Monday, May 13, 2019

581. पहला आतंकी!

आतंक का धर्म

आतंक का जब धर्म नहीं, फिर तुमने कैसे जाना,
हिन्दू ही था पहला आतंकी, यह तुमने कैसे माना?

गोडसे ने मारा गाँधी, जिसका उसको दण्ड मिला,
जिसने काटा भारत, उसको राज अखण्ड मिला?

हत्यारा और आतंकी में, जो फर्क समझ तुम पाते
नहीं करते विष वमन यूँ, ना ऐसे उलझ तुम जाते।

भूल गये क्यूँ जिन्ना को, जिसने भारत काटा था,
कुर्सी की ख़ातिर जिसने अपनों को ही बांटा था।

देश विभाजन में आख़िर कितना था संहार हुआ
भाई-भाई कट मरे सब, कैसा वो नरसंहार हुआ।

निर्दोषों की जानें जाती, जब जिहाद वो करता है
बहत्तर हूरों की ख़ातिर, क्यूँ नौजवान वो मरता है।

निकल पड़ते हजारों जब, ले जनाज़ा आतंकी का
नहीं दिखता क्या धर्म तुम्हें, तब उस आतंकी का?

नहीं आतंकी का धर्म यहाँ, नहीं उसका मज़हब है,
मानवता का दुश्मन, आतंक ही उसका मज़हब है।

नहीं लड़ाती गीता कभी, ना कुरान ही बैर करवाते
स्वार्थ सियासत की ख़ातिर नेता ही सबको मरवाते।

सहज-सरल-सहिष्णु हिन्दू, नहीं आतंकी बोता है,
प्रेम करुणा का वाहक हिन्दू,नहीं आतंकी होता है।
©पंकज प्रियम

Wednesday, May 8, 2019

580.कसूर क्या है

कसूर क्या है

नज़र नज़र का हुआ असर है, बता न मेरा कसूर क्या है,
पिला के नज़रों से जाम हमको, बता रहे हो सुरूर क्या है।

नज़र मिला के नज़र चुराना, बड़ी अदा से नज़र झुकाना,
इसी नज़र से हुआ मैं घायल, तुम्हीं बताओ हुजूर क्या है।

नज़र तुम्हारी बड़ी है क़ातिल, कहाँ जरूरत तुम्हें है खंज़र
इसी समंदर समायी दुनियां, हुआ इसी पर गुरूर क्या है।

सफ़र अभी तो शुरू हुआ है, अभी डगर पे ठहर न जाना,
डगर पे हमने कदम रखा है, अभी गिराना जरूर क्या है।

प्रियम को तेरी बहुत जरूरत, नहीं जताया मगर कभी भी,
अगर बुलाओ उसे कभी जो, सफर यहाँ आज दूर क्या है।

©पंकज प्रियम

Tuesday, May 7, 2019

579.जीवन पथ

जो आया है वो जाएगा, कौन यहाँ रह पाएगा।
माटी का यह देह यहीं पे, माटी में मिल जाएगा।

बचपन समझो भोर उजाला,
उमर जवानी तपती ज्वाला।
साँझ ढले ज्यूँ आये बुढ़ापा,
पलपल खोये जो खुद आपा।

घोर अंधेरा जब छाएगा, सूरज तो थम जाएगा।
जो आया है वो जाएगा, कौन यहाँ रह पाएगा।

ये धन-दौलत ये सब शोहरत,
ये रंग-जवानी और ये सूरत।
प्रेम-मुहब्बत और ये नफ़रत,
जीवन भर की सारी ज़रूरत।

सबकुछ यहीं रह जाएगा, संग नहीं कुछ जाएगा
जो आया है वो जाएगा, कौन यहाँ रह पाएगा।

किस बात पे है तू अभिमानी
सबको ही मूरख समझे ज्ञानी।
जीवन नश्वर कुछ नहीं काया
सबकुछ है कुछ पल की माया।

पल में धड़कन थम जाएगा, कौन इसे कह पाएगा।
जो आया है वो जाएगा, कौन यहाँ रह पाएगा।

©पंकज प्रियम

Monday, May 6, 2019

578. गंदी सियासत

डर्टी पॉलिटिक्स

कभी जूते, कभी चप्पल, कभी स्याही, कभी थप्पड़,
बता हरबार क्यूँ सरजी, .यहाँ खाते तुम्हीं लप्पड़।
किया है पाप क्या तूने, किसी का दिल दुखाया है-
भला तुझको सदा ही क्यूँ, यहाँ देते सभी झप्पड़।।

कहीं जूते कहीं थप्पड़, कहीं स्याही कहीं चप्पल,
सियासी मंच में अब तो दिखे ड्रामा यही पलपल।
गिरी है शाख अब सबकी, नहीं कंट्रोल है अबकी-
चुनावी जंग में अब तो, जुबानी तीर चले हरपल।।

गलत ये बात है लेकिन,    करे जनता यहाँ पे क्या,
लगी जब चोट हो दिल पे, भला वो चुप रहेगा क्या।
दिखाकर ख़्वाब नेता जो, भरोसा तोड़ जाता है-
भड़क कर के यही जनता, लगादे हाथ तो फिर क्या।

कहीं जुमले कहीं नारे, कहीं थप्पड़ यहाँ मारे
जुबानी जंग सभी लड़ते, सभी मुद्दे यहाँ हारे।
नहीं जनता यहाँ कोई, दिखे सब वोट हर कोई-
सियासी खेल में वोटर, वही हरदम यहाँ हारे।।

बड़ी बेशर्म महबूबा, जुबाँ है पाक की इसकी,
लगी मिर्ची इसे देखो, मिली जो पाक को धमकी।
अगर इतनी मुहब्बत है, पड़ोसी मुल्क से तुझको-
चले जाओ उसी के घर, तुझे चाहत यहाँ किसकी।।

अरे राहुल ! सुनो मेरी,  चलो अब मान भी जाओ,
अदालत से लिया माफ़ी, कहा जो मान भी जाओ।
निकल के कोर्ट से बाहर, वही फिर बात दुहरायी-
तुम्हारी बात बचकानी, इसे तुम जान भी जाओ।।

टिकट की आस में नेता, यहाँ पल-पल बदलता है,
टिकट जो कट गयी उसकी, नया वो दल बदलता है।
न कोई राज रहता है, न कोई नीति रहती है-
सियासी खेल में नेता,  जगह हरपल बदलता है।।

झटक कर हाथ राहुल का, पकड़ ली हाथ उद्धव की।
किया निराश राहुल ने,  प्रियंका हो गयी शिव की,
मुखर आवाज़ कांग्रेसी,  भला वो चुप कहाँ रहती-
दिया जो छेड़ गुंडों ने  बनी सेना वही शिव की।।

दिखाकर ख़्वाब मीठे वो, करेगा वोट का सौदा,
पकड़ कर पैर वो तेरा, करेगा झूठ का सौदा।
अभी नेता बना बैठा,  यहाँ पर वोट सौदागर-
कभी ना नोट से करना, नहीं तुम वोट का सौदा।।

उगाये खेत से सोना, वही किसान होता है,
जमीं का चीर के सीना, जमीं पे जान बोता है।
किसानों की भलाई का, करे दावा सभी नेता-
लगा फाँसी अन्नदाता, भला क्यूँ प्राण खोता है।।

चयन तुम आज ही कर लो, किसे कुर्सी बिठाना है,
किसे नीचे गिराना है, किसे ऊंचा उठाना है।
मिला अधिकार है तुमको, नया निर्माण करने को-
तुम्हारे हाथ चयन होगा, किसे रखना हटाना है।।

निकल आओ घरों से अब, हमें सबको जगाना है,
हमारी वोट की ताक़त, हमें जग को दिखाना है।
मिला अधिकार है हमको, नया निर्माण करने को-
सही मतदान अब कर लो, नहीं इसको गँवाना है।।
©पंकज प्रियम

Sunday, May 5, 2019

577.डर्टी पॉलिटिक्स

डर्टी पॉलिटिक्स

कभी जूते, कभी थप्पड़, कभी स्याही, कभी गाली,
बता हरबार क्यूँ सरजी,.. ..यहाँ खाते तुम्हीं गाली।
किया है पाप क्या तूने,. किसी का दिल दुखाया है-
भला तुझको सदा ही क्यूँ, ..यहाँ देते सभी गाली।।

कहीं जूते कहीं थप्पड़, कहीं स्याही कहीं चप्पल,
सियासी मंच में अब तो दिखे ड्रामा यही पलपल।
गिरी है शाख अब सबकी, नहीं कंट्रोल है अबकी-
चुनावी जंग में अब तो, जुबानी तीर चले हरपल।।

©पंकज प्रियम

576. मर्यादा

गंदी बात

आज सीमा बहुत हताश-निराश थी. जाहिद खान जिसे उसने अपना भाई से बढ़कर माना था, सम्मान दिया था.

"आज उसने सारी मर्यादा लाँघ दी . यूँ तो कई बार उसके खिलाफ अपशब्द कहे लेकिन आज .उसने... जो भरे मंच से कहा ...मानो भरे दरबार में किसी ने उसका चीरहरण कर लिया हो."

.. कई वर्षो से सीमा और जाहिद दोनों एक ही पार्टी से थे और पिछली बार का चुनाव भी जीता था. इसबार दूसरे दल से चुनाव लड़ रही थी और जाहिद खान की प्रतिद्वंदी बन गयी थी. चुनाव प्रचार में जाहिल ने सीमा को लेकर इतनी गन्दी बात कह दी की रामनगर में यह चर्चा का विषय बन गया.

"अरे ,रामू आज जाहिद खान का बयान सुना बेचारी सीमा के बारे में कैसी बातें कर रहा था ?" मोहन ने रामू से मिलते ही पूछा .

" हाँ सुना टीवी पर.कितना बेशर्म है, अरे माना की वो उसके विरोध में खड़ी है लेकिन किसी महिला के विषय में ऐसा बयान .छि -छि -छी" रामू तो बिलकुल आवेश में आ गया.

" बताओ तो सही, कोई सभ्य नेता औरतों के विषय में ऐसी बात करता है? उसने तो मर्यादा की सारी सीमा लाँघ दी. उसे सबक तो सिखाना ही होगा "

" अरे हैरानी की बात तो यह है की असहिष्णुता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और लोकतंत्र की दुहाई देने वाले सारे नेता,बुद्धिजीवी, पत्रकार, कलाकार और मानवाधिकारी इसपर चुप्पी साध कर बैठे हैं।"

" तुम्हे समझ में नही आ रहा है जाहिद खान के पीछे एक खास वोट बैंक है .कोई उसके खिलाफ बोल कर अपना नुकसान नहीं करना चाहता है."

'यही तो इस देश का दुर्भाग्य है जो इसे खोखला करता जा रहा है."

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड
pankajkpriyam@gmail.com
Http://pankajpriyam.blogspot.com

575. भेद अभेद

मुक्तक

मत से मत का ऐसा मतभेद हो गया
अलग कुरान बाइबिल वेद हो गया।
बिखर गए सब यूँ रंग-वर्ण-धर्मों में,
जन-मन के भेद में अभेद खो गया।।

©पंकज प्रियम

574. बदलते रिश्ते

एसडीएस

                 कोमल के व्यवहार में आये परिवर्तन को देख प्रेम हैरान था।  उससे बात किये बगैर जो एक पल भी नहीं रह पाती थी आज वही नजरें बचा रही थी। साथ रहना-साथ खाना-पीना , उठना-बैठना। दिनरात फोन पर बातें करना। प्रेम और कोमल मानों दो जिस्म एक जान से थे। उसकी हर फरमाइश की पूरी करना प्रेम का कार्य था। अपना सबकुछ छोड़कर वह कोमल की खुशियां पूर्ण करने में लगा रहता। फिर एक दिन कोमल की शादी हो गयी और वह बहुत दूर चली गयी। शादी के कुछ दिनों तक थोड़ी बहुत बातचीत हुई। फिर धीरे-धीरे बातचीत का सिलसिला कम होने लगा। कोमल ने बात करना भी बंद कर दिया।

    कोमल की शादी के करीब दो साल बाद प्रेम और कोमल की दुबारा मुलाकात हुई तो वह बिल्कुल अजनबियों सा व्यवहार कर रही थी। दिनरात फोन कर बातें करने को जिद करती और अब स्थिति ये है कि सामने भी चुपचाप थी। उसकी चुप्पी प्रेम को खाये जा रही थी। जो कभी उससे सलाह लिए कोई काम नहीं करती थी, आज अपने मन की मालकिन बनी हुई थी। शादी के बाद कितनी बदल गयी थी वो। जिसे कभी अपना भगवान मानती थी अब
आखिर प्रेम ने ही चुप्पी तोड़ी।

" तुम इस कदर बदल जाओगी मुझे अंदाजा नहीं था।"

" आखिर तुम मुझसे बातचीत क्यों नहीं कर रही हो।"

कोमल ने खुद में ही खोये हुए कहा "बस यूँ ही मन नहीं करता."

" क्या अब हमारा रिश्ता खत्म हो गया ? हमारे बिना तो तुम्हें एक पल भी मन नहीं लगता था। अब क्या हो गया?"

" शादी के बाद रिश्ते बदल जाते हैं। मैं भी बदल गयी हूँ"

" ठीक है लेकिन कुछ रिश्ते कभी बदलते नहीं। तुम्हारा यह व्यवहार मुझे तकलीफ देता है। तुम्हें अच्छा लगता है क्या?"
" अब मुझे आपके दर्द-तकलीफ से क्या मतलब। मेरा अब अपना परिवार है। रिश्ते बदल गए हैं।"

"हाँ सही कहा तुमने, जरूरत के हिसाब से अब रिश्ते बदलने लगे हैं। तुम भी बदलते रिश्ते का एक किरदार भर हो."

©पंकज प्रियम

573. देशद्रोहियों के नाम

आस्तीन में छुपे साँपो,

क्या कहूँ तुझे? मन तो करता है कुचल डालूँ फन तुम्हारा अपने हाथों से। लेकिन हमारे देश का पवित्र संविधान कानून को अपने हाथ में लेने की इजाज़त नहीं देता। मैं अपने शब्द रूपी तीरों से ही तेरी छाती को छलनी करूँगा। अरे! जरा भी शर्म नहीं आती तुमलोगों को अपने मुल्क से गद्दारी करते हुए। जमीर तो बचा ही नहीं तुम्हारे रूह में कम से कम नमक हरामी तो मत करो। इतिहास गवाह है विभीषण भले ही रामभक्त कहलाया लेकिन देशद्रोही होने के कारण कभी पूजा नहीं गया। जयचंद आज गद्दारों का उदाहरण बन चुका है। दो अपनी माटी, अपने मुल्क का न हुआ वो किसी और का क्या हो सकता है? याद रखो अपने मुल्क के गद्दारों पर दुश्मन भी आँख मूंदकर भरोसा नहीं करता। वो सिर्फ तुम्हे मोहरा बनाएगा और जब काम निकल जाएगा तो एक दिन तुम्हें भी खत्म कर देगा। दुनिया भर के मुल्कों में झाँककर देख लो इतनी आज़ादी और सहिष्णुता कहीं और दिखता है क्या? फिर भी तुम्हें आज़ादी चाहिए। जिसने तुमको पाला पोसा,हर सुख सुविधा दी उसी भारत माता की गोद में बैठकर उसे तोड़ने,खत्म करने की बात करते हुए। घिन आती है तुम्हारी सोच पर जो दुश्मनों के सुर में सुर मिलाते हो। उसकी जयजयकार करते हुए। पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते हो। जरा उस देश मे जाकर भारत माता की जय बोलकर दिखाओ तो समझूँ।
और अधिक क्या लिखूं तुमलोगों के कारण ही देश कमजोर पड़ता है और दुश्मनों को हमले का मौका मिलता है। अब भी वक्त है सुधर जाओ वरना न घर के रहोगे और न घाट के।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

572. साहित्यकार का धर्म

एक पत्रकार,कलाकार और साहित्यकार को बिल्कुल निष्पक्ष रूप से सभी चीजों को देखना चाहिए। न किसी दल के पक्ष में और न विपक्ष में। सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत होनी चाहिए। अपने देश,धर्म और समाज को गाली देने वाले ही बुद्धिजीवी कहलाते हैं और संस्कृतियों का निर्वाह करने वाले ज़ाहिल।टुकड़े गैंग के साथ लोग खड़े हो जाते हैं अवार्ड वापसी की बात करते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं दिखता की इतनी आज़ादी दूसरे मुल्कों में लोगों नसीब नहीं है।
आलोचना सरकार की अवश्य होनी चाहिए लेकिन उसके अच्छे कार्यों की भी सराहना होनी चाहिए। जैसे अंध भक्ति घातक होती है ठीक उसी तरह अंध विरोध महा घातक होता है।
©पंकज प्रियम

571. लाचार

नज़र आता है

हर अक्स यहाँ बेज़ार नज़र आता है,
हर शख्स यहां लाचार नज़र आता है।

जीने की आस लिए हर आदमी अब,
मौत का करता इंतजार नज़र आता है।

काम की तलाश में भटकता रोज यहाँ
हर युवा ही बेरोजगार नज़र आता है।

छाप अँगूठा जब कुर्सी पर बैठा तब,
पढ़ना लिखना बेकार नज़र आता है।

भूखे सोता गरीब, कर्ज़ में डूबा कृषक
हर बड़ा आदमी सरकार नज़र आता है।

गाँव शहर की हर गली में मासूमों संग,
यहाँ रोज होता बलात्कर नज़र आता है।

और क्या लिखोगे अब दास्ताँ 'प्रियम'
सबकुछ बिकता बाज़ार नज़र आता है।
©पंकज प्रियम

570. वोट का सौदागर

सौदागर
1222 1222, 1222 1222
दिखाकर ख़्वाब मीठे वो, करेगा वोट का सौदा,
पकड़ कर पैर वो तेरा, ...करेगा झूठ का सौदा।
अभी नेता बना बैठा,    यहाँ पर वोट सौदागर-
कभी ना नोट से करना, नहीं तुम वोट का सौदा।।

करे सौदा हमेशा जो,  उसे तुम जान सौदागर,
नफे की बात ही करता, नहीं नुकसान सौदागर।
करे सौदा अभी कैसे, यहाँ हर शख्स अपनों से-
अभी हर शख्स की देखो,बनी पहचान सौदागर।।
©पंकज प्रियम

569. कहर

कहर

बदलता ये मौसम हरपहर देखिए,
सुबह धूप बरसता दोपहर देखिए।

गाँव में सुकून अब मिलता नहीं,
खुद में सिमटता ये शहर देखिए।

जल रही जमीं, दहकता आसमां
धरती पे सूरज का कहर देखिए।

सूखने लगे है यहाँ नदी और नाले
हवा को जलाती हुई लहर देखिए।

हुई नंगी सड़कें, कट गए पेड़-पौधे
मिले छाँव ऐसा कोई ठहर देखिए।

हवाओं को हमने सताया है इतना
सांसों में घुलता ये जहर देखिए।

गर्मी में तूफ़ां और बरसात सूखा,
धुंध में लिपटा हुआ सहर देखिए।

©पंकज प्रियम

568. भारत की ताकत

भारत माता की जय हो!
मुक्तक/विधाता छंद

तरेरी आँख जो अपनी, झुकाया चीन को हमने,
अकल आयी ठिकाने पे, उड़ाई नींद जो हमने।
मिली पहचान आतंकी, उसी अज़हर मसूदी को-
यही औकात है उसकी, बताया चीन को हमने।।
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हमारी धाक है कितनी, दिखाया विश्व को हमने,
नया भारत खड़ा ऊँचा, झुकाया विश्व को हमने।
नहीं डरता नया भारत, नहीं झुकता नया भारत-
चटायी धूल दुश्मन को, दिखाया विश्व को हमने।।
©पंकज प्रियम

567. सेना और सियासत

तेज बहादुर के नामांकन रदद् होने पर हायतौबा क्यूँ?

तेज बहादुर नियमों से ऊपर है क्या। नामांकन में गलती के कारण हजारों पर्चे रदद् हुए हैं और यह पहला मामला नहीं है। हर बार चुनाव में पर्चे रदद् होते हैं क्योंकि चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार ही पर्चे दाखिल करने होते हैं इसलिए लोग कई सेटों में नामांकन करते हैं। तेज बहादुर का भी पर्चा गलत जानकारी देने की वजह से रदद् हुआ है। उसने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जो जानकारी भरी थी,सपा उम्मीदवार के रूप में भरे पर्चे में अलग ही जानकारी दी गयी। इसके बाद ही चुनाव आयोग ने स्पस्ट जानकारी देने को कहा। जानकारी नहीं दे पाने की वजह से नामांकन रदद् हुआ है इसमें हायतौबा मचाने की क्या जरूरत है? आज  वह लोगों की नजर में सिर्फ इसलिए हीरो बना हुआ है क्योंकि वो मोदी के खिलाफ चुनाव में खड़ा था किसी और जगह से होता तो कोई घास भी डालता क्या ? दरअसल यह सिर्फ इसकी पब्लिसिटी स्टंट है। अगर वाकई चुनाव जीतकर सिस्टम को बदलने की चाहत रहती तो अपने क्षेत्र से खड़ा होकर चुनाव लड़ सकता था जहां इसको लोग जानते पहचानते थे लेकिन नहीं इसके मन सिर्फ लाइमलाइट में आने की चाहत थी इसलिए प्रधानमंत्री के खिलाफ खड़ा हो गया। इसके फेसबुक फ्रेंडलिस्ट में करीब 500 पाकिस्तानी है तो बहुत हदतक कोई बड़ी साजिश का भी यह मोहरा हो। ऐन मौके पर समाजवादी पार्टी का अपने घोषित प्रत्याशी शालिनी यादव को बिठाकर इसको उम्मीदवार बनाने का मकसद क्या है? लोगों की भावनाओं के साथ खेलने की गन्दी साजिश। महागठबंधन ने इसको पहले टिकट क्यों नहीं दिया? केजरीवाल की तरह पूर्वाग्रही होकर ही इसने भी मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने हरियाणा से बनारस पहुंच गया। जिस सेना ने उसको बर्खास्त कर दिया उसी के नाम पर लोगों से हमदर्दी जुटाने की नाकाम कोशिश शुरू कर दी। जो अपने नियोक्ता के प्रति,देश की सुरक्षा के प्रति वफादार नहीं रहा ,सेना में जिसका मन नहीं लगा वो भला क्या देश की सेवा करेगा?

रही बात उससे हमदर्दी दिखानेवालों की तो आज जो इसके साथ हमदर्दी दिखा रहे हैं वो तब कहाँ थे? जब उसे सेवा से बर्खास्त किया गया था। तब उसकी नौकरी बचाने के लिए क्यों नहीं आगे आये थे? सेना से उसकी बर्खास्तगी उसकी कार्यप्रणाली और कर्तव्यहीनता के कारण हुई है। किसी भी सैनिक पर कार्रवाई बिना सबूत और ठोस कारण के नहीं हो सकता और अगर वो सही था तो फिर बर्खास्तगी के खिलाफ तब कोर्ट क्यों नहीं गया? सरहद पर हमारे वीर जवान देश के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर देता है और इसे सिर्फ दाल की ही चिंता थी? अगर वाकई में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की कूबत थी तो उस सिस्टम के खिलाफ न्यायालय जाता और कार्रवाई नहीं होती तब कहता। जानकारी के मुताबिक उसके बेटे ने उसके नशाखोरी और उटपटांग क्रियाकलापों से तंग आकर आत्महत्या कर ली।
          सेना के नाम देश की भावनाओं से मत खेलो बहादुर! सेवा में रहते तो देश की सेवा न कर सका कम से कम अब समाज के लिए ही ईमानदारी दिखाओ। सियासी गलियारे का मोहरा मत बनो।
पंकज भूषण पाठक

566. साधु और सियासत

साधु संतों के चुनाव लड़ने पर हाय तौबा क्यूँ?

कुछ साधु संतों की सियासत में इंट्री से लोगों में हायतौबा मची है। देश के टुकड़े करने और देश विरोधी नारे लगाने वाले तथाकथित क्रांतिकारी के पक्ष जो लोग गली-गली वोट देने की अपील कर रहे हैं वही लोग साधु-संतों को टिकट दिए जाने पर अपनी छाती पीट रहे हैं। अरे ,क्या हो जाएगा ? अगर वो संसद पहुंच गए। आतंकी और देशद्रोही विचारधारा वालों से तो बेहतर हैं। जिनके आगे पीछे भ्रस्टाचार करने का कोई कारण नहीं। किसके लिए कमाएंगे और चोरी करेंगे। बहुत पापी और अपराधी भर गए हैं संसद में उसको पवित्र करने और सद्ज्ञान के लिए कुछ साधु संतों का भी जाना आवश्यक है। जैसे खिलाड़ी,कलाकार,साहित्यकार, पत्रकार,व्यापारी, चोर,लफंगे,डाकू, क़ातिल, अपराधी, दुष्कर्मी, दक्षिणपंथी, वामपंथी,नक्सली और आतंकी जब संसद जा सकते हैं तो फिर साधु सन्यासी क्यूँ नहीं? आजम खान जैसे बदजुबान, महबूबा जैसी आतंक परस्त जैसे लोग जब संसद पहुंच सकते हैं तो फिर साधु संत क्यों नहीं? किसे संसद जाना है और नहीं ये तो  वोट देकर जनता ही तय करती है। राजतन्त्र में भी राजाओं के दरबार में साधु संतों को मंत्री और सलाहकार बनाया जाता था। उनके ही कुशल रणनीति से राजा राज्य करता था। मौर्य काल में कौटिल्य चाणक्य हो, रामराज्य में महर्षि वशिष्ठ हों, महाभारत काल में कृपाचार्य सबों ने अपनी विद्वता से राजाओं को शक्ति प्रदान की। आज भी परोक्ष रूप से सभी बड़े नेताओं के सलाहकार विद्वान संतपुरुष ही है। जो चुपचाप नेपथ्य में रहकर नेताओं को राजनीति के गुर सिखाते रहते हैं। उनके बगैर किसी नेता का कोई अपना वजूद नहीं।
अब बात जरा साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के उस बयान की कर ली जाय जिसमें उन्होंने शहीद हेमन्त करकरे को श्राप देने की बात कही जिसपर पूरे देश मे हाय तौबा मची है लेकिन  जिस कन्हैया ने देश की सेना को रेपिस्ट कहकर अपमान किया उसके लिए तमाम तथाकथित बुद्धिजीवी, स्वयम्भू पत्रकार गली-गली प्रचार कर रहे हैं क्योंकि वो देश के प्रधानमंत्री को गाली देता है देश के संविधान को नहीं मानता। प्रज्ञा ठाकुर ने भी गलत वक्त में गलत बयान दिया लेकिन यह उनकी पीड़ा थी जो फुटकर बाहर निकल पड़ी होगी। अब वह कितनी दोषी है यह साबित करना कानून का काम है जिसे सब को स्वतंत्र रूप से करने देना चाहिए। शायद प्रज्ञा ने जो कहा वो अपनी पीड़ा में कहा और इसके लिए उसने माफ़ी भी मांग ली जैसे कि चौकीदार चोर के मामले में राहुल गाँधी ने मांगी। न तो मैं प्रज्ञा का समर्थन नहीं करता और न ही करकरे की शहादत के अपमान की बात का। उन्हें उनकी वीरता का सर्वोच्च सम्मान मिला है और हमारी पूरी श्रद्धा उनके परिवार के साथ है। इसका ये मतलब नहीं कि जो सच है उसको आँख मूंदकर भरोसा कर लिया जाय।  भगवान होने के बावजूद श्री राम को सीता के त्याग के लिए क्षमा नहीं किया गया।  ये सामान्य सी बात होती है कि जो आपको असहनीय पीड़ा दे उसके प्रति अपशब्द निकल ही जाते हैं। हम आप कोई भी हो अगर किसी की वजह से कष्ट मिलता है तो उसे गाली अवश्य देते हैं चाहे वो कितना भी महान क्यूँ न हो। अगर आप या हम भी प्रज्ञा की जगह होते और उतने कष्ट मिले होते तो सौ फीसदी गारण्टी के साथ कहता हूं कि आपके और हमारे भी भी वही शब्द होते। यह एक सामान्य तौर पर न्यूटन के नियमानुसार एक क्रिया के बदले प्रतिक्रिया है जो हर किसी के मन हो जाती है। आदमी को अगर कष्ट हो जाता है तो ईश्वर को भी बुरा भला कह देता है। सीता की अग्नि परीक्षा और वनवास के लिए लोग आज भी भगवान राम को दोषी मानते हैं।

©पंकज प्रियम

565. वोट की चोट

वोट की चोट

धूल चटा दो उस बोली को, जो देश विरोधी बात करे।
भारत की रोटी खाकर, जो भारत से ही प्रतिघात करे।

कुचल डालो फ़न उसका, जो ज़हर उगल के घात करे।
आस्तीनों में छुपकर हरदम, जो भीतर-भीतर घात करे।

हुआ नहीं जो देश का अपना, क्यूँ उसपर विश्वास करें।
देश तोड़ने की इच्छा रखता, क्यूँ उसकी हम आस करें।

हुआ नहीं जो धर्म का अपना, क्या करेगा पूरा सपना।
अपसंस्कृतिओं का जो वाहक, कब होगा तेरा अपना।

मुग़ल, ब्रिटिश या यूनानी, संस्कारों पर ही वार किया।
नजऱ गड़ाई मन्दिरों पर, हमला सबने हर बार किया।

हमें लड़ाकर आपस में ही, यहाँ बर्षों तक राज किया।
लूट ले गए धन वो सारे, नहीं हमारा कुछ काज किया।

आज़ाद कर गये फिरंगी पर, अंदर ही अंदर तोड़ गये
कुटिल सियासत की रियासत, यहीं पर वह छोड़ गये।

आ गया फिर वक्त वही, फिर से इतिहास दोहराना है।
वोट का अब चोट देकर, सब जयचन्दों को हराना है।

बुज़दिलों की यह धरा नहीं, लिखा इतिहास है वीरों ने।
हर दुश्मन को धूल चटायी, सदा भारत के शूरवीरों ने।

आया लुटेरा बाबर चाहे, काना ख़िलजी या फिर गोरी
छक्के छुड़ाये हमने सबके, करनी चाही जिसने चोरी।

वीर शिवा की धरती है ये, महाराणा प्रताप की भूमि है।
झाँसी की रानी से थर्राये, अंग्रेज़ो ने यह माटी चूमि है।

जब टिका नहीं ग्रेट सिकन्दर, क्या औकात तुम्हारी है।
धूल चटा दूँ अब मत से तुझको, यह औकात हमारी है।

©पंकज प्रियम
29/04/2019

देश के सुनहरे भविष्य के लिए अपना मतदान करें।

564. कलाकारों की नजायज माँग

कलाकार और कथित लेखकों की नाजायज़ अपील
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पंकज भूषण पाठक

     कल जो फिल्मी सितारे और लेखक बीफ़ पर रोक पर कह रहे थे कि हमें क्या खाना है यह हमें तुम न बताओ। ये हमारा मौलिक अधिकार है। आज वही सारे कलाकार-लेखक पत्र लिखकर लोगों से कह रहे हैं की बीजेपी को वोट मत दो।  नसरुद्दीन शाह, कंगना रानौत, अनुराग कश्यप समेत करीब 600 फिल्मी कलाकार और लेखकों ने पत्र लिखकर लोगो से बीजेपी को वोट नहीं देने की अपील की है। इनमे से अधिकांश वही सारे नाम हैं जिन्होंने बीफ मामले में हंगामा खड़ा किया था, आतंकी अफज़ल गुरु को फाँसी न देने की याचिका पर हस्ताक्षर किया था। साथ ही असहिष्णुता को लेकर अवार्ड वापसी का ढोंग रचा था  हद है सुतियापे की! यही नसीरुद्दीन शाह को भारत के माहौल पर गुस्सा और डर लगने लगा था लेकिन न तो अपने सहयोगी महिला कलाकार जयप्रदा के ख़िलाफ़ आज़म खान की बदजुबानी पर गुस्सा आया और न ही श्रीलंका में हुए आतंकी हमले से उन्हें डर महसूस हुआ। इतनी दोहरी मानसिकता वाले कलाकार क्या संदेश देना चाहते हैं? अरे इनका तो काम ही है पैसे लेकर अभिनय करना जैसे सरफ़रोश फ़िल्म का रोल!

वाह रे कलाकार ! तुम करो तो रासलीला, कोई और करें तो करेक्टर ढीला!  क्या ये वोटरों के मौलिक अधिकार का हनन नहीं है? क्यूँ माने तुम्हारी बात कोई मतदाता,उसका भी तो मौलिक अधिकार है और मतदान तो गुप्तदान होता है। किसे वोट देना है और किसे नहीं देना है यह उसका अपना विवेक है। वोटर तुम्हारी बात क्यूँ माने ? किसे वोट देना है ये तुम न बताओ। किसी प्रत्याशी या दल में पक्ष में वोट की अपील तो जायज है लेकिन किसी को वोट न देने का दबाव देना तो सरासर गलत है। ये कोई चड्ढी बनियान का विज्ञापन है क्या की तुम पैसे लेकर जो दिखाओगे पब्लिक उसे सच मान लेती है। भले तुम उस प्रोडक्ट को देखते भी नहीं हो निजी जीवन में। कलाकारों को लोग आदर्श मानते हैं लेखकों को मार्गदर्शक, अगर यही दल विशेष के लिए कार्य करने लगे तो निष्पक्षता कहाँ रह जाएगी। एक साहित्यकार,पत्रकार और कलाकार को सदैव निष्पक्ष रूप से जनहित में कार्य करना चाहिए, किसी दुराग्रह, द्वेष या स्वार्थ में नहीं।

        
मतलब साफ है कि ये सारे कलाकर किसी एजेंडे के तहत ही कार्य कर रहे हैं। जिनके पीछे कोई बड़ी शक्ति नेपथ्य में कार्य कर रही है। अधिकतर या तो आउटडेटेड हैं या फिर बेकार ।
©पंकज प्रियम
(पंकज भूषण पाठक)

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