Wednesday, December 23, 2020

901. दिल की बात

दिल की बात

करूँ मैं बात दिल की क्या, अधूरी छूट जाएगी,
इसी शिकवा शिकायत में, जरूरी छूट जाएगी।
गिला तुझसे नहीं कुछ भी, मगर जो दर्द है दिल में-
कहा उसको नहीं तो फिर, ये पूरी छूट जाएगी।।
©पंकज प्रियम

900. कोरोना का बाप

*कोरोना 2.0*

कोरोना का बाप आया,
    उससे भी टॉप आया,
         ब्रिटेन को नाप कर,
              सबको डराया है।

बंद किया दरवाजा,
  रोक दी है आवाजाही,
      कोरोना का नवतार 
         सेंसेक्स गिराया है।

 कोरोना था घट रहा,
     दुःख दर्द मिट रहा,
        सोच लिया सबने कि
              कोरोना हराया है।

खौफ़ में था गुजरा ये,
   साल बीस विष सा ये,
       नये साल सपनों पे,
           पानी ही फिराया है।
*©पंकज प्रियम*

Monday, December 21, 2020

899. मन का विश्वास

 मन में रख विश्वास, सदा तुम आगे बढ़ना,

हर खाई को पाट, पर्वत शिखर पे चढ़ना।।

कर बाधा को पार, तभी मंजिल  पाओगे। 

देखोगे पथ चार, निश्चय डूब जाओगे।।

©पंकज प्रियम

898. खौफ़ का साल

 खौफ़ में गुजरा है ये जो साल कैसा।

कैद में रहकर तो हुआ हाल कैसा।

चीन के वायरस से यहाँ कोरोना फैला-

चैन लूटने को आया काल कैसा।।


खौफ़ में गुजरा है जो ये साल बदल दो।

साल जो बदले तो ये भी काल बदल दो।

नववर्ष में उम्मीद नई आस जगाकर-

स्वदेश की वैक्सीन से चाइना माल बदल दो.

 

पंकज प्रियम 

 

 

Thursday, December 17, 2020

897.हरहरो रे

हरहरो रे -----
मकर संक्राति को प्रातः स्नान की महिमा तो सर्वव्यापी है लेकिन इसको लेकर हमारे यहाँ एक अलग की कहानी किसी ने बुन दी है. हाड़ कंपाती सर्दी में भला किसी को प्रातः 4 बजे उठकर नहाने को कहे तो कौन सुने? वह भी तब जब गाँव में गीजर न हो और कुँए के पानी से नहाना .पाप  और पुण्य से बच्चो को भला क्या लेना देना ? तो उनके लिए पुरखो ने एक नया बहाना बना दिया होगा कि मकर संक्राति के दिन जो भोर मुँह अँधेरे उठकर नहाता है उसे गोरी बीवी या सुंदर दूल्हा मिलता है . फिर सोचना क्या ? लड़के -लड़कियां सुंदर पत्नी और वर  लिए भर -भर बाल्टी पानी सर पर उलेढ़ लेते थे. सोचिये कुँवें का ठंडा पानी और पूरी बाल्टी सर पर उलेढ्ना कोई सजा से कम है क्या ? लेकिन रंगीन हसींन सपनों की गरम रेनकोट पहने हुए खाक ठंड लगती है! हाँ ठंड को दूर करने के लिए सभी जोर -जोर से चिल्लाते थे -हरहरो रे -सरसरो रे .आज तक इन शब्दों का अर्थ नहीं समझ पाया लेकिन मकर संक्राति के दिन नहाते वक्त ये पंक्तिया स्वतः निकल आती है. पानी में तिल डालकर स्नान करने की परम्परा रही है .काले तिल वाले पानी से स्नान कर गोरी बीवी और वर का सपना लिए लड़के -लड़कियां बड़े जोश से स्नान कर लेते थे. स्नान से पूर्व आसपास गिरे हुए सूखे पत्ते और लकड़ियों को जमा कर रखते और नहाते ही उसमे आग लगाकर तापने का अलग ही आनंद था. अब कितने लोगों को गोरी बीवी और सुंदर वर मिला ये तो शोध का विषय है लेकिन जो भी हो बचपन के दिन वो बड़े हसीन थे. अब तो मकर संक्राति पर बहुत कम गोंव जाना होता है और शहर में प्रातः स्नान  करने की बस परम्परा निभाई जाती है. ----------------------------------
--पंकज प्रियम