Monday, July 30, 2018

398.क्यूँ

क्यूँ???

दरिया नहीं ये आँखे,फिर क्यूँ भर आती है?
बदरी तो नहीं आँखे,फिर भी बरस जाती है।

कपड़े तो नहीं होंठ,फिर क्यूँ सिल जाता है?
दिमाग नहीं लोहा,मगर जंग लग जाता है।

खिलौना नहीं ये दिल,फिर क्यूँ टूट जाता है?
आत्मसम्मान नहीं देह,मगर चोट खाता है।

मौसम नहीं मनुष्य,फिर क्यूँ बदल जाता है?
वक्त नहीं आदमी,फिर भी गुजर जाता है।

©पंकज प्रियम

Friday, July 27, 2018

397.अरमान

अरमान
जितना कम अरमान रहेगा
उतना जीवन आसान रहेगा।

अपेक्षा जितनी गहरी होगी
दर्द का बढ़ता सामान रहेगा।

हसरतों की चौखट पे आके
हरवक्त तू खड़ा हैरान रहेगा।

मुश्किलों में खुद को तनहा
खुद से ही तू परेशान रहेगा।

जिंदगी को जीभर तू जी ले
यही खुद पे एहसान रहेगा।
©पंकज प्रियम

396.मिलते ही रहेंगे

ग़ज़ल सृजन-42
क़ाफिया-अते
रदीफ-ही रहेंगे
तिथि-27जुलाई
वार-शुक्रवार
चले जाओ जहां भी तुम,आँखों में दिखते ही रहेंगे।
भूला दो मुझको चाहे तुम,यादों में मिलते ही रहेंगे।
हम मुहब्बत के वो दीवाने हैं ,जिसे भूला ना पाओगे
लाख लगा लो पहरे तुम, ख्वाबों में बसते ही रहेंगे।
हर लफ्ज़ कहानी कहती है,जिसे मिटा ना पाओगे
कतरा कतरा लहू बनकर,आँखों से बहते ही रहेंगे।
जला देना तुम खत सारे,यादों को कैसे मिटाओगे
दिल की धड़कन बनकर,रगों में धड़कते ही रहेंगे।
फेंक देना तुम फूलों को,वो पन्नें कैसे तुम फाड़ोगे
तेरी चाहत के हर पन्ने पर,"प्रियम"छपते ही रहेंगे।
©पंकज प्रियम

Thursday, July 26, 2018

395.दाग

दाग
कपड़ों के धुल जाते मगर
कहां धुलते दामन के दाग
ना साबुन,ना कोई सोडा,
ना मिटा सकता है झाग।

आंखों से तो दिखता नही
पर छपता सबके दिमाग।
लाख जतन चाहे कर लो
छुपता नहीं कभी ये दाग।

कठिन डगर है ये जीवन
पग रखना बड़ी संभाल।
थोड़ी सी जो चूक हुई तो
हो जाता है जीना मुहाल।

दुनिया काजल की कोठरी
हर कोने में जल रही आग
भूल से भी गर भूल हो गई
समझो कि लग गया दाग।

©पंकज प्रियम

Monday, July 23, 2018

394.श्रवण कुमार

त्रेतायुग का श्रवण कुमार
पितृभक्ति का था अवतार
मां बाप आंखों से लाचार
तीर्थ की इच्छा थी अपार।

मातु पिता की इच्छा जान
कुमार ने भी ली यह ठान
कांधे कांवर बिठाके चला
श्रवण कुमार बना महान।

बीच राह लगी जो प्यास
रोकी यात्रा नदी के पास
दसरथ का जो तीर लगा
टूट गयी श्रवण की सांस।

मात पिता ने छोड़े प्राण
श्रवण की मृत्यु को जान
दशरथ को भी श्राप मिला
पुत्र वियोग में दे दी जान।

अब ऐसा कोई सपूत कहां
कलयुग जन्मे कपूत यहां
माता पिता को रोता छोड़
अलग बसाता अपनी जहाँ।

मां बाप करते रहते पुकार
पास तो आ जाओ एकबार
बच्चे जाते सब रिश्ते तोड़
नहीं रहा जो श्रवण कुमार।

©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"

393.काश!पायल बोल पाती

मेरे पैरों में रुनझुन गाती
रोज नया संगीत सुनाती
काश!बन्धन खोल जाती
काश! पायल बोल पाती

जब जब दिल मेरा रोता
थोड़ा दर्द तुझे भी होता।
बाबुल को तुम कह आती
काश!पायल बोल पाती।

बचपन की तुम हो साथी
मैं दीया,तुम मेरी हो बाती
मेरे गम को साथ जलाती
काश! पायल बोल पाती।

उस दिन तुम खामोश रही
जब उसने मुझको रौंदा था
यहां वहां,जाने कहां कहां
दरिंदों ने मुझको नोचा था।

मेरे मुंह में बंधा था कपड़ा
जिस्मों से हटा था कपड़ा
तुम तो जोर से चिल्लाती
काश!पायल बोल पाती।

जब जकड़ा जोर बन्धन
टूटी चूड़ी,टूट गए कंगन
तुम कान्हा को कह आती
काश! पायल बोल पाती

समय रहते जो होती चेत
उनका गला मैं देती रेत
राज उनके तू खोल जाती
काश! पायल बोल पाती।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह,झारखंड

Sunday, July 22, 2018

392.पायल

तुम खामोश रहती हो
तेरी पायल बोल जाती है।
दिल में राज छुपाती हो
तेरी पायल खोल जाती है।

मस्ती में जब रहती हो
तेरी पायल गीत सुनाती है
जब उदास तुम होती हो
तेरी पायल मुझे बुलाती है।

तुम चुपके से आती हो
तेरी पायल ही बताती है
पैरों में रुनझुन करती ये
आने की खबर सुनाती है।


391.भाग्य


भाग्य से मोक्ष तक

भाग्य रहता साथ उसी के
जो अपनी राह बनाता है।
समय चलता साथ उसी के
जो सबको राह दिखाता है।
      भाग्य रहता ....
दान ग्रहण होता है उसका
जो गरीबों की भूख मिटाता है।
जन्म सफल होता है उसका
जो सबका दुःख दर्द बंटाता है
      भाग्य रहता....
जाति-धर्म कैसा मज़हब?
कर्म ही पहचान बनाता है।
खुलता मोक्ष का द्वार जब
मन लिप्सा रहित हो जाता है।
       भाग्य रहता....
पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
गिरिडीह,झारखण्ड

Friday, July 20, 2018

390.कारवाँ गुजर गया

कारवाँ

गुजर गया कारवाँ
यूँ हीं गुजरता रहेगा
जीवन-पथ मुसाफ़िर
सफ़र करता रहेगा।

जाना सभी को वहाँ
सिलसिला चलता रहेगा
कोई दीपक की तरह
यादों में जलता रहेगा।

यादों में तेरी यहाँ
रोज खत लिखता रहेगा
पंक में भी कमल
रोज यहाँ खिलता रहेगा।

लफ्ज़ों का धुँवा
तेरा खूब उठता रहेगा
तू उठे न उठे तेरा
कारवाँ चलता रहेगा।
©पंकज प्रियम
#कवि नीरज को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि

#नमन नीरज

Thursday, July 19, 2018

389.कलाम को सलाम

विधा -घनाक्षरी
-----------------------------
बच्चों के प्यारे कलाम
     सबसे न्यारे कलाम
        तुझको मेरा सलाम
             तुझपे ही नाज है।

झोपड़ में पला बढ़ा
    फिर भी ऊपर चढ़ा
        नाम तेरा हुआ बड़ा
              तेरा ये अंदाज़ है।

बेचकर अखबार
    किया सपने साकार
       बड़ा फ़लक आकार
               बना सरताज है।

परमाणु परीक्षण
   तेरा ही तो समर्पण
       याद तुझे हरक्षण
            करे सब आज है।
        
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

388.जुगनू

1.
जीवन कुछ ऐसा जियो,जग तुझसे हर्षाय
जुगनू बन रौशन करो,मन का तिमिर हटाय।
2.
अब जुगनू दिखते कहाँ,किसने दिया भगाय
बिजली की झक रौशनी,जुगनू तो छुप जाय।
3.
अब वो बचपन है कहाँ,अपना बल्ब जलाय
बच्चों के लिए जुगनू,आप बोतल समाय।
4.
जुगनू सी अब जिंदगी,आप सिमटती जाय
अस्तित्व मिट जाएगा,कुछ तो करो उपाय।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह(झारखंड)

387.इश्क़ रूहानी

इश्क़ रूहानी
जिन लफ्ज़ों की दुनियां दीवानी है
उनमें छुपी मुहब्बत की निशानी है।
मुश्किल है इस दिल को समझाना
हर धड़कन सुनाती तेरी कहानी है।
मुश्किल है दरिया इश्क़ पार जाना
आग सी धधकती यहाँ जवानी है।
जिस्म नहीं हमें तो रूह तक जाना
नहीं समझे!हमारा इश्क़ रूहानी है।
समझना हो अगर तो घर आ जाना
प्रियम के दर पे मौसम रूमानी है।
©पंकज प्रियम

386.सावन

सावन की पुकार

कारे कारे बदरा छाए
झूम झूम बरखा आए
मोर,पपीहा नाचे गाए
सुन सावन की पुकार।

लबालब, ताल तलैया
बूंदे करती, ता ता थैया
भींगे सजनी,झूमे सैंया
चले पुरबा की कटार।

खेतों में पानी भर आए
देख कृषक मन हर्षाए
मेढ़क क्या खूब टर्राए
सब गाए,मेघ मल्हार।

हरियाली मन बहकाए
फूलों से तन महकाए
बागों में झूले लगवाए
सजनी सोलह सिंगार।
©पंकज प्रियम

Wednesday, July 18, 2018

385.संहार करो

संहार करो

बहुत सह लिया घात भीतरी,अब प्रतिकार करो
दुश्मनों के घर में घुसकर,चढ़के उनपर वार करो।

आ गया है वक्त अब,पौरुष अपना दिखाने का
टूट पड़ो आतंकी पे अब,खुद इक तलवार करो।

तुझपे टिकी है नजरें सारी, है उम्मीद जमाने का
कूद पड़ो रणभूमि में,दुश्मन का अब संहार करो।

तुम्हें पुकारती मां भारती,वक्त है कर्ज चुकाने का
मातृभूमि की रक्षा में,खुदको युद्ध में तैयार करो।

सज धज के खड़ा तिरंगा,वक्त उसे लहराने का
गाड़ दुश्मनों की छाती में,झंडे का सत्कार करो।

हर जवान खड़ा देश का,सज है रक्त बहाने को
जय हिन्द के नारों से,बस तुम अब हुँकार करो।

©पंकज प्रियम

Monday, July 16, 2018

384.दिखा देंगे

कहा था दिल में तुझको बिठा देंगे
तुम्हारे इश्क़ में खुद को लूटा देंगे।

मेरी मुहब्बत तुम भले न समझो
अपनी वफ़ा पे यकीन दिला देंगे।

बड़ा गुरुर है अपने हुश्न पे तुझको
अपना जलवा भी तुझे दिखा देंगे।

बहुत पछताएगी याद कर मुझको
तुम्हारे अपने जब तुझको दग़ा देंगे।

कैसे भूल पाओगे तुम प्रियम को
लफ्ज़ों का समंदर जब लहरा देंगे
©पंकज प्रियम

Thursday, July 12, 2018

383.भ्रस्टाचार


भ्रस्टाचार
********
सब लुटे मिलकर
  खाये पैसे जमकर
     मंत्री,नेता,अफसर
           यही सरकार है।

कोठा बना है दफ़्तर
     बाबू बैठा है अंदर
      दल्ला खड़ा है बाहर
             जनता लाचार है।

मायूस बैठी जनता
   रिश्वत नहीं जो देता
      काम कहां से होता
           सिस्टम बेकार है।

घूस बना नजराना
   भ्रष्ट है पूरा जमाना
      मुश्किल है पार पाना
             यही भ्रस्टाचार है।
©पंकज प्रियम

Wednesday, July 11, 2018

381.बेटी ससुराल चली



बाबुल अब तुम,कर दो विदा
बेटी अब तेरी ससुराल चली।
हुआ अब तो ये आंगन जुदा
छोड़के तुझको तेरे हाल चली।
            बेटी तेरी अब....
माफ़ करना सब मेरी तुम ख़ता
नए घर में खुद को मैं ढाल चली।
दूर सबसे रहना,कैसे ये तो बता
बेटी करके खुद को बेहाल चली।
               बेटी तेरी अब...
लाल जोड़े में दिया मुझको सजा
छोड़कर घर अब हरहाल चली
हाथ जोड़े खड़ी मांगती है विदा
बंद आँखों में आँसू संभाल चली।
                बेटी तेरी अब...
तोड़कर जोड़ना एक रिश्ता नया
देखो कैसे खुद को संभाल चली।
मैया तुम अब न और आँसू बहा
बेटी तेरी हो अब खुशहाल चली।
               बेटी तेरी अब....
©पंकज प्रियम

382.हमकदम

7 फेरों में 10 कदम

दो अनजाने,दो कदम
मिलकर बने हमकदम
एक तुम और एक हम
गुजरते राह पहुंच गए
सात फेरों के दस कदम।

खट्टी मीठी बातों का
चाँद सरीखे रातों का
दिल के जज्बातों का
तान छेड़ हम बन गए
सात सुरों के सरगम।
  सात फेरों के दस कदम।

सुख दुःख के हैं साथी
जलके खुद पिघलाती
जैसे दिया और बाती
जलते बुझते सज गए
द्वार दशक के हमदम।
   सात फेरों के दस कदम।

दिवस विश्व आबादी का
दिवस हमारी शादी का
बन्धन वो आज़ादी का
रिश्तों के धागे कर गए
दो अजनबियों का संगम।
     सात फेरों के दस कदम।
©पंकज प्रियम
11.07.2018

#शादी की 10 वीं सालगिरह

Tuesday, July 10, 2018

380.चाँद शरमा गया

चाँद शरमा गया

तेरा रूप देखकर,चाँद शरमा गया
गोरा धूप देखकर,आँख भरमा गया।
तूने कजरारे नैनों से मारी जो कटार
बिन आग के फ़ाग भी गरमा गया।
                           तेरा रूप...
अंग अंग हर रंग,तू कमाल सी है
तेरा हर एक ढंग,तू बवाल सी है
पल पल बदले,जो तेरा ये मिज़ाज
तेरे हाल पे मौसम भी भरमा गया।
                           तेरा रूप...
तेरे होठों की लाली,गुलाब सी है
तू फूलों की डाली, शबाब सी है
लचके कमर जो, तेरा बेहिसाब
तेरे चाल से मोर,भी शरमा गया।
                        तेरा रूप देखकर
जिस्म ओढ़े जवानी,हिज़ाब सी है
तेरी हर एक अदा,बेहिसाब सी है
तूने खोली जो,दिल की किताब
तेरा राज देखकर,सब भरमा गया।
                        तेरा रूप....
©पंकज प्रियम
10.7.2018

Monday, July 9, 2018

379.चलो स्कूल चले

चलो स्कूल चले

चलो चलें चलो चलें
हम चलो स्कूल चलें
बीत गया है रविवार
आ गया है सोमवार
दोस्तों से लगें गले।
          चलो स्कूल चलें।
हमें लिखना पढ़ना है
सबसे आगे बढ़ना है
पर्वत ऊपर चढ़ना है
ऊँची हो जितनी भले।
           चलो स्कूल चलें।
पढ़के नाम कमाना है
हमें पहचान बनाना है
कुछ बनके दिखाना है
चाहे सारी दुनिया जले।
           चलो स्कूल चलें।
शिक्षा अलख जगाना है
अशिक्षा दूर भगाना है
अंधकार को मिटाना है
चाहे जो सूरज भी ढले।
©पंकज प्रियम

Sunday, July 8, 2018

378.क़िरदार को

रोज ही समझाता हूँ,मैं अपने यार को
अपने दिल में छिपा कर रखो प्यार को।
बहुत कठिन है चलना मुहब्बत के रास्ते
इश्क़ कभी जँचता नहीं इस संसार को।
क्या नहीं करता कोई मुहब्बत के वास्ते
शिद्दत से निभाता है,हरेक किरदार को।
चलना है इस डगर,आहिस्ते आहिस्ते
समझना बहुत मुश्किल है इक़रार को।
हम तो सब कह गए,तुम्हें कहते कहते
तुमने समझा ही नहीं, मेरे इज़हार को।
©पंकज प्रियम

376.सजा

सजा भी खूबसूरत दे

वफ़ा की खाएं हम कसमें,ऐसी ना जरूरत दे
निगाहों में जो बस जाए,तू ऐसी कोई सूरत दे।
तुम्हारे प्यार की खातिर,हदों से हम गुज़र जाएं
मगर दिलकश गुनाहों की,सजा भी खूबसूरत दे।

इश्क़ समझा सकूं तुझको,थोड़ी तो मोहलत दे
मुझे मंजूर होगा सब,लगा तू जो भी तोहमत दे
तुम्हारे रूह के अंदर,हमारी रूह बिखर जाए
मगर अलमस्त बहारों सी,अपनी तू मुहब्बत दे।

कभी ना दूर रह पाऊं,तू अपनी ऐसी चाहत दे।
तेरे दिल में संवर जाऊं,मुझे तू ऐसी हसरत दे
तुम्हारे इश्क़ में खोकर,हमारा प्रेम निखर जाए
इबादत कर सकूं जिसकी,ऐसी कोई मूरत दे।

©पंकज प्रियम

Saturday, July 7, 2018

377. हालात बदलने के

आसार कुछ तो दिखे हालात बदलने के
हालात कुछ तो बने,जज़्बात मचलने के।

कब तलक तन्हा हम यूँ सफ़र करते रहें
राह कोई तो दिखे कभी साथ चलने के।

सांस लेकर भी यहां हम रोज मरते रहे
कोई सांझ तो दिखे,जिंदगी ढलने के।

दूर रहकर भी हम तुझमें ही जीते रहे
जरा एहसास तो जगे,तेरे पास रहने के।

गमों को आँसुओ में घोलकर पीते रहे
दवा कोई तो बने,दर्द-ए- दिल सहने के।
©पंकज प्रियम

Friday, July 6, 2018

375.तवायफ़ की पुकार



तवायफ़ की पुकार

मासूमों का देख बलात्कार
तवायफें भी सिसक पड़ी है
आ जाओ बहशी दरिंदो!
तुम्हारे लिए मुफ्त में खड़ी हैं।

चीख चीख कर रही पुकार
बच्चों पे क्यों नजर गड़ी है?
आ ही जाओ तुम मेरे द्वार
अपने हवस की जो पड़ी है।

क्या सुख मिलता है तुम्हें?
मासूम कलियों को नोचकर
क्या हवस मिटती है तेरी
नन्हीं जान को ऐसे मरोड़कर।

हमने तो खोल रखी है दूकान
तेरे जैसे आदमखोरों के लिए
अपना भी है एक बड़ा मकान
तेरे जैसे हवस चोरों के लिए।

नहीं है पैसे तो मुफ्त में आओ
जितना चाहो, हवस मिटाओ
पर बक्श दो मासूम बच्चों को
चाहे तो पूरे बदन दाँत गड़ाओ।

हम पेट की आग बुझाने को
अपना बदन रोज जलाते हैं
तेरे जैसे दरिंदों से बचाने को
हम आंसुओं में लहू छुपाते है।

तुम्हें जिस्म चाहिए,ले जाओ
 मासूमों की न बलि चढ़ाओ
और नहीं तो मेरे पास आओ
ज़रा मर्दानगी मुझपे दिखाओ।

©पंकज प्रियम

Thursday, July 5, 2018

374.मुस्कुरा दो

मुस्कुरा दो
अपने दर पे ना भले आसरा दो
मेरी खातिर जरा सा मुस्कुरा दो।
कब तलक हम रहे,राह तकते
कब मिलोगे जरा,ये तो बता दो।
जो लबों से नहीं, कुछ भी कहते
निगाहों से ही तुम,सब जता दो।
इश्क़ में रुखाई,नहीं तेरी अच्छी
अपने दिल से दुश्मनी मिटा दो।
खुल गयी बात,सब झूठी सच्ची
अपने चेहरे से तुम पर्दा हटा दो।
पहले मेरी तुम ख़ता तो बताओ
चाहे फिर तुम,मुझे जो सज़ा दो।
अपने दिल में,प्रियम को बसाओ
चाहे फिर तुम,जमाना भुला दो।
©पंकज प्रियम

373.जंगल

पेड़ों से बनता जंगल
जंगल से होता मंगल
आश्रित है जनजीवन
सृष्टि का होता सृजन।

पेड़ों से मिलती हवा
इनसे बनती है दवा
यही देते हमें भोजन
यही रोके मृदा क्षरण।

सब इसको है जानते
फिर भी नहीं मानते
खुद कर रहे अमंगल
रोज काट रहे जंगल।

विकास या विनाश है
मौत का अट्टहास है
पेड़ों का कर सफाया
खुद करते सर्वनाश हैं।

कैसे पाओगे छाया?
पेड़ों का कर सफाया
सड़क का चौड़ीकरण
कहीं होता शहरीकरण।
©पंकज प्रियम

Tuesday, July 3, 2018

372.मेघ मल्हार


घनर घनर घनघोर घटा, गाये मेघ मल्हार
चमक चमक चमके बिजुरी, तेज कटार।

कारे कारे बदरा छाए,झूम के पपीहा गाये
छमक छमक छमछम नाचे बरखा बहार।

चांदी से चमकती आँगन नाचती बर्षा बूंदे
अंगना उतरी दरिया,चले कागज पतवार।

लबालब भरी ताल-तलैया,करे ताता थैया
कलकल कलकल, करे नदिया की धार।

बह बह बहके बदरा,रह रह गिरे बिजुरिया
मह मह महके मदमस्त मनमोहनी बयार।

नाचे मोर पपीहा गाये,खेत किसान हर्षाये
झूम झूम झूला झूले सजनी करके सिंगार।

सावन संग सोलह सिंगार से सजनी सजे
टक टक टकटकी करे साजन का इंतजार।

झम झम झमाझम जो बरसे,मनवा तरसे
दह दह दहके दिल,चले जो बिरहा कटार।

©पंकज प्रियम
3.7.2018