Monday, September 28, 2020

882.बेटी

बेटी 
पिता की जान है बेटी , पिता अभिमान है बेटी .
हृदय हरपल धड़कती मात की तो प्राण है बेटी।
धरा से आसमां तक ये, यहाँ लहरा रही परचम- 
अरे माँ-बाप पे हरदम, छिड़कती जान है बेटी।।
 कवि पंकज प्रियम

Wednesday, September 23, 2020

881.कवि का कर्म

मंचों पर चुटकुले पढ़ना, कवि का कर्म नहीं होता।
कुर्सी का अभिनन्दन करना, कवि का धर्म नहीं होता।
साहित्य क्षितिज का दिनकर बनना, काम नहीं इतना आसां
जनमानस की पीड़ा कह दे, कवि का मर्म वही होता।।
©पंकज प्रियम

880.दिनकर

दिनकर

शब्दों की ज्वाला दहकाकर, हृदय में आग लगा डाला।
राष्ट्र प्रेम का भाव जगाकर, कण-कण देश जगा डाला।।
प्रखर ओज का स्वर बनकर, साहित्य क्षितिज में निकले ,
दिनकर बनके तमस जगत का, शब्द से मार भगा डाला।।
©पंकज प्रियम

879 - समर शेष है तेरा भारत

 समर शेष है अब भी भारत 

 युध्द तुझे फिर लड़ना होगा.

सजा अभी कुरुक्षेत्र यहाँ तो

रण में आगे बढ़ना होगा।1


जरूरत फिर से वीरों की है

धार तेज शमशीरों की है।

सोने की चिड़िया बनकर 

आसमान में उड़ना होगा . 2


कण-कण तेरा है चन्दन 

जनगण करता है वन्दन.

विश्वगुरु बनने की खातिर 

चाँद पे फिर चढना होगा. 3


नहीं अबला सा कर क्रंदन 

कर मत वन्दन सिंहासन.  

जनमानस की पीड़ा लिख 

इतिहास नवीन गढ़ना होगा. 4


बस चरण वंदना धर्म नहीं,

कुछ भाव व्यंजना कर्म नहीं . 

मन का तमस मिटाने को 

साहित्य सदा पढना होगा।5

पग-पग शकुनी पाशा फेंके,

भीष्म द्रोण भी तमाशा देखे .

द्रौपदियो की अस्मत ढंकने 

सखा कृष्ण सा बनना होगा. 6


घडा भरा हँ पाप यहाँ पर,

घर-घर है संताप यहाँ पर. 

धर्म का कुरुक्षेत्र सजाकर

महाभारत फिर करना होगा. 7 


दुश्मन को मार भगाने को 

सोयी सरकार जगाने को 

खाली करने को सिंहासन 

हुँकार दिनकर भरना होगा. 8


समर शेष है तेरा भारत 

संघर्ष तुझे फिर करना होगा. 

जनगण की आवाज़ उठा के 

दर्द सभी का हरना होगा . 9

पंकज प्रियम 

23 सितम्बर 2020



 

Sunday, September 20, 2020

878.थाली में छेद

थाली में छेद
खाकर जिसने छेद किया है, अपने देश की थाली में।
पकड़ के उसको आओ डालें, सड़ती गंदी नाली में।।

रोटी खाये हिंदुस्तानी, नारा लगाए पाकिस्तान।
अपने देश को गाली देता, दुश्मन की करता गुणगान।
माफ़ नहीं तुम उसको करना, भारत को जो गाली दे-
पकड़ के उसको---

बात सहिष्णुता की करता, खुद चलवाता बुलडोजर।
देशविरोधी नारों पर तो, मुँह सील जाता है अक्सर।।
खुद पे जब हो प्रश्न खड़े तो, औकात दिखाते गाली में।
पकड़ के उसको--

नफ़रत की जो आग लगाये, देश नहीं है यह उनका,
दुश्मन की बोली जो बोले, देश नहीं है यह उनका।
घर में छुपे सब गद्दारों को लटकाएं आओ फाँसी पे।।

©पंकज प्रियम

877.तेरी यादें


तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।
सताती है मुझे हरपल, तुम्हारे संग की यादें।।
तेरा चेहरा मेरी आँखें, मेरी धड़कन तेरी साँसे।
जगाती है मुझे हरपल, तुम्हारे संग की रातें।।

तुम्हारी याद जब आती, मुझे बैचेन कर जाती।
तरसकर ये मेरी नैना,यहाँ अश्कों से भर जाती
रुलाती है मुझे हरपल, विरह जो वेदना जागे।
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।

धड़कती है मेरी धड़कन, तू जब जब साँस लेती है।
तड़प उठता है दिल मेरा,तू जब जब आह भरती है।
सताती है मुझे पलपल, तुम्हारे प्यार की बातें।
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।।

सज़ा मेरी सुना देना, ख़ता कर लूँ मगर पहले,
जमाना छोड़ क्या देगा, सजा दे दो अगर पहले।
जमाना तोड़ क्या सकता, मुहब्बत से जुड़े नाते।
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।।

गुलाबी धूप के जैसी, जवानी रूप के जैसी।
नहीं कोई यहाँ होगी, मेरे महबूब के जैसी।
बहकते है कदम मेरे, करे मदहोश जो आँखें।
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।

नयन मदिरा भरी प्याली, अधर में आग सी लाली।
गुलाबी गाल को छूती, लटकती कान की बाली।
गुजर जाता है दिन लेकिन, गुजरती है नहीं रातें।
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।।
पंकज प्रियम

Friday, September 11, 2020

876.बदले की सरकार

सरकार

देख लो कैसी एक सरकार
देख लो बदले की सरकार।
राउत की गाली है स्वीकार
कंगना की "तू" पे FIR.

कंगना का घर तो तोड़ा रे,
दाऊद का घर क्यूँ छोड़ा रे?
थू-थू करते सब धिक्कार।
देख लो बदले की सरकारं

पालघर का पाप भी देखा,
बॉलीवुड संताप भी देखा।
नहीं जनता से है दरकार,
देख लो बदले की सरकार।

केस सुशान्त दबाया जिसने,
यूपी बिहारी मारा जिसने।
संजय संग बैठा धृतराष्ट्र।
देख लो बदले की सरकार।
©पंकज प्रियम

Monday, September 7, 2020

875. रिश्ते क्यूँ रिसते?


जुड़ते हैं यहाँ जो प्यार से बंध के,
करते हैं भरोसा प्यार से बढ़ के।
एक पल में ऐसा होता है क्या?-
रिश्ते भी दिलों के क्यूँ रिसते?

इश्क़ मुहब्बत चाहत नफ़रत,
सूरत शोहरत धन और दौलत।
कुछ भी यहाँ कब पास में टिकते।
रिश्ते भी दिलो के क्यूँ रिसते?

प्यार से बढ़कर क्या है दूजा,
इश्क़ इबादत प्यार है पूजा।
जब प्यार में जीते प्यार में मरते
रिश्ते भी दिलों के क्यूँ रिसते?

दिल जो परेशा होता कभी है,
टूट के दिल जब रोता कभी है।
अपनो के सहारे ही सब रहते,
रिश्तों भी दिलों के क्यूँ रिसते?

माता पिता को छोड़ के तनहा
अपनो का भरोसा तोड़ के जाना।
घर-घर में यही अब किस्से सुनते
रिश्ते भी दिलों के क्यूँ रिसते?
©पंकज प्रियम

Friday, September 4, 2020

874. आदमी

ग़ज़ल
इस क़दर आदमी आजमाया गया,
बेवज़ह भी उसे तो रुलाया गया।

दर्द से कब यहाँ फ़िक्र किसको हुई
ज़ख्म देकर तमाशा दिखाया गया।

दोष ईश्वर को देते मगर सच यही,
आदमी आदमी से सताया गया।

मुँह अगर खोलकर बोल दे जो कोई,
आँख उसको दिखाकर दबाया गया।

जो दिखाया कभी आइना तो प्रियम,
वो समझ रास्ते से हटाया गया।

कवि पंकज प्रियम

Wednesday, September 2, 2020

873 .कोरोना काल मंहगाई

कोरोना में मंहगाई

आलू को बुखार चढ़ा, टमाटर लाल हुआ,
कोरोना से बचे भी तो, नहीं बच पाएंगे।

पार अस्सी पेट्रोल है, डीजल भी कम नहीं,
आग लगी मंहगाई, गाड़ी न चलाएंगे।।

रोजी-रोटी सब गयी, फांकाकशी चल रही,
ऐसे में इलाज भला, ख़ाक करवाएंगे।।

मिले नहीं रोजगार, मौज में है सरकार, 
खरीदे के नई कार, चढ़ के चिढाएंगे।।

जीडीपी का गिर जाना, लाज़िम है सरकार, 
बन्द जब सबकुछ, नीचे ही गिराएंगे।

गिरे सब नेता जब, गिरे सारे अफसर,
खुद ही जो गिर गये, किसको उठाएंगे। 

खर्च सब घट गया, वेतन भी कट गया,
खर्चा पर सरकारी, कब से घटाएंगे।

नेता को कोरोना हुआ, बंगला ही मिल गया,
फिलिम देखन लिए, नेट लगवाएंगे।।
कवि पंकज प्रियम

Tuesday, September 1, 2020

872. अरमान कैसा?

अभिमान कैसा?

ये दौलत ये शोहरत ये सम्मान कैसा?
ये जीवन उधारी तो' अभिमान कैसा?

जहाँ धड़कने भी उधारी किसी की
किसी को वहाँ दे अभयदान कैसा?

पलों से जियादा कहाँ ज़िन्दगी है?
तो पलपल पले ख़ूब अरमान कैसा?

पढ़ा और लिक्खा नहीं हर्फ़ से बढ़,
तो कहना तेरा खुद ही विद्वान कैसा?

उसी के' इशारों पे' चलती है' साँसे,
बँधी डोर पुतली का गुमान कैसा?

कहाँ कुछ लिये आये जाना कहाँ है
फ़क़त चार दिन का है' एहसान कैसा?

बिखर जाएगी देह माटी में मिलकर ,
परिंदों सा उड़ना है आसमान कैसा?

धरा ही रहेगा........ कमाया धरा में,
सफ़र ज़िन्दगी फिर ये सामान कैसा?

प्रियम जो कमाया, उसी का दिया सब
उसी का उसी को किया दान कैसा?
©पंकज प्रियम

871. व्यापार लाशों का

 यहाँ जिंदा मरा है सब,  सजा बाज़ार लाशों का,

विचारों पे लगा पहरा, दिखे अख़बार लाशों का।

यकीं किसपे करे कोई, भरोसा हो भला किसपर-

धरा का देवता करता, यहाँ व्यापार लाशों का।।


©पंकज प्रियम

870. अनमोल ज़िन्दगी

 लॉकडाउन ज़िन्दगी है, जरा खुद को सम्भालो,

अवसाद में जो डूब रहे, ........उनको निकालो।

ये काल कोरोना भी, गुजर जाएगा एक दिन-

अनमोल ज़िन्दगी है,     जरा इसको बचा लो।।


अनमोल जिन्दगी है, जरा इसको बचा लो,

खुशियों का खाद पानी यहाँ रोज ही डालो।

ठोकर भरी राहों में,  यहाँ रोज है चलना-

पग-पग में बिछे काँटे यहाँ खुद को सम्भालो।

869. अभिमान कैसा

अभिमान कैसा?

ये नाम ये शोहरत ये सम्मान कैसा?
उधार की जिंदगी का अभिमान कैसा?

हरेक साँस पे तो धड़कनों का पहरा है,
यहाँ किसी को देना जीवनदान कैसा?

पलों से ज्यादा कहाँ ज़िन्दगी का वजूद,
हरेक उस पल में पलता अरमान कैसा?

हर्फ़ से ज़्यादा पढ़ा और लिखा क्या है?
फिर तेरा खुद को कहना विद्वान कैसा?

उसी के इशारों पे चलती है सबकी साँसे,
नाचती कठपुतलियों का स्वाभिमान कैसा?

कहाँ कुछ लेकर आये, क्या जाना है लेकर
फ़क़त चार दिनों में करता एहसान कैसा?

माटी में मिल जाएगा माटी का यह तन,
परिदों सा यूँ तेरा उड़ना आसमान कैसा?

यहीं रह जाएगा कमाया जो कुछ भी तूने
सफ़र है ज़िन्दगी तो सजाना सामान कैसा?

ईश्वर का ही सबकुछ, मिला जो भी है प्रियम, 
उसी का दिया उसी को करना दान कैसा?
©पंकज प्रियम

1 सितम्बर 2019