Saturday, April 5, 2025

1008. जयचन्द



जयचन्द

तब भी कुछ जयचंद थे, अब भी हैं जयचंद।
जयचंदों ने ही किया, भारत का पट बंद।।

आक्रान्ता औकात क्या? कर पाते क्या वार?
साथ अगर देते नहीं,         देश छुपे गद्दार।।

सोने की चिड़िया कभी, आर्यावर्त अखण्ड।
खण्ड-खण्ड जिसने किया, देना होगा दण्ड।।

देश छुपे गद्दार को, अब लो सब पहचान।
जो हुआ नहीं देश का, क्या तेरा है जान।।

भारत माता कह रही,  कर लो अब संकल्प।
राष्ट्र बचा लो साथ मिल,  वक्त बचा है अल्प।।

पंकज प्रियम
05.04.2025

2 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 06 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

पंकज प्रियम said...

जी धन्यवाद आपका