समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
Monday, September 28, 2020
882.बेटी
Wednesday, September 23, 2020
881.कवि का कर्म
880.दिनकर
879 - समर शेष है तेरा भारत
समर शेष है अब भी भारत
युध्द तुझे फिर लड़ना होगा.
सजा अभी कुरुक्षेत्र यहाँ तो
रण में आगे बढ़ना होगा।1
जरूरत फिर से वीरों की है
धार तेज शमशीरों की है।
सोने की चिड़िया बनकर
आसमान में उड़ना होगा . 2
कण-कण तेरा है चन्दन
जनगण करता है वन्दन.
विश्वगुरु बनने की खातिर
चाँद पे फिर चढना होगा. 3
नहीं अबला सा कर क्रंदन
कर मत वन्दन सिंहासन.
जनमानस की पीड़ा लिख
इतिहास नवीन गढ़ना होगा. 4
बस चरण वंदना धर्म नहीं,
कुछ भाव व्यंजना कर्म नहीं .
मन का तमस मिटाने को
साहित्य सदा पढना होगा।5
पग-पग शकुनी पाशा फेंके,
भीष्म द्रोण भी तमाशा देखे .
द्रौपदियो की अस्मत ढंकने
सखा कृष्ण सा बनना होगा. 6
घडा भरा हँ पाप यहाँ पर,
घर-घर है संताप यहाँ पर.
धर्म का कुरुक्षेत्र सजाकर
महाभारत फिर करना होगा. 7
दुश्मन को मार भगाने को
सोयी सरकार जगाने को
खाली करने को सिंहासन
हुँकार दिनकर भरना होगा. 8
समर शेष है तेरा भारत
संघर्ष तुझे फिर करना होगा.
जनगण की आवाज़ उठा के
दर्द सभी का हरना होगा . 9
पंकज प्रियम
23 सितम्बर 2020
Sunday, September 20, 2020
878.थाली में छेद
877.तेरी यादें
Friday, September 11, 2020
876.बदले की सरकार
Monday, September 7, 2020
875. रिश्ते क्यूँ रिसते?
Friday, September 4, 2020
874. आदमी
Wednesday, September 2, 2020
873 .कोरोना काल मंहगाई
Tuesday, September 1, 2020
872. अरमान कैसा?
871. व्यापार लाशों का
यहाँ जिंदा मरा है सब, सजा बाज़ार लाशों का,
विचारों पे लगा पहरा, दिखे अख़बार लाशों का।
यकीं किसपे करे कोई, भरोसा हो भला किसपर-
धरा का देवता करता, यहाँ व्यापार लाशों का।।
©पंकज प्रियम
870. अनमोल ज़िन्दगी
लॉकडाउन ज़िन्दगी है, जरा खुद को सम्भालो,
अवसाद में जो डूब रहे, ........उनको निकालो।
ये काल कोरोना भी, गुजर जाएगा एक दिन-
अनमोल ज़िन्दगी है, जरा इसको बचा लो।।
अनमोल जिन्दगी है, जरा इसको बचा लो,
खुशियों का खाद पानी यहाँ रोज ही डालो।
ठोकर भरी राहों में, यहाँ रोज है चलना-
पग-पग में बिछे काँटे यहाँ खुद को सम्भालो।