Wednesday, December 22, 2021

935. प्रेम प्रतीक

प्रेम प्रतीक
ताज़महल को मानते, सभी प्रेम आधार।
लेकिन सब नहीं जानते, क्या है सच्चा प्यार?

मूरख मानुष मानते, जिसको प्रेम प्रतीक।
लहू सना इक मक़बरा, कैसे इश्क़ अतीक?
मुर्दा पत्थर काटकर, भर दी जिसने जान।
कटे सभी वो हाथ ही, जिसने दी पहचान।।
क़ब्रगाह में हो खड़ा, करते हैं इज़हार,
लेकिन सब नहीं जानते, क्या है सच्चा प्यार?

शाहजहाँ का प्रेम तो, झूठ खड़ा बाजार।
एक नही मुमताज़ थी, बेगम कई हजार।।
उसके पहले बाद फिर, रखे कई सम्बंध।
प्रेम नहीं बस वासना, केवल था अनुबंध।।
जर्रा-जर्रा ताज का, करता खुद इक़रार,
लेकिन सब नहीं जानते, क्या है सच्चा प्यार?

सच्ची मूरत प्रेम की, जपे सभी जो नाम।
राम हृदय सीता बसी, सीता में बस राम।।
ताज़महल निर्माण में, कटे हुनर के हाथ।
सेतु में सहयोग कर, मिला राम का साथ।।
राम कृपा से गिलहरी, हुई अमर संसार।।
लेकिन सब नहीं जानते, क्या है सच्चा प्यार।

माँ सीता के प्रेम में, विह्वल करुण निधान।
सेतुबंध रामेश्वरम,    अनुपम प्रेम निशान।।
प्रेम शिला जल तैरते, सागर सेतु अपार।
नहीं मिटा इतिहास से, डाले रिपु हथियार।।
लेकिन सब नहीं जानते, क्या है सच्चा प्यार?

प्रेम समझना हो यदि, जप लो राधेश्याम।
सच्ची मूरत प्रेम की, भज लो आठो याम।
प्रेम दरस की चाह तो, आओ यमुना घाट।
यमुना कल-कल धार से, पढ़ो प्रेम का पाठ।
वृंदावन कण-कण दिखे, प्रेम सकल संसार।
लेकिन सब नहीं जानते क्या है सच्चा प्यार।। 

राधा रानी प्रेम की, मनमोहन घनश्याम। 
प्रेम समर्पण साधना, वृंदावन यह धाम।।
अनुपम सृष्टि कृष्ण की, राधा जी के नाम। 
राधे राधे गूँजता, हरदिन सुबहो शाम।
प्रेम सदा निस्वार्थ ही, बनता जग आधार।
लेकिन सब नहीं जानते क्या है सच्चा प्यार।

कवि पंकज प्रियम

(*अतीक-श्रेष्ठ)

Tuesday, December 21, 2021

934.ज्ञान की बातें

बातें कर बस ज्ञान की

जात-पात की बात करो तुम, बात करें हम ज्ञान की।
ज्ञान तनिक जो पाया होता, तुम करते न अज्ञान की।

हम भी कब कमजोर पड़े हैं? जिसपे अड़े पुरजोर पड़े हैं।
शिखा जो खोली नँद मिटाया, चन्द्र सिंहासन दे के बिठाया।
समझ जो पाते ताकत मेरी, करते न अभिमान की।
ज्ञान तनिक जो पाया होता, तुम करते न अज्ञान की।

जन्म से लेकर मरने तक, कर्म-क्रिया सब करने तक।
हरपल देता साथ तुम्हारा, करता सब उद्धार तुम्हारा।
समझ जो पाते कीमत मेरी, कहते न यूँ नादान सी।
ज्ञान तनिक जो पाया होता, तुम करते न अज्ञान की।

सम्मान के भूखे होते केवल, दान-दक्षिणा सामान नहीं।
आन पे जो आ जाये फिर तो, रोकना है आसान नहीं।
शास्त्र सुशोभित शस्त्र भी उठता, जो बातें आती शान की।
ज्ञान तनिक जो पाया होता, तुम कहते न अज्ञान की।

अपनी बातें भूल भी जाते, राम को तुम कल्पित न बताते,
राम से धरती अम्बर सारा, राम नाम फैला उजियारा।
राम का जो अपमान करेगा, क्या स्तर उसके ज्ञान की?
ज्ञान तनिक जो पाया होता, कहते न अज्ञान की।

कवि पंकज प्रियम

जीतनराम माँझी को तत्काल निष्कासित करते हुए कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। संविधान की शपथ लेने वाला ही अगर संविधान की धज्जियां उड़ाये तो वह किसी कुर्सी के योग्य नहीं है। वैसे भी एक एक्सिडेंटल पूर्व मूर्ख मंत्री से और क्या उम्मीद की जा सकती है? इधर jpsc घोटाले पर पर्दा डालने हेतु विधानसभा में भी एक घटिया बयान दिया गया है।

Monday, December 20, 2021

933. मुहब्बत का ठाँव

नफरती दौर में भी एक मुहब्बत का ठाँव दिखा दूँ,
ऐ मतलबी शहर! चल तुझे अपना गॉंव दिखा दूँ।।
कवि पंकज प्रियम

Tuesday, November 2, 2021

932. बुद्धि और लक्ष्मी

जहाँ बुद्धि और ज्ञान
वहीं लक्ष्मी का वरदान

लक्ष्मी लोहा-लक्कड़ और बासन-बर्तन में नहीं वल्कि गणेश यानी बुद्धि के साथ प्रसन्न रहती है। धनतेरस में स्टील, काँच, प्लास्टिक, लोहा इत्यादि खरीदकर आप शनि राहु को आमंत्रित करते हैं। असल में धनतेरस स्वास्थ्य के देवता धन्वंतरि की जयंती है जो समुद्र मंथन में आज ही दिन अवतरित हुए थे। वैदिक काल में स्वास्थ्य को ही सबसे बड़ा धन माना गया इसलिए इस दिन को धन त्रयोदशी या धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा। समय के साथ इस दिन लोग सोने-चांदी की खरीदारी भविष्य हेतु करने लगे। बाद में बाजार ने इस कदर मनुष्य के दिलोदिमाग को अपने चंगुल में फंसा लिया कि लोग धनतेरस पर खरीदारी के लिए इस तरह टूट पड़ते हैं मानो आज के दिन गाड़ी, टीवी, फ्रिज आलमीरा खरीद कर लक्ष्मी जी को डायरेक्ट घर घुसा देंगे। बाजार पूरे साल भर की बिक्री इस एक दिन में कर लेता है। धनतेरस की अगली सुबह का अख़बार देखकर लगेगा नहीं कि कहीं मंहगाई भी है। लाखों-करोड़ों की खरीद सिर्फ़ एक रात में हो जाती है। लोग कर्ज़ लेकर लाखों की गाड़ी और सामान घर में भर लेते हैं। जार्ज पंचम और रानी विक्टोरिया के पुराने सिक्कों के चक्कर मे लोग कई गुणा अधिक कीमत चुकाकर नकली सिक्के घर ले आते हैं। जिनकी जितनी क्षमता कोई लाखो की खरीदारी करता है तो कोई चम्मच और झाड़ू खरीदकर ही लक्ष्मी जी को घर लाने की कौशिश में शनि-राहु को ले आता है। झाड़ू का ट्रेंड ऐसा बढ़ा है कि यह भी अनमोल वस्तु में शामिल हो गया है। आख़िर दिल्ली वाले सरजी का चुनाव चिन्ह भी तो है ऐसे में उसका भाव नहीं बढ़ेगा तो क्या हाथी का बढ़ेगा? 10-20 रुपये का झाड़ू भी धनतेरस पर 100 के पार चला जाता है। जबकि दीपावली पूजन के किसी भी विधि विधान और पुस्तक में इन सारी चीजों की खरीदारी का कोई जिक्र नहीं है। दीपावली दीपों का त्यौहार है। दीपावली 5 दिवसीय पर्वों की शृंखला है। समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी और धन्वंतरि का अवतरण हुआ उसी दिन से पंच दीप महोत्सव की शुरुआत होती है। धनतेरस यानी धन्वंतरि जयंती के बाद नरक चतुर्दशी भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर के वध के पश्चात हुए उत्साह के रूप में छोटी दीवाली मनाई जाती है। इस दिन सभी अपने घर के आगे यम का दीया भी जलाते हैं। दीपावली भगवान श्री राम में अयोध्या आगमन की खुशी में मनाई जाती है। इसी दिन लक्ष्मी ने विष्णु को अपने पति के रूप में वरण किया था।  इसी तरह गोबर्धन पूजा और भाई दूज का अलग महत्व है। दीपावली का हर धर्म में अलग आस्था और महत्व है। सनातन के साथ-साथ सिख और जैन धर्मावलंबियों में भी दीवाली का अपना विशेष महत्व है। दीपावली का हर दिन एक विशेष आध्यात्मिक और वैज्ञानिक तथ्य लिए हुए होता है। दीपावली में मिट्टी के दीपक को शुद्ध घी या तिल ले तेल से जलाने की परपंरा रही है। प्रथम पूज्य गणेश के बाद, प्रकाश पुंज दीप, धन के देवता कुबेर और समृद्धि स्वरूपा माता लक्ष्मी के साथ-साथ महाविद्या के रूप में बही-खाता और कलम की पूजा की जाती है। प्रभु श्रीराम के अयोध्या आगमन पर पूरी नगरी को दीपों से सजाया गया था इसलिए घर-घर में दीप जलाकर अंधकार पर प्रकाश के विजय का पर्व मनाया जाता है। 

 अतः बुद्धिमान बनिये, स्वस्थ रहिए, अच्छी पुस्तकें पढ़िए और माँ लक्ष्मी को प्रसन्न कीजिये। लक्ष्मी की भी पूजा बुद्धि के देव गणेश से ही होती है और माता लक्ष्मी सदैव उनके साथ ही विराजमान प्रसन्न रहती हैं। जहाँ बुद्धि और ज्ञान वहीं लक्ष्मी का वरदान।
कवि पंकज प्रियम

Wednesday, October 27, 2021

931.ज़ख्म मेरा रो रहा

*ज़ख्म मेरा रो रहा*

क्या कहूँ कैसे कहूँ माँ, दर्द कितना हो रहा?
दूर तुमसे हूँ जो हरपल, ज़ख्म मेरा रो रहा।

गर्भ से बाहर निकलकर, किस जहाँ हम आ गये,
पास में तुम भी नहीं हो, ये कहाँ हम आ गये?

दूध की चाहत अधर को, पर दवाई पी रहे,
अंग उलझे तार नस-नस, ज़िंदगी ये जी रहे।

क्या ख़ता थी मेरी ईश्वर, जो सज़ा मुझको दिया,
रातदिन सब पूजते फिर, क्यूँ दगा मुझको दिया?

बालमन भगवान मूरत, नासमझ होते सभी,
दर्द देकर क्या तुझे भी, चैन मिलता है कभी?

तुम कृपा करते हो हरदम, देव दानव पर सदा,
क्यूँ परीक्षा लेते भगवान, पूजते ईश्वर सदा।

मौत से खुद लड़ रहे हैं, तुम तनिक तो साथ दो,
जीतकर बाहर निकलने, तुम जरा सा हाथ दो।
©पंकज प्रियम

Tuesday, October 26, 2021

930. दर्द अब दिखता नहीं

*दर्द अब लिखता नहीं*

क्या लिखूँ कैसे लिखूँ मैं? दर्द अब लिखता नहीं,
कष्ट कितना हो रहा है,   अब कहीं दिखता नहीं।

आयी थी मुस्कान लेकर,     मौत से तू लड़ रही,
दूध के बदले शिरा में,       औषधि ही चढ़ रही।

गोद का अरमान होगा, बेड की किस्मत मिली,
दूर है अपनों से हरपल, नर्स की हिम्मत मिली। 

ज़िंदगी की जंग मुश्किल, जीतना तुझको मगर,
रोक दूँगा राह सबकी,       मौत भी आये अगर।

सांस तुम लेती रहो बस,      मैं हवा देता रहूँगा,
मौत से लड़ती रहो तुम,       मैं दवा देता रहूँगा।

जंग को तुम जीतकर अब, संग अपने घर चलो।
दीप से जगमग जहाँ फिर, रंग होली कर चलो।

हे जगत जननी भवानी,   क्या दया आती नहीं?
जो हुई नवरात्र में फिर,    क्या तुझे भाती नहीं? 

अब सुनो विनती हमारी,  प्रेम करुणा धार दो।
हम सभी संतान तेरी,      माँ भवानी प्यार दो।
©पंकज प्रियम
Day17@hospital

Sunday, October 17, 2021

929. माँ गौरी

माँ गौरी
हरो माँ कष्ट जीवन का, सकल संताप हर लो माँ।
करूँ आराधना हरदम, सभी तुम पाप हर लो माँ। 
सदा खुशियां ही बाँटी है, किसी का दिल नहीं तोड़ा-
हुई अनजान गर गलती, तो' फिर हर श्राप हर लो माँ।।
कवि पंकज प्रियम

928. अजब झारखण्ड की गजब कहानी

 अजब झारखण्ड की गजब कहानी

व्यंग्य संस्मरण


पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जीते जी शोकसभा 

*इससे पहले 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मधुकोड़ा ने सोनिया गाँधी को दी थी श्रद्धाजंलि


खेल-खिलाड़ी और खनिज संसाधनों से परिपूर्ण झारखंड का सियासी गलियारा भी हमेशा चर्चा में रहता है। सियासी पिच पर हमेशा चौके-छक्के लगते रहते हैं। सरकार गिराने से लेकर बनाने और घोटाले घपलों की अमर कहानी तक। आये दिन कुछ ऐसा हो जाता है कि झारखंड दुनियाभर में चर्चा का केंद्र बन जाता है। ताज़ा मामला पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को जीते जी श्रद्धाजंलि और शोकसभा करने का है। झारखण्ड सरकार के कला संस्कृति मंत्री हफीजुल हसन ने एक जनसभा में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जीते जी शोकसभा करवा दी। मधुपुर से पिता हाजी हुसैन अंसारी के निधन के बाद उनकी जगह पर मनोनीत मंत्री हफीजुल हसन ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि एक दुख की।ख़बर है पूर्व मनमोहन सिंह का निधन हो गया है इसलिए सभी 1 मिनट का मौन रखकर शोकसभा करें। गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री का दिल्ली स्थित एम्स में इलाज़ चल रहा है। हफीजुल हसन मधुपुर उपचुनाव में निर्वाचित होकर विधायक बन चुके हैं। इनके पिता हाजी हुसैन अंसारी का झारखंड सरकार में मंत्री रहते हुए निधन हो गया था। झारखंड में कॉंग्रेस-झामुमो गठबंधन की सरकार है और हफीजुल झामुमो कोटे से मंत्री हैं।

 

इससे पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री मधुकोड़ा ने सोनिया गांधी को श्रद्धाजंलि दे दी थी। उसवक्त मैं ईटीवी राँची में कार्यरत था। 30 अक्टूबर 2007 को राँची स्थित कॉंग्रेस प्रदेश कार्यालय में इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि पर शोकसभा आयोजित थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री मधुकोड़ा श्रद्धांजलि देने पहुँचे और संयोग कवर करने सिर्फ मैं ही था। बाहर निकलते ही मैंने गनमाइक लगा दिया। मधुकोड़ा ने जो बयान दिया उससे मैं चौंक गया-उनके शब्द यूँ थे-माननीया सोनिया गांधी ने इस देश की ख़ातिर अपने सीने पर गोलियां खायी है। आज सोनिया गांधी की शहादत दिवस  है। हम सोनिया गाँधी जी को श्रद्धांजलि देते हैं।"

एकबार ज़ुबान फिसल सकती है लेकिन उन्होंने बार-बार इंदिरा की जगह सोनिया का ही नाम लिया। बस फिर क्या था। मैं भागा अपने ऑफिस और ब्रेकिंग न्यूज़- "मुख्यमंत्री मधुकोड़ा ने दी सोनिया गाँधी को जीते जी श्रद्धांजलि".

उसदिन सिर्फ यही ख़बर चलती रही।  सीएम हाउस हरकत में आ चुका था और ईटीवी का प्रसारण रुकवा दिया। लेकिन तबतक ख़बर की आग लग चुकी थी।सभी नेशनल इंटरनेशनल चैनलों से उस फुटेज की मांग होनै लगी।रात के 2 बजे तक मैं सारे चैनलों को वह फुटेज ट्रांसफर करता रहा। उसवक्त व्हाट्सएप या वीडियो ट्रांसफर की सुविधा नहीं थी। फायरवायर से कैमरा-टू-कैमरा वीडियो ट्रांसफ़र करना पड़ता था। उसवक्त कॉंग्रेस समर्थित सरकार थी। ख़बर ने असर दिखाया और  सूत्रों की मानें तो 10 जनपथ से मधुकोड़ा को माफ़ी मांगने का फरमान सुना दिया गया था। बाद में शायद माफ़ी माँगकर मामला सुलझाया गया। 


ख़ैर झारखण्ड की अपनी अलग खूबसूरती है तो हर चीज एक अलग अंदाज़ में होना भी चाहिए। बस बोलना ही है गीत जहाँ बस चलना ही है नृत्य वहाँ सियासी मैदान में झकझुमर तो बनता ही है। 

जोहार झारखंड

कवि पंकज प्रियम

Saturday, October 16, 2021

927.दो बैल और एक इंजेक्शन

दो बैल और एक इंजेक्शन

बबलू पिछले 10 दिन से अस्पताल में है। उसका नवजात बच्चा वेंटिलेटर पर ज़िंदगी और मौत से जूझ रहा है। राहत की बात यह है कि उसके पास आयुष्मान कार्ड है जिससे इलाज का खर्च वहन हो जा रहा है लेकिन जब डॉक्टर ने उसे 32 हजार का इंजेक्शन बाहर से खरीदने को कहा तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी। 
"लेकिन डॉक्टर साहब मेरे पास तो आयुष्मान कार्ड है और सरकार तो कहती है कि 5 लाख रुपये तक का मुफ़्त इलाज होता है?" बबलू रुंआसा होकर बोला।
"तो क्या हुआ? आयुष्मान कार्ड से यहाँ एक लिमिट में ही इलाज होता है। महंगा दवा और सुई बाहर से ही खरीदना होगा।"  

"लेकिन...डॉक्टर सा....इतना महंगा इंजेक्शन कहाँ से लाएंगे?"
"वो तुम जानो, बच्चे को बचाना है तो इंजेक्शन जल्दी लाओ"- डॉक्टर दो टूक कहकर चलता बना।
बबलू हैरान परेशान, किससे मदद की गुहार लगाए। खेती-मजूरी कर तो मुश्किल से दो वखत का खाना जुगाड़ होता है। जो जमा पूंजी थी वह एम्बुलेंस गाड़ी और 10 हजार एडवांस जमा कर दिया है। गाँव में साहूकार को फोन कर अपने दोनों बैल बेच दिया लेकिन उसके 25 हजार ही मिल पाए।
पैसे लेकर डॉक्टर के पास पहुँचा- "साहेब दो बैल था उसको बेचे तो 25 हजार ही मिल पाया। कोई जुगाड़ कर दीजिए न सुई का!"
"यहाँ कोई खैरात नहीं चलता है जाओ और जुगाड़ कर इंजेक्शन लाओ" -"डॉक्टर ने घुड़की दे दी।
बबलू सर पकड़ कर बैठ गया- दो ही तो बैल थे घर में अब क्या बेचकर इंजेक्शन लायें?
"सुनो! यहाँ तुम्हारे मरीज को संभालना मुश्किल हो रहा है। रेफर कर देते हैं बाहर ले जाओ" थोड़ी देर में अस्पताल एक फरमान आ गया। 
"लेकिन सर आप तो कह रहे थे कि बच्चा ठीक हो रहा है फिर अचानक से रेफर क्यूँ?" बबलू के लिए एक नई मुसीबत आन खड़ी हई। 
"जो कहा जा रहा है वह सुनो! यहाँ अब इलाज़ सम्भव नहीं है।" अस्पताल प्रबंधन ने रेफरल लेटर थमा दिया। 
बबलू की परेशानी और बढ़ गयी। वेंटिलेटर सपोर्ट एम्बुलेंस के साथ बाहर ले जाना मतलब 10 हजार का खर्च। नये अस्पताल में फिर से एडवांस और मत्थापच्ची अलग। बच्चे की जान का सवाल था बहरहाल बबलू अपने बच्चे को वेंटिलेटर पर लेकर राँची के लिए निकल पड़ा यह सोचते हुए कि पता नहीं वहाँ क्या होगा?
©पंकज प्रियम

Saturday, August 7, 2021

९२६. सरस्वती वन्दना

 शारदे माता सरस्वती, चरण नवाऊं शीश। 

भारती वीणावादिनी, दे मुझको आशीष।

रुके न मेरी लेखनी, दो इतना वरदान। 

सबकी पीड़ा हर सकूँ, करूँ जगत कल्याण।

Friday, August 6, 2021

925.सोहन लाल द्विवेदी

सोहनलाल द्विवेदी

गाँधी सम्बल बने सदा, देश युग अवतार थे।
भैरवी के वंदना स्वर, ओज के हथियार थे।।
गाँधी दांडी यात्रा में, लाल ही ललकारते।
स्वाधीनता संग्राम में, शब्द  सैनिक सार थे।।

क्रान्ति के हर वाद को जन, मन की वाणी कर दिया।
गांधीवादी धारा को,  राष्ट्रधुन से भर दिया।
देशभक्ति भावना भर , बालमन उद्गार थे।। 
भैरवी के वंदना स्वर/-

पद्मश्री सम्मान भूषित, राष्ट्र के वो भाल थे।
वो द्विवेदी बिन्दकी के, प्यारे सोहन लाल थे।
राष्ट्रकवि पहचान पहले, वीरता  रसधार थे।।
भैरवी के वंदना स्वर/-
*©पंकज प्रियम*

Wednesday, August 4, 2021

924. बारिश

 मुक्तक                                                                                                                                                                           घटा घनघोर है छाई , लगे ज्यूँ शाम गहरायी.                                                                                                 दिखे न राह कुछ आगे, लगे ज्यूँ धुंध लहरायी.                                                                                                 मगर जब बात बच्चों की, भला माँ-बाप क्या सोचे-                                                                                        पकड़ छतरी निकल आये, भले बरसात है आयी..                                                                                                                ✍️पंकज प्रियम

Saturday, July 31, 2021

923.प्रेमचंद

सिपाही थे कलम के जो, अभी भी नाम उनका है।
अटल साहित्य सूरज थे, चमकता काम उनका है।
विषमताओं से रिश्ता था, नहीं पर हार मानी थी-
कलम हथियार कर डाला, सृजन अंज़ाम उनका है।।

लिखा सोज़े वतन जब था, हिली सारी हुकूमत थी।
किया फिर जब्त था उसको, कलम में वो ताकत थी।
भले ही नाम था बदला , नहीं हथियार पर डाली-
बने जो प्रेम धनपत से, मिली उनको मुहब्बत थी।।
©पंकज प्रियम


Thursday, July 29, 2021

922. सावन में दूध


 सावन में दूध 


गत वर्ष एक अख़बार  ने मुहिम शुरू की है कि सावन में सिर्फ दो बूँद से भगवान शिव का अभिषेक करें बाकी दान कर दें। कुछ इसी तरह की दलील pk फ़िल्म में भी दी गयी थी। हिन्दू धर्मों पर प्रहार करने की आज प्रचलन चल गयी है जो जितना सनातनी धर्म को नीचा दिखाएगा वो उतना बड़ा बुद्धिजीवी और धर्मनिरपेक्ष कहलाएगा। दूसरे धर्मों के खिलाफ कुछ बोलने लिखने की इनलोगों की औकात ही नहीं होती। इस तरह मुहिम चलाने से पूर्व सावन में भगवान शिव को दूध से अभिषेक क्यों किया जाता है जरा इसके प्रमाणित शोध की रपट को छाप देते। आप सभी को पता है कि शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने समुद्र मंथन से निकले विष का पान कर लिया था। सावन में भगवान शिव को दूध चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव का दूध से अभिषेक काफी फलदायक होता है, वे जहरीला दूध भी पी जाते हैं। इसी कारण उन्हें दूध चढ़ाया जाता है। भगवान शिव सृष्टि के कल्याण के लिए किसी भी तरह की चीज को अपने अंदर समाहित कर लेते थे, फिर वह चाहे जहर ही क्यों ना हो।
ऐसा कहा जाता है कि सावन-भादो के महीने दूध पीने से लोग बीमार होने लगे यहां तक कि बछड़े भी दूध को पचा नहीं पाते थे तो उसे फिर इतने सारे दूध का किया क्या जाय? दूध को यूँ ही फेंक भी नहीं सकते थे तब किसी ने सलाह दी कि भगवान शिव तो विषहर्ता हैं तो उन्हीं को चढ़ाया जाय। लोगों को ऐसा लगता था कि दूध शिवजी को चढ़ाने से उनका सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं। प्राचीन वैद्यों ने भी बरसात के मौसम में दूध को जहर के रूप परिवर्तित होते प्रमाणित किया है। तो वह तब सारा दूध भगवान शिव को चढ़ा देते थे।  आपको बता दें कि आयुर्वेद में ऐसा माना गया है कि मानसून में दूध और दूध से बने उत्पादों का उपयोग नहीं करना चाहिए। इस मौसम में वात रोग होने की संभावना होती है।, हम वात, पित्त और कफ असंतुलन के कारण अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं।

दरअसल मानसून के मौसम में गर्मी से सर्दी की तरफ अचानक परिवर्तन होता है, जिस कारण हमारे शरीर में वात का स्तर बढ़ता है। यही कारण है कि प्राचीन ग्रंथों में यह बताया गया है कि मानसून के महीने के दौरान भगवान शिव को दूध चढ़ाना चाहिए। इस मौसम में बारिश के कारण घास में कई कीड़े-मकोड़े होने लगते हैं, जो घास के साथ -साथ गाय-भैंसों के पेट में चले जाते हैं। जिस कारण इस मौसम में दूध हमारे लिए सही नहीं होता, वह और भी विषैला हो जाता है। इसलिए इस मौसम में शिवलिंग पर दूध चढ़ाया जाता है।

सावन के महीने में दूध का अधिक सेवन शरीर के लिए हानिकारक होता है। इस महीने में दूध इतना गरिष्ठ होता है कि इसे पचाना आसान नहीं होता। इसलिए आयुर्वेद में सावन भादो के महीने में दूध,दही,साग इत्यादि का सेवन वर्जित किया गया है। बच्चे और बुजुर्गों को अगर देना भी है तो पानी मिलाकर दूध देने की सलाह दी गयी है। सावन का महीना एक ओर जहां वर्षा और हरियाली लेकर आता है वहीं दूसरी ओर संक्रमण और बीमारियों का भी खतरा बना रहता है। इस दौरान कमजोर इम्यून सिस्टम के कारण शरीर को कई बीमारियां अपना शिकार बना लेती हैं। इसलिए ऐसे मौमस में अपने खान-पान का विशेष ध्‍यान रखना चाहिए।

आयुर्वेद में भी सावन के महीने में कुछ ऐसे विशेष आहार हैं जिनका सेवन वर्जित माना जाता है। यही नहीं हमारे शास्‍त्रों में भी इस महीने सात्विक भोजन करने की सलाह दी गई है। इसी वजह से इस महीने बहुत से लोग लहसुन, प्‍याज और मांस-मछली का सेवन छोड़ देते हैं। सावन में दूध का सेवन न करने की सलाह दी जाती है इसी बात को बताने के लिए सावन में शिव जी का दूध से अभिषेक करने की परंपरा शुरू हुई। शिवलिंग की रेडियोएक्टिव क्षमता दूध के विषैले पदार्थों को हर लेती है। वहीं अगर वैज्ञानिक तौर पर देखा जाए तो इस मौसम में दूध पीने से पित्‍त बढ़ता है।

यही वजह है कि पूरे सावन में लहसुन प्याज, माँस मछ्ली और दूध इत्यादि के सेवन पर रोक लगाई जाती है।
✍पंकज प्रियम

९२१. चलो चलें शिवधाम


 बाबा धाम

सावन मास महीना पावन, चलो चलें शिवधाम,
बाबा भोलेनाथ बनाये,....... बिगड़े सारे काम।
बैद्यनाथ के प्रांगण में...........पार्वती के आँगन,
चल कांवरिया जल चढ़ाएं, मिलकर माह सावन।
भारत भूमि झारखण्ड, .........नगरी बाबाधाम।
बाबा भोलेनाथ बनाये--/
बोलबम का नारा बोल, ..... कानों में रस घोल,
पाप किया जो जीवन भर,..सारी गठरी खोल।
मिट जाएंगे पाप सभी,....... लेकर गंगा नाम।
बाबा भोलेनाथ...../
कामना ज्योतिर्लिंग ये, सती हृदय का वास,
पूर्ण मनोरथ होते जो, आये लेकर आस।
खाली झोली भर जाये, भजन करे निष्काम।
बाबा भोलेनाथ बनाये../
©पंकज प्रियम

Monday, July 12, 2021

920.आबादी

पल-पल बढ़ रही,
  सबको ये डंस रही,
    सुरसा के मुंह जैसी,
       रोज फैल जाती है।

धरती आकार वही,
     सब घरबार वही,
         आबादी के बढ़ने से,
             जमीं घट जाती है।

जंगल को काट कर,
   तालाबों को पाट कर,
      आबादी बसाने नई
            बस्ती बस जाती है।

हम दो हमारे दो का,
   नारा लगा वर्षो से,
      नसबंदी करने से
          सत्ता फँस जाती है।

Sunday, June 20, 2021

919. पिता

पिता

पिता अभिमान होता है, 
पिता अरमान होता है।
सृजन के जान पे आयी
पिता कुर्बान होता है।।

जवानी धूप में खोता,
बुढापा तन्हा ढोता है।
बच्चों की याद आये तो
सदा चुपके से रोता है।।

सकल दिन धूप में ढलता
निशा भी आँख में जगती।
बच्चों की देख बेरुखी-
स्वयं अंदर ही जलता है।।

बहुत ही प्यार करता है
हरेक वो ख़्वाब भरता है।
नए जूते देकर खुद
फ़टे जूतों में चलता है।।

सृजन जननी करती है,
पिता खुद नाम देता है।
सफ़र जीवन में हरदम तो
पिता ही काम देता है।।

पिता ही वो फरिश्ता है,
बड़ा नायाब रिश्ता है।
बड़ा करने की चाहत बस
पिता ही ख़्वाब भरता है।।

बच्चों से जख़्म जो मिलता
सदा ख़ामोश सब सहता।
माँ आँसू बहा लेती-
पिता अंदर सिसकता है।।

विदा बेटी को जब करता,
बड़ा वो कश्मकश रहता।
हिमालय की तरह चुपचाप,
स्वयं अंदर पिघलता है।।

सदा तनकर खड़ा रहता,
कभी जो सर नहीं झुकता।
पिता बेटी का बनकर तो,
चरण दामाद भी छूता है।।
©पंकज प्रियम
पितृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

Thursday, May 13, 2021

918.अरमान

जान
कटे हैं शाख सब मेरे, अभी पर जान है बाकी।
बचाने की सदा सबको, मेरी पहचान है बाकी।
उजाड़ी है मेरी साँसे,  मगर आधार है जिंदा-
बचा लूँ जान मैं सबकी, यही अरमान है बाकी।।
©पंकज प्रियम

Friday, April 30, 2021

917. अपनी जान

अपनी जान
छोड़ दो चिंता दुनिया जहान,
बचा लो केवल अपनी जान।

गर करना है उपकार कोई,
बस करना तुम उपचार यही।
बच जाएंगे सबके प्राण,
बचा लो केवल अपनी जान।

मास्क पहनकर घर में रहो,
कष्ट ये कुछ दिन और सहो।
सब रिश्ते नाते कर अनजान,
बचा लो केवल अपनी जान।

स्वार्थ नहीं निःस्वार्थ है ये,
जीवन का परमार्थ है ये।
ईश्वर का प्रदत्त तू है वरदान,
बचा लो केवल अपनी जान।

मौत के आगे सब लाचार, 
बेबस दिखती अब सरकार।
मत चल बाहर सीना तान,
बचा लो केवल अपनी जान।

जो खुद की जान बचा ले सब,
हालात न मुश्किल होंगे तब। 
मौत से लड़ना तब आसान,
बचा लो केवल अपनी जान।

माना कि सफ़र ये मुश्किल है
पर सामने दिखता मंजिल है।
हर जंग में संग रहे भगवान,
बचा लो केवल अपनी जान।
©पंकज प्रियम
30.4.2021

916. विश्वास

विश्वास
यह वक्त गुजर जाएगा पर,
रह जाएगा इतिहास तुम्हारा।
आपदा के अवसर वालों,
होगा बस उपहास तुम्हारा।।

दवा-हवा को बेच के बेशक,
कर लोगे जमा धनदौलत।
हाय लगेगी लोगों की तो,
समझ ले होगा नाश तुम्हारा।

जेब कफ़न में होती नहीं है,
बोझ धरा भी ढोती नहीं है।
कहाँ रखोगे काली कमाई,
मारेगा खुद संत्रास तुम्हारा।

वक्त अभी है सेवा कर लो,
कर्मो की तुम मेवा भर लो।
देकर साँसे भर दो जीवन
जग में हो प्रकाश तुम्हारा।

खुद के लिए सब मरते रहते,
मौत से हरपल डरते रहते।
औरों के लिए जब जी लोगे,
बढ़ जाएगा विश्वास तुम्हारा।

पेड़ लगाओ हवा मिलेगी,
मुफ्त में सारी दवा मिलेगी।
काटोगे जो पेड़ समझना,
होगा सत्यानाश तुम्हारा।

©पंकज प्रियम

915.वक़्त

घनघोर अँधेरा छाता है,
फिर नया सबेरा लाता है।
मन में तुम विश्वास रखो, 
हर वक्त बुरा टल जाता है।

कल नया सबेरा आएगा,
तमस ये सारा मिटाएगा।
ईश्वर पे विश्वास करो तुम,
ये वक्त बुरा टल जाएगा।

©पंकज प्रियम

Wednesday, April 28, 2021

914.कुदरत का बदला

कुदरत का बदला
पीपल को काटकर कैक्टस लगा लिया,
नीम बरगद उजाड़ गमला सजा लिया। 
गाय की जगह कुत्तों को घर बिठा दिया।
नदी, कुआं, तालाब भरकर सबने अब
पानी और गंगाजल बोतल में भर लिया।
हवा कम पड़ी तो ऑक्सीजन भी तुमने
अरे ओ मूढ़ मानव सिलिंडर में भर लिया। 
चंद मिनट के ऑक्सीजन के लिए अब
हजारों-लाखों देने को तुम तैयार हो। 
लेकिन बताना एक बात सच्ची-सच्ची,
करोड़ों- अरबों खर्च कर के भी तुम 
कुछ पल की साँसे खरीद सकते हो क्या?
पेड़ों को उजाड़ तुमने उगाए कंक्रीट के जंगल,
तुम्ही बताओ कुदरत कैसे करे तुम्हारा मंगल।
साँसों की डोर तो ऊपरवाले के हाथ में
जिसे तुमने अति आधुनिकता में भूला दिया।
पूजा पाठ ध्यान को बताकर ढकोसला,
पब, क्लब, मांस मदिरा से जोड़ा रिश्ता।
बाहर, अस्पताल या श्मशान से घर आने पर
 हाथ पैर धोने की परम्परा का उड़ाते रहे मज़ाक,
हवन, पूजन और व्यायाम का भी उड़ाया मज़ाक।
हाथ जोड़ नमस्कार को कहके पिछड़ा तुमने
हग और चुम्बन से जोड़ा नाता अपना। 
फल-दूध की जगह पेट में भर रहे
पिज्जा बर्गर पास्ता ब्रेड का कचरा।
विकास की अंधी दौड़ में सबकुछ भूल गये
तभी तो कुदरत भी ले रहा तुझसे बदला।
प्रकृति कर रही है आगाह हरवक्त
अब भी वक्त है सुधर जाओ वरना
प्रलय आएगी तो मुझे मत कहना।
©पंकज प्रियम

Friday, April 23, 2021

913.सही गलत

है कौन सही, है कौन गलत?
ये वक्त नहीं अब उलझाने का।
जब उलझा देश हो विपदा में,
है वक्त उसे मिल सुलझाने का।
कवि पंकज प्रियम

912.बजरंगी अंदर है

*जो हार गया मन तो दिखता, अगम अपार समंदर है,*
*दुर्गम दावानल दिखता है, पग-पग खूब बवंडर है।*
*मुश्किल तो हरपल आएंगे, लेकिन समझो ताकत को-*
*जो ठान लिया सीता खोजन, तो बजरंगी अंदर है।*
©पंकज प्रियम
संकटमोचन बजरंगी हनुमान की जय

911.साथी हाथ बढ़ाने का

साथी हाथ बढ़ाने का

है वक्त नहीं अब घबराने का,
मौत से जीवन छीन लाने का।

जीवन की लड़ाई लड़नी होगी,
दुश्मन पे चढ़ाई करनी होगी।
मौत ने दी है चुनौती तो फिर,
समर में सीधे भीड़ जाने का।
है वक्त नहीं/-

जब जंग छिड़ी है साँसों की,
जब ढेर लगी है लाशों की।
जब हार चुकी सिस्टम सारी-
तब खुद विश्वास जगाने का।
है वक्त नहीं-/

घनघोर अँधेरा मिट जाएगा,
फिर सूर्य सबेरा ले आएगा।
मन को मत निराश करो तुम,
बस आख़िरी जोर लगाने का।
है वक्त नहीं-/

माना कि मंजिल पार समंदर,
जाना है लेकिन उसके अंदर।
सीता को बचाना रावण से तो
फिर सागर में सेतु बनाने का।
है वक्त नहीं-/

इस कोरोना से खौफ़ बड़ा है,
सीना ताने यह तभी खड़ा है।
खुद को इससे बचाना है तो,
बस डर को मार भगाने का।
है वक्त-/

माना कि सफ़र ये मुश्किल है,
पर सामने दिखता मंजिल है।
जो पार समंदर करना है तो
फिर साथी हाथ बढ़ाने का।
©पंकज प्रियम
23.04.2021
कवि पंकज प्रियम
#sahityodaysahyog 
#sahityoday

Wednesday, April 21, 2021

910.ग़ज़ल आजकल

ग़ज़ल

चल रही है हवा मौत की आजकल,
बेवजह तू कभी भी न बाहर निकल।

फिर सुबह धूप होगी अभी रात जो,
है अँधेरा मगर तुम नहीं हो विकल।

रात तो ये गुजर जाएगी कल सुबह,
जो गुजर तू गया लौट पाये न कल।

मास्क पहनो अभी हाथ धोते रहो,
जंग ये जीत लेंगे तरीका बदल।

मौत से ज़िंदगी खींच लाये प्रियम,
बस भरोसा रखो वक्त के संग चल।
©पंकज प्रियम

Sunday, April 18, 2021

909.सत्ता की हवस

भीड़ में तुझको बेशक ही,....जयकार सुनाई देता है।
ढेर पड़ी लाशों से मुझको......चीत्कार सुनाई देता है।
कर लोगे फतह तुम बेशक, सत्ता का ये सिंहासन पर-
हवस में तेरी हरदम......... हाहाकार सुनाई देता है।।
कवि पंकज प्रियम

Sunday, April 11, 2021

908. फिर से कोरोना आया है

फिर से कोरोना आया है,
पहले से ज्यादा छाया है।
बच्चे बूढ़े और जवां-
सबका मन घबराया है।। 

भूल चले थे जिसको हम,
लौट के आये सारे गम।।
कौन बचेगा कहना नहीं-
सबपर मौत का साया है।
फिर से -/

सरकार ने सब जो छोड़ा है,
हमने भी नियम को तोड़ा है।
दो ग़ज़ दूरी भूले और-
चेहरे से मास्क हटाया है।
फिर से-/

जनसैलाब चुनावों में
सन्नाटा बस गाँवों में। 
देख सियासत का चेहरा-
सबका मन भरमाया है।
फिर से-/

इतिहास तो साक्षी बनती रही,
लाशों पे सियासत सजती रही। 
वोट की ख़ातिर भीड़ जुटा
सबने खतरा बढ़ाया है। 
फिर से-/

नेता तो चालाक मगर,
नहीं लागे क्यूँ तुझको डर।
रेलम पेलम भीड़ में जा-
काल को घर पे बुलाया है। 
फिर से --/

बचना है तो समझो अभी, 
मौका मिलेगा फिर न कभी।
सबको बचाओ और बचो-
प्रियम संदेशा लाया है।।
©पंकज प्रियम

Friday, March 26, 2021

907. जोगिरा2

जोगिरा

कोरोना के खौफ़ से देखो, रंग हुआ बदरंग। 
छूने पे पाबंदी है तो,  कौन लगाए रंग।
जोगिरा सारा रा रा रा-2

होली पे पाबन्दी का फिर, सुना दिया फरमान।
दिल में ही सब दफ़न हुए फिर, होली के अरमान।
जोगिरा सारा रा रा रा-

वैक्सीन सारे ले रहे हैं, फोटु कमीज उतार।
जैसे अमृत घोल पिया है, होंगे क्या बीमार।।
जोगिरा सारा रा रा रा-

कोरोना चालाक बड़ा है, जगह-जगह पे ठाँव।
जाये नहीं वहाँ पर लेकिन, होवे जहाँ चुनाव।।
जोगिरा सा रा रा रा रा-2


चण्डी पाठ किया जो ममता, खाके मानो भंग। 
पैर तुड़ाकर खेला खेले, मोदी जी के संग।।
जोगिरा सारा रा रा रा।

परमवीर ने चक्र चलाया, लटका शरद पवार।
बाजे बाजा बजा गया है, उद्धव की सरकार।।
जोगिरा सारा रा रा रा।

पेट्रोल डीजल हो गया जो, अबकी सौ के पार।
कंट्रोल से बाहर हो गयी है, मानो ये सरकार। 
जोगिरा सारा रा रा रा।

बैंक की बोली लग रही है, बीमा भी तैयार।
घर बैठे बेकार हुए सब, युवा बेरोजगार।
जोगिरा सारा रा रा रा।

© पंकज प्रियम

Thursday, March 25, 2021

906. जोगिरा

1
कोरोना चालाक बड़ा है, जगह-जगह पे ठाँव।
जाये नहीं वहाँ पर लेकिन, होवे जहाँ चुनाव।।
जोगिरा सा रा रा रा रा, जोगिरा सा रा रा रा र
2.
हर नेता के कांधे लटकी, बस वादों की झोली है,
करते वादे तोड़न को ही, बुरा न मानो होली है।

Saturday, March 20, 2021

905. प्रीत के रंग

होली का त्यौहार है

रंग से रंग लगा ले सजना,  रंगों का त्यौहार है
अंग से अंग मिला ले जाना, होली का त्यौहार है।

प्रीत का रंग गुलाबी देखो, चमक रही हरियाली,
गालों पे आ मल दूँ गोरी, पीला लाल गुलाबी।
होंठो पे मतवाली लाली, कजरा काली कटार है।
रंग से रंग...।

कोरे कागज़ जैसा तन-मन, खाली है मेरा जीवन,
प्रेम का रंग तू भर दे साजन, रंग दे मेरा अंतर्मन।
सागर की लहरों के जैसे, दिल में उठा ये ज्वार है।
रंग से रंग...।

होली रंग का खेल सजन, मन उमंग मेल सजन
रंग दूँ तेरी चोली चुनर, रंग दो मेरा सारा बदन।
भर लो अपने अंक सजन, आया मस्त बहार है।
रंग से रंग...।

©पंकज प्रियम

Monday, February 22, 2021

904-तेल का खेल

तेल का खेल

सौ के पार पेट्रोल है,
  डीजल भी नब्बे पर,
    बढ़ी सब कीमतों से, 
         मचा हाहाकार है।
तेल के ये खेल देखो, 
   कर का ये मेल देखो,
      कच्चा तेल तीस पर,
        पक्का सौ के पार है।
केंद्र और राज्य कर,
   कैसे दोनों मिलकर,
       कर रही जनता पे,
             दोहरा प्रहार है।
तेल हुआ महंगा तो, 
      बढ़ गयी महंगाई,
       सारा बोझ सर लिये
             जनता लाचार है।
©पंकज प्रियम

Tuesday, January 12, 2021

903. मेरी मुहब्बत याद तुझे तो आती होगी-

याद तुझे तो आती होगी-2

ओ परदेसी दौलत उसकी, बेशक़ तुझको भाती होगी,
लेकिन मेरी पाक मुहब्बत, याद तुझे तो आती होगी।
ओ परदेशी मेरी मुहब्बत, याद तुझे तो आती होगी

बेताबी में......मुझसे लिपटना, 
और लजा के खुद में सिमटना। 
हरदिन-हरपल.....साँझ-सवेरे,
मेरी बाहों............के वो घेरे।
मेरी धड़कन....... मेरी साँसे, रह-रह के तड़पाती होगी।
ओ परदेसी मेरी मुहब्बत, याद तुझे तो.... आती होगी।

मेरी हाथों में..... वो मुखड़ा,
लगता जैसे चाँद का टुकड़ा।
मेरे कांधे..... सर रख सोना,
ख़्वाबों में वो..... तेरा खोना।
प्यार मुहब्बत की वो बातें, आज भी तो भरमाती होगी,
वो परदेसी मेरी मुहब्बत......याद तुझे तो आती होगी।

लड़ना-झगड़ना, हँसना-रुलाना,
रूठना तेरा..........मेरा मनाना।
नाम मेरा ले ....चाँद को तकना,
तकिये के नीचे ख़त को रखना
मुझको देखे बिन एक दिन भी, चैन कहाँ तू पाती होगी।
वो परदेसी...मेरी मुहब्बत,    याद तुझे तो आती होगी।

धूप-गुलाबी, ....शाम सुहानी
इश्क़-मुहब्बत प्यार रूमानी।
चाँदनी रातें...दरिया किनारा,
मेरी बाहों.... का था सहारा।
याद वो कर के संग की रातें, नींद तेरी उड़ जाती होगी।
वो परदेसी...मेरी मुहब्बत,    याद तुझे तो आती होगी।
©पंकज प्रियम
12.1.2021
12:34AM

Saturday, January 9, 2021

902. ओ परदेशी

ओ परदेशी रौनक उसकी, खूब तुझे तो भाती होगी,
लेकिन अपने देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी।
भारत अपना देश है प्यारा,
लगता सबसे है ये न्यारा
याद तुझे तो आती होगी,
रोज तुझे तड़पाती होगी।
इस मिट्टी की खुशबू तुझको, रह रह के महकाती होगी।
ओ परदेशी देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी

वो घर -आँगन, गांव की गलियां,
खेत में झूमती धान की बलियां।
नीम तले वो छाँव सुहानी,
कहती कहानी बूढ़ी नानी,
दादा-दादी की वो गोदी, अब भी तो सहलाती होगी,
ओ परदेशी देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी।
माटी की गुड़िया घास का गहना,
लड़ना-झगड़ना, सुनना-कहना।
वो बचपन की बात निराली,
होली दशहरा ईद दिवाली
बापू कंधा, माँ की ममता, आँख तेरी भर आती होगी
ओ परदेशी देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी।
वो बचपन के दोस्त कमीने,
एक से बढ़कर एक नमूने।
भूल-भुलैया खेल खिलौने
लगते अब वो सारे नगीने।
याद वो करके प्यार सलोना, खुद से तू शर्माती होगी,
ओ परदेशी देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी।
गंगा-यमुना धारा अविरल,
सागर-सिंधु झरना निर्मल।
वेद-पुराण की बातें सुनना,
राजा-रानी ख़्वाब में बनना।
प्रेम से सिंचित भारत भूमि, हरदम पास बुलाती होगी,
ओ परदेशी देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी।
©पंकज प्रियम