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Sunday, December 15, 2019

754.जलता बंगाल

बंगाल देख लो

जल रहा है कैसा ये बंगाल देख लो,
शांतिदूत गुंडो का जंजाल देख लो।
मर रही जनता वो क्या कर रही ममता?
उसके ही शह पे फैला ये संजाल देख लो।

कानून बना है जो नया, क्यूँ बवाल है?
पीड़ित को न्याय मिला, क्यूँ सवाल है?
घुसपैठियों ने लूटा है इस देश को हरदम-
अब हटने की बारी पे हुआ क्यूँ बेहाल है?

श्रीराम के नारों से भड़क जाती हो ममता,
लाठी लिये उठा सड़क जाती हो ममता।
हर ओर लगी आग मगर चुप क्यूँ हो देवी?
बंगलादेशी नाम हड़क जाती हो ममता।

मासूमों पे बन आयी, मगर सो रही ममता,
बच्चों के लहू पर भी, नहीं रो रही ममता।
रक्त से रंजित है जमीं,  खौफ़ में जनता-
जेहादियों गुंडो को मगर ढो रही ममता।।

©पंकज प्रियम
15.12.2019

Friday, October 11, 2019

686. गाँधी तेरे देश में

गाँधी तेरे देश में

ऐ काश! कि तुम कोई दलित होते,
ऐ काश! कि तुम अल्पसंख्यक होते।
तेरे घर लगता मजमा रोनेवालों का।
चोरी करते जो तबरेजों सा मर जाते,
तभी सेक्युलर रूदाली आँसू बहाते।
जलता कैंडल हर शहर गली चौराहे,
यू एन तक सब करते बस चर्चा तेरी,
नेता अफसर सब दौड़े-दौड़े आते।
बंगाल की धरती रक्तरंजित क्यूँ है?
विरोध का स्वर इतना किंचित क्यूँ है?
बहा रही लहू ममता की सरकार,
चुप क्यूँ बैठा दिल्ली का सरदार?
गाँधी तेरे देश में इस नए परिवेश में
भेड़िया छुपा बैठा खादी के वेश में।
आँसू बहते सिर्फ चुनिंदा मौतों पर
कुछ भी नहीं है बदला है तेरे देश में।
वोटों की सियासत केवल चमकाते,
तुम जिसके लिए आँसू थे छलकाते।
©पंकज प्रियम

Sunday, May 5, 2019

555.आतंकवाद

क्या है आतंकवाद ?
क्यूँ उठते सवाल?
हर हादसों के बाद !
\निर्दोषों का कत्लेआम
बम विस्फोट सरेआम
दहशत के लिए आतंक फैलाना
यही तो है आतंकवाद /
आखिर कौन है ये आतंकी?
जो यूँ करते निर्दोष
,मासूमो का नरसंहार
आखिर क्या मिल जाता है इनको
क्यूँ खुद को उड़ा लेता है १६ साल का जवान
कितना सुकून मिलता है उसके रूह को
क्या नसीब हो जाती है जन्नत या फिर
मिल जाती है उसको हूर की ७२ परियां?
किसने भरा जहर हर नौजवान में ?
जो आत्मघाती बनने को तैयार हो जाता है
उसे बतलाया जाता है की धर्म के नाम पर जिहाद करना
लालच मिलती है जन्नत की
और ख्वाब दिखाया जाता है 72 हूरों का
धर्म के लिए कुर्बान होने को तैयार किये जाते
अरे, आतंकी !
जिहाद से जन्नत और 72 हरें नसीब गर होती
तो फिर आतंक का पाठ पढ़ाने वाले
रग-रग में जिहाद का जहर भरने वाले
इतने में दिलदार नहीं होते की
जन्नत और हूरों को यूँ तुम्हारे लिए छोड़ जाते
तुमसे पहले वो जन्नत की राह पकड लेते.
लोग कहते आतंक का कोई धर्म नहीं होता
चलो माना की उसका मजहब नही होता
लेकिन हर आतंकी खास क्यूँ होता है?
क्यूँ निकलते है आतंकियों के जनाजे?
क्यूँ उसे दो गज की जमीं नसीब होती है?
आतंकवाद को बढ़ावा देते कुछ स्वार्थी अपने
जिन्हें मिलता है सहयोग चुनावी
भितरघात करते आतंक के सरपरस्त
इन्हें पहचानना होगा
आतंकवाद से पहले इनके सर कुचलना होगा
तभी होगा शांति और अमन आबाद
खत्म जब हो जाएगा आतंकवाद

पंकज प्रियम

552.शर्मसार

कैसे करूँ अब यहाँ जयजयकार,
रोज होता मासूमों का बलात्कार।
जाति मजहब की होती सियासत-
रोज हो रही है मानवता शर्मसार।।

कैसी ये आग लगी, कैसा है अंगार,
फिजाओं में मची है कैसी हाहाकार।
फूलों को तोड़कर फेंक दिया सबने-
कलियों को भी मसल रहे बारम्बार।।

सत्ता-कुर्सी सियासत सब मक्कार,
धर्म का चश्मा चढ़ाए,उसे धिक्कार।
सिर्फ सियासी रोटी सेंका है सबने-
हो हल्ले में दबी मासूम की चीत्कार।।

©पंकज प्रियम

Thursday, January 25, 2018

गणतंत्र

आया दिवस गणतंत्र है
फिर तिरंगा लहराएगा
राग विकास दोहराएगा
देश अपना स्वतंत्र है
आया दिवस गणतंत्र है।

नेहरू टोपी पहने हर
नेता सेल्फ़ी खिंचाएगा।
आज सत्ता विपक्ष का
देशभक्ति का यही मन्त्र है
आया दिवस गणतंत्र है।

चरम पे पहुची मंहगाई
हर घर मायूसी है छाई
नौ का नब्बे कर लेना
बना बाजार लूटतंत्र है
आया दिवस गणतंत्र है।

भुखमरी बेरोजगारी
मरने की है लाचारी
आर्थिक गुलामी के
जंजीरो में जकड़ा
यह कैसा परतन्त्र है
आया दिवस गणतंत्र है।

सरहद पे मरते सैनिक का
रोज होता अपमान यहाँ
अफजल याकूब कसाब
को मिलता सम्मान यहां
सेक्युलरिज्म वोटतंत्र है
आया दिवस गणतंत्र है।

सेवक कर रहा है शासन
बैठा वो सोने के आसन
टूजी आदर्श कोलगेट
चारा खाकर लूटा राशन
लालफीताशाही नोटतंत्र है
आया दिवस गणतंत्र है।

भगत -राजगुरु- सुभाष-गांधी
चला आज़ादी की फिर आँधी
समय की फिर यही पुकार है
जंगे आज़ादी फिर स्वीकार है
आ मिल कसम फिर खाते हैं
देश का अभिमान जगाते हैं।
शान से कहेंगे देश स्वतंत्र है
देखो आया दिवस गणतंत्र है।
      ©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
        25.1.2018