Tuesday, December 13, 2022

951. प्री वेडिंग

प्री वेडिंग के नाम पर, क्या-क्या रीत दिखाओगे? 
संस्कारों की बलि चढ़ाकर, ऐसे प्रीत सिखाओगे?
आधुनिकता कहलाती, क्या अपसंस्कारी हो जाना-
सप्तपदी संस्कार मिटाकर, अपनी जीत जताओगे? 
कवि पंकज प्रियम

Saturday, December 10, 2022

950. प्रेमगीत..चांदनी रात में

प्रेमगीत

चांदनी रात में,......... चांद के पास में,
चांद दीदार,....... मुझको कराना प्रिये। 
प्यार से प्यार को, .... प्यार के जाम से,
प्यार पल-पल प्रियम को पिलाना प्रिये। 

मैं बनूँ श्याम और  तुम बनो राधिका,
बांसुरी मैं बनूँ, ....तुम बनो गोपिका।
सुरमयी शाम से, .....रासलीला सजे,
प्रेम की थाप पर, ...ढोल बाजे बजे।
प्यार से प्यार को, .प्यार के नाम से,
रोज यमुना किनारे, ...बुलाना प्रिये।
चाँदनी रात में.....।

फूल गेंदा, चमेली, कमल बन खिलो,
रातरानी सुवासित, चमन मन मिलो।
रागिनी राग से,      उर उठी आग से,
मोरनी कोकिला,      निर्झरी बाग में।
तान मुरली मधुर, मन-मिलन आस में,
तुम स्वयं को प्रियम से मिलाना प्रिये।
चाँदनी रात में....

तुम महकता चमन,  मैं बहकता पवन,
रत्नगर्भा प्रिया,.... मैं खुला इक गगन।
तुम सुवासित सुमन, मैं मचलता भ्रमर,
मद भरूँ मैं तनिक, दो इजाज़त अगर।
होश मदहोश कर के......नयन वार से,
तीर को पार दिल से......चलाना प्रिये।

चांदनी रात में, .........चांद के पास में,
चांद दीदार,...... मुझको कराना प्रिये। 
प्यार से प्यार को, ....प्यार के जाम से,
प्यार पल-पल प्रियम को पिलाना प्रिये। 
©पंकज प्रियम

949.ब्राह्मण

सूर्य अंश से उपजे हमसब, सूर्य समान प्रतापी हैं।
श्रेष्ठ धरा में जन्मे हम सब, ब्राह्मण सर्वव्यापी हैं।
हमें गर्व है संस्कारों पर, भारत-भू बलिदानों पर-
धर्म ध्वजा को धारण कर के, हमने दुनिया नापी है।।
पंकज प्रियम

Tuesday, December 6, 2022

948.शाकद्वीपी


*शाकद्वीपी*


सूर्य अंश से उपजे हम सब, सूर्य समान प्रतापी हैं।

श्रेष्ठ कुल के जन्मे हम सब, ब्राह्मण शाकद्वीपी हैं।


वेद-पुराण में चर्चा अपनी, संगीत-चिकित्सक, ज्ञानी हैं।

ब्राह्मण सर्वोत्तम कहलाते,      धीर-वीर, अभिमानी हैं।

सूर्य अस्त के बाद श्राद्धकर्म, सूर्य वरण अधिकारी हैं,

मूल मगध के वासी मग हम, भास्कर-भुवन पुजारी हैं। 

साहित्य, कला, संगीत, चिकित्सा में सर्वव्यापी हैं।

श्रेष्ठ कुल के जन्मे हम सब, ब्राह्मण शाकद्वीपी हैं।


पुत्र साम्ब को कुष्ठ हुआ तब, चिंतित राधेश्याम हुए।

परिवार अठारह शाकद्वीप से  जम्बूद्वीप में बुलवाए।

आध्यात्म चिकित्सा के बल पे, रोग साम्ब का दूर किया।

मगध नरेश के आग्रह पर, कान्हा ने बहत्तर पुर दिया।

चाणक्य, वराहमिहिर, आर्यभट्ट, बाणभट्ट विद्वान बड़े,

सत्य-सनातन, धर्म-स्थापन, की ख़ातिर मिलते खड़ें।


धर्म ध्वजा को धारण करके, हमने दुनिया नापी है।

श्रेष्ठ कुल में जन्मे हम सब, ब्राह्मण शाकद्वीपी हैं।

*©कवि पंकज प्रियम*

Monday, October 3, 2022

947.मन के राम

जगाना तुम जिसे चाहो, वही बाहर निकलता है।
हृदय में राम बसते तो, वहीं रावण भी पलता है।
अगर श्रीराम सा जो तुम, हृदय में धैर्य धारण कर-
छुपा अंदर तेरा रावण, स्वयं बाहर में जलता है।।
कवि पंकज प्रियम 

बाहर के रावण से पहले अंदर के रावण का दहन करें।

Tuesday, June 21, 2022

946.मोह्हबत

अगर हमसे मुहब्बत है तो इतना काम कर लो यार।
मेरी बगिया में खिल के तुम मेरा जीवन करो गुलजार।
मुझे दिल में सदा रखना, नहीं चाहत मेरी कुछ और-
पलक जो बंद हो मेरी,
तेरा ख्वाबों में हो दीदार।।



Wednesday, June 15, 2022

945.पत्थर की खोज

पत्थर की खोज

इनदिनों हर तरफ पत्थरों की ही चर्चा है। यूँ तो हमारे यहाँ फूलों की वर्षा का रिवाज़ है लेकिन जब ओले पड़ते हैं तो उसे आम बोलचाल की भाषा में पत्थरों की बारिश भी कहते हैं। हालाँकि यहाँ जिस पत्थर की बात चली है उससे हर कोई वाक़िफ़ है।आजकल कश्मीर से लेकर केरल तक पत्थरबाज शांतिपूर्ण ढंग से सड़कों पर पत्थरों की बारिश कर रहे हैं। पहले तो सिर्फ कश्मीर में ही भटके हुए युवा पत्थरों की बारिश करते थे लेकिन झटका तब लगा जब एक पत्थरबाज को ही सेना ने जीप के आगे बांधकर पत्थरों की बारिश से स्वागत कराया। इस तकनीक से सेना के जवान भटके हुए युवाओं की भीड़ से सकुशल बाहर निकल सके। एक बयान को लेकर गत 3 जून को कानपुर में पत्थरबाजों ने अपनी कला का जोरदार प्रदर्शन किया फिर 10 जून को तो एकसाथ 16 राज्यों में पत्थरों की बारिश हुई। कई पुलिसकर्मियों के सर फूटे, जानमाल का भारी नुकसान हुआ। हालाँकि इस शुक्रवार को पत्थर के साथ-साथ पेट्रोल बम और गोलियां भी चल गई। राँची में तो दो की मौत भी हो गयी। इसपर खूब बवाल भी मचा और किसी ने तो यहाँ तक कह दिया कि -"पत्थरों से जान जाती है क्या?" यही तो एक नया टेक्नीक डेवलप हुआ है कि पत्थर कोई हथियार तो है नहीं। संविधान और कानून की नजर में आप निहत्थे हैं और पुलिस इसके लिए गोली तो चलाएगी नहीं। किसी को पत्थर लग भी गया तो उसकी फोरेंसिक जाँच तो हो नहीं सकती! बुलेट का मिलान तो पिस्तौल से हो जाती है लेकिन पत्थर को फूटे सर से मिलान करना उतना आसान नहीं होगा। पत्थर मुफ्त और सुलभ हथियार के रूप में हर गली मोहल्ले में उपलब्ध है और चलाने के लिए भी कोई प्रशिक्षण की जरूरत नहीं। एक बच्चा भी पत्थर उठाकर किसी का सर फोड़ सकता है। बाद में उसे नाबालिक करार देकर कानूनी तौर पर बचा जा सकता है। इसी टेक्निकल खोज ने आज भारत को परेशान कर रखा है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी बाबा ने तो पत्थर के जवाब में बुलडोजर उतार दिया है। शुक्रवार को जो चलाएगा पत्थर, शनिवार को उसके घर चलेगा बुल्डोजर। लंबी और कि लचर कानूनी प्रकिया से आजिज आ चुकी आम जनता को यह बुलडोजर व्यवस्था बहुत भा रही है। कानूनी प्रक्रिया के तहत अगर कार्रवाई शुरू भी होती है तो सजा होते-होते दशकों बीत जाता है। सजा भी मामूली ऐसी की अपराधी को कोई फर्क पड़ता नहीं। 
आप भले पत्थर मार कर पुलिस का सर फोड़ दें, उनकी जान ले लें लेकिन पुलिस ने आत्मरक्षा में भी अगर हल्का बल प्रयोग कर लिया तो फिर पूरी दुनिया में विक्टिव कार्ड खेल सकते हैं कि पुलिस ने  निहत्थे मुल्जिमों पर गोली चला दी। 
यूँ तो पत्थर का प्रयोग पाषाण काल से ही प्रारम्भ हो गया था लेकिन तब मनुष्य अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ही इसका उपयोग करता था। पत्थरों के प्रयोग से आग की खोज हुई और मानव ने भोजन पका कर खाना सीखा। हालाँकि हमारे प्राचीन वेद और ग्रन्थों में बहुत पहले से मनुष्य काफी विकसित हो चुका था। चूंकि भारत में पत्थरों की कोई कमी नहीं है। विशाल पर्वत हो या पठारी चट्टान, नदी नाले या फिर मैदान, पत्थरों से पटा हुआ है अपना देश महान। यहाँ तो कंकर-कंकर में शंकर विद्यमान हैं। हम हैं कि हर पत्थर को बना देते हैं भगवान। वैसे भी हमारे यहाँ प्रचलित कहावत है -"मानो तो देव नहीं तो पत्थर". 
इसलिए सनातन धर्म मे पत्थर सदैव पूजनीय है। हमारे यहाँ तो पत्थरों को रत्न का दर्जा प्राप्त है जिसे हर कोई आभूषणों में इस्तेमाल करता है।उसका दुरूपयोग तो हम कर ही नहीं सकते। इतिहास को जानने समझने के लिए पत्थरो का बड़ा महत्व है तभी तो पहले के लोग शिलालेख की विधि अपनाते थे जो आज भी प्राचीन इतिहास का जीता जागता साक्षी है। पत्थरों से मूर्तियां और मन्दिर बनाये जाते थे तभी तो चाहकर भी विदेशी आक्रांता उनका अस्तित्व मिटा नहीं सके। हमारे आराध्य प्रभु राम ने तो सागर पर पत्थर का पुल बांध दिया था जो आज भी रामसेतु,  एडमब्रिज के नाम से जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने तो गोवर्द्धन पर्वत उठाकर न सिर्फ पूरे गोकुल की रक्षा की वल्कि देवराज इंद्र के घमंड को भी चकनाचूर कर दिया। यह सही है कि बगैर पत्थर के कंक्रीट के घर की कल्पना भी नहीं कि जा सकती है। घर हो या सड़क, पुल हो या बांध, बिना पत्थर के कुछ भी सम्भव नहीं है। इसलिए पत्थरों का बड़ा महत्व है लेकिन इसका उपयोग निर्माण में हो किसी के विनाश में नहीं।
  एक मुहावरा है -"ईंट का जवाब पत्थर" लेकिन इसका कतई मतलब नहीं है कि हम पत्थरबाजी करेंगे। दरअसल इसका सही अर्थ है मुँहतोड़ जवाब देना, पत्थर मारना नहीं। पत्थर को जड़ का स्वरूप भी माना गया है लेकिन  'करत-करत अभ्यास के जड़मति हॉट सुजान' भी प्रचलित है। पानी की लगातार गिरती धार और कुआं में रस्सी के घिसने से पत्थर कटने का भी उदाहरण है। यहाँ तो पत्थर से आसमान में भी सुराख कर देने का जज़्बा कायम है। दुष्यंत कुमार यूँ नहीं लिखते- 
"कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता?
जरा एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।

जो पत्थरबाजों के रहनुमा बनकर बोलते हैं कि पत्थर से किसी की जान जाती है क्या? तो उन्हें दुष्यंत कुमार के अंदाज़ में जवाब देना पड़ रहा कि

"कौन कहता है कि पत्थर से जान नहीं जाती?
जरा एक पत्थर तो तबियत से खाकर देखो!"

पत्थरों की मार उनसे पूछिये जिन बेगुनाहों/पुलिस जवानों के सर फटे हैं। राँची में ही पुलिस अधिकारी यूसी झा की पत्थर लगने से मौत हो गयी थी। ऐसे कितने ही जवान, इंसान पत्थरबाजों के पत्थर से घायल होते हैं, उनकी जान तक चली जाती है।  बचपन में मेरा भी सर फूटा है एक पत्थर से, हालाँकि किसी पत्थरबाजी का परिणाम नहीं बल्कि आम पेड़ के नीचे खड़े होने का दण्ड था। मेरे स्कूल का ही एक सहपाठी आम तोड़ रहा था जिसके हाथ से निकला पत्थर आम तो नहीं तोड़ पाया लेकिन मेरे सर को फोड़ डाला। एकबारगी तो लगा जैसे सर पर कोई चट्टान गिर पड़ा और मेरी आँखों के आगे अंधकार छा गया। वह लड़का तो भाग खड़ा हुआ। मेरे साथ मेरी दीदी थी वह मुझे पास के हैंडपंप तक ले गयी और जब सर पर पानी गिराया तो मानो खून की नदी बह निकली। हैंडपंप का पूरा प्लेटफार्म खून से लाल हो गया था। किसी तरह पास के हॉस्पिटल जाकर इलाज़ करवाया तो जान बची। वह एक अनजाने में लगा पत्थर था लेकिन जो पत्थरबाजी होती है उसमें तो इरादतन पूरे बल से पत्थर मारा जाता है अगर वह किसी के सर में लगे तो बचना मुश्किल है। आखिर किसने पत्थर चलाने की शुरुआत की है जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत को चोटिल करता जा रहा है। क्यूँ कुछ लोग अपने छतों पर पत्थर जमा करके रखते हैं?और समय आने पर बेगुनाहों का सर फोड़ते हैं! जरूरत है इसपर ठोस कार्रवाई की। अपराधियों को कड़े दंड की ताकि कोई अन्य सपने में भी पत्थर चलाने की सोचे नहीं।
 

कवि पंकज प्रियम

Tuesday, June 14, 2022

944.डर

डर
हाँ मैं भी अब डरने लगा हूँ,
खौफ में रोज मरने लगा हूँ।
शुक्रवार को सड़क पर निकलती भीड़ से
भीड़ के हाथों फेंके जा रहे पत्थरों से
गाड़ियों पर चलते डंडों से
हर तरफ दहकते शोलों से
नफरती जहरीले बोलों से
पुलिस के सर से बहते लहू से
सुनसान रात के घुप्प अंधेरे में 
घर, मन्दिर और दुकानों पर
फेंके जा रहे पेट्रोल बमो से।
क्योंकि हम हैं बहुसंख्यक!
इसलिए करता कोई प्यार नहीं,
सच बोलने का भी अधिकार नहीं।
सब चुपचाप देखते रहते है यहाँ
होता रोज अपने भगवान का अपमान!
सच में सह नहीं सकते,
पर कह भी नहीं सकते। 
अपने ही देश में यूँ डर रहे हैं लोग
रोज खुद से खुद मर रहे हैं लोग
कब कहाँ हो जाये दंगा?
गत शुक्रवार जब हर तरफ
हो रही थी पत्थरबाजी
तब ऑफिस से घर जाते वक्त
एक अजीब डर था मन में 
पता नहीं किस गली से 
कोई पत्थर कहीं से आकर 
कहीं गिर जाए न गाड़ी पर। 
मेरी तरह ही क्या?
अब हर आदमी डरने लगा है?
पत्थरो के खौफ से मरने लगा है। 
पत्थरो से तो होता रहा है निर्माण!
हर पत्थर में हमने ढूंढा है भगवान!
फिर ये पत्थर कैसे आख़िर?
बन गए इस कदर हिंसा के सामान? 
फिर से आ रहे शुक्रवार को
शुक्र मनाता हूँ कि खत्म हो यह डर
हर तरफ़ हो शांति और न चले पत्थर।
कवि पंकज प्रियम

Monday, June 13, 2022

943.सनातन धर्म

सनातन धर्म है सच्चा,       बहाता प्रेम की गंगा।
नहीं पत्थर कभी चलता,     कराता है नहीं दंगा।
नहीं नफ़रत किसी दिल में, यही बस भावना होती-
सदा कल्याण हो सबका, न हो भूखा कोई नंगा।।
कवि पंकज प्रियम

Saturday, May 21, 2022

942. प्रतीक्षा

राम ने वर्षो कर ली प्रतीक्षा, कृष्ण पे देरी मत करना।
तारीखों के घनचक्कर की, अब कोई फेरी मत करना।
जनता की चप्पल घिस जाती, न्याय की चौखट में आते-
महादेव हैं ताण्डव करते, घर उनके अँधेरी मत करना।।
कवि पंकज प्रियम

Friday, May 20, 2022

941.गंगा-यमुना

ये गंगा भी हमारी है, ये यमुना भी हमारी है।
वो भोलेनाथ की प्यारी, वो कान्हा की दुलारी है।
भला किसने इन्हें ऐसे, यहाँ मज़हब में हैं बांटा-
मिले संगम में जब दोनों, बड़ी लगती ये प्यारी है।
कवि पंकज प्रियम 

गंगा-जमुनी नहीं गंगा-यमुना

गंगा-जमुनी नहीं गंगा-यमुना

Wednesday, May 18, 2022

940. मुद्दे और सियासत

मुद्दे और सियासत

आज मन्दिर-मस्जिद की चर्चा की बीच कुछ लोग कह रहे हैं की महंगाई, बेरोजगारी की जगह हम इन मुद्दों पर क्यूँ चर्चा कर रहे हैं? सवाल यह कि इन मुद्दों को जिंदा किसने रखा है? देश के लिए हर मुद्दा महत्वपूर्ण है लेकिन समय खुद सबके लिए वक्त का निर्धारण कर लेता है।
जब इतिहास खुद चीख-चीख कर गवाही दे रहा है कि औरंगजेब सहित सभी मुस्लिम आक्रांताओं ने मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिद-मीनार बनाई है तो फिर देश के अमन पसन्द मुसलमान इसको मानते क्यूँ नहीं? गंगा जमुनी तहज़ीब के तहत भाईचारा दिखाते हुए खुद मन्दिरों को एक झटके में अपने कब्जे से मुक्त कर देना चाहिए। सारा विवाद ही खत्म हो जाएगा और जो इसपर सियासत करते हैं उनका मुद्दा ही नहीं रहेगा। फिर चैन से महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर दिनरात घेरते रहिए। महँगाई, बेरोजगारी, गरीबी, बिजली, सड़क जैसे मुद्दे आज़ादी के बाद से ही बने हुए हैं। ऐसा नहीं है कि सरकारों ने इसपर कोई कार्य नहीं किया लेकिन  जब हम खुद ही ईमानदार नहीं हैं तो सिर्फ को कोसने से कुछ होना नहीं है।  आज़ादी के 75 साल बाद भी अगर ये मुद्दे खत्म नहीं हुए हैं तो इसका मतलब की पूर्ववर्ती सभी सरकारें फेल रही है क्योंकि यह सवाल हमेशा से मौजूं हैं। महँगाई और बेरोजगारी पर हर सरकार घिरती रही है। यहाँ आलू-प्याज के बढ़ते मूल्य पर सरकारें गिरा दी गयी है। 75 साल में ये मुद्दे जब खत्म नहीं हुए तो यकीन मानिए अगले 750 वर्षो में भी इसका हल नहीं निकलने वाला है। जो दल आज सवाल उठा रहे हैं उन्होंने 70 सालों तक सत्ता की मलाई खायी है, आज जो सत्ता में है वे भी इन्ही मुद्दों पर सरकार को घेरती रही है लेकिन महंगाई रोक पाने में यह भी नाकाम साबित हो रही है। दरअसल कोई भी दल महँगाई कम करने में दिलचस्पी नहीं लेती। आज अगर सिर्फ डीजल और पेट्रोल से केंद्र और राज्य सरकारें टैक्स हटा लें तो सारी महंगाई एक झटके में कम हो जाएगी लेकिन इसके लिए कोई भी पार्टी तैयार नहीं। हकीकत यही है कि सरकार किसी भी बने इन मुद्दों को कोई खत्म कर ही नहीं सकता। जिस रफ्तार से आबादी बढ़ रही है उसी रफ्तार से प्राकृतिक संसाधन भी खत्म होते  जा रहे हैं। निश्चित ही ये चिंता का विषय है। हमें वैकल्पिक स्रोतों पर ध्यान देना होगा। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अलावे मुफ्त की अन्य सभी योजनाओं पर रोक लगाने की जरुरत है। सिर्फ 10 वर्षो के लिए लागू आरक्षण को आज़ादी के 75 साल बाद भी खत्म नहीं किया जा सका है तो समझिए कि किसी भी सरकार ने आरक्षण वर्ग के विकास हेतु कोई काम नहीं किया है। जब संविधान में आरक्षण 10 वर्षो बाद खत्म करने को स्पष्ट किया गया तो फिर पहले 10 वर्षो में ही उनका सर्वांगीण विकास कर आरक्षण को खत्म क्यूँ नही  कर दिया गया? सारी पार्टियां सिर्फ तुष्टिकरण और वोटबैंक के लिए सामान्य प्रतिभाओं का हनन करती रही और आरक्षण को अबतक जारी रखा है। जब यह खत्म नहीं हो सकता तो फिर महंगाई और बेरोजगारी कैसे खत्म हो सकती है?आज जो लोग चिल्ला रहे हैं कि इन मुद्दों को छोड़कर मन्दिर-मस्जिद पर चर्चा हो रही है तो वे ही बतायें की 75 सालों से चर्चा होने के बाद भी कोई सरकार क्यूँ नहीं इसे खत्म कर सकी है। आज भी मंहगाई, बेरोजगारी , बीमारी क्यूँ सुरसा की तरह मुँह बाए खड़ी है? जो केंद्र सरकार पर सवाल उठा रहे हैं उन दलों की जहाँ उनकी सरकारें हैं वहाँ महँगाई, बेरोजगारी के लिए क्या उपाय किये हैं? उन राज्यो में डीजल-पेट्रोल तो और भी महंगा है! इसी को कहते हैं पर उपदेश कुशल बहुतेरे। आप पहले अपने शाषित राज्यो में कीमतें घटाकर मंहगाई पर अंकुश लगाइए फिर सवाल खड़ा कीजिये तो यकीनन देश की सारी जनता आपके साथ खड़ी होगी। यह हो ही नहीं सकता क्योंकि सत्ता की मलाई हर किसी को चाटनी है। 
अब बात मंदिर- मस्जिद जैसे मुद्दों की, सबको इतिहास पता है कि विदेशी आक्रांताओं ने भारत पर आक्रमण कर सबसे पहले यहाँ के मंदिरों को ध्वस्त कर उसपर मस्जिद-मीनारें बनवाई है। क्योंकि पता था कि भारत पर राज करना है तो सबसे पहले यहाँ की सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों पर हमला करना होगा। आख़िर जितने भी चक्रवर्ती सम्राट हुए उन्होंने मन्दिरों का ही निर्माण क्यूँ करवाया? क्योंकि यहीं से संस्कारो की गंगा निकलती है जो पूरे भारतवर्ष को संस्कृति की फसल लहलहाती है। तोड़ने के बाद औरंगजेब समेत अभी क्रूर शासकों ने खुद अपने कृत्यों का बखान इतिहास और शिलालेखों में कर रखा है। आज भी वो सारे साक्ष्य चीख़ चीख पर गवाही दे रहे हैं। अबतक किसी भी सरकार ने या फिर गंगा जमुनी तहजीब की बात करनेवाले अमनपसंद लोगों ने इन समस्या के हल का रास्ता ढूंढा? सत्य जानते हुए भी नकारते रहे और देश की बहुसंख्यक आबादी की आस्था पर चोट करते रहे। कोई एक व्यक्ति या समूह सामने आया हो कि "विदेशी आक्रमणकारियों ने जो कुकर्म किया है उसे अब सुधारने का वक्त आ गया है आप अपनी आस्था और धरोहर को लीजिये आपकी अमानत है!" नहीं यह तो सम्भव ही नहीं है। यहाँ तो अपने ईष्ट की पूजा के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। राम जन्मभूमि के लिए 500 साल तक कोर्ट की लड़ाई लड़नी पड़ी। धारा 370 हो या फिर अंग्रेजी कानून, राम कृष्ण जन्मभूमि हो या फिर काशी विश्वनाथ का ज्ञानवापी मन्दिर ये ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें जानबूझकर लटकाया, भटकाया और अटकाया गया। सरकारें चाहती तो कब की ये समस्या सुलझ जाती और हम आगे की राह देखते। किसी भी देश के सर्वांगीण विकास में उसकी अपनी सभ्यता, संस्कृति और पहचान जरूरी है। जिसे विदेशी आक्रांताओं के साथ-साथ घर मे छुपे जयचंदो ने कुचलने का काम किया है। अब जबकि बात उठी है तो देश के सभी अमनपसंद लोगों से आग्रह है कि वे स्वयं इन मसलों को खत्म कर तरक्की का रास्ता अख्तियार करें। ओवैसी जैसे औरंगजेब भक्तों की बात पर न आएं और गंगा जमुनी तहज़ीब की मिसाल पेश करें। भारत ही ऐसा मुल्क है जो सबको शरण देता है। वरना पड़ोसी देश पाकिस्तान, बंग्लादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका के हाल देख ही रहे हैं। जो मंदिरों के निर्माण पर सवाल खड़े कर कहते हैं कि मंदिर निर्माण से क्या होगा? उसकी अस्पताल और स्कूल खोले जायें। स्कूल और अस्पताल खोलने से किसने रोका है? आप भी मस्जिद-मज़ार और चर्चों की बजाय स्कूल-अस्पताल ही खोलें किसने मना किया है? भारत मे जितनी जरूरत स्कूल और अस्पताल की है उससे कहीं अधिक आवश्यकता मन्दिर की भी है जो न केवल हमारी सभ्यता-संस्कृति को जीवंत रखते हैं बल्कि लाखों लोगों के रोजगार का माध्यम भी बनते हैं। सिर्फ सिर्फ कृष्ण का ही उदाहरण ले लें तो उनके नाम पर मथुरा, वृंदावन, गोकुल, बरसाना, नंदगांव, द्वारिका समेत कितने शहरों को रोजीरोटी चल रही है। उसी तरह द्वादश ज्योतिर्लिंग के शहर हों या शक्तिपीठ, राम से जुड़े शहर हों या  फिर उनके प्रिय भक्त हनुमान हों सिर्फ उनके नाम पर कई शहर बस गए हैं। वहाँ की पूरी आबादी सिर्फ मन्दिरो की बदौलत टिकी हुई है। हर जाति, वर्ग और धर्म के लोगों को रोजगार मिला हुआ है। आप बनारस, अयोध्या, मथुरा, वृंदावन, विंध्याचल, देवघर, कन्नौज, द्वारका, चारधाम समेत सभी धार्मिक शहरों को देखें तो उनकी अर्थव्यवस्था और वहाँ की रोजीरोटी का मूल आधार मन्दिर ही हैं। जहाँ एक साधारण फूल-बेलपत्र से लेकर पांच सितारा होटल तक के व्यवसाय फलफूल रहे हैं। मंदिरों और हिन्दू पर्व त्यौहारो से सिर्फ हिन्दू परिवारों का ही रोजगार नहीं चलता वल्कि लाखो-करोड़ों मुस्लिम, सिख्ख, पारसियों की रोजीरोटी चलती है।   देवघर में सिर्फ सावन के एक महीने में  इस क्षेत्र के लोग सालोभर का रोजगार कर लेते हैं। इसी तरह प्रत्येक धार्मिक स्थलों की अर्थव्यवस्था का मूल मंदिर ही हैं। अगर सभी देवी-देवताओं के शहरों की गणना करें तो पूरे भारतवर्ष की अर्थव्यवस्था का मूल आधार आप मंदिरों में पाएंगे। यही वजह है कि मुगलिया आक्रांताओं ने सबसे यहाँ के मंदिरों पर ही आक्रमण कर उसपर कब्जा जमाया। मुगलों के हाथ पूरा भारतवर्ष था वे चाहते तो खाली स्थानों पर मस्जिदों का निर्माण कर सकते थे लेकिन आखिर उन्हें अयोध्या, काशी और मथुरा के मंदिर ही क्यूँ मिले? क्योंकि ये तीनो शहर हमारी आस्था और भारतीय संस्कृति के आधार हैं। राम, कृष्ण और शंकर हमारी आस्था के केन्द्रबिन्दु हैं। मुगलों का पता था कि भारतीयों पर राज करना है तो पहले उनकी आस्था पर चोट करो। नालंदा विश्वविद्यालय में हमारी सभ्यता-संस्कृति से जुड़े हजारों वेद-पुराणों को सिर्फ इसलिए जला दिया गया कि आनेवाली पीढ़ी भारतीय सभ्यता को समझ ही न पाए और वामपंथी लेखकों के मुगलिया गुणगान वाले इतिहास को ही सच समझ बैठे। आज नवनिर्माण का स्वर्णिम काल पुनः लौटा है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन रहा है तो पूरा अवध संवर रहा है। सिर्फ अयोध्या ही नहीं आसपास के गाँव-शहर की पूरी अर्थव्यवस्था बदल रही है। लाखों के रोजगार सृजन हो रहे हैं। सिर्फ नौकरी ही रोजगार नहीं कहलाता। इसी तरह मथुरा, काशी और अन्य शहरों को मुगलिया कब्जे से बाहर निकालकर पुनः संवारने-सजाने की आवश्यकता है। हमारी सभ्यता-संस्कृति और धर्म की रक्षा होगी तो देश का सर्वांगीण विकास होगा। अस्पताल जरूरी है लेकिन हम बजाय रोग बढ़ाने के हमें योग साधना पर बल देना चाहिए ताकि रोग कम हो और किसी को अस्पताल में भर्ती होने की नौबत ही न आये। आइये हमसब मिलकर अपनी पुरातन संस्कृति और भारतीय सभ्यता का पुनर्जागरण करें। 
जय हिंद !
वंदेमातरम
*पंकज प्रियम*

Monday, May 16, 2022

939. भारत की पुकार

भारत की पुकार

जहाँ-जहाँ पे होगी खुदाई, वहीं पे मन्दिर निकलेगा।
मुगलों ने कुकर्म किया जो, राज वो सारा खोलेगा।।

गौरी, गजनी और बाबर ने जमकर भारत लूटा था,
आतंकी औरंगजेब के छल से सारा मन्दिर टूटा था।
जाग उठे हैं महाकाल अब, डम-डम डमरू बोलेगा।
मुगलों ने कुकर्म किया जो, राज वो सारा खोलेगा।।

युगों-युगों से करता प्रतीक्षा, नंदी बैठा अविचल है।
बाबा भोलेनाथ का दर्शन, मन में इच्छा हरपल है।
ज्ञान का वापी निर्मल होगा, खुशी से नंदी डोलेगा,
मुगलों ने कुकर्म किया जो, राज वो सारा खोलेगा।।

स्वर्णिम भारत की गर्दन पे, चली मुगलिया तलवारें,
तुष्टीकरण की राजनीति में, सिसक रही थी दीवारें।
रक्त बहाया था पुरखो ने, खून नया अब खौलेगा, 
मुगलों ने कुकर्म किया जो, राज वो सारा खोलेगा।।

जाग-जाग हे भारतवंशी, जाग उठे अब विश्वनाथ,
छोड़ के मुरली कान्हा तुम भी, उठा सुदर्शन अपने हाथ।
यमुना दूषित करने वाले, कालिया का फन कुचलेगा।।
मुगलों ने कुकर्म किया जो, राज वो सारा खोलेगा।।

गंगा जमुनी करनेवालों, अब वक्त तुम्हारा आया है,
करो सत्य स्वीकार यही कि मन्दिर किसने ढाया है।
भाईचारा भाव दिखा, कब दाग वो सारे धोएगा?
मुगलों ने कुकर्म किया जो, राज वो सारा खोलेगा।।

जहाँ-जहाँ पे होगी खुदाई, वहीं पे मन्दिर निकलेगा।
मुगलों ने कुकर्म किया जो, राज वो सारा खोलेगा।।

कवि पंकज प्रियम

Friday, April 15, 2022

938.अज़ान

पूजा-इबादत vs लाउडस्पीकर

इन दिनों अज़ान vs हनुमान चालीसा का विवाद बढ़ता जा रहा है। ऐसा नहीं है कि यह मुद्दा अचानक से उभरा है दरअसल लोग परेशान हमेशा से थे लेकिन तब कोई खुलकर बोलने की या विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। हमारा देश एक तरफ तो धर्म निरपेक्षता का दावा करता है वही  एक धर्म विशेष के लोग दिन में पाँच बार लाउडस्पीकर लगाकर जोर-जोर से चिल्ला कर कहते हैं कि उनका ईश्वर महान है और उसके सिवाय किसी अन्य भगवान का कोई अस्तित्व नहीं है। यह तो सरासर दूसरे धर्म की आस्था का अपमान करना है। अन्य किसी भी धर्म में इस तरह की बात नहीं कि जाती है। सनातन धर्म मे तो सदैव सर्व धर्म समभाव की बात होती है। संविधान कहता है कि सबको सबके धर्म और आस्था का सम्मान करना चाहिए। देश के विभिन्न हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में ये मसला उठता रहा है. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट 2 महत्वपूर्ण आदेश हैं. 18 जुलाई 2005 और 28 अक्टूबर 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि शांति से, बिना ध्वनि प्रदूषण का जीवन आर्टिकल 21 के तहत मिले 'जीने के अधिकार' का हिस्सा है. अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर बाकी लोगों को अपनी बात सुनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
 वैसे भी पूजा इबादत मन से की जाती है उसे लाउडस्पीकर पर चिल्ला कर नहीं किया जाता है। इसीलिए पहले मन्दिर आबादी की कोलाहल से दूर बिल्कुल एकांत में बनाया जाता था ताकि शांत वातावरण में एकाग्रचित्त होकर साधना की जा सके। धीरे-धीरे लोग मंदिरों के आसपास बसने लगे। मस्जिद तो बिल्कुल शहर के बीचोबीच बनने लगी मंदिरों में सुबह शाम आरती होती है वहीं मस्जिदों में 5 बार लाउडस्पीकर पर अज़ान की जाती है। जहाँ एक ही धर्म के लोग हो तो कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन आज हर जगह हर धर्म मजहब के लोग रहते है ऐसे में आसपास के लोगों को परेशानी होती ही है। हमें अपनी आस्था के साथ साथ दूसरे धर्मों के प्रति भी सद्भावना रखनी चाहिये अपमान नहीं। इस सबन्ध में मैं अपनी खुद की पीड़ा साझा करना चाहूंगा। 2014 में जब मैं पाकुड़ में था तब मेरे निवास स्थान से कुछ ही दूरी पर मस्जिद थी। अज़ान तो जैसे तैसे झेल लेता था लेकिन रमज़ान का महीना कष्टप्रद था। सेहरी के लिए रात ढाई बजे से ही लाउडस्पीकर पर घोषणा शुरू हो जाती थी कि उठकर सभी सेहरी कर लें और यह करीब1 घण्टे तक लगातार चलता था। पूरे रमजान में मैं सो नहीं पाता था। अरे! सबको सेहरी और इफ़्तार का वक्त मालूम होता है तो फिर हल्ला मचाने की क्या जरूरत है। हमारे यहाँ जब तीज जितिया का पर्व होता है तो औरतें खुद उठकर पानी पी लेती हैं इसके लिए पूरे मोहल्ले को तो नहीं जगाते हैं। वैसे भी वाहन, कल-कारखानों से वैसे भी ध्वनि प्रदूषण से पूरा देश त्रस्त होता जा रहा है और ऊपर से लाउडस्पीकर और डीजे ने तो कहर ही बरपाना शुरू कर दिया है। ऐसे में अगर लाउडस्पीकर हटाने की मांग उठी है तो सबको पहल करते हुए मस्जिदों से उतार देनी चाहिए। झगड़ा ही ख़त्म, लेकिन जब एक धर्म के लोग अपनी जिद पर अड़े रहेंगे तो दूसरे पक्ष के लोग भी लाउडस्पीकर लगाकर हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे यह तो स्वाभाविक है। अब नमाज़ के लिए भी लोग सड़कों को बाधित कर बीच सड़क पर नमाज़ पढ़ने लगे हैं तो परेशानी सबको होती है। पूजा इबादत निहायत निजी मामला है उसे या तो अपने घर में या फिर निर्धारित स्थल पर ही करनी चाहिए। आपकी इबादत से अगर किसी अन्य को कष्ट पहुँचे तो फिर वह कभी फलदायी नहीं हो सकता। उल्टे उसका दुष्प्रभाव पड़ता है। अतः सभी को समझदारी दिखाते हुए लाउडस्पीकर हटा देनी चाहिए। 
कवि पंकज प्रियम

Wednesday, April 13, 2022

900. गुजरा साल

देखो कैसे साल यह , बीत गया खौफ में ही,

घर में ही कैद रहे, कोरोना के काल में . 




844. पर्यावरण

प्रकृति और मानव

प्रकृति क्रन्दन आज सुनो, सुनो करुण चीत्कार।
मूढ़मति अरे मानवों,       कर गलती स्वीकार।।

मानव कर्मों की सज़ा , सबको मिलती आज।
दूषित है पर्यावरण,           मानव ऐसे काज।।

रोक कदम अब आज तुम, बहुत किया संहार।
पलपल प्रकृति देख अभी,   करती है हुंकार।।

कदम मिलाकर प्रकृति के,  चलो हमेशा संग।
नहीं करो प्रदूषण तुम,    भर लो जीवन रंग।।

देख जरा कैसे धरा,       पल-पल रही कराह।
जख़्म दिया तूने उसे,    ख़त्म हुई सब  चाह।।

जीवन तुझको दे धरा,      भुगत रही अंजाम।
मत कर उसका चीर हरण, होगा फिर संग्राम।।

दोहन करते जो रहे,        जल-जंगल आधार।
ख़त्म समझ संसार फिर, सुन कुदरत ललकार।।

जंगल को उजाड़ अगर, बसे शहर कंक्रीट।
छत तो होता पर मगर, हिले नींव की ईंट।।

©पंकज प्रियम
विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। आइये सब मिलकर इसे बचाएं।

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

दिल की ये आग को कैसे मैं बुझा पाऊंगा
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।

मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।

ऐ प्रियम कौन मिटाएगा दुनिया से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

Wednesday, January 19, 2022

937.कैसे मिली आज़ादी!


आज़ादी 

कहाँ मिली आज़ादी हमको, बिना खड्ग बिना ढाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा,  हो गये कितने लाल।

बांध कफ़न को सर पे सारे, हाथ को कर हथियार।
कूद पड़े आज़ादी रण में, हो मरने को तैयार।।
सन सत्तावन की ज्वाला धधकी, घर-घर जली मशाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।

मंगल पांडे और आज़ाद,   हो गये सब कुर्बान। 
भारत माता रोयी कितनी, देख के जाती जान।
वीर जवानों की कुर्बानी,   रक्त से धरती लाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।

सुखदेव भगत और राजगुरु, हो गये वीर शहीद।
हँसते-हँसते फाँसी चढ़कर, बन गये इक उम्मीद।
झाँसी की वो लक्ष्मीबाई, लिये खड्ग और ढाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।

जलियांवाला बाग दिखाती, मौत की वो तस्वीर।
ब्रिटिश हुकूमत की गोली से, कैसे मर गये वीर?
बिस्मिल-कुँवर सिंह-सुभाषचंद्र, लाल-बाल और पाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।

गाँधी के आवाहन पर भी, मिट गये वीर सपूत।
देश विभाजन जिन्नावादी, सब हैं अपने कपूत।
बंटवारे की आग में जलकर, भारत हुआ बेहाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।

सुनो हमारे देश के वीरों, रखना तुम यही याद।
सीने पे जब खायी गोली, तब तो हुए आजाद।
कहाँ मिली आज़ादी हमको, बिना खड्ग बिना ढाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।।
©पंकज प्रियम

Saturday, January 1, 2022

936.यादें 2021

*यादें 2021*
2020 की कड़वी यादों के साथ जब वर्ष 2021 का कैलेंडर बदला तो लगा कि अब कोरोना रूपी राक्षस लौटकर नहीं आएगा। जिंदगी पटरी पर लौटनी शुरू हुई थी। 5 अप्रैल 2020 में प्रस्तावित बाबा बैद्यनाथ साहित्योत्सव काव्याभिषेक को 4 अप्रैल 2021 में करने की घोषणा कर दी। ख़ौफ़ और आशंका के बीच तैयारियां शुरू हो गयी। देवघर का सेवाधाम एक साल पूर्व से ही आरक्षित था। कोरोना फिर से पैर पसारने लगा था इसी डर के माहौल में कई लोग नहीं आ सके। कार्यक्रम की प्रशासनिक अनुमति मिल चुकी थी लेकिन एक डर बना हुआ था फिर भी  निर्धारित तिथि और समय पर भव्य कार्यक्रम हुआ। काफी दूर-दूर से लोग आये और यादगार आयोजन सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम के बाद लौटते वक्त करुणेश जी की तबियत बिगड़ गयी और घर लौटने के बाद टेस्ट कराया तो वे पॉजिटिव निकल गए। हम सबकी जान हलक में आ गयी । हम सब ने एक साथ आना-जाना खाना पीना किया था। तुरंत पटल पर सूचना दी कि कृपया सभी टेस्ट करा लें। मैंने भी टेस्ट कराया लेकिन बाबा बैद्यनाथ की कृपा से नेगेटिव आया और किसी को कुछ नहीं हुआ। अप्रैल के बाद तो कोरोना की दूसरी लहर ने कहर मचाना शुरू कर दिया। हर सुबह मोबाइल पर किसी अपने करीबी के गुजरने की तस्वीर होती थी। साथ वक्त गुजारे दोस्तों के निधन की ख़बर से रोज बैचेन होता रहता। ज़िन्दगी मास्क, सेनिटाइजर, काढ़ा और कसरत में गुजरने लगी। जुलाई अगस्त के बाद हालात बदलने लगे और 16 सितम्बर को गिरिडीह में  स्थापना दिवस का छोटा ही सही लेकिन भव्य आयोजन हुआ। इसी बीच मेरी फुआ सहित कई करीबी रिश्तेदारों के निधन से टूटता रहा। अक्टूबर में जन रामायण अखण्ड काव्यार्चन कराने की योजना बनाई लेकिन 10 अक्टूबर को ज़िन्दगी में एक नया तूफ़ान आ गया। ऑपरेशन से बेटी हुई लेकिन उसे इमरजेंसी में लेकर दूसरे अस्पताल में भागना पड़ा। गिरिडीह के अस्पताल में पत्नी भर्ती थी और नवजात बच्ची को लेकर बोकारो भागना पड़ा। जीवन में पहली बार मैं खुद एम्बुलेंस में बैठकर गया। उसके सायरन की गूँज आज भी दिल को दहला देती है। 12 दिनों तक अस्पताल में बच्ची के इलाज़ में जूझता रहा। रोज ठीक होने की उम्मीद बढ़ती और घटती रही। पूरा परिवार उलझा रहा। 12वें दिन जब अस्पताल ने हाथ खड़े कर दिए तो एकदम से पस्त हो गया। तमाम हिम्मत रखने के बावजूद आँखों से आँसू बहने लगे। लगा कि अब क्या करें?  रातोंरात फिर एम्बुलेंस में लेकर राँची गया और वहाँ 14 दिनों का अस्पतालवास काटा। ठीक दीवाली के रोज अस्पताल से छुट्टी मिली तो जान में जान आयी। 26 दिनों में 3 अस्पतालों के चक्कर ने मानो घनचक्कर बना दिया लेकिन इस दौरान पूरा साहित्योदय परिवार मेरे साथ खड़ा रहा। पूरी दुनिया से लोगों की दुआएं आ रही थी जिसके फलस्वरूप बच्ची ठीक होकर घर लौट आयी। अस्पताल से लौटने के बाद जन रामायण अखण्ड काव्यार्चन की तिथि घोषित किया और तैयारी शुरू कर दी। दिनरात के अथक प्रयासों से 5-6 दिसम्बर को करीब 27 घण्टे तक अखण्ड काव्यार्चन का विश्व रेकॉर्ड बना। इसमें पूरी टीम का सहयोग रहा। गत 29 दिसम्बर को देवघर में जन रामायण सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। डॉ बुद्धिनाथ मिश्र जी के हाथों साहित्योदय का  गोल्डनबुकऑफ रिकॉर्ड का सम्मान प्राप्त करना इस साल की सबसे बड़ी उपलब्धि रही। अगले वर्ष कई योजनाओं पर काम करना है। उम्मीद करता हूँ कि 2022 में साहित्योदय का परचम पूरी दुनिया में लहराये। आयोजन अयोध्या सफल हो और सबका कल्याण हो।
✍️ पंकज प्रियम