Tuesday, March 31, 2020

802. मुस्कुराओ अभी

ग़ज़ल
212 212 212 212
पास आकर जरा गुनगुनाओ अभी
हाल क्या है दिलों का सुनाओ अभी।

खौफ़ पसरा अभी है सरे राह में,
कैद घर मे रहो, मुस्कुराओ अभी।

चंद घड़ियां बची है अभी पास में,
आस जीवन जरा सा जगाओ अभी।

साथ मिलकर चलो जंग ये जीत लें,
मौत के खौफ़ को मिल हराओ अभी।

कश्मकश ज़िन्दगी साँस धड़कन रुकी
हौसला ज़िन्दगी का बढ़ाओ अभी।

©पंकज प्रियम
31 मार्च 2020

Sunday, March 29, 2020

801. कैसा वायरस आया है?

कैसा वायरस आया है?

ये कैसा वायरस आया है?
हर दिल में खौफ़ समाया है।
ये कैसा वायरस आया है?
मुफ़लिस पे रौब जमाया है।

राजा हो या रंक अभी तो,
बांधा अपने पाश सभी को।
हर देश में मौत का साया है,
ये कैसा वायरस आया है?

अमरीका, इटली या स्पेन,
लूट लिया भारत का चैन।
जो चीन ने रोग लगाया है
ये कैसा वायरस आया है।

हर शक्ति है बेकाम अभी,
विज्ञान भी है नाकाम अभी।
कुछ काट नहीं मिल पाया है,
ये कैसा वायरस आया है?

अपनों से अपने दूर हुए,
सब कैसे अब मजबूर हुए।
परदेश से मार भगाया है,
ये कैसा वायरस आया है?

सबको सबसे दूर किया,
हाल बड़ा मजबूर किया।
हर घर को जेल बनाया है,
ये कैसा वायरस आया है।

सब मन्दिर-मस्जिद बंद हुए,
अब दूर सभी सम्बन्ध हुए।
हर ताकत को झुठलाया है,
ये कैसा वायरस आया है?

मौत का मंजर है पसरा,
बस छूने से भी है खतरा।
हर चेहरा मास्क चढ़ाया है,
ये कैसा वायरस आया है।

वीरान सड़क सन्नाटे में
बाज़ार तड़पता घाटे में।
सरकार ने कर्फ़्यू लगाया है,
ये कैसा वायरस आया है?

भूखे मरेगी जो जनता सभी
जागेगी क्या तेरी ममता तभी।
अब पैदल सबको दौड़ाया है,
ये कैसा वायरस आया है?

बचने का है बस एक उपाय,
घर में रहो सब ताला लगाय।
हर देश ही अब थर्राया है,
ये कैसा वायरस आया है?

©पंकज प्रियम
29.03.2020

Friday, March 27, 2020

800. कोरोना का संहार करो

नवरात करूँ जगराता, माता तुम सबपे उपकार करो,
महिषासुर घाती माता, कोरोना संहार करो।
घर में कैद हुआ है मानव, बाहर विचरे ऐसा दानव-
रक्तबीज बन बैठा राक्षस, कोरोना पे वार करो।।

799. वायरस

वायरस

कुछ ऐसा वायरस... आ जाये,
हर दिल में मुहब्बत छा जाये।
कुछ ऐसा वायरस...आ जाये,
बस प्यार मुहब्बत भा जाये।।

नफऱत का कहीं भी नाम न हो,
हाँ प्यार का लब बदनाम न हो।
हरदिल में मुहब्बत.. छा जाये,
कुछ ऐसा वायरस....आ जाये।

क्या जीना और क्या मरना है?
इस मौत से भी क्या डरना है?
संग अपनों के रहना आ जाये,
कुछ ऐसा वायरस आ जाये

नफऱत न किसी से द्वेष न हो,
कुछ मन में छुपा विद्वेष न हो।
खुशियों को लुटाना आ जाये,
कुछ ऐसा वायरस आ जाये।

जाति-धरम का भेद न हो,
न्याय-व्यवस्था छेद न हो।
भय, भूख-गरीबी खा जाये।
कुछ ऐसा वायरस आ जाये।

©पंकज प्रियम
27.3.2020

Wednesday, March 25, 2020

798. कोरोना कर्फ़्यू

कोरोना- 5
जनता कर्फ़्यू और लोगों की नजरिया
(व्यंग्य)-
(नोट:- कृपया कोई दिल पे न लें किसी को ठेस पहुंचाने की मंशा नहीं वर्तमान परिस्थितियों में जैसा देखा और सुना वही लिखा। बिल्कुल स्वच्छ व्यंग्य)

आज बहुत सारे लोग भी कह रहे हैं कि बहुत पहले कर्फ़्यू हो जाना चाहिए था लेकिन यही लोग 22 मार्च के जनता कर्फ़्यू का विरोध और मजाक कर रहे थे की इससे क्या फायदा होगा?  विपक्ष के कई बड़े नेताओं ने जनता कर्फ़्यू का मज़ाक बना विरोध जता दिया था। एक चपन्दूक नेता ने यहां तक बढ़कर कहा था कि जो कोरोना पीड़ित है उसे लाओ मैं गले लगाउंगा। आज कहीं दुबका पड़ा है घर में। यार हद है कुछ लोगों की चपन्दूकता। आज वही लोग कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री को बहुत पहले ही यह कदम उठा लेने की जरूरत थी। मतलब चित भी मेरी पट भी मेरी। प्रधानमंत्री ने देश के चिकित्सकों, पुलिसकर्मियों, पत्रकारों और उनसभी को धन्यवाद देने का आह्वान किया जो विषम परिस्थितियों में देश की सेवा में जुटे हैं तो पूरे देश ने ताली,तगली, घन्टी, डिब्बा, ढक्कन, शँख जो मिला उसी को बजाकर अपना धन्यवाद जताया। यद्यपि इसमें भी कुछ लोगों ने अति उत्साह दिखाकर पटाखे फोड़कर रैली निकाल दी जो बिल्कुल ही प्रधानमंत्री के अपील के विपरीत थी। लेकिन तथाकथित बुर्दहिमान,वचम्पादक और सो कॉल्ड सेक्यूलरों को यह बात नहीं पची और उन लोगों इसका भी मज़ाक बना दिया। यहाँ तक कि स्वनामधन्य पत्रकार और कई साहित्यकारों ने भी कह दिया कि भारत मूर्खो और मदारियों का देश है। मतलब आप अपने अहम में इतने चूर हो गए कि पीएम के सन्देश को भी सही ढंग से नहीं सुना और पूरे देश को मूर्ख और बंदर कह दिया। सुरक्षा के मद्देनजर सभी मंदिरों में भक्तों की पूजा पर रोक लग गयी लेकिन मस्जिद और सड़को पर सामूहिक नमाज जारी रहा। पूरे देश मे जनता कर्फ़्यू लग गया उसके बाद भी शाहीनबाग में लोग जमे रहे। क्या कहूँ शाहीनबाग की महिलाओं ने तो कोरोना को कुरान से जोड़कर कहना शुरू कर दिया था कि जो मुसलमानों को तंग करेगा उसी की जान लेगा कोरोना, उन्हें कुछ नहीं होगा। अरे हाँ पिछले सौ दिनों से धरने पर बैठे लोगों को भोजन पानी अल्लाह भेज रहा था लेकिन अब जबकि प्रशासन ने हटा दिया तो कह रहे भीख मांगने की नौबत आ गयी ।मतलब खुदा भी सिर्फ धरना के वक्त भोजन की आपूर्ति करता है क्या? मने की हद है यार! । एक मौलवी साहब ने तो सीधे कोरोना से बातचीत करने का दावा ठोक दिया और कहा कि मुसलमानों को बचाने के लिए कोरोना आया है। चीन,इटली और भारत समेत सभी उन देशों को खत्म करेगा जो उनलोगों को परेशान करता है। सरकार लगातार प्रयास कर रही है कि लोग घरों में रहें लेकिन लोग मानते नहीं और मजबूरन प्रशासन को लाठी के जोर पर उन्हें घर वापस भेजना पड़ रहा है। मनुष्य खुद को श्रेष्ठ समझता है और इसलिए कुछ भी खा लेता है। जानवर भी अपनी प्रकृति के हिसाब से भोजन लेता है उसे आप दूसरी चीज खाने को नहीं दे सकते लेकिन मानव तो दानव से भी बदतर हो गया है। सांप, बिच्छु, केकड़ा, घोंघा, सुअर, चमगादड़ कुछ भी खा लेता है जिसका नतीजा कोरोना और हन्ता जैसे जानलेवा वायरस फैलता है एक चीन की गलत भोजन के कारण पूरी दुनिया संकट में है। उसका तो वैश्विक बहिष्कार हो जाना चाहिए।
पंकज भूषण पाठक प्रियम

797. सर्वश्रेष्ठ इंसान!!

सर्वश्रेष्ठ इंसान!!

जान बचाने आपकी, चिंतित है सरकार।
इससे दुर्दिन और क्या, मानव है बेकार।।

घर में रखने को अभी, लाठी चलती यार।
खुद की चिंता गर नहीं, जीना तेरा बेकार।।

जनता कर्फ़्यू की पड़ी, क्यूँ अभी दरकार?
इसपर भी चेते नहीं, क्या करे सरकार?

अपनी चिंता मत करो, फ़र्क नहीं कुछ यार।
औरों का खतरा बनें, है किसको अधिकार।।

जान बचाने के लिये, देना पड़ा फरमान।
कैसे खुद को बोलते, सर्वश्रेष्ठ इंसान।

©पंकज प्रियम

जान है तभी तो जहान है।
वरना ठिकाना श्मशान है।।
घर में रहें सुरक्षित रहें।

Monday, March 23, 2020

धन्यवाद

796. कैद में मानव

कैद में मानव: डरना जरूरी है।
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घरों में कैद है मानव, .......गगन उड़ते सभी पक्षी,
दिखे जो खौफ़ ख़्वाबों में, हकीकत में नहीं अच्छी।
यहाँ हम कर्म हैं करते,... सजा कुदरत सुनाती है-
किया जो कर्म है तूने, सज़ा अब मिल रही सच्ची।।
अगर जीना तुम्हें जो है, ..अभी डरना जरूरी है,
प्रशासन जो कहे पालन, अभी करना जरूरी है।
नहीं बाहर अभी जाना,  घरों में कैद ही रहना-
अभी जो मौत बन आयी, उसे हरना जरूरी है।।
यह तस्वीर आज की हक़ीक़त है। सर्वशक्तिमान सम्पूर्ण मानव प्रजाति कमरों में बंद है और पंछी आज भी बेफिक्र हो उन्मुक्त गगन में स्वच्छन्द हो उड़ रहे हैं। हर अब भी हम नहीं चेते तो स्थिति और भयावह होगी। यह प्रलय का ही संकेत है। प्रलय का अर्थ ये नहीं कि धरती पलट जाएगी, जलप्लावित हो जाएगी या फिर जलकर भष्म हो जाएगी। कोरोना रूपी वायरस के रूप में भी तिलतिल कर मारने को प्रलय ही कहेंगे। समय-समय पर बाढ़, भूकम्प, तूफान और ऐसी बीमारियों से प्रकृति हमें आगाह करती रही है लेकिन हमें क्या? सर्वशक्तिमान बनने की होड़ में दैवीय संकेतों को पहचानने की फुर्सत कहाँ है? एटॉमिक, न्यूक्लियर बम, रासायनिक प्रयोग और अत्याधुनिक हथियारों से लैस करने के लिए प्रकृति के नियमो को तोड़ते जा रहे हैं। मनुष्य ने ईश्वर से मिली असीम शक्तियों का दुरुपयोग कर प्रकृति को काबू में करने की हर सम्भव कोशिश की। बेजुबान प्राणियों और उन्मुक्त गगन में उड़ते पक्षियों को पिंजरे में कैद करना चाहा। जीभ के स्वाद के लिए बेजुबानों का निर्ममता से कत्ल किया। तरह तरह के डिस बनाकर कच्चा-पक्का अपनी उदरपूर्ति में लगा रहा। मनुष्य का शरीर कभी माँसाहार के लिए बना ही नहीं है न तो उसके दांत वैसे बने हैं और न अमाशय में मांस को पचाने की क्षमता है लेकिन मनुष्य ने प्रकृति के सारे नियमों को ताक पर रख दिया। जितनी भी बीमारियां है उसकी जड़ गलत भोजन है। आज कोरोना वायरस की शुरुआत चीनियों के चमगादड़ के सुप पीने से हुई है। पक्षियों को पिजरे में बंद कर अपने मनोरंजन का साधन बना डाला। कुत्ते-बिल्ली यहां तक की शेरों को जंजीर में बांध दिया। पेड़ों का सफाया कर कंक्रीट के जंगल उगाने लगा। तालाब-कुआं सब भर कर ऊंची ऊंची इमारतें बनाने लगें। अपने प्रदूषण से पूरे वायुमंडल को दूषित कर दिया। अहम की अंधी दौड़ में सबकुछ पीछे छोड़ देने का नतीजा है ये प्रलय। प्राचीन वेद पुराणों में यूँही नहीं लिखा गया है कि जब -जब धरती पर पाप बढ़ेगा, प्रकृति खुद प्रलय के रूप में लोगों को सजा देगी। अति आधुनिकता की नकल में हम अपनी पुरातन संस्कृति और संस्कारों को भूलते गये। यज्ञ, तप, योग, साधना, पूजा, आराधना, संयम सबकुछ छोड़ दिया। पश्चिमी देशों की नकल में हम भी हैंडशेक, हग और किसिंग कल्चर में खुद को समाहित करते रहे। शराब, शबाब और कबाब में मानव सभ्यता को जमींदोज करते चले गए। एक दूसरे पर अपनी सत्ता और प्रभुता स्थापित करने की जंग में कब मानव से दानव हो गए इसका आभास तक नहीं हुआ। कुदरत हमें बारम्बार सचेत करती रही, संकेत देती रही चाहे वह ग्लोबल वार्मिंग हो, असमय बरोश, तूफ़ान या फिर प्रलयकारी बाढ़, लेकिन परमाणु सम्पन्न और मंगल-चाँद को भेदने का अहम पालने में इतने अँधे हो चले कि प्रकृति के संकेतों को समझ ही नहीं पाये। रावण सर्वशक्तिमान था, प्रकांड विद्वान था और त्रिलोकस्वामी भी था, बस उसके अहंकार ने उसे परास्त कर दिया। आज भी हम अंहकारी बने हुए हैं सरकार और  प्रशासन ने सभी की सुरक्षा के लिए जनता कर्फ्यू लगाया है लेकिन हम नहीं मान रहे हैं। बाजार में घूम रहे हैं। कुछ सियासत की रोटी सेंक रहे हैं तो कुछ विरोध में अंधे हो चुके हैं। इस वैश्विक आपदा में जब इटली, इरान और चीन जैसे देशों ने हार मान ली है तो अभी भी हम इसका मज़ाक बनाने में जुटे हैं। हालांकि डॉक्टर, नर्स, पुलिस, सफाईकर्मी, बिजली, पानी और विधि व्यवस्था में लोग युध्द स्तर पर कार्य कर रहे हैं। उनके सम्मान हेतु 22 मार्च को जब प्रधानमंत्री ने 5 मिनट की ताली बजाकर धन्यवाद देने केआ आह्वान किया तो पूरे देश ने उनकी बात मानी लेकिन कई लोगों ने इसपर भी सवाल खड़े केर मज़ाक बनाया, लोगों को मूर्ख घोषित किया और खुलेआम बाहर घूमने निकल पड़े। कोरोना के प्रकोप से महाबली बनने चला चीन, अत्याधुनिक इटली और शक्तिशाली ईरान समेत पूरा विश्व त्राहिमाम है फिर भी हमारे देश में लोग इसकी गम्भीरता नहीं समझ रहे हैं। सरकार के जनता कर्फ्यू का अनुपालन नहीं कर रहे हैं और खुलेआम खतरों को बांटने का काम कर रहे हैं। इसलिए बचना है तो डरना जरूरी है। ज्यादा बहादुरी दिखाने की कोई जरूरत नहीं है। बिल्कुल डरकर घरों में रहें और कोरोना के चक्र को तोड़ने में मदद करें। खुद भी बचें और दूसरों को बचाएं।
© पंकज भूषण पाठक प्रियम

795. कोरोना के नाम

प्यारी कोरोना,
स्वागत नहीं है तुम्हारा।

तुमसे जंग लड़ रहे लोगो की सेवा में जुटे कर्मियों को धन्यवाद देने के लिए आज मैंने ताली तो बजायी लेकिन साथे मन किया कि जो ज्यादे बुर्दहिमान और चम्पादक टाइप के लोग है उनका कान भी बजा दें। मरदूद के ताली बजाने में भी उनको राजनीति दिख रही थी। कह रहे थे जो ताली बजा रहे वो सभी मूर्ख हैं। मने पूरा देश मूरख और एक वही लोग बुर्दहिमान हैं। मतलब हद है विरोध की सियासत। ताली और थाली बजाकर लोग धन्यवाद दे रहे थे उन लोगों का जो विषम परिस्थितियों में भी लोगों की सेवा में जुटे हैं। लेकिन ऐसे लोग तो अति बुर्दहिमान और सो कॉल्ड इंटेलेक्चुअल होते हैं जिन्हें सेना को गाली देने में मजा आता है। देश के टुकड़े करने में मजा आता है लेकिन अपने देश के असली हीरो के सम्मान में ताली बजाना मूर्खता लगती है। ओ कोरोना! मेरी जान, तू जा ऐसे बुर्दहिमान चम्पादकों से गले लग ,उसे इतना प्यार दे कि बस तुझमें ही समा जाय। क्योंकि उन्हें हाथ जोड़कर नमस्कार करना गंवारपन लगता है। हग करना, किस करना और हाथ मिलाना उनके फैशन में है इसलिए बिंदास जा तू उनके पास। हमलोग तो निपट गंवार और मूरख ठहरे! तुम चीन से आई हो लेटेस्ट आईफोन हो तो ऐसे लोगों के हाथ मे सुशोभित होगी तुम रानी, हमलोग तो फिचरफोन वाले ठेठ मूरख हैं जो अपनो से प्यार करता है। सेवा और मदद करनेवालों का सम्मान करता है। बिल्कुल बिंदास होकर घर मे जो मिला थाली, चम्मच, बेलन, ड्रम, घँटी, शंख लेकर अपने-अपने छतों में बिना कोर्ट टाई लगाए, गमछा गंजी पहने खूब बजाया। कुछ नहीं मिला तो ताली ही बजाया , हमरे दोस्त मनोरंजन की लुगाई तो ले फिरर-फिरर सिटिये बजाकर धन्यवाद दे दी। क्या बच्चे और बूढ़े क्या औरत और क्या मरद सब के सब बिंदास होकर प्रधानमंत्री के आह्वान पर एकजुट होकर कोरोना से जंग का शंखनाद कर दिये। ई देख के केतना बुर्दहिमान और चम्पादकों के करेजा पर साँप लौटे लगा।  फिरी का जियो नेट मिलिए गया है तो फेसबुकवा कर आंय-बांय बकने लगा- भारत मदारियों का देश है। अरे हाँ कुछ लोग तो देश को #देस लिखले था और ऊपर से देस को स्त्रीलिंग बनायले थे और भाषण क्लिंटन वाला? हम भी चुन-चुन कर सबका कान बजाय दिये। तो कुछ लोग को देश का जितना लोग ताली बजाया उसका कपार में उसको मूरख लिखल दिख गया, अपन कपार पीटा तो बुर्दहिमान दिखा। मने हद है यार कोरोनो, तुम भी न क्या जरूरत थी इतना दूर से आने की, चाइना माल पर तो वइसने भरोसा नैय रहता है तुम काहे फटकने आ गयी। वहीं भेज देते एसन आदमीयन को जिसे तुमसे प्यार है। हम मूर्खो के पास मत रहो, न तो हग करेंगे, न हाथ मिलाएंगे और किस करेंगे। दूर से हो हाथ जोड़ ले परनाम कर लेंगे। इसलिए बेशक चली जाओ वापस,यहाँ आज ताली बजाये हैं न, ज्यादे जिद करेगी न तो तुमको भी बजा देंगे। अरे हमलोग तो दीवाली के बिहान फाटल सुप और झाड़ू से पीट-पीट कर दलिद्दर को भगा देते हैं तो तू कौन खेत की मूली है। मतलब हद है यार, मान न मान मैं तेरी मेहमान।

©पंकज भूषण पाठक प्रियम

Sunday, March 22, 2020

794. शंखनाद

शंखनाद रोज करें, स्वस्थ रहें मौज करें।
पंकज प्रियम

हमारी सनातन संस्कृति में पूजापाठ, पर्व-त्यौहार , शुभकार्य, युद्ध के प्रारम्भ और अंत की घोषणा इत्यादि में शँख बजाने की परंपरा रही है। इसके पीछे कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक तथ्य छुपे हुए हैं। प्राचीनकाल में ,वेद-पुराण में जो भी नियम बनाये गए सभी के पीछे कुछ न कुछ वैज्ञानिक तथ्य जुड़े हुए हैं। कुछ लोग भले इसे ढकोसला कहकर मज़ाक उड़ाएं लेकिन आज कोरोना के खौफ़ ने फिर उसी पुरातन संस्कृति की ओर मुड़ने पर विवश कर दिया है। आज विज्ञान ने भी मान लिया है कि शंखनाद से न केवल हमारी आंतरिक शक्ति बढ़ती है बल्कि कई रोगों का नाश भी होता है। शँख की ध्वनि जहाँ तक जाती उसके कंपन से वातावरण में मौजूद कीटाणु और विषाणुओं का नाश हो जाता है। शँख बजाने में बहुत जोर लगाना पड़ता है पूरे शरीर का रक्तसंचार बढ़ जाता है, मांसपेशियों पर जबरदस्त खिंचाव होता है और फेफड़ों को ताकत मिलती है। हर रोज सुबह-शाम शंख बजाने से हमारी श्वसन प्रणाली मजबूत होती है। शंखनाद से हमारे आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बसु ने भी यह बात सिद्ध किया था कि शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सर्जन होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है। शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फास्फोरस की भरपूर मात्रा होती है। आयुर्वेद चिकित्सक भी यह बात मानते हैं कि प्रतिदिन शंख फूँकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं होते।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो शंख बजाने का सबसे असरकारी प्रभाव यह है कि यह व्यक्ति के फेफड़े को शक्तिशाली बनाता है। शंख बजाने में फेफड़ों की पूरी शक्ति का प्रयोग करना पड़ता है। इससे फेफड़ों का व्यायाम होता है, जिसके कारण व्यक्ति कभी भी श्वास की बीमारी जैसे दमा या अस्थमा आदि का शिकार नहीं बनता।  शंख में गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। जब पूजा आदि कार्यों में शंख में पानी भरकर रखा जाता है, तो शंख के सभी गुण उस पानी में आ जाते हैं। पूजा के बाद जब यही पानी श्रद्धालुओं को पीने के लिए दिया जाता है या उन पर छींटा जाता है, तो कम-अधिक रूप में यह सभी गुण उनमें भी पहुंच जाते हैं। स्वास्थ्यवर्द्धक होने के साथ-साथ शंख के पानी में कीटाणुनाशक गुण भी होते है। इसके सेवन से व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत होती है।
     हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर और अरब सागर में शंख बहुतायत में मिलते हैं। शंख एक प्रकार के समुद्री जीव का रक्षा कवच होता है। तांत्रिक, ज्योतिष, आयुर्वेदिक एवं वैज्ञानिक प्रभाव के कारण ये शंख इतने पवित्र और चमत्कारी हैं कि इनकी पूजा भगवान की प्रतिमा की तरह होती है। वेद-पुराणों में भी उल्लेख है कि जहाँ शंखनाद होता है वहाँ सभी प्रकार के अनिष्टों का नाश होता है। मंदिरों, शुभ कार्यों, विवाह, यज्ञादि में शंख ध्वनि शुभ संदेश देती है। भारतीय संस्कृति में शंख को मांगलिक चिह्न एवं उपलब्धि को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। विभिन्न प्रकार के शंखों की उत्पति का ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड के 18वें अध्याय में पूरा आख्यान है। वेदों में भी शंखों को बड़ा महत्व दिया गया है।अथर्ववेद में लिखा है- शंख ध्वनि से सभी राक्षसों का नाश होता है। यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूँकने वाला व्यक्ति अपेक्षित है। सभी देवी-देवताओं ने अपने हाथ में विभिन्न प्रकार के शंख आयुध के रूप में धारण कर रखे हैं। अथर्ववेद के 'शंखमणि सूक्त में शंख की महिमा का विस्तृत वर्णन मिलता है। पुलस्त्य संहिता, विश्वामित्र संहिता, लक्ष्मी संहिता, कश्यप संहिता, मार्कंडेय, गौरक्ष संहिता एवं कई प्राचीन ग्रंथों में शंख की दुर्लभ जानकारियाँ मिलती हैं। स्वर्ग के सुखों में आठ सिद्धियाँ एवं नव निधियों में शंख भी एक अमूल्य निधि है। शंख को दरिद्रतानाशक माना गया है। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता एवं धन्वंतरि के अनुसार भी शंख का महत्व कम नहीं है।
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Friday, March 20, 2020

793. भारतीयता अपनाएं कोरोना भगाएं

*भारतीयता अपनाएं, कोरोना भगाएं।*
-हमारी संस्कृति में ही रोगों से बचाव और उपचार है।
©पंकज भूषण पाठक "प्रियम"

कोरोना से बचाव के लिए पूरी दुनिया आज ताली बजाकर जागरण कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी 22 मार्च को ताली बजाकर सन्देश देने का आह्वान किया तो बीबीसी की एक रिपोर्ट पर कई लोग कहने लगे कि मोदी का यह आइडिया पश्चिमी देशों की नकल है। शायद उन्हें पता नहीं कि ताली बजाने का आइडिया तो सदियों से वेद पुराण में है। पूजा के बाद आरती में लोग तालियां बजाते हैं उससे न केवल रक्त संचार होता है बल्कि कई बीमारियों से बचाव होता है। हमारी हथेली और तलवे में पूरे शरीर के नसों का पॉइन्ट होता है । ताली बजाने से उनमें दबाव पड़ता है जिससे पूरे शरीर का रक्त संचार सही होता है। ताली बजाने से एक ऊर्जा मिलती है। आज के सभी आइडिया हमारे प्राचीन ग्रंथो में पहले से ही है जिसे कुछ लोग ढकोसला बताते रहे आज वही अपना रहे, शाकाहार, नमस्कार, योग, व्यायाम, संयम सबकुछ पहले से है। बीमारियां तो आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कृति की देन है। हवन की समिधा में धूप, गुग्गुल, मधु, घी, नवग्रह की लकड़ियां सहित कई तरह की सामग्री को जलाते हैं जिससे वातावरण के सारे कीटाणु और विषाणुओं का अंत होता है। प्रसाद लेने से पूर्व आरती लेने का विधान है। हम आरती लेते हैं तो कपूर की लौ हथेली में मौजद कीटाणुओं का नाश कर देती है और स्वतः सेनिटाइजर का काम करती है। आज कोरोना के भय से दिन में दस बार लोग सेनिटाइजर का उपयोग कर रहे हैं। इसी तरह प्रसाद में तुलसी के पत्ते को डाला जाता है उसके पीछे का भी वैज्ञानिक तथ्य है कि प्रसाद में अगर कोई जहरीला पदार्थ मिला होगा तो तुलसी का पत्ता सूख जाएगा और शुद्ध होने पर प्रसाद कितना भी गर्म हो तुलसी का पत्ता हरा ही रहेगा। प्रसाद के साथ हम तुलसी को भी खाते हैं जो रोगों से बचाव करता है। आज डॉक्टर भी तुलसी के पत्ते को खाने की सलाह दे रहे हैं। इसी तरह शंख बजाने से न केवल हमारी श्वास प्रणाली सुदृढ होती है बल्कि पूरे वातावरण को भी प्रदूषण मुक्त करती है। यह विज्ञान ने भी प्रमाणित कर दिया हैं कि शंख की ध्वनि से आसपास के वातावरण से कीटाणुओं का नाश हो जाता है। सूर्य नमस्कार के 12 चरणों में शरीर का सम्पूर्ण व्यायाम हो जाता है। मंदिर में प्रवेश से पूर्व इसलिए स्नान कर और हाथ-पैर धोकर जाने का विधान है ताकि आप सेनिटाइज होते रहें। नियकर्म पद्धति में शौच क्रिया के पश्चात और भोजन से पूर्व हस्त प्रक्षालन के जितने चरण बताये गये हैं आज हम वही हैंडवाश के 7 चरणों के लिए जागरूकता फैला रहे हैं। पहले अस्पताल या शौच से आने के बाद स्नान करके घर में प्रवेश की इजाज़त थी जिसके पीछे का तथ्य यही है कि आप संक्रमण से स्वच्छ होकर ही घर में घुसे ताकि अन्य लोग प्रभावित न हों। पहले लोग जूते-चप्पल घर के बाहर ही रखते थे ताकि कीटाणु/विषाणु  घर में प्रवेश न कर सके। हिन्दू धर्म मे शवों के दाह संस्कार का विधान है जिसके पीछे का वैज्ञानिक तथ्य है कि जलाने से कीटाणुओं का नाश होता है। आज कोरोना के मामले में भी यही प्रकिया अपनायी जा रही है। हमारी संस्कृति हाथ जोड़कर नमस्कार करने की रही है ,संक्रमण होने का खतरा नहीं होता। जबकि पश्चात्य संस्कृति में हग और किस(आलिंगन-चुंबन) प्रमुख है। आज कोरोना से बचने के लिए पूरी दुनिया हमारी नमस्कार संस्कृति को अपना रही है। प्राचीन काल मे शाकाहार को महत्व दिया गया है उसमें बीमारियों का खतरा नहीं होता। कोरोना का संक्रमण माँस से ही हुआ है। आज इसके खौफ़ से मांसाहार छोड़ शाकाहारी बनने लगे हैं। मासिकधर्म के दैरान महिलाओं को बहुत आराम की जरूरत होती है और बहुत जल्द संक्रमित होने का खतरा रहता है इसलिए उन्हें मन्दिर या भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से रोका जाता था। आज कोरोना संक्रमित मरीजों को 14 दिनों के आइसोलेशन वार्ड में रखने की सलाह दी जा रही है जबकि यह प्रक्रिया हमारे देश में प्राचीन काल से चली आ रही है। जब भी किसी को चेचक होता था तो उसे अलग कमरे में नीम की डालियों से घिरी चारपाई में सुलाया जाता था ताकि संक्रमण बढ़े नहीं और मरीज ठीक हो। हमारे यहां तो भगवान जगन्नाथ भी बीमार पड़ते हैं और उन्हें कुछ दिनों के बिल्कुल ही आइसोलेट कर आराम करने दिया जाता है। ये सारी प्रथाएं और भारतीय संस्कृति वैज्ञानिक तथ्यों से प्रमाणित है लेकिन लोग इसे ढकोसला और अंधविश्वास बता कर मज़ाक उड़ाते रहते हैं। आज कोरोना के खौफ़ में पूरी दुनियां भारतीय संस्कृति को अपनाने पर विवश है।सनातन धर्म में तो सदियों से बात बताई गई है कि शाकाहार अपनाओ, प्राणिमात्र से प्रेम रखो, वन-उपवन का संरक्षण करो, फलाहार करो, किसी प्राणी की हत्या न करो। प्रकृति से प्रेम करो। अगर वातारण शुद्ध है तो मुंह मे पट्टी बांधने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। यज्ञ हवन समिधा में इतनी सामग्री जलती थी कि सारे कीटाणु/विषाणु मर जाते।शँख, घँटी और तालियों की ध्वनि से वातावरण कीटाणु मुक्त रहता था। तुलसी का प्रयोग हर प्रसाद में किया जाता है। आज वही हम खा रहे हैं। आरती में कपूर जो सेनिटाइजर का काम करता है। नित्यकर्म पद्धति में हस्त प्रक्षालन के जितने चरण वर्णित हैं आज उसे  हैंडवाश में सीखा रहे हैं। इसी तरह स्नान,ध्यान, योग ,तप, साधना, एकांतवास सबकुछ पहले से ही वर्णित है। जितने भी नियम बने उसके पीछे विज्ञान छुपा है।
इसीलिए भारतीय संस्कृति अपनाओ, कोरोना जैसे खतरों को दूर भगाओ।

© पंकज भूषण पाठक प्रियम

792. फाँसी

हो गयी फाँसी दुष्कर्मी को, मिला हृदय को अब है चैन।
धन्यवाद करती अब माता, थी वर्षों से जो बैचेन।

दुष्कर्मी कोई बच न पाये, नेता मंत्री या अफ़सर।
फाँसी सबको हो जाये, अफ़रोज़ नाबालिक या सेंगर।

हैवान सभी होते हैं वह जो नोचते बेटी की अस्मत,
हरपल खौफ़ बढ़ाये वो मौत ही उनकी हो किस्मत।

इंसाफ़ करे अब न्यायालय, बिन लगवाये वो चक्कर,
कोई बेटी मरे नहीं अब, इन खूनी पंजों में फँसकर।

सजा कठिन हो ऐसी कि, मौत की वो फरियाद करे,
बेटी को सब बेटी समझे, फिर कोई न अपराध करे।

आसिफा हो या निर्भया, किसी की माँ न रोये कभी,
अस्मत पे जो हाथ लगाए, दे दो फाँसी उसको अभी।

न्याय में देरी अन्याय सदा, जल्दी करो इंसाफ़ अभी
हैवान दरिन्दे दुष्कर्मी को, करो न उसको माफ़ कभी।
©पंकज प्रियम

Sunday, March 15, 2020

791. कोरोना


कोरोना के खौफ़ से, देख गिरा बाज़ार।
सारा शेयर गिर गया, डूबा लाख हजार।।

करोना वायरस कहे, सुनता वह कुछ और।
कोरो ना बारिश समझ, बरसाता घनघोर।।

साज़िश किसने की यहाँ, जल्दी उसको खोज।
कोरो ना बारिश सुने,........ बरसे बदरा रोज।।

चैत माह में देख लो, घटाटोप घनघोर।
बरसे बरखा बावरी, बदरा बहके भोर।।

सुन-सुन के सन्देश ये, पकते सबके कान।
कैसे बचना है अभी, दे दो इसपर ध्यान।।

बचना गर जो कोरोना, करना एक उपाय।
दूर रहो तुम भीड़ से, कोई फटक न पाय।।

©पंकज प्रियम

Friday, March 6, 2020

790. कोरोना होली

कोरोना vs होली

कान्हा भर-भर मारना, पिचकारी में रंग।
जी भर के तू खेलना, होली मेरे संग।।

सुन राधा मैं क्या करूँ, कैसे खेलूँ रंग।
कोरोना के खौफ़ से, रंग हुआ बदरंग।।

रंग हुआ बदरंग जो, पड़ता जैसे भंग।
मिलने से भी डर लगे, कैसे खेलूँ संग।।

फूलों के तू रंग से, भरना मेरे अंग।
रंग-उमंग-तरंग से, खेलो होली संग।।

टेसू फूल पलाश से, बनते कितने रंग।
खौफ़ नहीं कुछ रोग का, कर चाहे हुड़दंग।।

©पंकज प्रियम