Wednesday, December 23, 2020

901. दिल की बात

दिल की बात

करूँ मैं बात दिल की क्या, अधूरी छूट जाएगी,
इसी शिकवा शिकायत में, जरूरी छूट जाएगी।
गिला तुझसे नहीं कुछ भी, मगर जो दर्द है दिल में-
कहा उसको नहीं तो फिर, ये पूरी छूट जाएगी।।
©पंकज प्रियम

900. कोरोना का बाप

*कोरोना 2.0*

कोरोना का बाप आया,
    उससे भी टॉप आया,
         ब्रिटेन को नाप कर,
              सबको डराया है।

बंद किया दरवाजा,
  रोक दी है आवाजाही,
      कोरोना का नवतार 
         सेंसेक्स गिराया है।

 कोरोना था घट रहा,
     दुःख दर्द मिट रहा,
        सोच लिया सबने कि
              कोरोना हराया है।

खौफ़ में था गुजरा ये,
   साल बीस विष सा ये,
       नये साल सपनों पे,
           पानी ही फिराया है।
*©पंकज प्रियम*

Monday, December 21, 2020

899. मन का विश्वास

 मन में रख विश्वास, सदा तुम आगे बढ़ना,

हर खाई को पाट, पर्वत शिखर पे चढ़ना।।

कर बाधा को पार, तभी मंजिल  पाओगे। 

देखोगे पथ चार, निश्चय डूब जाओगे।।

©पंकज प्रियम

898. खौफ़ का साल

 खौफ़ में गुजरा है ये जो साल कैसा।

कैद में रहकर तो हुआ हाल कैसा।

चीन के वायरस से यहाँ कोरोना फैला-

चैन लूटने को आया काल कैसा।।


खौफ़ में गुजरा है जो ये साल बदल दो।

साल जो बदले तो ये भी काल बदल दो।

नववर्ष में उम्मीद नई आस जगाकर-

स्वदेश की वैक्सीन से चाइना माल बदल दो.

 

पंकज प्रियम 

 

 

Thursday, December 17, 2020

897.हरहरो रे

हरहरो रे -----
मकर संक्राति को प्रातः स्नान की महिमा तो सर्वव्यापी है लेकिन इसको लेकर हमारे यहाँ एक अलग की कहानी किसी ने बुन दी है. हाड़ कंपाती सर्दी में भला किसी को प्रातः 4 बजे उठकर नहाने को कहे तो कौन सुने? वह भी तब जब गाँव में गीजर न हो और कुँए के पानी से नहाना .पाप  और पुण्य से बच्चो को भला क्या लेना देना ? तो उनके लिए पुरखो ने एक नया बहाना बना दिया होगा कि मकर संक्राति के दिन जो भोर मुँह अँधेरे उठकर नहाता है उसे गोरी बीवी या सुंदर दूल्हा मिलता है . फिर सोचना क्या ? लड़के -लड़कियां सुंदर पत्नी और वर  लिए भर -भर बाल्टी पानी सर पर उलेढ़ लेते थे. सोचिये कुँवें का ठंडा पानी और पूरी बाल्टी सर पर उलेढ्ना कोई सजा से कम है क्या ? लेकिन रंगीन हसींन सपनों की गरम रेनकोट पहने हुए खाक ठंड लगती है! हाँ ठंड को दूर करने के लिए सभी जोर -जोर से चिल्लाते थे -हरहरो रे -सरसरो रे .आज तक इन शब्दों का अर्थ नहीं समझ पाया लेकिन मकर संक्राति के दिन नहाते वक्त ये पंक्तिया स्वतः निकल आती है. पानी में तिल डालकर स्नान करने की परम्परा रही है .काले तिल वाले पानी से स्नान कर गोरी बीवी और वर का सपना लिए लड़के -लड़कियां बड़े जोश से स्नान कर लेते थे. स्नान से पूर्व आसपास गिरे हुए सूखे पत्ते और लकड़ियों को जमा कर रखते और नहाते ही उसमे आग लगाकर तापने का अलग ही आनंद था. अब कितने लोगों को गोरी बीवी और सुंदर वर मिला ये तो शोध का विषय है लेकिन जो भी हो बचपन के दिन वो बड़े हसीन थे. अब तो मकर संक्राति पर बहुत कम गोंव जाना होता है और शहर में प्रातः स्नान  करने की बस परम्परा निभाई जाती है. ----------------------------------
--पंकज प्रियम

Thursday, November 26, 2020

896. संविधान सुविधानुसार


*संविधान दिवस*  

                                   आज़ादी से पूर्व सभी रियासतों के अपने अपने कानून थे  जिन्हें देश के एक कानून के तहत लाने की आवश्यकता थी. इसके साथ ही एक इसे संविधान  की जरुरत थी जो यहाँ के लोगों के मूल अधिकार और उनके कर्तव्यों को निर्धारित कर सके. इसके लिए भारत की संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन में संविधान तैयार कर 26 नवम्बर 1949 को समर्पित किया था इसीलिए इस दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसके बाद 26 जनवरी 1950 को इसे अंगीकृत किया गया . इस दिन संविधान निर्माण समिति के वरिष्ठ सदस्य डॉ हरिसिंह गौर का जन्मदिवस भी मनाया जाता है. भारतीय संविधान का  सारा श्रेय डॉ भीमराव आंबेडकर को दिया जाता है लेकिन हकीकत यह है संविधान लिखनेवाली सभा में 299 सदस्य थे जिसके अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद थे. डॉ आंबेडकर ने इसे संकलित किया था और संविधान को मूर्त रूप देने का काम किया. भारतीय संविधान में वर्तमान समय में भी केवल 470 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियां हैं और ये 25 भागों में विभाजित है। परन्तु इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद जो 22 भागों में विभाजित थे इसमें केवल 8 अनुसूचियां थीं। संविधान को समय समय पर लोगों ने अपनी सुविधा और जरुरत के हिसाब से संशोधन  करते रहे. इसपर लगातार बहस और विवाद भी होता रहा. सभी ने इसे अपने अपने चश्मे से देखने एक काम किया है . सियासी दल अपनी सुविधा के हिसाब से संविधान की व्याख्या करते रहे तो कट्टरपंथी संगठन और उसके समर्थित दल संविधान को मानने से भी इनकार करते रहे. हालिया बयानों को देखें तो लोग संविधान से बढ़कर अपनी शरियत और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को मानते हैं. इसी तरह कश्मीर के चरमपंथी नेता भारतीय संविधान और तिरंगे को मानने से इंकार करते रहे हैं . इनपर लगाम लगाना जरूरी है. समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में है। इसमें नीति-निर्देश दिया गया है कि समान नागरिक कानून लागू करना हमारा लक्ष्य होगा। सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में केन्द्र सरकार के विचार जानने की पहल कर चुका है लेकिन इसको कोई मानने को तैयार नही . संविधान के हर नियम को जबतक सही तरीके से सब नहीं मानेगे तबतक संविधान दिवस महज खानापूर्ति जैसा है./  
  © पंकज प्रियम

Tuesday, November 24, 2020

894. कोरोना रंगीला

 कोरोना कमाल

घनाक्षरी


आलू को बुखार चढ़ा,

      टमाटर लाल हुआ।

            हरी मिर्च हरजाई,

                धनिया धमाल है।


गिर गया नेता पर,

    चढ़ गयी महंगाई।

        आग लगी सब्जी में,

             कोरोना कमाल है। 


घट गई रोजगारी,

    बढ़ गयी महंगाई,

      रसोई में आग लगी,

              जनता बेहाल है। 


आपदा में अवसर,

     ढूंढ़ रहे हॉस्पिटल,

         मरीजों को लूट-लूट,

                 हुए मालामाल हैं। 


कोरोना सयाना बड़ा,

      छेड़ता गरीब को ही,

           नेता मंत्री अफसर,

              छुवे क्या मजाल है?


रेल बस चढ़ जाता,

    विद्यालय बढ़ जाता,

         पर रैली चुनावों में 

               करे न सवाल है।


मन्दिर में घुसकर,

  पूजा पाठ सब रोके।

      परब त्यौहार में तो,

             करता बवाल है। 


कोरोना रंगीला बड़ा,

   सब मुँह मास्क चढ़ा

       दारू की दुकान बैठ,

                पिये रम लाल है।


©पंकज प्रियम


Sunday, November 22, 2020

893.गैया

गैया
अमृत धारा देती गैया, लगती जैसे सबकी मैया।
दूध तो अमृत तुल्य ही होवे, गोमूत्र गोबर औषधि भैया।
कृष्ण दुलारी गोपी प्यारी, गोकुल नाचे ता ता थैया।
कष्ट सहे खुद देती जीवन, परोपकारी होती गैया।।

गो रक्षा का संकल्प करो अरु, सेवा करो माता गैया।
गोहत्या जो करता यहाँ पर, समझो दानव पापी भैया।
माफ़ नहीं तू करना खुदा, मारे यहाँ जो तेरी ख़ुदाई-
गोधन पे जो चलाये कटारी, कहलाये वो दुष्ट कसाई।।

जीवन देती जैसे माता, पूजन करो मिल के भ्राता।
मैया पिलाती दूध बरस अरु गैया दूध जीवन दाता।।
पढ़ो कुरान बाइबिल गीता, सबने लिखा गौ को है माता।
कामधेनु कहलाती गैया, पूजन करे जिसकी विधाता।।

दूध दही घृत मक्खन अरु, बनती मिठाई जिससे सारी।
शुद्ध करे जो पर्यावरण, होती उपयोगी गैया प्यारी।।
जीवन भर देती पौषण, पार बैतरणी कराए हमारी।
देव् सभी का वास जिसमें, जीव आधार गैया दुलारी।।


©पंकज प्रियम
गोपाष्टमी की हार्दिक बधाई

Thursday, November 12, 2020

892. दीपमाला -पढ़िए दिवाली पर एक साथ कई रचनाएँ

 1.*ज्योति पर्व:*


मन से ईर्ष्या द्वेष मिटाके 
नफरत की आग बुझाके 
हर दिल में प्यार जगाएं
सत्य प्रेम का दीप जलाएं
आओ ज्योति पर्व मनाएं।

अंधकार पर प्रकाश की
अज्ञान पर ज्ञान की
असत्य पर सत्य की
जीत को फिर दुहराएं
आओ ज्योति पर्व मनाएं।

भूखा -प्यासा हो अगर 
बेबस  लाचार ललचाई नजर 
 उम्मीद जगे तुमसे इस कदर 
कुछ पल सही सबका दर्द बटाएं 
आओ ज्योति पर्व मनाएं।

अन्याय से ये समाज 
प्रदूषण-दोहन से धरा आज 
असह्य वेदना से रही कराह 
इस दर्द की हम दवा बन जाएं
आओ ज्योति पर्व मनाएं।

भय आतंक -वितृष्णा मिटाके 
 बुझी नजरो में आस जगा के
जात धर्म का भेद मिटाके 
शांति अमन का फूल खिलाएं 
आओ ज्योति पर्व मनाएं।

चहुँ ओर प्रेम की जोत जलाएं
सब मिल ख़ुशी के गीत गाएं
इंसानियत की जीत का जश्न मनाएं
आओ ज्योति पर्व मनाएं।
©पंकज प्रियम

2.प्रेम का दीप जलाये

आओ प्रेम का दीप जलायें,
मिलकर ज्योति पर्व मनायें।

मन से ईर्ष्या-द्वेष मिटाकर,
नफरत का विद्वेष हटाकर।
तबमन को जो कर दे रौशन,
दिल में प्रेम की जोत जगायें।
आओ प्रेम का दीप जलायें।
   
तिमिर घनेरा भी मिट जाये,
अज्ञान पे ज्ञान विजय पाये।
असत्य पे सत्य की जय को
उस जीत को फिर दोहरायें
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

भूखा-प्यासा हो कोई अगर,
बेबस लाचार ललचाई नजर ।
उम्मीद जगे हमसे जब ऐसी
कुछ पल ही सही दर्द बटाएं।
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

अन्याय से यह सारा समाज ,
प्रदूषण-दोहन से धरा आज ।
असह्य वेदना से रही कराह,
दर्द की हम ये दवा बन जाएं।
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

भय आतंक-वितृष्णा मिटाके,
सूखी नजरो में आस जगा के।
जाति-धर्म सब-भेद मिटाकर,
शांति अमन का फूल खिलायें,
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

स्वच्छ गली-घर और आँगन,
स्वच्छ धरा और स्वच्छ गगन।
स्वस्थ रहे यह तनमन अपना,
स्वच्छता को हम यूँ अपनायें।
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

चहुँ दिशा हो जगमग रौशन,
खुशहाल रहे सबका जीवन।
घर गरीब के चूल्हा जले जो,
घर में माटी का दीप जलायें।
आओ प्रेम का दीप जलायें।
©पंकज प्रियम

3. समझना तब दिवाली होगी 

घर-घर में जब खुशहाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

मन का तिमिर जब मिट जाएगा,
तन का भेद जब सिमट जाएगा।
प्रस्फुटित होगा जब ज्ञान प्रकाश,
अमावस में भी चमकेगा आकाश।
घर घर में जब खुशहाली होगी,
समझना तब शुभ दिवाली होगी।

जब नौजवानों का उमंग खिलेगा,
दिल से दिल का जब तरंग मिलेगा।
नव सर्जन का जब होगा उल्लास,
शब्द अलंकारों का होगा अनुप्रास।
जब मस्ती अल्हड़ निराली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

हर हाथ को जब काम मिलेगा,
हर साथ को जब नाम मिलेगा।
कर्ज में डूबकर ना मरे किसान,
फ़र्ज़ में पत्थर से न डरे जवान।
जीवन में ना जब बदहाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

भूखमरी, गरीबी और बेरोजगारी,
इससे बड़ी कहाँ और है बीमारी।
इन मुद्दों का जब भी शमन होगा,
सियासी मुद्दों का तब दमन होगा।
गली-गली सड़क और नाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

जब सत्य-अहिंसा की जय होगी,
संस्कृति-संस्कारों की विजय होगी।
जब हर घर ही प्रेमाश्रम बन जाए,
फिर कौन भला वृद्धाश्रम जाए।
मुहब्बत से भरी जब थाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

जब कोख में बिटिया नहीं मरेगी,
दहेज की बेदी जब नहीं चढ़ेगी।
जब औरतों पर ना हो अत्याचार,
मासूमों का जब ना हो दुराचार।
जब माँ-बहन की ना गाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

मुद्दों की फेहरिस्त है लम्बी इतनी,
लंका में पवनसुत पूँछ की जितनी।
सब पूरा होना समझो रामराज है,
राम को ही कहाँ मिला सुराज है!
अयोध्या में जब वो दीवाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।
©पंकज प्रियम

4. स्वच्छता अभियान में हो रही साफ सफाई।
थोड़ी पर्यावरण की भी चिंता कर लो भाई।
कुछ ही दिनों में आनेवाली है दिवाली
पटाखों से फैलेगी चहुँओर धुवाँ काली।
धूम धडाको से मचेगा शोर ।
फैलेगा वायु प्रदूषण हरओर।
क्या नही करना है पर्यावरण का ध्यान
तो फिर आज ही मन में लो यह ठान।
पटाखे को करो बाय बाय।
चायनीज लाइट को कहो गुडनाईट ।
मिटटी के तुम दीप जलाओ
एक गरीब के घर चूल्हा जलाओ।
घर के बने पुवे पकवान खाओ
मिलावटी खोवे से खुद को बचाओ।

5. दीपक
हवाओं से जरा कह दो, अदब से वो गुजर जाये,
जहाँ पे जल रहा दीपक, जरा मद्धम उधर जाये।
तमस गहरा निशा काली, जहाँ अज्ञानता खाली-
वहाँ दीपक नहीं जलता, बताओ तो किधर जाये।।
©पंकज प्रियम
11.12.2019

6. दीप 
तनमन की हो *स्वच्छता*, घर बाहर हो साफ।
कचरा करता जो यहाँ, मत कर उसको माफ़।।

दीवाली तो है सदा,साफ़-सफाई *पर्व*।
जीत निशा पे रौशनी, करते सब हैं गर्व।।

*माटी* से ही देह है, इससे ही संसार।
मोल समझ ले जो यहाँ, होगा बेड़ा पार।।

चीनी जगमग रौशनी, रोये रोज़ *कुम्हार*।
आओ मिलकर हम सभी, दें उसको उपहार।।

*दीप* जला इसबार सब, दें उनको मुस्कान।
एक घर चूल्हा जला, भर दें उसमें जान।।
©पंकज प्रियम
10.११.2020

7. दीपशिखा

तिमिर निशा के हर आँगन
ज्योत जलाती दीपशिखा।

संग हवा वह पलती रहती,
खुद में खुद जलती रहती।
चीर तमस घनघोर निशा,
ज्योत जगाती दीपशिखा।

दीये की बाती उसकी थाती
जलकर भी वो न घबराती।
मन का तिमिर खूब मिटा,
मार्ग दिखाती दीपशिखा।

हरपल जलती ज्ञान सिखाती,
जीवन का गूढ़ सन्देश बताती।
जलना तो केवल दीपक जैसा,
ज्ञान सिखाती दीपशिखा।

मद्धम पलती मध्दम जलती,
हरदम मद्धम रौशन करती।
बहुत तेज की लौ फड़का, 
साँस बुझाती दीपशिखा।

गर जीवन ये जीना तुझको,
कर दो समर्पण तुम मुझको,
खुद को कैसे नियंत्रित करना
पाठ पढ़ाती दीपशिखा।
©पंकज प्रियम

8.दलिद्दर दलिदर 
दीपावली की सुबह। आज के दिन को घर से दरिद्रता को भगाने और माँ लक्ष्मी को प्रवेश कराने के रूप में मनाया जाता है। याद है बचपन के वो दिन जब सारे बच्चे घर के टूटे -फूटे बांस की बनी टोकरी या सूप को लकड़ी से पीट-पीट कर हर कोने से दरिद्रा को निकालते थे। तब हर घर से एक सुर में आवाज आती थी --दलिदर -दलिदर बहरो रे --लक्ष्मी -लक्ष्मी ढुक (खोरठा में इसका मतलब है सारी दरिद्रा निकल और माँ लक्ष्मी घर में प्रवेश करे )और उसे नदी किनारे जाकर जमा करते थे। हाड़ कंपाने वाली सर्दी की ठिठुरन में भी नदी की बर्फीली पानी में सभी साथ डुबकी लगाते और फिर जमा की हुई टोकरी-सुप को जलाकर आग सेकते थे। बचपन बीत गया अब जिम्मेवारियों के बोझ तले घर से सैकड़ो मील दूर रोजगार का दीप जला रहे हैं। याद नहीं कितने वर्षो से अपने घर -अपने गांव में दीवाली नही मनायी है। वो दिन, वो परम्पराएँ वक्त के साथ धूमिल पड़ रही होगी शायद। परम्परा के नाम पर बस रस्म अदाएगी हो जाती होगी। लेकिन आज भी वो सारी परम्पराएं प्रासंगिक है। कहने को घर से दरिद्रता को खदेड़ा जाता है लेकिन इसके पीछे के निहितार्थ बहुत है। दीपावली के ढेर सारे कचरों को भी अहले सुबह घर से दूर निकाल कर उसे जलाना और फिर नदी में स्नान करने के पीछे भी बड़ा वैज्ञानिक तथ्य छुपा हुआ है। हमें न केवल अपने घर और मन के अंदर की गंदगी यानी बुराई को निकाल कर उसे जला देना है। ठंडे पानी में तन-मन के सारे कलुष को धो डालना है। 
©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"

Wednesday, November 11, 2020

891.जन रामायण

रामलला की पावन धरती, चूमने हम तो जाएंगे।
जन रामायण की गाथा पे, झूम के हम तो गाएंगे।
रामकथा को जनभाषा में, जनजन तक पहुंचाने को-
जनमानस के भावों की, हम जन रामायण लाएंगे।
©पंकज प्रियम
#साहित्योदय
#जनरामायण

890.दीवाली दीप

नमन साहित्योदय

शब्द सीढ़ी
स्वच्छता, पर्व, माटी, कुम्हार, दीप

तनमन की हो *स्वच्छता*, घर बाहर हो साफ।
कचरा करता जो यहाँ, मत कर उसको माफ़।।

दीवाली तो है सदा,साफ़-सफाई *पर्व*।
जीत निशा पे रौशनी, करते सब हैं गर्व।।

*माटी* से ही देह है, इससे ही संसार।
मोल समझ ले जो यहाँ, होगा बेड़ा पार।।

चीनी जगमग रौशनी, रोये रोज़ *कुम्हार*।
आओ मिलकर हम सभी, दें उसको उपहार।।

*दीप* जला इसबार सब, दें उनको मुस्कान।
एक घर चूल्हा जला, भर दें उसमें जान।।
©पंकज प्रियम

889.ईवीएम

ईवीएम बेचारी
***********
जब जब उनकी पार्टी हारी,
बदनाम हुई ईवीएम बेचारी।
जब जीतते तब ठीकठाक
हारते ठीकरा इसके नाम।
मुफ्त में ही होती है बदनाम,
छेड़छाड़ आरोप तो है आम। 
रोती बिलखती ईवीएम प्यारी,
गलती नही है कुछ भी हमारी।
कैसी है यह फितरत तेरी,
नाचन जाने तो गलती मेरी।
जब जीतते तब न देते ईनाम,
जब हारे तो करते बदनाम!
मैं हूँ निष्कलंक मैं हूँ बेदाग़,
मत उगल तुम मुझपे आग।
कल लुटते थे बैलेट सरेआम,
आज करते मुझको बदनाम!

©पंकज प्रियम

Friday, November 6, 2020

888.फ़साने बहुत है


ग़ज़ल
बहर- 122*4
काफ़िया-आने
रदीफ़- बहुत है

मुहब्बत 'में तेरे बहाने बहुत हैं
लिखे मैंने' तुझपे फ़साने बहुत हैं।

दिखाना न मुझको कभी हुस्न जलवा,
सजी रूप की तो दुकानें बहुत है।

नज़र से तुम्हारा नज़र यूँ चुराना,
तुम्हारी नज़र के निशाने बहुत हैं।

निगाहों से' ऐसे न खंजर चलाओ,
भरे ज़ख्म दिल में पुराने बहुत हैं।

मुहब्बत में' यूँ तो तराने बहुत हैं,
प्रियम की ग़ज़ल के दिवाने बहुत हैं।
*©पंकज प्रियम*

Sunday, November 1, 2020

887.कोरोना में खौफ़ कहाँ बा?

कोरोना के काल में, बंद पड़ी रेल बस,
आया जो चुनाव देखो, चल लगी रैलियाँ।

सजधज नेता सभी, हांक रहे मंच पर,
कोरोना के नियमों की, उड़ रही धज्जियाँ।

स्कूल भी बंद पड़े, बंद हैं बाज़ार पर, 
नेताओं ने खोल रखी, वोट की तिजोरियां।

खतम चुनाव जब, बढ़ेगा कोरोना तब, 
यही नेता सब मिल, देंगे फिर गालियाँ।।

2
याद करो दिन वह, कोरोना से मरने पे, 
लाश वो पिता की तुम्हें, छूने न दिया रे,

मर गयी मैया पर, डरे रहे इतना कि,
अंतिम संस्कार बेटा, तूने नहीं किया रे। 

खौफ़ बढ़ा इतना कि, बंद किया पूजा पाठ, 
पर खोल मधुशाला, सभी छक पिया रे।

घट गई रोजी रोटी, बढ़ गयी महंगाई,
सुन के चुनावी बोली, फटे मोर जिया रे।
3
 पक गए कान सुन, फोन रिंगटोन अब,
कोरोना से बचने को, सुन सुन बोलियाँ।

ठेका लिया हमने ही, मास्क और दूरी पर ,
नेताओं को देख लो, कर रहे रैलियाँ।

नहीं कोई नियम हैं, नहीं कोई खौफ़ में है, 
लाखों-लाख भीड़ देखो, कैसी अठखेलियाँ।

नेता तो चालाक पर, जनता को हुआ क्या है?
खुद ही तो खाय रहे, जहर की गोलियाँ।।
पंकज प्रियम

Wednesday, October 28, 2020

886. तुम निकिता थी न!इसलिए सब मौन हैं

तुम निकिता थी न
 इसलिए सब मौन है 
वह तौफ़ीक़ है इसलिए तो 
 सब के सब मौन हैं। 

यहाँ लोग लड़कियों की अस्मत नहीं 
उसका मज़हब देखते हैं।
 मासूमों की जान नहीं 
 उसकी जात देखते हैं। 
 हाथरस में दलित थी तो
 सब के सब गिरते-पड़ते दौड़ पड़े
 मगर मेवात पे सब मौन हैं!

 यहां तो लोग अखलाक को 
 लंदन तक ले जाते हैं।
 लेकिन पालघर में पुलिसिया मोब्लिंचिंग से 
 सबकी जुबाँ को पाला मार जाता है। 
 सबूत सामने, गवाह सामने,
 खुद कानून सामने लेकिन कार्रवाई ठेंगा

निकिता! सबने देखा 
सीसीटीवी में कैसे पागल कुत्तों ने तुम्हें घसीटा
 और सरेआम मार दी गोली। 
 सबूत सामने, गवाह सामने 
 लेकिन कार्रवाई घण्टा? 

क्योंकि वह तौफ़ीक़ है
 वोट बैंक का जरिया है 
सेडो सेक्युलरिज्म का झण्डा है 
परिवार रसूखदार है 
बड़े बड़े आकाओं का उसपर वरदहस्त है
 इसलिए उसे कुछ नहीं होना
 क्योंकि कानून है बौना। 

 छूट जाएगा मिल जाएगी बेल
 फिर करेगा वह खूनी खेल। 
ये कानून जो है अंधा
 तभी तो अपराधियों का
 बेख़ौफ़ चलता है धंधा। 

 निःसन्देह इसकी सजा कठिन हो
 सरेआम लटकाओ फाँसी पर
 या जला दो जिन्दा चौराहे पर।
 यह लव जिहाद ही है,
 धर्म नहीं बदला तो क्या मार दोगे?
 यह वहशीपन है सरासर 
नहीं मानी तो क्या जान लोगे?


 निकिता की अम्मा! 
 मत गुहार लगाओ  न्याय की 
मत करो इंसाफ की उम्मीद।
 तुम्ही बनो काली, खुद बन जाओ दुर्गा 
खुद करो संहार इन दुष्टों का।
 अस्मत पे जो डाले हाथ
 तुम काट डालो उसके हाथ।
 @कवि पंकज प्रियम

Tuesday, October 27, 2020

885. दशहरे का मेला

खतम हो गया अब दशहरे का मेला,
चलो फिर धकेलो जीवन का ठेला।

चले छोड़ अब तो गाँव की गलियां,
हवेली सा घर और प्यारी सी बगिया।
डहर ताकती वो बाबा की आँखें,
वो मैया का पल्लू से आँसू छिपाना।
खतम हो गया..../

वही फिर से ऑफिस, वही फिर उलझन,
समय की वो किल्लत, उधारी का जीवन।
बरस फिर अगले मिलेगा यहाँ कौन?
शहर भागते सब ये गांवों का रेला।
खतम हो गया.../

दशहरा दीवाली, छठ और ये होली
नहीं पर्व केवल, है रिश्तों की डोली।
खिलते हैं चेहरे, चमकती है आँखें,
तरसते बरस भर जो तन्हा अकेला।।
खतम हो गयी---/

बच्चों को मिलती है दादी की गोदी,
दादा के संग सब करे खूब किलोली।
संगी और साथी वो बचपन के सारे-
वो खेतों की आरी वो माटी का ढेला।
खतम हो गया---/
कवि पंकज प्रियम

Monday, October 26, 2020

884. कोरोना में चुनाव बा

बिहार में चुनाव बा

कोरोना से बचने को, रोज कहें मोदी पर,
आया जो चुनाव देखो, रैलियां ही रैलियां।

ग़ज़ दुई दूरी और, मास्क भी जरूरी पर, 
नेताओं के भाषण में, होती अठखेलियाँ।

कोरोना का खौफ़ कहाँ, दिखता चुनाव पर,
सभी पार्टी खिला रहे, भाषण की गोलियां।

मास्क नहीं दूरी नहीं, भीड़ भरी खचाखच,
ऐसे में कोई क्यूँ भला, सुने तेरी बोलियां।।
कवि पंकज प्रियम
इस रविवार देखिये महासंग्राम

Saturday, October 24, 2020

883.देव्यपराधक्षमापन (हिंदी काव्य रूप)

देव्यपराधक्षमापन स्तोत्रम

नहीं मैं मंत्र ही जानूँ, नहीं मैं तंत्र भी जानूँ,
नहीं कुछ ध्यान आवाहन, कथा विनति कोई जानूँ।
नहीं मुद्रा समझ आती, नहीं व्याकुल विलापी पर-
शरण तेरी हरे संकट, यही बस बात मैं जानूँ।।1

नहीं कुछ पास धन दौलत, नहीं पूजा विधि जानूँ,
तनिक मैं आलसी हूँ तो, विधि विधान क्या जानूँ।
जहाँ गलती हुई मुझसे, जरा तुम माफ़ कर देना-
गलत बेटा भले हो पर, कुमाता माँ नहीं जानूँ।।2

सकल धरती चराचर में, तुम्हारे पूत हैं प्यारे, 
उन्हीं में से यहाँ माता, चपल चंचल मैं थारे।
हमारा त्याग यूँ करना- उचित कैसे भला मानूँ
गलत बेटा भले हो पर, कुमाता माँ नहीं जानूँ।3

नहीं चरणों की सेवा की, जगत माता ऐ जगदम्बा,
समर्पित की नहीं दौलत, तुम्हारे पास माँ अम्बा।
मगर फिर भी अधम मुझसे, मुहब्बत देख के मानूँ,
गलत बेटा भले हो पर, कुमाता माँ नहीं होती।।4

बहुत सेवा समर्पण ने , हमेशा व्यग्र कर डाला,
अवस्था बीत जाने से, अभी सब देव् तज डाला।
नहीं पूजा अगर करता, उन्हीं से आस क्या बाँधूं?
कृपा तेरी नहीं हो तो, भला किसके शरण जाऊं?5

तुम्हारे मंत्र का अक्षर, अगर पड़ जाय जो कानों,
निपट चंडाल मूरख भी, मधुर वक्ता बने जानो।
महज़ इक मंत्र अक्षर के श्रवण का लाभ जब इतना-
सकल विधान जपतप से, मिलेगा क्या समझता हूँ।। 6

चिताभस्मा लपेटे जो, गरल भोजन दिगम्बर जो
जटाधारी भुजगकण्ठे, कपाली भूत धारी वो।
जगत जगदीश की पदवी, मिली है क्यूँ भला जानूँ-
तुम्हारा हाथ पाकर ही, हुए विख्यात शिव जानूँ।।7

नहीं है मोक्ष की इच्छा, नहीं कुछ चाह वैभव की,
नहीं विज्ञान की चाहत, अपेक्षा है नहीं सुख की।
हमारी याचना तुमसे, यही है मात जगदम्बे-
गुजर जाये यह जीवन, तुम्हारा नाम जपकर के। 8

विविध विधान से माता, नही पूजा ही कर पाया,
किया अपराध जो मैंने, नहीं कुछ भूल ही पाया।
कृपा दृष्टि मगर फिर भी, पड़ी अनाथ पर तेरी-
कुपुत्रों को भी माता, शरण तुम पास ही मिलता।9

विपत्ति में उलझ कर के,  तुम्हें अब याद करता हूँ,
नहीं तब याद कर पाया, यही फरियाद करता हूँ।
समझना तुम नहीं सठ ये, जरा हालात को जानो-
क्षुधापीडित और प्यासा, तभी तो याद करता हूँ।।10

कृपा तेरी बनी मुझपर, यही तो बात अचरज की,
करे अपराध बेटा पर, उपेक्षा माँ नहीं करती।11

नहीं मुझसा यहाँ पापी, न तुमसा कोई पापघ्नी-
समझकर तुम महादेवी, उचित हो जो करो देवी।।12

©पंकज प्रियम




Monday, September 28, 2020

882.बेटी

बेटी 
पिता की जान है बेटी , पिता अभिमान है बेटी .
हृदय हरपल धड़कती मात की तो प्राण है बेटी।
धरा से आसमां तक ये, यहाँ लहरा रही परचम- 
अरे माँ-बाप पे हरदम, छिड़कती जान है बेटी।।
 कवि पंकज प्रियम

Wednesday, September 23, 2020

881.कवि का कर्म

मंचों पर चुटकुले पढ़ना, कवि का कर्म नहीं होता।
कुर्सी का अभिनन्दन करना, कवि का धर्म नहीं होता।
साहित्य क्षितिज का दिनकर बनना, काम नहीं इतना आसां
जनमानस की पीड़ा कह दे, कवि का मर्म वही होता।।
©पंकज प्रियम

880.दिनकर

दिनकर

शब्दों की ज्वाला दहकाकर, हृदय में आग लगा डाला।
राष्ट्र प्रेम का भाव जगाकर, कण-कण देश जगा डाला।।
प्रखर ओज का स्वर बनकर, साहित्य क्षितिज में निकले ,
दिनकर बनके तमस जगत का, शब्द से मार भगा डाला।।
©पंकज प्रियम

879 - समर शेष है तेरा भारत

 समर शेष है अब भी भारत 

 युध्द तुझे फिर लड़ना होगा.

सजा अभी कुरुक्षेत्र यहाँ तो

रण में आगे बढ़ना होगा।1


जरूरत फिर से वीरों की है

धार तेज शमशीरों की है।

सोने की चिड़िया बनकर 

आसमान में उड़ना होगा . 2


कण-कण तेरा है चन्दन 

जनगण करता है वन्दन.

विश्वगुरु बनने की खातिर 

चाँद पे फिर चढना होगा. 3


नहीं अबला सा कर क्रंदन 

कर मत वन्दन सिंहासन.  

जनमानस की पीड़ा लिख 

इतिहास नवीन गढ़ना होगा. 4


बस चरण वंदना धर्म नहीं,

कुछ भाव व्यंजना कर्म नहीं . 

मन का तमस मिटाने को 

साहित्य सदा पढना होगा।5

पग-पग शकुनी पाशा फेंके,

भीष्म द्रोण भी तमाशा देखे .

द्रौपदियो की अस्मत ढंकने 

सखा कृष्ण सा बनना होगा. 6


घडा भरा हँ पाप यहाँ पर,

घर-घर है संताप यहाँ पर. 

धर्म का कुरुक्षेत्र सजाकर

महाभारत फिर करना होगा. 7 


दुश्मन को मार भगाने को 

सोयी सरकार जगाने को 

खाली करने को सिंहासन 

हुँकार दिनकर भरना होगा. 8


समर शेष है तेरा भारत 

संघर्ष तुझे फिर करना होगा. 

जनगण की आवाज़ उठा के 

दर्द सभी का हरना होगा . 9

पंकज प्रियम 

23 सितम्बर 2020



 

Sunday, September 20, 2020

878.थाली में छेद

थाली में छेद
खाकर जिसने छेद किया है, अपने देश की थाली में।
पकड़ के उसको आओ डालें, सड़ती गंदी नाली में।।

रोटी खाये हिंदुस्तानी, नारा लगाए पाकिस्तान।
अपने देश को गाली देता, दुश्मन की करता गुणगान।
माफ़ नहीं तुम उसको करना, भारत को जो गाली दे-
पकड़ के उसको---

बात सहिष्णुता की करता, खुद चलवाता बुलडोजर।
देशविरोधी नारों पर तो, मुँह सील जाता है अक्सर।।
खुद पे जब हो प्रश्न खड़े तो, औकात दिखाते गाली में।
पकड़ के उसको--

नफ़रत की जो आग लगाये, देश नहीं है यह उनका,
दुश्मन की बोली जो बोले, देश नहीं है यह उनका।
घर में छुपे सब गद्दारों को लटकाएं आओ फाँसी पे।।

©पंकज प्रियम

877.तेरी यादें


तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।
सताती है मुझे हरपल, तुम्हारे संग की यादें।।
तेरा चेहरा मेरी आँखें, मेरी धड़कन तेरी साँसे।
जगाती है मुझे हरपल, तुम्हारे संग की रातें।।

तुम्हारी याद जब आती, मुझे बैचेन कर जाती।
तरसकर ये मेरी नैना,यहाँ अश्कों से भर जाती
रुलाती है मुझे हरपल, विरह जो वेदना जागे।
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।

धड़कती है मेरी धड़कन, तू जब जब साँस लेती है।
तड़प उठता है दिल मेरा,तू जब जब आह भरती है।
सताती है मुझे पलपल, तुम्हारे प्यार की बातें।
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।।

सज़ा मेरी सुना देना, ख़ता कर लूँ मगर पहले,
जमाना छोड़ क्या देगा, सजा दे दो अगर पहले।
जमाना तोड़ क्या सकता, मुहब्बत से जुड़े नाते।
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।।

गुलाबी धूप के जैसी, जवानी रूप के जैसी।
नहीं कोई यहाँ होगी, मेरे महबूब के जैसी।
बहकते है कदम मेरे, करे मदहोश जो आँखें।
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।

नयन मदिरा भरी प्याली, अधर में आग सी लाली।
गुलाबी गाल को छूती, लटकती कान की बाली।
गुजर जाता है दिन लेकिन, गुजरती है नहीं रातें।
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।।
पंकज प्रियम

Friday, September 11, 2020

876.बदले की सरकार

सरकार

देख लो कैसी एक सरकार
देख लो बदले की सरकार।
राउत की गाली है स्वीकार
कंगना की "तू" पे FIR.

कंगना का घर तो तोड़ा रे,
दाऊद का घर क्यूँ छोड़ा रे?
थू-थू करते सब धिक्कार।
देख लो बदले की सरकारं

पालघर का पाप भी देखा,
बॉलीवुड संताप भी देखा।
नहीं जनता से है दरकार,
देख लो बदले की सरकार।

केस सुशान्त दबाया जिसने,
यूपी बिहारी मारा जिसने।
संजय संग बैठा धृतराष्ट्र।
देख लो बदले की सरकार।
©पंकज प्रियम

Monday, September 7, 2020

875. रिश्ते क्यूँ रिसते?


जुड़ते हैं यहाँ जो प्यार से बंध के,
करते हैं भरोसा प्यार से बढ़ के।
एक पल में ऐसा होता है क्या?-
रिश्ते भी दिलों के क्यूँ रिसते?

इश्क़ मुहब्बत चाहत नफ़रत,
सूरत शोहरत धन और दौलत।
कुछ भी यहाँ कब पास में टिकते।
रिश्ते भी दिलो के क्यूँ रिसते?

प्यार से बढ़कर क्या है दूजा,
इश्क़ इबादत प्यार है पूजा।
जब प्यार में जीते प्यार में मरते
रिश्ते भी दिलों के क्यूँ रिसते?

दिल जो परेशा होता कभी है,
टूट के दिल जब रोता कभी है।
अपनो के सहारे ही सब रहते,
रिश्तों भी दिलों के क्यूँ रिसते?

माता पिता को छोड़ के तनहा
अपनो का भरोसा तोड़ के जाना।
घर-घर में यही अब किस्से सुनते
रिश्ते भी दिलों के क्यूँ रिसते?
©पंकज प्रियम

Friday, September 4, 2020

874. आदमी

ग़ज़ल
इस क़दर आदमी आजमाया गया,
बेवज़ह भी उसे तो रुलाया गया।

दर्द से कब यहाँ फ़िक्र किसको हुई
ज़ख्म देकर तमाशा दिखाया गया।

दोष ईश्वर को देते मगर सच यही,
आदमी आदमी से सताया गया।

मुँह अगर खोलकर बोल दे जो कोई,
आँख उसको दिखाकर दबाया गया।

जो दिखाया कभी आइना तो प्रियम,
वो समझ रास्ते से हटाया गया।

कवि पंकज प्रियम

Wednesday, September 2, 2020

873 .कोरोना काल मंहगाई

कोरोना में मंहगाई

आलू को बुखार चढ़ा, टमाटर लाल हुआ,
कोरोना से बचे भी तो, नहीं बच पाएंगे।

पार अस्सी पेट्रोल है, डीजल भी कम नहीं,
आग लगी मंहगाई, गाड़ी न चलाएंगे।।

रोजी-रोटी सब गयी, फांकाकशी चल रही,
ऐसे में इलाज भला, ख़ाक करवाएंगे।।

मिले नहीं रोजगार, मौज में है सरकार, 
खरीदे के नई कार, चढ़ के चिढाएंगे।।

जीडीपी का गिर जाना, लाज़िम है सरकार, 
बन्द जब सबकुछ, नीचे ही गिराएंगे।

गिरे सब नेता जब, गिरे सारे अफसर,
खुद ही जो गिर गये, किसको उठाएंगे। 

खर्च सब घट गया, वेतन भी कट गया,
खर्चा पर सरकारी, कब से घटाएंगे।

नेता को कोरोना हुआ, बंगला ही मिल गया,
फिलिम देखन लिए, नेट लगवाएंगे।।
कवि पंकज प्रियम

Tuesday, September 1, 2020

872. अरमान कैसा?

अभिमान कैसा?

ये दौलत ये शोहरत ये सम्मान कैसा?
ये जीवन उधारी तो' अभिमान कैसा?

जहाँ धड़कने भी उधारी किसी की
किसी को वहाँ दे अभयदान कैसा?

पलों से जियादा कहाँ ज़िन्दगी है?
तो पलपल पले ख़ूब अरमान कैसा?

पढ़ा और लिक्खा नहीं हर्फ़ से बढ़,
तो कहना तेरा खुद ही विद्वान कैसा?

उसी के' इशारों पे' चलती है' साँसे,
बँधी डोर पुतली का गुमान कैसा?

कहाँ कुछ लिये आये जाना कहाँ है
फ़क़त चार दिन का है' एहसान कैसा?

बिखर जाएगी देह माटी में मिलकर ,
परिंदों सा उड़ना है आसमान कैसा?

धरा ही रहेगा........ कमाया धरा में,
सफ़र ज़िन्दगी फिर ये सामान कैसा?

प्रियम जो कमाया, उसी का दिया सब
उसी का उसी को किया दान कैसा?
©पंकज प्रियम

871. व्यापार लाशों का

 यहाँ जिंदा मरा है सब,  सजा बाज़ार लाशों का,

विचारों पे लगा पहरा, दिखे अख़बार लाशों का।

यकीं किसपे करे कोई, भरोसा हो भला किसपर-

धरा का देवता करता, यहाँ व्यापार लाशों का।।


©पंकज प्रियम

870. अनमोल ज़िन्दगी

 लॉकडाउन ज़िन्दगी है, जरा खुद को सम्भालो,

अवसाद में जो डूब रहे, ........उनको निकालो।

ये काल कोरोना भी, गुजर जाएगा एक दिन-

अनमोल ज़िन्दगी है,     जरा इसको बचा लो।।


अनमोल जिन्दगी है, जरा इसको बचा लो,

खुशियों का खाद पानी यहाँ रोज ही डालो।

ठोकर भरी राहों में,  यहाँ रोज है चलना-

पग-पग में बिछे काँटे यहाँ खुद को सम्भालो।

869. अभिमान कैसा

अभिमान कैसा?

ये नाम ये शोहरत ये सम्मान कैसा?
उधार की जिंदगी का अभिमान कैसा?

हरेक साँस पे तो धड़कनों का पहरा है,
यहाँ किसी को देना जीवनदान कैसा?

पलों से ज्यादा कहाँ ज़िन्दगी का वजूद,
हरेक उस पल में पलता अरमान कैसा?

हर्फ़ से ज़्यादा पढ़ा और लिखा क्या है?
फिर तेरा खुद को कहना विद्वान कैसा?

उसी के इशारों पे चलती है सबकी साँसे,
नाचती कठपुतलियों का स्वाभिमान कैसा?

कहाँ कुछ लेकर आये, क्या जाना है लेकर
फ़क़त चार दिनों में करता एहसान कैसा?

माटी में मिल जाएगा माटी का यह तन,
परिदों सा यूँ तेरा उड़ना आसमान कैसा?

यहीं रह जाएगा कमाया जो कुछ भी तूने
सफ़र है ज़िन्दगी तो सजाना सामान कैसा?

ईश्वर का ही सबकुछ, मिला जो भी है प्रियम, 
उसी का दिया उसी को करना दान कैसा?
©पंकज प्रियम

1 सितम्बर 2019

Sunday, August 23, 2020

868. ज़िन्दगी


ज़िन्दगी मिली है यार, जियें जैसे दिन चार,
खुद हँसें रोज और सबको हंसाइये।

चाहे दुःख कितना हो, चिंता चाहे जीतनी हो,
मन में उमंग भर, खुशी बरसाइये।

ज़िन्दगी है अनमोल, समझें अगर मोल,
हर दिन हर पल,  इसको बचाइये।

ज़िन्दगी से बढ़कर, नहीं होता कुछ और
इसको को बचाना कैसे, सबको बताइये।।

छोड़ चिंता लटपट, मत कर खटपट, 
समझ के झटपट, जिन्दगी बचाइये।

राग नहीं द्वेष नहीं, रार रखें शेष नहीं,
प्रेम कर सबको, दिल में बसाइये।

व्यस्त रहें मस्त रहें, खूब अलमस्त रहें, 
योग ध्यान साधना में, मन को रमाइये।

दिल खोल सब कहें, नहीं कभी चुप रहें
दर्द जब पिघले तो, दरिया बहाइये।
3
तन मन तब धन, यही मंत्र जीवन,
ध्यान रख इसका ही, जीवन सँवारिये।

अपनो से प्यार कर, सबको दुलार कर, 
मित्र व्यवहार कर,  प्रेम बरसाइये।

हार-जीत छोड़कर, संग-संग साथ चल,
मन अवसाद हर, खुशियाँ मनाइये।

जिन्दगी है वरदान, उपहार भगवान,
मोल को समझकर, खुद को बचाइये।

©पंकज प्रियम






Friday, August 21, 2020

867. राम नाम कहिये

राम नाम भजिये

राम नाम जप यार, होगा तब बेड़ा पार।
प्रभु कृपा तनमन, राम राम भजिये।

राम कृपा तनमन, राम कृपा जनगण,
रामकृपा सबकुछ, राम राम कहिये।

गङ्गाजल कलकल, पानी सरयू निर्मल,
केवट उद्धार किया, राम नाम बहिये।

अहल्या उद्धार किया, ताड़का संहार किया।
वही प्रभु राम पथ , संग-संग रहिये।

©पंकज प्रियम

866. आपदा में अवसर

आपदा में अवसर,

कोरोना के काल में, हॉस्पिटल मालामाल,
काट रहे चाँदी कैसे, किसको बताएंगे।

इलाज के नाम पर, लूट रहे बारबार
दिन एक लाख-लाख, कहाँ से जुटाएंगे।

मरीज है परेशान, संगी साथी हलकान,
सबका ही एक हाल, किसको बचाएंगे।

आपदा में अवसर, कहते हैं इसको ही,
लाश का क़फ़न बेच, कार को सजाएंगे।।
कवि पंकज प्रियम

Thursday, August 13, 2020

865.कोरोना से भी खतरनाक

कैसर से भी खतरनाक अवाँछित कार्य के दबाव
काम का दबाव और मौत
कवि पंकज प्रियम

व्यथित हूँ यह सुनकर की PTI के राँची ब्यूरोहेड पी बी रामानुजम जी ने आत्महत्या कर ली है। हमेशा चेहरे पर मुस्कान लिये रहते थे। जब भी बात होती बहुत शांत और शालीनता से अपनी बात रखते। कहा जा रहा है कि संस्थान के कार्य दबाव के कारण उन्होंने यह कदम उठाया। मौत के कुछ पहले ही देर रात आख़िरी ख़बर भी फाइल की जो उनकी कर्तव्यनिष्ठा बताने के लिए काफी है। सोचिए जो व्यक्ति मरने जा रहा हो वह अपने संस्थान के लिए अंत समय मे भी  आयी ख़बर को भेजता है। 
किसी के भी कार्य के दौरान या घर पर आत्महत्या की खबर बहुत ही व्यथित करने वाला होता है. यूँ तो आत्महत्या के कई कारण हो सकते हैं लेकिन कार्य में अवांछित दबाव कैंसर से भी खतरनाक होता है. चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो लेकिन कार्य की गुणवत्ता कभी भी दबाव से नहीं आती. व्यक्ति कार्य अपने घर-परिवार के लिए ही करता है लेकिन वही कार्य अगर उसके मन की शांति भंग करे. घर -परिवार के लिए वक्त नहीं मिले और अवांछित दबाव हो तो वह ज्वालामुखी की तरह फट जाता है. या तो वह विद्रोह के स्वर धर लेता है या फिर स्वयं का जीवन खत्म करने पर अमादा हो जाता है. घर -परिवार में भी जब अनावश्यक तनाव होता है तभी अपनी जान लेने का कठिन निर्णय ले लेता है. 
अपने 15 साल की सक्रिय पत्रकारिता में मैंने स्वयं महसूस किया कि विशुद्ध पत्रकारिता के लिए हरवक्त संक्रमण काल होता है। काम का दबाव हरवक्त रहता है , 1 ब्रेकिंग का छूटना आपके 99 एक्सलूसिव खबर पर पानी फेर देता है। उसपर से हरवक्त कम्पनियों की कोस्ट कटिंग के बहाने ...अभी कोरोना काल में सभी की जान खतरे में हैं। लोग घरों में बैठकर टेलीविजन पर मौत के आंकड़ों को देखकर मीडिया और सरकार को कोसते रहते हैं लेकिन उन्हें यह पता नहीं कि कितना खतरा मोल लेकर मीडिया, पुलिस, सरकारी कर्मी, अधिकारी कार्य करते हैं। आज पूरी दुनियां घरों में कैद है लेकिन हम जैसे लोग जान पर खेलकर रोज ऑफिस जाते हैं, लोगों से मिलते हैं काम करते हैं। निजी कंपनी हो या फिर सरकार, आज सबको अपने लक्ष्य को पूर्ण करने का दबाव झेलना पड़ रहा है। कोरोना ने सबको बाहरी बैठक, आयोजन पर रोक लगाया तो लोगों ने zoom ,गूगल और jio जैसे app ढूंढकर मीटिंग शुरू कर दी। पहले तो ऑफिस आवर में ही मीटिंग होती थी अब तो रात के 9 बजे या फिर छुट्टियों के दिन भी मीटिंग के लिए तत्काल व्हाट्सएप पर मैसेज आ जाता है। अब आप मर रहे हों या जी रहे हों, निकर में हों या लुंगी में मीटिंग में जुड़ना पड़ता है। महीनों तक वेतन न मिलने के बावजूद घर में क्या हालत है? कैसे जी रहा है यह देखने समझने की फुरसत न तो निजी कंपनियों को है और न ही सरकार को, उसे बस हर हाल में अपनी पीठ थपथपाने के लिए अनप्रैक्टिकल टारगेट पूर्ण कर के दिखाना है। चाहे इसके लिए लोग दबाव में आकर आत्महत्या ही क्यों  न कर लें। 2 मिनट का मौन रखकर शोक सभा होगी, "बेचारा बहुत अच्छा था"- कह हाथ झाड़कर चलते बनेंगे या फिर भाषण देंगे आख़िर आत्महत्या क्यों की, कायर था आदि-आदि। मैं भी आत्महत्या को गलत ही मानता हूँ लेकिन कुछ तो ऐसी परिस्थितियां आ ही जाती है जब लोगों के सोचने समझने की सारी शक्ति खत्म हो जाती है। बात 2014-15 की है तब मैं पाकुड़ में पदस्थापित था। जिस लोकल ट्रेन से सफ़र कर रहा था उसमें अंडाल स्टेशन पर एक 25-26 साल का आर्मी का जवान हमारी बोगी में चढ़ गया जबकि उसके बाकी साथी दूसरी बोगी में थे। कई बार उतरने की कोशिश करता रहा। हम सभी समझ रहे थे कि शायद जल्दबाज़ी में गलत बोगी में चढ़ा है इसलिए उतरना चाह रहा है। हम सबने मना  किया कि अगले स्टेशन पर बोगी बदल लेना। ठंड में भी वह पसीने से तरबतर था। खुद में बड़बड़ा रहा था कि-  मेरी कोई गलती नहीं है मेरी माँ बीमार थी इसलिय घर आया था। उसकी बातों से लग रहा था कि शायद छुट्टी नहीं मिलने के कारण ड्यूटी से भागकर अपनी माँ को देखने आया हो और अब दण्ड का डर सता रहा हो। वह कई बात गेट के पास जाता फिर अंदर बैठ जाता। यही क्रम चलता रहा। फिर वह गेट के साथ लगकर खड़ा हो गया। ट्रेन ने जैसे ही अपनी रफ़्तार तेज की उसने हाथ छोड़ दिया और खडाक..........।
सभी अवाक......। ट्रेन इतनी रफ्तार में थी कि रोकी नहीं जा सकी। उस पूरी रात मैं सो नही  पाया और आज भी वह घटना जेहन से जाती नहीं। पिछले दिनों सुशान्त की आत्महत्या की ख़बर आयी तो मैंने एक कविता लिखी थी कि आत्महत्या करनेवाला हीरो नहीं हो सकता है। हालांकि अब यह हत्या का मामला नज़र आ रहा है अतः मैंने अपनी उस कविता की बलि दे दी है। हालांकि आत्महत्या को मैं कभी सही नहीं मानता और इसे जीवन के संघर्षों से भागने का सबसे आसान तरीका समझता हूँ लेकिन किसी के लिए भी अपनी जान लेना बहुत कठिन होता है। खुद से अधिक अपने परिवार और बच्चों की चिंता सामने आती है। कोरोना में इस गम्भीर संकट में रोज ऑफिस जाता हूँ, सरकार के लक्ष्य को प्राप्त करने के उपरी दबाव में लगतार कार्य करता हूँ, लोगों से मिलता हूँ। यह सोचकर ही डर लगता है कि कुछ हुआ तो फिर बच्चों को कौन देखेगा? घर परिवार कौन संभालेगा? आप सोच सकते हैं कि ऐसे कितने ही सवालों से जूझने के बाद रामानुजम जैसे वरिष्ठ पत्रकार को भी आत्महत्या जैसे कदम उठाना पड़ा होगा। पत्रकार पूरी दुनिया से सवाल कर सकता है लेकिन मीडिया संस्थानों पर ही सवाल नहीं उठा सकता है। अगर किसी ने हिम्मत की तो उसे नौकरी से निकाल दी जाती है। यही स्थिति सरकारी गैर सरकारी सभी जगह लागू होता है। प्रबंधन में शामिल बड़े अधिकारी या पत्रकार अपनी कुर्सी बचाने के लिए कर्मचारियों से अधिक प्रबंधन के प्रति समर्पित हो जाते हैं। मैंने कई बार अपने यहाँ कर्मचारियों के हित में बड़े अधिकारियों से लड़ाई मोल ले ली जिसका खामियाजा हमेशा भुगतना पड़ा लेकिन मैंने देखा है कि जिनके लिए आप लड़ाई लड़ते हैं, अपने प्रबंधन से झगड़ा मोल लेते हैं वही मातहत कर्मचारी सिर्फ अपना स्वार्थ देखते हैं और जब वक्त आता है तो वही आपके साथ खड़ा नहीं होते। इसलिए ज़िन्दगी आपकी अपनी है सबको अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है। जिंदगी संघर्ष का नाम है इसे जीयें और अपने अंदर के तनाव को परिवार और दोस्तों में शेयर करें। खुद को सृजनात्मक कार्यो में इतना व्यस्त कर दें कि तनाव फटकने का नाम न ले। सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत रखें। भगवान ने जन्म दिया है तो भोजन भी वह देगा। कोई न तो किसी का जीवन चलाता है और न कुछ बिगाड़ ही सकता है। सत्य परेशान जरूर होता है लेकिन जीत सदैव उसी की होती है इसलिए मुश्किलों से घबराएं नहीं और ज़िन्दगी को खुशहाल बनाएं। योग साधना करें, पूजा पाठ करें, भजन करें या जो भी आपकी पसंद की चीज हो वही करें। 

अभी लिखता हूँ। बहुत लिखना बाकी है

Tuesday, August 11, 2020

864. माधव

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं

काल चक्र से परे हो मोहन, तुम्हीं बताओ पड़े कहाँ हो,
पार्थ सारथी बने हो माधव, जहां जरूरत खड़े वहाँ हो।
तुम्हें ही ढूंढे है जग ये सारा, तड़प रहा है ये दिल हमारा-
अभी जरूरत तुम्हारी केशव, चले ही आओ बसे जहाँ हो।।

नहीं धरा में नहीं गगन में,  न तुम यहाँ हो न तुम वहाँ हो,
खोजा सबने घर के अंदर, तुम्हीं बताओ न तुम कहाँ हो।
नहीं पता है किसी को तेरा, अजब रचा है ये खेल तेरा-
करे मुहब्बत तुम्हें जो कान्हा, यही बताओ न तुम वहाँ हो।।

सूनी-सूनी है ब्रज की गलियाँ, सुना गोकुल पड़ा है माधव,
हुआ प्रदूषित यमुना सारा, कलिया का फन खड़ा है माधव।
तड़पती मीरा तड़पती राधा, तड़पती गोकुल की गोपियाँ सब,
सिसकती वृंदावन की गलियां, मथुरा दुश्मन गड़ा है माधव।।

काल कोरोना का ये संकट, उठा गोवर्द्धन बचाओ माधव,
नाग कालिया को नथा तब, अभी कोरोना भगाओ माधव।
पूतना को था जैसे मारा, कंस से था जगत उबारा-
आयी विपदा बड़ी भयंकर, अभी सुदर्शन उठाओ माधव।।

मची है त्राहि सकल चराचर, चले भी आओ पड़े जहाँ हो,
मिटा कोरोना जगत से अब तो, तुम्हीं बचाओ खड़े कहाँ हो।
चीर हरता खड़ा दुःशासन, पाशा शकुनि बिछा यहाँ पर-
उठा सुदर्शन पुनः हे माधव, बचा लो धरती अड़े कहाँ हो।

कवि पंकज प्रियम

Monday, August 10, 2020

८६३. झारखंड के प्रमुख तीर्थ स्थल

 झारखंड के प्रमुख तीर्थ स्थल

-पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम

प्राकृतिक छटा और खनिज सम्पदा से परिपूर्ण झारखण्ड ऐतिहासिक व् धार्मिक स्थलों के मामले में काफी समृद्ध है. कल-कल करते नदी -झरने, दूर-दूर तक हरियाली बिखेरतीं मनोहारी पहाड़ी श्रृंखलाएं सहज ही आकर्षित करती हैं. इसके साथ की ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल एक अलग ही छाप छोडते हैं. झारखंड ही वह भू-खंड है जहाँ किसी न किसी देवी और देवताओं का वास रहा है . प्राचीन ग्रंथो में इसका स्पस्ट उल्लेख है. प्रस्तुत है झारखण्ड के प्रमुख तीर्थ स्थल-

 

 

बैद्यनाथ धाम -देवघर

बाबा धाम के नाम से पुरे विश्व में मशहूर देवघर झारखंड की पहचान है जहाँ पूरी दुनिया से लोग कामना लिंग को जल चढाने आते हैं. हर साल सावन में लाखो श्रद्धालु सुल्तानगंज से गंगाजल लेकर १०५ किलोमीटर पैदल चलकर देवघर आते हैं और बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करते हैं. पूरा महिना बोलबम के नारों से गूंजता रहता है. बैद्यनाथ मंदिर भगवान शिव के सबसे खास  12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मंदिर परिसर में ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान शिव का मुख्य मंदिर है और साथ में 22 मंदिरों की श्रृंखला है।

देवघर ‘झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी’ के रूप में भी प्रसिद्ध है। जिसके आसपास कई धार्मिक पर्यटन स्थल हैं

 

 

1 नंदन पहाड़

 झारखंड के देवघर जिले में एक पहाड़ी की चोटी पर बना एक मनोरंजन पार्क है। आपको बता दें कि यह पार्क कई गतिविधियों के साथ एक पिकनिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यह पार्क इतना इतना ज्यादा आकर्षक स्थल है जहां हर उम्र के लोग यात्रा करते हैं। इस पार्क के क्षेत्र में लोग बोटिंग का मजा भी ले सकते हैं और सूर्योदय के आकर्षक दृश्य भी देख सकते हैं। अगर आप झारखंड की यात्रा करने की योजना बना रहें हैं तो इस पार्क को अपनी लिस्ट में अवश्य शामिल करना चाहिए।

 

2 तपोवन गुफाएँ और पहाड़ी

तपोवन देवघर से महज 10 किमी दूर स्थित है, जहां पर एक पवित्र शिव मंदिर स्थित है जिसे तपोनाथ महादेव के नाम से जाना जाता है। मंदिर के अलावा इस स्थान पर कई गुफाएं भी स्थित हैं जिसमें से एक गुफा में एक शिव लिंगम स्थापित है। इस मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यहां पर ऋषि वाल्मीकि यहां तपस्या करने के लिए आए थे।

 

३ नौलखा मंदिर

मुख्य मंदिर से करीब 1.5 किमी की दूरी पर स्थित है। आपको बता दें कि यह मंदिर 146 फीट ऊंचा है और बेलूर में निर्मित रामकृष्ण के मंदिर के समान है। यह आकर्षक मंदिर राधा-कृष्ण को समर्पित है और इसके निर्माण की लगात 9 लाख रूपये थी जिसकी वजह से इस मंदिर का नाम नौलखा मंदिर रख दिया गया।

 

४ त्रिकुट पहाड़

त्रिकुट पहाड़ देवघर में सबसे रोमांचक पर्यटन स्थल में से एक है, जहां आप ट्रेकिंग, रोपेवे, वन्यजीवन एडवेंचर्स और एक सुरक्षित प्राकृतिक वापसी का आनंद ले सकते हैं। यह एक लोकप्रिय पिकनिक स्थान और तीर्थयात्रा के लिए एक जगह भी है। चढ़ाई पर घने जंगल में प्रसिद्ध त्रिकुटाचल महादेव मंदिर और ऋषि दयानंद की आश्रम है। ट्रायकिट हिल्स में तीन चोटियां होती हैं और सर्वोच्च चोटी सागर स्तर से 2470 फीट की ऊंचाई तक जाती है और जमीन से लगभग 1500 फीट जमीन पर ट्रेकिंग के लिए आदर्श स्थान बनाती है। तीनों चोटियों में से केवल दो को ट्रेकिंग के लिए सुरक्षित माना जाता है जबकि तीसरी व्यक्ति अपनी अत्यधिक ढलानों के कारण पहुंच योग्य नहीं है। रोपेवे पर्यटकों को केवल मुख्य चोटी के शीर्ष पर ले जाता है। देवघर का एक रोमांचक 360 डिग्री दृश्य ट्रायक पहर के शीर्ष से उपलब्ध है।

 

५ बासुकीनाथ मंदिर–

बासुकीनाथ मंदिर देवघर-दुमका राज्य राजमार्ग पर झारखंड के दुमका जिले में स्थित हिंदू धर्म का एक पवित्र मंदिर है, जो देश के सभी हिस्सों से बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा की जाती है जो कि पीठासीन देवता हैं। मंदिर में श्रावण के महीने में भक्तों की भीड़ काफी बढ़ जाती है, इस दौरान न केवल स्थानीय लोग बल्कि देश भर से भक्त यहां की यात्रा करते हैं। माना जाता है कि बासुकीनाथ मंदिर बाबा भोले नाथ का दरबार है।

६ सत्संग आश्रम –

सत्संग आश्रम एक पवित्र स्थान है जहां पर भक्त श्री श्री ठाकुर अनुकुलचंद्र के अनुयायी पूजा करने के लिए एकत्रित होते हैं। आपको बता दें कि सत्संग आश्रम के पर्यटन स्थल के रूप में भी काम करता है क्योंकि यहां पर एक चिड़ियाघर और एक संग्रहालय भी स्थित है।

 

मलूटी-मंदिरों का गाँव

मलूटी झारखण्ड राज्य के दुमका जिले में शिकारीपाड़ा के निकट एक छोटा सा कस्बा है। यहाँ ७२ पुराने मंदिर हैं जो बज बसन्त वंश के राज्यकाल में बने थे। इन मन्दिरों में रामायण तथा महाभारत और अन्य हिन्दू ग्रन्थों की विविध कथाओं के दृष्यों का चित्रण है इतिहासकारों के मुताबिक ये मंदिर 17वीं से लेकर 19वीं शताब्दी के बताए जाते हैं। इन मंदिरों में कई हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित है। जैसे देवी मौलाक्षी, भगवान शिव, विष्णु, मनसा देवी, मां दूर्गा और काली। देवी-देवताओं के अलावा यहां संतों की भी मूर्तियां स्थापित हैं। आप यहां संत बामाख्यापा को समर्पित मंदिर के दर्शन भी कर सकते है। मग्लोबल हेरिटेज फंड द्वारा मालुती मंदिर विलुप्त होती ऐतिहासिक धरोहर के रूप में चिन्हित किया गया है.

 

 

जगन्नाथ मन्दिर

झारखंड की राजधानी रांची की पहाड़ी पर बसा है प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर। वास्तुकला और मंदिर संरचना के मामले में यह मंदिर बिलकुल  पुरी के जगन्नाथ मंदिर के जैसा ही है। दर्शन के लिए भक्तों को पहाड़ी पर पैदल या निजी वाहनों की मदद से पहुंचना पड़ता है। साल में एक बार यहां भी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। जिसमें हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। स्थानीय लोगों के लिए यह मंदिर मुख्य आस्था का केंद्र माना जाता है.

आंजन धाम

झारखंड के गुमला नामक जिले के आंजन गांव में एक गुफा को भगवान हनुमान का जन्म स्थल माना जाता है। हनुमान जी की माता अंजनी के नाम से ही इस गांव का नाम आंजन पड़ा। यह गांव गुमला जिले से लगभग 22 किमी की दूर स्थित हैं. हनुमान जी की जन्मस्थली के कारण यह अब आंजनधाम के रूप में विख्यात है। यह धाम प्राचीन धार्मिक स्थलों में से एक है। साथ ही देश के अंदर यह ऐसा पहला मंदिर है, जिसमें भगवान हनुमान बाल अवस्था में माता अंजनी की गोद में बैठे हैं। रामनवमी के दिन प्रति वर्ष यहां विशाल मेला का आयोजन किया जाता है। हनुमान जयंती पर विशेष पूजा होती है। माता अंजनी पहाड़ की चोटी पर स्थित गुफा में रहती थीं। यह गुफा गांव से दो किमी दूर पहाड़ की चोटी पर है। इसी गुफा में माता अंजनी ने बालक हनुमान को जन्म दिया था। आज भी यह गुफा आंजन धाम में मौजूद है।

पालकोट/पम्पापुर

पंपापुर पहाड़ पर शबरी आश्रम भी है। सीता की खोज करते हुए जब राम व लक्ष्मण माता शबरी की कुटिया में आए थे, तो शबरी ने जूठे बेर खिलाकर उनका आदर-सत्कार किया था। किष्किंधा से कुछ दूरी पर एक गुफा है। जब बालि ने सुग्रीव को भगा दिया, तो सुग्रीव उसी गुफा में आकर छिप गए। इसे सुग्रीव गुफा कहा जाता है। गुफा के अंदर जल कुंड बना हुआ है। रामायण काल में किष्किंधा वानर राजा बालि का राज्य था। यह आज भी पंपापुर (अब पालकोट प्रखंड) में विद्यमान है। यह पालकोट प्रखंड के उमड़ा गांव के समीप स्थित है।

रामरेखा धाम

सिमडेगा मुख्यालय से लगभग 26 किलोमीटर दूर सुरम्य पर्वत पर स्थित रामरेखा धाम है. लोगों का कहना है कि 14 साल के दौरान वनवास अवधि में भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण ने इस जगह का दौरा किया था और कुछ समय के लिए यहां रहते थे। अग्निकुंड, चरण पंडुका, सीता चूल्हे, गुप्त गंगा आदि जैसे कुछ पुरातात्विक संरचनाओं का पता चलता है कि वनवास की अवधि के दौरान उन्होंने इस मार्ग का अनुसरण किया। भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण, हनुमान और भगवान शिव की मूर्तियाँ गुफा में स्थित है। कार्तिक पूर्णिमा पर हर साल यहां एक मेला का आयोजन किया जाता है। विभिन्न राज्यों और सभी समुदाय के लोग यहां आते हैं और उनकी खुशी के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं।

 

 छिन्नमस्ता मंदिर, रामगढ़

 प्रसिद्ध सिद्धपीठ छिन्नमस्ता मंदिर झारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित है, दामोदर और भैरवी नदी के संगम पर स्थित यह भव्य मंदिर देवी छिन्नमस्ता को समर्पित है। छिन्नमस्ता बिना सर वाली देवी हैं जिन्हें कमल के पुष्प पर कामदेव और रति के शरीर पर खड़े रूप में प्रदर्शित किया गया है। यह मंदिर अपने तांत्रिक स्वरूप के लिए ज्यादा जाना जाता है। मंदिर परिसर में 10 मंदिर अलग-अलग देवी देवताओं को समर्पित हैं। कहते हैं की सच्चे मन से की गयी हर कामना यहाँ पूर्ण होती है .

 

भद्रकाली मंदिर -इटखोरी ,चतरा

चतरा के इटखोरी प्रखंड अंतर्गत भादुली गोंव में भद्रकाली माता का प्रसिद्द मन्दिर है. जिसमे भद्रकाली की प्रतिमा एक ही पत्थर को तराश कर बनायीं गयी है . प्राचीन काल में यह शाक्त सम्प्रदाय का केंद्र था . माँ भद्रकाली की महिमा अपरम्पार है .दूर दूर से लोग यहाँ मन्नतें मांगने आते हैं. मंदिर की स्थापत्य कला से यह पाल युगीन लगती है . यह बौद्ध धर्म का भी प्रमुख स्थल है जहाँ भगवान बुद्ध से जुड़े कई अवशेष आज भी मौजूद हैं .

कौलेश्वरी मंदिर

चतरा जिले में ही हंटरगंज प्रखंड में स्थित कोल्हुआ पहाड़ में माँ कोलेश्वरी का मंदिर है जो पत्थर की दीवारों से घिरा है. माँ कोलेश्वरी की प्रतिमा काले पत्थर से तराशकर बनायीं गयी है. इस पहाड़ पर महाभारत काल के कई महत्वपूर्ण चिन्ह मिले हैं.

देवडी मंदिर

रांची -टाटा मार्ग पर तमाड़ में स्थित देवडी मंदिर में १६ भुजी दुर्गा की प्रतिमा है जो महेंद्र सिंह धोनी के लिए काफी शुभदायक रही है. देवडी मंदिर आज पुरे विश्व में प्रसिद्द हो चूका है. रांची से ६० किलोमीटर दूर देवडी मंदिर को जाग्रत स्थल भी माना जाता है. मंदिर भले ही भव्य रूप ले चूका है लेकिन मुख्य गर्भगृह में देवी को कोई बदलाव स्वीकार्य नही है. मंदिर का निर्माण 770 ई के आसपास हुआ है जहाँ ब्राह्मणों के साथ साथ आदिवासी मुंडा पाहन भी पूजा करते हैं.

योगिनी मंदिर

गोड्डा जिला मुख्यालय से १३ किलोमीटर दूर बरकोप पहाड़ी पर माँ योगिनी का मंदिर है. ऐसी मान्यता है की यहाँ माता सती का दायाँ जांघ गिरा था. मंदिर में प्रतिमा के रूप में जांघ के आकार का शिलाखंड है जिसपर लाल वस्त्र चढ़ाया गया है.

बनासो माता

हजारीबाग जिले के विष्णुगढ़-गोमिया मार्ग मार्ग पर स्थित बनासो माता का मंदिर अवस्थित है. यहाँ काफी दूर -दूर से लोग मन्नते मांगने आते हैं. इस मंदिर को लेकर भी कई कथाएं जुडी है.

महामाया मंदिर

छोटानागपुर के नागवंशी राजा ने लोहरदगा के हापामुनी में महामाया मंदिर की स्थापना की. नवरात्र में सबसे पहले संथाल जनजाति के लोग पूजा करते है. १४५८ ,में महाराज शिवदास कर्ण ने इस मंदिर में विष्णु की प्रतिमा स्थापित की.

 

मंगल -चंडी मंदिर

बोकारो के कसमार में स्थित मंगल-चंडी मंदिर में प्रत्येक मंगलवार को भव्य पूजा की जाती है. इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है और हर मंगलवार को बकरे की बलि दी जाती है जिसका सेवन उसी परिसर में लोग करते हैं.

 

झारखण्ड धाम

रांची के करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर झारखंड धाम को झारखंडी के नाम से भी जाना जाता है, गिरिडीह जिले में स्थित इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसमें कोई छत नही है। मंदिर चारों तरफ से घेरा गया है पर ऊपरी भाग खुला हुआ है। यह अनोखा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। महाशिवरात्रि के दिन यहां का नजारा देखने लायक होता है। जब दूर-दूर से श्रद्भालु भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए आते हैं और पूरी रात भव्य मेला लगता है.








 

 







Friday, August 7, 2020

862. खिसियानी बिल्ली

खिसियानी बिल्ली खम्बा नोंचे
कवि पंकज प्रियम

कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री के कल के भाषण पर सवाल उठाया कि  #गोविंद_रामायण है ही नहीं तो पीएम ने बस जुमला फेंक दिया, बहुत ज्ञानी बनते फिरते हैं आदि-आदि, उनके फ़ेसबुक timline में उसी विचारधारा के लोगों ने खूब हां में हां मिलाकर प्रधानमंत्री का मज़ाक उड़ाया। मेरी आदत लकीर के फकीर बनने की कभी नहीं रही है। ढूंढ़ना शुरू किया तो दो किताबें मिली जिसमे गुरु गोविंद सिंह द्वारा गोविंद रामायण लिखने की चर्चा की गई है। दिनेश कुमार माली कृत त्रेता एक सम्यक मूल के पृष्ठ 20 तथा सरोज बाला कृत रामायण की कहानी विज्ञान की जुबानी के पृष्ठ 29 में साफ लिखा है कि गुरु गोविंद सिंह ने 18 वी सदी में  #गोविंद_रामायण की रचना की जिसे 1915 में पंजाबी अनुवाद कर गुरुमुखी में लिखा। बाद में गअब उक्त लेखक ने निश्चय ही पूरी छानबीन और शोध के बाद ही जिक्र किया होगा। मैं लकीर का फकीर नही बनता अगर 2 लेखकों ने वर्षो पहले ही गोविंद रामायण की चर्चा पुख़्ता से अपनी किताब में की है तो हवा में तो बिल्कुल नहीं लिखा होगा कुछ तो शोध और प्रमाण होंगे? तो पीएम ने भी कहीं सुनकर बयान दिया होगा तो इसमें छाती पीटने की क्या बात है? विद्वानों को किसी जाहिल के सुर में सुर मिलाने की वजाय उन तथ्यों को ढूंढकर तब टिप्पणी करनी चाहिए। मैं बिना प्रमाण के कभी टिप्पणी नहीं करता।  
दरअसल कुछ लोग अंधविरोध और मोदी से इतनी नफ़रत करते हैं कि भगवान श्री राम के अस्तित्व पर ही सवाल करने लगते हैं। उन्होंने तो रामसेतु पर सवाल खड़ा किया था। रामायण में जिस तरह मूर्खता की चादर ओढ़े धोबी और उसके सुरमे सुर मिलानेवाली जनता ने सीता की पवित्रता पर सवाल खड़ा किया था लेकिन बाद में उन्हें खूब ग्लानि हुई और बारंबार क्षमा माँगी थी उसी श्रेणी में इस तरह के लोग आते हैं। हमारे देश में एक बहुत बड़े वकील और नेता कपिल सिब्बल हैं जो आतंकियो के लिए ,दुष्कर्मियों के लिए मुकदमा लड़ने को टांग उठाये रहते हैं। राम मंदिर बनने पर आत्मदाह करने की बात कई बार कर चुके हैं लेकिन हिम्मत कभी नहीं हुई। आत्मदाह करनेवाला ट्वीट करता है क्या? आग लगा लो किसने रोका है, वैसे भी बोझ हो भारत के लिए,खाओगे देश की और मदद करोगे पाकिस्तान की। एक और नेता ओवैसी है जो बात तो करेगा धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्र और संविधान की लेकिन पार्टी का नाम धर्म विशेष, बात करेगा धर्म विशेष, कोई पीएम, सीएम या गवर्नर इफ़्तार पार्टी करें, मजार में चादर चढ़ाए, हजहाउस का उद्घाटन करे,  हजयात्रियों को रवाना करे, ईद बकरीद, मुहर्रम या अन्य किसी भी धार्मिक स्थल या पर्वो में शरीक हो तब लोकतंत्र खतरे में नहीं पड़ता लेकिन मन्दिर का शिलान्यास अलोकतांत्रिक हो जाता है। बात करता है संविधान की लेकिन उसी संविधान के तहत सर्वोच्च न्यायालय ने जब राम मंदिर निर्माण के पक्ष में निर्णय दिया तो उसे नहीं मानता। यह साफ तौर वे कोर्ट की अवमानना और संविधान का उलंघन है। खुलेआम देश के संविधान को चैलेंज कर कगत है कि 15 मिनट की पुलिस छूट मिले तो दिखा देगा। यह भौंकने की आज़ादी सिर्फ भारत के संविधान ने ही दिया है। दूसरे मुल्कों में जाकर देख ले। 500 वर्षो तक जिस मामले को बेवजह लटका कर रखा गया, जिसके लिए कितनी पीढियां खत्म हो गयी, वह अगर हल हो गया तो इन लोगों को हजम नहीं हो रहा है। जांच में साफ हो चुका है कि धारा 370 और रामजन्म भूमि के फैसले से लोग इतने बैचेन हुए की आम आदमी पार्टी के दफ्तर में दिल्ली दंगे की साजिश रची गयी। इस तरह की अरे अब तो छोड़ो, अब तो हिन्दू मुस्लिम की सियासत बन्द करो। सदियों का मुकदमा खत्म हो गया है अब तो चैन सुकून से रहो। पहले कहते थे कि कोर्ट जो निर्णय देगी वह मान्य होगा लेकिन कोर्ट के निर्णय के बाद से ही पलटी मार गया। अरे जो अपनी जुबान का नहीं वह क्या देश का होगा। हमें ऐसे नेता, तथाकथित अर्बन नक्सली और देश के छुपे गद्दारों की पहचान करनी होगी और फिर वही अखण्ड भारत रामराज्य की स्थापना करनी होगी।