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Wednesday, January 19, 2022

937.कैसे मिली आज़ादी!


आज़ादी 

कहाँ मिली आज़ादी हमको, बिना खड्ग बिना ढाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा,  हो गये कितने लाल।

बांध कफ़न को सर पे सारे, हाथ को कर हथियार।
कूद पड़े आज़ादी रण में, हो मरने को तैयार।।
सन सत्तावन की ज्वाला धधकी, घर-घर जली मशाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।

मंगल पांडे और आज़ाद,   हो गये सब कुर्बान। 
भारत माता रोयी कितनी, देख के जाती जान।
वीर जवानों की कुर्बानी,   रक्त से धरती लाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।

सुखदेव भगत और राजगुरु, हो गये वीर शहीद।
हँसते-हँसते फाँसी चढ़कर, बन गये इक उम्मीद।
झाँसी की वो लक्ष्मीबाई, लिये खड्ग और ढाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।

जलियांवाला बाग दिखाती, मौत की वो तस्वीर।
ब्रिटिश हुकूमत की गोली से, कैसे मर गये वीर?
बिस्मिल-कुँवर सिंह-सुभाषचंद्र, लाल-बाल और पाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।

गाँधी के आवाहन पर भी, मिट गये वीर सपूत।
देश विभाजन जिन्नावादी, सब हैं अपने कपूत।
बंटवारे की आग में जलकर, भारत हुआ बेहाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।

सुनो हमारे देश के वीरों, रखना तुम यही याद।
सीने पे जब खायी गोली, तब तो हुए आजाद।
कहाँ मिली आज़ादी हमको, बिना खड्ग बिना ढाल।
आज़ादी की ख़ातिर कुर्बा, हो गये कितने लाल।।
©पंकज प्रियम

Tuesday, January 12, 2021

903. मेरी मुहब्बत याद तुझे तो आती होगी-

याद तुझे तो आती होगी-2

ओ परदेसी दौलत उसकी, बेशक़ तुझको भाती होगी,
लेकिन मेरी पाक मुहब्बत, याद तुझे तो आती होगी।
ओ परदेशी मेरी मुहब्बत, याद तुझे तो आती होगी

बेताबी में......मुझसे लिपटना, 
और लजा के खुद में सिमटना। 
हरदिन-हरपल.....साँझ-सवेरे,
मेरी बाहों............के वो घेरे।
मेरी धड़कन....... मेरी साँसे, रह-रह के तड़पाती होगी।
ओ परदेसी मेरी मुहब्बत, याद तुझे तो.... आती होगी।

मेरी हाथों में..... वो मुखड़ा,
लगता जैसे चाँद का टुकड़ा।
मेरे कांधे..... सर रख सोना,
ख़्वाबों में वो..... तेरा खोना।
प्यार मुहब्बत की वो बातें, आज भी तो भरमाती होगी,
वो परदेसी मेरी मुहब्बत......याद तुझे तो आती होगी।

लड़ना-झगड़ना, हँसना-रुलाना,
रूठना तेरा..........मेरा मनाना।
नाम मेरा ले ....चाँद को तकना,
तकिये के नीचे ख़त को रखना
मुझको देखे बिन एक दिन भी, चैन कहाँ तू पाती होगी।
वो परदेसी...मेरी मुहब्बत,    याद तुझे तो आती होगी।

धूप-गुलाबी, ....शाम सुहानी
इश्क़-मुहब्बत प्यार रूमानी।
चाँदनी रातें...दरिया किनारा,
मेरी बाहों.... का था सहारा।
याद वो कर के संग की रातें, नींद तेरी उड़ जाती होगी।
वो परदेसी...मेरी मुहब्बत,    याद तुझे तो आती होगी।
©पंकज प्रियम
12.1.2021
12:34AM

Sunday, September 20, 2020

877.तेरी यादें


तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।
सताती है मुझे हरपल, तुम्हारे संग की यादें।।
तेरा चेहरा मेरी आँखें, मेरी धड़कन तेरी साँसे।
जगाती है मुझे हरपल, तुम्हारे संग की रातें।।

तुम्हारी याद जब आती, मुझे बैचेन कर जाती।
तरसकर ये मेरी नैना,यहाँ अश्कों से भर जाती
रुलाती है मुझे हरपल, विरह जो वेदना जागे।
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।

धड़कती है मेरी धड़कन, तू जब जब साँस लेती है।
तड़प उठता है दिल मेरा,तू जब जब आह भरती है।
सताती है मुझे पलपल, तुम्हारे प्यार की बातें।
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।।

सज़ा मेरी सुना देना, ख़ता कर लूँ मगर पहले,
जमाना छोड़ क्या देगा, सजा दे दो अगर पहले।
जमाना तोड़ क्या सकता, मुहब्बत से जुड़े नाते।
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।।

गुलाबी धूप के जैसी, जवानी रूप के जैसी।
नहीं कोई यहाँ होगी, मेरे महबूब के जैसी।
बहकते है कदम मेरे, करे मदहोश जो आँखें।
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।

नयन मदिरा भरी प्याली, अधर में आग सी लाली।
गुलाबी गाल को छूती, लटकती कान की बाली।
गुजर जाता है दिन लेकिन, गुजरती है नहीं रातें।
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।।
पंकज प्रियम

Monday, September 7, 2020

875. रिश्ते क्यूँ रिसते?


जुड़ते हैं यहाँ जो प्यार से बंध के,
करते हैं भरोसा प्यार से बढ़ के।
एक पल में ऐसा होता है क्या?-
रिश्ते भी दिलों के क्यूँ रिसते?

इश्क़ मुहब्बत चाहत नफ़रत,
सूरत शोहरत धन और दौलत।
कुछ भी यहाँ कब पास में टिकते।
रिश्ते भी दिलो के क्यूँ रिसते?

प्यार से बढ़कर क्या है दूजा,
इश्क़ इबादत प्यार है पूजा।
जब प्यार में जीते प्यार में मरते
रिश्ते भी दिलों के क्यूँ रिसते?

दिल जो परेशा होता कभी है,
टूट के दिल जब रोता कभी है।
अपनो के सहारे ही सब रहते,
रिश्तों भी दिलों के क्यूँ रिसते?

माता पिता को छोड़ के तनहा
अपनो का भरोसा तोड़ के जाना।
घर-घर में यही अब किस्से सुनते
रिश्ते भी दिलों के क्यूँ रिसते?
©पंकज प्रियम

Sunday, May 24, 2020

839. दुर्दशा

दुर्दशा,
2122 2122 2122 212
क्या कहूँ? कैसे कहूँ अब ? कुछ नहीं लब बोलता।
देखकर गर चुप रहूँ तो,  रक्त रग में खौलता।।

क्या ख़ता इनकी भला थी, मिल रही जो है सज़ा?
बोल ईश्वर कह खुदा तू,    क्या अभी तेरी रज़ा?
देखकर यह दुर्दशा सब,    क्यूँ नहीं मुँह खोलता?
क्या कहूँ? कैसे कहूँ अब , कुछ नहीं लब बोलता।।

छिन गयी रोजी तभी तो,  चल पड़े सब गाँव को,
गर्भ को ढोकर चली माँ,  खोजती इक ठाँव को।।
राह चलते जो जनी वह,    देखकर दिल डोलता।
क्या कहूँ कैसे कहूँ अब,    कुछ नहीं लब बोलता।।

बोझ घर का माथ पर ले,   गोद में नवजात को।
रक्तरंजित चल पड़ी माँ,    नाल बांधे  गात को।।     
देख जननी दुर्दशा यह,   कौन मन को रोकता।
क्या कहूँ कैसे कहूँ अब,  कुछ नहीं लब बोलता।।

काल कोरोना बना तो,     छुप गया हर अक्स है।
मर गयी संवेदना या ,       मर गया हर शख्स है।।
खौफ़ का मंज़र दिखाकर, जान खुद की तौलता।
क्या कहूँ कैसे कहूँ अब,   कुछ नहीं लब बोलता।।

आँख पट्टी बांध ली है ,       या बना धृतराष्ट्र है।
मौन साधे भीष्म सा क्यूँ? मर रहा जब राष्ट्र है।।
रौब में सब आदमी तो,      पीड़ितों को रौंदता।
क्या कहूँ कैसे कहूँ अब,  कुछ नहीं लब बोलता।।

पेट की ख़ातिर तभी सब,  बन गये मजदूर तब।
पेट की ख़ातिर अभी तो, बन गये मजबूर अब।।
छोड़कर के अब शहर को, गाँव है वह लौटता।
क्या कहूँ कैसे लिखूँ अब, कुछ नहीं लब बोलता।।

©  पंकज भूषण पाठक प्रियम

Monday, May 18, 2020

836. इश्क समन्दर

नमन साहित्योदय
दिन सोमवार
छंद सृजन-सरसी छंद गीत
मात्रा भार 16,11
प्रेम की बाज़ी

आँखों से छलकाए मदिरा,  मारे नैन कटार।
चंचल चितवन चैन चुराए, तीर चले दिल पार।

होठ गुलाबी होश उड़ाए,         गोरे-गोरे गाल।
घोर घटा घनघोर गगन से, काले-काले बाल।
ज्वार उठाती मौज रवानी, बहती नदिया धार।
चंचल चितवन चैन चुराए, तीर चले दिल पार।

चमचम चमके चंदा जैसी, जैसे पूनम रात।
चंदन चम्पा और चमेली, महके खुश्बू गात।
ख़्वाबों की मलिका सी लगती, जाती चाँद के पार।
चंचल चितवन चैन चुराए, तीर चले दिल पार।

बोझ जवानी लेकर चलती,  नागिन जैसी चाल।
देखे जो भी आशिक सारे,       हो जाते बेहाल।
नैनों से ही बातें करती, नैनों से ही वार।
चंचल चितवन चैन चुराए, तीर चले दिल पार।

सूरज लाली सर पे चमके, नैना तीर कमान।
होठ रसीले नैन नशीले, झट से लेते जान।
फूलों सी वो कोमल काया, प्रेम सुधा रसधार।
चंचल चितवन चैन चुराए, तीर चले दिल पार।

इश्क़ समंदर प्रियम लहरकर,  उमड़े दिल जज़्बात।
लफ़्ज़ मुसाफ़िर बनके फिरता, लेकर दिल सौगात।
प्रेम की बाजी जीत के ये,  जाये खुद दिल हार।
चंचल चितवन चैन चुराए,   तीर चले दिल पार।

©पंकज प्रियम
18.05.2020

Thursday, May 14, 2020

835. कोरोना से जंग

कोरोना से जंग

हम कोरोना से लड़ेंगे, हाँ मिलकर आगे बढ़ेंगे।
पाट बीमारी की खाई, चाँद पे फिर हम चढ़ेंगे।।

जेब अभी गर है खाली, होगी फिर से खुशहाली।
ईद-मुबारक और होली, हाँ रौशन होगी दीवाली।
बजेगी घर-घर शहनाई, फिर दूल्हे घोड़ी चढ़ेंगे,
हम कोरोना से लड़ेंगे, हाँ मिलकर आगे बढ़ेंगे।।

सड़कों पे नहीं कोई सन्नाटा, सरपट गाड़ी चलेगी।
बाजार में रौनक फिर होगी, सबको शांति मिलेगी।
स्कूल सभी खुल जाएंगे, सब बच्चे फिर से पढ़ेंगे।
हम कोरोना से लड़ेंगे, हाँ मिलकर आगे बढ़ेंगे।

घरों से बाहर निकलेंगे, फिर रोजी-रोटी पांएगे।
जमकर खूब कमाएंगे, मिलजुल बांट के खाएँगे।
मेहनत मजदूरी कर के इतिहास नया फिर गढ़ेंगे।
हम कोरोना से लड़ेंगे, हाँ मिलकर आगे बढ़ेंगे।।

सात सुरों की फिर सरगम, संगीत नया सुनाएंगे,
झूमेंगे और नाचेंगे, हम गीत नया फिर गाएंगे।
छोड़ के नफऱत की बातें, प्रेम की भाषा पढ़ेंगे।
हम कोरोना से लड़ेंगे, हाँ मिलकर आगे बढ़ेंगे।

कोरोना जो आया है, सबक हमें जो सिखाया है,
ताउम्र रखेंगे याद उसे, ये पाठ हमें जो पढ़ाया है।
छोड़ पुरानी यादों को, तस्वीर नई फिर मढेंगे,
हम कोरोना से लड़ेंगे, हाँ मिलकर आगे बढ़ेंगे।।

खौफ़ में जब दुनिया सारी, हमने झण्डा उठाया है,
साहित्य सृजन कर हमने जनजागरण फैलाया है।
साहित्योदय के संग मिल, जंग कोरोना की लड़ेंगे,
हम कोरोना से लड़ेंगे, हाँ मिलकर आगे बढ़ेंगे।

©पंकज प्रियम
14/05/2020

Friday, March 27, 2020

799. वायरस

वायरस

कुछ ऐसा वायरस... आ जाये,
हर दिल में मुहब्बत छा जाये।
कुछ ऐसा वायरस...आ जाये,
बस प्यार मुहब्बत भा जाये।।

नफऱत का कहीं भी नाम न हो,
हाँ प्यार का लब बदनाम न हो।
हरदिल में मुहब्बत.. छा जाये,
कुछ ऐसा वायरस....आ जाये।

क्या जीना और क्या मरना है?
इस मौत से भी क्या डरना है?
संग अपनों के रहना आ जाये,
कुछ ऐसा वायरस आ जाये

नफऱत न किसी से द्वेष न हो,
कुछ मन में छुपा विद्वेष न हो।
खुशियों को लुटाना आ जाये,
कुछ ऐसा वायरस आ जाये।

जाति-धरम का भेद न हो,
न्याय-व्यवस्था छेद न हो।
भय, भूख-गरीबी खा जाये।
कुछ ऐसा वायरस आ जाये।

©पंकज प्रियम
27.3.2020

Sunday, January 5, 2020

775.मन बंजारा

मन बंजारा

मन बंजारा तन बंजारा, ये जीवन बंजारा है।
चार दिनों की ज़िन्दगी, बस इतना गुजारा है।

ये मन भी कहाँ इक पल, चैन से सोता है,
ख़्वाब सजाये आँखों में, चैन ये खोता है।
चाहत के जुनूँ में मन, बस फिरता मारा है,
मन बंजारा तन बंजारा, जीवन बंजारा है।

ये तन भी कहाँ हरदम, साथ निभाता है,
बचपन से बुढापा तक,  हाथ बढ़ाता है।
गैरों से गिला कैसी? अपनों ने जारा है,
मन बंजारा तन बंजारा, जीवन बंजारा है।

तिनका-तिनका ये जीवन जोड़ता जाता है.
इक पल के बुलावे में सब छोड़ता जाता है।
साँसों की उधारी में धड़कन का सहारा है,
मन बंजारा तन बंजारा,  जीवन बंजारा है।

घनघोर निशा चाहे काली पर होता सबेरा है,
सुबह सुनहरी हो लाली फिर होता अँधेरा है।
वक्त से जंग लड़कर, खुद ही सब हारा है,
मन बंजारा तन बंजारा,  जीवन बंजारा है।

जीवन तो यहाँ हरक्षण, संघर्ष में जीता है,
अपनों से मिले आँसू, हरपल ये पीता है।
कुछ पल का बसेरा पर लगता क्यूँ प्यारा है?
मन बंजारा तन बंजारा, जीवन बंजारा है।

दौलत शोहरत और सूरत, केवल तो माया है,
सबकुछ छोड़के जाना ही, जो कुछ पाया है।
जो कर्म किया अच्छा, तब मिलता किनारा है,
मन बंजारा तन बंजारा, ये जीवन बंजारा है।
©पंकज प्रियम
5.1.2020

Saturday, January 4, 2020

775.मन बंजारा

मन बंजारा

मन बंजारा तन बंजारा, जीवन बंजारा है।
चार दिनों की ज़िन्दगी, बस इतना गुजारा है।

ये मन भी कहाँ इक पल, चैन से सोता है,
ख़्वाब सजाये आँखों में, चैन ये खोता है।
चाहत के जुनूँ में मन, बस फिरता मारा है,
मन बंजारा तन बंजारा, जीवन बंजारा है।

तन भी कहाँ हरदम, ये साथ निभाता है,
बचपन से बुढापे तक, ये हाथ बढ़ाता है।
गैरों से गिला कैसी, अपनों ने जारा है,
मन बंजारा तन बंजारा, जीवन बंजारा है।

तिनका-तिनका ये जीवन जोड़ता जाता है.
इक पल के बुलावे में सब छोड़ता जाता है।
साँसों की उधारी में धड़कन का सहारा है,
मन बंजारा तन बंजारा,  जीवन बंजारा है।

घनघोर निशा चाहे काली पर होता सबेरा है,
सुबह सुनहरी हो लाली फिर होता अँधेरा है।
वक्त से जंग लड़कर, खुद ही सब हारा है,
मन बंजारा तन बंजारा,  जीवन बंजारा है।
©पंकज प्रियम
04.01.2020
"मन बंजारा", को प्रतिलिपि पर पढ़ें :

Thursday, December 12, 2019

749. झारखण्ड से आया हूँ


झारखण्ड की धरती से
मैं गीत सुनाने आया हूँ।

बस बोलना ही है गीत जहाँ,
बस चलना ही है नृत्य जहाँ।
जल-जंगल हरियाली छटा,
वो दृश्य दिखाने आया हूँ।
झारखण्ड की माटी का मैं,
बस प्यार लुटाने आया हूँ।।

जे नाची से बाँची रे,
रजधानी मोर राँची रे।
बिरसा मुंडा और जयपाल
अल्बर्ट एक्का वीर कमाल।
झारखण्ड के माही सा मैं,
छक्का उड़ाने आया हूँ।

सखुआ महुआ आम पलाश,
नगाड़ा मांदर साज है ख़ास।
सरहुल करमा और कोहबर,
पर्वत दरिया और निर्झर।
जुड़ा सखुआ फूलों का
शृंगार दिखाने आया हूँ।

पारसनाथ की चोटी में
मड़ुआ मकई की रोटी में।
बाबा बैद्यनाथ के आँगन में
गङ्गा बरसे सावन में।
बोलबम के नारों का
जयकार लगाने आया हूँ।

कोयला अभ्रख खूब जहाँ,
धरती खनिज अकूत यहाँ।
कण-कण में खुशहाली है,
उद्योग जगत की थाली है।
स्वर्णरेखा के रजकण का
मैं स्वर्ण बहाने आया हूँ।।

©पंकज प्रियम

Monday, October 28, 2019

703. भारत की दीवाली

भारत
जगमग रात दीवाली है,
भारत की बात निराली है।

चहुँ ओर पसरा अँधियारा,
भारत में फैला उजियारा।
जगमग रात दीवाली है,
भारत की बात निराली है।

सबसे सुंदर सबसे न्यारा,
भारत देश मुझे है प्यारा।
घर-घर पूजा की थाली है,
भारत की बात निराली है।

मिट्टी के दीपक की ज्योति,
चमक चाँदनी भी खोती।
अमावस रात सवाली है,
भारत की बात निराली है।

कन्या से कश्मीर तलक
गुजरात से सूर्य फ़लक।
प्रेम सुधा की प्याली है,
भारत की बात निराली है।
©पंकज प्रियम
28/10/2019

Saturday, October 26, 2019

700. शुभ दीवाली होगी

घर-घर में जब खुशहाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

मन का तिमिर जब मिट जाएगा,
तन का भेद जब सिमट जाएगा।
प्रस्फुटित होगा जब ज्ञान प्रकाश,
अमावस में भी चमकेगा आकाश।
घर घर में जब खुशहाली होगी,
समझना तब शुभ दिवाली होगी।

जब नौजवानों का उमंग खिलेगा,
दिल से दिल का जब तरंग मिलेगा।
नव सर्जन का जब होगा उल्लास,
शब्द अलंकारों का होगा अनुप्रास।
जब मस्ती अल्हड़ निराली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

हर हाथ को जब काम मिलेगा,
हर साथ को जब नाम मिलेगा।
कर्ज में डूबकर ना मरे किसान,
फ़र्ज़ में पत्थर से न डरे जवान।
जीवन में ना जब बदहाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

भूखमरी, गरीबी और बेरोजगारी,
इससे बड़ी कहाँ और है बीमारी।
इन मुद्दों का जब भी शमन होगा,
सियासी मुद्दों का तब दमन होगा।
गली-गली सड़क और नाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

जब सत्य-अहिंसा की जय होगी,
संस्कृति-संस्कारों की विजय होगी।
जब हर घर ही प्रेमाश्रम बन जाए,
फिर कौन भला वृद्धाश्रम जाए।
मुहब्बत से भरी जब थाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

जब कोख में बिटिया नहीं मरेगी,
दहेज की बेदी जब नहीं चढ़ेगी।
जब औरतों पर ना हो अत्याचार,
मासूमों का जब ना हो दुराचार।
जब माँ-बहन की ना गाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।

मुद्दों की फेहरिस्त है लम्बी इतनी,
लंका में पवनसुत पूँछ की जितनी।
सब पूरा होना समझो रामराज है,
राम को ही कहाँ मिला सुराज है!
अयोध्या में जब वो दीवाली होगी,
समझना तब शुभ दीवाली होगी।
©पंकज प्रियम

Thursday, October 24, 2019

696. दीप जलायें


आओ प्रेम का दीप जलायें,
मिलकर ज्योति पर्व मनायें।

मन से ईर्ष्या-द्वेष मिटाकर,
नफरत का विद्वेष हटाकर।
तबमन को जो कर दे रौशन,
दिल में प्रेम की जोत जगायें।
आओ प्रेम का दीप जलायें।
  
तिमिर घनेरा भी मिट जाये,
अज्ञान पे ज्ञान विजय पाये।
असत्य पे सत्य की जय को
उस जीत को फिर दोहरायें
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

भूखा-प्यासा हो कोई अगर,
बेबस लाचार ललचाई नजर ।
उम्मीद जगे हमसे जब ऐसी
कुछ पल ही सही दर्द बटाएं।
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

अन्याय से यह सारा समाज ,
प्रदूषण-दोहन से धरा आज ।
असह्य वेदना से रही कराह,
दर्द की हम ये दवा बन जाएं।
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

भय आतंक-वितृष्णा मिटाके,
सूखी नजरो में आस जगा के।
जाति-धर्म सब-भेद मिटाकर,
शांति अमन का फूल खिलायें,
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

स्वच्छ गली-घर और आँगन,
स्वच्छ धरा और स्वच्छ गगन।
स्वस्थ रहे यह तनमन अपना,
स्वच्छता को हम यूँ अपनायें।
आओ प्रेम का दीप जलाएं।

चहुँ दिशा हो जगमग रौशन,
खुशहाल रहे सबका जीवन।
घर गरीब के चूल्हा जले जो,
घर में माटी का दीप जलायें।
आओ प्रेम का दीप जलायें।
©पंकज प्रियम

Thursday, October 17, 2019

690. क्यूँ देखूँ मैं चँदा

क्यूँ देखे तू चँदा
गीत

क्यूँ देखे तू चँदा, खुद चेहरा तेरा चाँद सा,
क्यूँ देखूँ मैं चँदा, जब प्यारा मेरा चाँद सा।

ऐ बता चाँद तू देखता है क्यूँ मुझको चोर सा,
चाहत होगा तू चकोर का, क्या होगा भोर का।
क्यूँ इंतजार करना, ये मुखड़ा तेरा चाँद सा।
क्यूँ देखे तू ...।

चाँद के दीदार को, क्यूँ नजरें बेक़रार है,
प्यार है संस्कार है, प्रियतम का इंतजार है।
करवा चौथ पे मनुहार, कैसा तेरा चाँद सा।
क्यूँ देखे तू...।

सबको रहता इंतज़ार, करवाचौथ रात का,
निकल आओ रे चाँद, मामला है जज़्बात का,
चंद्रदर्शन को व्याकुल, चेहरा तेरा चाँद सा।
क्यूँ देखे तू ...।

पुलकित धरती गगन, हर्षित बहता पवन,
चाँदनी रात में, महका तन-मन "प्रियम"।
एक चाँद को देखने खिला, चेहरा चाँद सा।
क्यूँ देखे तू...।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Friday, September 13, 2019

651. ख़्वाहिश

ख्वाहिश
एक तुझसे यही है गुज़ारिश सनम,
यार आँखों से ना कर तू बारिश सनम।
एक तुझसे यही है गुज़ारिश सनम,
चाँद तारों की ना कर तू ख्वाहिश सनम।

चाँद को आसमां से निहारा करो,
चाहतों से मेरी तुम गुजारा करो।
चाँद तारों को ना तुम उतारो जमीं
आसमां की यही है सिफारिश सनम।
एक तुझसे यही
इन सितारोँ को यूँ ही चमकने तो दो
फूल को बाग में ही महकने तो दो।
ना जमाने की बातों पे आना कभी
दूर करने की सबको है साज़िश सनम।
एक तुझसे यही...।
प्यार में ना रखो ऐसी हसरत कभी
हो सके जो न पूरी वो चाहत कभी।
रह गयी जो अधूरी तो दिल टूटता,
कर न ऐसी कोई फ़रमाइश सनम।
एक तुझसे यही...।
मेरी चाहत का तुझको है इक वास्ता,
ना सुनाना किसी को ये दिल दास्तां।
लोग ज़ख्मों पे मलते नमक हैं यहाँ-
इश्क़ में ना करो आजमाइश सनम।

एक तुझसे यही है गुज़ारिश सनम,
चाँद तारों की ना कर तू ख्वाहिश सनम।
© पंकज प्रियम
13/09/2019

Thursday, September 12, 2019

649.हुस्न3

हुस्न

छोड़कर तुझको हम किधर जाएंगे,
ख़्वाब तेरा होगा हम जिधर जाएंगे।

न देख ऐसे की सबपे कहर ढाएंगे,
देखकर तुझको सब यूँ मर जाएंगे।
हुस्न अपना कभी न यूँ सरेआम करो-
देख-देख कर सब आह भर जाएंगे।।
सज़ा होगी जो आह भरते मर जाएंगे।
छोड़कर तुझको...।

हो जन्नत की परी या हसीं ख़्वाब हो,
या गुलशन महकता हसीं गुलाब हो।
कयामत है तेरा ये हुस्न और जलवा-
चाँद हो चांदनी हो या आफ़ताब हो।।
आगोश में भर लो तो हम तर जाएंगे
छोड़कर तुझको.....।

पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त...क्रमशः.....।
©पंकज प्रियम

Wednesday, September 4, 2019

646. पलक

पलक

ये पलकें तुम्हारी, लगे क्यूँ है भारी,
निंदो से बोझिल या फिर है खुमारी।

पलकें गिराना  गिराकर उठाना,
निगाहें तुम्हारी बड़ी क़ातिलाना।
नज़र ये तुम्हारी है लगती कटारी
ये पलकें  तुम्हारी ...

पलकों पे कैसा ये रंग गुलाबी,
लगती तुम्हारी नज़र है शराबी।
नज़र को लगी नज़र की बीमारी
ये पलकें तुम्हारी ...

जगे रातभर जो वो होती जवानी,
आँखों ही आँखों में होती कहानी।
जुबाँ बन्द कहती नज़र ये तुम्हारी,

ये पलकें तुम्हारी, लगे क्यूँ है भारी
बोझिल नींदों से या फिर खुमारी।
©पंकज प्रियम

Wednesday, August 28, 2019

635.,मुरलीवाले

आये हैं हम तेरे द्वार, ओ मुरलीवाले
कर दो न बेड़ा पार, ओ मुरलीवाले।

नज़र हमारी हुई है बूढ़ी
ताकत बची बस है थोड़ी
करूँ मगर जयजयकार, ओ बंसी वाले

कदम हमारे तो लड़खड़ाते
फिर भी न हम तो हैं घबराते,
सब तेरी महिमा अपार, ओ मथुरा वाले।

जग से हुए हैं हम तो बेगाने
न कोई घर है न तो ठिकाने
अब करो तुम उद्धार, ओ वृंदा वाले।

हम हाथ जोड़े दरपर खड़े हैं
तेरे दरस को तनमन अड़े हैं,
करो बैतरणी के पार, ओ यमुना वाले।

आये हैं हम तेरे द्वार, ओ मुरलीवाले,
कर दो न बेड़ा पार, ओ बंसी वाले।
©पंकज प्रियम

Friday, July 26, 2019

614. यमुना का दर्द

यमुना पुकारे

कान्हा तुझको यमुना पुकारे
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

देखो लो कैसा हाल हुआ है,
हाल मेरा बेहाल हुआ है।
शहर का सारा कचरा गिरे
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

नहीं बहती है अविरल धारा,
चढ़ा आवरण कचरा सारा।
साँसे चलती अब धीरे-धीरे,
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

पहले तो मैं बस थी काली
जब से मिली मुझसे नाली,
महकने लगी हूँ मैं तीरे-तीरे,
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

खूब करते थे तुम जलक्रीड़ा
अब तो जल में है बस कीड़ा।
सड़ने लगी हूँ मैं अब धीरे-धीरे,
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

नहीं आती है अब गैया तोरी
छोड़ गयी है अब मैया मोरी।
आँसू बहती है तो नीरे-नीरे,
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

खत्म हुई क्या तेरी माया,
जीर्ण-शीर्ण सी मेरी काया।
मरने लगी हूँ मैं अब धीरे-धीरे
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

आकर बेड़ा पार करो तुम
फिर मेरा उद्धार करो तुम।
मानव से मन अब मेरा हारे,
सब कुछ अब है हाथ तुम्हारे।

कान्हा तुझको यमुना पुकारे
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

©पंकज प्रियम
26जुलाई2019