Thursday, November 28, 2019

730. धर्म और विज्ञान

धर्म और विज्ञान
©पंकज प्रियम
हमारा सम्पूर्ण धर्म-कर्म वैज्ञानिक तथ्यों से भरा पड़ा है। वेद और ग्रंथो में जो भी व्रत उपवास और धर्मकर्म बनाये गए हैं उसके पीछे बहुत गूढ़ रहस्य छिपा हुआ है जिसे अब विज्ञान भी मानने लगा है। व्रत, उपवास, तप, यज्ञ और विभिन्न संस्कारों में वैज्ञानिक तथ्य छुपे हुए हैं। फिर चाहे ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पूजा-ध्यान करना या फिर कली व्रत त्यौहार। पूजा त्यौहारों का सीधा सबन्ध साफ सफाई और सम्पूर्ण स्वच्छता से है। प्रतिदिन के सूर्य नमस्कार में शरीरिक व्यायाम के सारे आसन आ जाते हैं। इसी तरह पूजा आराधना में पवित्र और सात्विक विचारों के साथ पालथी मार कर सीधा बैठने का विधान है जो हमारे मेरु दण्ड को मजबूत करता है और एकाग्रता को बढ़ाता है। सर जमीन से सटाकर और दोनों हाथों को पीछे पीठ की ओर रखकर प्रणाम करने का विधान है इससे भी शरीर खज़ व्यायाम हो जाता है। शंख बजाने से जहाँ हमारी स्वशन प्रणाली मजबूत होती है वहीं शंख की ध्वनि से न केवल नकारात्मक ऊर्जा ख़त्म होती है बल्कि आसपास सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण भी हो जाता है।
         इसी तरह आरती के दौरान ताली बजाने की परंपरा है जिससे रक्तवाहिनी जागृत होती है और रक्तचाप सामान्य रहता है। प्रसाद लेने से पूर्व आरती लेने का विधान है कपूर की लौ में आरती लेने से हाथों के सारे कीटाणु मर जाते हैं। भोग लगाने के लिए खर-मूसल में चावल कूट या पीस कर उसका प्रसाद बनता है जो सही मायनों में पौष्टिक होता था। आज लोग बाजार के पॉलिस किये हुए चावल और गेहूँ की जगह वही पुराना लाल चावल और चोकर युक्त आटा पसंद कर रहे हैं ।
      प्रसाद में तुलसी दल डाला जाता है, प्रसाद कितना भी गर्म रहे वह सूखता नहीं लेकिन अगर प्रसाद में कुछ भी विषकारक होगा तो  तुलसी का पत्ता सूख जाएगा। वहीं तुलसी खाने से शरीर को कई तरह के लाभ मिलते हैं। हवन की समिधा में कई तरह की सामग्री का मिश्रण होता है जिसके धुएँ से कीड़े-मकोड़े, मच्छड़ और कीटाणुओं का नाश होता है। यज्ञ के धुएँ से वातावरण भी स्वच्छ होता और समय पर बारिश के लिए अनुकूल माहौल तैयार करता है। हमारे पूर्वज तांबे के लोटे में पानी पीते थे जिसका लोग मजाक उड़ाते थे लेकिन आज कॉपर कोटेड बोतल और आरओ आने लगा है। पूजा में मिट्टी ,पीतल और कांसे के बर्तन का प्रयोग होता है। आज डॉक्टर नॉनस्टिक वर्तन को छोड़कर फिर इन्हीं बर्तनों की सलाह दे रहे हैं।
    ॐ की ध्वनि की ताकत को वैज्ञानिकों ने भी माना है। इसी तरह मंदिर में आपने देखा होगा कि घण्टी ऊपर बंधी होती है जिसे बजाने के लिए ठीक उसके नीचे खड़ा होना पड़ता है फिर हाथ उठाकर घन्टी बजाते हैं।घण्टी जब बजती है तो उसकी ध्वनि गोलाकर वृत में घूमते हुए हमारे पूरे शरीर को अपने ध्वनि चक्र में समाहित कर लेती है जिससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और मन शांतचित हो एकाग्र हो जाता है। मंदिर में प्रवेश से पूर्व हाथ और पैर भी धोने का विधान है इसके पीछे भी विज्ञान है पहले लोग मीलों तक पैदल चलकर मंदिर आते थे रास्ते में तरह-तरह की गंदगी और धूल से थक जाते थे, हाथ और पैर धोने से एक तो स्वच्छता हो जाती थी दूसरे थकान भी खत्म हो जाती थी। ऐसे हजारों उदाहरण है जिससे स्पस्ट कि हमारा धर्म,संस्कार और संस्कृति वैज्ञानिक तथ्यों से प्रमाणित है।

©पंकज प्रियम

Tuesday, November 26, 2019

729. विनाशकाले

विनाशकाले विपरीत बुद्धि
©पंकज प्रियम
ब्राह्मणों से किस बात की इतनी नफऱत? यह कैसी नफऱत की तस्वीर है? कौन सी घृणित मानसिकता है जो इस देश की अखंडता को तोड़ना चाहती है उन्हें चिन्हित कर सरेआम दण्ड दिया जाना चाहिए। क्यों भारत छोड़ेगा ब्राह्मण? भारत किसी के बाप की जागीर है क्या? भारत को भारतवर्ष ब्राह्मणों के यज्ञ-तप और बुद्धिमत्ता ने बनाया है। उसे सुरक्षा क्षत्रियों के शौर्यबल से मिली है, भरणपोषण की जिम्मेवारी वैश्यों ने निर्वहन किया और साधन-संसाधन जुटाने का काम शूद्रों ने किया। ब्राह्मणों ने हमेशा सभी वर्णों को एकसूत्र में बांधकर रखा। जिसे तोड़ने की घृणित सोच विदेशी लुटेरे मुगल और अंग्रेजों की रही है और आज वही कार्य कुछ तथाकथित वामपंथी सोच ,छद्मसेक्युलर और भीमसेना कर रही है। भारत की आज़ादी के लिए सबसे पहली जंग ब्राह्मण मंगल पाण्डेय ने ही छेड़ी थी और चंद्रशेखर आज़ाद ने अंग्रेजों को अपनी लाश में भी सटने नहीं दिया। आजतक ब्राह्मणों ने किसी का अहित नहीं सोचा। सदैव लोगों का कल्याण ही किया और परोपकार में लगा रहा। आप राह गुजरते किसी भी ब्राह्मण को स्नेह से एक नज़र भर देखे उसका हाथ स्वतः आशीर्वाद के लिए उठ जाता है और दिल से आवाज़ निकलती है -कल्याण हो! कोई भी राजा कोई भी शासक चाहे कितना भी बलिष्ठ और शक्तिशाली क्यूँ न हो उसे सही मार्ग और ज्ञान ब्राह्मणों ने ही दिया। आजतक जितने भी बड़े नेता और मंत्री हुए उनके गुरु और सलाहकार कोई न कोई ब्राह्मण ही है। झारखण्ड में ही बड़े नेताओं को गिना देता हूँ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी- तिवारी जी, अर्जुन मुंडा- अयोध्या नाथ मिश्र जी, हेमंत सोरेन-विनोद पांडेय जी, सुदेश महतो- हिमांशु जी इसी तरह प्रधामनंत्री सहित देशभर के तमाम नेताओं के सही मार्ग ब्राह्मण ही दिखाता  रहा है। महात्मा गाँधी के भी गुरु ब्राह्मण ही थे। ऋषि-मुनि हमेशा निस्वार्थ भाव से जगत कल्याण हेतु यज्ञ और तपस्या करते रहे। जिस जय भीम वालों ने यह लिखा है उसके तथाकथित भगवान भीमराव अम्बेडकर को भी शिक्षा दीक्षा एक ब्राह्मण ने ही दी थी। अम्बेडकर ने जिस संविधान का संयोजन किया उसका मूल आधार मनुस्मृति और चाणक्य नीति से ही जुड़ा हुआ है। चाणक्य चाहते तो खुद नन्द वंश का सफाया कर सकते थे लेकिन एक वंचित पीड़ित चन्द्रगुप्त को जमीन से उठाकर मगध का सम्राट बना दिया और मगध की रक्षा में ही अपने प्राण त्याग दिए। परशुराम, कालिदास, तुलसीदास, वशिष्ट, सुदामा, द्रोण, सावरकर,मंगल पांडेय, चन्द्रशेखर आज़ाद बाजीराव अनगिनत नाम है जिन्होंने इस धरती के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। ब्राह्मणों से शुरू से सभी वर्गों को महत्व दिया। जन्म से लेकर मृत्यु तक जितने भी संस्कार बने उसमें सभी वर्गों को पूजनीय और महत्वपूर्ण भाग दिया। चाहे वह हजामत बनानेवाला नाई हो,कुम्हार हो, धोबी हो, डोम-चाण्डाल हो, बाँस का काम करने वाला धपरा हो, बढ़ई हो या फिर पानी भरनेवाली पनिहारिन हो सबको साथ लेकर उन्हें ब्राह्मणों के समान ही उचित मान-सम्मान दिलाने की व्यवस्था की गई है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्णों को उनकी क्षमता और बुद्धि के अनुसार अपने-अपने क्षेत्र में पूरी आज़ादी के साथ कार्य करने का अवसर मिलता रहा है। "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया" के मूलमंत्र से समाज चल रहा था। भला इससे बड़ा समाजवाद क्या हो सकता है जिसमे परस्पर सहयोग और सम्मान से लोगों का सुखद निर्वाह हो। जातिगत भेदभाव तो मौजूदा आरक्षण प्रणाली ने शुरू की जहाँ परीक्षा के फॉर्म में भी जाति और धर्म लिखने की बाध्यता होती है। वेदों में, ग्रन्थ-पुराणों में, रामायण और महाभारत में कहाँ किसी का कोई जाति-धर्म वर्णित है। घृणित भेदभाव का ज़हर तो आज भीमसेना फैला रही है। यह सेना जिस राम से नफरत करती है उसे पता नहीं कि भीमराम अम्बेडकर का पूरा नाम #भिवा_रामजी_आबंडवेकर है जिसे बाद में एक देवरुखे ब्राह्मण शिक्षक #कृष्णा_महादेव_आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे, ने उनके नाम से 'आंबडवेकर' हटाकर अपना सरल 'आंबेडकर' उपनाम जोड़ दिया। तब से आज तक वे आम्बेडकर नाम से जाने जाते हैं। माना कि उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया लेकिन गौतम बुद्ध को भी भगवान राम का ही एक रूप माना गया है। बुद्ध को भगवान विष्णु के दशावतार का नवम (09) अवतार माना गया है। अतः जो भीम सेना भगवान विष्णु,राम या कृष्ण की मूर्ति तोड़ते हैं वे सीधे बुद्ध का ही अपमान करते हैं।

Monday, November 18, 2019

729. जान तो है

जान तो है

1222 1222 122
नहीं कुछ है मगर जान तो है,
गरीबी है मगर अरमान तो है।

नहीं बिकता महज़ कुछ रुपयों में,
जमीरी को बड़ा सम्मान तो है।

खरीदे जो मुझे औकात किसमें,
मिला माँ का मुझे वरदान तो है।

कटे हैं पँख तो क्या बैठ जाऊं?
गगन से भी ऊँची उड़ान तो है।

कभी कमजोर मत समझो प्रियम को
गये सब लूट लेकिन शान तो है।
©पंकज प्रियम

727. बरगद की छाँव

बरगद की छाँव में

मेरे घर गाँव में
बरगद की छाँव में,
बीता है बचपन
उसके जो ठाँव में।
विशाल बरगद का पेड़
नीचे बनता खलिहान,
जहाँ होता सबका जुटान।
वो बतकही और ठहाके,
आहिस्ते-आहिस्ते भैंस-बैलों का
धान के खोवा में घूमना मिसना,
उसकी पीठ पर शान से मेरा चढ़ना,
बैलों के संग गोल गोल घूमना,
फिर एक रोज मेरा धड़ाम से गिरना
और फिर मेरी ठुड्ढी का कटना,
आज भी मौजूद है वह निशान,
जिससे सब हो गये थे परेशान।
और उसके पीछे-पीछे छड़ी ले
किसना बाबा का संग चलना,
वो बरगद महज़ एक वृक्ष नहीं
हमारे घर का बड़ा सदस्य था,
जिसकी बड़ी शाखाओं में लगते झूले
जिसपर झूलते हमारा बचपन बीता,
शाखाओं से लटकती लम्बी-लम्बी डोर
जिसपर झूलते बेफ़िक्री में बच्चे हर ओर।
बट सावित्री के दिन माँ चाची का पूजन
विशाल बरगद का आस्था की डोर का बंधन।
उसके पत्तों का आसन, उसकी ही छाया
पत्तों से ही भगवान को पँख झलना
बरगद के छाँव में नारी का पतिधर्म पलना।
हम बच्चे उछलते कूदते प्रसाद के इतंजार में
सच में कितना सुकून था बरगद के प्यार में।
वक्त के साथ बरगद भी लाचार हुआ
या कहूँ शाखाओं की छँटाई से बीमार हुआ।
धीरे-धीरे वह सूखता गया
मानो वह हमसे रूठता गया।
खतम हो गयी उसकी सारी निशानी
रह गयी तो सिर्फ यादों की कहानी।
अब न तो बरगद है और न छाँव है,
रोजगार सृजन में हमसे दूर गाँव है।
©पंकज प्रियम
18/11/2019

Sunday, November 17, 2019

728. सुप्रीम कोर्ट पर भी सवाल?

क्या सुप्रीम कोर्ट से बड़ा है मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और ओबैसी? जबकि सभी को इसपर टीका टिप्पणी करने पर रोक लगा दी गयी है तो इनके खिलाफ कार्रवाई क्यूँ नहीं? जो लगातार ज़हर उगल रहा है।
AIPLB ने अपनी पप्रेस कांफ्रेंस में आधी अधूरी बात रखी और कोर्ट के फैसले की गलत व्याख्या की। सिर्फ वही बातें रखी जो उसे सूट करती हो। जबकि अन्य बातों का जिक्र नहीं किया जैसे-

1. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि asi की रिपोर्ट में साबित होता है कि मस्जिद के नीचे गैर इस्लामिम ढांचा मिला है जिसमें  मूर्तिया और मंदिर के खम्भे मिले जो किसी मंदिर के होने की पुष्टि करता है। यानी कि मस्जिद समतल जमीन पर नहीं बनी है। बोर्ड ने गलत व्याख्या करते हुए कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनी।

2. 1949 तक नमाज़ पढ़ने की बात कही लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वहाँ पर भगवान राम की पूजा आराधना सदियों से होता रहा जिसका जिक्र बोर्ड ने नहीं किया। भारत मे राम का अस्तित्व और उनकी आस्था हजारों साल पुरानी है जबकि भारत में बाबर के बाद मस्जिद और मुस्लिमों का अस्तित्व हुआ।

3. 1857 से पहले वहां मंदिर था जिसके ऊपर मीर बांकी ने बाबरी मस्जिद बनाई जिसका जिक्र बोर्ड ने नहीं किया।

4.भारत के कई मन्दिरों को तोड़कर या क्षति पंहुचाकर विदेशी आक्रमणकारियों ने हर जगह मस्जिद बनाई जिसका जीवंत उदाहर काशी और मथुरा का मंदिर है जिसे आँख का अंधा भी देख सकता है। इसी तरह अयोध्या में हुआ है जो ASI की खुदाई में साबित हो गयी लेकिन यह बात बोर्ड को दिखाई नहीं देती।

5. बोर्ड ने कहा कि राम की मूर्ति जबरन चोरी से रखी गयी लेकिन इस बात को भूल गए कि पहले वहाँ पूजा होती थी जिसके बाद अतिक्रमण मुस्लिमों ने किया तो अंग्रेजों ने बीच में लोहे की जाली डाल कर विवाद रोकने की कोशिश की।

6. सुनवाई से पूर्व सभी मुस्लिम पक्षकार सुप्रीम कोर्ट के हर फैसले को मानने की बात कर रहा था लेकिन अब उसे फैसला मंजूर नहीं। अगर फैसला उल्टा होता तब क्या करते? एक माह पहले तक ओबेसी चीख चीख कर ख़ता था कि कोर्ट का फैसला ही अंतिम मान्य होगा जबकि अब वह हर जगह मुसलमानों को भड़काने में जुटा है।

7. जबकि बोर्ड कोई पक्षकार नहीं था तो फिर आज वह किस हैसियत से रिव्यू पिटीशन दाखिल करने की बात कह रहा है?

8. कुरआन के मुताबिक जिस मस्जिद में लंबे अरसे तक नमाज़ न पढ़ी गयी हो उसका कोई महत्व नहीं रज जाता तो फिर आज ये कोर्ट के फैसले को नामंजूर कर देश की अखण्डता को त्तोड़ने की घटिया कोशिश भर है।

9. सदियों तक जो मामला बवजह कोर्ट में लटका रहा उसका इतना न्यायपूर्ण पटाक्षेप हो गया और मुस्लिम पक्षकार को अलग से दुगुनी जमीन भी देने का फैसला हुआ तो फिर इस मामले को उलझा कर कुछ लोग देश को अशांत करने की कोशिश कर रहे हैं।

10. मुस्लिम बोर्ड क्या संविधान से ऊपर है जो अपने हर मामले पर कोर्ट के फैसले पर उंगली उठाता है? ओबेसी जैसे लोगों पर कानूनी कार्रवाई क्यूँ नहीं? जो हर वक्त देश कप तोड़ने की बात करता है।


©पंकज प्रियम

726. ख़बर का असर

ख़बर का असर
ग़ज़ल
122 122 122 122
ख़बर का असर भी होता है साहब,
ख़बर का मुक़द्दर भी होता है साहब।

अगर बात को जब घुमाया गया तो,
उसी बात से डर भी होता है साहब।

ख़बर में कभी जो मसाला लगाया
वही एक नश्तर भी होता है साहब।

लिखो बात वो तुम ख़बर जो सही है,
गलत बात ख़ंजर भी होता है साहब।

प्रियम" ने लिखा जो हकीकत वही है,
ख़बर का कहर भी होता है साहब।
©पंकज प्रियम

Saturday, November 16, 2019

725. किधर देखते हो

ग़ज़ल
122 122 122 122
चुराकर नज़र से नज़र देखते हो,
पिलाक़े मुहब्बत असर देखते हो।

यहाँ भी वहाँ भी जमीं आसमां में
मिलूँगा वहीं तुम जिधर देखते हो।

तुम्हारी नज़र में तुम्हारे जिगर में,
बसा हूँ यहीं पर किधर देखते हो।

नज़र तीर हमको यूँ हीं मार देती,
पिलाक़े मगर तुम ज़हर देखते हो।

प्रियम को जलाना तुम्हें खूब भाता,
इधर मैं खड़ा पर उधर देखते हो।
©पंकज प्रियम

724. सिंदूर

सिंदूर

चुटकी भर सिंदूर लगा
सजनी सुंदर सजती है।
सोलह शृंगार होता पुरा,
माथे जो लाली रचती है।

बिन इसके सुहाग अधूरा,
हर नारी अधूरी लगती है।
चटक सिन्दूरी सूरज आभा,
सजा के औरत फबती है।।

चुटकी भर सिंदूर की कीमत
सुहागन सारी समझती है।
तभी सुहाग बचाने को नारी,
यमराज से भी उलझती है।।

औरत का सम्मान है लाली,
जिसको माँग में भरती है।
सिंदूर सजाकर लगती सुंदर,
तभी गुमान वो करती है।।

सिंदूर की कीमत पूछो उनसे
जिनकी माँग उजड़ती है।
घुट-घुट कर के आँसू पीती,
पतझड़ के जैसे झड़ती है।।

सिंदूर सुहागन का है दर्पण,
जिसे रोज निहारा करती है।
लाज सिंदूर की रखने को
नारी हरपल जीती मरती है।।
©पंकज प्रियम

Friday, November 15, 2019

723. हर रोज़ मज़ा लो

221 1221 1221 122
आवाज़ लगा आज मुहब्बत को बुला लो,
नाराज़ न हो जाय कहीं दिल तो मिला लो।

खुदगर्ज़ जमाने से भला और सितम क्या?
साँसें न बिखर जाय कहीं फूल खिला लो।

ये प्यार मुहब्बत की डगर चाहते चलना,
काँटों से भरी राह को फूलों से सजा लो।

किरदार निभाना तुझे जीवन ने दिया जो,
जीवन के सफ़र में तो यहाँ रोज़ मज़ा लो।

हर राज़ को सीने में दफ़न कर न प्रियम तू
अल्फ़ाज़ न खो जाय कहीं साज़ बजा लो।
©पंकज प्रियम
15/11/2019

722. वतन हमारा

ग़ज़ल

सुलग रहा क्यूँ वतन हमारा,
उजड़ रहा क्यूँ चमन हमारा।

लगी नज़र है यहाँ पे किसकी,
कहाँ पे खोया अमन हमारा।

पढ़ा लिखा हो विवेक तोड़ा,
यही युवा का जतन हमारा।

युवा प्रवर्तक विवेक स्वामी,
कदम तुम्हारे नमन हमारा।

सुकून खोया ख़बर तुझे क्या?
विलख रहा कैद मन हमारा।

ये रक्त रंजित लगे धरा क्यूँ?
तड़प रहा तन बदन हमारा।

सियासती खेल में "प्रियम" क्यूँ?
उलझ रहा आम जन हमारा।

©पंकज प्रियम

721. इश्क़ रूहानी


मुक्तक सृजन
2122 2122
1
कर मुहब्बत लिख कहानी,
क्या मिलेगी फिर जवानी।
चार दिन की ज़िन्दगी में-
रोज जी ले जिन्दगानी।।
2
लिख फ़साना रख निशानी,
फिर कहाँ यह रुत सुहानी।
चार पल का है ये जीवन-
रोज करना कुछ तुफानी।।
3
हाँ कभी मत कर गुमानी,
खत्म हो जाती जवानी।
तन उधारी मन उधारी-
रख हमेशा आँख पानी।।
4
फिर भले हो दिल रूमानी
रख न रिश्ता जिस्म जानी।
राख बन जाता बदन यह-
इश्क़ हरदम कर रूहानी।।
©पंकज प्रियम

720. मुहब्बत

122 122 122 122
मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत हमारी,
सलामत रहे प्यार चाहत हमारी।

नहीं ख़्वाब कोई नहीं चाह कोई,
नहीं कोई तुझसे शिकायत हमारी।

नहीं फूल गुलशन, नहीं चाँद तारे,
नहीं झूठ कहने की आदत हमारी।

लिखेगा जमाना फ़साना हमारा,
बनेगी कहानी ये उल्फ़त हमारी।

प्रियम की मुहब्बत तुम्हारी जवानी,
दिलों के शहर में रियासत हमारी।
©पंकज प्रियम

Thursday, November 14, 2019

719. मुलाक़ात

ग़ज़ल
मुलाकात
122 122 122 122
नज़र की नज़र से मुलाकात होगी,
दिलों की दिलों से तभी बात होगी।

कभी जो नज़र ये हमारी मिलेगी,
यकीनन सितारों भरी रात होगी।

मिलेगी नज़र जब हमारी तुम्हारी,
सुहाना सहर और जवां रात होगी।

चलेंगे तुम्हें साथ लेकर सफ़र जो,
हमारे डगर फूल बरसात होगी।

प्रियम को तुम्हारी मुहब्बत मिले तो,
भला और क्या कोई सौगात होगी।
©पंकज प्रियम

Friday, November 8, 2019

718. नज़र चाहिए

ग़ज़ल
212 212 212 212
इस नज़र को नज़र की नज़र चाहिए,
फूल बनकर खिलें वह असर चाहिए।

ख़्वाब को पँख हमने लगाया बहुत,
जो हकीकत लगे वह ख़बर चाहिए।

दिल भरा दर्द इतना मुहब्बत मुझे,
रोज़ शामों सुबह हर पहर चाहिए।

गर मुनासिब लगे छोड़ देना डगर,
पर सफ़र में मुझे हमसफ़र चाहिए।

तिश्नगी प्यार की आग बनके जली,
दिलजले के लिए इक ज़िगर चाहिए।

हर तरफ रेत ही रेत बिखरा "प्रियम",
छाँव मिलता रहे वह शज़र चाहिए।
©पंकज प्रियम

717. ख़्वाब पाले गये

ग़ज़ल

212 212 212
आग दिल में लगाते गये,
दर्द को फिर जगाते गये।

जख़्म देकर मुझे बेकदर,
घर किसी का सजाते गये।

प्यार में खुद ख़ता कर मुझे
बेवजह फिर सज़ा दे गये।

दर्द दिल में भरा इस कदर,
हर पहर गम बहाते गये।

ख़्वाब में रोज आये मगर,
घर कहाँ कब बुलाये गये।

प्यार की महफ़िलो में सदा
तोड़कर दिल उछाले गये।

प्यार में टूटकर क्यूँ "प्रियम",
रोज फिर ख़्वाब पाले गये।

©पंकज प्रियम

Wednesday, November 6, 2019

716. प्रदूषण का इलाज़


तुम्हें जीना अगर है तो, लगाओ पेड़ तुम प्यारे,
मिटाना है प्रदूषण तो, बचाओ पेड़ तुम सारे।
हवा-पानी और भोजन, धरा-अम्बर और जीवन-
बचाना है अगर इनको, लगाओ पेड़ खूब सारे।
©पंकज प्रियम

715. नज़र में रहा

212 212 212 212
रात दिन मैं तुम्हारी नज़र में रहा,
हर पहर मैं तुम्हारे शहर में रहा।

सोचता ये रहा क्या हुआ है मुझे,
हर घड़ी मैं तुम्हारे असर में रहा।

रात भर जब तुम्हारे ख़यालों जगा
ओस बनकर पड़ा हर सहर में रहा।

सोचता मैं तुझे हर घड़ी इस कदर,
बेख़बर यूँ  हुआ कि ख़बर में रहा।

दर्द इतना बहा अश्क़ बनके मगर,
दिल हमेशा पड़ा कुछ कसर में रहा।

हर्फ़ दर हर्फ़ लब जोड़ता हूँ मगर,
लफ्ज़ को छेड़कर भी बहर में रहा।

तीर आँखों चली चोट दिल में लगी,
पर "प्रियम" तो हमेशा जिगर में रहा।
©पंकज प्रियम

Tuesday, November 5, 2019

714. प्रदूषण

ज़हर
प्रदूषण तुम करोगे तो, कहर अब मार डालेगा।
हवा पानी प्रदूषित हो, ज़हर सब मार डालेगा।
अभी आगाज़ है ये सब, अगर जो तुम नहीं चेते-
तुम्हारा ही बसाया ये, शहर तब मार डालेगा।
©पंकज प्रियम


Sunday, November 3, 2019

713. सवाल

सवाल

हमने पूछा भी नहीं क्या हाल है?
देखा चेहरे पर प्रश्नों का जाल है।

सिलवटों से उलझती लगी जिंदगी
मानो हर पहर जी का जंजाल है।

हरवक्त किया वक्त से जो बन्दगी
वक्त के हाथों ही हुआ हलाल है।

बात-बात में भी दिखती गन्दगी
हर बात पे ही तो हुआ बवाल है।

सवालों के भँवर में फंसा है प्रियम
मेरे सवालों पर भी उठा सवाल है।
©पंकज प्रियम

712.लाचार लगता है

1222 1222 1222
जहाँ हर काम ही बेकार लगता है,
वहाँ हर आदमी लाचार लगता है।

किसी को क्या कहोगे तुम यहाँ बोलो,
यहाँ हर आदमी सरकार लगता है।

ख़बर किसकी पढूँ किसको सुनाऊँ मैं,
बिका हर पेज ही अखबार लगता है।

भला हथियार की कोई कहाँ जरुरत है
जहाँ हर लफ़्ज़ ही तलवार लगता है।

प्रियम अब और कितना खोलना दिल को,
यहाँ हर दिल बिका बाज़ार लगता है।
©पंकज प्रियम

711. छठ


रवि आदित्य सविता सूर्य, दिनकर भानु प्रभाकर,
मरीचि हंस अंशुमाली, जगत रौशन करे भास्कर।
सहस्रांशु त्रिलोचन,....हरिदश्वम विभावसवे-
त्रिमूर्ति द्वादशात्मकम, करे कल्याण दिवाकर।।

महापर्व लोकआस्था का, छठ महिमा अपरम्पार,
अस्ताचल-उदयगामी, दोनों वक्त जयजयकार।
कठिन तप निर्जला छठ ये, करे जो पर्व ये मन से-
मिटे सब कष्ट जीवन का, होता उसका बेड़ापार।।

कहे भूगोल ये हरदम, जो उगता है वो डूबेगा,
हमारी आस्था कहती, जो डूबता है वो उगेगा।
इसी विश्वास के बल पर यहाँ होती सदा पूजा-
हमेशा सोच पूरब की, जहाँ से सूर्य निकलेगा।।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Saturday, November 2, 2019

710. ज़िंदगी का सफ़र

सफ़र अनजान को सफर कर लेना,
काँटों भरी राह को भी हौसलों से
फूलों से सजा तुम डगर कर लेना।

जिंदगी को बस यूं गुज़र कर लेना
रोज खिलते हंसी फूलों की तरह
मुस्कुराहटों से ही सहर कर लेना।

बन जाओ किसी चेहरे की हँसी,
रोज धड़कते दिलों की ही तरह
लोगों की सांसों पे असर कर लेना।

बहुत ही खूबसूरत है ये जिंदगी,
होके मायूस न कभी इस तरह
कभी जीवन में न जहर कर लेना।

बड़ी मुश्किल से मिलती है खुशी,
होके रुसवा न कभी इस तरह
हंसी में न गमों को बसर कर लेना।

बहुत छोटी है ये अपनी जिंदगी
बन जाओ मुस्कुराहटों की वजह
हंसी बाँटते ही यूँ सफ़र कर लेना।
©पंकज प्रियम

709. छठ महापर्व

छठ पर्व
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किया खुद से स्वयं हठ है, कठिन तप साधना छठ है,
महज़ पूजा फ़क़त अर्पण, नहीं बस कामना छठ है।
नदी तालाब सूरज और मिट्टी बांस फल-जल-बल-
सभी को स्वच्छ करने का बड़ी आराधना छठ है।।

रवि आदित्य सविता सूर्य, दिनकर भानु प्रभाकर,
मरीचि हंस अंशुमाली, जगत रौशन करे भास्कर।
सहस्रांशु त्रिलोचन,....हरिदश्वम विभावसवे-
त्रिमूर्ति द्वादशात्मकम, करे कल्याण दिवाकर।।

महापर्व लोकआस्था का, छठ महिमा अपरम्पार,
अस्ताचल-उदयगामी, दोनों वक्त जयजयकार।
कठिन तप निर्जला छठ ये, करे जो पर्व ये मन से-
मिटे सब कष्ट जीवन का, होता उसका बेड़ापार।।

कहे भूगोल ये हरदम, जो उगता है वो डूबेगा,
हमारी आस्था कहती, जो डूबता है वो उगेगा।
इसी विश्वास के बल पर यहाँ होती सदा पूजा-
हमेशा सोच पूरब की, जहाँ से सूर्य निकलेगा।।
©पंकज प्रियम

छठ कोई पर्व या सिर्फ त्यौहार नहीं होता,
केवल रीत रिवाज या संस्कार नहीं होता।

छठ पर्व है अपनों को अपनों से मिलाने का,
विदेशों में बसे बच्चों को पास में बुलाने का।

बच्चों को नदी सूर्य और तालाब दिखाने का,
जातिगत भेदभाव और पाखण्ड मिटाने का।

बांस की सिमट रही सुप-दौरा को जगाने का,
घर नदी गली तालाब से गंदगी को हटाने का।

बेड-टी कल्चर से निकल कर प्रातः उठाने का,
उगते सूरज को ही सलाम की सोच मिटाने का।

"उदित-अस्त" दोनों को ही सम्मान दिलाने का,
छठ महापर्व है प्रकृति से खुद को मिलाने का।

सरिता में संस्कारों का कमल फूल खिलाने का।
कठोर तप साधना से पूरे तनमन को जगाने का

छठ पर्व सिर्फ कोई व्रत या विचार नहीं होता,
छठ पर्व महज कोई एक त्यौहार नहीं होता।

©पंकज प्रियम