Thursday, October 31, 2019

708. ग़ज़ल-अधिकार

ग़ज़ल
क़ाफ़िया-आर
रदीफ़- मिलता है।

बहर-1222 1222 1222 1222

फ़क़त ही याचना करके, कहाँ अधिकार मिलता है,
उठा गाण्डीव जब रण में, तभी आगार मिलता है।

नहीं मिलता यहाँ जीवन, बिना संघर्ष के कुछ भी,
अगर मन हार बैठे तो, कहाँ दिन चार मिलता है।

अगर खुद पे यकीं हो तो, समंदर पार कर लोगे,
मगर साहिल पड़े रहकर, कहाँ उस पार मिलता है।

नसीबों में कहाँ सबको, सदा ही जीत मिलती है,
बिना कूदे समर में क्या, कभी यलगार मिलता है।

मुहब्बत में सदा सबको, कटाना शीश पड़ता है,
फ़क़त दिल को लगाने से, कहाँ ये प्यार मिलता है।

सदा ही आग में तपकर, बने कुंदन यहाँ सोना,
जले जो आग में पत्थर, तभी अंगार मिलता है।

"प्रियम" ये ज़िन्दगी हरदम, यहाँ लेती परीक्षा है,
बिना बलिदान के जीवन, कहाँ संसार मिलता है।
©पंकज प्रियम

Tuesday, October 29, 2019

707. बढ़ते चले जाना

बढ़ते चले जाना
शष्टपदी
1222 1222 1222 1222
कभी रुकना नहीं इक पल, सदा बढ़ते चले जाना,
कभी गिरना नहीं नीचे, सदा चढ़ते चले जाना।
समर ये जिंदगी हरक्षण, यहाँ लड़ते चले जाना।
हवा विपरीत हो जाये, मगर अड़ते चले जाना।
सदा कदमों निशां अपने, यहाँ गढ़ते चले जाना।
लिखा जो हर्फ़ जीवन का, प्रियम पढ़ते चले जाना।
©पंकज प्रियम

706. जीवन का उधार

एक आदमी का यह जीवन
तीन औरत का होता उधार।
माँ की जितिया पत्नी तीज
बहन का राखी दूज त्यौहार।।

एक आदमी की हर धड़कन,
कहती सदा यह बारम्बार।
उनसे धक-धक मैं हरक्षण,
उनकी मुहब्बत अपरम्पार।।

एक आदमी की हर साँसे,
कहती यही सबसे हरबार।
डोर ये साँसों की तबतक,
जबतक औरत का है प्यार।।

एक आदमी का ये तनमन,
तीन औरत का होता उधार।
माँ की ममता, पत्नी प्रेम-
और बहनों का लाड़ दुलार।। ©पंकज प्रियम
29/10/2019

Monday, October 28, 2019

704. गोबर्धन


छोटी ऊँगली उठा गोबर्धन,
अहम इन्द्र का चूर किया।
कृष्ण कन्हैया राधेमोहन,
संकट सबका दूर किया।

705. तीरगी

2122 2122 212
प्यार को तुमसे जताना रह गया,
राज दिल का ही बताना रह गया।

रोज़ मिलते हैं मगर क्यूँ फासला,
क्या तुझे मुझसे मिलाना रह गया।

जल रहा दीपक मगर क्यूँ तीरगी,
दीप दिल का ही जलाना रह गया।

तिश्नगी दिल की सताये हर घड़ी,
जाम होठों का पिलाना रह गया।

हाल अपना क्या सुनाये अब "प्रियम"
ज़ख्म अश्क़ों से बहाना रह गया।
©पंकज प्रियम

703. भारत की दीवाली

भारत
जगमग रात दीवाली है,
भारत की बात निराली है।

चहुँ ओर पसरा अँधियारा,
भारत में फैला उजियारा।
जगमग रात दीवाली है,
भारत की बात निराली है।

सबसे सुंदर सबसे न्यारा,
भारत देश मुझे है प्यारा।
घर-घर पूजा की थाली है,
भारत की बात निराली है।

मिट्टी के दीपक की ज्योति,
चमक चाँदनी भी खोती।
अमावस रात सवाली है,
भारत की बात निराली है।

कन्या से कश्मीर तलक
गुजरात से सूर्य फ़लक।
प्रेम सुधा की प्याली है,
भारत की बात निराली है।
©पंकज प्रियम
28/10/2019

702. नाम


कोई गुमनाम मरता है,  कोई बदनाम करता है,
सफ़र-ऐ-जिंदगी में भी, कोई आराम करता है।
नहीं शिकवा किसी से हो, नहीं कोई शिकायत हो-
कदम मिलके बढ़ाये जो, वही तो नाम करता है।।

©पंकज प्रियम

Sunday, October 27, 2019

701. खूबसूरत दीवाली

दीवाली
मुबारक मुबारक मुबारक दीवाली,
बड़ी खूबसूरत मुहब्बत दीवाली।

अमावस घनेरी बहुत ही निराली,
लगे है बहुत खूबसूरत दीवाली।

मिटा के अँधेरा सजाती उजाला,
बड़ी खूबसूरत रिवायत दीवाली।

अहम को हराना सचाई जिताना,
खुशियाँ बढ़ाती तिज़ारत दीवाली।

"प्रियम"तो सदा ही जले बन के दीपक,
जमीं को बनाती है जन्नत दीवाली।
©पंकज प्रियम

Saturday, October 26, 2019

700. शुभ दीवाली होगी

घर-घर में जब खुशहाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

मन का तिमिर जब मिट जाएगा,
तन का भेद जब सिमट जाएगा।
प्रस्फुटित होगा जब ज्ञान प्रकाश,
अमावस में भी चमकेगा आकाश।
घर घर में जब खुशहाली होगी,
समझना तब शुभ दिवाली होगी।

जब नौजवानों का उमंग खिलेगा,
दिल से दिल का जब तरंग मिलेगा।
नव सर्जन का जब होगा उल्लास,
शब्द अलंकारों का होगा अनुप्रास।
जब मस्ती अल्हड़ निराली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

हर हाथ को जब काम मिलेगा,
हर साथ को जब नाम मिलेगा।
कर्ज में डूबकर ना मरे किसान,
फ़र्ज़ में पत्थर से न डरे जवान।
जीवन में ना जब बदहाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

भूखमरी, गरीबी और बेरोजगारी,
इससे बड़ी कहाँ और है बीमारी।
इन मुद्दों का जब भी शमन होगा,
सियासी मुद्दों का तब दमन होगा।
गली-गली सड़क और नाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

जब सत्य-अहिंसा की जय होगी,
संस्कृति-संस्कारों की विजय होगी।
जब हर घर ही प्रेमाश्रम बन जाए,
फिर कौन भला वृद्धाश्रम जाए।
मुहब्बत से भरी जब थाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

जब कोख में बिटिया नहीं मरेगी,
दहेज की बेदी जब नहीं चढ़ेगी।
जब औरतों पर ना हो अत्याचार,
मासूमों का जब ना हो दुराचार।
जब माँ-बहन की ना गाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

मुद्दों की फेहरिस्त है लम्बी इतनी,
लंका में पवनसुत पूँछ की जितनी।
सब पूरा होना समझो रामराज है,
राम को ही कहाँ मिला सुराज है!
अयोध्या में जब वो दीवाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।
©पंकज प्रियम

699. जख़्म दिल का

2122   2122
हाल किसको क्या बतायें,
ज़ख्म किसको हम दिखायें।

दर्द आँसू बन के निकले,
रोक उसको हम न पायें।

दिल ज़िगर जाने वफ़ा में,
कब तलक आँसू बहायें।

इश्क़ में मजबूर दिल यह
गम सदा खुद में छुपायें।

तोड़ कर वो दिल प्रियम का,
गैर से वह दिल लगायें।
©पंकज प्रियम

Friday, October 25, 2019

698. तुम

1222 1222 1222 1222
निग़ाहों के समंदर से,  मुझे इक जाम पिलाओ तुम,
नशे में जो कदम बहके, कदम से ताल मिलाओ तुम।

नज़र में डूबकर कर तेरी, ज़िगर बैचेन हो जाता,
बहुत बेताब हूँ जानम, जरा दिल से लगाओ तुम।

नयन के तीर से घायल, हुए कितने यहाँ पागल,
नशीले नैन से मुझपर, नहीं खंज़र चलाओ तुम।

कमर तेरी लचकती है, जवानी बोझ से दबाकर,
नुमाईश हुस्न का करके, नहीं सबको जलाओ तुम।

तुम्हारा हुस्न जो छलका, समंदर ज्वार भर जाता,
जरा साहिल से टकरा के, अधर को चूम जाओ तुम।

मुहब्बत आग का दरिया, उतर जाऊं अगर मैं तो,
बरस बरखा बिना बादल, मुहब्बत झूम आओ तुम।

जवां दिल की सुनो धड़कन, बुलाती है तुझे हरक्षण,
प्रियम की बात भी सुन लो, जरा अपनी सुनाओ तुम।
©पंकज प्रियम

Thursday, October 24, 2019

697.सियासी मंच

सियासी मुक्तक

लगाते तुम रहे नारा,..... पचहत्तर पार कर लेंगे,
अहम सर पे चढ़ाकर के, उसे हथियार कर लेंगे।
जमीनी कार्यकर्ता और।   नेता को भुलाकर के-
भगोड़े और दलबदलू से.....नैना चार कर लेंगे।।

सियासी मंच है ऐसा, .....स्वयं से रार कर लेंगे,
जहाँ हो स्वार्थ सिद्धि तो अरि से प्यार कर लेंगे।
यहाँ जनता जनार्दन है, उसे कमजोर जो समझा-
पड़ेगी चोट वोटों पर,    वही यलगार कर लेंगे।।

©पंकज प्रियम

696. दीप जलायें


आओ प्रेम का दीप जलायें,
मिलकर ज्योति पर्व मनायें।

मन से ईर्ष्या-द्वेष मिटाकर,
नफरत का विद्वेष हटाकर।
तबमन को जो कर दे रौशन,
दिल में प्रेम की जोत जगायें।
आओ प्रेम का दीप जलायें।
  
तिमिर घनेरा भी मिट जाये,
अज्ञान पे ज्ञान विजय पाये।
असत्य पे सत्य की जय को
उस जीत को फिर दोहरायें
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

भूखा-प्यासा हो कोई अगर,
बेबस लाचार ललचाई नजर ।
उम्मीद जगे हमसे जब ऐसी
कुछ पल ही सही दर्द बटाएं।
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

अन्याय से यह सारा समाज ,
प्रदूषण-दोहन से धरा आज ।
असह्य वेदना से रही कराह,
दर्द की हम ये दवा बन जाएं।
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

भय आतंक-वितृष्णा मिटाके,
सूखी नजरो में आस जगा के।
जाति-धर्म सब-भेद मिटाकर,
शांति अमन का फूल खिलायें,
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

स्वच्छ गली-घर और आँगन,
स्वच्छ धरा और स्वच्छ गगन।
स्वस्थ रहे यह तनमन अपना,
स्वच्छता को हम यूँ अपनायें।
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

चहुँ दिशा हो जगमग रौशन,
खुशहाल रहे सबका जीवन।
घर गरीब के चूल्हा जले जो,
घर में माटी का दीप जलायें।
आओ प्रेम का दीप जलायें।
©पंकज प्रियम

Wednesday, October 23, 2019

695. दौलत


मुक्तक,
रदीफ़-दौलत
विधाता छंद
1222 1222 1222 1222
नहीं पैसा नहीं रुपया, नहीं गहना धनोदौलत,
मिले सम्मान जो हरपल, हकीकत में वही दौलत।
सभी दौलत सभी शोहरत,यहीं रह जाएगी हसरत-
मुहब्बत पा लिया तो फिर, समझ लो मिल गयी दौलत।।
©पंकज प्रियम

Sunday, October 20, 2019

693. याद

1222 1222, 1222   1222
मुझे तुम याद आओगे, नहीं तुम भूल पाओगे,
गुजारे साथ जो लम्हें, उन्हें क्या भूल पाओगे।
नहीं गुजरा हुआ कल हूँ, कभी वापस न आ पाऊँ-
करोगे याद जो मुझको, सभी को भूल जाओगे।।
©पंकज प्रियम


Saturday, October 19, 2019

692. एक खत भगवान के नाम

भगवान के नाम पत्र
हे प्रभु,
सादर चरण स्पर्श!
आपकी दुआ से मैं इस धरती पर कुशलता से हूँ और आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप तो खूब मजे में ही होंगे।
लिखना तो बहुत चाहता हूँ लेकिन मुझे पता है कि खत लम्बा होने पर आप पूरा नही पढोगे। इसलिए बिना लाग लपेट के जो लिख रहा हूँ ध्यान पूर्वक पढ़कर जरूर उत्तर देना। प्रभु! इस धरती पर आपने मुझे भेजा इसलिए लिए दिल से शुक्रिया। मैं भी खूब मजे से जी रहा हूँ आपकी दुआ से। लेकिन हमारे आसपास कई लोग हैं जिन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती और कुत्तों को मंहगे बिस्किट और दूध पीने को मिल रहा है। किसान कर्ज के दलदल में फंसकर पेड़ में फंदा लगाकर आत्महत्या कर रहे हैं तो दूसरी ओर माल्या-मोदी और कनिष्क जैसे लोग बैंक से हजारों करोड़ रुपये का लोन लेकर चपत हो जा रहे हैं। एक और पीएमसी बैंक डूब गया है और सदमे में दो लोगों की मौत हो गयी है। उन्हें पकड़ने की हिम्मत सरकार में नहीं है। आप तो लंका से सीता मैया को वापस ले आये थे जरा मोदी,माल्या और कनिष्का वाले को मारिये भले नही जिंदा ही भारत ले आईये। अपने तो लंका जीतकर पूरा राज्य विभीषण को लौटा दिया। तनिक इन चपतकारों से जनता का पैसा तो वापस करा दीजिये। अरे हां! आपका टेंशन तो अलगे है, आपका मन्दिर का मामला फिर कोर्टवा में तारीख पे तारीख के चक्कर में फंस गया। बहस तो खतम हो गया लेकिन फैसले को बक्से में बंद कर ताला लगा दिया है अब 17 नवम्बर तक बैठ के झक मारिये। आप तो मर्यादा पुरूषोत्तम ठहरे एक धोबी के कहने पर पत्नी को जंगल भेज दिए, जरा अपने घर को कोर्ट से बचाने की कृपा कीजिये प्रभु! पूरी सोने की लँका जीतकर जिसे रावण के भाई को सौंप दिया लेकिन आजतक आप अपने घर अयोध्या को नहीं जीत सके ई कोर्ट कचहरी के चक्कर में। क्या कीजिएगा त्रेता युग तो रहा नहीं कलयुग है जहां पापी और दुष्टों की चलती है। सब राक्षस अब मलेच्छ बनकर आपके घर को तहस-नहस कर अपना दावा ठोक दिया है। अब वेद पुराण को लोग मानता नहीं एगो बाबा अम्बेडकर इधर-उधर आठ-दस देश के नियम-कानून का खिचड़ी बनाकर संविधान लिख दिए उसी पर राजपाट चलता है। सब उसी को मानता है। जो बहुसंख्यक है बेचारा है और वोटवा ख़ातिर सब नेतवन अल्पसंख्यक और दलित-दलित का खेल खेलते रहता है। अब देखिए न आप तो राजीव लोचन भी कहलाते हैं और उ ससुरा रजीवा आप ही के खिलाफ केस लड़ रहा। इतना लंबा केस तो किसी का नही चला। आप तो न्यायप्रियता के लिए मर्यादा पुरूषोत्तम हैं लेकिन आज आपको ही न्याय का दरवाजा वर्षों से खटखटाना पड़ रहा है। लँका विजय कर अयोध्या लौटे तो दीवाली मनी थी लेकिन इसबार भी दीवाली आपका अंधेरे बीतेगा।
और अधिक क्या कहें हर बार चुनाव है में आपके मन्दिर का घण्टा उसमें बजबे करेगा! बस अपना धनुष उठाइये और समुंदर के जइसन सूखा देने का धमकी दे दीजिए,अगर मन्दिर नही बनाया तो हराइये देंगे। फिर देखिए कमाल! लेकिन हमको पता है आप ऐसा कीजिएगा नही। काहे की आप तो क्षीर समुंदर में आराम से गोड़ पसार के लक्ष्मी मैया से गोड़ दबवा रहे होंगे तो धरती का प्रॉब्लम खाक समझिएगा।
खैर ! जाने दीजिए कुशल मंगल रहिये और हमलोग को कभी कभी दर्शन देते रहिये।
एक बार फिर प्रणाम
आपका
©पंकज प्रियम

Friday, October 18, 2019

691. सुहागन


1222 1222 1222 1222
करे सब कामना औरत, सुहागन ही रहूँ साजन,
पति की उम्र बढ़ने की, करे उपवास वो हरक्षण।
कभी यमराज से लड़ती, बनी वो सावित्री रानी-
भरा सिंदूर लाली और मंगलसूत्र से धड़कन।।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Thursday, October 17, 2019

690. क्यूँ देखूँ मैं चँदा

क्यूँ देखे तू चँदा
गीत

क्यूँ देखे तू चँदा, खुद चेहरा तेरा चाँद सा,
क्यूँ देखूँ मैं चँदा, जब प्यारा मेरा चाँद सा।

ऐ बता चाँद तू देखता है क्यूँ मुझको चोर सा,
चाहत होगा तू चकोर का, क्या होगा भोर का।
क्यूँ इंतजार करना, ये मुखड़ा तेरा चाँद सा।
क्यूँ देखे तू ...।

चाँद के दीदार को, क्यूँ नजरें बेक़रार है,
प्यार है संस्कार है, प्रियतम का इंतजार है।
करवा चौथ पे मनुहार, कैसा तेरा चाँद सा।
क्यूँ देखे तू...।

सबको रहता इंतज़ार, करवाचौथ रात का,
निकल आओ रे चाँद, मामला है जज़्बात का,
चंद्रदर्शन को व्याकुल, चेहरा तेरा चाँद सा।
क्यूँ देखे तू ...।

पुलकित धरती गगन, हर्षित बहता पवन,
चाँदनी रात में, महका तन-मन "प्रियम"।
एक चाँद को देखने खिला, चेहरा चाँद सा।
क्यूँ देखे तू...।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Wednesday, October 16, 2019

689.बेटी

बेटी
मुझको तो स्कूल जाना है,
माँ का भी हाथ बंटाना है।
छोटी कोमल हाथों से-
चूल्हा-चौका सजाना है।।

क्या करूँ मेरी मजबूरी है,
घर का भी काम जरूरी है।
कुछ बनकर तो दिखाना है
माँ का भी हाथ बंटाना है।।

भैया तो चल जाता स्कूल,
बेटी होना क्या मेरी भूल?
घर की लक्ष्मी बन जाना है,
माँ का भी हाथ बंटाना है।।

खो रहा मासूम सा बचपन,
जिम्मेदारी जैसे हो पचपन।
मुझको तो हर दर्द पचाना है,
माँ का जो हाथ बंटाना है।।

©पंकज प्रियम

688.दीवाली

स्वच्छता अभियान में हो रही साफ सफाई।
थोड़ी पर्यावरण की भी चिंता कर लो भाई।

कुछ ही दिनों में आनेवाली है  दिवाली
पटाखों से फैलेगी चहुँओर धुवाँ काली।

धूम धड़ाको से मचेगा हर तरफ शोर ।
फैलेगा ध्वनि-वायु प्रदूषण हर ओर।

क्या नही रखना है पर्यावरण का ध्यान
तो फिर आज ही मन में  लो यह ठान।

पटाखे को करो तुम तो अब बाय बाय।
चायनीज लाइट को भी कहो गुडबाय।

घर में मिटटी के ही तुम दीप जलाओ।
गरीबों के घर में अब चूल्हा जलाओ।

घर के बने पुए और पकवान खाओ।
मिलावटी खोवे से खुद को बचाओ।
©पंकज प्रियम


Tuesday, October 15, 2019

687. इश्क़ अंज़ाम

इश्क़ अंज़ाम
ग़ज़ल
212 212 212 212
याद आएं अगर एक पैगाम दो,
नाम लेकर मेरा इश्क़ अंजाम दो।

प्यार में जब कभी तुम तड़पने लगो
हिचकियों को सदा तूम मेरा नाम दो।

छोड़ दो क्या जमाना कहेगा यहाँ,
दिल सुकूँ जो मिले वही जाम दो।

हम तुम्हें चाहते इस कदर हैं सनम,
चैन खोता हूँ हर दिन जरा शाम दो।

मौत जो गर लिपट जाएगी बाँह में,
तब प्रियम को तिरंगे में आराम दो।

©पंकज प्रियम

Friday, October 11, 2019

686. गाँधी तेरे देश में

गाँधी तेरे देश में

ऐ काश! कि तुम कोई दलित होते,
ऐ काश! कि तुम अल्पसंख्यक होते।
तेरे घर लगता मजमा रोनेवालों का।
चोरी करते जो तबरेजों सा मर जाते,
तभी सेक्युलर रूदाली आँसू बहाते।
जलता कैंडल हर शहर गली चौराहे,
यू एन तक सब करते बस चर्चा तेरी,
नेता अफसर सब दौड़े-दौड़े आते।
बंगाल की धरती रक्तरंजित क्यूँ है?
विरोध का स्वर इतना किंचित क्यूँ है?
बहा रही लहू ममता की सरकार,
चुप क्यूँ बैठा दिल्ली का सरदार?
गाँधी तेरे देश में इस नए परिवेश में
भेड़िया छुपा बैठा खादी के वेश में।
आँसू बहते सिर्फ चुनिंदा मौतों पर
कुछ भी नहीं है बदला है तेरे देश में।
वोटों की सियासत केवल चमकाते,
तुम जिसके लिए आँसू थे छलकाते।
©पंकज प्रियम

Thursday, October 10, 2019

685. नींबू पर चढ़ गया राफेल

नींबू पर चढ़ा रॉफेल
****************
©पंकज प्रियम

लगी मिर्ची तुझे क्यूँ है,.. ....चढ़ा नींबू अगर राफेल,
मजा तब खूब ले लेते, ....कभी होता अगर ये फेल।
हमारे धर्म संस्कारों से,...... रहा भारत सदा समृद्ध-
महज कुछ वोट के कारण, सदा होता ग़लत है खेल।
राफेल युद्ध विमान का पदार्पण हुआ और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने उसकी विधिवत पूजा भी की। इस को लेकर बवाल मचा हुआ है तथाकथित सेक्यूलर और बुद्दिजीवी वर्ग इसका मजाक उड़ाने में लगे हैं। यह कोई नई बात तो नहीं?  जब भी हम कुछ नया करते हैं चाहे वाहन हो या घर-दुकान उसकी पूजा करते ही हैं। राफेल के टायर के नीचे नीबूं रखने का वही लोग मजाक कर रहे  हैं जो अपने-अपने दुकान और घरों में शनिवार को नींबू मिर्च टांगते हैं और फेसबुक में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। हर शुभकार्य से पहले उसकी पूजा आराधना की पुरानी परम्परा रही है। वाहन पूजा में नींबू पर टायर चढ़ाने की परपंरा रही है जिसके पीछे अपनी अलग आस्था और मान्यता है कि कभी कोई अनहोनी न हो,दुर्घटना न हो। पूजा पाठ में नींबू  का अपना अलग ही स्थान है इसको लेकर हायतौबा मचाने की जरूरत नहीं है। नीबू  और मिर्च इसलिए भी प्रयोग में लाते है कि इससे एक आस्था जुड़ी है कि लोगों की बुरी नजर न लगे। देश के प्रायः सभी ट्रक और दुकानों में देखा होगा कि लोग नींबू और मिर्च टांगकर रखते हैं तो फिर अगर राफेल की पूजा हो भी गयो तो कुछ लोगों को तकलीफ क्यों हो रही है? विश्वकर्मा पूजा में तो लोग टूटी साइकिल की भी पूजा करते हैं। राँची के जैप में तो दुर्गा पूजा के मौके पर खुखरी, तलवार और बन्दूको की पूजा होती है क्योंकि इसे शक्तिपूजा भी कही जाती है। आजतक जितने भी राजा हुए युद्ध के मैदान में जाने से पूर्व तिलक लगाकर पूरी आस्था के साथ शस्त्र पूजा करते थे।
सभी धर्मों में लोग अपनी आस्था के अनुरूप ईश्वर की इबादत करते हैं। बड़े से बड़े वैज्ञानिक और अत्याधुनिक विचारों से लैस व्यक्ति भी अपने अपने भगवान की पूजा करते ही हैं। सन्डे को चर्च जाना, जुमे की नमाज और गुरुद्वारा में सभी जाते ही हैं लेकिन उसके खिलाफ कली टिप्पणी नहीं करता। यहाँ तक कि वोट बैंक के लिए ही सही सेक्युलर का ढोंग करने वाले लोग तो बकायदा टोपी पहन इफ़्तार करते और दरगाहों में चादर चढ़ाने जाते हैं भले ही वो कभी अपने भगवान की पूजा न करते हों। आस्था ही तो है कि लोग इतने रुपये खर्च कर हज करने मक्का मदीना जाते हैं। शैतान को कंकड़ मारते हैं क्या वह भी पाखण्ड है? अजमेर शरीफ़ के दरगाह में जाकर जब चादर चढ़ाते हैं और खिड़की की जाली में धागा बांधते है तो वह पाखण्ड और अंधविश्वास नहीं है क्या? जब चंगाई सभा में हजारों लोग उमड़ते हैं और बीमारी ठीक होने का दावा करते हैं तब तो कोई नहीं कहता कि ये अंधविश्वास है! क्या सारे सवाल सनातन धर्म के लिए ही है? छद्म सेक्युलर इसी से पता चलता है की जब ममता बनर्जी पूरे इस्लामिम तरीके से खुदा की इबादत करती है तो उसे सेक्युलर कहते हैं लेकिन उसी प्रदेश में नुसरत जहाँ ने ही हिन्दू धर्म के अनुसार माँ दुर्गा की पूजा की तो वह हराम हो गया!

Wednesday, October 9, 2019

684. माँ शारदे

वर दे

वर दे! माँ भारती तू वर दे,
वर दे! माँ शारदे तू वर दे।

अहम-द्वेष तिमिर मन हर,
स्वच्छ मन स्वस्थ तन कर।
शील स्नेह सम्मान भर दे,
वर दे! माँ शारदे तू वर दे।

बाल अबोध सुलभ सा मन,
मूढ़-जड़ अबूझ सरल मन।
अज्ञानता को मन से हर ले,
वर दे! माँ शारदे तू वर दे।

अनजान अनगढ़ अनल मन,
नव संचार विचार नव मन।
सत्य असत्य का ज्ञान भर दे।
वर दे माँ शारदे तू वर दे।

तनमन सब तुझको ही अर्पण,
जीवन को करता हूँ समर्पण।
हरक्षण मेरा नवविहान कर दे।
वर दे! माँ भारती तू वर दे।

वीणापाणि पुस्तक धारिणी,
बुद्धि विवेक विद्या दायिनी।
मन में ज्ञान का संचार कर दे,
वर दे! माँ शारदे तू वर दे।

धरती के तू हर कणकण में,
सत्य साधना के आँगन में।
ज्ञान दीप प्रकाश तू भर दे,
वर दे! माँ शारदे तू वर दे।

   © पंकज भूषण पाठक"प्रियम्

Tuesday, October 8, 2019

683. मैं ने मारा

मैं
राम लौटे जब अयोध्या,
पूछा उनसे कौसल्या ने।
दुष्ट दुराचारी रावण को,
मार दिया लल्ला तुमने।

धीर-गम्भीर बोले राम,
नहीं उसको मारा मैंने।
लंकापति रावण को तो,
खुद उसको मारा "मैं" ने।

रावण को था अभिमान,
तीन लोक में शक्तिमान।
मैं को खुद पाला उसने,
खुद उसको मारा मैंने।

मैं ही तो सबका दुश्मन,
महिषासुर हो या रावण।
मैं को जिया है जिसने,
खुद उसको मारा मैं ने।

मैं में ख़त्म हुआ जीवन,
बाली, कंस या दुर्योधन।
मैं को ही अपनाया इसने
खुद उसको मारा मैं ने।

©पंकज प्रियम

Monday, October 7, 2019

681.तेजस पर बवाल

तेजस पर बवाल
★पंकज प्रियम
तेजस ट्रेन की इन तस्वीरों पर बहुत से लोगों का संस्कार जग गया है वैसे भी लोग इसका विरोध करने लगे हैं जो बिगबॉस में लड़के लड़कियों को एक साथ बेड शेयर करते हुए देख रहे हैं, दिनरात इंटरनेट पर पोर्न फिल्मों का आनन्द लेते रहते हैं। बच्चों के साथ बैठकर हिंदी, अंग्रेजी और  भोजपुरिया फूहड़ अश्लील गाने देखते रहते हैं।  तेजस की ट्रेन हॉस्टेस में अश्लीलता उन्हें भी दिख रही है जो खुद अपने बच्चों को फैशनेबल फ़टे जीन्स पहनने पर रोक नहीं सकते। देर रात पब और क्लबों में जाने से रोक नहीं पाते। ग्रामीण परिवेश में भी शहरी कल्चर ढालने लगे हैं। नवरात्र में माता दुर्गा की आराधना और सप्तशती का पवित्र पाठ करने और कराने की बजाय डांडिया कल्चर हावी हो रहा है जहां औरते और लड़कियां पूरी नंगी पीठ और छोटे-छोटे कपड़ों में आती है। सेविंग क्रीम और पुरुषों के गंजी जांघिया के विज्ञापन में अधंनगी लड़कियों की तस्वीर देखकर ही आप उस प्रोडक्ट को खरीद लेते हैं।
लोगों की यह भी दलील है कि इससे सरकारी ट्रेनें बर्बाद हो जाएंगी तो यार!  इससे पहले कौन सी बुलेट ट्रेन चल रही थी। याद है पिछले महीने प्रीमियम ट्रेन हमसफ़र एक्सप्रेस से दिल्ली गया था, स्टेशन पर खुलते ही बोगी को छोड़कर इंजन आगे निकल गयी, एक बड़ा हादसा होते रह गया। दिल्ली करीब 6 घण्टे लेट पहुंची न तो पेन्ट्री कार और न ही कोई बेहतर सुविधा लेकिन टिकट प्लेन के बराबर। जितने पैसे में हमसफ़र एक्सप्रेस से करीब 20 घण्टे में दिल्ली गया उतने ही पैसे में एयर इंडिया से महज 2 घंटे में वापस राँची लौट आया। अब भला ऐसी ट्रेन से कोई क्यों जाय?
हां तो मैं बात कर रहा था तेजस की सुंदर होस्टेस की तो ऐसी होस्टेस तो प्लेन में शुरू से रहती है और अब हर कोई उसपे सफर करता है। वहां भी सरकारी से अधिक डिमांड प्राइवेट प्लेन की होती है। ये तो बहुत सलीके से है तनिक अपने आसपास ही नज़र दौड़ाइये तो फैशन के नाम पर  फ़टे जींस और फ़टे कपड़ो में अधनंगे शरीर दिख जाएंगे। होटलों में खुलेआम कॉलेज की लड़कियां शराब सिगरेट पीती नजर आती है।किसी भी पार्क में चले जाएं क्या स्थिति दिखती है। सवाल सिर्फ तेजस का नहीं है जब भी सरकारी तंत्र सुस्त होगा निजी सेक्टर आगे बढ़ेंगे ही। मोबाइल ही देख लीजिए BSNL की खराब सर्विसेज के कारण ही निजी कम्पनियों की एंट्री हुई। याद कीजिये bsnl की जब sim लॉन्च हुई तो लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी भारी मशक्कत से एडवांस रुपया जमा करने के 3 महीने बाद लोगों को sim मिला था। लेकिन भाई साहब नहीं लगने लगे तो airtel, idea, voda और रिलायन्स ने पाँव पसारने शुरू कर दिए इसमें भी BSNL के कुछ भ्रस्ट अधिकारियों ने उनके लिए राह आसान की होगी। यही हाल सरकारी बसों का है आज कितने लोग ट्रांसपोर्ट की बसों में सफर करते हैं? सभी को लक्ज़री वॉल्वो बस ही चाहिए। सरकारी बस या ट्रेन के सीटों पर ब्लेड चलाने से लोग नहीं हिचकते, आज भी टॉयलेट के मग को जँजीर से बांधकर रखना पड़ता है। जहां जिसको मौका मिला वही हाथ साफ कर लेता है, बात बात पर ट्रेन पुलिंग, तोड़फोड़ और चोरी यहां तक कि ट्रेन की चादर तक चुराकर ले जाते हैं। सिर्फ सरकारी तंत्र ही दोषी नहीं है इसके लिए आम जनता भी दोषी है। कितने लोग सरकारी स्कूलों में बच्चे पढ़ाते हैं? कितने लोग सदर अस्पताल में जाते हैं?
सिर्फ सरकार या सरकारी तंत्र को कसूरवार ठहरा देने से आप अपने कर्तव्यों से पीछा नहीं छुड़ा सकते। संविधान ने अगर मौलिक अधिकार दिए हैं तो मौलिक कर्तव्यों का भी जिक्र है। आप कहेंगे ये सब तो सरकार का काम है, बेशक जनता की मूलभूत सुविधाओं को बहाल करने के लिए सरकार है लेकिन जनता भी अपने कर्तव्यों को सही तरीके से निभाये। क्या है न की हमें जो चीज मुफ्त में मिलती है न उसकी क़द्र ही नहीं करते। सरकारी चीजों को महत्व ही नहीं देते वहीं प्राइवेट चीजों पर अधिक भरोसा करते हैं। यही कारण है कि आज निजी कम्पनियों के पौ बारह हैं। कुछ भ्रष्ट नेता, मंत्री और अधिकारियों के कारण पूरा सरकारी तंत्र सवालों के घेरे में आ जाता है। जब तक हम नहीं सुधरेंगे देश बिल्कुल ही नहीं सुधरेगा। आज रेलवे का निजीकरण हुआ है तो इसके लिए हम सब जिम्मेवार हैं हमें प्राइवेट चीजें ज्यादा पसंद आती है फिर चाहे स्कूल हो, अस्पताल हो, बैंक हो, बस हो या फिर जहाज हो। सरकारी चीजों को तो हमने चकलाघर बना रखा है जिसे जैसे आता है खेल कर चला जाता है। जिस दिन प्राइवेट अस्पताल, स्कूल ,बस और मोबाईल आया उसी दिन विरोध शुरू हो जाता तो फिर किसी सेवा का निजीकरण नहीं होता। लेकिन बाजार में अगर प्रतिस्पर्धा न हो तो मोनोपोली हो जाता है। आज प्रतिस्पर्धा के कारण ही bsnl और दूसरी कम्पनियो के कॉल रेट इतने कम हुए हैं जिसका फायदा आम उपभोक्ताओं की मिल रहा है। सरकारी बैंकों को भी सुविधाओं में बढ़ोतरी करनी पड़ी है। सरकारी अस्पताल और स्कूलों में भी प्राइवेट जैसी सुविधाएं देनी पड़ रही है। ट्रेनों में लम्बी वेटिंग लिस्ट और जनरल बोगियों में भेड़ बकरी की तरह खचाखच भीड़ पर सरकार को ही दोष देने लगते हैं लेकिन जब सरकार हम दो हमारे दो के परिवार नियोजन कानून लाती है तब लोग विरोध करते हैं और सुवरों की तरह दर्जन भर बच्चे पैदा कर दिनरात भीड़ बढ़ाते रहते हैं। अगर बेहतर सुविधा से लैस अत्याधुनिक ट्रेन सेवा आ भी गयी तो फायदा यात्रिओ को ही होना है। इससे सरकारी ट्रेनों में भी बेहतर सुविधा और समय पर परिचालन का दबाव बढ़ेगा इसके लिए सरकार और आम जनता को एक साथ कदम बढ़ाना होगा। सरकार पर ट्रेनों में सुधार का दबाव बनाना होगा तो वहीं अपने व्यवहार में भी सुधार करना होगा। विदआउट टिकट की आदत छोड़नी होगी। ट्रेनों से चादर, आईना, पंखे और टॉयलेट का मग चोरी करने की आदत छोड़नी होगी। सीटों को फाड़ने और टॉयलेट में अश्लील चालीसा लिखने वालों को सजा देनी होगी। विकास के लिए हर किसी को लगना होता है। हम सुधरेंगे तभी देश सुधरेगा।
©पंकज भूषण पाठक "प्रियम"

Sunday, October 6, 2019

679. अधिकार

फ़क़त क्या याचना कर के, कभी अधिकार है मिलता?
चला गाण्डीव को रण में,   तभी अधिकार है मिलता।
कहाँ मिलता यहाँ सबको, नहीं आसान है इतना-
अगर खुद पे यकीं हो तो, सभी अधिकार है मिलता,

©पंकज प्रियम

Saturday, October 5, 2019

678. आदिशक्ति माँ

माँ

सती चण्डी जगत जननी, महादेवी उमा गौरी,
भवानी मात जगदम्बा, महाकाली  महागौरी।
भरो माँ रंग जीवन में, प्रियम की चाह है इतनी-
तुम्हारा हाथ हो सर पे, सदा आशीष माँ गौरी।

भरो माँ रंग जीवन में,..समर्पण भाव भक्ति माँ,
करूँ पूजा सदा तेरी,...भवानी आदि शक्ति माँ।
नहीं कोई बड़ी हसरत,..नहीं है चाह दौलत की-
तुम्हारा प्रेम मिल जाये, बता वो खास युक्ति माँ।

©पंकज प्रियम

677.प्रियम तो हार में मिलता


नहीं मैं बाग में खिलता....नहीं बाजार में मिलता,
उतर दिल के समंदर में, भँवर मझधार में मिलता।
नहीं मुश्किल पहेली मैं, अगर पाना कभी मुझको-
कभी दिल हार के देखो, प्रियम उस हार में मिलता।

©पंकज प्रियम

676. इश्क़

नहीं दिल बाग में खिलता.... नहीं बाजार में मिलता,
उतर जो आग का दरिया,.भँवर मझधार में मिलता।
डगर-ए-इश्क़ है मुश्किल, अगर पाना कभी इसको-
समर्पित जीत तुम कर दो, सदा दिल हार में मिलता।।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Thursday, October 3, 2019

675. कलम कवि की


कवि की कलम

जब आग दिलों में है जलती,
तब कलम कवि की है चलती।

हर रोज़ निशा भी सँग जगती,
हर बात की साक्षी वह बनती।
जब हृदय में पीर कोई पलती
तब कलम कवि की है चलती। 1।

जब सारा जग है सो जाता,
जब स्याह अँधेरा हो जाता।
जब रात घनेरी कुछ कहती,
तब कलम कवि की है चलती।2।

घड़ी भी टिक-टिक ये करती,
खुद से खुद वह बातें करती।
जब शाम सिन्दूरी बन ढलती,
तब कलम कवि की है चलती।3।

जब किरण सबेरे बिखराती,
सतरंगी छटाएँ निखराती।
जब खुशबू चमन में है घुलती,
तब कलम कवि की है चलती।4।

जब प्यार किसी से हो जाता,
ख़्वाबों में दिल ये खो जाता।
जब साँसे सरगम से सजती,
तब कलम कवि की है चलती।5।

जब साथ किसी का है छूटा,
दिल प्यार में दर्पण सा टूटा।
जब दर्द से नयना है बहती,
तब कलम कवि की है चलती।6

जिस माँ ने गोद में पाला था,
हाँ बाबा ने जीवन ढाला था।
जब तन्हाई उनको है खलती,
तब कलम कवि की है चलती।7।

जब भूख से कोई यहाँ मरता,
जब भीड़ से कोई यहाँ डरता।
जब ज्वाला मन में है जलती,
तब कलम कवि की है चलती।8।

जब राह कोई भी भटकता है,
फाँसी पे किसान लटकता है।
जब सज़ा बिना कोई ग़लती,
तब कलम कवि की है चलती।9।

जब कानून ही अंधा हो जाता,
भ्रष्टाचार ही धँधा हो जाता।
जब पाप की गंगा है बहती,
तब कलम कवि की है चलती।10।

जब धर्म-अधर्म का युद्ध बड़ा,
असत्य हो सत्य विरुद्ध खड़ा।
जब भीष्म की चुप्पी है सधती,
तब कलम कवि की है चलती।11।

जब कलम पे पहरा लगता है,
शासक भी बहरा लगता है।
जब रश्मि रवि की है थमती,
तब कलम कवि की है चलती।12।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड