Tuesday, December 31, 2019

769.गुजर जा ऐ साल तू

नई उम्मीदों का साल हो

ऐ साल,
तुम जा रहे हो न !
बेशक़ गुजर जाओ।
नहीं रोकना चाहता
नहीं टोकना चाहता।
जाना ही तो सत्य है जीवन का।
इसी सत्य का तूने परिचय दिया
प्रारब्ध जितना सुंदर था
अंत उतना ही दुःखद रहा।
ढेरों मान-सम्मान और ज्ञान दिया।
अपने-पराये का भी तूने भान दिया।
कितनी खुशी थी ज़िन्दगी में
कितना खुशहाल था जीवन।
वो मनहूस नवम्बर का महीना,
क्यूँ न कहूँ उसको मैं कमीना।
18 नवम्बर की वो सर्द रात,
दिया जिसने मुझे दर्द घात।
जाते-जाते घर की खुशियां तू ले गया
अभी तो उमर ही क्या थी
जो मेरे भैया संग अपने ले गया।
सोच,
कितनी तकलीफ़ हुई होगी?
कितनी पीड़ा सही होगी?
एक माँ की गोद में उसके
बेटे को चिरनिद्रा में सुला दिया।
एक पिता के हृदय में असह्य वेदना
एक भाई, एक बहन और मासूम से
छोटे-छोटे अबोध बच्चों के सर से
तूने प्यार का साया हटा दिया।
बयाँ नहीं कर सकता उस दर्द का
जो जख़्म तूने हम सबको है दिया।
जानता हूँ और मानता हूँ
यही सत्य है जीवन का,
जो आया है वो जाएगा
कौन यहाँ रह पाएगा?
तू भी तो गुजर गया
पर तेरा अंत निश्चित था,
नई उम्मीदों का साल भी निश्चित था
पर ऐसे बीच सफ़र में
असमय अकल्पित किसी का चले जाना!
बहुत ही दुःखद होता है।
जिन्हें याद कर दिल ये रोता है
नहीं याद करना चाहता तुझे उन्नीस! (2019)
ऐसा दर्द तू कभी न देना मुझे बीस। (2020)
नई उम्मीदों का यह साल हो।
हर दिन जीवन खुशहाल हो।
न द्वेष किसी से न किसी से रार हो
हर किसी को ख़ुशी और सबको सबसे प्यार हो।
©पंकज प्रियम
31.12।2019

2019 में मेरा साहित्योदय

साल 2019 में मेरी साहित्यिक उपलब्धियां
पूरे साल देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में सैकड़ों रचनाएं प्रकाशित। देशभर के कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ। आकाशवाणी से रचनाएँ प्रसारित। वर्ष 2019 में प्राप्त कुछ प्रमुख सम्मान।

जनवरी
अमेज़न पर ई-बुक "#बड़ी_ख़बर(लघुकथा-कहानी संग्रह) और #सफ़र_ज़िन्दगी(ग़ज़ल संग्रह) का प्रकाशन।
#कविता_बहार सम्मान(26 जनवरी)

फरवरी
अमेज़न पर ई बुक #इश्क़_समंदर का प्रकाशन।
श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान, अटल काव्यांजलि।

मार्च
#काव्य_प्रज्ञा सम्मान।

अप्रैल
#अटल_काव्य_सम्मान, 3अप्रैल, मध्यप्रदेश

मई
#अटल_काव्य_रत्न , मध्यप्रदेश।

जून
साझा गद्य-पद्य संग्रह #साहित्य_समिधा का प्रकाशन और सम्मान।

जुलाई
#अटल_भूषण  सम्मान, अटल काव्यांजलि
#श्रेष्ठ_रचनाकार सम्मान, साहित्य संगम।

अगस्त
#काव्य_साधना(3 अगस्त), #हिन्द_गौरव सम्मान(14 अगस्त), #हिन्द_चेतना सम्मान(15अगस्त), #हिंदी_साहित्य_अकादमी_सम्मान(22अगस्त), #श्रेष्ठ_समीक्षक(30 अगस्त), #साहित्य_कप्तान
#काव्य_गौरव(वाराणसी,27अगस्त)
सितंबर
#साहित्य_कर्नल, #श्रेष्ठ_रचनाकार

अक्टूबर
#श्रेष्ठ_सृजनकर्ता(हिंदी भाषा), #श्रेष्ठ_हास्य_रचनाकार, (उड़ान), #श्रेष्ठ_रचनाकार(साहित्य संगम)

नवम्बर
#अटल_साधना सम्मान, मध्यप्रदेश।

दिसम्बर
#हिंदी_साहित्य_गौरव_रत्न, 24 दिसम्बर, मुम्बई
#अग्निशिखा_काव्य_धारा(साझा काव्य संग्रह) का प्रकाशन।
#अटल_साहित्य_गौरव सम्मान, 25 दिसम्बर, मध्यप्रदेश।

Monday, December 30, 2019

752. हुस्न ये तेराB


हुस्न
बदन को छू अगर लेता, पवन बेताब हो जाता,
अधर को चूम कर तेरे, अधर भी आब हो जाता।
नहीं कोई करिश्मा है, तुम्हारा हुस्न है ऐसा-
नज़र में डूबकर तेरे, हसीं इक ख़्वाब हो जाता।।

चले जब तीर नैनों से , हृदय के पार हो जाता
लचकती है कमर तो फिर, शहर तक़रार हो जाता।
झटकती ज़ुल्फ़ जो ऐसे, घटा घनघोर हो जैसे-
चले जब चाल मस्तानी, कसम से प्यार हो जाता।।

उड़े खुशबू तुम्हारी जब, पवन अलमस्त हो जाता,
अधर को चूमकर तेरे, अधर मदमस्त हो जाता।
हसीं इक ख़्वाब के जैसी, महकती बाग के जैसी-
नयन में डूबकर तेरे,....प्रियम भी मस्त हो जाता।।
©पंकज प्रियम

Sunday, December 22, 2019

768. कभी घर जलाते हो क्या

अगर गुस्सा तुम्हें आता, कभी क्या घर जलाते हो?
अगर मतभेद हो घर में, कभी क्या सर लड़ाते हो?
नहीं नुकसान कुछ करते, समझते घर हो अपना-
तो क्या ये घर नहीं तेरा? जो तुम पत्थर चलाते है।।

समझते जो अगर घर तो, कभी ये काम न करते,
अगर होती मुहब्बत तो, कभी बदनाम न करते।
जलाता देश को जो है, नहीं वह देश का होता-
अगर तुम नागरिक होते, यूँ कत्लेआम न करते।
©पंकज प्रियम

Saturday, December 21, 2019

767. आग लगा दोगे

देश जला दोगे?
आंदोलन के नाम पे क्या, तुम सारा देश जला दोगे?
घुसपैठियों की ख़ातिर क्या, घर की नींव हिला दोगे?
शासन से मतभेद अगर है, आसन से तुम बात करो-
अफ़वाहों के भीड़तंत्र में, क्या लोकतंत्र झुठला दोगे?

गुंडागर्दी भेड़चाल में क्या, सबकुछ आग लगा दोगे?
गंगा जमुनी तहज़ीब भूला, खुद को आज दगा दोगे?
लोकतंत्र में आंदोलन की, होती लक्ष्मण रेखा है-
निर्दोषों का खून बहा क्या, रावण राज जगा दोगे?

संविधान के नाम पे क्या तुम संविधान ही तोड़ोगे?
औरों की ख़ातिर क्या तुम अपनो से मुँह मोड़ोगे?
सत्य अहिंसा गाँधीवादी, फ़क़त दिखावा क्या तेरा-
निर्दोषों का खून बहा कानून का सर भी फोड़ोगो?
©पंकज प्रियम

766. जाड़े का मौसम

जाड़े का मौसम कहता है..

जाड़े का मौसम कहता है
क्या कहता है? क्या कहता है?

सर्द हवाओं के संग-संग,
धूप गुलाबी से अंग-अंग
जब शोला गर्म दहकता है।
तब तनमन खूब बहकता है?
जाड़े का मौसम कहता है,
इसमें भी फूल महकता है।

कोहरा घना जब छाता है,
साफ़ नज़र नहीं आता है।
साँसों में शोला पिघलता है
साँसों से भांप निकलता है।
जाड़े का मौसम कहता है,
इसमें भी जीवन सजता है।

पछुआ कटारी चलती है,
बदन में आरी चलती है।
खुद ही खुद में सिमटता है,
मौसम भी पल में बदलता है।
जाड़े का मौसम कहता है,
इसमें भी जीवन पलता है।

सब सोये होते घर में जहाँ,
मुस्तैद कोई सरहद में वहाँ।
जब बर्फ में कोई जगता है,
तब चैन से हर कोई सोता है।
जाड़े के मौसम कहता है,
उनसे ही जीवन रहता है।

श्वानों को कम्बल मिलता है,
कोई नंगे बदन भी हिलता है।
चादर से मज़ार तो भरता है,
कोई ठंड से हार के मरता है।
जाड़े का मौसम कहता है,
इसमें भी जीवन पलता है।

कम्बल तो बंटता खूब यहाँ,
अफसर भी लूटता खूब यहाँ।
कम्बल की जरूरत सर्दी में
पर होता है टेण्डर गर्मी में।
ओढ़ के सबकोइ पीता है,
कम्बल में घी जो पिघलता है।

जाड़े का मौसम कहता है,
इसमें भी जीवन जलता है।
©पंकज प्रियम

©पंकज प्रियम

Friday, December 20, 2019

765. अफ़वाह और भीड़तंत्र

अफवाह,भीड़तंत्र और भेड़चाल
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©पंकज प्रियम
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पूरे देश में अफवाहों का बाजार गर्म गया और भेड़चाल में भीड़तंत्र है। इसका विरोध करनेवालों में किसी ने भी न तो इस कानून को पढ़ा है और न ही समझने की कोशिश की है। बस विरोध की भेड़चाल में सभी चल पड़े हैं जिन्हें नफऱत की सियासत करनेवाले हाँकने में लगे हैं। भीड़ में अनपढ़ और नासमझ लोगों की बात तो समझ में आती है लेकिन तथाकथित बुद्धिजीवी और समाज को दर्पण दिखनेवाले फिल्मी कलाकारों की मूर्खता पर हंसी आती है। मुंबई के आज़ाद पार्क में फरहान अख़्तर, ओमप्रकाश मेहरा, जाबेद जाफ़री और स्वरा भास्कर जैसे फिल्मी हस्तियों ने इस कानून के खिलाफ खूब हल्ला बोला लेकिन जब इनसे CAA और NRC  के विषय में पूछा गया तो उनका जवाब सुनने लायक था। फरहान अख़्तर ने कहा कि -इस कानून के बारे में जानकारी तो नहीं लेकिन इतने सारे लोग जुटे हैं तो लगता है कि इसमें जरूर कुछ गलत है। हद है मतलब कोई भीड़ इकट्ठी होगी तो आप भी उस भीड़तंत्र की कठपुतली बन जाएंगे? अपना बुद्धि विवेक है या नहीं?
इसी तरह ओमप्रकाश मेहरा ने भी कहा कि उन्होंने इस कानून को पढ़ा नहीं है इसलिए कुछ कह नहीं सकते तो भैया भीड़ में क्या तमाशा दिखाने आये थे?

हमेशा की तरह स्वरा भास्कर का इसबार भी जवाब था कि इस कानून के बारे में जानकारी तो नहीं लेकिन लगता है कि संविधान के खिलाफ है। हम गाँधी को मानते हैं। वाह! स्वरा वाह!! जो लोग आग लगा रहे हैं, पुलिस पर पत्थर चला रहे हैं। सरकारी सम्पत्ति को तोड़ रहे हैं, हिंसा फैला रहे हैं उनके साथ खड़ी होकर गाँधी की बात करती हो? जब इस कानून के विषय जानकारी नही है तो फिर किस चीज का हल्ला बोल।
जावेद का भी जवाब बेतुका ही था। ये हैं फिल्मी सितारे जिन्हें हम बड़े पर्दे पर देख अपना नजरिया बदलते हैं। जब इन्हें ही कानून की सही जानकारी नहीं और भीड़तंत्र की कठपुतली बनकर भेड़चाल में चल पड़े तो सोचिये आम मुसलमान को कितनी जानकारी होगी। वह भी कुछ सियासी तत्वों के बहकावे में आकर भेड़चाल में चल पड़ी है। ओबैसी और अमानुल्लाह जैसे स्वार्थी नेताओं की अपील पर सड़कों पर दंगा करने निकल पड़े हैं। हिंसा कर रही भीड़ में शामिल एक भी व्यक्ति को न तो इस कानून की सही जानकारी है और न ही इसे समझना चाहते हैं। कुछ लोगों के रिमोट पर चलकर सड़कों पर उतर आए हैं।
पत्थर चलाने वाले!  जरा उन नेताओं को आगे कर उन्हें पत्थर चलाने को कहो जिसने तुम्हे उकसाया है। ये सियासतदां सिर्फ आग लगाकर अपनी रोटी सेंकना जानते हैं। दंगों में कभी किसी नेता को मरते देखा है? कभी नहीं क्योंकि उनका काम है आग लगाना और फिर दूर खड़े रहकर तमाशा देखना। वे चैनलों में बैठकर बड़ी बड़ी बातें करते है और भीड़ में मरते है आम लोग।
कृपया नेताओ की कठपुतली मत बनिये, अफ़वाहों से गुमराह होकर भेड़चाल मत चलिए। भीड़तंत्र का हिस्सा बनने से पहले अपने बुध्दि और विवेक का इस्तेमाल कीजिये। किसी भी चीज का विरोध या समर्थन बगैर उसे जाने समझे मत कीजिये।

764. ग़ुमराह

किसी अफ़वाह को सुनकर, कभी गुमराह मत होना,
बिना सोचे बिना समझे,..... कभी संयम नहीं खोना।
अगर सहमत नहीं हो तो, प्रदर्शन तुम करो लेकिन-
दिलों में बीज नफऱत का, कभी भी तुम नहीं बोना।।
©पंकज प्रियम

763. जरलाहा जाड़

जरलाहा जाड़
खोरठा गीत

चले लागल हावा किरंग, भींगे रे चुनरिया
जरलाहा जाड़ किरंग, लागे रे गुजरिया।

थरथर देह कांपे, कटकटाय दंतवाँ,
कनकनी हवा बहे, कंपकँपाय हंथवा।
कमला भी कम पड़े, कम पड़े चदरिया।
जरलाहा जाड़ किरंग, लागे रे गुजरिया।

पनिया करंट मारे, किरंग हम नहैबे,
खनवा भी पाला मारे, किरंग हम खैबे।
पूजा पाठ किरंग हम, करबै रे पूजरिया,
जरलाहा जाड़ किरंग, लागे रे गुजरिया।

दिनवा में शीतलहरी, कनकनाय रतिया,
तोर बिना तैनको पिया, नाय भाय रतिया।
बिरहा में किरंग कटतौ, बाली रे उमरिया,
जरलाहा जाड़ किरंग, लागे रे गुजरिया।

©पंकज प्रियम

Thursday, December 19, 2019

762. देश है उसका

देश है उसका
लगाये आग नफऱत की, गलत परिवेश है उसका,
जलाये देश को जो भी, गलत उद्देश्य है उसका।
अगर सहमत नहीं है तो, ख़िलाफ़त वो करे बेशक़-
मगर जो देश द्रोही है, नहीं यह देश है उसका।
पृथक भाषा पृथक बोली, पृथक परिवेश है अपना,
पृथकता में सदा मिलजुल, यही संदेश है अपना।
नहीं हिन्दू नहीं मुस्लिम, नहीं कोई सिक्ख ईसाई-
करे जो प्यार भारत से,  उसी का देश है अपना।।
©पंकज प्रियम
19.12. 2019

Wednesday, December 18, 2019

761. दिल दिमाग

दिल vs दिमाग
मुल्क हो या महबूब, मुहब्बत वही कर पाता है,
छोड़कर जो ज्ञान गंगा दिल में उतर जाता है।
ये दिमाग तो हरवक्त साज़िशों में फँसा रहता,
मगर दिल को तो केवल प्यार नज़र आता है।।
©पंकज प्रियम

Tuesday, December 17, 2019

759. सेंगर

सज़ा

दुष्कर्मी कोई बच न पाये, नेता मंत्री या अफ़सर।
फाँसी सबको हो जाये, अफ़रोज़ नाबालिक या सेंगर।

हैवान सभी होते हैं वह जो नोचते बेटी की अस्मत,
हरपल खौफ़ बढ़ाये वो मौत ही उनकी हो किस्मत।

इंसाफ़ करे अब न्यायालय, बिन लगवाये वो चक्कर,
कोई बेटी मरे नहीं अब, इन खूनी पंजों में फँसकर।

सजा कठिन हो ऐसी कि, मौत की वो फरियाद करे,
बेटी को सब बेटी समझे, फिर कोई न अपराध करे।

आसिफा हो या निर्भया, किसी की माँ न रोये कभी,
अस्मत पे जो हाथ लगाए, दे दो फाँसी उसको अभी।

न्याय में देरी अन्याय सदा, जल्दी करो इंसाफ़ अभी
हैवान दरिन्दे दुष्कर्मी को, करो न उसको माफ़ कभी।
©पंकज प्रियम

758. पहचानो तुम

पहचानो तुम
नफऱत की जो आग लगाये, उसको भी पहचानो तुम।
मानवता के दुश्मन हैं जो, हकीकत उसकी जानो तुम।।

जाति धरम और मज़हब का हर चेहरा गंदा लगता है,
इंसानों के वेश में छूपकर हर मोहरा दरिंदा लगता है।।

नफ़रत की जो बात करे, कभी न उसकी मानो तुम।
देश का दुश्मन जो भी बैठा, उसको भी पहचानो तुम।

आस्तीनों में छूपकर बैठे,  काले विषधर नाग यहाँ,
ज़हर उलगते रहते हरदम, फूँकते घरघर आग यहाँ।

फन कुचलो उन सर्पों का, जो भीतर बैठे घात करे।
सर कुचलो उन गद्दारों का छूपकर जो आघात करे।

समर शेष नहीं अब कुछ भी समय चक्र पहचानो तुम।
अमन-चैन के दुश्मन हैं जो, हकीकत उनकी जानो तुम।

©पंकज प्रियम

Monday, December 16, 2019

757. इश्क़ की आग


इश्क़ की आग मेरे दिल में जगाने आजा
आजा आजा मुझे सीने से लगाने आजा।

प्यार के फूल मेरे दिल में खिलाने आजा
आजा आजा मुझे खुद से मिलाने आजा।

जाम पैमाग जो आँखों से छलकता तेरा
अपने होठों से वही जाम पिलाने आजा।

इश्क़ की आग जो सीने में जला रक्खा है
इश्क़ की आग से वो आग बुझाने आजा।

प्यार का ज्वार जो साँसों ने उठा रक्खा है
अपनी मौजों से ही उसको गिराने आजा।

जवां दिल जोश में जो होश गवां बैठा है,
अपने आगोश में ले होश जगाने आजा।

जब तलक जिंदा रहा रोज रुलाया तुमने,
मेरी मैय्यत पे अभी अश्क़ बहाने आजा।

तेरी यादों का 'प्रियम' दीप सजा रखा है
अपने हाथों से वही दीप जलाने आजा।
©पंकज प्रियम

756. लफ्ज़ मुसाफ़िर

मुसाफ़िर लफ्ज़ों का
हवाओं से जरा कह दो, अदब से वो गुजर जाये,
जहाँ पर जल रहा दीपक, जरा मद्धम उधर जाये।
तमस गहरा निशा काली, जहाँ पे खौफ़ हो खाली-
जले दीपक नहीं उस घर, बताओ तो किधर जाये।

सिपाही हूँ कलम का मैं, कलम से वार करता हूँ,
कलम को छेड़कर हरदम, उसे हथियार करता हूँ।
नहीं है खौफ़ मरने का, अलग अंदाज़ जीने का-
समय से जंग है लेकिन, समय से प्यार करता हूँ।।

दिले जज़्बात लिखता हूँ, सही हालात लिखता हूँ,
नज़र में जो हकीकत हो, वही दिनरात लिखता हूँ।
ख़ता मेरी यही इतनी, कलम से छेड़ता लेकिन-
जो कहने से कोई डरता, वही मैं बात लिखता हूँ।।

मुसाफ़िर हूँ मैं लफ्ज़ों का, सफ़र अल्फ़ाज़ करता हूँ,
ग़ज़ल कविता कहानी से, सहर आगाज़ करता हूँ।
नहीं मशहूर की चाहत, नहीं हसरत बड़ी दौलत-
प्रियम हूँ मैं मुहब्बत का, दिलों पे राज करता हूँ।।

प्रियम हूँ मैं..

मुसाफ़िर,अल्फ़ाज़ों का, 

खुद से बंधा नियम हूँ मैं।

लफ़्ज़ समंदर,लहराता, 

शब्दों से सधा,स्वयं हूँ मैं।

संस्कृति, संस्कारों का

 खुद से गढ़ा  नियम हूँ मैं।

साहित्य सृजन,सरिता

प्रेम-पथिक,"प्रियम" हूँ मैं।

कमल का फूल खिलता

पाठक पंकज भूषण हूँ मैं।

औरों में,खुशी बिखेरता

कवि-लेखक"प्रियम" हूँ मैं।

सरस्वती की पूजा करता

मां सर्वेश्वरी पुत्र प्रियम हूँ मैं

कागज,कलम में ही जीता

श्यामल पुत्र "प्रियम" हूँ मैं।

अन्वेषा-आस्था कृति रचता

किशोरी पति प्रियम हूँ मैं।

मित्र प्रेम समर्पित करता

प्रियतम सखा प्रियम हूँ मैं।

©पंकज प्रियम


Sunday, December 15, 2019

755. दिल्ली का हाल

केजरीवाल देख लो

क्या तेरे विधायक ने किया हाल देख लो,
जल रही है दिल्ली, केजरीवाल देख लो।
कानून का विरोध है, क्या दंगा करोगे?
नफ़रत की सियासत का बुराहाल देख लो।
©पंकज प्रियम

बंगाल के बाद अब दिल्ली? कौन है आग लगानेवाला?
कहाँ है सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार आयोग?
संज्ञान लो

754.जलता बंगाल

बंगाल देख लो

जल रहा है कैसा ये बंगाल देख लो,
शांतिदूत गुंडो का जंजाल देख लो।
मर रही जनता वो क्या कर रही ममता?
उसके ही शह पे फैला ये संजाल देख लो।

कानून बना है जो नया, क्यूँ बवाल है?
पीड़ित को न्याय मिला, क्यूँ सवाल है?
घुसपैठियों ने लूटा है इस देश को हरदम-
अब हटने की बारी पे हुआ क्यूँ बेहाल है?

श्रीराम के नारों से भड़क जाती हो ममता,
लाठी लिये उठा सड़क जाती हो ममता।
हर ओर लगी आग मगर चुप क्यूँ हो देवी?
बंगलादेशी नाम हड़क जाती हो ममता।

मासूमों पे बन आयी, मगर सो रही ममता,
बच्चों के लहू पर भी, नहीं रो रही ममता।
रक्त से रंजित है जमीं,  खौफ़ में जनता-
जेहादियों गुंडो को मगर ढो रही ममता।।

©पंकज प्रियम
15.12.2019

753. अशांति

विरोध के नाम पर शांतिप्रिय लोगों अशांति
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©पंकज प्रियम

क्यूँ चुप है ममता? क्या यह मोब्लिंचिंग नहीं?
क्या मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं?

नागरिकता संसोधन बिल के विरोध को लेकर इन दिनों असम और पश्चिम बंगाल में जो कुछ भी हो रहा वह किसी भी सभ्य समाज और शांतिपूर्ण देश के अच्छा नहीं है। वक्त और जरूरत के हिसाब से सरकारें कानूनों के बदलाव करती रहती है और संविधान में अबतक काफी संसोधन हो चुका है। सरकार के फैसलों पर असहमति और विरोध प्रदर्शन भी स्वाभाविक है लेकिन जिस तरह की हिंसा और आगजनी इन दिनों बंगाल में दिख रही है वह चिन्ताजनक है। ख़ासकर मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका हिंसा पर उतारू है वह भारतीय नहीं हो सकता। ये सारे बांग्लादेशी घुसपैठिये और रोहिंग्या मुसलमान हैं। इनके साथ समाज को तोड़ने वाले कुछ राजनीतिक दल खुलेतौर पर कहा जाय तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का खुला समर्थन है। जिसके प्रान्त में इस तरह खुलेआम गुंडागर्दी हो रही हो, सरकारी मशीनरी को जलाया जा रहा हो, तोड़फोड़ कर बर्बाद किया जा रहा हो,  हिन्दू परिवारों को चुन चुनकर मारा जा रहा हो उस राज्य की मुख्यमंत्री तमाशबीन बनी हुई है। जो जय श्री राम के नारों पर भड़क जाती है, बीच सड़क पर रामभक्तों को लाठी लेकर दौड़ाने लगती है आज इन गुंडों के जघन्य अपराध पर भी हाथ पर हाथ धरे बैठी है? यह सीधे सीधे उनका समर्थन नहीं तो क्या है। पूरा बंगाल जल रहा है लोग भयभीत है, रेल, सड़क,बाजार सबकुछ मुसलमानों के निशाने पर है कोई कन्ट्रोल नहीं है। सरकारी सम्पत्ति और निर्दोषों को निशाना बनाने का अधिकार किसने दिया? सबकुछ कैमरे के सामने लाइव घटना हो रही है लेकिन पुलिस एक भी अपराधी को पकड़ नहीं रही ह। आखिर क्यूँ?
जय श्री राम कहने पर जेल भेज देने वाली ममता की पुलिस क्या आज नामर्द हो गयी है जो इन गुंडों को पकड़ नहीं पा रही है? तबरेज़ अंसारी की मोब्लिंचिंग और हैदराबाद एनकाउंटर पर सवाल खड़ा करनेवाली ममता को यहाँ निर्दोषों की मोब्लिंचिंग नहीं दिख रही है? आज सुप्रीम कोर्ट, मानवाधिकार आयोग और तथाकथित बुद्धिजीवी ,अवार्ड वापसी गिरोह को आम जनता के साथ गुंडो की मोब्लिंचिंग नहीं दिख रही है। क्या इस मामले में स्वतः संज्ञान नहीं ले सकती। बंगाल और असम के हिंदुओं का खून, खून नहीं है क्या? आम जनता का मानवाधिकार नहीं है क्या?

नागरिकता बिल का विरोध करना है तो शांतिपूर्ण तरीके से करो न कौन रोका है? कोर्ट है जाओ ,लड़ो। अगर लगता है कि तुम्हारे साफ नाइंसाफी हुई है तो हक के लिए  आमरण अनशन करो लेकिन आम निर्दोष लोगों का खून मत बहाव यह आंदोलन नहीं बल्कि हिंसा है।
नागरिकता बिल में बिल्कुल ही स्पस्ट है कि दूसरे देशों के अल्पसंख्यक शरणार्थियों को नागरिकता दी जाएगी और भारत के किसी भी मुसलमान का इसमें कोई नुकसान नहीं है। फिर भी ममता बनर्जी, ओबैसी जैसे लोग मुसलमानों को भड़का कर देश को अशांत करने में लगे है।  जो गुंडागर्दी कर रहे हैं उन्हें इस कानून का कोई मतलब भी नहीं पता होगा लेकिन राजनयिक संरक्षण में लाठी तलवार लेकर गुंडागर्दी पे उतर आये हैं।
अगर ऐसे लोग शांतिप्रिय समाज है तो नहीं भारत को ऐसे लोग इन्हें यहाँ से खदेड़ कर बाहर करने के लिए और कड़े एनआरसी कानून की जरूरत हो तो सरकार लाये लेकिन ऐसे गुंडे और उत्पातियों के लिए इस देश मे कोई जगह नहीं होनी चाहिये। ममता बनर्जी इन्ही गुंडों के मदद से बंगाल में राज कर रही है । इन अवैध घुसपैठियों की बदौलत ही उसे वोट मिलता रहा है। अब इन्हें हटाने की बात पर वह बौखला गयी है और गुंडागर्दी की छूट दे रखी है। राज्य अशान्त हो और मुख्यमंत्री चुपचाप तमाशा देख रही है इससे अधिक शर्मनाक क्या हो सकता है।
जो लोग भी इस कानून के विरोध में गुंडागर्दी पर उतारू हैं उनसे सवाल है कि भाई जब किसी भारतीय मुसलमान को कोई नुकसान ही नहीं है उनकी नागरिकता पर कोई प्रश्न ही नहीं है तो फिर बवाल किस बात का? दो दिन देशों के सिख, ईसाई, हिन्दू ,बौद्ध और जैन के शरणार्थियों को जगह मिल जाती है तो इससे तुम्हे क्या तकलीफ है? जब भारत ने इतने सारे विदेशी आक्रमणकारियों को इस धरती पर जगह दे दी जिसके के कारण आज सोने की चिड़िया अपने ही पिंजरे में कैद रहने को विवश है तो भला जिनका मूल अधिकार है इस जमी पर उन्हें साथ रखने पर तुम्हे क्यूँ कष्ट हो रहा है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, बांग्लादेश जैसे कई देश सिर्फ इस्लाम धर्म के हैं वहाँ दूसरे धर्म के लोगों का जीवन नर्क है लेकिन हिंदुस्तान में किसी भी धर्म के लोगों के साथ कभी अन्याय नहीं होता। अपना हिस्सा अपनी जमीन सबकुछ तो हँसते-हँसते बांटा फिर काहे की नफऱत का बीज बो रहे हो। कहने को तो यहाँ कई लोग भारत में डर का माहौल दिखाते हैं लेकिन जिसे पसंद करते है वहाँ जाकर रहने की हिम्मत नहीं करते। अगर भारत में इतना ही खौफ़ है ,डर का माहौल है तो फिर किस लिए यहाँ रहना चाहते हो, चले जाओ जहाँ जन्नत नसीब होगी।
क्यूँ अमन शांति को भंग करने में लगे हो। केंद्र सरकार को चाहिए की जल्द से जल्द कार्रवाई करते हुए बंगाल और असम में राष्ट्रपति शासन लगाकर स्थिति को अपने  नियंत्रण में ले और सारे गुंडो को कठोर सजा दे ताकि आम भारतीय चैन की साँस ले सके।

Friday, December 13, 2019

752. प्याज़

प्याज़
कहीं पे अड़ रहा है प्याज, कहीं पे सड़ रहा है प्याज़,
जमाखोरों के ही कारण, नज़र में गड़ रहा है प्याज़।
शतक के पार कीमत है, यही अब तो हक़ीक़त है-
गरीबों का कभी जो था, उन्हीं पे पड़ रहा है प्याज़।।

©पंकज प्रियम

751. हालात लिखता हूँ

बात लिखता हूँ
दिले जज़्बात लिखता हूँ, सही हालात लिखता हूँ,
नज़र जो भी हक़ीकत हो, वही दिनरात लिखता हूँ।
ख़ता मेरी यही इतनी, कलम को छेड़ता लेकिन-
जो कहने से सभी डरते, वही मैं बात लिखता हूँ।।
©पंकज प्रियम

Thursday, December 12, 2019

750. नाबालिक बलात्कारी

निर्भया काण्ड का मुख्य अपराधी नाबालिक फ़िरोज

एक बलात्कारी कैसे नाबालिक?
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पंकज प्रियम
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16 दिसम्बर 2012 को दिल्ली में हुए जघन्य निर्भया काण्ड के 6 गुनाहगारों में एक कि मौत हो चुकी है और चार को फाँसी मिलनी तय है लेकिन मुख्य गुनाहगार फ़िरोज बाल सुधार गृह से सबसे कम सज़ा पाकर बाहर निकल चुका है और खून से सने घृणित हाथों से दक्षिण भारत में किसी रसोई में खाना पका रहा है।

गैंगरेप का यह छठा आरोपी उस वक्त नाबालिग था. इसी शख्‍स ने निर्भया को बस में चढ़ने का आग्रह किया था. नतीजतन जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने तीन साल की अधिकतम सजा के साथ उसे सुधार केंद्र में भेजा था. दिसंबर, 2015 में सजा पूरी करने के बाद उसे रिहा कर दिया गया. दावा है कि गैंगरेप के दौरान निर्भया से सबसे ज्यादा दरिंदगी इसी नाबालिग ने की थी.
पुलिस जांच में सामने आ चुका है कि इस छठे नाबालिग दोषी ने पीड़ित लड़की को आवाज देकर बस में बुलाया था। यही नहीं, बस में बैठने के बाद सबसे कम उम्र के इसी आरोपी ने बाकी पांचों लोगों को गैंगरेप के लिए न सिर्फ उकसाया बल्कि इस पूरे घटनाक्रम का सूत्रधार भी बना। जांच में पुलिस को यह भी पता चला कि इस नाबालिग लड़के ने गैंगरेप के दौरान पीड़ित लड़की पर कई जुल्‍म किए। इस लड़के ने ही दो बार बड़ी बेरहमी से लड़की से बलात्कार किया था। उसकी वहशियाना हरकतों की वजह से ही छात्रा की आंतें तक बाहर आ गई थीं। उस दौरान वो बहादुर लड़की जूझ रही थी, बचने के लिए आरोपियों को दांत से काट रही थी, लात मार रही थी लेकिन शायद उसने भी इस बात की कल्पना नहीं की थी कि लोहे की जंग लगी रॉड के इस्तेमाल से उसके साथ भयानक टॉर्चर होगा। निर्भया की आंतों को नुकसान पहुंचने की वजह से उसके कई बार ऑपरेशन करने पड़े। आखिरकार डॉक्टरों को उसकी आंतें ही काटकर बाहर निकालनी पड़ीं, पूरे शरीर में इंफेक्शन फैल गया, उसे सिंगापुर इलाज के लिए ले जाया गया, लेकिन खुद को नाबालिग बताने वाले उस बर्बर आरोपी के आगे दवा और दुआ फेल हो गई और दर्द से लड़ते हुए पीड़ित ने दम तोड़ दिया।

हालांकि वह कुछ ही महीनों बाद 18 साल का होने वाला था लेकिन कोर्ट ने मौजूदा कानून के आधार पर उसे नाबालिग मानते हुए सजा देने की बजाए सुधार गृह में भेजने का फैसला सुनाया। यही वो केस है जिसके बाद नाबालिगों की उम्र 18 से घटाकर 16 कर दी गई। निर्भया के दोषियों में से यही एक चेहरा है जिसे आज तक देश ने नहीं देखा है। चौंका देने वाली बात ये है कि निर्भया के छह दोषियों में से इसे छोड़ कर सभी को हाईकोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में डाली गई समीक्षा याचिका पर फैसला आ चुका है, जिसमें चारों की फांसी की सजा को बरकरार रखा गया है। इस मामले में दोषी नाबालिग अब 23 साल का हो गया है और आजाद है। कुछ दिन सुधार गृह में रहने के बाद दिसंबर 2016 में उसे मुक्त कर दिया गया। निर्भया मामले में दोषी नाबालिग दक्षिण भारत में कही कुक का काम कर रहा है। एक एनजीओ के अधिकारी ने बताया कि वह एक नए रूप में आ चुका है और यहां तक की उसने एक नया नाम भी रख लिया है। उसने दिल्ली में प्रेक्षणगृह में खाना पकाने का काम सीखा था।
दिल्‍ली गैंगरेप केस का नाबालिग दोषी सिर्फ तीन साल सजा काटने के बाद 20 दिसंबर को रिहा हो गया। उसकी रिहाई से देश के इंसाफ पसंद लोग दुखी हैं तो निर्भया की मां और पिता की आंखों से आंसू बह रहे हैं। वे टीवी चैनलों से कई बार कह चुके हैं कि उनके साथ न्‍याय नहीं हुआ। 17 साल 6 महीने की उम्र में 16 दिसंबर 2012 को दिल्‍ली के बसंत विहार में निर्भया के साथ जिस शख्‍स ने सबसे ज्‍यादा बर्बरता की थी, वो  सबसे कम सजा पाकर छूट गया। मीडिया में बात सामने न आई होती तो शायद दिल्‍ली सरकार की ओर से उसे नई जिंदगी शुरू करने के लिए 10, 000 रुपए और एक सिलाई मशीन भी मिल गई होती।
न आई होती तो शायद दिल्‍ली सरकार की ओर से उसे नई जिंदगी शुरू करने के लिए 10, 000 रुपए और एक सिलाई मशीन भी मिल गई होती और उसकी रिहाई में दिल्ली सरकार की बड़ी भूमिका रही है। यही नहीं तमाम तथाकथित बुद्धिजीवी और मानवाधिकारी संघटनों ने भी उसको बचाने में अहम योगदान दिया।