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Monday, October 29, 2018

468.बिगड़ता अंदाज

बिगड़ता अंदाज हूँ
माना कि बदलते दौर का बिगड़ता अंदाज हूँ
लेकिन तेरे कदमों से ही तो बढ़ता मैं आज हूँ।
नए दौर की नई बातें, तुमको ही लगती प्यारी
तेरी ही चाह में खुद का बदलता मैं मिज़ाज हूँ।
करता था मैं भी बात संस्कारों की व्यवहारों की
बदल दिया जो संस्कार,उसी का मैं आगाज हूँ।
धर्म-अधर्म की सारी बातें,सबको लगती भारी
नए दौर के लफ्ज़ों से निकला मैं अल्फ़ाज़ हूँ।
लबों की खामोशी को न समझ लेना कमजोरी
ध्यान से तो सुन तेरे ही दिल की मैं आवाज हूँ।
चुप बैठा हूँ जमीं पे तो बुज़दिल न समझ लेना
आसमां से भी ऊंची जो उड़े वही मैं परवाज हूँ।
ये दुनियां ये दौलत, ये हसरत और ये नफऱत
तेरे मन को जो भाये, वही झंकृत मैं साज हूँ।
अपनी बोली अपना जीवन,कब तुझको भाया
तुमने जो शब्द भरे,उन्हें ही देता मैं आवाज हूँ।
हाँ बदल गया मैं भी अब इन मौसमों की तरह
तुम्हारे ही दिल में तो दफ़न हुआ वो मैं राज हूँ।
कहा था तुमने वक्त के साथ बदलना होता है
बदल गया "प्रियम" तो कहते कि मैं नाराज़ हूँ।
©पंकज प्रियम

Saturday, October 27, 2018

466.चाँद सा

चाँद सा
क्यूँ देखे तू चँदा, खुद चेहरा तेरा चाँद सा
क्यूँ देखूँ मैं चँदा, जब प्यारा मेरा चाँद सा।

चाहत होगा चकोर का,क्या होगा भोर का
क्यूँ इंतजार करना,ये मुखड़ा तेरा चाँद सा

प्यार है संस्कार है, प्रियतम का इंतजार है
करवा चौथ पे,बेक़रार चेहरा तेरा चाँद सा।

निकल आ रे चँदा, मामला है जज़्बात का
चंद्रदर्शन को व्याकुल चेहरा तेरा चाँद सा।

पुलकित धरती गगन,हर्षित होता प्रियम
एक चाँद को देखने खिला चेहरा चाँद सा।
©पंकज प्रियम

Friday, October 26, 2018

465.गज़ल-मुलाकात तो हो

चाँद सा
क्यूँ देखे तू चँदा, खुद चेहरा तेरा चाँद सा
क्यूँ देखूँ मैं चँदा, जब प्यारा मेरा चाँद सा।

चाहत होगा चकोर का,क्या होगा भोर का
क्यूँ इंतजार करना,ये मुखड़ा तेरा चाँद सा

प्यार है संस्कार है, प्रियतम का इंतजार है
करवा चौथ पे,बेक़रार चेहरा तेरा चाँद सा।

निकल आ रे चँदा, मामला है जज़्बात का
चंद्रदर्शन को व्याकुल चेहरा तेरा चाँद सा।

पुलकित धरती गगन,हर्षित होता प्रियम
एक चाँद को देखने खिला चेहरा चाँद सा।
©पंकज प्रियम

Sunday, October 7, 2018

445. मिला ही नहीं

खुशबू यकीनन महक जाती मगर
फूल आपसा कोई खिला ही नहीं।
नजरें यक़ीनन बहक जाती मगर
यहाँ आपसा कोई मिला ही नहीं।
©पंकज प्रियम

Monday, October 1, 2018

442.बिखरे अहसास

रिश्तों ने की साज़िश ऐसी
#बिखर गये अहसास मेरे
लफ्ज़ों ने की साज़िश ऐसी
बिखर गये अल्फाज़ मेरे।
अश्क़ों की हुई बारिश ऐसी
भींग गये सब ख़्वाब मेरे
काँटों ने की साज़िश ऐसी
बिखर गये सब गुलाब मेरे।
अपनों ने की रंजिश ऐसी
दुश्मनों की दरकार नहीं
अपनों ने की बंदिश ऐसी
सपनों में भी प्यार नहीं।
ख़्वाबों की ख्वाहिश ऐसी
बचा नहीं कुछ  पास मेरे
हसरतों की नुमाइश ऐसी
बचे नहीं अहसास मेरे।
©पंकज प्रिय

Friday, September 28, 2018

437.गज़ल. नहीं रहा


समंदर का अब कोई साहिल नहीं रहा
महफ़िल में अब कोई शामिल नहीं रहा।

चल दिये मुंह फेर करके वो इस कदर
उनकी मुहब्बत के मैं क़ाबिल नहीं रहा।

हम दिनरात इश्क़ उनसे जो करते रहे
खो दिया चैन,कुछ हासिल नहीं रहा।

अपने दिल में छुपा के रखा था उसको
निकले वो ऐसे की दिल,दिल नहीं रहा।

दिल बहलाने को बहुत मिलते हैं मगर
किसी से "प्रियम" दिल,मिल नहीं रहा।
©पंकज प्रियम

Tuesday, September 25, 2018

435.सज़ा(गज़ल)

ग़ज़ल
मुहब्बत क्या खाक मजा देगा
कुछ नहीं दिल को सजा देगा।

हररोज आंखों से नींद उड़ाकर
तेरी खुशियों की बैंड बजा देगा।

चैन सुकून सबकुछ लूटा कर
एक दिन ख़ाक में मिला देगा।

नशा इस कदर छाएगा तुमपर
निगाहों से यूँ जाम पिला देगा।

लबों की खामोशी पे मत जाना
वो तो निगाहों से ही जता देगा।

कितना छुपाओगे राज अपना
तेरा हुलिया सबकुछ बता देगा।


किस पर यकीन करोगे "प्रियम"
तेरा दिल ही जब तुझे दग़ा देगा।
पंकज प्रियम

Friday, August 31, 2018

421. बदनाम न करो

ग़ज़ल
मुहब्बत क्या खाक मजा देगा
कुछ नहीं दिल को सजा देगा।

हररोज आंखों से नींद उड़ाकर
तेरी खुशियों की बैंड बजा देगा।

चैन सुकून सबकुछ लूटा कर
एक दिन ख़ाक में मिला देगा।

नशा इस कदर छाएगा तुमपर
निगाहों से यूँ जाम पिला देगा।

लबों की खामोशी पे मत जाना
वो तो निगाहों से ही जता देगा।

कितना छुपाओगे राज अपना
तेरा हुलिया सबकुछ बता देगा।


किस पर यकीन करोगे "प्रियम"
तेरा दिल ही जब तुझे दग़ा देगा।
पंकज प्रियम

420.मुहब्बत है

मुहब्बत
नहीं कोई गिला तुझसे,नहीं तुझसे शिकायत है
हमारे ख़्वाब हैं इतने,किया दिल से बग़ावत है
अगर मुझपे यकीं ना हो,जरा दिल से ही पूछो
तुझे मुझसे मुहब्बत है,मुझे तुझसे मुहब्बत है।
©पंकज प्रियम

Wednesday, August 29, 2018

417.नहीं आता

तुझे हंसना नहीं आता
मुझे रोना नहीं आता
सवालों के बवंडर में
मुझे खोना नहीं आता
तुझे मैं याद नहीं आता
मैं तुझे भूल नहीं पाता
यादों के इस भंवर से
निकलना नहीं आता।
मुझे इज़हार नहीं आता
तुझे इक़रार नहीं आता
मुहब्बत के सफ़र में
मुझे इनकार नहीं आता।
©पंकज प्रियम

415.हार जाना

हार जाना
ऐ वक्त!तू कभी मुझे न आजमाना
मेरी आदत नहीं खुद से हार जाना।
कभी जंग मुझे अपनों से न लड़ाना
मेरी फ़ितरत है अपनों से हार जाना।
हरा के मुझे खुद काबिल न समझना
मेरी हसरत है जंग उनसे हार जाना।
ऐ जिंदगी! तू मुझे मौत से न डराना
मेरी चाहत नहीं जिंदगी से हार जाना।
ऐ मौत!जब आना दोस्त बनके आना
मेरी नियति नहीं दुश्मनों से हार जाना।
©पंकज प्रियम

Monday, August 27, 2018

414.एक वादा है

मेरा बस यही एक इरादा है
तुझे खुशी देने का वादा है।

फूलों सी सदा तू मुस्कुराये
तुझे हंसी देने का वादा है।

कभी आँखे न अश्क बहाए
ख़्वाब दिखाने का वादा है।

कहीं कांटा न तुझे चुभ जाए
राह फूल बिछाने का वादा है।

खुशियां तेरी कदम चूम जाए
यूँ जन्नत दिखाने का वादा है।

चाँद भी तेरे आँगन उतर आए
तारे भी तोड़ लाने का वादा है।

©पंकज प्रियम

Sunday, August 19, 2018

409.कुछ कहना है

कुछ कहना है

ऐ कवि!अभी कहां तुझको मरना है
अभी तो बहुत कुछ तुझको करना है।

थोड़ी सी खुशियां बांटनी है तुझको
थोड़े बहुत गमों को भी तो हरना है।

लफ्ज़ों की करनी बाजीगरी तुझको
शब्दों से ही सब जख्मों को भरना है।

कहां रह गया है अपना तेरा जीवन
कविता सरिता सृजन वो झरना है।

जिंदगी का हरक्षण है तेरा समर्पण
मौत से फिर क्या तुझको डरना है।

द्रौपदियों के देख रोज चीर हरण
द्रोण-भीष्म सा चुप नहीं रहना है।

कुरुक्षेत्र का खुद को कृष्ण बनाना
देख अधर्म चुपचाप नहीं सहना है।

कभी आंखों को है ख़्वाब दिखाना
कभी आँसू बनके तुझको बहना है।

चुन चुन कर सबकुछ रखते जाना
जमाने को भी बहुत कुछ कहना है।

©पंकज प्रियम

Friday, July 27, 2018

397.अरमान

अरमान
जितना कम अरमान रहेगा
उतना जीवन आसान रहेगा।

अपेक्षा जितनी गहरी होगी
दर्द का बढ़ता सामान रहेगा।

हसरतों की चौखट पे आके
हरवक्त तू खड़ा हैरान रहेगा।

मुश्किलों में खुद को तनहा
खुद से ही तू परेशान रहेगा।

जिंदगी को जीभर तू जी ले
यही खुद पे एहसान रहेगा।
©पंकज प्रियम

396.मिलते ही रहेंगे

ग़ज़ल सृजन-42
क़ाफिया-अते
रदीफ-ही रहेंगे
तिथि-27जुलाई
वार-शुक्रवार
चले जाओ जहां भी तुम,आँखों में दिखते ही रहेंगे।
भूला दो मुझको चाहे तुम,यादों में मिलते ही रहेंगे।
हम मुहब्बत के वो दीवाने हैं ,जिसे भूला ना पाओगे
लाख लगा लो पहरे तुम, ख्वाबों में बसते ही रहेंगे।
हर लफ्ज़ कहानी कहती है,जिसे मिटा ना पाओगे
कतरा कतरा लहू बनकर,आँखों से बहते ही रहेंगे।
जला देना तुम खत सारे,यादों को कैसे मिटाओगे
दिल की धड़कन बनकर,रगों में धड़कते ही रहेंगे।
फेंक देना तुम फूलों को,वो पन्नें कैसे तुम फाड़ोगे
तेरी चाहत के हर पन्ने पर,"प्रियम"छपते ही रहेंगे।
©पंकज प्रियम

Thursday, July 19, 2018

387.इश्क़ रूहानी

इश्क़ रूहानी
जिन लफ्ज़ों की दुनियां दीवानी है
उनमें छुपी मुहब्बत की निशानी है।
मुश्किल है इस दिल को समझाना
हर धड़कन सुनाती तेरी कहानी है।
मुश्किल है दरिया इश्क़ पार जाना
आग सी धधकती यहाँ जवानी है।
जिस्म नहीं हमें तो रूह तक जाना
नहीं समझे!हमारा इश्क़ रूहानी है।
समझना हो अगर तो घर आ जाना
प्रियम के दर पे मौसम रूमानी है।
©पंकज प्रियम

Sunday, July 8, 2018

378.क़िरदार को

रोज ही समझाता हूँ,मैं अपने यार को
अपने दिल में छिपा कर रखो प्यार को।
बहुत कठिन है चलना मुहब्बत के रास्ते
इश्क़ कभी जँचता नहीं इस संसार को।
क्या नहीं करता कोई मुहब्बत के वास्ते
शिद्दत से निभाता है,हरेक किरदार को।
चलना है इस डगर,आहिस्ते आहिस्ते
समझना बहुत मुश्किल है इक़रार को।
हम तो सब कह गए,तुम्हें कहते कहते
तुमने समझा ही नहीं, मेरे इज़हार को।
©पंकज प्रियम

376.सजा

सजा भी खूबसूरत दे

वफ़ा की खाएं हम कसमें,ऐसी ना जरूरत दे
निगाहों में जो बस जाए,तू ऐसी कोई सूरत दे।
तुम्हारे प्यार की खातिर,हदों से हम गुज़र जाएं
मगर दिलकश गुनाहों की,सजा भी खूबसूरत दे।

इश्क़ समझा सकूं तुझको,थोड़ी तो मोहलत दे
मुझे मंजूर होगा सब,लगा तू जो भी तोहमत दे
तुम्हारे रूह के अंदर,हमारी रूह बिखर जाए
मगर अलमस्त बहारों सी,अपनी तू मुहब्बत दे।

कभी ना दूर रह पाऊं,तू अपनी ऐसी चाहत दे।
तेरे दिल में संवर जाऊं,मुझे तू ऐसी हसरत दे
तुम्हारे इश्क़ में खोकर,हमारा प्रेम निखर जाए
इबादत कर सकूं जिसकी,ऐसी कोई मूरत दे।

©पंकज प्रियम

Saturday, July 7, 2018

377. हालात बदलने के

आसार कुछ तो दिखे हालात बदलने के
हालात कुछ तो बने,जज़्बात मचलने के।

कब तलक तन्हा हम यूँ सफ़र करते रहें
राह कोई तो दिखे कभी साथ चलने के।

सांस लेकर भी यहां हम रोज मरते रहे
कोई सांझ तो दिखे,जिंदगी ढलने के।

दूर रहकर भी हम तुझमें ही जीते रहे
जरा एहसास तो जगे,तेरे पास रहने के।

गमों को आँसुओ में घोलकर पीते रहे
दवा कोई तो बने,दर्द-ए- दिल सहने के।
©पंकज प्रियम

Thursday, July 5, 2018

374.मुस्कुरा दो

मुस्कुरा दो
अपने दर पे ना भले आसरा दो
मेरी खातिर जरा सा मुस्कुरा दो।
कब तलक हम रहे,राह तकते
कब मिलोगे जरा,ये तो बता दो।
जो लबों से नहीं, कुछ भी कहते
निगाहों से ही तुम,सब जता दो।
इश्क़ में रुखाई,नहीं तेरी अच्छी
अपने दिल से दुश्मनी मिटा दो।
खुल गयी बात,सब झूठी सच्ची
अपने चेहरे से तुम पर्दा हटा दो।
पहले मेरी तुम ख़ता तो बताओ
चाहे फिर तुम,मुझे जो सज़ा दो।
अपने दिल में,प्रियम को बसाओ
चाहे फिर तुम,जमाना भुला दो।
©पंकज प्रियम