरा होगा हम जिधर जाएंगे।

न देख ऐसे की सबपे कहर ढाएंगे,
देखकर तुझको सब यूँ मर जाएंगे।
हुस्न अपना कभी न यूँ सरेआम करो-
देख-देख कर सब आह भर जाएंगे।।
सज़ा होगी जो आह भरते मर जाएंगे।
छोड़कर तुझको...।

हो जन्नत की परी या हसीं ख़्वाब हो,
या गुलशन महकता हसीं गुलाब हो।
कयामत है तेरा ये हुस्न और जलवा-
चाँद हो चांदनी हो या आफ़ताब हो।।
आगोश में भर लो तो हम तर जाएंगे
छोड़कर तुझको.....।

पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त...क्रमशः.....।
©पंकज प्रियम

Friday, September 6, 2019

648. निगाहें

निगाहें

निगाहें ख़ंजर का भी काम करती है,
जिधर उठती है कत्लेआम करती है।
इन आँखों की गुस्ताखियां तो देखो-
दिल की बातें भी सरेआम करती है।।

निगाहें मैख़ाने का भी काम करती है,
मुहब्बत के पैमाने में जाम भरती है।
डूबकर कभी इन आँखों में तो देखो-
खुद आंखों की नींद हराम करती है।।

निगाहें किताबों का भी काम करती है,
कोरे पन्नों से भी इश्क़ पैगाम करती है।
पढ़कर कभी देखो नैनों की तुम भाषा-
दिल के जज्बातों को सलाम करती है।।
©पंकज प्रियम

Wednesday, September 4, 2019

647.इश्क़ मुहब्बत

ग़ज़ल

212 212 212 212
प्यार में हम सुकूँ रोज खोते रहे,
रातभर हम जगे आप सोते रहे।

नींद मेरी उड़ी आप को क्या पता,
ख़्वाब में भी जगे और रोते रहे।

प्यार हमने किया तो ख़ता क्या हुई
आंसुओं से नज़र को भिंगोते रहे।

इश्क़ की आग ऐसी लगी क्या कहूँ,
खुद नज़र को नज़र में डुबोते रहे।

मुफ़्त में हम मिले आप को क्या कदर
एक हम हैं प्रियम प्यार ढोते रहे।

©पंकज प्रियम

646. पलक

पलक

ये पलकें तुम्हारी, लगे क्यूँ है भारी,
निंदो से बोझिल या फिर है खुमारी।

पलकें गिराना  गिराकर उठाना,
निगाहें तुम्हारी बड़ी क़ातिलाना।
नज़र ये तुम्हारी है लगती कटारी
ये पलकें  तुम्हारी ...

पलकों पे कैसा ये रंग गुलाबी,
लगती तुम्हारी नज़र है शराबी।
नज़र को लगी नज़र की बीमारी
ये पलकें तुम्हारी ...

जगे रातभर जो वो होती जवानी,
आँखों ही आँखों में होती कहानी।
जुबाँ बन्द कहती नज़र ये तुम्हारी,

ये पलकें तुम्हारी, लगे क्यूँ है भारी
बोझिल नींदों से या फिर खुमारी।
©पंकज प्रियम

645. अश्क़ मुहब्बत

ग़ज़ल
काफ़िया- अत
रदीफ़- हो चुकी है
2122 2122 2122 2122
आँख को अब आंसुओं की रोज आदत हो चुकी है,
दिलजलों की क्या कहानी ख़त्म चाहत हो चुकी है।

हो गया अब बेवफ़ा तो क्या कहूँ मैं आज तुमको
प्यार का मुँह मोड़ लेना आज किस्मत हो चुकी है।

हम कभी जो दूर जाते, तुम शिकायत खूब करते,
अब हमारे पास आने पर शिकायत हो चुकी है।

आज़माती ज़िन्दगी तो आज़माती मौत भी क्यूँ?
मौत की भी दिलबरों सी आज हसरत हो चुकी है।

ख़्वाब हमने साथ देखा प्यार तुमने ही जगाया,
थी मुहब्बत खूब तो क्यूँ आज नफऱत हो चुकी है।

हम वफ़ा करते रहे पर तुम जफ़ा करते रहे क्यों,
बेवफ़ाई आज दिल की ख़ास फ़ितरत हो चुकी है।

इश्क़ मुझसे था तुम्हें या दिल लगाने का खिलौना,
छोड़कर अपने प्रियम किनसे मुहब्बत हो चुकी है।

©पंकज प्रियम
4 सितम्बर 2019
00:26 AM

Monday, September 2, 2019

644.नज़र नजर

हुस्न/मुक्तक
विधाता छंद
1222*4
नज़र मेरी न लग जाये, ...जरा काजल लगा लो तुम,
नज़र सबकी न चढ़ जाये, गिरा आँचल उठा लो तुम।
ग़जब ये हुस्न है तेरा, .......तुझे जब देखता हूँ मैं-
कदम मेरे बहक जाते....जरा ये दिल सँभालो तुम।।
©पंकज प्रियम
2 सितम्बर 2019

643. हुस्न

मुक्तक
बदन को छू ले तो फिर, पवन बेताब हो जाता,
अधर को चूम कर तेरे,  चमन गुलाब हो जाता।
नहीं कोई करिश्मा है, तुम्हारा हुस्न है ऐसा-
नज़र में डूबकर तेरे, हसीं इक ख़्वाब हो जाता।।

बदन में छू अगर ले तो, पवन अलमस्त हो जाता,
अधर को चूमकर कर तेरे, अधर मदमस्त हो जाता।
हसीं इक ख़्वाब के जैसी, महकती बाग के जैसी-
नयन में डूबकर तेरे,..... प्रियम भी मस्त हो जाता।।
©पंकज प्रियम

Sunday, September 1, 2019

641.राज़

ग़ज़ल


221 1222 221 1222

इक राज़ हमारा है, इक राज़ तुम्हारा है,

जो राज़ छुपाया वो अंदाज़ तुम्हारा है।


तेरी खुशबू को हम यूँ हर रोज हवा देते,

लिखते हर गीतों में अल्फाज़ तुम्हारा है।


तेरे कदमों की आहट पहचान सदा लेते,

मेरी हर धड़कन बजता साज़ तुम्हारा है।


मुझसे मिलने की चाहत सब रखते हैं पर,

मेरे दिल पर बस चलता राज तुम्हारा है।


ये वक्त हुआ है किसका तुम बतलाओ,

कल राज प्रियम का था आज तुम्हारा है।

©पंकज प्रियम