Sunday, October 29, 2023

971.प्रेम नगरी

ताजमहल को मानते, सभी प्रेम आधार।
लेकिन सब नहीं जानते, क्या है सच्चा प्यार।।

मूरख मानुष मानते, जिसको प्रेम प्रतीक।
लहू सना एक मक़बरा, कैसे इश्क़ अतीक?
शाहजहाँ का प्रेम तो, झूठ खड़ा बाज़ार। 
एक नहीं मुमताज़ थी, बेगम कई हज़ार। 
उसके पहले बाद फिर, 

Wednesday, October 18, 2023

970. मैया

सुन ले मैया मेरी पुकार 

तू है जग की तारणहार 

अपनी शरण में ले -ले माँ 

कर दे मेरा बेडा पार, 

ओ माँ ... तू है जग की तारणहार.


शुम्भ-निशुम्भ को मारे तू 

चंड-मुंड संहारे तू 

तू है मैया जगदम्बा 

तेरी महिमा अपरम्पार 

ओ माँ... तू है जग की तारणहार.


सारे जग की दुलारी है 

बम भोले की प्यारी है 

तुझसे ही है सारा जहाँ 

करती है तू सब को प्यार 

ओ माँ तू है जग की तारणहार 


तू तो दुर्गा काली है 

तेरी कृपा निराली है 

भक्तों को सब देती माँ

दुष्टों को करे संहार 

ओ माँ तू है जग की तारणहार . 


पंकज प्रियं 

969. शेरावाली

आये तेरी शरण, कर थोडा रहम 

सुनले शेरावाली, तू है जोतावाली. 

कर दे तू सबको निहाल. ओ मेहरावाली 


तेरे जग में यहाँ, बच्चे-बूढ़े सभी 

भूखे-नंगे हैं माँ. सूखी फटती जमीं 

है दुनिया बड़ी बेहाल, ओ शेरावाली 


महिषासुर को मारा, सारे जग को तारा 

तुझमे शक्ति अगम, तू है दुनिया धरम 

राम का भी किया बेडा पार. ओ जोतावाली 


आया जो भी शरण, किया सबका करम 

रोता -रोता आया. हँसता -गाता गया .

करती है सब तू कमाल. ओ शेरावाली . 

पंकज प्रियम 

Thursday, October 12, 2023

968. साहित्योदय गीत

साहित्योदय ...साहित्योदय, साहित्योदय--साहित्योदय 

साहित्य, कला और संस्कृति का संसार है

साहित्योदय मंच हमारा लगता एक परिवार है. 

साहित्योदय ...साहित्योदय, साहित्योदय--साहित्योदय 


साहित्य सृजन और मंचन का आधार है 

माटी को मिल जाता सही आकार है .

नई कलम हो या फिर कोई स्थापित हस्ताक्षर 

खिल उठती कलियाँ आकर, बोल पड़े सब पत्थर. 

गंगा की पावन सी धारा, यमुना कल-कल धार है.

साहित्योदय मंच हमारा लगता एक परिवार है. 


भारत माता की चरणों में, करता जो नित वन्दन

विश्वपटल के भाल दमकता, बनके सुगन्धित चन्दन

देशप्रेम की धारा अविरल, बहती जिसके अंदर,

प्रेम का सागर उमड़े हरपल, है जो लफ्ज़ समंदर 

संकल्प हिमालय सा लेकर, करता जग हुँकार है. 

 साहित्योदय मंच हमारा लगता एक परिवार है. 


उम्मीदों का दीप जलाकर, जग को रोशन कर देता.

नफ़रत के अल्फाज़ मिटाकर, शब्द प्रियम भर देता. 

भारती -भारत को सादर कर, पंकज दल का अर्पण.

संग्राम विचारों का होता पर करते दिल का समर्पण .

अंतर्नाद सुनो सब दिल से, करता तुमसे प्यार है. 

साहित्योदय मंच हमारा लगता एक परिवार है. 


काव्य का सागर ज्वार उठाकर, अश्क रुदाली पीता.

शब्द मुसाफिर बनकर जिसने काल कोरोना जीता. 

जन रामायण ग्रन्थ रचाकर, रामकृपा जो पाता. 

लफ्ज़ मुसाफिर बनकर ये तो माटी को महकाता .

काव्य की धारा कल-कल बहती, अनुशीलन आधार है 

साहित्योदय मंच हमारा लगता एक परिवार है. 

साहित्योदय ...साहित्योदय, साहित्योदय--साहित्योदय 



पंकज प्रियम


Thursday, October 5, 2023

९६७. बदल गया जीवन रे

 बदल गया जीवन रे...बदल गया जीवन रे।

स्वच्छ भारत मिशन से..बदल गया जीवन रे।

सुन रे भैया, सुन गे बहिन, आज सबै मिली कहिन।

स्वच्छ हुआ तन-मन रे, बदल गया जीवन रे।

1


गंगा किनारे हर गाँव, नदी-नाला-गली हर ठाँव।

साहिबगंज सुंदर लगे रे, जैसे महावर रंगा पाँव।

स्वच्छ हुआ घर बाहर, स्वच्छ हुआ आँगन रे।

स्वच्छ भारत मिशन से, बदल गया जीवन रे।

2

उधवा का कार्तिक-भानू गांव, जाने का साधन एक नाव।

आया नमामि गङ्गे तो, मिल गया सुख चैन छांव।

घर-घर में जला गैस चूल्हा, जब से मिला गोबर्धन रे,

स्वच्छ भारत मिशन से, बदल गया जीवन रे।

बदल गया जीवन रे, बदल गया जीवन रे।।

3

घर-घर शौचालय बना तो बढ़ गया मान-सम्मान।

नाडेप और सोख्ता गड्ढा से, कचरे का हुआ निपटान।

भष्मक में पैड जलाकर, माहवारी प्रबंधन रे।

स्वच्छ भारत मिशन से, बदल गया जीवन रे।

बदल गया जीवन रे, बदल गया जीवन रे।


पंकज प्रियम