Monday, April 29, 2019

546. मन उदास है

मन उदास है।

तू किसी और के जो अब पास है
मेरा मन इसलिए बहुत उदास है।

देख लेना झांक कर तुम अंदर
दिल मेरा भी तुम्हारे ही पास है।

तेरा दावा की नूर छीन लिया मैंने
मेरा भी चैन तुम्हारे आसपास है।

तू ही तो हो मेरी पहली मोहब्बत
तू ही तो मेरा पहला अहसास है।

तेरे लबों की हंसी मेरी थी खुशी
तेरे लिए अब कोई और खास है।

फूलों से महकते तेरे घर के रस्ते
वो पगडंडिया भी अब उदास है।

निगाहों में डूबा रहता था अक्सर
अश्कों से अब बुझ रही प्यास है।

सुबह की धूप भी लगती है कड़ी
रात में चाँद भी दिखता निराश है।

पथरा गयी है अब ये आँखे मेरी
सूरज के संग ढलती अब आस है

©पंकज प्रियम

Wednesday, April 10, 2019

545.मतदान


*मतदान*
निकल आओ घरों से अब, हमें सबको जगाना है,
हमारी वोट की ताक़त, अभी जग को दिखाना है।
मिला अधिकार है हमको, नया निर्माण करने को-
सही मतदान अब कर लो, नहीं इसको गंवाना है।

©पंकज प्रियम

Tuesday, April 9, 2019

544.गद्दारों की बोली

गद्दारों की टोली

निकल पड़ी फिर से जयचंदो की टोली है
सुनो इनकी कैसी ये देशविरोधी बोली है।

पाक की मेहबूबा रोई,अब्दुल्ला भन्नाया है
आतंकी आका को अपना दर्द सुनाया है।

घर में रहके जो दुश्मन की ख़ातिर रोता है
ऐसे नमक हरामों का कहाँ जमीर होता है।

सुनो दिल्ली वालों! तूने क्यूँ मौन साधा है?
आतंकवाद मिटाने का किया तूने वादा है।

देशविरोधी नारों में खुद को जिसने ढाला है
हुई हिम्मत कैसे इनकी, क्यूँ इनको पाला है?

कुचल डालो फन आस्तीन में छुपे साँपों का
बहुत भर गया है घड़ा अब इनके पापों का।

देना होगा मुँहतोड़ जवाब, ऐसे मक्कारों को
दुश्मन से पहले मारो, देश में छुपे गद्दारों को।

इनके ही शह पर चलती सरहद पर गोली है
आतंकी चंदो से भरती इनकी सदा झोली है।

©पंकज प्रियम
09/04/2019

Monday, April 8, 2019

543.छोड़ दूंगा जमाना


मुहब्बत मुझे ना कभी आजमाना
तुम्हारे लिए...छोड़ दूँगा जमाना।
अभी तो मुहब्बत शुरू ही हुआ है
कहो तो अभी छोड़ दूँगा जमाना।

तुझे देखकर ये,  मुझे क्या हुआ है
अभी तो यहीं था अभी क्या हुआ है
निगाहों से ऐसे न मुझको पिलाना।
तुम्हारे लिए......छोड़ दूँगा जमाना।

तुम्हारी निगाहें,  बड़ी क़ातिलाना
लगाती है दिल पे ये सीधे निशाना
निगाहों के ख़ंजर न मुझपे चलाना।
तुम्हारे लिए.....छोड़ दूँगा जमाना।

अभी तो सफ़र ये शुरू ही हुआ है
नज़र का नज़र पे नया कारवां है।
अकेले डगर में..नहीं छोड़ जाना,
तुम्हारे लिए....छोड़ दूँगा जमाना।

©पंकज प्रियम
08/04/2019

542.महाराणा प्रताप

पढ़ी किताबों में हमने, जिनकी अमर कहानी थी
हल्दीघाटी की माटी में, बहती वीर बलिदानी थी।

मुगलों के आगे जब सबने, था रण छोड़ दिया।
अकेले महाराणा ने तब जवाब मुँह तोड़ दिया।

आज़ादी का दीवाना, माटी-मुल्क मतवाला था
हवा से बातें करता चेतक, लहू पीता भाला था।

शौर्य-पराक्रम के आगे, अकबर भी घबराता था
वो प्रताप रणकौशल से, महाराणा कहलाता था।

सबकुछ खोकर भी उसने, कभी हार न मानी थी।
घास की रोटी खाकर भी, लड़ी युद्ध मैदानी थी।

©पंकज प्रियम

Sunday, April 7, 2019

541. प्रेमांजली- वो भूली दास्तां

"प्रेमांजली- वो भूली दास्तां..", को प्रतिलिपि पर पढ़ें : https://hindi.pratilipi.com/story/btbFRE4YYvx1?utm_source=android&utm_campaign=content_share भारतीय भाषाओमें अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और सुनें, बिलकुल निःशुल्क!

Saturday, April 6, 2019

540.नववर्ष अभिनन्दन

नववर्ष अभिनन्दन

नववर्ष नवविहान, नव अभिनन्दन
नव गति छंद नव नव ताल नवगुँजन।
गुरुवर-मित्र-नव सब-अब शुभवन्दन
करत सप्रेम कर पुष्प कमल भूषण।।

पल्लवित-पुष्पित, प्रफुल्लित उपवन
नववर्ष की नई सुबह, हर्षित तनमन।
तज तमस तिमिर घनेरी, कर स्वागत
स्वागत नवसंवत्सर अर्पित अभिनन्दन।

पुलकित प्रकृति, हर्षित धरती-गगन
मद्धम-मद्धम मनमुदित बासंती पवन।
तज जीर्ण काया, ओढ़ नव पल्लव,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, नवसंवत् नमन।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Thursday, April 4, 2019

539.चुनावी चकल्लस-2(दलबदलू)

चुनावी चकल्लस-2

टिकट की आस में नेता, यहाँ पल-पल बदलता है।
टिकट जो कट गयी उसकी, नया वो दल बदलता है।
न कोई राज रहता है,.........न कोई नीति रहती है,
सियासी खेल में नेता,......जगह हरपल बदलता है।
©पंकज प्रियम
4.4.2019