Tuesday, December 13, 2022

951. प्री वेडिंग

प्री वेडिंग के नाम पर, क्या-क्या रीत दिखाओगे? 
संस्कारों की बलि चढ़ाकर, ऐसे प्रीत सिखाओगे?
आधुनिकता कहलाती, क्या अपसंस्कारी हो जाना-
सप्तपदी संस्कार मिटाकर, अपनी जीत जताओगे? 
कवि पंकज प्रियम

Saturday, December 10, 2022

950. प्रेमगीत..चांदनी रात में

प्रेमगीत

चांदनी रात में,......... चांद के पास में,
चांद दीदार,....... मुझको कराना प्रिये। 
प्यार से प्यार को, .... प्यार के जाम से,
प्यार पल-पल प्रियम को पिलाना प्रिये। 

मैं बनूँ श्याम और  तुम बनो राधिका,
बांसुरी मैं बनूँ, ....तुम बनो गोपिका।
सुरमयी शाम से, .....रासलीला सजे,
प्रेम की थाप पर, ...ढोल बाजे बजे।
प्यार से प्यार को, .प्यार के नाम से,
रोज यमुना किनारे, ...बुलाना प्रिये।
चाँदनी रात में.....।

फूल गेंदा, चमेली, कमल बन खिलो,
रातरानी सुवासित, चमन मन मिलो।
रागिनी राग से,      उर उठी आग से,
मोरनी कोकिला,      निर्झरी बाग में।
तान मुरली मधुर, मन-मिलन आस में,
तुम स्वयं को प्रियम से मिलाना प्रिये।
चाँदनी रात में....

तुम महकता चमन,  मैं बहकता पवन,
रत्नगर्भा प्रिया,.... मैं खुला इक गगन।
तुम सुवासित सुमन, मैं मचलता भ्रमर,
मद भरूँ मैं तनिक, दो इजाज़त अगर।
होश मदहोश कर के......नयन वार से,
तीर को पार दिल से......चलाना प्रिये।

चांदनी रात में, .........चांद के पास में,
चांद दीदार,...... मुझको कराना प्रिये। 
प्यार से प्यार को, ....प्यार के जाम से,
प्यार पल-पल प्रियम को पिलाना प्रिये। 
©पंकज प्रियम

949.ब्राह्मण

सूर्य अंश से उपजे हमसब, सूर्य समान प्रतापी हैं।
श्रेष्ठ धरा में जन्मे हम सब, ब्राह्मण सर्वव्यापी हैं।
हमें गर्व है संस्कारों पर, भारत-भू बलिदानों पर-
धर्म ध्वजा को धारण कर के, हमने दुनिया नापी है।।
पंकज प्रियम

Tuesday, December 6, 2022

948.शाकद्वीपी


*शाकद्वीपी*


सूर्य अंश से उपजे हम सब, सूर्य समान प्रतापी हैं।

श्रेष्ठ कुल के जन्मे हम सब, ब्राह्मण शाकद्वीपी हैं।


वेद-पुराण में चर्चा अपनी, संगीत-चिकित्सक, ज्ञानी हैं।

ब्राह्मण सर्वोत्तम कहलाते,      धीर-वीर, अभिमानी हैं।

सूर्य अस्त के बाद श्राद्धकर्म, सूर्य वरण अधिकारी हैं,

मूल मगध के वासी मग हम, भास्कर-भुवन पुजारी हैं। 

साहित्य, कला, संगीत, चिकित्सा में सर्वव्यापी हैं।

श्रेष्ठ कुल के जन्मे हम सब, ब्राह्मण शाकद्वीपी हैं।


पुत्र साम्ब को कुष्ठ हुआ तब, चिंतित राधेश्याम हुए।

परिवार अठारह शाकद्वीप से  जम्बूद्वीप में बुलवाए।

आध्यात्म चिकित्सा के बल पे, रोग साम्ब का दूर किया।

मगध नरेश के आग्रह पर, कान्हा ने बहत्तर पुर दिया।

चाणक्य, वराहमिहिर, आर्यभट्ट, बाणभट्ट विद्वान बड़े,

सत्य-सनातन, धर्म-स्थापन, की ख़ातिर मिलते खड़ें।


धर्म ध्वजा को धारण करके, हमने दुनिया नापी है।

श्रेष्ठ कुल में जन्मे हम सब, ब्राह्मण शाकद्वीपी हैं।

*©कवि पंकज प्रियम*