नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर शत शत नमन!
नेताजी को समर्पित-
कैसी आज़ादी!
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मांगा था खून कभी
देने को आज़ादी
कहां चले गए तुम
कैसी मिली आज़ादी?
भूखे नङ्गे तड़प रही
देश की बड़ी आबादी
आकर देखो नेताजी
भारत की ये बर्बादी।
मन्दिर-मस्जिद
बीफ के झगड़े
इसी में उलझी
बड़ी आबादी।
नेता तो सरताज है
जनता मरती आज है
खेतों में पड़ता सूखा
किसान रहता भूखा।
ऋण बीमा की आस में
समर्थन मूल्य के ह्रास में
सस्ती गरीब की जान है
फंदे से लटका किसान है।
कहने को आज़ाद मगर
विचारों पे रहती पाबन्दी
अमन चैन तोड़ने को
मिली है सबको आज़ादी।
कोर्ट का लगाते चक्कर
गरीब बनते घनचक्कर
आतंकी बचाने ख़ातिर
खुल जाती रात आधी।
आधार है तो पहचान है
नही तो निकले प्राण है
गोदामों में सड़ता अनाज
भूखे सोती बड़ी आबादी।
आ जाओ सुभाष बाबू
देखो भारत की बर्बादी
अंदर घुटकर जीने की
कैसी मिली है आज़ादी
© पंकज भूषण पाठक "प्रियम"