Wednesday, January 19, 2022

937.कैसे मिली आज़ादी!


आज़ादी 

कहाँ मिली आज़ादी हमको, बिना खड्ग बिना ढाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा,  हो गये कितने लाल।

बांध कफ़न को सर पे सारे, हाथ को कर हथियार।
कूद पड़े आज़ादी रण में, हो मरने को तैयार।।
सन सत्तावन की ज्वाला धधकी, घर-घर जली मशाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।

मंगल पांडे और आज़ाद,   हो गये सब कुर्बान। 
भारत माता रोयी कितनी, देख के जाती जान।
वीर जवानों की कुर्बानी,   रक्त से धरती लाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।

सुखदेव भगत और राजगुरु, हो गये वीर शहीद।
हँसते-हँसते फाँसी चढ़कर, बन गये इक उम्मीद।
झाँसी की वो लक्ष्मीबाई, लिये खड्ग और ढाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।

जलियांवाला बाग दिखाती, मौत की वो तस्वीर।
ब्रिटिश हुकूमत की गोली से, कैसे मर गये वीर?
बिस्मिल-कुँवर सिंह-सुभाषचंद्र, लाल-बाल और पाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।

गाँधी के आवाहन पर भी, मिट गये वीर सपूत।
देश विभाजन जिन्नावादी, सब हैं अपने कपूत।
बंटवारे की आग में जलकर, भारत हुआ बेहाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।

सुनो हमारे देश के वीरों, रखना तुम यही याद।
सीने पे जब खायी गोली, तब तो हुए आजाद।
कहाँ मिली आज़ादी हमको, बिना खड्ग बिना ढाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।।
©पंकज प्रियम

Saturday, January 1, 2022

936.यादें 2021

*यादें 2021*
2020 की कड़वी यादों के साथ जब वर्ष 2021 का कैलेंडर बदला तो लगा कि अब कोरोना रूपी राक्षस लौटकर नहीं आएगा। जिंदगी पटरी पर लौटनी शुरू हुई थी। 5 अप्रैल 2020 में प्रस्तावित बाबा बैद्यनाथ साहित्योत्सव काव्याभिषेक को 4 अप्रैल 2021 में करने की घोषणा कर दी। ख़ौफ़ और आशंका के बीच तैयारियां शुरू हो गयी। देवघर का सेवाधाम एक साल पूर्व से ही आरक्षित था। कोरोना फिर से पैर पसारने लगा था इसी डर के माहौल में कई लोग नहीं आ सके। कार्यक्रम की प्रशासनिक अनुमति मिल चुकी थी लेकिन एक डर बना हुआ था फिर भी  निर्धारित तिथि और समय पर भव्य कार्यक्रम हुआ। काफी दूर-दूर से लोग आये और यादगार आयोजन सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम के बाद लौटते वक्त करुणेश जी की तबियत बिगड़ गयी और घर लौटने के बाद टेस्ट कराया तो वे पॉजिटिव निकल गए। हम सबकी जान हलक में आ गयी । हम सब ने एक साथ आना-जाना खाना पीना किया था। तुरंत पटल पर सूचना दी कि कृपया सभी टेस्ट करा लें। मैंने भी टेस्ट कराया लेकिन बाबा बैद्यनाथ की कृपा से नेगेटिव आया और किसी को कुछ नहीं हुआ। अप्रैल के बाद तो कोरोना की दूसरी लहर ने कहर मचाना शुरू कर दिया। हर सुबह मोबाइल पर किसी अपने करीबी के गुजरने की तस्वीर होती थी। साथ वक्त गुजारे दोस्तों के निधन की ख़बर से रोज बैचेन होता रहता। ज़िन्दगी मास्क, सेनिटाइजर, काढ़ा और कसरत में गुजरने लगी। जुलाई अगस्त के बाद हालात बदलने लगे और 16 सितम्बर को गिरिडीह में  स्थापना दिवस का छोटा ही सही लेकिन भव्य आयोजन हुआ। इसी बीच मेरी फुआ सहित कई करीबी रिश्तेदारों के निधन से टूटता रहा। अक्टूबर में जन रामायण अखण्ड काव्यार्चन कराने की योजना बनाई लेकिन 10 अक्टूबर को ज़िन्दगी में एक नया तूफ़ान आ गया। ऑपरेशन से बेटी हुई लेकिन उसे इमरजेंसी में लेकर दूसरे अस्पताल में भागना पड़ा। गिरिडीह के अस्पताल में पत्नी भर्ती थी और नवजात बच्ची को लेकर बोकारो भागना पड़ा। जीवन में पहली बार मैं खुद एम्बुलेंस में बैठकर गया। उसके सायरन की गूँज आज भी दिल को दहला देती है। 12 दिनों तक अस्पताल में बच्ची के इलाज़ में जूझता रहा। रोज ठीक होने की उम्मीद बढ़ती और घटती रही। पूरा परिवार उलझा रहा। 12वें दिन जब अस्पताल ने हाथ खड़े कर दिए तो एकदम से पस्त हो गया। तमाम हिम्मत रखने के बावजूद आँखों से आँसू बहने लगे। लगा कि अब क्या करें?  रातोंरात फिर एम्बुलेंस में लेकर राँची गया और वहाँ 14 दिनों का अस्पतालवास काटा। ठीक दीवाली के रोज अस्पताल से छुट्टी मिली तो जान में जान आयी। 26 दिनों में 3 अस्पतालों के चक्कर ने मानो घनचक्कर बना दिया लेकिन इस दौरान पूरा साहित्योदय परिवार मेरे साथ खड़ा रहा। पूरी दुनिया से लोगों की दुआएं आ रही थी जिसके फलस्वरूप बच्ची ठीक होकर घर लौट आयी। अस्पताल से लौटने के बाद जन रामायण अखण्ड काव्यार्चन की तिथि घोषित किया और तैयारी शुरू कर दी। दिनरात के अथक प्रयासों से 5-6 दिसम्बर को करीब 27 घण्टे तक अखण्ड काव्यार्चन का विश्व रेकॉर्ड बना। इसमें पूरी टीम का सहयोग रहा। गत 29 दिसम्बर को देवघर में जन रामायण सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। डॉ बुद्धिनाथ मिश्र जी के हाथों साहित्योदय का  गोल्डनबुकऑफ रिकॉर्ड का सम्मान प्राप्त करना इस साल की सबसे बड़ी उपलब्धि रही। अगले वर्ष कई योजनाओं पर काम करना है। उम्मीद करता हूँ कि 2022 में साहित्योदय का परचम पूरी दुनिया में लहराये। आयोजन अयोध्या सफल हो और सबका कल्याण हो।
✍️ पंकज प्रियम