समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
Friday, April 23, 2021
912.बजरंगी अंदर है
Wednesday, September 23, 2020
881.कवि का कर्म
Sunday, May 31, 2020
.842. तम्बाकू
○तम्बाकू
अगर जीना तुम्हे जीवन, अभी छोड़ो ये तम्बाकू,
अगर मरना तुम्हें इस क्षण, नहीं छोड़ो ये तम्बाकू।
नहीं सिगरेट, न पी बीड़ी, नहीं खाओ कभी खैनी-
जहर सब मौत के साधन, नज़र मोड़ो ये तम्बाकू।।
अभी संकल्प तुम कर लो, नहीं खाना न तम्बाकू,
अगर जीवन तुम्हें प्यारी, कभी पीना न तम्बाकू।
नहीं गुटखा , नहीं जर्दा, नहीं गांजा, नहीं कुछ भी
नशा इस रोग को घर में, कभी न लाना न तम्बाकू।।
©पंकज प्रियम
Tuesday, May 26, 2020
841. ज्वार हो
ज्वार हो
रोक सकता कौन उसको, जिस नदी में धार हो,
डूबता माझी कहाँ जब, हाथ में पतवार हो।
बन्द कर दो रास्ते सब, या खड़ी कर मुश्किलें-
तोड़ देगा साहिलों को, जिस समंदर ज्वार हो।।
मोड़ सकता कौन उसको, जो पवन रफ़्तार हो,
वो भला कब हारता जो, खुद बना हथियार हो।
व्यूह रच लो चाह जितनी, वीर योद्धा कब रुका?
जीत लेता हर समर को, जिस हृदय यलगार हो।।
जीत सकता कौन उसको, जो स्वयं ललकार हो,
वक्त से पहले निकल कर, जो खड़ा तैयार हो।
फेंक पाशे चाल जितनी, अब नहीं कुछ हारना-
ठान ले जो दिल प्रियम तो, स्वप्न हर साकार हो।।
अब चलो आगे बढ़ो तुम, वक्त की दरकार हो,
कौन रोकेगा तुझे अब, तुम समय हुंकार हो।
व्यूह रचते सब रहेंगे, तुम समय के साथ चल-
छेड़ना क्या युद्ध उससे, जो गया ख़ुद हार हो।।
वो भला कब जंग जीता, जो गया मन हार हो,
हारता है हर समर जो, देखता पथ चार हो।
शस्त्र दुश्मन देह जीता, मन वही है जीतता-
त्यागता हर द्वेष मन से, दिल भरा जो प्यार हो।।
शब्द ही जब ढाल हो औ' शब्द ही तलवार हो,
शब्द ही रणभूमि सजकर, युद्ध को तैयार हो।
शब्द दुश्मन शब्द साथी, देखना यह जंग रोचक-
शब्द से खुद को बचाना, शब्द से ही वार हो।।
©पंकज प्रियम
©पंकज प्रियम
Wednesday, May 6, 2020
828. गन्दी तस्वीर
कौन कहता है कि भारत में मंदी है,
कौन कहता है कोरोना तालाबंदी है।
जरा देख लो दारू की दुकानों में-
भीड़ की तस्वीर कितनी गंदी है।।
©पंकज प्रियम
Sunday, May 3, 2020
825. मधुशाला
देख लो शासन वालों ने, क्या गज़ब कर डाला है,
बन्द रखा है शिवालों को, खोल दिया मधुशाला है।
लॉकडाउन के पीरियड में, जब सारे कैद घरों में तो
दवा न मिलती है लेकिन, खुल गया दर हाला है।।
©पंकज प्रियम
824 किरदार
क़िरदार
लिखूंगा तो कहोगे, क्यूँ यही हरबार लिखता है,
जो दिखता है जमाने में वही अख़बार लिखता है।
फिज़ाओ में जरा देखो ज़हर किसने अभी घोला-
प्रियम यूँ ही नहीं सबका सही किरदार लिखता है।।
©पंकज प्रियम
Wednesday, April 8, 2020
811. गांव का जीवन
मुक्तक
विधाता छंद
अभी बैठे सभी आँगन, .........सुहाना दृश्य मनभावन,
सभी जब व्यस्त कार्यों में, सुवासित क्यूँ न हो तनमन।
सकल परिवार ही देखो, .........समर्पित हो गया जैसे-
समय के साथ का संगम, व्यस्थित गाँव का जीवन।।
नहीं है दौड़ शहरों सी,........ नहीं है खौफ़ का मंजर,
चमकते अक्स खुशियों से, नहीं दिल में चुभा ख़ंजर।।
सभी करते यहाँ मिहनत, .....परिश्रम ही बड़ी दौलत-
पसीने से उगे सोना, ...............जमीं चाहे रहे बंजर।।
©पंकज प्रियम
Saturday, April 4, 2020
807. शैतान हुआ जाता है
देखकर ये भारत भी हैरान हुआ जाता है,
कि कोई अपना भी शैतान हुआ जाता है।
दिल में बसाया हरवक्त हिंदुस्तान ने राणा-
दौर संकट में तू मुसलमान हुआ जाता है!!
©पंकज प्रियम
Friday, April 3, 2020
805. उम्मीद का दीया
मौत के इस मंजर में, आओ एक उम्मीद जगायें,
मन का तिमिर मिटाने को आओ एक दीप जलायें।
बहुत घनेरा तमस है फैला, कोरोना के साये में-
जग से इसका खौफ़ मिटाने, आओ एक दीप जलायें।।
©पंकज प्रियम
Thursday, April 2, 2020
803. कोरोना
कोरोना बन आया रावण, हे राम इसे संहार करो,
घर में कैद हुआ है मानव, सबका बेड़ा पार करो।
कोरोना की शक्ति से, सकल चराचर मूर्च्छित है-
संजीवनी बूटी ला बजरंगी, सबका तो उपचार करो।
©पंकज प्रियम
रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं
Friday, March 27, 2020
800. कोरोना का संहार करो
नवरात करूँ जगराता, माता तुम सबपे उपकार करो,
महिषासुर घाती माता, कोरोना संहार करो।
घर में कैद हुआ है मानव, बाहर विचरे ऐसा दानव-
रक्तबीज बन बैठा राक्षस, कोरोना पे वार करो।।
Thursday, January 16, 2020
779. चितवन
चितवन
मुक्तक
1222 1222 1222 1222
बड़ी क़ातिल कटारी है, तुम्हारी धार ये चितवन,
उतर जाती अदा से है, हृदय के पार ये चितवन।
भले हम दूर हों बैठे, अधर खामोश हो फिर भी-
दिलों में बात हो जाती, चले जो यार ये चितवन।।
©पंकज प्रियम
16.1।2020
Sunday, January 12, 2020
777. विवेकानंद
उठो जागो चलो तबतक, मिले मंज़िल नहीं जबतक,
कदम पे तुम भरोसा रख, सफ़र बैसाखियाँ कबतक।
कभी जो जंग हो मन में, सदा दिल को सुनो लेकिन-
नहीं कोई जीत पाता है, दिलों में द्वेष हो तबतक।।
©पंकज प्रियम
स्वामी विवेकानंद जी जयंती पर शत शत नमन
Thursday, January 2, 2020
773.मौत पे सियासत
मौत पे सियासत
मासूमों की मौत पर, नहीं सियासत कभी करो,
लापरवाही जिसने की, दण्डित उसको अभी करो।
क्या हुआ कैसे हुआ? जाँच इसे तुम कर लेना-
अब बच्चों की मौत न हो, वह उपाय सभी करो।।
©पंकज प्रियम
1.1.2020
# कोटा राजस्थान अस्पताल में 99 बच्चों की मौत
Wednesday, January 1, 2020
771. नववर्ष महंगाई
नववर्ष की सौगात
मिली सौगात महंगाई, .........तुम्हें नववर्ष बधाई,
सफ़र भी हो गया महंगा, किचन में आग लगवाई।
सुविधा देते नेता को,.... कटाकर जेब जनता की-
बढ़ा देते सभी कीमत, .....बता घाटे की भरपाई।।
©पंकज प्रियम
#रेल टिकट, हवाई ईंधन और रसोई गैस की कीमत बढ़ी
770. वर्ष बदला है।
जमाने से जरा कह दो, फ़क़त ये वर्ष बदला है,
नहीं तो हम यहाँ बदले, नहीं उत्कर्ष बदला है।
सितम चाहे करो जितनी, नहीं मैं हार मानूंगा-
नहीं मेरी कलम बदली, नहीं संघर्ष बदला है।।
©पंकज प्रियम
Monday, December 30, 2019
752. हुस्न ये तेराB
हुस्न
बदन को छू अगर लेता, पवन बेताब हो जाता,
अधर को चूम कर तेरे, अधर भी आब हो जाता।
नहीं कोई करिश्मा है, तुम्हारा हुस्न है ऐसा-
नज़र में डूबकर तेरे, हसीं इक ख़्वाब हो जाता।।
चले जब तीर नैनों से , हृदय के पार हो जाता
लचकती है कमर तो फिर, शहर तक़रार हो जाता।
झटकती ज़ुल्फ़ जो ऐसे, घटा घनघोर हो जैसे-
चले जब चाल मस्तानी, कसम से प्यार हो जाता।।
उड़े खुशबू तुम्हारी जब, पवन अलमस्त हो जाता,
अधर को चूमकर तेरे, अधर मदमस्त हो जाता।
हसीं इक ख़्वाब के जैसी, महकती बाग के जैसी-
नयन में डूबकर तेरे,....प्रियम भी मस्त हो जाता।।
©पंकज प्रियम
Saturday, December 21, 2019
767. आग लगा दोगे
देश जला दोगे?
आंदोलन के नाम पे क्या, तुम सारा देश जला दोगे?
घुसपैठियों की ख़ातिर क्या, घर की नींव हिला दोगे?
शासन से मतभेद अगर है, आसन से तुम बात करो-
अफ़वाहों के भीड़तंत्र में, क्या लोकतंत्र झुठला दोगे?
गुंडागर्दी भेड़चाल में क्या, सबकुछ आग लगा दोगे?
गंगा जमुनी तहज़ीब भूला, खुद को आज दगा दोगे?
लोकतंत्र में आंदोलन की, होती लक्ष्मण रेखा है-
निर्दोषों का खून बहा क्या, रावण राज जगा दोगे?
संविधान के नाम पे क्या तुम संविधान ही तोड़ोगे?
औरों की ख़ातिर क्या तुम अपनो से मुँह मोड़ोगे?
सत्य अहिंसा गाँधीवादी, फ़क़त दिखावा क्या तेरा-
निर्दोषों का खून बहा कानून का सर भी फोड़ोगो?
©पंकज प्रियम
Friday, December 20, 2019
764. ग़ुमराह
किसी अफ़वाह को सुनकर, कभी गुमराह मत होना,
बिना सोचे बिना समझे,..... कभी संयम नहीं खोना।
अगर सहमत नहीं हो तो, प्रदर्शन तुम करो लेकिन-
दिलों में बीज नफऱत का, कभी भी तुम नहीं बोना।।
©पंकज प्रियम