दिल की बात
करूँ मैं बात दिल की क्या, अधूरी छूट जाएगी,
इसी शिकवा शिकायत में, जरूरी छूट जाएगी।
गिला तुझसे नहीं कुछ भी, मगर जो दर्द है दिल में-
कहा उसको नहीं तो फिर, ये पूरी छूट जाएगी।।
©पंकज प्रियम
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
मन में रख विश्वास, सदा तुम आगे बढ़ना,
हर खाई को पाट, पर्वत शिखर पे चढ़ना।।
कर बाधा को पार, तभी मंजिल पाओगे।
देखोगे पथ चार, निश्चय डूब जाओगे।।
©पंकज प्रियम
खौफ़ में गुजरा है ये जो साल कैसा।
कैद में रहकर तो हुआ हाल कैसा।
चीन के वायरस से यहाँ कोरोना फैला-
चैन लूटने को आया काल कैसा।।
खौफ़ में गुजरा है जो ये साल बदल दो।
साल जो बदले तो ये भी काल बदल दो।
नववर्ष में उम्मीद नई आस जगाकर-
स्वदेश की वैक्सीन से चाइना माल बदल दो.
पंकज प्रियम