शारदे माता सरस्वती, चरण नवाऊं शीश।
भारती वीणावादिनी, दे मुझको आशीष।
रुके न मेरी लेखनी, दो इतना वरदान।
सबकी पीड़ा हर सकूँ, करूँ जगत कल्याण।
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
शारदे माता सरस्वती, चरण नवाऊं शीश।
भारती वीणावादिनी, दे मुझको आशीष।
रुके न मेरी लेखनी, दो इतना वरदान।
सबकी पीड़ा हर सकूँ, करूँ जगत कल्याण।
मुक्तक घटा घनघोर है छाई , लगे ज्यूँ शाम गहरायी. दिखे न राह कुछ आगे, लगे ज्यूँ धुंध लहरायी. मगर जब बात बच्चों की, भला माँ-बाप क्या सोचे- पकड़ छतरी निकल आये, भले बरसात है आयी.. ✍️पंकज प्रियम