गठजोड़
गुंडे हो या मुजरिम, बन कर बैठे मोर।
कैसी है ये सत्ता, कैसा है गठजोर।
नेता गज़ब ढाहे, नाचे ता ता थैया।
इस कुर्सी की माया, छाई है चहुँओर।
कैसी ये सत्ता, कैसा है गठजोर।
नेतवन की नैया को, लगावे ये किनारा।
बदले में खाते उनसे, सबका ही चारा।
मर्जी फिर तो इनकी, चलती है हर ओर।
कैसी ये सत्ता, कैसा है गठजोर।
जिनपर इनाम है जा, बैठे हैं संसदवा।
जनता के पैसे पर, घूमें है विदेसवा।
थाना, अफसर, कोटवा, सबपे इनका जोर।
कैसी ये सत्ता, कैसा है गठजोर।
2.2.200
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