शराब
कहाँ खौफ़ है कोरोना का, देख लो जीने वालों को।
भाड़ में जाये डिस्टेंसिंग, देख लो पीने वालों को।।
नहीं फ़िकर है मरने की, ये डरता नहीं बीमारी से,
नशे की लत में डूबा ऐसा, डरा नहीं महामारी से।
कहीं लगी है लम्बी लाइन, कहीं पे धक्कामुक्की है।
नहीं रुकेगा कोरोना, अब लगती बात ये पक्की है।।
अर्थव्यवस्था बिन दारू, चलता नहीं गुजारा क्या?
दारू लेने उमड़ पड़ा जो, लगता कभी बेचारा क्या?
देख लो शासन वालो को, क्या गज़ब कर डाला है?
बन्द रखा शिवालों को, पर खोल दिया मधुशाला है।।
लॉकडाउन के पीरियड में, कैसा गड़बड़झाला है?
दवा न मिलती है लेकिन, खुल गया दर हाला है।।
©पंकज प्रियम