चुनावी जाल में फँसते आम वोटर
जाति मज़हब जीते सब,
गया हिंदु बस हार।
फ्री पैसे के लोभ में, दिया काम दुत्कार।
पंकज प्रियम
नेताओं की धूर्तबाजी और चालाकी में भोली भाली जनता फंस जाती है। निश्चित तौर पर ये धूर्तबाजी सभी अशिक्षित वर्गो पर की गई और वोट लेने के लिए 1 लाख रुपये की गारंटी कार्ड तक दे दी गयी। उन्हें यह नहीं बताया गया कि कोंग्रेस की सरकार बनने पर 1 लाख सलाना दिए जाएंगे वल्कि यह बताया गया होगा कि इंडि गठबंधन को वोट दीजिये और हर महीने आपके खाते में पैसा आने लगेगा तभी तो बंगलुरु में चुनाव के पहले खाता खुलवाने मुस्लिम महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ी। चुनाव खत्म होते उन्हें लगा कि अब तो उनके खाते में पैसे आ जाएंगे और इसीलिए औरतें कोंग्रेस दफ्तर में पहुँचने लगी। इन दलों ने शुरू से ही मुस्लिम, दलित और पिछते अशिक्षित वर्ग को वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल करने का पाप किया है। अगर ये महिलाएं शिक्षित होती तो निश्चित तौर पर उन्हें यह पता होता कि यह महज चुनावी भाषण था।
वैसे भी देश की हर महिला को 1 लाख रुपये सलाना देना व्यवहारिक नहीं है। आखिर कहाँ से कोई सरकार इतने रुपये फ्री में देगी? सरकार कोई भी चीज फ्री में नहीं देती है उसकी वसूली आम जनता से ही टैक्स के जरिये करती है। देश की बहुसंख्यक आबादी अपनी मेहनत की कमाई को टैक्स ले रूप में सरकार को देती है और सरकार उसे अपनी राजनीतिक लाभ के लिए रेबड़िओं की तरह मुफ्त में बांटने का काम करती है। अगर फ्री में ही देना है तो विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री अपनी निजी संपत्ति से दे इसमें किसी को कोई ऐतराज नहीं है लेकिन मध्यमवर्गीय परिवार की मेहनत की कमाई को फ्री में लुटाने का अधिकार किसी सरकार को नहीं है।
चुनाव के वक्त पैसे और शराब बांटने का काम लगभग हर पार्टी करती है। वोट के बदले नोट के लालच में समाज के पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग आसानी से फंस जाते हैं और राजनीतिक दल उन्हें अपना वोट बैंक बनाते रहे हैं। वे सही गलत का चुनाव नहीं कर पाते उन्हें समाज के कुछ ठेकेदार जैसे हांकते हैं उसी तरफ हो लेते हैं जबकि अगड़े और शिक्षित वर्गो का वोट बिखरा रहता है, एक ही घर में 4 अलग विचारधारा के लोग रहते हैं। यही कारण है कि राजनीतिक दलों के लिए पहले अल्पसंख्यक वर्ग वोटबैंक था अब धीरे-धीरे उन्होंने बहुसंख्यक आबादी को जातियो में विभाजित कर दलितों को वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल करने लगे हैं। मौजूदा लोकसभा चुनाव परिणाम को ही देख लीजिए । अल्पसंख्यक, दलित, ओबीसी वर्ग में एकमुश्त एकतरफा वोट दिया क्योंकि उन्हें 1 लाख सलाना का लालच और आरक्षण खत्म करने का डर दिखाया गया। जबकि भाजपा के पारंपरिक वोटर अगड़े और शिक्षित वर्ग वोट देने भी नहीं निकले उन्हें लग रहा था कि भाजपा तो प्रचण्ड जीत की ओर बढ़ ही रही है। प्रधानमंत्री के 400 पार नारे ने भी भाजपा के वोटरों को अलसी बना दिया यही वजह रही कि मुस्लिम बहुल इलाकों में तो बम्पर वोटिंग हुई लेकिन हिन्दू बहुल इलाकों में लोग बाहर नहीं निकले। इसमे कोई दो राय नहीं कि मोदी सरकार के पिछले 10 वर्षों में अभूतपूर्व और अप्रत्याशित कार्य हुए हैं। सड़क, परिवहन, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास हर क्षेत्र में काम हुए हैं। मोदी सरकार में सरकारी कामकाज की परिभाषा बदल गई। प्राइवेट सेक्टर की तरह ही सरकारी विभागों में टारगेट बेस्ड कार्य हो रहे हैं। छुट्टी और रविवार तो जैसे सरकारी कर्मचारी भूल ही गये हैं। घर आने के बाद भी देर रात तक सबको काम करना पड़ रहा है। सबको मिशन मोड में काम करना पड़ता है। यही वजह है कि मोदी सरकार से सरकारी कमर्चारी का एक बड़ा वर्ग नाराज भी है क्योंकि पहले की सरकारों में उनके लिए कोई काम ही नहीं था। हर घर जल, स्वच्छ भारत मिशन, आवास में सबको शुद्ध पेयजल, शौचालय और पक्के मकान मिल रहे हैं। कोरोना काल से प्रत्येक परिवार में हर सदस्य को 5 किलो मुफ्त अनाज दिए जा रहे हैं आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि इसका लाभ किस वर्ग को ज्यादा मिल रहा है। हिन्दू गरीब परिवारों में मुश्किल से 3 या 4 सदस्य होते हैं तो कुल जमा 20 किलो अनाज उन्हें मिलता है जबकि एक मुस्लिम परिवार में 15-20 सदस्य होते हैं तो उन्हें हर माह 1 क्विंटल मुफ्त अनाज मिल रहा है। उसी तरह हर परिवार को शौचालय और आवास मुफ्त में मिल रहा है। इन योजनाओं से लाखों लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार से जुड़े हुए हैं। गॉंव -गाँव में बिजली, पानी और सड़क की सुविधा मिल रही है। मैं अपने ही गाँव को देखता हूँ कि 15-17 वर्ष पहले एक अदद सड़क तक नहीं थी कोई रिक्शा वाला भी जाने को तैयार नहीं होता था आज हाइवे बन गया है और 24 घण्टे गाड़ियां चलती है। 24 घण्टे बिजली मिल रही है। आज से 15 साल पहले किसी के घर मे एक मोटरसाइकिल तक नहीं थी लेकिन मोटरसाइकिल छोड़िये अधिकांश के घर में कार है। सबके पक्के मकान बन गए हैं। हालत यह है कि घर और खेत के लिए मजदूर तक नहीं मिलते। सड़क निर्माण में जमीन अधिग्रहण से अधिकांश परिवार लखपति -करोड़पति हो गए हैं। आज मेरे गाँव की जमीन भी सोने के भाव बिक रही है। लोग पैसे लेकर घुम रहे लेकिन जमीन नहीं मिल रही है। सबको फ्री का आवास और अनाज जो मिल रहा है तो कौन काम करे? इसी तरह किसी भी गाँव शहर का उदाहरण देख सकते हैं। अयोध्या और काशी की तो दशा बदल गयी है। याद कीजिये 5 साल पहले की अयोध्या और आज की अयोध्या! जमीन आसमान का फर्क दिखता होगा। काशी, मथुरा, वृंदावन, उज्जैन का विकास देखिए। अपने बाबाधाम में ही अब इंटरनेशनल एयरपोर्ट और एम्स बन गया है। रेल सुविधाओं का विस्तार हुआ है। राम मंदिर बनने के बाद सबको लगा रहा था कि भाजपा को बम्पर सीट मिलेगी लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति देखिए कि फ़ैजाबाद सीट ही हार गई। लोगों का कहना है कि स्थानीय प्रत्याशी लल्लू सिंह ने कोई काम नहीं किया इसलिए उन्हें हराया। दुकानदारों की दुकानें छिनने का भी रोष था। ठीक है लल्लू सिंह ने काम नहीं किया लेकिन अयोध्या का विकास तो भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी ने ही किया न! आप उस काम के लिए तो वोट देते। केंद्र में मोदी की सरकार रहेगी तो सपा के सांसद कितना विकास कर देंगे? रही बात दुकान घर टूटने की तो आप बेशक मुआवजे के लिए लड़िये, अपनी मांग रखिये। विरोध में आप वोट का बहिष्कार भी कर देते तो भी बात समझ मे आती लेकिन उस दल को कमजोर करना जिसने अयोध्या की 500 वर्षो से अभिशप्त नगरी को पुनः सजाने सँवारने का काम किया। मन्दिर बनने से उसी क्षेत्र का तो सर्वांगीण विकास हुआ है। एक स्थानीय बता रहे थे कि पहले पूरे मकान का किराया 2 से 3 हजार महीना मिलता था आज एक कमरे का किराया प्रतिदिन 2 से 3 हजार उठाते हैं। फूल-प्रसाद से लेकर घर दुकान तक का रोजगार बढा ही है। अयोध्या, काशी, मथुरा, वृंदावन जैसे शहर की पूरी अर्थव्यवस्था ही मंदिरों के भरोसे है। यूँ कहें कि भारत के अधिकांश शहर मन्दिरो के भरोसे चल रहे हैं। फिर भी उत्तरप्रदेश की जनता का विकास के बजाय महीना मुफ्त का साढ़े आठ हजार ला लालच और आरक्षण जैसे कोढ़ के डर से मोदी सरकार के विरूद्ध वोट करना दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जा सकता है। हालांकि इसके लिए भाजपा को भी आत्ममंथन करने की जरूरत है। अपने कोर कार्यकर्ता की बजाय दलबदलू को टिकट देना भी नुकसानदायक रहा है। यूपी में सीटों के बंटवारे में मुख्यमंत्री योगी को पूर्ण स्वतंत्रता देनी चाहिए थी। जो अच्छे काम कर रहे थे उनका टिकट नहीं काटना था। संघ को लेकर चलना चाहिए था ऐसे कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं जिनपर पार्टी को मंथन रखते हुए आगामी चुनाव की तैयारी में अभी से जुटने की आवश्यकता है। बंगाल में ममता बनर्जी के लिए रोहिंग्या और बंगलादेशी घुसपैठियों का बड़ा वोटबैंक है। ममता बनर्जी उनके अंदर CAA कानून का भय बिठाने में कामयाब रही। वहाँ एक मजबूत विकल्प की जरूरत है।
लब्बोलुआब यही कि हर क्षेत्र में विकास हुआ है बावजूद इसके मोदी सरकार को बहुमत नहीं मिलना देश का दुर्भाग्य है। इतिहास गवाह है कि गठबंधन की सरकार कभी स्थायी और मजबूत नहीं होती। पिछले दो कार्यकाल में जिस दृढ़ता के साथ सरकार ने निर्णय लिया तीसरे टर्म फर्क साफ दिखेगा। सहयोगी दल अभी से ही मलाईदार मंत्रालय मांगने लगे हैं जाहिर है उनका एकमात्र ध्येय मलाई काटना ही है विकास से कोई लेना देना नहीं होगा। गठबंधन सरकार के सहयोगी दल अपने ही विकास में लगे रहेंगे तो जाहिर तौर पर नुकसान देश की जनता का ही होगा।
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