समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
मैं कलम हूँ कभी मैं शब्द सृजन करता,कभी हथियार बनता हूँ शब्दों की सरिता का,मैं शीतल धार बनता हूँ किसी की मौत की तारीख मुकर्रर जब कोई करता उस फैसले के साथ,खुद मौत मैं स्वीकार करता हूँ। ✍पंकज प्रियम