Sunday, August 23, 2020

868. ज़िन्दगी


ज़िन्दगी मिली है यार, जियें जैसे दिन चार,
खुद हँसें रोज और सबको हंसाइये।

चाहे दुःख कितना हो, चिंता चाहे जीतनी हो,
मन में उमंग भर, खुशी बरसाइये।

ज़िन्दगी है अनमोल, समझें अगर मोल,
हर दिन हर पल,  इसको बचाइये।

ज़िन्दगी से बढ़कर, नहीं होता कुछ और
इसको को बचाना कैसे, सबको बताइये।।

छोड़ चिंता लटपट, मत कर खटपट, 
समझ के झटपट, जिन्दगी बचाइये।

राग नहीं द्वेष नहीं, रार रखें शेष नहीं,
प्रेम कर सबको, दिल में बसाइये।

व्यस्त रहें मस्त रहें, खूब अलमस्त रहें, 
योग ध्यान साधना में, मन को रमाइये।

दिल खोल सब कहें, नहीं कभी चुप रहें
दर्द जब पिघले तो, दरिया बहाइये।
3
तन मन तब धन, यही मंत्र जीवन,
ध्यान रख इसका ही, जीवन सँवारिये।

अपनो से प्यार कर, सबको दुलार कर, 
मित्र व्यवहार कर,  प्रेम बरसाइये।

हार-जीत छोड़कर, संग-संग साथ चल,
मन अवसाद हर, खुशियाँ मनाइये।

जिन्दगी है वरदान, उपहार भगवान,
मोल को समझकर, खुद को बचाइये।

©पंकज प्रियम






Friday, August 21, 2020

867. राम नाम कहिये

राम नाम भजिये

राम नाम जप यार, होगा तब बेड़ा पार।
प्रभु कृपा तनमन, राम राम भजिये।

राम कृपा तनमन, राम कृपा जनगण,
रामकृपा सबकुछ, राम राम कहिये।

गङ्गाजल कलकल, पानी सरयू निर्मल,
केवट उद्धार किया, राम नाम बहिये।

अहल्या उद्धार किया, ताड़का संहार किया।
वही प्रभु राम पथ , संग-संग रहिये।

©पंकज प्रियम

866. आपदा में अवसर

आपदा में अवसर,

कोरोना के काल में, हॉस्पिटल मालामाल,
काट रहे चाँदी कैसे, किसको बताएंगे।

इलाज के नाम पर, लूट रहे बारबार
दिन एक लाख-लाख, कहाँ से जुटाएंगे।

मरीज है परेशान, संगी साथी हलकान,
सबका ही एक हाल, किसको बचाएंगे।

आपदा में अवसर, कहते हैं इसको ही,
लाश का क़फ़न बेच, कार को सजाएंगे।।
कवि पंकज प्रियम

Thursday, August 13, 2020

865.कोरोना से भी खतरनाक

कैसर से भी खतरनाक अवाँछित कार्य के दबाव
काम का दबाव और मौत
कवि पंकज प्रियम

व्यथित हूँ यह सुनकर की PTI के राँची ब्यूरोहेड पी बी रामानुजम जी ने आत्महत्या कर ली है। हमेशा चेहरे पर मुस्कान लिये रहते थे। जब भी बात होती बहुत शांत और शालीनता से अपनी बात रखते। कहा जा रहा है कि संस्थान के कार्य दबाव के कारण उन्होंने यह कदम उठाया। मौत के कुछ पहले ही देर रात आख़िरी ख़बर भी फाइल की जो उनकी कर्तव्यनिष्ठा बताने के लिए काफी है। सोचिए जो व्यक्ति मरने जा रहा हो वह अपने संस्थान के लिए अंत समय मे भी  आयी ख़बर को भेजता है। 
किसी के भी कार्य के दौरान या घर पर आत्महत्या की खबर बहुत ही व्यथित करने वाला होता है. यूँ तो आत्महत्या के कई कारण हो सकते हैं लेकिन कार्य में अवांछित दबाव कैंसर से भी खतरनाक होता है. चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो लेकिन कार्य की गुणवत्ता कभी भी दबाव से नहीं आती. व्यक्ति कार्य अपने घर-परिवार के लिए ही करता है लेकिन वही कार्य अगर उसके मन की शांति भंग करे. घर -परिवार के लिए वक्त नहीं मिले और अवांछित दबाव हो तो वह ज्वालामुखी की तरह फट जाता है. या तो वह विद्रोह के स्वर धर लेता है या फिर स्वयं का जीवन खत्म करने पर अमादा हो जाता है. घर -परिवार में भी जब अनावश्यक तनाव होता है तभी अपनी जान लेने का कठिन निर्णय ले लेता है. 
अपने 15 साल की सक्रिय पत्रकारिता में मैंने स्वयं महसूस किया कि विशुद्ध पत्रकारिता के लिए हरवक्त संक्रमण काल होता है। काम का दबाव हरवक्त रहता है , 1 ब्रेकिंग का छूटना आपके 99 एक्सलूसिव खबर पर पानी फेर देता है। उसपर से हरवक्त कम्पनियों की कोस्ट कटिंग के बहाने ...अभी कोरोना काल में सभी की जान खतरे में हैं। लोग घरों में बैठकर टेलीविजन पर मौत के आंकड़ों को देखकर मीडिया और सरकार को कोसते रहते हैं लेकिन उन्हें यह पता नहीं कि कितना खतरा मोल लेकर मीडिया, पुलिस, सरकारी कर्मी, अधिकारी कार्य करते हैं। आज पूरी दुनियां घरों में कैद है लेकिन हम जैसे लोग जान पर खेलकर रोज ऑफिस जाते हैं, लोगों से मिलते हैं काम करते हैं। निजी कंपनी हो या फिर सरकार, आज सबको अपने लक्ष्य को पूर्ण करने का दबाव झेलना पड़ रहा है। कोरोना ने सबको बाहरी बैठक, आयोजन पर रोक लगाया तो लोगों ने zoom ,गूगल और jio जैसे app ढूंढकर मीटिंग शुरू कर दी। पहले तो ऑफिस आवर में ही मीटिंग होती थी अब तो रात के 9 बजे या फिर छुट्टियों के दिन भी मीटिंग के लिए तत्काल व्हाट्सएप पर मैसेज आ जाता है। अब आप मर रहे हों या जी रहे हों, निकर में हों या लुंगी में मीटिंग में जुड़ना पड़ता है। महीनों तक वेतन न मिलने के बावजूद घर में क्या हालत है? कैसे जी रहा है यह देखने समझने की फुरसत न तो निजी कंपनियों को है और न ही सरकार को, उसे बस हर हाल में अपनी पीठ थपथपाने के लिए अनप्रैक्टिकल टारगेट पूर्ण कर के दिखाना है। चाहे इसके लिए लोग दबाव में आकर आत्महत्या ही क्यों  न कर लें। 2 मिनट का मौन रखकर शोक सभा होगी, "बेचारा बहुत अच्छा था"- कह हाथ झाड़कर चलते बनेंगे या फिर भाषण देंगे आख़िर आत्महत्या क्यों की, कायर था आदि-आदि। मैं भी आत्महत्या को गलत ही मानता हूँ लेकिन कुछ तो ऐसी परिस्थितियां आ ही जाती है जब लोगों के सोचने समझने की सारी शक्ति खत्म हो जाती है। बात 2014-15 की है तब मैं पाकुड़ में पदस्थापित था। जिस लोकल ट्रेन से सफ़र कर रहा था उसमें अंडाल स्टेशन पर एक 25-26 साल का आर्मी का जवान हमारी बोगी में चढ़ गया जबकि उसके बाकी साथी दूसरी बोगी में थे। कई बार उतरने की कोशिश करता रहा। हम सभी समझ रहे थे कि शायद जल्दबाज़ी में गलत बोगी में चढ़ा है इसलिए उतरना चाह रहा है। हम सबने मना  किया कि अगले स्टेशन पर बोगी बदल लेना। ठंड में भी वह पसीने से तरबतर था। खुद में बड़बड़ा रहा था कि-  मेरी कोई गलती नहीं है मेरी माँ बीमार थी इसलिय घर आया था। उसकी बातों से लग रहा था कि शायद छुट्टी नहीं मिलने के कारण ड्यूटी से भागकर अपनी माँ को देखने आया हो और अब दण्ड का डर सता रहा हो। वह कई बात गेट के पास जाता फिर अंदर बैठ जाता। यही क्रम चलता रहा। फिर वह गेट के साथ लगकर खड़ा हो गया। ट्रेन ने जैसे ही अपनी रफ़्तार तेज की उसने हाथ छोड़ दिया और खडाक..........।
सभी अवाक......। ट्रेन इतनी रफ्तार में थी कि रोकी नहीं जा सकी। उस पूरी रात मैं सो नही  पाया और आज भी वह घटना जेहन से जाती नहीं। पिछले दिनों सुशान्त की आत्महत्या की ख़बर आयी तो मैंने एक कविता लिखी थी कि आत्महत्या करनेवाला हीरो नहीं हो सकता है। हालांकि अब यह हत्या का मामला नज़र आ रहा है अतः मैंने अपनी उस कविता की बलि दे दी है। हालांकि आत्महत्या को मैं कभी सही नहीं मानता और इसे जीवन के संघर्षों से भागने का सबसे आसान तरीका समझता हूँ लेकिन किसी के लिए भी अपनी जान लेना बहुत कठिन होता है। खुद से अधिक अपने परिवार और बच्चों की चिंता सामने आती है। कोरोना में इस गम्भीर संकट में रोज ऑफिस जाता हूँ, सरकार के लक्ष्य को प्राप्त करने के उपरी दबाव में लगतार कार्य करता हूँ, लोगों से मिलता हूँ। यह सोचकर ही डर लगता है कि कुछ हुआ तो फिर बच्चों को कौन देखेगा? घर परिवार कौन संभालेगा? आप सोच सकते हैं कि ऐसे कितने ही सवालों से जूझने के बाद रामानुजम जैसे वरिष्ठ पत्रकार को भी आत्महत्या जैसे कदम उठाना पड़ा होगा। पत्रकार पूरी दुनिया से सवाल कर सकता है लेकिन मीडिया संस्थानों पर ही सवाल नहीं उठा सकता है। अगर किसी ने हिम्मत की तो उसे नौकरी से निकाल दी जाती है। यही स्थिति सरकारी गैर सरकारी सभी जगह लागू होता है। प्रबंधन में शामिल बड़े अधिकारी या पत्रकार अपनी कुर्सी बचाने के लिए कर्मचारियों से अधिक प्रबंधन के प्रति समर्पित हो जाते हैं। मैंने कई बार अपने यहाँ कर्मचारियों के हित में बड़े अधिकारियों से लड़ाई मोल ले ली जिसका खामियाजा हमेशा भुगतना पड़ा लेकिन मैंने देखा है कि जिनके लिए आप लड़ाई लड़ते हैं, अपने प्रबंधन से झगड़ा मोल लेते हैं वही मातहत कर्मचारी सिर्फ अपना स्वार्थ देखते हैं और जब वक्त आता है तो वही आपके साथ खड़ा नहीं होते। इसलिए ज़िन्दगी आपकी अपनी है सबको अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है। जिंदगी संघर्ष का नाम है इसे जीयें और अपने अंदर के तनाव को परिवार और दोस्तों में शेयर करें। खुद को सृजनात्मक कार्यो में इतना व्यस्त कर दें कि तनाव फटकने का नाम न ले। सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत रखें। भगवान ने जन्म दिया है तो भोजन भी वह देगा। कोई न तो किसी का जीवन चलाता है और न कुछ बिगाड़ ही सकता है। सत्य परेशान जरूर होता है लेकिन जीत सदैव उसी की होती है इसलिए मुश्किलों से घबराएं नहीं और ज़िन्दगी को खुशहाल बनाएं। योग साधना करें, पूजा पाठ करें, भजन करें या जो भी आपकी पसंद की चीज हो वही करें। 

अभी लिखता हूँ। बहुत लिखना बाकी है

Tuesday, August 11, 2020

864. माधव

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं

काल चक्र से परे हो मोहन, तुम्हीं बताओ पड़े कहाँ हो,
पार्थ सारथी बने हो माधव, जहां जरूरत खड़े वहाँ हो।
तुम्हें ही ढूंढे है जग ये सारा, तड़प रहा है ये दिल हमारा-
अभी जरूरत तुम्हारी केशव, चले ही आओ बसे जहाँ हो।।

नहीं धरा में नहीं गगन में,  न तुम यहाँ हो न तुम वहाँ हो,
खोजा सबने घर के अंदर, तुम्हीं बताओ न तुम कहाँ हो।
नहीं पता है किसी को तेरा, अजब रचा है ये खेल तेरा-
करे मुहब्बत तुम्हें जो कान्हा, यही बताओ न तुम वहाँ हो।।

सूनी-सूनी है ब्रज की गलियाँ, सुना गोकुल पड़ा है माधव,
हुआ प्रदूषित यमुना सारा, कलिया का फन खड़ा है माधव।
तड़पती मीरा तड़पती राधा, तड़पती गोकुल की गोपियाँ सब,
सिसकती वृंदावन की गलियां, मथुरा दुश्मन गड़ा है माधव।।

काल कोरोना का ये संकट, उठा गोवर्द्धन बचाओ माधव,
नाग कालिया को नथा तब, अभी कोरोना भगाओ माधव।
पूतना को था जैसे मारा, कंस से था जगत उबारा-
आयी विपदा बड़ी भयंकर, अभी सुदर्शन उठाओ माधव।।

मची है त्राहि सकल चराचर, चले भी आओ पड़े जहाँ हो,
मिटा कोरोना जगत से अब तो, तुम्हीं बचाओ खड़े कहाँ हो।
चीर हरता खड़ा दुःशासन, पाशा शकुनि बिछा यहाँ पर-
उठा सुदर्शन पुनः हे माधव, बचा लो धरती अड़े कहाँ हो।

कवि पंकज प्रियम

Monday, August 10, 2020

८६३. झारखंड के प्रमुख तीर्थ स्थल

 झारखंड के प्रमुख तीर्थ स्थल

-पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम

प्राकृतिक छटा और खनिज सम्पदा से परिपूर्ण झारखण्ड ऐतिहासिक व् धार्मिक स्थलों के मामले में काफी समृद्ध है. कल-कल करते नदी -झरने, दूर-दूर तक हरियाली बिखेरतीं मनोहारी पहाड़ी श्रृंखलाएं सहज ही आकर्षित करती हैं. इसके साथ की ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल एक अलग ही छाप छोडते हैं. झारखंड ही वह भू-खंड है जहाँ किसी न किसी देवी और देवताओं का वास रहा है . प्राचीन ग्रंथो में इसका स्पस्ट उल्लेख है. प्रस्तुत है झारखण्ड के प्रमुख तीर्थ स्थल-

 

 

बैद्यनाथ धाम -देवघर

बाबा धाम के नाम से पुरे विश्व में मशहूर देवघर झारखंड की पहचान है जहाँ पूरी दुनिया से लोग कामना लिंग को जल चढाने आते हैं. हर साल सावन में लाखो श्रद्धालु सुल्तानगंज से गंगाजल लेकर १०५ किलोमीटर पैदल चलकर देवघर आते हैं और बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करते हैं. पूरा महिना बोलबम के नारों से गूंजता रहता है. बैद्यनाथ मंदिर भगवान शिव के सबसे खास  12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मंदिर परिसर में ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान शिव का मुख्य मंदिर है और साथ में 22 मंदिरों की श्रृंखला है।

देवघर ‘झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी’ के रूप में भी प्रसिद्ध है। जिसके आसपास कई धार्मिक पर्यटन स्थल हैं

 

 

1 नंदन पहाड़

 झारखंड के देवघर जिले में एक पहाड़ी की चोटी पर बना एक मनोरंजन पार्क है। आपको बता दें कि यह पार्क कई गतिविधियों के साथ एक पिकनिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यह पार्क इतना इतना ज्यादा आकर्षक स्थल है जहां हर उम्र के लोग यात्रा करते हैं। इस पार्क के क्षेत्र में लोग बोटिंग का मजा भी ले सकते हैं और सूर्योदय के आकर्षक दृश्य भी देख सकते हैं। अगर आप झारखंड की यात्रा करने की योजना बना रहें हैं तो इस पार्क को अपनी लिस्ट में अवश्य शामिल करना चाहिए।

 

2 तपोवन गुफाएँ और पहाड़ी

तपोवन देवघर से महज 10 किमी दूर स्थित है, जहां पर एक पवित्र शिव मंदिर स्थित है जिसे तपोनाथ महादेव के नाम से जाना जाता है। मंदिर के अलावा इस स्थान पर कई गुफाएं भी स्थित हैं जिसमें से एक गुफा में एक शिव लिंगम स्थापित है। इस मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यहां पर ऋषि वाल्मीकि यहां तपस्या करने के लिए आए थे।

 

३ नौलखा मंदिर

मुख्य मंदिर से करीब 1.5 किमी की दूरी पर स्थित है। आपको बता दें कि यह मंदिर 146 फीट ऊंचा है और बेलूर में निर्मित रामकृष्ण के मंदिर के समान है। यह आकर्षक मंदिर राधा-कृष्ण को समर्पित है और इसके निर्माण की लगात 9 लाख रूपये थी जिसकी वजह से इस मंदिर का नाम नौलखा मंदिर रख दिया गया।

 

४ त्रिकुट पहाड़

त्रिकुट पहाड़ देवघर में सबसे रोमांचक पर्यटन स्थल में से एक है, जहां आप ट्रेकिंग, रोपेवे, वन्यजीवन एडवेंचर्स और एक सुरक्षित प्राकृतिक वापसी का आनंद ले सकते हैं। यह एक लोकप्रिय पिकनिक स्थान और तीर्थयात्रा के लिए एक जगह भी है। चढ़ाई पर घने जंगल में प्रसिद्ध त्रिकुटाचल महादेव मंदिर और ऋषि दयानंद की आश्रम है। ट्रायकिट हिल्स में तीन चोटियां होती हैं और सर्वोच्च चोटी सागर स्तर से 2470 फीट की ऊंचाई तक जाती है और जमीन से लगभग 1500 फीट जमीन पर ट्रेकिंग के लिए आदर्श स्थान बनाती है। तीनों चोटियों में से केवल दो को ट्रेकिंग के लिए सुरक्षित माना जाता है जबकि तीसरी व्यक्ति अपनी अत्यधिक ढलानों के कारण पहुंच योग्य नहीं है। रोपेवे पर्यटकों को केवल मुख्य चोटी के शीर्ष पर ले जाता है। देवघर का एक रोमांचक 360 डिग्री दृश्य ट्रायक पहर के शीर्ष से उपलब्ध है।

 

५ बासुकीनाथ मंदिर–

बासुकीनाथ मंदिर देवघर-दुमका राज्य राजमार्ग पर झारखंड के दुमका जिले में स्थित हिंदू धर्म का एक पवित्र मंदिर है, जो देश के सभी हिस्सों से बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा की जाती है जो कि पीठासीन देवता हैं। मंदिर में श्रावण के महीने में भक्तों की भीड़ काफी बढ़ जाती है, इस दौरान न केवल स्थानीय लोग बल्कि देश भर से भक्त यहां की यात्रा करते हैं। माना जाता है कि बासुकीनाथ मंदिर बाबा भोले नाथ का दरबार है।

६ सत्संग आश्रम –

सत्संग आश्रम एक पवित्र स्थान है जहां पर भक्त श्री श्री ठाकुर अनुकुलचंद्र के अनुयायी पूजा करने के लिए एकत्रित होते हैं। आपको बता दें कि सत्संग आश्रम के पर्यटन स्थल के रूप में भी काम करता है क्योंकि यहां पर एक चिड़ियाघर और एक संग्रहालय भी स्थित है।

 

मलूटी-मंदिरों का गाँव

मलूटी झारखण्ड राज्य के दुमका जिले में शिकारीपाड़ा के निकट एक छोटा सा कस्बा है। यहाँ ७२ पुराने मंदिर हैं जो बज बसन्त वंश के राज्यकाल में बने थे। इन मन्दिरों में रामायण तथा महाभारत और अन्य हिन्दू ग्रन्थों की विविध कथाओं के दृष्यों का चित्रण है इतिहासकारों के मुताबिक ये मंदिर 17वीं से लेकर 19वीं शताब्दी के बताए जाते हैं। इन मंदिरों में कई हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित है। जैसे देवी मौलाक्षी, भगवान शिव, विष्णु, मनसा देवी, मां दूर्गा और काली। देवी-देवताओं के अलावा यहां संतों की भी मूर्तियां स्थापित हैं। आप यहां संत बामाख्यापा को समर्पित मंदिर के दर्शन भी कर सकते है। मग्लोबल हेरिटेज फंड द्वारा मालुती मंदिर विलुप्त होती ऐतिहासिक धरोहर के रूप में चिन्हित किया गया है.

 

 

जगन्नाथ मन्दिर

झारखंड की राजधानी रांची की पहाड़ी पर बसा है प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर। वास्तुकला और मंदिर संरचना के मामले में यह मंदिर बिलकुल  पुरी के जगन्नाथ मंदिर के जैसा ही है। दर्शन के लिए भक्तों को पहाड़ी पर पैदल या निजी वाहनों की मदद से पहुंचना पड़ता है। साल में एक बार यहां भी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। जिसमें हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। स्थानीय लोगों के लिए यह मंदिर मुख्य आस्था का केंद्र माना जाता है.

आंजन धाम

झारखंड के गुमला नामक जिले के आंजन गांव में एक गुफा को भगवान हनुमान का जन्म स्थल माना जाता है। हनुमान जी की माता अंजनी के नाम से ही इस गांव का नाम आंजन पड़ा। यह गांव गुमला जिले से लगभग 22 किमी की दूर स्थित हैं. हनुमान जी की जन्मस्थली के कारण यह अब आंजनधाम के रूप में विख्यात है। यह धाम प्राचीन धार्मिक स्थलों में से एक है। साथ ही देश के अंदर यह ऐसा पहला मंदिर है, जिसमें भगवान हनुमान बाल अवस्था में माता अंजनी की गोद में बैठे हैं। रामनवमी के दिन प्रति वर्ष यहां विशाल मेला का आयोजन किया जाता है। हनुमान जयंती पर विशेष पूजा होती है। माता अंजनी पहाड़ की चोटी पर स्थित गुफा में रहती थीं। यह गुफा गांव से दो किमी दूर पहाड़ की चोटी पर है। इसी गुफा में माता अंजनी ने बालक हनुमान को जन्म दिया था। आज भी यह गुफा आंजन धाम में मौजूद है।

पालकोट/पम्पापुर

पंपापुर पहाड़ पर शबरी आश्रम भी है। सीता की खोज करते हुए जब राम व लक्ष्मण माता शबरी की कुटिया में आए थे, तो शबरी ने जूठे बेर खिलाकर उनका आदर-सत्कार किया था। किष्किंधा से कुछ दूरी पर एक गुफा है। जब बालि ने सुग्रीव को भगा दिया, तो सुग्रीव उसी गुफा में आकर छिप गए। इसे सुग्रीव गुफा कहा जाता है। गुफा के अंदर जल कुंड बना हुआ है। रामायण काल में किष्किंधा वानर राजा बालि का राज्य था। यह आज भी पंपापुर (अब पालकोट प्रखंड) में विद्यमान है। यह पालकोट प्रखंड के उमड़ा गांव के समीप स्थित है।

रामरेखा धाम

सिमडेगा मुख्यालय से लगभग 26 किलोमीटर दूर सुरम्य पर्वत पर स्थित रामरेखा धाम है. लोगों का कहना है कि 14 साल के दौरान वनवास अवधि में भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण ने इस जगह का दौरा किया था और कुछ समय के लिए यहां रहते थे। अग्निकुंड, चरण पंडुका, सीता चूल्हे, गुप्त गंगा आदि जैसे कुछ पुरातात्विक संरचनाओं का पता चलता है कि वनवास की अवधि के दौरान उन्होंने इस मार्ग का अनुसरण किया। भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण, हनुमान और भगवान शिव की मूर्तियाँ गुफा में स्थित है। कार्तिक पूर्णिमा पर हर साल यहां एक मेला का आयोजन किया जाता है। विभिन्न राज्यों और सभी समुदाय के लोग यहां आते हैं और उनकी खुशी के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं।

 

 छिन्नमस्ता मंदिर, रामगढ़

 प्रसिद्ध सिद्धपीठ छिन्नमस्ता मंदिर झारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित है, दामोदर और भैरवी नदी के संगम पर स्थित यह भव्य मंदिर देवी छिन्नमस्ता को समर्पित है। छिन्नमस्ता बिना सर वाली देवी हैं जिन्हें कमल के पुष्प पर कामदेव और रति के शरीर पर खड़े रूप में प्रदर्शित किया गया है। यह मंदिर अपने तांत्रिक स्वरूप के लिए ज्यादा जाना जाता है। मंदिर परिसर में 10 मंदिर अलग-अलग देवी देवताओं को समर्पित हैं। कहते हैं की सच्चे मन से की गयी हर कामना यहाँ पूर्ण होती है .

 

भद्रकाली मंदिर -इटखोरी ,चतरा

चतरा के इटखोरी प्रखंड अंतर्गत भादुली गोंव में भद्रकाली माता का प्रसिद्द मन्दिर है. जिसमे भद्रकाली की प्रतिमा एक ही पत्थर को तराश कर बनायीं गयी है . प्राचीन काल में यह शाक्त सम्प्रदाय का केंद्र था . माँ भद्रकाली की महिमा अपरम्पार है .दूर दूर से लोग यहाँ मन्नतें मांगने आते हैं. मंदिर की स्थापत्य कला से यह पाल युगीन लगती है . यह बौद्ध धर्म का भी प्रमुख स्थल है जहाँ भगवान बुद्ध से जुड़े कई अवशेष आज भी मौजूद हैं .

कौलेश्वरी मंदिर

चतरा जिले में ही हंटरगंज प्रखंड में स्थित कोल्हुआ पहाड़ में माँ कोलेश्वरी का मंदिर है जो पत्थर की दीवारों से घिरा है. माँ कोलेश्वरी की प्रतिमा काले पत्थर से तराशकर बनायीं गयी है. इस पहाड़ पर महाभारत काल के कई महत्वपूर्ण चिन्ह मिले हैं.

देवडी मंदिर

रांची -टाटा मार्ग पर तमाड़ में स्थित देवडी मंदिर में १६ भुजी दुर्गा की प्रतिमा है जो महेंद्र सिंह धोनी के लिए काफी शुभदायक रही है. देवडी मंदिर आज पुरे विश्व में प्रसिद्द हो चूका है. रांची से ६० किलोमीटर दूर देवडी मंदिर को जाग्रत स्थल भी माना जाता है. मंदिर भले ही भव्य रूप ले चूका है लेकिन मुख्य गर्भगृह में देवी को कोई बदलाव स्वीकार्य नही है. मंदिर का निर्माण 770 ई के आसपास हुआ है जहाँ ब्राह्मणों के साथ साथ आदिवासी मुंडा पाहन भी पूजा करते हैं.

योगिनी मंदिर

गोड्डा जिला मुख्यालय से १३ किलोमीटर दूर बरकोप पहाड़ी पर माँ योगिनी का मंदिर है. ऐसी मान्यता है की यहाँ माता सती का दायाँ जांघ गिरा था. मंदिर में प्रतिमा के रूप में जांघ के आकार का शिलाखंड है जिसपर लाल वस्त्र चढ़ाया गया है.

बनासो माता

हजारीबाग जिले के विष्णुगढ़-गोमिया मार्ग मार्ग पर स्थित बनासो माता का मंदिर अवस्थित है. यहाँ काफी दूर -दूर से लोग मन्नते मांगने आते हैं. इस मंदिर को लेकर भी कई कथाएं जुडी है.

महामाया मंदिर

छोटानागपुर के नागवंशी राजा ने लोहरदगा के हापामुनी में महामाया मंदिर की स्थापना की. नवरात्र में सबसे पहले संथाल जनजाति के लोग पूजा करते है. १४५८ ,में महाराज शिवदास कर्ण ने इस मंदिर में विष्णु की प्रतिमा स्थापित की.

 

मंगल -चंडी मंदिर

बोकारो के कसमार में स्थित मंगल-चंडी मंदिर में प्रत्येक मंगलवार को भव्य पूजा की जाती है. इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है और हर मंगलवार को बकरे की बलि दी जाती है जिसका सेवन उसी परिसर में लोग करते हैं.

 

झारखण्ड धाम

रांची के करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर झारखंड धाम को झारखंडी के नाम से भी जाना जाता है, गिरिडीह जिले में स्थित इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसमें कोई छत नही है। मंदिर चारों तरफ से घेरा गया है पर ऊपरी भाग खुला हुआ है। यह अनोखा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। महाशिवरात्रि के दिन यहां का नजारा देखने लायक होता है। जब दूर-दूर से श्रद्भालु भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए आते हैं और पूरी रात भव्य मेला लगता है.








 

 







Friday, August 7, 2020

862. खिसियानी बिल्ली

खिसियानी बिल्ली खम्बा नोंचे
कवि पंकज प्रियम

कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री के कल के भाषण पर सवाल उठाया कि  #गोविंद_रामायण है ही नहीं तो पीएम ने बस जुमला फेंक दिया, बहुत ज्ञानी बनते फिरते हैं आदि-आदि, उनके फ़ेसबुक timline में उसी विचारधारा के लोगों ने खूब हां में हां मिलाकर प्रधानमंत्री का मज़ाक उड़ाया। मेरी आदत लकीर के फकीर बनने की कभी नहीं रही है। ढूंढ़ना शुरू किया तो दो किताबें मिली जिसमे गुरु गोविंद सिंह द्वारा गोविंद रामायण लिखने की चर्चा की गई है। दिनेश कुमार माली कृत त्रेता एक सम्यक मूल के पृष्ठ 20 तथा सरोज बाला कृत रामायण की कहानी विज्ञान की जुबानी के पृष्ठ 29 में साफ लिखा है कि गुरु गोविंद सिंह ने 18 वी सदी में  #गोविंद_रामायण की रचना की जिसे 1915 में पंजाबी अनुवाद कर गुरुमुखी में लिखा। बाद में गअब उक्त लेखक ने निश्चय ही पूरी छानबीन और शोध के बाद ही जिक्र किया होगा। मैं लकीर का फकीर नही बनता अगर 2 लेखकों ने वर्षो पहले ही गोविंद रामायण की चर्चा पुख़्ता से अपनी किताब में की है तो हवा में तो बिल्कुल नहीं लिखा होगा कुछ तो शोध और प्रमाण होंगे? तो पीएम ने भी कहीं सुनकर बयान दिया होगा तो इसमें छाती पीटने की क्या बात है? विद्वानों को किसी जाहिल के सुर में सुर मिलाने की वजाय उन तथ्यों को ढूंढकर तब टिप्पणी करनी चाहिए। मैं बिना प्रमाण के कभी टिप्पणी नहीं करता।  
दरअसल कुछ लोग अंधविरोध और मोदी से इतनी नफ़रत करते हैं कि भगवान श्री राम के अस्तित्व पर ही सवाल करने लगते हैं। उन्होंने तो रामसेतु पर सवाल खड़ा किया था। रामायण में जिस तरह मूर्खता की चादर ओढ़े धोबी और उसके सुरमे सुर मिलानेवाली जनता ने सीता की पवित्रता पर सवाल खड़ा किया था लेकिन बाद में उन्हें खूब ग्लानि हुई और बारंबार क्षमा माँगी थी उसी श्रेणी में इस तरह के लोग आते हैं। हमारे देश में एक बहुत बड़े वकील और नेता कपिल सिब्बल हैं जो आतंकियो के लिए ,दुष्कर्मियों के लिए मुकदमा लड़ने को टांग उठाये रहते हैं। राम मंदिर बनने पर आत्मदाह करने की बात कई बार कर चुके हैं लेकिन हिम्मत कभी नहीं हुई। आत्मदाह करनेवाला ट्वीट करता है क्या? आग लगा लो किसने रोका है, वैसे भी बोझ हो भारत के लिए,खाओगे देश की और मदद करोगे पाकिस्तान की। एक और नेता ओवैसी है जो बात तो करेगा धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्र और संविधान की लेकिन पार्टी का नाम धर्म विशेष, बात करेगा धर्म विशेष, कोई पीएम, सीएम या गवर्नर इफ़्तार पार्टी करें, मजार में चादर चढ़ाए, हजहाउस का उद्घाटन करे,  हजयात्रियों को रवाना करे, ईद बकरीद, मुहर्रम या अन्य किसी भी धार्मिक स्थल या पर्वो में शरीक हो तब लोकतंत्र खतरे में नहीं पड़ता लेकिन मन्दिर का शिलान्यास अलोकतांत्रिक हो जाता है। बात करता है संविधान की लेकिन उसी संविधान के तहत सर्वोच्च न्यायालय ने जब राम मंदिर निर्माण के पक्ष में निर्णय दिया तो उसे नहीं मानता। यह साफ तौर वे कोर्ट की अवमानना और संविधान का उलंघन है। खुलेआम देश के संविधान को चैलेंज कर कगत है कि 15 मिनट की पुलिस छूट मिले तो दिखा देगा। यह भौंकने की आज़ादी सिर्फ भारत के संविधान ने ही दिया है। दूसरे मुल्कों में जाकर देख ले। 500 वर्षो तक जिस मामले को बेवजह लटका कर रखा गया, जिसके लिए कितनी पीढियां खत्म हो गयी, वह अगर हल हो गया तो इन लोगों को हजम नहीं हो रहा है। जांच में साफ हो चुका है कि धारा 370 और रामजन्म भूमि के फैसले से लोग इतने बैचेन हुए की आम आदमी पार्टी के दफ्तर में दिल्ली दंगे की साजिश रची गयी। इस तरह की अरे अब तो छोड़ो, अब तो हिन्दू मुस्लिम की सियासत बन्द करो। सदियों का मुकदमा खत्म हो गया है अब तो चैन सुकून से रहो। पहले कहते थे कि कोर्ट जो निर्णय देगी वह मान्य होगा लेकिन कोर्ट के निर्णय के बाद से ही पलटी मार गया। अरे जो अपनी जुबान का नहीं वह क्या देश का होगा। हमें ऐसे नेता, तथाकथित अर्बन नक्सली और देश के छुपे गद्दारों की पहचान करनी होगी और फिर वही अखण्ड भारत रामराज्य की स्थापना करनी होगी।

Saturday, August 1, 2020

प्रेमचंद और बाल चेतना

रेमचंद हिंदी के उन महान्‌ कथाकारों में थे, जिन्होंने बडों के लिए विपुल कथा-संसार की रचना के साथ-साथ विशेष रूप से बच्चों के लिए भी लिखा। उस समय एक ओर स्वतंत्रता संग्राम अपने पूरे जोरों पर था और देश के बच्चे-बच्चे में राष्ट्रीयता के भाव जगाए जा रहे थे। दूसरी ओर अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी संस्कृति का इतना प्रभाव फैल गया था कि भारतीय समजा अजीब स्थिति में फंसा हुआ था। एक ओर स्वदेशी की भावना, हमारे नैतिक मूल्यों और परंपरा से चली आ रही सभ्यता और संस्कृति की रक्षा का प्रश्न था, तो दूसरी तरफ विश्व में हो रही विज्ञान की प्रगति और नयी-नयी खोजों के प्रति भारतीयों में जागृति आ रही थी। पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव का विरोध और स्वदेशी की भावना स्वतंत्रता आंदोलन के नारे बन चुके थे। महात्मा गांधी का प्रभाव, खादी, विदेशी कपडों की होली - ये सभी उन दिनों चर्चा के विषय थे। भारतीय और पाश्चात्य मूल्यों का संघर्ष, भारतीय समाज के लिए विचित्र समस्या बन गया था। बच्चों के लिए जो पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही थीं जैसे ‘बालसखा’, ‘वानर’ आदि, वे सभी बीच का रास्ता निकालकर, बच्चों को ऐसी रचनाएं पढ़ने को दे रही थीं, जो बच्चों के बुनियादी मूल्यों की रक्षाकरते हुए उन्हें अपने समय के प्रति जागरूक और जानकार भी बना रही थीं। उस समय हिंदी के अनेक वरिष्ठ कवि और लेखक बच्चों के लिए भी रचनाएं लिख रहे थे और उन्हें राष्ट्र-भावना, स्वदेशी और भारतीय नैतिक मूल्यों आदि के संदेश के साथ विज्ञान और नयी दुनिया से भी परिचित करा रहे थे। प्रेमचंद ने भी उन्हीं दिनों जो रचनाएं बच्चों के लिए लिखीं वे उस समय के बच्चों में नैतिकता, साहस, स्वतंत्र-विचार, अभिव्यक्ति और आत्मरक्षा की भावना जगाने वाली सिद्ध हुई।