Saturday, June 29, 2019

590.मुसाफ़िर.. अल्फ़ाज़ों का

समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो,
छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो।
नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत-
मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो।
©पंकज प्रियम

Friday, June 28, 2019

589. इंसान के लिए

ना हिन्दू के लिए ना मुसलमान के लिए,
बहाना है आँसू तो बहा  इंसान के लिए।
©पंकज प्रियम

588. निग़ाहों का समंदर

लहरों पे भी कश्ती चलाना जिसे खूब आता है
निगाहों के समंदर में वो अक्सर डूब जाता है।
©पंकज प्रियम

587.विश्वास

विश्वास
अगर विश्वास हो जाये तो तिनका भी सहारा है,
भरोसा हो अगर खुद पे, लहरों में किनारा है।
भरोसा टूट जो जाता, कभी विश्वास ना होता-
अगर विश्वास ना हो तो, खुदा भी ना सहारा है।
©पंकज प्रियम

586. सूखा आषाढ़

सूखा आषाढ़
दोहे

वर्षा ऋतु बरखा बिना, बिन बादल आकाश।
खेतों में सूखा पड़ा,     टूटी सब की आस।।

बदरी बरसे क्यों नहीं, समझा उसका हाल?
कुदरत को सब छेड़कर, किया उसे बेहाल।।

गलती मानव कर रहा, जंगल रोज उजाड़।
पेड़ों का संहार कर,   काटत रोज पहाड़।।

पानी का दोहन करत,  भेज दियो पाताल।
तरसे पानी बूँद को,   सूखी नदिया ताल।।

एसी तो ठंडक करे,     मगर बढ़ावे ताप।
दूषित है पानी-हवा, दोषी जिसके आप।।

@पंकज प्रियम

585.आरजू

ग़ज़ल
काफ़िया-आये 
रदीफ़-रखा

आरजू
सपना सजाये रखा, अरमां दबाये रखा,
कैसे कहूँ मैं तुझसे क्या-2 छुपाये रखा।

चाहा तुझे मैं हरदम, अपनी हदों से बढ़कर
चाहत की रौशनी में, खुद को जगाये रखा।

जलता रहा अकेला, तुझमें मैं दूर रहकर,
रुसवाइयों के डर से, तुझको बचाये रखा।

मुझसे लिपट तू जाती, ख्वाबों में मेरे आके,
सपना कहीं ना टूटे,    पलकें गिराये रखा।

अब तो करीब आओ, अपना मुझे बनाओ
"प्रियम" की आरजू हो, कब से बताये रखा।
©पंकज प्रियम
28 जून 2019

Sunday, June 23, 2019

584. चमकी मौत

चमकी रोग से देखो यहाँ पे मर रहे बच्चे,
हुई बदनाम लीची तो खाके मर रहे बच्चे।
हुई सब गोद है सुनी मगर सरकार अनसुनी-
बनी यमराज सिस्टम ये कैसे मर रहे बच्चे।।

शिखर को चोट जो आयी किया है ट्वीट मोदी जी,
शतक दोहरा गयी चमकी, किया ना ट्वीट मोदी जी।
फिकर कश्मीर नीतीश को, नहीं चिंता खुद घर की-
कब स्ट्राइक बिहार में,      करो न ट्वीट मोदी जी।।

सुनो ऐ अंजना अंजुम, चमकाओ ना चेहरा तुम,
उन्हें ईलाज करने दो,     लगाओ ना पेहरा तुम।
अगर सवाल करना है तो तुम सरकार से पूछो-
पड़े बीमार हैं बच्चे,    दो न ज़ख्म गहरा तुम।।

©पंकज प्रियम

Tuesday, June 11, 2019

582. खोलो त्रिनेत्र

खोलो त्रिनेत्र

हे शंकर! खोलो तो नेत्र
अब खोलो अपना त्रिनेत्र।

बहुत बढ़ गया पाप यहाँ
हरपल बढ़ा संताप यहाँ।

मासूमों का होत दुराचार,
बढ़ा है कितना व्यभिचार।

हुए कितने लाचार सब
कर दुष्टों का संहार अब।

खत्म करो दुष्कर्मी को,
भस्म करो विधर्मी को।

सजे फिर से कुरुक्षेत्र,
हे शंकर खोलो त्रिनेत्र।

©पंकज प्रियम

583.अस्मत

मुक्तक
विषय-अस्मत
तिथि-11 जून 2019
वार-मंगलवार

1222 1222 , 1222 1222
नहीं अर्जुन नहीं माधव, नहीं अब राम आएंगे,
तुम्हें खुद को बचाना है, न कोई काम आएंगे।
अगर #अस्मत बचानी है, जमाने के दरिंदों से-
बनो चण्डी बनो काली, कभी ना पास आएंगे।।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Wednesday, June 5, 2019

581. दिल हिंदुस्तान

हर दिल हिंदुस्तान

तू चाँद बनके तो निकल, हम तेरा दीद कर लेंगे,
तेरे इश्क़ की मिठास में सेवई की उम्मीद कर लेंगे।
खत्म कर शिकवे गिले औ नफ़रतों के सिलसिले-
तू एकबार गले तो मिल, फिर देखना ईद कर लेंगे।।

तू पढ़ ले  मेरी गीता, हम भी तेरा कुरान पढ़ लेंगे,
तू कर ले मेरी पूजा, हम भी तेरा अज़ान कर लेंगे।
मज़हबी दीवार ना हो कोई, न धर्म का हो बंधन-
तू नवरात्र मेरी कर लेना, हम भी रमजान कर लेंगे।

तू राम इबादत कर लो, ख़ुदा से मुहब्बत कर लेंगे,
प्यार जो दिल में भर लोगे, हम भी चाहत भर लेंगे।
छोड़ो न मुल्ला-मस्जिद, पण्डित और मन्दिर को-
दिल में हिंदुस्तान बसा लो, सारी नफ़रत हर लेंगे।।

©पंकज प्रियम