Wednesday, September 19, 2018

429.मुक्तक। कलम

मैं कलम हूँ
कभी मैं शब्द सृजन करता,कभी हथियार बनता हूँ
शब्दों की सरिता का,मैं शीतल धार बनता हूँ
किसी की मौत की तारीख मुकर्रर जब कोई करता
उस फैसले के साथ,खुद मौत मैं स्वीकार करता हूँ।
✍पंकज प्रियम

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