बस काम का है टेंशन
हर रोज ज़ूम मीटिंग और दर्जनों में लेटर,
इतना रोज प्रेशर! कि बढ़ रहा ब्लड प्रेशर!
न सैलरी न साधन, बस काम का है टेंशन,
बिन फंड के ही टारगेट, पाने का है अटेंशन।।
ऑफिस का सारा टेंशन, घर ले के आना पड़ता,
रोज घर में किचकिच, रूखा ही खाना पड़ता।
न नौकरी है निश्चित, न वक्त है सुनिश्चित।
मिलती न वाहवाही, पर दण्ड मिलना निश्चित।
हर रोज खुद को साबित, करने को दें परीक्षा,
उसमें भी पास करने, न होती उनकी इच्छा।
लगता है जैसे बंधुआ, सब हो गए हैं इनके।
है नाचना ही सबको, इशारों पे बस तो इनके।
बस खैनी ताल ठोके, बाबू जो हैं सरकारी,
सबको बस वो समझे, कद्दू का है तरकारी।
बस थांसते ही जाता, जबतक कि गल न जाएं।
पेरना है तबतक, दम जबतक निकल न जाये।
बस लक्ष्य पूरी करने, सारी उमर लुटा दी,
कुछ आस बेहतरी में, जवानी भी है मिटा दी।
पर भाग्य है अधर में, न देगा कोई पेंशन।
बस काम का है टेंशन, बस काम का है टेंशन।।
© पंकज प्रियम
No comments:
Post a Comment